Saturday, January 10, 2015

FUN-MAZA-MASTI बीवी का मायका-16

FUN-MAZA-MASTI

 बीवी का मायका-16

 ललित के चेहरे के भाव देखकर शान्ताबाई जोर से सांस लेते हुए बोलीं "लगता है ... ललित राजा ने ... जीजाजी के असली कारनामे देखे नहीं हैं ... एक नंबर के खिलाड़ी हैं राजा वे ... न जाने कहां से सीखे हैं ... लीना बाई घर में ना हों तो आधे घंटे में मुझे ऐसे ठोक देते हैं कि दो तीन दिन के लिये मेरी ये बदमाश बुर ठंडी हो जाती है"

"अब लीना जैसी अप्सरा ... बीवी हो तो ... आदमी बहुत कुछ ... सीख जाता है ... ललित ... पर जरा संभालना पड़ता है ... पटाखा है पटाखा ... कब फूट जाये पता भी नहीं चलता ..." मैंने चोदते हुए कहा.

"हां ललित बेटा ... तुम्हारी दीदी याने एकदम परी है ... हुस्न की परी ...." शान्ताबाई चूतड़ उछालते हुए बोली "जब से वे यहां ... रहने आयीं ... तब से मैं देखती थी हमेशा ... फ़िर मेरे यहां से सब्जी भाजी खरीदने लगीं ... मैं तो बस टक लगाकर देखती रहती थी उनका रूप. और तू जानता है- उसको देखकर मेरी चूत गीली हो जाती थी जैसे किसी मर्द का लंड खड़ा हो जाता होगा. अब उसके सामने मैं क्या हूं , फ़िर भी मेरे पास थोड़ा बहुत माल तो है ना ... " अपने ही स्तनों को गर्व से देखती हुई शान्ताबाई बोली " ... सो मैं भी दिखाती थी उसको अपनी पुरानी टाइट चोली पहन पहन कर. उनकी आंखों को देखकर लगता था कि वे भी मुझे पसंद करती हैं इसलिये बड़ी तमन्ना से रोज राह देखती थी उनकी. और जब एक दिन लीना बाई खुद बोली कि शान्ताबाई, अब भाजी का ठेला छोड़ो और मेरे यहां काम करने को आ जाओ, मेरे को लगा जैसे मन्नत मिल गयी हो"

"वैसे आप भी कम खूबसूरत नहीं हैं शान्ताबाई, बस यह फरक है कि लीना जरा नाजुक और स्लिम है और आप के जलवे एकदम खाये पिये मांसल किस्म के हैं. ये पपीते जैसे स्तन ... या ये कहो कि झूलते नारियल जैसी चूंचियां, ये जामुन या खजूर जैसे निपल, ये नरम नरम डनलोपिलो जैसा पेट, ये घने रेशमी घुंघराले बालों से भरी - घनी झांटों के बीच खिली हुई लाल लाल गीली चिपचिपी गरमागरम चूत ... अब वो रंभा और उर्वशी के पास भी इससे ज्यादा क्या होगा बाई?" मैंने तारीफ़ की. हमेशा करता हूं, बाई ऐसे खिल जाती हैं कि रस का बहाव दुगना हो जाता है. अब भी ऐसा ही हुई, उनमें ऐसा जोर आया कि डबल स्पीड से नीचे से चोदने लगीं.

अब मस्ती में उन्होंने ललित को बैठने को कहा और फ़िर कमर में हाथ डालकर उसे पास खींचा और उसका लंड मुंह में ले लिया. जब तक ललित ने उनको अपनी क्रीम खिलाई तब तक वे एकदम सर्र से झड़ गयीं. ऐसी झड़ीं कि तीन चार हल्की हल्की चीखें उनके मुंह से निकल गयीं. झड़ने के बाद फ़िर उनको मेरे लंड के धक्के जरा भारी पड़ने लगे. "बस बाबूजी ... भैयाजी अब रुक जाओ ... हो गया मेरा ... " वे कहती रह गयीं पर मैंने उनके होंठ मुंह में लेकर उनकी बोलती बंद कर दी और ऐसा कूटा कि वे तड़प कर अपना सिर इधर उधर फ़ेकने लगीं.

जब वे पांच मिनिट में उठीं तो पूरी लस्त हो गयी थीं. कपड़े पहनते पहनते ललित से बोलीं "तेरे जीजाजी से चुदवा कर मैं एकदम ठंडी हो जाती हूं बेटा ... क्या कूटते हैं ... बड़ा जुलम करते हैं ... मेरे और तुम्हारी दीदी जैसी गरम चूत को ऐसा ही लंड चाहिये नहीं तो जीवन नरक हो जाता है बेटा. खैर, अब मैं चलती हूं, तुम आराम करो"

"मौसी ... तुमने प्रॉमिस किया था" ललित उठकर चिल्लाया.

"अरे भूल ही गयी, चलो बेटा, उस कमरे में चलते हैं" फ़िर मेरी ओर मुड़ कर बोलीं "अब ऐसे ना देखो, कुछ ऐसा वैसा नहीं करने वाली इस छोरे के साथ, करना हो तो सरे आम आप के सामने करूंगी. इतनी भयंकर चुदाई के बाद किसी में इतना हौसला नहीं है कि अंदर जाकर शुरू हो जायें. ललित को कुछ सिखाना है, आप बाहर बैठ कर अपना काम करो अब"

मैं बाहर जाकर बैठ गया. मन हो रहा था कि अंदर जाकर देखूं कि क्या चल रहा है पर फ़िर रुक गया.

करीब डेढ़ घंटे बाद शान्ताबाई बाहर आयीं. मुड़ कर बोलीं "आओ ना ललिता रानी, शरमाओ मत"

और अंदर से साड़ी पहनी, पूरी तरह से तैयार हुई एक खूबसूरत लड़की के भेस में ललित बाहर आया. क्या बला का हुस्न था. मैंने सोचा कि ललित बाकी कैसे भी कपड़े पहने, लीना की तरह की सुंदरता उसकी साड़ी में ही निखरती थी.

मेरी आंखों में के प्रशंसा के भाव देखकर शान्ताबाई गर्व से बोलीं "ये खुद पहनी है इसने, आखिर सीख ही गया, एक घंटे में चार पांच बार प्रैक्टिस करवाई मैंने, वैसे सच में शौकीन लड़का है भैयाजी हमारा ललित, नहीं तो लड़कियों को भी आसानी से नहीं आता साड़ी बांधना."

ललित को सीने से लगाकर वे बोलीं "ललित राजा ... अरे अब तुझे ललिता कहने की आदत डालना पड़ेगी, अब मैं परसों आऊंगी, तब तक जो इश्क विश करना है, कर ले जीजाजी के साथ." ललित वहां आइने में खुद को निहारने में जुट गया था, बड़ा खुश नजर आ रहा था.

बाहर जाते जाते मेरे पास आकर शान्ताबाई बोलीं "भैयाजी, जरा बुरा मत मानना, आप को कह कर गयी थी कि कुछ नहीं करूंगी पर अभी मैंने अंदर साड़ी पहनाते पहनाते फ़िर से ललित का लंड चूस लिया, आप को बुरा तो नहीं लगेगा भैयाजी?"

"मुझे क्यों बुरा लगेगा बाई? आप को मौसी कहता है आखिर. पर अभी फिर से याने ... अभी एक घंटा पहले ही तो चोदते वक्त आपने चूसा था फ़िर ... "

"अरे साड़ी पहनाते पहनाते मुझसे नहीं रहा गया, और लड़के का शौक तो देखो, साड़ी पहनने के शौक में फ़िर लंड खड़ा हो गया उसका. ऊपर से कहता है कि गोटियां दुखती हैं. असल का रसिक लौंडा है लगता है. मुझसे नहीं रहा गया. याने आज रात को ज्यादा मस्ती नहीं कर पायेगा बेचारा, तीन चार बार तो मेरे साथ ही झड़ा है छोकरा. आप ऐसा करो कि आज सच में आप दोनों आराम कर लो भैयाजी, कल नये दम खम से अपनी प्यार मुहब्बत होने दो"

"ठीक है बाई, मैं आज ललित को तकलीफ़ नहीं दूंगा"

"और मैंने बादमा का हलुआ बहुत सारा बनाया है रात को भी खा लेना, अच्छा होता है सेहत के लिये, खास कर नौजवान मर्दों के लिये. और भैयाजी .... बुरा मत मानना ... एक बात कहनी है ..." वे बोलीं. अब तक हम बाहर ड्राइंग रूम में आ गये थे, ललित अंदर ही था.

"अब मैं क्यों बुरा मानूंगा?" मैंने पूछा.

"अरे आप भरे पूरे मर्द हो, और अधिकतर मर्दों को मैं जो कहने जा रही हूं, वो बात ठीक नहीं लगेगी, पर आप उसको इतना प्यार करते हो इसलिये कह रही हूं. ललित को आप बहुत अच्छे लगते हैं, याने जैसा आपने आज उसके साथ किया, शायद उसको भी आपके साथ वैसा ही करना है. आज उसे साड़ी पहनना सिखाते वक्त मैं जब उसके इस लड़कियों के कपड़े के शौक के बारे में बातें कर रही थी तो वो बोला कि जीजाजी भी अगर ऐसे ... बन जायें तो बला के सेक्सी लगेंगे."

"याने ऐसे लड़कियों के कपड़े पहनकर? ..." मैं अचंभे में आ गया.

"... और भैयाजी ..."

"क्या शान्ताबाई?"

आंख मार कर वे बोलीं "ऐसा मत समझो आप कि उसको बस आपका लंड ही अच्छा लगता है, पूरे बदन पर फिदा है आपके, शरमा कर कह नहीं पाता पर ...’ मेरे चूतड़ को दबा कर शान्ताबाई बोली "इसमें भी बड़ा इन्टरेस्ट लगता है छोरे का"

"ऐसा?" मैंने चकराकर कहा "बड़ा छुपा रुस्तम निकला. ठीक है, मैं देख लूंगा उसको"

"डांटना मत. वो आपका दीवाना है" कहकर वे दरवाजा खोल रही थीं तो मैंने कहा "परसों जरूर आइये शान्ताबाई. मैं अब रोज रोज तो छुट्टी नहीं ले सकता, आप आयेंगी तो मन बहला रहगा उसका"

कमर पर हाथ रखकर शान्ताबाई बड़ी शोखी से बोलीं "सिर्फ़ मन ही नहीं, तन भी बहला रहेगा मेरे साथ. अब देखो भैयाजी, सिर्फ़ गपशप करने को तो मैं आऊंगी नहीं, इतना हसीन जवान है, खेले निचोड़े बिना नहीं रहा जायेगा मेरे को"

"मैं कब कह रहा हूं कि सिर्फ़ गप्पें मारो शान्ताबाई. हां पूरा मत निचोड़ लेना बेचारे को, मेरे लिये भी थोड़ा रस छोड़ दिया करो. उसे खुश रखना है शान्ताबाई. इतना खुश कि आकर लीना के पास तारीफ़ के पुल बांध दे, मैं चाहता हूं कि वो यहां इतन रम जाये कि हमेशा आकर यहां रहे"

"मैं समझ गयी भैयाजी, आप चिन्ता मत करो. ऐसी जवानी का लुत्फ़ मिलने को तकदीर लगती है"


उस रात मैंने और ललित ने ज्यादा कुछ नहीं किया. बस बाहर बैठकर जरा गपशप की और किसिंग वगैरह की. ललित सोने तक उसी साड़ी को पहने हुए था इसलिये बस उसके उस स्त्री रूप की मिठास मैंने उसके चुंबनों में चखी.

"जीजाजी, आप से कुछ मांगूं तो आप देंगे?" वो बोला.

"वो शर्त के बारे में बोल रहा है क्या?"

"नहीं जीजाजी, वो ... याने आप भी ऐसे ... आप का बदन भी इतना गोरा चिकना और सुडौल है ... आप भी वो लिन्गरी में ... बड़े मस्त दिखेंगे" शान्ताबाई सच कह रही थीं. पर एक बात अच्छी थी कि ललित अब खुले दिल से अपने मन की बात कह रहा था.

"तेरी बात और है जानेमन, मेरी और. तू इतना नाजुक चिकना जवान है, अब पांच फुट दस इंच ऊंचा और बहात्तर किलो का मेरे जैसा आदमी अजीब नहीं लगेगा ब्रेसियर पहनकर?" मैंने लो कट ब्लाउज़ में से दिखती उसकी चिकनी पीठ सहलाते हुए कहा.

"नहीं जीजाजी, बहुत सेक्सी दिखेंगे आप, याने भले नाजुक युवती जैसे ना दिखें पर वो डब्ल्यू डब्ल्यू एफ़ रेसलिंग वाले चैनल पर जो पहलवान औरतें आती हैं ना, उनमें कुछ कुछ क्या सेक्सी लगती हैं ... "

"कल देखेंगे यार, वैसे तेरा इतना मन है तो ..." मैंने बात अधूरी छोड़ दी. सोचा कल उसे फुसला कर बहला दूंगा पर मुझे क्या पता कि हमारी अधूरी बात्चीत को वह यह समझ बैठेगा कि मैं तैयार हूं.

दूसरे दिन मुझे जल्दी ऑफ़िस जाना पड़ा. आने में भी छह बज गये. वैसे ललित अब घर में सेट हो गया था इसलिये वह अकेला कैसे रहेगा इसकी मुझे कोई चिन्ता नहीं थी. शाम को घर में दाखिल हुआ तो ललित साड़ी पहनकर बैठा था. आज उसने लीना की गुलाबी साड़ी और स्लीवलेस ब्लाउज़ पहना था. गुलाबी लिपस्टिक भी लगायी थी.

मैंने उस भींच लिया. कस के चूमा. "ललिता डार्लिंग, हार्ट अटैक करवाओगी क्या, लंड देखो कैसे खड़ा हो गया तेरी खूबसूरती देख कर, अभी चौबीस घंटे का भी आराम नहीं हुआ कल की चुदाई के बाद. सुबह तक गोटियां भी दुख रही थीं. अब चल, देख आज मैं कैसे चोदता हूं तेरे को"

"जीजाजी, अभी नहीं" नखरा करते ललित बोला "मुझे तैयारी करना है आपकी"

"अब चुदाई के लिये क्या तैयारी करनी है, और तुझे कुछ नहीं करना है, बस अपनी साड़ी उठाकर पट लेटना है और चुदवाना है मुझसे" मैंने उसे पकड़ा तो मेरी गिरफ़्त से छूटकर वो बोला. "भूल गये कल आपने प्रॉमिस किया था?"

मैंने बात बनाने की कोशिश की "हां ... वो ...अब रहने दो ना रानी .... क्यों इस पचड़े में पड़ें हम, वैसे ही इतना मस्त इश्क चल रहा है अपना, मन भी नहीं भरा अब तक"

"नहीं जीजाजी, मैं रूठ जाऊंगी, आप को पहननी ही पड़ेगी मेरी पसंद की ब्रा और पैंटी" पैर पटककर ललित बोला. "अभी के अभी आप मेरे साथ मॉल चलिये, मैं अभी खरादूंगी" उसके हाव भाव से लगता था कि औरतों की तरह जिद करना भी उसने भली भांति सीख लिया था.

"अब रहने भी दो ना डार्लिंग, मुझे अजीब सा लगता है" मैंने उसको मनाने की कोशिश की.

"पर मेरे को देखना है आपको औरत बने हुए. मैं सोचती हूं तो मेरा ... याने मैं गरमा जाती हूं" ललित मुझसे चिपटकर बोला, साड़ी में से भी उसके लंड का उभार मुझे महसूस हो रहा था.

"अब बाहर जाने का मूड नहीं है रानी, यहीं देखो ना, लीना की इतनी लिंगरी पड़ी है"

ललित मुस्करा दिया "याने पहनने को तैयार हैं आप, पर बाहर तो चलना ही है, लीना दीदी की पैंटी तो आप को शायद हो जायेगी, इलेस्टिक होता है उसमें, पर ब्रा आपको कम से कम ३८ कप डी साइज़ की लगेगी. दीदी की तो बस ३४ डी है"

"यार मुझे कैसा भी तो लगता है ऐसे जाकर ब्रा खरीदना" मैंने फिर कोशिश की.

"आप बस कार से चलिये मेरे साथ वो वरली की मॉल में. आप बाहर फ़ूड कोर्ट में कॉफ़ी पीजिये, मैं तब तक सब ले आऊंगा - आऊंगी" ललित बोला. पहली बार उसने ऐसे चूक कर मर्द का वर्ब इस्तेमाल किया था. मैं समझ गया कि जनाब मेरे ऊपर जो इतना फिदा हैं वो अब एक जवान लड़के की तरह याने क्या करना चाहते हैं मेरे साथ, ये पक्का है.

फिर भी मैंने हथियार डाल दिये, उसने मुझे इतना सुख दिया था, अब बेचारे को एक दो घंटे मन की करने देने में कोई हर्ज नहीं था.

हम मॉल गये. मैंने उस अपना कार्ड दे दिया. ललित आधे घंटे में शॉपिंग करके आ गया. आठ बज गये थे इसलिये हमने डिनर भी कर लिया. घर वापस आये तो नौ बज गये थे. 


 ललित ने घर आकर ड्राइंग रुम में बैग में से पैकेट निकाले. एक ब्रा का पैकेट था, एक पैंटी का, एक विग का और एक शूज़ का. मैंने कहा "ये विग क्यों लायी है ललिता रानी? अच्छा मेरा पूरा लिंग परिवर्तन करके ही मानेगी तू आज, और ये जूते?"

"जूते नहीं जीजाजी, हाई हील्स" ललित मुस्करा कर बोला.

"हाई हील? मेरे लिये? अरे पर मुझे होंगे क्या? नाप के हैं?"

"हां जीजाजी, मैंने आपकी शू साइज़ देख ली थी. ८ तो है, कोई बड़े पैर नहीं हैं आपके, आसानी से मिल गयीं आपके साइज़ की "

मैं सोचने लगा कि यह लड़का तो इसको बड़ा सीरियसली कर रहा है. उसकी आंखों में आज गजब की मस्ती और चाहत थी. दिख भी बड़ा खूबसूरत रहा था, साड़ी पहनने का अब उसे इतना अभ्यास हो गया था कि शाम से वह स्लीवलेस ब्लाउज़ और नाभिदर्शना साड़ी उसने बिना झिझक बिना सेल्फ़्कॉन्शस हुए पहनी थी. मैंने सीधे उसको उठाया और गोद में लेकर बैठ गया. नेकिंग किसिंग के दौरान लग तो रहा था कि साले को वहीं पट लिटा कर साड़ी ऊपर करके चोद मारूं पर मैंने संयम रखा, साथ ही अपने लंड को पुचकारा कि अभी रुक जा राजा, आज रात को तुझे खुली छूट दूंगा कि इस मतवाली महकती कली को आज जैसा चाहे मसल ले.

चूमा चाटी, नेकिंग, कडलिंग करते करते ललित अब ऐसा हो गया कि उससे रहा नहीं जा रहा था. आखिर वह मेरी गिरफ़्त से छूट कर खड़ा हो गया और खींच कर अंदर ले जाने लगा.

"अरे अभी तो दस भी नहीं बजे" मैंने कहा. "रात बाकी है पूरी मेरी जान अभी तो, जरा पास बैठकर चुम्मे तो दे ठीक से"

"चुम्मे चाहिये तो पहले मैं कह रही हूं वैसा कीजिये. तैयार कर दूं पहले आप को" मेरी आंखों में आंखें डाल कर ललित बड़े मादक अंदाज में बोला.

मैंने सोचा क्या मस्ती चढ़ी है इसको. मजा आयेगा. फ़िर उसको पूछा "दिखा तो क्या लाया है मॉल से?"

"अब चलिये जीजाजी, और चुपचाप सब पहनिये. फ़िर देखिये मैं आपको कैसे चो .... " अपना सेंटेंस अधूरा छोड़ कर मुझे सोफ़े पर बिठाकर ललित जाकर सब पैकेट्स उठा लाया. फ़िर वहां ड्राइंग रूम के बड़े टीवी पर एक थंब ड्राइव लगाई. "मूवी देखने का प्रोग्राम है मेरी रानी?" मैंने पूछा

"हां, आज मैंने स्पेशल मुई डाउनलोड की है, पहले आप तैयार हो जाइये, फ़िर साथ साथ देखेंगे"

मैंने उसे रोक कर कहा "ललिता डार्लिंग ... ललित ... अब सच बता ... आज रात मेरी गांड मारने का इरादा है क्या? ये सब पहना कर मुझे औरत बनाकर करेगा क्या? चोदेगा?"

"हां जीजाजी, चोदूंगा. पहले अंदर चलिये और ये सब पहनिये" मुझे धकेलकर वह अंदर ले गया. मेरे कपड़े निकालते हुए मेरे नितंबों को पकड़कर मसलते हुए ललित बोला "बहुत अच्छी लगती है मुझे आपकी गांड. इतनी कसी हुई और ठोस सॉलिड है. उस दिन जब आप भाभी और मां को चोद रहे थे तो मुझे इनका परफ़ेक्ट व्यू मिल रहा था. तभी से मैंने ठान ली थी कि आपकी गांड जरूर मारूंगा, भले मुझे कोई भी कीमत देनी पड़े. और सच जीजाजी, आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं, याने आपसे लड़की बनकर चुदवाने में और आपका लंड चूसने में भी मुझे बहुत मजा आता है" ललित ने अपने दिल की सारी बातें आज कन्फ़ेस कर ली थीं.








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