Sunday, July 28, 2013

हिंदी सेक्सी कहानियाँ मुझे कुत्ते से चुदवा दिया--2




 हिंदी सेक्सी कहानियाँ

मुझे कुत्ते से चुदवा दिया--2

गतांक से आगे................................
मैंने धीरे से उठने की कोशिश की, पहेले घुटनों के बल फिर दोनों हाथों का सहारा लेकर मैं खड़ी होने लगी, मेरे बदन दर्द से टूट रहा था, मेरे जिस्म में खड़े होने की ताकत भी नहीं थी।
तभी एक पुलिस वाला बोला, " चीफ अगर आप कहे तो मैं उठने में इसकी मदद कर देता हूँ"
फिर उसने मुझे मेरे बालो से पकड़ कर मुझे खींचकर उठाना शुरू किया, उसने मुझे बालों को इतना कसकर खींच रखा था की दर्द के कारण मैं चीखने लगी, मैं खुद को छुडवाने की कोशिश करने लगी और चिल्लाने लगी पर उसने मुझे नहीं छोड़ा, मजबूर होकर मुझे अपने पैरों की अँगुलियों पर खड़ा होना पड़ा, मेरा सारा बदन दर्द से कराहने लगा।

चीफ ठीक मेरे सामने आकर खड़ा हो गया और बोला, "हम लोग ही कानून हूँ यहाँ पर और इस कुतिया को कानून की इज्ज़त करना सीखना होगा, मैं तुझे सिखाता हूँ की कानून की इज्ज़त कैसे करते हैं"
और फिर वो सभी लोग जोर-जोर से हंसने लगे वहीँ मैं दर्द के कारण अपने आंसू रोक नहीं पा रही थी।
उसके बाद चीफ ने एकदम से अपने हाथ से मेरे स्तन को पकड़ लिया, मेरा मन करा की मैं उसके मुहं पर थूक दों या फिर उसे ऐसी जगह लात मारूं जहाँ उसे सबसे ज्यादा दर्द हो लेकिन मैं डर की वजह से ऐसा कुछ भी नहीं कर पाई।
उसने कहा," क्या बात है! "
फिर उसने मेरी चुच्ची को अपने हाथ से जोर से मसलने लगा, मेरी दर्द से जान ही निकल गई, मैं उसके सामने गिडगिडाने लगी।
उसने मुझसे कहा, "अब अगर तो चुपचाप वो करेगी जो मैं कहेता हूँ, तो तुझे ज्यादा तकलीफ नहीं झेलनी पड़ेगी, हमे तेरे साथ जबरजस्ती करने पर मजबूर मत कर, हम लोग सिर्फ कानून का काम कर रहे हैं और तुझे भी कानून का साथ देना चाहिए"
"मैं फिर से एक बार प्यार से बोल रहा हूँ, तू खुद अपने जिस्म से कपड़े उतारकर नंगी हो जा, नहीं तो!...

और उसने मेरी चुच्ची को फिर से मसलना शुरू कर दिया मैं और ज्यादा दर्द बर्दाश्त नहीं कर सकती थी
वो लोग जीत गए और मैंने रोते हुए कहा, " ठीक है! ठीक है! मैं अपने कपड़े उतार देती हूँ पर मुझे और मत मारो मैं कपड़े उतारती हूँ" और मैं रोने लगी।
फिर चीफ ने हँसते हुए मेरी चुच्ची को आखरी बार मसला और मेरी चुच्ची को छोड़ दिया फिर उसने दुसरे पुलिस वाले को भी मेरे बालों को छोड़ने को कहा

फिर चीफ़ जाकर अपने डेस्क पर बैठ गया और बाकि लोग भी मुझसे दूर हट गए, उन सभी की निगाहों में हवस दिखाई दे रही थी। मैंने देखा की वहां मोजूद पुलिस वालों में से एक पुलिस वाला मुझसे कम उम्र का था, शायद ये कुछ अटपटा सा लगे पर अब मैं उन लोगों के चहरे साफ़-साफ़ ठीक से देखने लगी थी, हालाँकि मैं दर्द और डर दोनों से ही घिरी थी और शायद अभी भी हकीकत पर यकीन नहीं कर पा रही थी या खुद को तस्हली देने की कोशिश कर रही थी।
तभी चीफ़ ने कहा, " चल साली कुतिया ! अब अपने कपडे उतारना शुरू कर, कब तक शर्माती रहेगी"
मुझे लग रहा था जैसे की मैं कोई बुरा ख्वाभ या सपना देख रही हूँ, लेकिन नहीं ये सब कुछ एक सच था, किसी बुरे ख्वाब से कई ज्यादा डरावना। ये मेरे साथ क्या हो रहा, अभी कल तक तो मैं एक खुशहाल जिन्दगी जी रही थी, अच्छी नौकरी व् अच्छी कमाई, मेरे अपना एक घर है और मेरे कई सारे अच्छे दोस्त भी हैं। एक लड़का जिससे मैं प्यार करती हूँ और वो भी मुझे दिलो जान से चाहता है, कुछ ही दिनों में हमारा निकाह होने वाले है, मैं इस दुनिया में अपनी ही एक जन्नत में रहेती थी, लेकिन मैं यहाँ कैसे आ गयी, सब कुछ कैसे बदल गया, मेरी जन्नत एक डरावने दर्दनाक जेहनूम में कैसे तब्दील हो गई। मैं तो बस कुछ दिन छुट्टियाँ बिताना चाहती थी पर यहाँ तो मैं दर्द से तड़प रही हूँ और ये लोग क्या कर रहे हैं मेरे साथ, जरा भी रहम, ईमान नहीं! जो इन्तजार कर रहे हैं की मैं अपने जिस्म से सारे कपड़े उतार कर नंगी हो जाऊं, इनकी हवस भारी आँखों के सामने अपनी जवानी और जवाँ जिस्म की सरेआम नंगी नुमाइश करों, खुद को एक बाजरू रंडी की तरह नीलाम करके इन लोगों की आँखे गरम करों नहीं! ये सब क्यों हो रहा है मेरे साथ, ये मेरे खुदा! मुझे बक्श दे

तभी चीफ़ गुस्से से बोला, "और कितना इन्जार करवाएगी, कुतिया, खुद नंगी होगी या सरेआम अपने कपड़े फाड़वा कर नंगी होना चाहती है"
"अपने जिस्म से कपड़े उतार"
मैं तो हिल भी नहीं पा रही थी, जैसे तैसे करके मैंने अपने हाथ उठाकर अपने स्वेटर को उत्तारना शुरू किया, मैं शर्म के कारण सर भी नहीं उठा पा रही थी, मेरे चहेरा शर्म से लाल हो गया था और डर व् गुस्से के कारण मेरी सांसे भी तेज हो गई, मैंने अपना स्वेटर उतार कर धीरे से जमीन पर रख दिया, मैं अपने हाथों से अपनी चोली छुपाने की कोशिश करने लगी, खुद को अभी से नंगी महेसूस कर रही थी, मैं जानती थी की यह लोग मेरे साथ और ज्यादा बुरा कर सकते हैं, आगाज तो मैं देख ही चुकी थी। मैं आंसू पोछते हुए धीरे से अपने जूते उतारने लगी ताकि अपनी पैंट उतार सकों सभी पुलिस वाले मुझे काफी उत्साह से देख रहे थी और मेरी नंगी होती जवानी का मजा लेने लगा, मेरे पास भी कोई और रास्ता नहीं था सिवाए उनके सामने नंगी होकर खुद को ज़लील करने के एलावा, मैं और मार खाना नहीं चाहती थी। मैंने अपने जूते उतार दिए, मुझे ऐसा लगने
लगा जैसे समय भी रुक कर मुझे शर्मिंदा होते हुए देखना चाहता है, मेरी आँखों से आंसू रोके नहीं रुक रहे थे, मैं शर्म से गड़ी जा रही थी। फिर मैंने
धीरे से अपनी पैंट का बटन खोला, उसके बाद हिम्मत करके जिप खोलनी शुरू की, चीफ़ और उसके लोग बड़ी ही एकाग्रता से मेरी तरफ देख रहे थे, फिर धीरे से मैंने अपनी पैंट खोल कर उतार दी और अपने स्वेटर के पास ही फैंक दी। अब मैं वहां मोजूद पांच मर्दों के सामने सिर्फ छोटी-छोटी सी चड्डी व् चोली में अधनंगी होकर खड़ी अपनी शर्मसार होती जवानी को अपने दोनों हाथों से छुपाने की कोशिश करते हुए शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी।
मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी की मुझे कभी सरेआम, इस तरह से अजनबियों के सामने भरी जवानी में लगभग नंगी होकर खड़ा होना पड़ेगा, लेकिन मैं खड़ी थी, अपना सर झुकाए उन लोगों के हवस भरी आँखों के सामने अपनी जवानी को नंगी करके खुद को ज़लील कर रही थी मैं, मेरा आत्मविश्वास तो जैसे मर ही चूका था।
फिर मैं खुद को और ज्यादा ज़लील होने से बचाने के कोशिश करने लगी, शायद ही उन्हें मेरे ऊपर कुछ तरस आ जाये, मैं वहां पर उन सभी मर्दों के सामने केवल छोटी छोटी सी पारदर्शी चड्डी और चोली पहने खड़ी थी अपनी शर्मिंदा होती नंगी जावनी को अनजान मर्दों की हवस भरी निगाहों से छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी, मेरी छोटी से पारदर्शी चोली मेरी नंगी होती जवानी से कसी हुई चुच्चियों को बहुत ही मुश्किल से छुपा पा रही थी वहीँ मेरी छोटी सी पारदर्शी चड्डी भी मेरी जवानी उभरी हुई चिकिनी चूत को सरेआम नंगी होने की शर्म से बचाने में कुछ ज्यदा कामियाब नहीं हो पा रही थी।
मुझे लगा क्योंकि मैं उन लोगों के सामने लगभग नंगी ही हो गई हूँ तो अब वो लोग देख सकते हैं की मैं कोई ड्रग्स नहीं छुपा रही हूँ और शायद वो लोग मुझे जाने दे हालाकि ये बहुत ही मुश्किल लग रहा था की वो लोग मुझे जाने देंगे फिर भी मैंने थोड़ी हिम्मत कर के जैसे ही बोलने की कोशिश की, वैसे ही चीफ़ ने चिल्लाते हुए मुझे चुप करा दिया।

और फिर चीफ़, "अपने जिस्म से सब कुछ उतार कर नंगी हो जा जितनी नंगी तू पैदा हुई थी"
मेरी तो आँखे ही भर आई, भरी जवानी में नंगी हो जाऊं जितनी नंगी मैं पैदा हुई थी, वो भी अंजाने मर्दों की हवस भरी निगाहों के सामने सरेआम
मेरी आँखों से आंसू पानी की तरह बहने लगे।
मैंने धीरे से अपने कांपते हुए हाथों को अपनी पीठ पर अपनी चोली के हुक पर लगाया और धीरे से चुली का हुक खोल दिया फिर अपने हाथों को अपने दोनों कन्धों पर लाकर मैंने धीरे से अपनी चोली नीचे की तरफ उतारते हुए अपनी जवान कसी हुई चुच्चियाँ उन लोगो के सामने नंगी कर दी, जैसे ही मेरी नंगी चूचियां उन्हें दिखने लगी उन्होंने सीटियाँ बजाना शुरू कर दिया और मेरी ज़लील होती नंगी जवानी का मजा लेने लगे।
मैंने जैसे तैसे अपने आप को संभाला और अपने हाथों को अपनी पतली कमर के पास अपनी छोटी सी चड्डी में डाला और धीरे से खींचते हुए चड्डी को जांघो से घुटनों तक और फिर झुकते हुए मैंने अपने पैरों से पंजों तक लेजाकर अपनी चड्डी को उतार दिया और अपनी चिकिनी गुलाबी उभरी हुई जवान चूत भी उनकी हवस भरी आँखों के सामने नंगी कर दी साथ ही खुद को इस तरह से सरेआम पूरी नंगी होकर ज़लील करते हुए मैंने उनकी हवस की आग और भी ज्यादा भड़का दी।
अब में रीडा खान, 25 साल की जवान लड़की उन सभी अनजान मर्दों के सामने पूरी नंगी होकर खड़ी थी, जितनी नंगी में पैदा हुई थी, और वो सभी लोग अपनी हवस भरी बड़ी बड़ी आँखों से मेरे सारे जिस्म को ऊपर से नीचे तक हर अंग को निहार कर गूर रहे थे। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं हमेशा के लिए ही नंगी हो गई हूँ सारे जहान के सामने, सरेआम!
जैसे जैसे उनके लिए मैं अपनी जावनी की नंगी नुमाइश करती मेरी आँखे आंसू से भर जाती लेकिन मैं आंसू पोंछ कर खुद को संभल लेती क्योंकि मैं उन लोगो के सामने और नहीं रोना चाहती थी, मैं बस इंतज़ार कर रही थी की कब ये सब ख़त्म होगा. वो लोग मुझे भरी जवानी में पूरी नंगी कर के ज़लील तो कर चुके हैं, इससे ज्यादा और क्या कर सकते हैं शायद अब ये लोग मुझे जाने देंगे।

मैं वहां पर सरेआम नंगी होकर खड़ी रही अपने जवां जिस्म की शमिन्दा होते हुए भी बेशर्मी से नंगी नुमाइश करती रही, उन सभी मर्दों की बेदर्द हवस भरी आँखों के सामने मैं नंगी खड़ी रही।
फिर चीफ बोला, "पीछे मुड़ कुतिया!"
और मैं पीछे मुड़ गई, जिससे मेरी नंगी गोरी पीठ और गोल कसे हुए कूल्हों की नंगी नुमाइश भी हो गई फिर चीफ ने मुझे चलने का हुक्म दिया, मेरी शर्म अबतक हर हद पर कर चुकी थी, शायद ही मैं कभी इतना ज़लील हुई होंगी जितना मैं अब महेसूस कर रही थी। मैं नंगी होकर उन सभी के सामने पुलिस थाने में एक कोने से दुसरे कोने तक घुमने लगी, चलने लगी। हवा के झोके मेरे सारे बदन को चूम रहे थे हर अंग को छु रहे थे और मुझे नंगी होने का एसास कराने लगे थे लेकिन मैं बेबस थी, कुछ नहीं कर सकती थी।
मुझे एसास हो रहा था की चलते वकत मेरी नंगी चूचियां लहेरा रही हैं और मेरी दोनों गुलाबी निपल ठंडी हवा व् शर्म के कारण सकत होने लगी थी, वहां मजूद सभी मर्दों की गन्दी नज़र जो के मेरे जिस्म को हर तरफ से देख कर निहाल हो रही थीं कि कैसे जब मैं चलती हूँ तो मेरी दोनों नंगी गोरी कसी हुई चुतड अपने आप ही ठुमकने लगती हैं, साथ ही वो लोग देख रहे थे कि जब भी मैं चलती हूँ तो कैसे मेरी चिकनी नंगी गुलाबी चूत मेरी दोनों गोरी जांघो के बीच में अन्दर ही अन्दर खुद को रगड़ ने लगती है, वो सभी लोग मेरे हर अंग को देख रहे थे, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उन सभी की हवस भरी गन्दी आंखे मेरे नंगे जिस्म के हर अंग का बलात्कार कर रहीं हैं लेकिन फिर भी मैं उन लोगों के सामने सरेआम नंगी होकर सर झुकाए यहाँ से वहां तक सारे कमरे में घूमते हुए चलते हुए खुद को ज़लील करती रही, जब तक की चीफ़ ने मुझे रुकने का हुक्म नहीं दिया, मैं सिर्फ सर झुकाए अपनी जवानी की और अपने जवां जिस्म की नंगी नुमाइश करती रही।

फिर चीफ़ ने मुझे रुकने को कहा, मैंने अपने मन में सोंचा, "बस खुदा और नहीं, मुझे बक्श दे, मुझे इन जालिमो से बचा ले, ये मेरे खुदा! "
तभी एक पुलिस वाला बोला, "चीफ़ मजा आ गया! , हम सब तो गरम हो गए हैं, चलो इस कुतिया को चोदते हैं"
ये सुनकर मैं डर से कांपने लगी, चीफ़ और बाकी पुलिस वालों की आँखों की हवस पूरे चरम पे थी, वो लोग मुझे भोखे भेडियों की तरह देख ने लगे, जैसे भेड़िये अपने शिकार को देखते हैं, उन लोगों की उतेजना भरी भयानक आवाजें सुनकर ही मेरी सांसे थमी जा रही थी, और आखिरकार मैंने हिम्मत कर करके चीफ़ की आँखों में देखा. वो मुझे देख कर बड़े ही गंदे अंदाज़ में मुस्कुराया और मैं समझ गई की अब मेरा बलात्कार होने वाला है।

मैं अपना दिमाग ठंडा रख कर सोचने की बहुत कोशिश कर रही थी लेकिन मुझे कोई रास्ता नहीं दिख रहा था, खुद को बलात्कार से बचाने का
मैं जानती थी की उन लोगों से रहम की उम्मीद करना बेवकूफी है क्योंकि वो लोग हवस में पूरी तरह से अंधे हो चुके थे, अब मेरे पास कोई और रास्ता नहीं हैं, क्या मुझे अपनी इज्जत बचाने के लिए लड़ना चाहिए? क्या मुझे इन लोगों को मेरा बलात्कार करने से रुकना चाहिए? हाँ बिलकुल
लेकिन ये हवस की आग में अंधे पांच-पांच मर्द और मैं अकेली लड़की, डरी हुई और पूरी नंगी; अगर मैं लड़ने की कोशिश करती हूँ तो इन्हें मुझपर काबू पाने में ज्यदा समय नहीं लगेगा और फिर ये लोग मुझे और भी ज्यादा मजे से चोदेंगे।
नहीं मैं इन लोगों से लड़ तो नहीं सकती तो क्या मुझे सचाई का सामना ही कर लेना चाहिए और जो हो रहा है उसे होने देना चाहिए, उन सभी लोगों को मेरे मेरे जिस्म से खेलने दों, क्या मुझे चुप चाप ये सब कबूल कर लेना चाहिए? हाँ यही ठीक होगा इस समय, ये लोग मेरे बलात्कार करना चाहते हैं, अपनी हवस की आग को मेरे खोबसूरत जवां जिस्म से ठंडा करना चाहते हैं और फिर ये लोग मुझे जाने देंगें।
मैं नए सिरे से अपनी जिन्दगी शुरू कर लुंगी, इस सब को एक बुरा सपना समझ कर भुलाने की कोशिश करुँगी क्योंकि इसमें मेरी तो कोई गलती नहीं है लेकिन ये सब बहुत मुश्किल है कैसे कर पाऊँगी मैं............
तभी चीफ़ बोला, "क्यों रंडी! तूने सुना, तेरी इस नंगी जवानी और तेरे इस जिस्म ने मेरे लडको को गर्म कर दिया है, अब ये सब मिलकर तुझे चोदना चाहते हैं और मैं भी तुझे सबक सिखाना चाहता हूँ"
"अब तू सोच ले अगर खुद अपनी मर्ज़ी से एक बाजारू कुतिया की तरह चुदेगी तो तुझे भी मज़ा आएगा और बाद में हम तुझे जाने भी देंगे, लेकिन अगर तूने ऐसा नहीं किया, तो फिर हम लोग तेरा वो हाल करेंगे कि तुझे अपने पैदा होने पर भी अफ़सोस होगा"
"क्यों समझ गई कुतिया!"
मैंने बहुत ही मुश्किल से हिम्मत करते हुए अपने दिल पर पत्थर रख कर धीरे से अपना सर झुका कर हामीं भर दी, कि वो लोग मेरा बलात्कार कर लें, मैं और कर भी क्या सकती थी. मैंने खुद को समझाते हुए खुद से कहा कि मेरे जिस्म से खेल लेने के बाद ये लोग मुझे जाने देंगे, मुझे और कुछ नहीं चाहिए, बस मैं यहाँ से जाना चाहती हूँ।
क्रमशः........................
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