FUN-MAZA-MASTI
जवानी की दहलीज-11
मैंने वे कपड़े पहन लिए। इतने महँगे कपड़े मैंने पहले नहीं पहने थे... मुलायम कपड़ा, बढ़िया सिलाई, शानदार रंग और बनावट। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
चाची ने मेरे बालों में कंघी की, गजरा लगाया, हाथ, गले और कानों में आभूषण डाले और अंत में एक इत्तर की शीशी खोल कर मेरे कपड़ों पर और कपड़ों के नीचे मेरी गर्दन, कान, स्तन, पेट और योनि के आस-पास इतर लगा दिया। मेरे बदन से जूही की भीनी भीनी सुगंध आने लगी। मुझे दुल्हन की तरह सजाया जा रहा था... लाज़मी है मेरे साथ सुहागरात मनाई जाएगी। मुझे मेरा कल लिया गया निश्चय याद आ गया और मैं आने वाली हर चुनौती के लिए अपने को तैयार करने लगी। जो होगा सो देखा जायेगा... मुझे महेश को अपना दुश्मन नहीं बनाना था।
दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी।
" लो... तुम्हें लेने आ गए..." चाची ने कहा और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दरवाज़े तक ले गई और मुझे विधिवत महेश के दूतों के हवाले कर दिया।
मैंने वे कपड़े पहन लिए। इतने महँगे कपड़े मैंने पहले नहीं पहने थे... मुलायम कपड़ा, बढ़िया सिलाई, शानदार रंग और बनावट। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
चाची ने मेरे बालों में कंघी की, गजरा लगाया, हाथ, गले और कानों में आभूषण डाले और अंत में एक इत्तर की शीशी खोल कर मेरे कपड़ों पर और कपड़ों के नीचे मेरी गर्दन, कान, स्तन, पेट और योनि के आस-पास इतर लगा दिया। मेरे बदन से जूही की भीनी भीनी सुगंध आने लगी। मुझे दुल्हन की तरह सजाया जा रहा था... लाज़मी है मेरे साथ सुहागरात मनाई जाएगी। मुझे मेरा कल लिया गया निश्चय याद आ गया और मैं आने वाली हर चुनौती के लिए अपने को तैयार करने लगी। जो होगा सो देखा जायेगा... मुझे महेश को अपना दुश्मन नहीं बनाना था।
दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी।
" लो... तुम्हें लेने आ गए..." चाची ने कहा और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दरवाज़े तक ले गई और मुझे विधिवत महेश के दूतों के हवाले कर दिया।
वे मुझे एक सुरंगी रास्ते से ले गए जहाँ एक मोटा, लोहे और लकड़ी का मज़बूत दरवाज़ा था जिस पर दो लठैत मुश्टण्डों का पहरा था। मेरे पहुँचते ही उन्होंने दरवाज़ा खोल दिया... दरवाज़ा खुलते ही ऊंची आवाजों और संगीत का शोर और चकाचौंध करने वाला उजाला बाहर आ गया। मैंने अकस्मात आँखें मूँद लीं और कान पर हाथ रख लिए पर उन लोगों ने मेरे हाथ नीचे करते हुए मुझे अंदर धकेल दिया और दरवाज़ा बंद कर दिया।
मुझे देखते ही अंदर एक ठहाका सा सुनाई दिया और कुछ आदमियों ने सीटियाँ बजानी शुरू कर दीं... संगीत बंद हो गया और कमरे में शांति हो गई। मैंने अपनी चुन्धयाई हुई आँखें धीरे धीरे खोलीं और देखा कि मैं एक बड़े स्टेज पर खड़ी हूँ जिसे बहुत तेज रोशनी से उजागर किया हुआ था।
कमरा ज्यादा बड़ा नहीं था... करीब 8-10 लोग ही होंगे... एक किनारे में एक बार लगा हुआ था दूसरी तरफ खाने का इंतजाम था। दो-चार अर्ध-नग्न लड़कियाँ मेहमानों की देखभाल में लगी हुईं थीं। लगभग सभी महमान 25-30 साल के मर्द होंगे... पर मुझे एक करीब 60 साल का नेता और करीब 45 साल का थानेदार भी दिखाई दिया, जो अपनी वर्दी में था। सभी के हाथों में शराब थी और लगता था वे एक-दो पेग टिका चुके थे। मैं स्थिति का जायज़ा ले ही रही थी कि महेश ताली बजाता हुआ स्टेज पर आया और मेरे पास खड़े होकर अपने मेहमानों को संबोधित करने लगा...
" चौधरी जी (नेता की तरफ देखते हुए), थानेदार साहब और दोस्तों ! मुझे खुशी है आप सब मेरा जन्मदिन मनाने यहाँ आये। धन्यवाद। हर साल की तरह इस साल भी आपके मनोरंजन का खास प्रबंध किया गया है। आप सब दिल खोल कर मज़ा लूटें पर आपसे विनती है कि इस प्रोग्राम के बारे में किसी को कानो-कान खबर ना हो... वर्ना हमें यह सालाना जश्न मजबूरन बंद करना पड़ेगा।"
लोगों ने सीटी मार के और शोर करके महेश का अभिवादन किया।
" दोस्तो, आज के प्रोग्राम का विशेष आकर्षण पेश करते हुए मुझे खुशी हो रही है... हमारे ही खेत की मूली... ना ना मूली नहीं... गाजर है... जिसे हम प्यार से भोली बुलाते हैं... आज आपका खुल कर मनोरंजन करेगी... भोली का साथ देने के लिए... हमेशा की तरह हमारी चार लड़कियों की टोली... आपके बीच पहले से ही हाज़िर है। तो दोस्तों... मज़े लूटो और मेरी लंबी उम्र की कामना करो !!"
कहते हुए महेश ने तालियाँ बजाना शुरू कीं और सभी लोगों ने सीटियों और तालियों से उसका स्वागत किया।
इस शोरगुल में महेश ने मेरा हाथ कस कर पकड़ कर मेरे कान में अपनी चेतावनी फुसफुसा दी। उसके नशीले लहजे में क्रूरता और शिष्टता का अनुपम मिश्रण था। मुझे अपना कर्तव्य याद दिला कर महेश मेरा हाथ पकड़ कर अपने हर महमान से मिलाने ले गया। सभी मुझे एक कामुक वस्तु की तरह परख रहे थे और अपनी भूखी, ललचाई आँखों से मेरा चीर-हरण सा कर रहे थे।
नेताजी ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए मेरी पीठ पर हाथ रख दिया और धीरे से सरका कर मेरे नितंब तक ले गए। बाकी लोगों ने भी मेरा हाथ मिलाने के बहाने मेरा हाथ देर तक पकड़े रखा और एक दो ने तो मेरी तरफ देखते हुए मेरी हथेली में अपनी उंगली भी घुमाई। मैं सब सहन करती हुई कृत्रिम मुस्कान के साथ सबका अभिनन्दन करती रही। महेश मेरा व्यवहार देख कर खुश लग रहा था। वैसे भी मैं सभी को बहुत सुन्दर दिख रही थी।
सब मेहमानों से मुलाक़ात के बाद महेश ने मुझे वहाँ मौजूद चारों लड़कियों से मिलवाया... उन सबके चेहरों पर वही दर्दभरी औपचारिक मुस्कान थी जिसे हम लड़कियाँ समझ सकती थीं। अब महेश ने एक लड़की को इशारा किया और उसने मुझे स्टेज पर लाकर छोड़ दिया।
महेश ने एक बार फिर अपने दोस्तों का आह्वान किया," दोस्तो ! अब प्रोग्राम शुरू होता है... आपके सामने भोली स्टेज पर है ... उसने कपड़े और गहने मिलाकर कुल 9 चीज़ें पहनी हुई हैं... अब म्यूज़िक के बजने से भोली स्टेज पर नाचना शुरू करेगी... म्यूज़िक बंद होने पर उन 9 चीज़ों में से कोई एक चीज़, तरतीबवार, कोई एक मेहमान उसके बदन से उतारेगा... फिर म्यूज़िक शुरू होने पर उसका नाचना जारी रहेगा। अगर भोली कुछ उतारने में आनाकानी करती है तो आप अपनी मन-मर्ज़ी से ज़बरदस्ती कर सकते हैं। म्यूज़िक 9 बार रुकेगा... उसके बाद कोई भी स्टेज पर जाकर भोली के साथ नाच सकता है..."
महेश का सन्देश सुनकर उसके दोस्तों ने हर्षोल्लास किया और तालियाँ बजाईं।
मैं सकपकाई सी खड़ी रही और महेश के इशारे से गाना बजना शुरू हो गया... "मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए... " कमरे में गूंजने लगा।
महेश ने मेरी तरफ देखा और मैंने इधर-उधर हाथ-पैर चलाने शुरू कर दिए... मुझे ठीक से नाचना नहीं आता था... पर वहाँ कौन मेरा नाच देखने आया था।
कुछ ही देर में गाना रुका और महेश के एक साथी ने एक पर्ची खोलते हुए ऐलान किया " गजरा... भीमा "
महेश के दोस्तों में से भीमा झट से स्टेज पर आया और मेरे बालों से गजरा निकाल दिया और मेरी तरफ आँख मार कर वापस चला गया।
म्यूज़िक फिर से बजने लगा और कुछ ही सेकंड में रुक गया...
"कान की बालियाँ... अशोक !"
अशोक जल्दी से आया और मेरे कान की बालियाँ उतारने लगा... उसकी कोहनियाँ जानबूझ कर मेरे स्तनों को छू रही थीं... उसने भी आँख मारी और चला गया।
अगली बार जब गाना रुका तो किसी ने मुझे इधर-उधर छूते हुए मेरे हाथ से चूड़ियाँ उतार दीं... जाते जाते मेरे गाल पर पप्पी करता गया।
गाना कुछ देर बजता और ज्यादा देर रुकता क्योंकि लोगों को गाने से ज्यादा मेरा वस्त्र-हरण मज़ा दे रहा था। गहनों के बाद क्रमशः मेरा दुपट्टा उतारा गया। अब तक 5 बार गाना रोका जा चुका था !
माहौल गरमा रहा था और धीरे धीरे हर आने वाला मेरे साथ निरंतर बढ़ती आज़ादी लेने लगा था... मैं घाघरा-चोली में नाच रही थी कि संगीत थमा और " चोली... थानेदार साब " का उदघोष हुआ।
थानेदार साब ने अपनी गोदी से एक लड़की को उतारा, शराब का ग्लास मेज़ पर रखा और शराब से ज्यादा अपने ओहदे से उन्मत्त, झूमते हुए स्टेज पर आ गए।
" वाह भोली... क्या लग रही हो !!" मुझे आलिंगनबद्ध करते हुए कहने लगे और फिर पीछे हट कर मुझे गौर से निहारने लगे।
" भाइयो ! देखते हैं कि चोली के पीछे क्या है !!" उन्होंने मेरे वक्ष-स्थल पर हाथ रखते हुए कहा।
मर्दों के अभद्र शोर और सीटियों ने थानेदार साब का हौसला बढ़ाया और उन्होंने ने मेरे मम्मों को हलके से मसलते हुए मेरी चोली को खोलना शुरू किया। कमरे में शोर ऊंचा हो गया और लोग तरह तरह की फब्तियां कसने लगे... थानेदार साब ने मेरी पीठ और पेट पर हाथ फिराते हुए मेरी चोली खोल दी और उसको सूंघने के बाद हाथ ऊपर करके आसमान में घुमाने लगे... और फिर उसे स्टेज के नीचे मर्दों के झुण्ड में फ़ेंक दिया।
लोगों ने ऊपर उचक उचक कर उसे लूटने की होड़ लगाईं और जिस के हाथ वह चोली आई उसने उसे चूमते हुए अपने सीने और लिंग पर रगड़ा और अपनी जेब में ठूंस लिया।
म्यूज़िक फिर शुरू हो गया और लोग उसके रुकने का बेसब्री से इंतज़ार करने लगे। आखिर स्टेज गरम हो गया था... शराब, दौलत, संगीत और पर-स्त्री के चीर-हरण से मर्दों की मदहोशी बुलंदी पर पहुँच रही थी। आखिर संगीत रुका और "चौधरी साब... घाघरा" की घोषणा से कमरा गूँज गया।
60 वर्षीय चौधरी साब महेश की बगल से उठे और दो लड़कियों के हाथ के सहारे सीढ़ियाँ चढ़ते हुए स्टेज पर आ गए। मैंने अकस्मात झुक कर उनके पांव छू लिए... आखिर वे मेरे पिताजी से भी ज्यादा उम्र के थे... वे तनिक ठिठके और फिर मुझे झुक कर उठाने लगे... उठाते वक्त उन्होंने मुझे मेरी कमर से पकड़ा और जैसे जैसे मैं खड़ी होती गई उनके फैले हुए हाथ मेरी कमर से रेंगते हुए मेरी बगल, पेट-पीठ को सहलाते हुए मेरे गालों पर आकर रुक गए। मेरा माथा चूमते हुए मुझे गले लगा लिया और "तुम्हारी जगह मेरे पैरों में नहीं... मेरी गोदी में है !" कहकर अपना राक्षसी रूप दिखा दिया।
मुझे उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी... पर मैं भी कितनी भोली थी... अगर नेताजी ऐसे नहीं होते तो यहाँ क्यों आते? फिर उन्होंने मेरी एक परिक्रमा करके मेरा मुआयना किया... उनकी नज़रें पतली सी ब्रा में क़ैद मेरे खरबूजों पर रुकीं और उनकी आँखें चमक उठीं।
" भई महेश... तुम्हारा भी जवाब नहीं ... क्या चीज़ लाये हो !" फिर वे घाघरे का नाड़ा ढूँढने के बहाने मेरे पेट पर हाथ फिराने लगे और अपनी उँगलियाँ पेट और घाघरे के बीच घुसा दीं।
स्टेज के नीचे हुड़दंग होने लगा... लोग बेताब हो रहे थे... पर नेताजी को कोई जल्दी नहीं थी। बड़ी तसल्ली से मुझे हर जगह छूने के बाद उन्होंने घाघरे का नाड़ा खोल ही दिया और उसको पैरों की तरफ गिराने की बजाय मेरे हाथ ऊपर करवा कर मेरे सिर के ऊपर से ऐसे निकला जिससे उन्हें मेरे स्तनों को छूने और दबाने का अच्छा अवसर मिले। लोग उत्तेजित हो रहे थे... उनकी भाषा और इशारे धीरे धीरे अश्लील होते जा रहे थे।
मैं ब्रा और चड्डी में खड़ी थी... नेताजी ने घाघरे को भी चोली की तरह घुमा कर स्टेज के नीचे फ़ेंक दिया और किसी किस्मत वाले ने उसे लूट लिया। नेताजी के वापस जाने से गाना फिर शुरू हो गया... मैं ब्रा-चड्डी में नाचने लगी... लोगों की सीटियाँ तेज़ हो गईं !
जल्दी ही संगीत रुका और जैसा मेरा अनुमान था "ब्रा और चड्डी... महेश जी" सुनकर लोगों ने खुशी से महेश का स्वागत किया। सभी उत्सुक थे और महेश को जल्दी जल्दी स्टेज पर जाने को उकसा रहे थे। वे मुझे पूरी तरह निर्वस्त्र देखने के लिए कौरवों से भी ज्यादा आतुर हो रहे थे।
अब मुझे अपनी अवस्था पर अचरज होने लगा था। मैं इतने सारे पराये मर्दों के सामने पूरी नंगी होने जा रही थी पर मेरे दिल-ओ-दिमाग पर कोई झिझक या शर्म नहीं थी। कदाचित स्टेज पर आने से लेकर अब तक मुझे इतनी बार जलील किया गया था कि मैं अपने आप को उनके सामने पहले से ही नंगी समझ रही थी... अब तो फक़त आखिरी कपड़े हटाने की देर थी। जैसे किसी बूचड़खाने में देर तक रहने से वहां की बू आनी बंद हो जाती है, मेरा अंतर्मन भी नग्नता की लज्जा से मुक्त सा हो गया था। अब कुछ बचा नहीं था जिसे मैं छुपाना चाहूँ...
मैं विमूढ़ सी वहां खड़ी खड़ी उन भेड़ीये स्वरूपी आदमियों का असली रूप भांप रही थी। कुछ ही समय में, तालियों की गड़गड़ाहट के बीच, आज रात का हीरो और इन कुटिल गिद्धों का राजा-गिद्ध स्टेज पर एक विजयी और बहादुर योद्धा की तरह आ गया।
उसने स्टेज पर से अपने सभी दोस्तों का अभिवादन किया अपने हाथों से उन्हें धीरज रखने का संकेत किया। कुछ लोग शांत हुए तो कुछ और भी चिल्लाने लगे !
मदहोशी सर चढ़कर बोल रही थी..." थैंक यू... थैंक यू... तो क्या तुम सब तैयार हो?" महेश ने अब तक का सबसे व्यर्थ सवाल पूछा। सबने सर्वसम्मत आवाज़ से स्वीकृति और तत्परता का इज़हार किया।
अचानक उसके दोस्तों ने उसका नाम लेकर चिल्लाना शुरू किया " म... हेश... म... हेश... म... हेश..." मानो वह कोई बहुत बहादुरी का काम करने जा रहा था और उसे उनके प्रोत्साहन की ज़रूरत थी। महेश मेरे पास आया और अब तक के मेरे व्यवहार और सहयोग के लिए मुझे आँखों ही आँखों में प्रशंसा दर्शाई।
मुझे इस अवस्था में भी उसका अनुमोदन अच्छा लगा। फिर उसने अपनी तर्जनी उंगली मेरी पीठ पर रख कर इधर-उधर चलाया जैसे कि कोई शब्द लिख रहा हो... फिर वही उंगली चलता हुआ वह सामने आ गया और मेरे पेट और ब्रा के ऊपर अपने हस्ताक्षर से करने लगा। सच कहूँ तो मुझे गुदगुदी होने लगी थी और मुझे उसका यह खेल उत्सुक कर रहा था।फिर उसने अपनी उंगली हटाई और अपने होठों से मुझे जगह जगह चूमने लगा... नाभि से शुरू होते हुए पेट और फिर ब्रा में छुपे स्तनों को चूमने के बाद उसने मेरी गर्दन और होठों को चूमा और फिर घूम कर मेरी पीठ पर वृत्ताकार में पप्पियाँ देने लगा... उसकी जीभ रह रह कर किसी सर्प की भांति, बाहर आ कर मुझे छू कर लोप हो रही थी।
मैं गुदगुदी से कसमसाने लगी थी...
उधर लोगों का शोर बढ़ने लगा था। फिर उसने अचानक अपने दांतों में मेरी ब्रा की डोरी पकड़ ली और उसे धीरे धीरे खींचने लगा। जब मैं उसके खींचने के कारण उसकी तरफ आने लगी तो उसने मुझे अपने हाथों से थाम दिया। आखिर डोरी खुल गई और आगे से मेरी ब्रा नीचे को ढलक गई... मेरे हाथ स्वभावतः अपने स्तनों को ढकने के लिए उठ गए तो लोगों का जोर से प्रतिरोध में शोर हुआ। मैंने अपने हाथ नीचे कर लिए और मेरे खुशहाल मम्मे उन भूखे दरिंदों के सामने पहली बार प्रदर्शित हो गए। कमरे में एक ऐसी गूँज हुई मानो जीत के लिए किसी ने आखिरी गेंद पर छक्का जमा दिया हो !
मुझे यह जान कर स्वाभिमान हुआ कि मेरा शरीर इन लोगों को सुन्दर और मादक लग रहा था। इतने में महेश सामने आ गया और मुंह में ब्रा लिए लिए मेरे चेहरे और छाती पर अपना मुँह रगड़ने लगा। ऐसा करते करते न जाने कब उसने मुँह से ब्रा गिरा दी और मेरे स्तनों को चूमने-चाटने लगा। बाकी मर्दों पर इसका खूब प्रभाव पड़ रहा था और वे झूम रहे थे और ना जाने क्या क्या कह रहे थे।
मेरे वक्ष को सींचने के बाद महेश का मुँह मेरे पेट से होता हुआ नाभि और फिर उसके भी नीचे, चड्डी से सुरक्षित, मेरे योनि-टीले पर पहुँच गया। दरिंदों ने एक बार और अठ्ठहास लगा कर महेश का जयकारा किया। महेश मज़े ले रहा था और उसे अपने चेले-दोस्तों का चापलूसी-युक्त व्यवहार अच्छा लग रहा था। नेताजी, थानेदार साब, भीमा और अशोक एक एक लड़की के साथ चुम्मा-चाटी में लगे हुए थे तो कुछ बेशर्मी से पैन्ट के बाहर से ही अपना लिंग मसल रहे थे।
महेश ने मेरी नाभि में जीभ गड़ा कर गोल-गोल घुमाई और फिर चड्डी के ऊपर से मेरी योनि-फांक को चीरते हुए ऊपर से नीचे चला दी। मैं उचक सी गई... गुदगुदी तीव्र थी और शायद आनन्ददायक भी। मुझे डर था कहीं मेरी योनि गीली ना हो जाये।
महेश के करतब जारी रहे। एक निपुण चोद्दा (जो चोदने में माहिर हो) की तरह उसे स्त्री के हर अंग का अच्छा ज्ञान था... कहाँ दबाव कम तो कहाँ ज्यादा देना है... कहाँ काटना है और कहाँ पोला स्पर्श करना है... वह अपने मुँह से मेरे बदन की बांसुरी बजा रहा था... और इस बार तो दर्शकों के साथ मुझे भी आनन्द आ रहा था।
एकाएक उसने मेरी चड्डी के बाईं तरफ की डोरी मुँह से पकड़ कर खींच दी और झट से दाहिनी ओर आकर वहां की डोरी मुँह में पकड़ ली। बाईं तरफ से चड्डी गिर गई और उस दिशा से मैं नंगी दिखने लगी थी। स्टेज के नीचे भगधड़ सी मची और जो लोग गलत जगह खड़े थे दौड़ कर स्टेज के नजदीक आ गए। सभी मेरी योनि के दर्शन करना चाहते थे ... स्टेज के नीचे से ऊओऊह... वाह वाह... आहा... सीटियों और तालियों की आवाजें आने लगीं। तभी महेश ने दाहिनी डोर भी खींच दी और मेरा आखरी वस्त्र मेरे तन से हर लिया गया।
मैं पूर्णतया निर्वस्त्र स्टेज पर खड़ी थी... महेश ने एक हीरो की तरह स्टेज पर अपनी मर्दानगी की वाहवाही और शाबाशी स्वीकार की और स्टेज से नीचे आ गया।
उसके नीचे जाते ही म्यूज़िक फिर से बजने लगा और धीरे धीरे लोग स्टेज पर नाचने के लिए आने लगे। वे उन चारों लड़कियों को भी स्टेज पर ले आये और कुछ ने मिलकर उनका भी वस्त्र-हरण कर दिया। अब हम पांच नंगी लड़कियां उन 8-10 मर्दों के बीच फँसी हुई थीं। वे बिना किसी हिचक के किसी भी लड़की को कहीं भी छू रहे थे। बस महेश, नेताजी और थानेदार साब स्टेज पर नहीं आये थे।
kramashah.....................
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जवानी की दहलीज-11
मैंने वे कपड़े पहन लिए। इतने महँगे कपड़े मैंने पहले नहीं पहने थे... मुलायम कपड़ा, बढ़िया सिलाई, शानदार रंग और बनावट। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
चाची ने मेरे बालों में कंघी की, गजरा लगाया, हाथ, गले और कानों में आभूषण डाले और अंत में एक इत्तर की शीशी खोल कर मेरे कपड़ों पर और कपड़ों के नीचे मेरी गर्दन, कान, स्तन, पेट और योनि के आस-पास इतर लगा दिया। मेरे बदन से जूही की भीनी भीनी सुगंध आने लगी। मुझे दुल्हन की तरह सजाया जा रहा था... लाज़मी है मेरे साथ सुहागरात मनाई जाएगी। मुझे मेरा कल लिया गया निश्चय याद आ गया और मैं आने वाली हर चुनौती के लिए अपने को तैयार करने लगी। जो होगा सो देखा जायेगा... मुझे महेश को अपना दुश्मन नहीं बनाना था।
दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी।
" लो... तुम्हें लेने आ गए..." चाची ने कहा और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दरवाज़े तक ले गई और मुझे विधिवत महेश के दूतों के हवाले कर दिया।
मैंने वे कपड़े पहन लिए। इतने महँगे कपड़े मैंने पहले नहीं पहने थे... मुलायम कपड़ा, बढ़िया सिलाई, शानदार रंग और बनावट। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
चाची ने मेरे बालों में कंघी की, गजरा लगाया, हाथ, गले और कानों में आभूषण डाले और अंत में एक इत्तर की शीशी खोल कर मेरे कपड़ों पर और कपड़ों के नीचे मेरी गर्दन, कान, स्तन, पेट और योनि के आस-पास इतर लगा दिया। मेरे बदन से जूही की भीनी भीनी सुगंध आने लगी। मुझे दुल्हन की तरह सजाया जा रहा था... लाज़मी है मेरे साथ सुहागरात मनाई जाएगी। मुझे मेरा कल लिया गया निश्चय याद आ गया और मैं आने वाली हर चुनौती के लिए अपने को तैयार करने लगी। जो होगा सो देखा जायेगा... मुझे महेश को अपना दुश्मन नहीं बनाना था।
दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी।
" लो... तुम्हें लेने आ गए..." चाची ने कहा और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दरवाज़े तक ले गई और मुझे विधिवत महेश के दूतों के हवाले कर दिया।
वे मुझे एक सुरंगी रास्ते से ले गए जहाँ एक मोटा, लोहे और लकड़ी का मज़बूत दरवाज़ा था जिस पर दो लठैत मुश्टण्डों का पहरा था। मेरे पहुँचते ही उन्होंने दरवाज़ा खोल दिया... दरवाज़ा खुलते ही ऊंची आवाजों और संगीत का शोर और चकाचौंध करने वाला उजाला बाहर आ गया। मैंने अकस्मात आँखें मूँद लीं और कान पर हाथ रख लिए पर उन लोगों ने मेरे हाथ नीचे करते हुए मुझे अंदर धकेल दिया और दरवाज़ा बंद कर दिया।
मुझे देखते ही अंदर एक ठहाका सा सुनाई दिया और कुछ आदमियों ने सीटियाँ बजानी शुरू कर दीं... संगीत बंद हो गया और कमरे में शांति हो गई। मैंने अपनी चुन्धयाई हुई आँखें धीरे धीरे खोलीं और देखा कि मैं एक बड़े स्टेज पर खड़ी हूँ जिसे बहुत तेज रोशनी से उजागर किया हुआ था।
कमरा ज्यादा बड़ा नहीं था... करीब 8-10 लोग ही होंगे... एक किनारे में एक बार लगा हुआ था दूसरी तरफ खाने का इंतजाम था। दो-चार अर्ध-नग्न लड़कियाँ मेहमानों की देखभाल में लगी हुईं थीं। लगभग सभी महमान 25-30 साल के मर्द होंगे... पर मुझे एक करीब 60 साल का नेता और करीब 45 साल का थानेदार भी दिखाई दिया, जो अपनी वर्दी में था। सभी के हाथों में शराब थी और लगता था वे एक-दो पेग टिका चुके थे। मैं स्थिति का जायज़ा ले ही रही थी कि महेश ताली बजाता हुआ स्टेज पर आया और मेरे पास खड़े होकर अपने मेहमानों को संबोधित करने लगा...
" चौधरी जी (नेता की तरफ देखते हुए), थानेदार साहब और दोस्तों ! मुझे खुशी है आप सब मेरा जन्मदिन मनाने यहाँ आये। धन्यवाद। हर साल की तरह इस साल भी आपके मनोरंजन का खास प्रबंध किया गया है। आप सब दिल खोल कर मज़ा लूटें पर आपसे विनती है कि इस प्रोग्राम के बारे में किसी को कानो-कान खबर ना हो... वर्ना हमें यह सालाना जश्न मजबूरन बंद करना पड़ेगा।"
लोगों ने सीटी मार के और शोर करके महेश का अभिवादन किया।
" दोस्तो, आज के प्रोग्राम का विशेष आकर्षण पेश करते हुए मुझे खुशी हो रही है... हमारे ही खेत की मूली... ना ना मूली नहीं... गाजर है... जिसे हम प्यार से भोली बुलाते हैं... आज आपका खुल कर मनोरंजन करेगी... भोली का साथ देने के लिए... हमेशा की तरह हमारी चार लड़कियों की टोली... आपके बीच पहले से ही हाज़िर है। तो दोस्तों... मज़े लूटो और मेरी लंबी उम्र की कामना करो !!"
कहते हुए महेश ने तालियाँ बजाना शुरू कीं और सभी लोगों ने सीटियों और तालियों से उसका स्वागत किया।
इस शोरगुल में महेश ने मेरा हाथ कस कर पकड़ कर मेरे कान में अपनी चेतावनी फुसफुसा दी। उसके नशीले लहजे में क्रूरता और शिष्टता का अनुपम मिश्रण था। मुझे अपना कर्तव्य याद दिला कर महेश मेरा हाथ पकड़ कर अपने हर महमान से मिलाने ले गया। सभी मुझे एक कामुक वस्तु की तरह परख रहे थे और अपनी भूखी, ललचाई आँखों से मेरा चीर-हरण सा कर रहे थे।
नेताजी ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए मेरी पीठ पर हाथ रख दिया और धीरे से सरका कर मेरे नितंब तक ले गए। बाकी लोगों ने भी मेरा हाथ मिलाने के बहाने मेरा हाथ देर तक पकड़े रखा और एक दो ने तो मेरी तरफ देखते हुए मेरी हथेली में अपनी उंगली भी घुमाई। मैं सब सहन करती हुई कृत्रिम मुस्कान के साथ सबका अभिनन्दन करती रही। महेश मेरा व्यवहार देख कर खुश लग रहा था। वैसे भी मैं सभी को बहुत सुन्दर दिख रही थी।
सब मेहमानों से मुलाक़ात के बाद महेश ने मुझे वहाँ मौजूद चारों लड़कियों से मिलवाया... उन सबके चेहरों पर वही दर्दभरी औपचारिक मुस्कान थी जिसे हम लड़कियाँ समझ सकती थीं। अब महेश ने एक लड़की को इशारा किया और उसने मुझे स्टेज पर लाकर छोड़ दिया।
महेश ने एक बार फिर अपने दोस्तों का आह्वान किया," दोस्तो ! अब प्रोग्राम शुरू होता है... आपके सामने भोली स्टेज पर है ... उसने कपड़े और गहने मिलाकर कुल 9 चीज़ें पहनी हुई हैं... अब म्यूज़िक के बजने से भोली स्टेज पर नाचना शुरू करेगी... म्यूज़िक बंद होने पर उन 9 चीज़ों में से कोई एक चीज़, तरतीबवार, कोई एक मेहमान उसके बदन से उतारेगा... फिर म्यूज़िक शुरू होने पर उसका नाचना जारी रहेगा। अगर भोली कुछ उतारने में आनाकानी करती है तो आप अपनी मन-मर्ज़ी से ज़बरदस्ती कर सकते हैं। म्यूज़िक 9 बार रुकेगा... उसके बाद कोई भी स्टेज पर जाकर भोली के साथ नाच सकता है..."
महेश का सन्देश सुनकर उसके दोस्तों ने हर्षोल्लास किया और तालियाँ बजाईं।
मैं सकपकाई सी खड़ी रही और महेश के इशारे से गाना बजना शुरू हो गया... "मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए... " कमरे में गूंजने लगा।
महेश ने मेरी तरफ देखा और मैंने इधर-उधर हाथ-पैर चलाने शुरू कर दिए... मुझे ठीक से नाचना नहीं आता था... पर वहाँ कौन मेरा नाच देखने आया था।
कुछ ही देर में गाना रुका और महेश के एक साथी ने एक पर्ची खोलते हुए ऐलान किया " गजरा... भीमा "
महेश के दोस्तों में से भीमा झट से स्टेज पर आया और मेरे बालों से गजरा निकाल दिया और मेरी तरफ आँख मार कर वापस चला गया।
म्यूज़िक फिर से बजने लगा और कुछ ही सेकंड में रुक गया...
"कान की बालियाँ... अशोक !"
अशोक जल्दी से आया और मेरे कान की बालियाँ उतारने लगा... उसकी कोहनियाँ जानबूझ कर मेरे स्तनों को छू रही थीं... उसने भी आँख मारी और चला गया।
अगली बार जब गाना रुका तो किसी ने मुझे इधर-उधर छूते हुए मेरे हाथ से चूड़ियाँ उतार दीं... जाते जाते मेरे गाल पर पप्पी करता गया।
गाना कुछ देर बजता और ज्यादा देर रुकता क्योंकि लोगों को गाने से ज्यादा मेरा वस्त्र-हरण मज़ा दे रहा था। गहनों के बाद क्रमशः मेरा दुपट्टा उतारा गया। अब तक 5 बार गाना रोका जा चुका था !
माहौल गरमा रहा था और धीरे धीरे हर आने वाला मेरे साथ निरंतर बढ़ती आज़ादी लेने लगा था... मैं घाघरा-चोली में नाच रही थी कि संगीत थमा और " चोली... थानेदार साब " का उदघोष हुआ।
थानेदार साब ने अपनी गोदी से एक लड़की को उतारा, शराब का ग्लास मेज़ पर रखा और शराब से ज्यादा अपने ओहदे से उन्मत्त, झूमते हुए स्टेज पर आ गए।
" वाह भोली... क्या लग रही हो !!" मुझे आलिंगनबद्ध करते हुए कहने लगे और फिर पीछे हट कर मुझे गौर से निहारने लगे।
" भाइयो ! देखते हैं कि चोली के पीछे क्या है !!" उन्होंने मेरे वक्ष-स्थल पर हाथ रखते हुए कहा।
मर्दों के अभद्र शोर और सीटियों ने थानेदार साब का हौसला बढ़ाया और उन्होंने ने मेरे मम्मों को हलके से मसलते हुए मेरी चोली को खोलना शुरू किया। कमरे में शोर ऊंचा हो गया और लोग तरह तरह की फब्तियां कसने लगे... थानेदार साब ने मेरी पीठ और पेट पर हाथ फिराते हुए मेरी चोली खोल दी और उसको सूंघने के बाद हाथ ऊपर करके आसमान में घुमाने लगे... और फिर उसे स्टेज के नीचे मर्दों के झुण्ड में फ़ेंक दिया।
लोगों ने ऊपर उचक उचक कर उसे लूटने की होड़ लगाईं और जिस के हाथ वह चोली आई उसने उसे चूमते हुए अपने सीने और लिंग पर रगड़ा और अपनी जेब में ठूंस लिया।
म्यूज़िक फिर शुरू हो गया और लोग उसके रुकने का बेसब्री से इंतज़ार करने लगे। आखिर स्टेज गरम हो गया था... शराब, दौलत, संगीत और पर-स्त्री के चीर-हरण से मर्दों की मदहोशी बुलंदी पर पहुँच रही थी। आखिर संगीत रुका और "चौधरी साब... घाघरा" की घोषणा से कमरा गूँज गया।
60 वर्षीय चौधरी साब महेश की बगल से उठे और दो लड़कियों के हाथ के सहारे सीढ़ियाँ चढ़ते हुए स्टेज पर आ गए। मैंने अकस्मात झुक कर उनके पांव छू लिए... आखिर वे मेरे पिताजी से भी ज्यादा उम्र के थे... वे तनिक ठिठके और फिर मुझे झुक कर उठाने लगे... उठाते वक्त उन्होंने मुझे मेरी कमर से पकड़ा और जैसे जैसे मैं खड़ी होती गई उनके फैले हुए हाथ मेरी कमर से रेंगते हुए मेरी बगल, पेट-पीठ को सहलाते हुए मेरे गालों पर आकर रुक गए। मेरा माथा चूमते हुए मुझे गले लगा लिया और "तुम्हारी जगह मेरे पैरों में नहीं... मेरी गोदी में है !" कहकर अपना राक्षसी रूप दिखा दिया।
मुझे उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी... पर मैं भी कितनी भोली थी... अगर नेताजी ऐसे नहीं होते तो यहाँ क्यों आते? फिर उन्होंने मेरी एक परिक्रमा करके मेरा मुआयना किया... उनकी नज़रें पतली सी ब्रा में क़ैद मेरे खरबूजों पर रुकीं और उनकी आँखें चमक उठीं।
" भई महेश... तुम्हारा भी जवाब नहीं ... क्या चीज़ लाये हो !" फिर वे घाघरे का नाड़ा ढूँढने के बहाने मेरे पेट पर हाथ फिराने लगे और अपनी उँगलियाँ पेट और घाघरे के बीच घुसा दीं।
स्टेज के नीचे हुड़दंग होने लगा... लोग बेताब हो रहे थे... पर नेताजी को कोई जल्दी नहीं थी। बड़ी तसल्ली से मुझे हर जगह छूने के बाद उन्होंने घाघरे का नाड़ा खोल ही दिया और उसको पैरों की तरफ गिराने की बजाय मेरे हाथ ऊपर करवा कर मेरे सिर के ऊपर से ऐसे निकला जिससे उन्हें मेरे स्तनों को छूने और दबाने का अच्छा अवसर मिले। लोग उत्तेजित हो रहे थे... उनकी भाषा और इशारे धीरे धीरे अश्लील होते जा रहे थे।
मैं ब्रा और चड्डी में खड़ी थी... नेताजी ने घाघरे को भी चोली की तरह घुमा कर स्टेज के नीचे फ़ेंक दिया और किसी किस्मत वाले ने उसे लूट लिया। नेताजी के वापस जाने से गाना फिर शुरू हो गया... मैं ब्रा-चड्डी में नाचने लगी... लोगों की सीटियाँ तेज़ हो गईं !
जल्दी ही संगीत रुका और जैसा मेरा अनुमान था "ब्रा और चड्डी... महेश जी" सुनकर लोगों ने खुशी से महेश का स्वागत किया। सभी उत्सुक थे और महेश को जल्दी जल्दी स्टेज पर जाने को उकसा रहे थे। वे मुझे पूरी तरह निर्वस्त्र देखने के लिए कौरवों से भी ज्यादा आतुर हो रहे थे।
अब मुझे अपनी अवस्था पर अचरज होने लगा था। मैं इतने सारे पराये मर्दों के सामने पूरी नंगी होने जा रही थी पर मेरे दिल-ओ-दिमाग पर कोई झिझक या शर्म नहीं थी। कदाचित स्टेज पर आने से लेकर अब तक मुझे इतनी बार जलील किया गया था कि मैं अपने आप को उनके सामने पहले से ही नंगी समझ रही थी... अब तो फक़त आखिरी कपड़े हटाने की देर थी। जैसे किसी बूचड़खाने में देर तक रहने से वहां की बू आनी बंद हो जाती है, मेरा अंतर्मन भी नग्नता की लज्जा से मुक्त सा हो गया था। अब कुछ बचा नहीं था जिसे मैं छुपाना चाहूँ...
मैं विमूढ़ सी वहां खड़ी खड़ी उन भेड़ीये स्वरूपी आदमियों का असली रूप भांप रही थी। कुछ ही समय में, तालियों की गड़गड़ाहट के बीच, आज रात का हीरो और इन कुटिल गिद्धों का राजा-गिद्ध स्टेज पर एक विजयी और बहादुर योद्धा की तरह आ गया।
उसने स्टेज पर से अपने सभी दोस्तों का अभिवादन किया अपने हाथों से उन्हें धीरज रखने का संकेत किया। कुछ लोग शांत हुए तो कुछ और भी चिल्लाने लगे !
मदहोशी सर चढ़कर बोल रही थी..." थैंक यू... थैंक यू... तो क्या तुम सब तैयार हो?" महेश ने अब तक का सबसे व्यर्थ सवाल पूछा। सबने सर्वसम्मत आवाज़ से स्वीकृति और तत्परता का इज़हार किया।
अचानक उसके दोस्तों ने उसका नाम लेकर चिल्लाना शुरू किया " म... हेश... म... हेश... म... हेश..." मानो वह कोई बहुत बहादुरी का काम करने जा रहा था और उसे उनके प्रोत्साहन की ज़रूरत थी। महेश मेरे पास आया और अब तक के मेरे व्यवहार और सहयोग के लिए मुझे आँखों ही आँखों में प्रशंसा दर्शाई।
मुझे इस अवस्था में भी उसका अनुमोदन अच्छा लगा। फिर उसने अपनी तर्जनी उंगली मेरी पीठ पर रख कर इधर-उधर चलाया जैसे कि कोई शब्द लिख रहा हो... फिर वही उंगली चलता हुआ वह सामने आ गया और मेरे पेट और ब्रा के ऊपर अपने हस्ताक्षर से करने लगा। सच कहूँ तो मुझे गुदगुदी होने लगी थी और मुझे उसका यह खेल उत्सुक कर रहा था।फिर उसने अपनी उंगली हटाई और अपने होठों से मुझे जगह जगह चूमने लगा... नाभि से शुरू होते हुए पेट और फिर ब्रा में छुपे स्तनों को चूमने के बाद उसने मेरी गर्दन और होठों को चूमा और फिर घूम कर मेरी पीठ पर वृत्ताकार में पप्पियाँ देने लगा... उसकी जीभ रह रह कर किसी सर्प की भांति, बाहर आ कर मुझे छू कर लोप हो रही थी।
मैं गुदगुदी से कसमसाने लगी थी...
उधर लोगों का शोर बढ़ने लगा था। फिर उसने अचानक अपने दांतों में मेरी ब्रा की डोरी पकड़ ली और उसे धीरे धीरे खींचने लगा। जब मैं उसके खींचने के कारण उसकी तरफ आने लगी तो उसने मुझे अपने हाथों से थाम दिया। आखिर डोरी खुल गई और आगे से मेरी ब्रा नीचे को ढलक गई... मेरे हाथ स्वभावतः अपने स्तनों को ढकने के लिए उठ गए तो लोगों का जोर से प्रतिरोध में शोर हुआ। मैंने अपने हाथ नीचे कर लिए और मेरे खुशहाल मम्मे उन भूखे दरिंदों के सामने पहली बार प्रदर्शित हो गए। कमरे में एक ऐसी गूँज हुई मानो जीत के लिए किसी ने आखिरी गेंद पर छक्का जमा दिया हो !
मुझे यह जान कर स्वाभिमान हुआ कि मेरा शरीर इन लोगों को सुन्दर और मादक लग रहा था। इतने में महेश सामने आ गया और मुंह में ब्रा लिए लिए मेरे चेहरे और छाती पर अपना मुँह रगड़ने लगा। ऐसा करते करते न जाने कब उसने मुँह से ब्रा गिरा दी और मेरे स्तनों को चूमने-चाटने लगा। बाकी मर्दों पर इसका खूब प्रभाव पड़ रहा था और वे झूम रहे थे और ना जाने क्या क्या कह रहे थे।
मेरे वक्ष को सींचने के बाद महेश का मुँह मेरे पेट से होता हुआ नाभि और फिर उसके भी नीचे, चड्डी से सुरक्षित, मेरे योनि-टीले पर पहुँच गया। दरिंदों ने एक बार और अठ्ठहास लगा कर महेश का जयकारा किया। महेश मज़े ले रहा था और उसे अपने चेले-दोस्तों का चापलूसी-युक्त व्यवहार अच्छा लग रहा था। नेताजी, थानेदार साब, भीमा और अशोक एक एक लड़की के साथ चुम्मा-चाटी में लगे हुए थे तो कुछ बेशर्मी से पैन्ट के बाहर से ही अपना लिंग मसल रहे थे।
महेश ने मेरी नाभि में जीभ गड़ा कर गोल-गोल घुमाई और फिर चड्डी के ऊपर से मेरी योनि-फांक को चीरते हुए ऊपर से नीचे चला दी। मैं उचक सी गई... गुदगुदी तीव्र थी और शायद आनन्ददायक भी। मुझे डर था कहीं मेरी योनि गीली ना हो जाये।
महेश के करतब जारी रहे। एक निपुण चोद्दा (जो चोदने में माहिर हो) की तरह उसे स्त्री के हर अंग का अच्छा ज्ञान था... कहाँ दबाव कम तो कहाँ ज्यादा देना है... कहाँ काटना है और कहाँ पोला स्पर्श करना है... वह अपने मुँह से मेरे बदन की बांसुरी बजा रहा था... और इस बार तो दर्शकों के साथ मुझे भी आनन्द आ रहा था।
एकाएक उसने मेरी चड्डी के बाईं तरफ की डोरी मुँह से पकड़ कर खींच दी और झट से दाहिनी ओर आकर वहां की डोरी मुँह में पकड़ ली। बाईं तरफ से चड्डी गिर गई और उस दिशा से मैं नंगी दिखने लगी थी। स्टेज के नीचे भगधड़ सी मची और जो लोग गलत जगह खड़े थे दौड़ कर स्टेज के नजदीक आ गए। सभी मेरी योनि के दर्शन करना चाहते थे ... स्टेज के नीचे से ऊओऊह... वाह वाह... आहा... सीटियों और तालियों की आवाजें आने लगीं। तभी महेश ने दाहिनी डोर भी खींच दी और मेरा आखरी वस्त्र मेरे तन से हर लिया गया।
मैं पूर्णतया निर्वस्त्र स्टेज पर खड़ी थी... महेश ने एक हीरो की तरह स्टेज पर अपनी मर्दानगी की वाहवाही और शाबाशी स्वीकार की और स्टेज से नीचे आ गया।
उसके नीचे जाते ही म्यूज़िक फिर से बजने लगा और धीरे धीरे लोग स्टेज पर नाचने के लिए आने लगे। वे उन चारों लड़कियों को भी स्टेज पर ले आये और कुछ ने मिलकर उनका भी वस्त्र-हरण कर दिया। अब हम पांच नंगी लड़कियां उन 8-10 मर्दों के बीच फँसी हुई थीं। वे बिना किसी हिचक के किसी भी लड़की को कहीं भी छू रहे थे। बस महेश, नेताजी और थानेदार साब स्टेज पर नहीं आये थे।
kramashah.....................
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