Wednesday, July 31, 2013

FUN-MAZA-MASTI जवानी की दहलीज-4

FUN-MAZA-MASTI

जवानी की दहलीज-4
कुछ पल सुस्ताने के बाद उसने आगे झुक कर मेरे दोनों मम्मों को एक एक करके चूमा। मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और मैं सिहर उठी। उसने और आगे झुकते हुए अपना सीना मेरी छाती से लगा दिया। फिर अपने पैर पीछे को पसारते हुए अपना पेट मेरे पेट से लगा दिया। अब वह घुटने और हाथों के बल मेरे ऊपर लेट सा गया था और उसने अपना सीना और पेट मेरी छाती और पेट पर गोल गोल घुमाने लगा था।


वाह ! क्या मज़ा दे रहा था !! उसका कच्छे में जकड़ा लिंग मेरी नाभि के इर्द-गिर्द छू रहा था... मानो उसकी परिक्रमा कर रहा हो। मेरे तन-मन में कामाग्नि ज़ोर से भडकने लगी थी। मेरा मन तो कर रहा था उसका कच्छा झपट कर उतार दूं और उसके लिंग को अपने में समा लूं। पर क्या करती... लज्जा, संस्कार और भय... तीनों मुझे रोके हुए थे। जहाँ मेरा शरीर समागम के लिए आतुर हो रहा था वहीं मेरे दिमाग में एक ज़ोर का डर बैठा हुआ था। सुना था बहुत दर्द होता है... खून भी निकलता है... और फिर बच्चा ठहर गया तो क्या? यह सोच कर मैं सहम गई और अपने बेकाबू होते बदन पर अंकुश डालने का प्रयास करने लगी।

पर तभी भोंपू घूमते घूमते थोड़ा और पीछे खिसका और अब उसका लिंग मेरे निचले झुरमुट के इर्द-गिर्द घूमने लगा। मेरे अंग-प्रत्यंग में जैसे डंक लग गया और मेरी कामोत्तेजना ने मेरे दिमाग के सब दरवाज़े बंद कर दिए। मैं सहसा उचक गई और मेरी योनि से रस की धारा सी बह निकली।

भोंपू की आँखें बंद थीं सो वह मेरी दशा देख नहीं पा रहा था पर उसको मेरी स्थिति का पूरा अहसास हो रहा था।

"कैसा लग रहा है?" उसने अचानक पूछा।

उसकी आवाज़ सुनकर मैं चोंक सी गई... जैसे मेरी चोरी पकड़ी गई हो। मैं कुछ नहीं बोली।

"क्यों... अच्छा नहीं लग रहा?"

मुझे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। कुछ भी कहने से ग्लानि-भाव और शर्म महसूस हो रही थी। मैं चुप ही रही।

"ओह... शायद तुम्हें मज़ा नहीं आया... देखो शायद अब आये..." कहते हुए वह ऊपर हुआ और उसने अपने होंट मेरे होंटों पर रख दिए।


मैं सकपका गई... मेरे होंट अपने आप बंद हो गए और मैंने आँखें बंद कर लीं। भोंपू ने अपनी जीभ के ज़ोर से पहले मेरे होंट और फिर दांत खोले और अपनी जीभ को मेरे मुँह में घुसा दिया। फिर जीभ को दायें-बाएं और ऊपर नीचे करके मेरे मुँह को ठीक से खोल लिया... अब वह मेरे मुँह के रस को चूसने लगा और अपनी जीभ से मेरे मुँह का अंदर से मुआयना करने लगा। साथ ही उसने अपना बदन मेरे पेट और छाती पर दोबारा से घुमाना चालू कर दिया। कुछ देर अपनी जीभ से मेरे मुँह में खेलने के बाद उसने मेरी जीभ अपने मुँह में खींच ली और उसे चूसने लगा।

धीरे धीरे मैं भी उसका साथ देने लगी और मुझे मज़ा आने लगा। मेरा इस तरह सहयोग पाते देख उसने अपने बदन को थोड़ा और नीचे खिसका दिया और अब उसका लिंग मेरे योनि द्वार पर दस्तक देने लगा... उसके हाथ मेरे स्तनों को मसलने लगे। मेरे तन-बदन में आग लग गई... मेरी टांगें अपने आप थोड़ा खुल गईं और उसके लिंग को मेरी जाँघों के कटाव में जगह मिल गई। मेरी हूक निकल गई और मैंने अपने घुटने मोड़ लिए... मेरा बदन रह रह कर ऊपर उचकने लगा... मेरी लज्जा और हया हवा हो गई। मैं चुदने के लिए तड़प गई...

"एक मिनट रुको !" कहकर भोंपू मुझ पर से उठा और उसने पास पड़ा तौलिया मेरे चूतड़ों के नीचे बिछा दिया। फिर उसने खड़े होकर अपना कच्छा उतार दिया। मैं लेटी हुई थी और वह बिस्तर पर मेरी कमर के दोनों तरफ पांव करके नंगा खड़ा हुआ था। उसका तना हुआ लंड मानो उसके शरीर को छोड़ के बाहर जाने को तैयार था। मैं जिस दशा में थी वहां से उसका लंड बहुत बड़ा और तगड़ा लग रहा था। भोंपू खुद भी मुझे भीमकाय दिख रहा था...

अब मुझे डर लगने लगा। उसकी आँखों पर अब भी दुपट्टा बंधा था। पर अब उसे आँखों की ज़रूरत कहाँ थी !! कहते हैं लंड की भी अपनी एक आँख होती है... जिससे वह अपना रास्ता ढूंढ ही लेता है !

वह फिर से मेरे ऊपर पहले की तरह लेट गया... उसने अपनी दोनों बाहें मेरे घुटनों के नीचे से डाल कर मेरी टांगें ऊपर कर दीं और फिर अपने उफनते हुए लंड के सुपारे से मेरी कुंवारी योनि का द्वार ढूँढने लगा। वैसे तो उसकी आँखें बंद थीं पर अगर ना भी होतीं तो भी मेरी योनि के घुंघराले बालों में योनि नहीं दिखती... उसे तो ढूँढना ही पड़ता।

भोंपू योनि कपाट खोजने का काम अपने लंड की आँख से कर रहा था। वह शादीशुदा था अतः उसे यह तो पता था कहाँ ढूँढना है... उसका परम उत्तेजित लंड योनि के आस-पास हल्का हल्का दबाव डाल कर अपना लक्ष्य ढूंढ रहा था। मुझे इससे बहुत उत्तेजना हो रही थी... एक मजेदार खेल चल रहा था... मेरी योनि निरंतर रस छोड़ रही थी। मुझे अच्छा लगा कि भोंपू अपने हाथों का इस्तेमाल नहीं कर रहा है। इस आँख-मिचोली में शायद दोनों को ही मज़ा आ रहा था। आखिरकार, लंड की मेहनत सफल हुई और सुपारे को वह हल्का सा गड्ढा मिल ही गया जिसे दबाने से भोंपू को लगा ये सेंध लगाने की सही जगह है।

उसने अपने आप को अपने घुटनों और हाथों पर ठीक से व्यवस्थित किया... साथ ही मेरे चूतड़ों को अपनी बाहों के सहारे सही ऊँचाई तक उठाया और फिर अपने सुपारे को मेरे योनि-द्वार पर टिका दिया। मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था... मैंने अपने बदन को कड़क कर लिया था... मेरी सांस तेज़ हो गई थी और डर के मारे मेरे हाथ-पैर ठन्डे पड़ रहे थे... पर नीचे मेरी योनि व्याकुल हो रही थी... सुपारे का योनि कलिकाओं से स्पर्श उसे पुलकित कर रहा था... योनि का मन कर रहा था अपने आप को नीचे धक्का देकर लंड को अंदर ले लूं... मैं सांस सी रोके भोंपू के अगले वार का इंतज़ार कर रही थी...

तभी मुझे आवाज़ सुनाई दी... "बोलो तैयार हो? पांव के दर्द का पूरा इलाज कर दूं?"

कितना गन्दा आदमी है ये... मुझे तड़पा तड़पा कर मार देगा... मैंने सोचा... पर जवाब क्या देती... चुप रही...

उसने अपने सुपारे से मेरे योनि-द्वार पर एक-दो बार हल्का हल्का दबाव डाल कर मेरी कामाग्नि के हवन-कुंड में थोडा और घी डाला और थोड़ा और प्रज्वलित किया और फिर से पूछा .. "बोलो ना..."

मैंने जवाब में उसके सिर पर प्यार से उँगलियाँ फिरा दीं और उसके सिर को पुच्ची कर दी।

"ऐसे नहीं... बोल कर बताओ?"

"क्या?"

"यही... कि तुम क्या चाहती हो?"

"तुम बहुत गंदे हो..." मैं क्या कहती... आखिर लड़की हूँ।

"तो मैं उठूँ?" कहते हुए उसने अपने लंड का संपर्क मेरी योनि से तोड़ते हुए पूछा।


मैं मचल सी गई। मैं बहुत जोर से चुदना चाहती थी यह वह जानता था। वह मुझे छेड़ रहा था यह मैं भी जानती थी। पर क्या करती? उसका पलड़ा भारी था... शायद मेरी ज़रूरत और जिज्ञासा अधिक थी। वह तो काफी अनुभवी लग रहा था।

"जल्दी बोलो..." उसने चुनौती सी दी।

"अब और मत तड़पाओ !" मुझे ही झुकना पड़ा...

"क्या करूँ?" भोंपू मज़े लेकर पूछ रहा था।

"मेरा पूरा इलाज कर दो।" मैंने अधीर होकर कह ही दिया।

"कैसे?" उसने नादान बनते हुए मेरे धैर्य का इम्तिहान लिया।

"अब जल्दी भी करो..." मैंने झुंझलाते हुए कहा।


शायद उसे इसी की प्रतीक्षा थी... उसने धीरे धीरे सुपारे का दबाव बढ़ाना शुरू किया... उसकी आँखें बंद थीं जिस कारण सुपारा अपने निशाने से चूक रहा था और योनि-रस के कारण फिसल रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था मुझे डर ज़्यादा लग रहा है या काम-वासना ज़्यादा हो रही है। मैं बिल्कुल स्थिर हो गई थी... मैं नहीं चाहती थी कि मेरे हिलने-डुलने के कारण भोंपू का निशाना चूक जाये। जब वह दबाव बढाता, मेरी सांस रुक जाती। मुझे पता चल रहा था कब उसका सुपारा सही जगह पर है और कब चूक रहा है। मैंने सोच लिया मुझे ही कुछ करना पड़ेगा...
अगली बार जैसे ही सुपारा ठीक जगह लगा और भोंपू ने थोड़ा दबाव डाला, मैंने ऊपर की ओर हल्का सा धक्का दे दिया जिससे सुपारे का मुँह योनि में अटक गया। मेरी दर्द से आह निकल गई पर मेरी कार्यवाही भोंपू से छिपी नहीं थी। उसने नीचे झुक कर मेरे होटों को चूम लिया। वह मेरे सहयोग का धन्यवाद दे रहा था।

उसने लंड को थोड़ा पीछे किया और थोड़ा और ज़ोर लगाते हुए आगे को धक्का लगाया। मुझे एक पैना सा दर्द हुआ और उसका लंड योनि में थोड़ा और धँस गया। इस बार मेरी चीख और ऊंची थी... मेरे आंसू छलक आये थे और मैंने अपनी एक बांह से अपनी आँखें ढक ली थीं।
भोंपू ने बिना हिले डुले मेरे गाल पर से आंसू चूम लिए और मुझे जगह जगह प्यार करने लगा। कुछ देर रुकने के बाद उसने धीरे से लंड थोड़ा बाहर किया और मुझे कन्धों से ज़ोर से पकड़ते हुए लंड का ज़ोरदार धक्का लगाया। मैं ज़ोर से चिल्लाई... मुझे लगा योनि चिर गई है... उधर आग सी लग गई थी... मैं घबरा गई। उसका मूसल-सा लंड मेरी चूत में पूरा घुंप गया था... शायद वह मेरी पीठ के बाहर आ गया होगा। मैं हिलने-डुलने से डर रही थी... मुझे लग रहा था किसीने मेरी चूत में गरम सलाख डाल दी है। भोंपू मेरे साथ मानो ठुक गया था... वह मुझ पर पुच्चियों की बौछार कर रहा था और अपने हाथों से मेरे पूरे शरीर को प्यार से सहला रहा था।
काफ़ी देर तक वह नहीं हिला... मुझे उसके लंड के मेरी योनि में ठसे होने का अहसास होने लगा... धीरे धीरे चिरने और जलने का अहसास कम होने लगा और मेरी सांस सामान्य होने लगी। मेरे बदन की अकड़न कम होती देख भोंपू ने मेरे होंटों को एक बार चूमा और फिर धीरे धीरे लंड को बाहर निकालने लगा। थोड़ा सा ही बाहर निकालने के बाद उसने उसे वापस पूरा अंदर कर दिया... और फिर रुक गया... इस बार उसने मेरे बाएं स्तन की चूची को प्यार किया और उसपर अपनी जीभ घुमाई... फिर से उसने उतना ही लंड बाहर निकाला और सहजता से पूरा अंदर डाल दिया... इस बार मेरे दाहिने स्तन की चूची की बारी थी... उसे प्यार करके उसने धीरे धीरे लंड थोड़ा सा अंदर बाहर करना शुरू किया... मुझे अभी भी हल्का हल्का दर्द हो रहा था पर पहले जैसी पीड़ा नहीं। मुझे भोंपू के चेहरे की खुशी देखकर दर्द सहन करने की शक्ति मिल रही थी।


उसने धीरे धीरे लंड ज़्यादा बाहर निकाल कर डालना शुरू किया और कुछ ही मिनटों में वह लंड को लगभग पूरा बाहर निकाल कर अंदर पेलने लगा। मुझे इस दर्द में भी मज़ा आ रहा था। उसने अपनी रफ़्तार तेज़ की और बेतहाशा मुझे चोदने लगा... 5-6 छोटे धक्के लगा कर एक लंबा धक्का लगाने लगा... उसमें से अजीब अजीब आवाजें आने लगीं...हर धक्के के साथ वह ऊंह... ऊंह... आह... आहा... हूऊऊ... करने लगा ..
"ओह... तुम बहुत अच्छी हो... तुमने बहुत मज़ा दिया है।" वह बड़बड़ा रहा था।
मैंने उसके सिर में अपनी उँगलियाँ चलानी शुरू की और एक हाथ से उसकी पीठ सहलाने लगी। मुझे भी अच्छा लग रहा था।
"मन करता है तुम्हें चोदता ही रहूँ..."
...मैं उसकी हाँ में हाँ मिलाना चाहती थी... मैं भी चाहती थी वह मुझे चोदता रहे... पर मैंने कुछ कहा नहीं... बस थोड़ा उचक कर उसकी आँखों पर से पट्टी हटा दी और फिर उसकी आँखों को चूम लिया।
वह बहुत खुश हो गया। उसने चोदना जारी रखते हुए मेरे मुँह और गालों पर प्यार किया और मेरे स्तन देखकर बोला," वाह... क्या बात है !" और उनपर अपने मुँह से टूट पड़ा।
मैंने महसूस किया कि चुदाई की रफ़्तार बढ़ रही है और उसके वार भी बड़े होते जा रहे हैं। उसना अपना वज़न अपनी हथेलियों और घुटनों पर ले लिया था और वह लंड को पूरा अंदर बाहर करने लगा था। उसने अपना मरदाना मैथुन जारी रखा। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं और वह हांफने सा लगा था... एक बार लंड पूरा अंदर डालने के बाद वह एक पल के लिए रुका और एक लंबी सांस के साथ लंड पूरा बाहर निकाल लिया। फिर उसने योनि-द्वार बंद होने का इंतज़ार किया। कपाट बंद होते ही उसने सुपारे को द्वार पर रखा और एक ज़ोरदार गर्जन के साथ अपने लट्ठ को पूरा अंदर गाड़ दिया।

मेरे पेट से एक सीत्कार सी निकली और मैं उचक गई... मेरी आँखें पथरा कर पूरी खुल गई थीं... उनका हाल मेरी योनि जैसा हो गया था। उसने उसी वेग से लंड बाहर निकाला और घुटनों के बल हो कर मेरे शरीर पर अपने प्रेम-रस की पिचकारी छोड़ने लगा... उसका बदन हिचकोले खा खा कर वीर्य बरसा रहा था... पहला फव्वारा मेरे सिर के ऊपर से निकल गया... मेरी आँखें बंद हो गईं... बाकी फव्वारे क्रमशः कम गति से निकलते हुए मेरी छाती और पेट पर गिर गए।
मैंने आँखें खोल कर देखा तो उसका लंड खून और वीर्य में सना हुआ था। खून देख कर मैं डर गई।
"यह खून?" मेरे मुँह से अनायास निकला।
भोंपू ने मेरे नीचे से तौलिया निकाल कर मुझे दिखाया... उस पर भी खून के धब्बे लगे हुए थे और वीर्य से गीला हो रहा था।
"घबराने की बात नहीं है... पहली बार ऐसा होता है।"
"क्या?"
"जब कोई लड़की पहली बार सम्भोग करती है तो खून निकलता है... अब नहीं होगा।"
"क्यों?"
"क्योंकि तुम्हारे कुंवारेपन की सील टूट गई है... और तुमने यह सम्मान मुझे दिया है... मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ।" कहकर वह मुझ पर प्यार से लेट गया और मेरे गाल और मुँह चूमने लगा।
kramashah.........................









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