Wednesday, July 31, 2013

FUN-MAZA-MASTI जवानी की दहलीज-10

FUN-MAZA-MASTI

जवानी की दहलीज-10
"पता है, गांड मारने में सबसे ज्यादा मज़ा मुझे कब आता है?" उसने पूछा।
"मुझे क्या मालूम !"
"जब लंड गांड में डालना होता है !!"
"अच्छा ! तो इसीलिए बार बार आसन बदल रहे हो !"
"तुम्हारे आराम का ख्याल भी तो रखता हूँ..."
"मुझे भी लंड घुसवाने में अब मज़ा आने लगा है ! तुम जितनी बार चाहो निकाल कर घुसेड़ सकते हो !" मैंने शर्म त्यागते हुए कहा।
"वाह !... तो यह लो !!" कहते हुए उसने लंड बाहर निकाल लिया और एक बार फिर उसी यत्न से अंदर डाल दिया। हर बार लंड अंदर जाते वक्त मेरी गांड को अपने विशाल आकार का अहसास ज़रूर करवा देता था। ऐसा नहीं था कि लंड आसानी से अंदर घुप जाए और पता ना चले... पर इस मीठे दर्द में भी एक अनुपम आनन्द था। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
अब भोंपू वेग और ताक़त के साथ मेरी गांड मार रहा था। कभी लंबे तो कभी छोटे वार कर रहा था। मुझे लगा अब उसके चरमोत्कर्ष का समय नजदीक आ रहा है। अब तक तीन बार मैं उसका फुव्वारा देख चुकी थी सो अब मुझे थोड़ा बहुत पता चल गया था कि वह कब छूटने वाला होता है।
मेरे हिसाब से वह आने वाला ही था। मेरा अनुमान ठीक ही निकला... उसके वार तेज़ होने लगे, साँसें तेज़ हो गईं, उसका पसीना छूटने लगा और वह भी मेरा नाम ले ले कर बडबडाने लगा। अंततः उसका नियंत्रण टूटा और वह एक आखिरी ज़ोरदार वार के साथ मेरे ऊपर गिर गया...
उसका लंड पूरी तरह मेरी गांड में ठंसा हुआ हिचकियाँ भर रहा था और उसका बदन भी हिचकोले खा रहा था। कुछ देर के विराम के बाद उसने एक-दो छोटे वार किये और फिर मेरे ऊपर लेट गया। वह पूरी तरह क्षीण और शक्तिहीन हो चला था। कुछ ही देर में उसका सिकुड़ा, लचीला और नपुंसक सा लिंग मेरी गांड में से अपने आप बाहर आ गया और शर्मीला सा लटक गया।
भोंपू बिस्तर से उठकर गुसलखाने की तरफ जा ही रहा था कि अचानक दरवाज़े पर जोर से खटखटाने की आवाज़ आई। हम दोनों चौंक गए और एक दूसरे की तरफ घबराई हुई नज़रों से देखने लगे।
इस समय कौन हो सकता है? कहीं किसी ने देख तो नहीं लिया?
हम दोनों का यौन-सुरूर काफूर हो गया और हम जल्दी जल्दी कपड़े पहनने लगे।
दरवाज़े पर खटखटाना अब तेज़ और बेसब्र सा होने लगा था... मानो कोई जल्दी में था या फिर गुस्से में। जैसे तैसे मैंने कपड़े पहन कर, अपने बिखरे बाल ठीक करके और भोंपू को गुसलखाने में रहने का इशारा करते हुए दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा खोलते ही मेरे होश उड़ गए...
दरवाज़े पर महेश, रामाराव जी का बड़ा बेटा, अपने तीन गुंडे साथियों के साथ गुस्से में खड़ा था।

दरवाज़े पर महेश और उसके साथियों को देख कर मैं घबरा गई। वे पहले कभी मेरे घर नहीं आये थे। मैंने अपने होशोहवास पर काबू रखते हुए उन्हें नमस्ते की और सहजता से पूछा- आप यहाँ?
महेश की नज़रें आधे खुले दरवाज़े और मेरे पार कुछ ढूंढ रही थीं। मैं वहीं खड़ी रही और बोली- बापू घर पर नहीं हैं।
" हमें पता है।" महेश ने रूखे स्वर में कहा- हम देखने आये हैं कि तुम क्या कर रही हो?
मेरा गला अचानक सूख गया। मैं हक्की-बक्की सी मूर्तिवत खड़ी रह गई।
"मतलब?" मैंने धीरे से पूछा।
"ऐसी भोली मत बनो... भोंपू कहाँ है?"
यह सुनते ही मेरे पांव-तले ज़मीन खिसक गई। मेरे माथे पर पसीने की अनेकों बूँदें उभर आईं, मैं कांपने सी लगी।
महेश ने पीछे मुड़ कर अपने साथियों को इशारा किया और उनमें से दो आगे बढ़े और मेरी अवहेलना करते हुए घर का दरवाज़ा पूरा खोल कर अंदर जाने लगे।
"यह क्या कर रहे हो? ...कहाँ जा रहे हो?" मैंने उन्हें रोकने की कोशिश की पर वे मुझे एक तरफ धक्का देकर अंदर घुस गए और घर की तलाशी लेने लगे।
"आजकल बड़ी रंगरेलियाँ मनाई जा रही हैं !" महेश ने मेरी तरफ धूर्तता से देखते हुए कहा।
मैं सकपकाई सी नीचे देख रही थी... मेरी उँगलियाँ मेरी चुनरी के किनारे को बेतहाशा बुन रही थीं।
मुझे महसूस हुआ कि महेश मुझे लालसा और वासना की नज़र से देख रहा था। उसकी ललचाई आँखें मेरे वक्षस्थल पर टिकी हुई थीं और वह कभी कभी मेरे पेट और जाँघों को घूर रहा था।
तभी अंदर से भगदड़ और शोर सुनाई दिया। महेश के साथी भोंपू को घसीटते हुए ला रहे थे।
"बाथरूम में छिपा था !" महेश के एक साथी ने कहा।
" क्यों बे ? यहाँ क्या कर रहा था?" महेश ने भोंपू से पूछा।
" यहाँ कौन सी गाड़ी चला रहा था... बोल?" महेश ने और गुस्से में पूछा।
भोंपू चुप्पी साधे महेश के पांव की तरफ देख रहा था।
" अच्छा तो छोरी को गाड़ी चलाना सिखा रहा था... या उसका भी भोंपू ही बजा रहा था...?" महेश ने मेरे मम्मों की तरफ दखते हुए व्यंग्य किया।
" मादरचोद ! अब क्यों चुप है। पिछले तीन दिनों से हम देख रहे हैं... तू यहाँ रोज आता है और घंटों रहता है... बस तू और ये रंडी... अकेले अकेले क्या करते रहते हो?" महेश सवाल करता जा रहा था।
" तुझे मालूम है यह शादीशुदा है?" महेश ने मेरी तरफ देखकर सवाल किया।
" तुझे पक्का मालूम है... तूने तो इसकी शादी देखी है... यहीं हुई थी... हमने कराई थी !" महेश ने खुद ही उत्तर देते हुए कहा।
" तुझे और कोई नहीं मिला जो एक शादीशुदा से गांड मरवाने चली !" महेश मुझे दुतकारता हुआ बोला।
" और तू ! तुझे यहाँ काम पर इसलिए रखा है कि तू हवेली की लड़कियाँ चोदता फिरे...? हैं?" महेश ने भोंपू को चांटा मारते हुए पूछा।
" साला पेड़ लगाएँ हम और फल खाए तू... हम यहाँ क्या गांड मराने आये हैं?" महेश का क्रोध बढ़ता जा रहा था और वह भोंपू को थप्पड़ और घूंसे मारे जा रहा था।
" साली... हरामजादी... तुझे हम नहीं दिखाई दिए जो इस दो कौड़ी के नौकर से मुँह काला करवाने लगी?" महेश ने मेरी तरफ एक कदम बढ़ाते हुए पूछा।
मैं रोने लगी...
" अब क्या रोती है... जब तेरे बाप और घरवालों को पता चलेगा कि तू उनके पीछे क्या गुल खिला रही है... तब देखना... " महेश के इस कथन से मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैं यौन दरिया में इस वेग से बह चली थी कि इसके परिणाम का ख्याल तक नहीं किया। मैं अब अपने आप को कोसने लगी और मुझे अपने आप पर ग्लानि होने लगी।
मैंने महेश के सामने हाथ जोड़े और रोते रोते माफ़ी मांगी।
" हमें माफ कर दो... गलती हो गई... अबसे हम कभी नहीं मिलेंगे..." मैंने रुआंसे स्वर में कहा।
" माफ कर दो... गलती हो गई..." महेश ने मेरी नकल उतारते हुए दोहराया और फिर बोला," ऐसे कैसे माफ कर दें... गलती की सज़ा तो ज़रूर मिलेगी !"
" या तो तू प्रायश्चित कर ले या हम तेरे बाप को सब कुछ बता देंगे !" महेश ने सुझाव दिया।
" मैं प्रायश्चित कर लूंगी... आप जो कहोगे करने को तैयार हूँ !" मैंने दृढ़ता से कहा। भोंपू ने पहली बार मेरी तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि डाली... मानो मुझे सचेत कर रहा हो। पर मुझे अपने घर वालों की इज्ज़त के आगे कुछ और नहीं सूझ रहा था। मैंने भोंपू को नज़रंदाज़ करते हुए कहा," पर आप मेरे घरवालों को मत बताना.. मैं विनती करती हूँ...!"
" ठीक है... जैसा मैं चाहता हूँ तुम अगर वैसा करोगी तो हम किसी को नहीं बताएँगे... भोंपू कि बीवी को भी नहीं... मंज़ूर है?" महेश ने पूछा।
"मंज़ूर है।" मैंने बिना समय गंवाए जवाब दे दिया।
"तो ठीक है !" महेश ने कहा और भोंपू को एक और तमाचा रसीद करते हुए बोला," और तू भी किसी को नहीं बताएगा साले... नहीं तो देख लेना तेरा क्या हाल करते हैं... समझा?"
" जी नहीं बताऊँगा।" भोंपू बुदबुदाया।
" तो अब भाग यहाँ से... इस घर के आस-पास भी दिखाई दिया तो हड्डी-पसली एक कर देंगे।" महेश ने भोंपू को लात मारते हुए वहाँ से भगाया। जब भोंपू चला गया तो महेश ने मुझे ऊपर से नीचे देखा और जैसे किसी मेमने को देख कर भेडिये के मुंह में पानी आता है वैसे मुझे निहारने लगा। अपने हाथ मसल कर वह सोचने लगा कि मुझसे किस तरह का प्रायश्चित करवा सकता है।
आखिर कुछ सोचने के बाद उसने निश्चय कर लिया और अपना गला साफ़ करते हुए मुझसे बोला," मैं बताता हूँ तुम्हें क्या करना होगा... तैयार हो?"
" जी, बताइए।"
" कल रात मेरे घर में पार्टी है... कुछ दोस्त लोग आ रहे हैं... वहाँ तुम्हें नाचना होगा... !"
महेश की फरमाइश सुनकर मेरी सांस में सांस आई। मैंने तो न जाने क्या क्या सोच रखा था... मुझे लगा वह मुझे चोदने का इरादा तो ज़रूर करेगा... पर उसकी इस आसान शर्त से मुझे राहत मिली।
" जी ठीक है।"
" नंगी !!" उसने कुछ देर के बाद अपना वाक्य पूरा करते हुए कहा और मेरी तरफ देखने लगा।
" नंगी?" मैंने पूछा।
" हाँ... बिल्कुल नंगी !!!"
मैं निस्तब्ध रह गई... कुछ बोल नहीं सकी।
" पानी के शावर के नीचे... " महेश अब मज़े ले लेकर धीरे धीरे अपनी शर्तें परोस रहा था।
" मेरे और मेरे दोस्तों के साथ... !!!" महेश चटकारे लेते हुए बोला।
" मुझसे नहीं होगा।" मैंने धीमे से कहा।
" होगा कैसे नहीं, साली !" उसने मेरे गाल पर जोर से चांटा मारते हुए कहा। फिर मेरी चोटी पीछे खींचते हुए मेरा सिर ऊपर किया और मेरी आँखों में अपनी बड़ी बड़ी आँखें डालते हुए बोला।
" मैं तेरी राय नहीं ले रहा हरामखोर... तुझे बता रहा हूँ... मुझे ना सुनने की आदत नहीं है... और हाँ... अब तो तुझे चुदाई का स्वाद लग गया होगा... तो अगर मैं या मेरे दोस्त तेरे साथ... "
" नहीं... " महेश अपना वाक्य पूरा करता उसके पहले ही मैं चिल्लाई। महेश ने मेरी चुटिया जोर से खींची जिससे मेरी चीख निकल गई और मुझे तारे नज़र आने लगे और मैं अपने पांव पर लड़खड़ाने लगी।
" इधर देख !" महेश ने मेरी ठोड़ी अपनी तरफ करते हुए कहा " तेरी जैसी सैंकड़ों छोरियां मेरे घर में रोज नंगी नाचती हैं... हमें खुश करना अपना सौभाग्य समझती हैं... तू कहाँ की महारानी आई है?"
" वैसे भी... अब तेरे बदन में रह ही क्या गया है जिसे तू छुपाना चाहती है?... भोंपू ने कुछ नहीं किया क्या?"
कुछ देर बाद महेश ने मेरी चुटिया छोड़ी और मुझे समझाने के लहजे में अपनी आवाज़ नीची करके, सहानुभूति के अंदाज़ में कहने लगा " देखो, अब तुम्हारे पास कोई चारा नहीं है... हमें खुश रखो... हम तुम्हारा ध्यान रखेंगे... अगर तुम नखरे दिखाओगी तो हम तुम्हारी गांड भी बजायेंगे और शहर में ढिंडोरा भी पीटेंगे... सोच लो?"
मैं चुप रही ! क्या कहती?
महेश ने मेरी चुप्पी को स्वीकृति समझते हुए निर्देश देने शुरू किये..
" तो फिर पार्टी कल रात देर से शुरू होगी... मेरे आदमी तुम्हें 9 बजे लेने आयेंगे... तैयार रहना... अपने भाई-बहन को खाना खिला कर सुला देना। तुम्हारा खाना हमारे साथ ही होगा... कपड़ों की चिंता मत करना... वहाँ तुम्हें बहुत सारे मिल जायेंगे... वैसे भी तुम्हें कपड़ों की ज्यादा ज़रूरत नहीं पड़ेगी... " महेश मेरी दशा पर मज़ा लूटते हुए बोले जा रहा था।
मैं अवाक सी खड़ी रही।
" रात के ठीक 9 बजे !" महेश मुझे याद दिलाते हुए और चेतावनी देते हुए अपने साथियों के साथ चला गया।
मेरी दुनिया एक ही पल में क्या से क्या हो गई थी। जहाँ एक तरफ मैं अपने भौतिक जीवन के सबसे मजेदार पड़ाव का आनन्द ले रही थी वहीं मेरे जीवन की सबसे डरावनी और चिंताजनक घड़ी मेरे सामने आ गई थी। अचानक मैं भय, चिंता, ग्लानि, पश्चाताप और क्रोध की मिश्रित भावनाओं से जूझ रही थी। मेरा गला सूख गया था और मेरे सिर में हल्का सा दर्द शुरू हो गया था। अगर घर वालों को पता चल गया तो क्या होगा? शीलू और गुंटू, जो मुझे माँ सामान समझते हैं, मेरे बारे में क्या सोचेंगे... बापू तो शर्म से कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रह जायेंगे... शायद वे आत्महत्या कर लें... और भोंपू की बीवी, जो शादी के समय मुझसे मिल चुकी थी और जिसके साथ मैंने बहुत मसखरी की थी, मुझे सौत के रूप में देखेगी... मुझे कितना कोसेगी कि मैंने उसके घर संसार को उजाड़ दिया...
मैं अपने किये पर सोच सोच कर पछताती जा रही थी... जैसे जैसे मुझे अपनी करतूत के परिणाम महसूस होने लगे, मुझे लगने लगा कि इस घटना को गोपनीय रखने में ही मेरी और मेरे घरवालों की भलाई है। मेरा मन पक्का होने लगा और मैंने इरादा किया कि महेश की बात मान लेने में ही समझदारी है। एक बार महेश मेरा नाजायज़ फ़ायदा उठा लेगा तो वह खुद मुझे बचाने के लिए बाध्य होगा वर्ना उसकी इज्ज़त भी मिटटी में मिल सकती है और वह रामाराव जी की नज़रों और नीचे गिर सकता है। हो सकता है वे गुस्से में उसको अपनी जागीर से बेदखल भी कर दें।
महेश को यह अंदेशा बहुत पहले से था और वह अपने पिता को और अधिक निराश करने का जोखिम नहीं उठा सकता था। ऐसी हालत में मेरा महेश को सहयोग देना मेरे लिए फायदेमंद होगा। धीरे धीरे मेरा दिमाग ठीक से काम करने लगा। कुछ देर पहले की कश्मकश और उधेड़बुन जाती रही और अब मैं ठीक से सोचने लगी थी। सबसे पहले मैंने अपने आप को सामान्य करने की ज़रूरत समझी जिससे घर में किसी को किसी तरह की शंका ना हो... फिर सोचने लगी कि कल रात के लिए शीलू-गुंटू को क्या बताना है जिससे वे साथ आने की जिद ना करें...
कुछ देर बाद शीलू-गुंटू स्कूल से वापस आ गए। हमने खाना खाया... उन्होंने भोंपू के बारे में पूछा तो मैंने यह कह कर टाल दिया कि उसे किसी ज़रूरी काम से अपने घर जाना पड़ा है। फिर मैंने कल रात की तैयारी के लिए भूमिका बनानी शुरू कर दी। रात को सोते वक्त मैंने शीलू-गुंटू के बिस्तर पर जाकर उनसे बातचीत शुरू की...
" कल रात हवेली में एक पूजा समारोह है जिसमें बच्चे नहीं जाते और सिर्फ शादी-लायक कुंवारी लड़कियाँ ही जाती हैं !" मैंने शीलू-गुंटू को बताया।
"तो मैं भी जा सकती हूँ?" शीलू ने उत्साह के साथ कहा।
"चल हट ! तू कोई शादी के लायक थोड़े ही है... पहले बड़ी तो हो जा !" मैंने उसकी बात काटते हुए कहा।
" वैसे उस पूजा में मेरा जाने का बहुत मन है पर तुम दोनों को घर में अकेले छोड़ कर कैसे जा सकती हूँ?"
" किस समय है?" शीलू ने पूछा।
" रात नौ बजे शुरू होगी !"
" और खत्म कब होगी?"
" पता नहीं !"
" ठीक है... तो तुम बाहर से ताला लगाकर चली जाना हम खाना खाकर सो जायेंगे।" शीलू ने स्वाभाविक रूप से समाधान बताया।
" तुम्हें डर तो नहीं लगेगा?" मैंने चिंता जताई।
" हम अकेले थोड़े ही हैं... और जब बाहर से ताला होगा तो कोई अंदर कैसे आएगा?"
" ठीक है... अगर तुम कहते हो तो मैं चली जाऊंगी।" मैंने उन पर इस निर्णय का भार डालते हुए कहा।
मुझे तसल्ली हुई कि एक समस्या तो टली। अब बस मुझे कल रात की अपेक्षित घटनाओं का डर सता रहा था... ना जाने क्या होने वाला था... महेश और उसके दोस्त मेरे साथ क्या क्या करने वाले हैं... मैं अपने मन में डर, कौतूहल, चिंता और भ्रम की उधेड़बुन में ना जाने कब सो गई...
अगले दिन मैं पूरे समय चिंतित और घबराई हुई सी रही। अपने आप को ज्यादा से ज्यादा काम में व्यस्त करने की चेष्टा में लगी रही पर रह रह कर मुझे आने वाली रात का डर घेरे जा रहा था। शीलू-गुंटू को भी मेरा व्यवहार अजीब लग रहा था पर जैसे-तैसे मैंने उन्हें सिर-दर्द का बहाना बनाकर टाल दिया। रात के आठ बजे मैंने दोनों को खाना दिया और वे स्कूल का काम करने और फिर सोने चले गए। इधर मैंने स्नान करके सादा कपड़े पहने और बलि के बकरे की भांति नौ बजे का इंतज़ार करने लगी।
नौ बजे से कुछ पहले मैंने देखा कि दोनों बच्चे सो गए हैं। मैंने राहत की सांस ली क्योंकि मैं उनके सामने महेश के आदमियों के साथ जाना नहीं चाहती थी। मैंने समय से पहले ही घर को ताला लगाया और बाहर इंतज़ार करने लगी। ठीक नौ बजे महेश के दो आदमी मुझे लेने आ गए। मुझे बाहर तैयार खड़ा देख उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा।
" लौंडिया तेज़ है बॉस ! इससे रुका नहीं जा रहा !!" एक ने अभद्र तरीके से हँसते हुए कहा।
" माल अच्छा है... काश मैं भी ज़मींदार का बेटा होता !" दूसरे ने हाथ मलते हुए कहा और मुझे घूरने लगा।
" अबे अपने घोड़े पर काबू रख... बॉस को पता चल गया तो तेरी लुल्ली अपने तोते को खिला देगा... तू बॉस को जानता है ना?"
" जानता हूँ यार... राजा गिद्ध की तरह शिकार पर पहली चौंच वह खुद मारता है... फिर उसके नज़दीकी दोस्त और बाद में हम जैसों के लिए बचा-कुचा माल छोड़ देता है !"
उन्होंने मुझसे कुछ कहे बिना हवेली की तरफ चलना शुरू कर दिया... मैं परछाईं की तरह उनके पीछे पीछे हो ली। उनकी बातें सुनकर मेरा डर और बढ़ गया। थोड़े देर में वे मुझे हवेली के एक गुप्त द्वार से अंदर ले गए और वहां एक अधेड़ उम्र की औरत के हवाले कर दिया।
" इसको जल्दी तैयार कर दो चाची... बॉस इंतज़ार कर रहे हैं !" कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए।
" अंदर जाकर मुँह-हाथ धो ले... कुल्ला कर लेना और नीचे से भी धो लेना... मैं कपड़े लाती हूँ।" चाची ने बिना किसी प्रस्तावना के मुझे निर्देश देते हुए गुसलखाने का दरवाज़ा दिखाया।
" जल्दी कर...!" जब मैं नहीं हिली तो उसने कठोरता से कहा और अलमारी खोलने लगी। अलमारी में तरह तरह के जनाना कपड़े सजे हुए थे। मैं चाची को और कपड़ों को देखती देखती गुसलखाने में चली गई।
वाह... कितना बड़ा गुसलखाना था... बड़े बड़े शीशे, बड़ा सा टब, तरह तरह के नल और शावर, सैंकड़ों तौलिए और हजारों सौंदर्य प्रसाधन। मैं भौंचक्की सी चीज़ें देख रही थी कि चाची की 'जल्दी करती है कि मैं अंदर आऊँ?' की आवाज़ से मैं होश में आई।
मैंने चाची के कहे अनुसार मुंह-हाथ धोए, कुल्ला किया और बाहर आ गई।
चाची ने जैसे ही मुझे देखा हुक्म दे दिया,"सारे कपड़े उतार दे !"
मैं हिचकिचाई तो चाची झल्लाई और बोली,"उफ़ ! यहाँ शरमा रही है और वहाँ नंगा नाचेगी... अब नाटक बंद कर और ये कपड़े पहन ले... जल्दी कर !"
उसने मेरे लिए मेहंदी और हरे रंग का लहरिया घाघरा और हलके पीले रंग की चुस्त चोली निकाली हुई थी। नीचे पहनने के लिए किसी मुलायम कपड़े की बलुआ रंग की ब्रा और चड्डी थी... दोनों ही अत्यंत छोटी थीं और दोनों को बाँधने के लिए डोरियाँ थीं - कोई बटन, हुक या नाड़ा नहीं था। मैंने धीरे धीरे अपने कपड़े उतारने शुरू किये तो चाची आई और जल्दी जल्दी मेरे बदन से कपड़े उखाड़ने लगी। मैंने उसे दूर किया और खुद ही जल्दी से उतारने लगी।
"इनको भी...!" चाची ने मेरी चड्डी और ब्रा की तरफ उंगली उठाते हुए निर्देश दिया।
मैंने उसका हुक्म मानने में ही भलाई समझी और उसके सामने नंगी खड़ी हो गई। चाची ने मेरे पास आकर मेरा निरीक्षण किया... मेरे बाल, मम्मे, बगलें और यहाँ तक कि मेरी टांगें खुलवा कर मेरी योनि और चूतड़ों को पाट कर मेरी गांड भी देखी और सूंघी।
"नीचे नहीं धोया?" उसने मुझे अस्वीकार सा करते हुए कहा और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे घसीटती हुई गुसलखाने में ले गई। वहाँ उसने बिना किसी उपक्रम के मुझे एक जगह खड़ा किया, मेरी टांगें खोलीं और हाथ में एक लचीला शावर लेकर मेरे सिर के बाल छोड़कर मुझे पूरी तरह नहला दिया। मेरी योनि और गांड में भी हाथ और उँगलियों से सफाई कर दी। फिर एक साफ़ तौलिया लेकर मुझे झट से पौंछ दिया और करीब दो मिनट के अंदर ये सब करके मुझे बाहर ले आई।
" सब कुछ मुझे ही करना पड़ता है... आजकल की छोरियाँ... बस भगवान बचाए !!" चाची बड़बड़ा रही थी।
" ये पहन ले... जल्दी कर... तुझे लेने आते ही होंगे !" चाची ने मुझे चेताया।
kramashah.....................


Tags = Future | Money | Finance | Loans | Banking | Stocks | Bullion | Gold | HiTech | Style | Fashion | WebHosting | Video | Movie | Reviews | Jokes | Bollywood | Tollywood | Kollywood | Health | Insurance | India | Games | College | News | Book | Career | Gossip | Camera | Baby | Politics | History | Music | Recipes | Colors | Yoga | Medical | Doctor | Software | Digital | Electronics | Mobile | Parenting | Pregnancy | Radio | Forex | Cinema | Science | Physics | Chemistry | HelpDesk | Tunes| Actress | Books | Glamour | Live | Cricket | Tennis | Sports | Campus | Mumbai | Pune | Kolkata | Chennai | Hyderabad | New Delhi | कामुकता | kamuk kahaniya | उत्तेजक | मराठी जोक्स | ट्रैनिंग | kali | rani ki | kali | boor | सच | | sexi haveli | sexi haveli ka such | सेक्सी हवेली का सच | मराठी सेक्स स्टोरी | हिंदी | bhut | gandi | कहानियाँ | छातियाँ | sexi kutiya | मस्त राम | chehre ki dekhbhal | khaniya hindi mein | चुटकले | चुटकले व्‍यस्‍कों के लिए | pajami kese banate hain | हवेली का सच | कामसुत्रा kahaniya | मराठी | मादक | कथा | सेक्सी नाईट | chachi | chachiyan | bhabhi | bhabhiyan | bahu | mami | mamiyan | tai | sexi | bua | bahan | maa | bharat | india | japan |funny animal video , funny video clips , extreme video , funny video , youtube funy video , funy cats video , funny stuff , funny commercial , funny games ebaums , hot videos ,Yahoo! Video , Very funy video , Bollywood Video , Free Funny Videos Online , Most funy video ,funny beby,funny man,funy women

No comments:

Raj-Sharma-Stories.com

Raj-Sharma-Stories.com

erotic_art_and_fentency Headline Animator