Wednesday, July 31, 2013

FUN-MAZA-MASTI जवानी की दहलीज-5

FUN-MAZA-MASTI


जवानी की दहलीज-5
उसका बदन अभी भी हिचकोले से खा रहा था और उसका वीर्य हिचकोलों के साथ रिस रहा था। मेरे पेट पर उसका वीर्य हमारे शरीरों को गोंद की तरह जोड़ रहा था। कुछ ही देर में उसका लंड एक फुस्स गुब्बारे की माफ़िक मुरझा गया और भोंपू एक निस्सहाय बच्चे के समान अपना चेहरा मेरे स्तनों में छुपा कर मुझ पर लेटा था। वह बहुत खुश और तृप्त लग रहा था।
मैंने अपनी बाहें उस पर डाल दीं और उसके सिर के बाल सहलाने लगी। वह मेरे स्तनों को पुचपुचा रहा था और उसके हाथ मेरे बदन पर इधर उधर चल रहे थे। हम कुछ देर ऐसे ही लेटे रहे... फिर वह उठा और उसने मेरे होटों को एक बार ज़ोर से पप्पी की और बिस्तर से हट गया। उसका मूसल मुरझा कर लुल्ली बन गया था। भोंपू ने अपने आप को तौलिए में लपेट लिया।
"तो बताओ अब पांव का दर्द कैसा है?" भोंपू ने अचानक पूछा।
"बहुत दर्द है... !" मैंने मसखरी करते हुए जवाब दिया।
"क्या...?" उसने चोंक कर पूछा।
"तुमने कहा था 2-4 दिन में ठीक हो जायेगा... मुझे लगता है ज़्यादा दिन लगेंगे...!!" मैंने शरारत भरे अंदाज़ में कहा।
उसने मुझे बाहों में भर लिया और फिर बाँहों में उठा कर गुसलखाने की तरफ जाने लगा।

"तुम तो बहुत समझदार हो... और प्यारी भी... शायद 5-6 दिनों में तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगी।"
"नहीं... दस-बारह दिन लगेंगे !" कहते हुए मैंने अपना चेहरा उसके सीने में छुपा दिया।
गुसलखाने पहुँच कर उसने मुझे नीचे उतारते हुए कहा "तुम मुझे नहलाओ और मैं तुम्हें !!"
"धत्त... मैं कोई बच्ची थोड़े ही हूँ !"
"इसीलिये तो मज़ा आएगा।" उसने मुझे आलिंगनबद्ध करते हुए मेरे कान में फुसफुसाया।
"चल... हट..." मैंने मना करते हुए रज़ामंदी जताई।
"पहले मैं तुम्हें नहलाता हूँ।" कहकर उसने मुझे स्टूल पर बिठा दिया और मुझ पर पानी उड़ेलने लगा। पहले लोटे के पानी से मैं ठण्ड से सिहर उठी... पानी ज़्यादा ठंडा नहीं था फिर भी मेरे गरम बदन पर ठंडा लगा। उसने एक दो और लोटे जल्दी जल्दी डाले और मेरा शरीर पानी के तापमान पर आ गया... और मेरी सिरहन बंद हुई।
"अरे ! तुमने तो मेरे बाल गीले कर दिए।"
"ओह... भई हम तो पानी सिर पर डाल कर ही नहाते हैं।" उसने साबुन लगाते हुए कहा। उसने मेरे पूरे बदन पर खूब अच्छे से साबुन लगाया और झागों के साथ मेरे अंगों के साथ खेलने लगा। वैसे तो उसने मेरे सब हिस्सों को अच्छे से साफ़ किया पर उसका ज़्यादा ध्यान मेरे मम्मों और जाँघों पर था। रह रह कर उसकी उँगली मेरे चूतड़ों के कटाव में जा रही थी और उसकी हथेलियाँ मेरे स्तनों को दबोच रही थीं। वह बड़े मज़े ले रहा था। मुझे भी अच्छा ही लग रहा था।
उसने मेरी योनि पर धीरे से हाथ फिराया क्योंकि वह थोड़ी सूजी हुई सी लग रही थी। फिर योनि के चारों ओर साबुन से सफाई की। फिर भोंपू खड़ा हो गया और मुझे भी खड़ा करके अपने सीने और पेट को मेरी छाती और पेट से रगड़ने लगा।
"मैं साबुन की बचत कर रहा हूँ... तुम्हारे साबुन से ही नहा लूँगा।"
मुझे मज़ा आ रहा था सो मैं कुछ नहीं बोली। वह घूम गया और अपनी पीठ मेरे पेट और छाती पर चलाने लगा।


अब उसने मुझे घुमाया और मेरी पीठ पर अपना सीना और पेट लगा कर ऊपर-नीचे और दायें-बाएं होने लगा। मैंने महसूस किया उसका लिंग फिर से अंगड़ाई लेने लगा था। उसका सुपारा मेरे चूतड़ों के कटाव से मुठभेड़ कर रहा था... धीरे धीरे वह मेरी पीठ में, चूतड़ों के ऊपर, लगने लगा। उसका मुरझाया लिंग लुल्ली से लंड बनने लगा था। उसके हाथ बराबर मेरे स्तनों को मसल रहे थे। उसने घुटनों से झुक कर अपने आप को नीचा किया और अपने तने हुए लंड को मेरे चूतड़ों और जाँघों में घुमाने लगा। मैं अपने बचाव में पलट गई और वह सीधा हो गया... पर मैं तो जैसे आसमान से गिरी और खजूर में अटकी... अब उसका लंड मेरी नाभि को सलाम कर रहा था | उसने फिर से अपने आप को नीचे झुकाया और उसका सुपारा मेरी योनि ढूँढने लगा।
"ये क्या कर रहे हो ?" मैंने पूछा।
"कुछ नहीं" कहकर वह सीधा खड़ा हो गया और मुझे नहलाने में लग गया। उसके लंड का तनाव जाता रहा और उसने मेरे ऊपर पानी डालते हुए मेरा स्नान पूरा किया।
अब मेरी बारी थी सो मैंने उसे स्टूल पर बिठाया और उस पर लोटे से पानी डालने लगी। वह भी शुरू में मेरी तरह कंपकंपाया पर फिर शांत हो गया। मैंने उसके सिर से शुरू होते हुए उसको साबुन लगाया और उसके ऊपरी बदन को रगड़ कर साफ़ करने लगी। वह अच्छे बच्चे की तरह बैठा रहा। मैंने उसे घुमा कर उसकी पीठ पर भी साबुन लगा कर रगड़ा। अब उसको खड़ा होने के लिए कहा और पीछे से उसके चूतड़ों पर साबुन लगा कर छोड़ दिया।


"ये क्या... यहाँ नहीं रगड़ोगी?" उसने शिकायत की।
तो मैंने उसके चूतड़ों को भी रगड़ दिया। उसने अपनी टांगें चौड़ी कर दीं और थोड़ा झुक गया मानो मेरे हाथों को उनके कटाव में डालने का न्योता दे रहा हो। मैंने अपने हाथ उसकी पीठ पर चलाने शुरू किये।
"तुम बहुत गन्दी हो !"
"क्यों? मैंने क्या किया?" मैंने मासूमियत में पूछा।
"क्या किया नहीं... ये पूछो क्या नहीं किया।"
"क्या नहीं किया?"
"अब भोली मत बनो।" उसने अपने कूल्हों से मुझे पीछे धकेलते हुए कहा।
मैं हँसने लगी। मुझे पता था वह क्यों निराश हुआ था। अब मैं अपने घुटनों पर नीचे बैठ गई और उसकी टांगों और पिंडलियों पर साबुन लगाने लगी। पीछे अच्छे से साबुन लगाने के बाद मैंने उसे अपनी तरफ घुमाया। उसका लिंग मेरे मुँह के बिल्कुल सामने था और उसमें जान आने सी लग रही थी। मेरे देखते देखते वह उठने लगा और उसमें तनाव आने लगा। उसकी अनदेखी करते हुए मैं उसके पांव और टांगों पर साबुन लगाने लगी।


वह जानबूझ कर एक छोटा कदम आगे लेकर अपने आप को मेरे नज़दीक ऐसे ले आया कि उसका लिंग मेरे चेहरे को छूने लगा। मैं पीछे हो गई। वह थोड़ा और आगे आ गया। मैं और पीछे हुई तो मेरी पीठ दीवार से लग गई। वह और आगे आ गया।
"यह क्या कर रहे हो?" मैंने झुंझला कर पूछा।
"इसको भी तो नहाना है।" वह अपने लंड को मेरे मुँह से सटाते हुए बोला।
"तो मेरे मुँह में क्यों डाल रहे हो?" मैंने उसे धक्का देते हुए पीछे किया।
"पहले इसे नहलाओ, फिर बताता हूँ।"
मैंने उसके लंड को हाथ में लेकर उस पर साबुन लगाया और जल्दी से पानी से धो दिया।
"बड़ी जल्दी में हो... अच्छा सुनो... तुमने कभी इसको पुच्ची की है?"
"किसको?"
"मेरे पप्पू को !"
"पप्पू?"
"तुम इसको क्या बुलाती हो?" उसने अपने लंड को मेरे मुँह की तरफ करते हुए कहा।
"छी ! इसको दूर करो..." मैंने नाक सिकोड़ते हुए कहा।
"इसमें छी की क्या बात है?... यह भी तो शरीर का एक हिस्सा है... अब तो इसे तुमने नहला भी दिया है।" उसने तर्क किया।
"छी... इसको पुच्ची थोड़े ही करते हैं... गंदे !"
"करते हैं... खैर... अभी तुम भोली हो... इसीलिए तुम्हें सब भोली कहते हैं।"
मैं चुप रही।
"अब मैं ही तुम्हें सब कुछ सिखाऊँगा।"
मैंने उसका स्नान पूरा किया और हमने एक दूसरे को तौलिए से पौंछा और बाहर आ गए।
"मुझे तो मज़ा आ गया... अब तुम ही मुझे नहलाया करो।" भोंपू ने आँख मारते हुए कहा।
"गंदे !"
"तुम्हें मज़ा नहीं आया?"
मैंने नज़रें नीची कर लीं।


"चलो एक कप चाय हो जाये !" उसने सुझाव दिया।
"अब तो खाने का समय हो रहा है... गुंटू शीलू आते ही होंगे।" मैंने राय दी।
"हाँ, यह बात भी है... चलो उनको आने दो... खाना ही खायेंगे... मैं थोड़ा बाहर हो कर आता हूँ।" कहते हुए भोंपू बाहर चला गया।
मुझे यह ठीक लगा। शीलू और गुंटू घर आयें, उस समय भोंपू घर में ना ही हो तो अच्छा है। शायद भोंपू भी इसी ख्याल से बाहर चला गया था।

मैं खाना गरम करने में लग गई। भोंपू के साथ बिताये पल मेरे दिमाग में घूम रहे थे।
खाना खाने के बाद शीलू और गुंटू अपने स्कूल का काम करने में लग गए। भोंपू ने रात के खाने का बंदोबस्त कर ही दिया था सो वह कल आने का वादा करके जाने लगा। उसने इशारे इशारे में मुझे आगाह किया कि मुझे थोड़ा लंगड़ा कर और करहा कर चलना चाहिए। शीलू और गुंटू को लगना चाहिए कि अभी चोट ठीक नहीं हुई है। मैंने इस हिदायत को एकदम अमल में लाना शुरू किया और लंगड़ा कर चलने लगी।
मैंने खाने के बर्तन ठीक से लगाये और कुछ देर बिस्तर पर लेट गई।
"दीदी, हम बाहर खेलने जाएँ?" शीलू की आवाज़ ने मेरी नींद तोड़ी।
"स्कूल का काम कर लिया?"
"हाँ !"
"दोनों ने?"
"हाँ दीदी... कर लिया।" गुंटू बोला।

"ठीक है... जाओ... अँधेरा होने से पहले आ जाना !"
मैं फिर से लेट गई। खाना बनाना नहीं था... सो मेरे पास फुरसत थी। मेरी आँखों के सामने भोंपू का खून से सना लिंग नाच रहा था। मैंने अपनी उंगली योनि पर रख कर यकीन किया कि कोई चोट या दर्द तो नहीं है। मुझे डर था कि ज़रूर मेरी योनि चिर गई होगी। पर हाथ लगाने से ऐसा नहीं लगा। बस थोड़ी सूजन और संवेदना का अहसास हुआ। मुझे राहत मिली।
इतने में ही दरवाज़े के खटखटाने की आवाज़ ने मुझे चौंका दिया।
'इस समय कौन हो सकता है?' सोचते हुए मैंने दरवाज़ा खोला।
"अरे आप?!"
सामने नितेश को देखकर मैं सकते में थी। वह मुस्कुरा रहा था... उसने सफ़ेद टी-शर्ट और निकर पहन रखी थी और उसके हाथ में बैडमिंटन का रैकिट था। उसका बदन पसीने में था... लगता था खेलने के बाद वह सीधा आ रहा था।
"क्यों? चौंक गई?"
"जी !" मैंने नीची नज़रों से कहा।
"अंदर आने को नहीं कहोगी?"
"ओह... माफ कीजिये... अंदर आइये !"
मैं रास्ते से हटी और उन्हें कुर्सी की तरफ इशारा करके दौड़ कर पानी लेने चली गई। मैंने एक धुले हुए ग्लास को एक बार और अच्छे से धोया और फिर मटके से पानी डालकर नितेश को दे दिया।
"एक ग्लास और मिलेगा?" उसने गटक से पानी पीकर कहा।
"जी !" कहते हुए मैंने ग्लास उनके हाथ से लिया और जाने लगी तो नितेश ने मेरा हाथ थाम लिया।
"घर में अकेली हो?"
"जी... शीलू, गुंटू खेलने गए हैं..."
"मुझे मालूम है... मैं उनके जाने का ही इंतज़ार कर रहा था..."
"जी?" मेरे मुँह से निकला।
"मैं तुमसे अकेले में मिलना चाहता था।"
मैंने कुछ नहीं कहा पर पहली बार नज़र ऊपर करके नितेश की आँखों में आँखें डाल कर देखा।
"तुम बहुत अच्छी लगती हो !" नितेश ने मेरा हाथ और ज़ोर से पकड़ते हुए कहा।
"जी, मैं पानी लेकर आई !" कहते हुए मैं अपना हाथ छुड़ा कर रसोई में लंगडाती हुई भागी। मेरी सांस तेज़ हो गई थी और मेरे माथे पर पसीना आ गया था।
नितेश मेरे पीछे पीछे रसोई में आया और पूछने लगा," यः तुम्हारे पांव को क्या हुआ?"
"गिर गई थी।" मैंने दबी आवाज़ में कहा।

"मोच आई है?"
"जी !"
"तो भाग क्यों रही हो?"
मेरा पास इसका कोई जवाब नहीं था।
"मेरी तरफ देखो !" नितेश ने एक बार फिर मेरा हाथ पकड़ा और कहा।
मैंने नज़रें नीची ही रखीं।
"देखो, शरमाओ मत... ऊपर देखो !" मैंने धीरे धीरे ऊपर देखा। उसके चहरे पर मुस्कराहट थी।
"तुम इसीलिए मुझे बहुत अच्छी लगती हो... तुम शर्मीली हो..."
मेरी आँखें नीची हो गईं।
"देखो... फिर शरमा गई... आजकल शर्मीली लड़कियाँ कहाँ मिलती हैं... मेरे कॉलेज में देखो तो पता चलेगा... लड़के ही शरमा जाएँ !"
मैं क्या कहती... चुप रही... और उसको पानी का ग्लास दे दिया। उसने एक लंबी सांस ली और एक ही सांस में पी गया
"आह... मज़ा आ गया।" मैंने नितेश की तरफ प्रश्नवाचक निगाह उठाई।
"तुम्हारे हाथ का पानी पीकर !!" वह बोला।
वैसे मुझे नितेश अच्छा लगता था पर मुझे उसकी साथ दोस्ती या कोई रिश्ता बनाने में रूचि नहीं थी। मेरे और उसके बीच इतना फर्क था कि दूर ही रहना बेहतर था। मुझे माँ की वह बात याद थी कि दोस्ती और रिश्ता हमेशा बराबर वालों के साथ ही चलता है। मेरी परख में नितेश कोई बिगड़ा हुआ अय्याश लड़का नहीं था और ना ही उसके बर्ताव में घमण्ड की बू आती थी... बल्कि वह तो मुझे एक सामान्य और अच्छा लड़का लगता था। ऐसे में उसका इस तरह मेरी तारीफ करना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था परन्तु हमारे सामाजिक फासले की खाई पाटना मेरे लिए दुर्लभ था। मेरे मन में कश्मकश चल रही थी...
"क्या सोच रही हो? कि मैं एक अमीर लड़का हूँ और तुम्हारे साथ दोस्ती नहीं कर सकता?"
"जी नहीं... सोच रही हूँ कि मैं एक गरीब लड़की हूँ और आपके साथ कैसे दोस्ती कर सकती हूँ?"
"तुम मेरी दोस्त हो गई तो गरीब कहाँ रही?... देखो, मैं उनमें से नहीं जो तुम्हारी जवानी और देह का इस्तेमाल करना चाहते हैं..."
"मैं जानती हूँ आप वैसे नहीं हैं... फिर भी... कहाँ आप और कहाँ मैं?" कहते कहते मेरी आँखों में आंसू आ गए और मैंने अपना चेहरा अपने हाथों में छिपा लिया।
kramashah.........................





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