FUN-MAZA-MASTI
आज सुनीता अपनी एक सहेली को अपने घर लेकर आई थी अपने छोटे भैया को दिए गए
वादे के अनुसार। उसे अपने भैया के लिए एक अछूती और क्वांरी कन्या चाहिए थी
जिसकी सील सबसे पहले उसके भैया को ही तोड़नी थी। रमा बिलकुल ऐसी ही लड़की थी,
एक दम अछूती कच्ची कली! सुनीता की क्लास में वह नयी-नयी आई थी एक दो-दिन
में ही रमा की दोस्ती सुनीता से हो गयी। सुनीता ने शीघ्र ही परख लिया कि
रमा के शारीरिक सम्बन्ध अभी तक किसी भी लड़के से नहीं बन पाए थे। लेकिन उम्र
के हिसाब से वह सुनीता की बातों में दिलचस्पी खूब लेती थी। सुनीता ने जब
भलीभांति जान लिया कि रमा सुनीता के जाल में आसानी से फंस जायेगी तो वह आज
उसे अपने घर ले आई। रात का डिनर दोनों ने एक साथ ही लिया और फिर रात के समय
दोनों बातों में मशगूल हो गयीं। रमा ने बातों ही बातों में सुनीता से
पूछा, "सुनीता तुम्हारी शादी होने वाली है?" "हाँ रमा, यार मुझे तो बहुत
डर लग रहा है।" "क्यों?" रमा के पूछने पर सुनीता बोली, "यार, सुहागरातके
वारे में तो मुझे कोई जानकारी है ही नहीं, इस वारे में किससे राय लूं
...मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।" रमा बोली, "इसमें डरने की क्या बात
है? मैं तुझे 'सुहागरात' नामक एक किताब लाकर दूँगी जिसे पढ़ कर तू सब कुछ
समझ जायेगी।" सुनीता बोली, "यार रमा, ये बात नहीं है। मैंने भी सेक्स की
कितनी ही मैगज़ीन पढ़ीं हैं। सुहागरात को पति-पत्नी की बीच क्या होता है, यह
भी मैं अच्छी तरह से जानती हूँ। डर तो इस बात का है कि पति के मोटे-तगड़े
लिंग को मैं झेलूंगी कैसे? मैंने अपनी कई सहेलियों के मुंह सुना है पति का
लिंग बहुत मोटा और लम्बा होता है। जब पति पत्नी की योनि में अपना लिंग
डालता है तो पत्नी की योनि फट जाती है और किसी-किसी पत्नी को तो बहुत ही
तखलीफ़ झेलनी पड़ती है।" "पागल है तू, ऐसा भी कहीं होता होगा कि पत्नी अपने
पति का लिंग न झेल पाए। पति-पत्नी बने ही एक-दूसरे के लिए हैं।" सुनीता
बोली, "अच्छा तू बता, तूने कभी किसी लड़के से अपनी योनि में लिंग डलवाया
है?" "चल पागल, शादी से पहले मैं क्यों डलवाने लगी।" "वैसे तेरी इच्छा कभी
हुयी है किसी से डलवाने की?" रमा कुछ देर की चुप्पी के बाद बोली, "हुई तो
कई वार है, वह भी जब मैं सेक्स की मैगज़ीन पढ़ती हूँ।" सुनीता ने पूछा,"तूने
कभी ब्लू-फिल्म देखी है?" रमा बोली, "नहीं तो ...पर कहते हैं कि उसमे
लड़की-लड़के सेक्स का खुलकर आनंद लेते हैं।" सुनीता ने रमा के कान में कहा ,
"मुझे अपने भैया की किताबों के बीच रखी हुयी एक ब्लू-फिल्म की सीडी मिली
है। जब भैया सो जायेंगे तो हम-लोग देखेंगे। शायद वह सीडी ब्लू-फिल्म की ही
है, वर्ना वे इसे इतना छुपाकर क्यों रखते।" "यार कल का पेपर खराब हो जाएगा।
मैं तो घर पर कहकर आई थी कि सुनीता के घर पढ़ने जा रही हूं।" रमा ने
ब्लू-फिल्म कभी देखी नहीं थी अत: वह सुनीता के अधिक जिद करने पर राज़ी हो
गई। इसी बीच सुनीता जाकर अजय से कह आई कि वह रमा को ब्लू-फिल्म दिखाने जा
रही है, दरवाज़ा भेड़ देगी। वह वह ठीक बारह बजे उनके कमरे में पहुँच जाए। 10
बजे के करीब दोनों सहेलियां टेबल पर अपनी-अपनी किताबें खोल कर बैठ गयीं और
सुनीता ने सीडी प्लेयर में डाल कर टीवी ऑन कर दिया। टीवी की आवाज बंद कर दी
गयी थी। सीडी शुरू हुई और उसने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। पहले ही सीन
में रमा का दिल जोरों से धड़कने लगा। एक अंग्रेज युवक अपनी गर्ल-फ्रेंड की
ब्रा खोल कर इसके स्तनों को मसल रहा था। फिर उसने उन्हें चूंसना शुरू कर
दिया। धीरे-धीरे युवक के हाथ लड़की की पेन्टी खोलने लगे और उसे उतार कर उसने
एक ओर फैंक दिया और फिर युवक ने झटपट अपने भी सारे कपड़े उतार डाले और एक
दम नंगा होकर अपना लिंग सहलाने लगा। लडकी पहले से ही उसके आगे नंगी पसरी
पड़ी थी। युवक ने लड़की की दोनों जाँघों को फैला कर उसकी योनि चाटनी शुरू कर
दी। और कुछ ही देर में उसने अपना मोटा सा लिंग योनि के छिद्र पर टिका कर एक
जोरदार धक्का मारा जिससे समूंचा लिंग लड़की की योनि में जा घुसा। रमा हैरत
भरी नजरों से देखे जा रही थी। सुनीता बोली, "छि: कितना गन्दा है ये आदमी,
कैसे उसकी योनि को चाट रहा था। रमा ने ओठों पर उँगली रख कर उसे खामोश रहने
का संकेत किया और अगले सीन को ध्यान से देखने लगी। रमा बीच-बीच में बड़-बड़
किये जा रही थी। रमा बोली, "यार सुनीता तू बोल मत, चुपचाप देखती रह। मुझे
तो डर लग रहा है कि कोई हमें यह सब देखते हुए पकड़ न ले।" अगला सीन आया
जिसमे एक नंगी लड़की घोड़े का लिंग सहला-सहला कर उसे खड़ा करने का प्रयास कर
रही थी। कुछ ही देर में घोड़े का पूरा लिंग तन कर बाहर लिकल आया। लड़की ने
धेरे-धीरे उसके लिंग को अपनी योनि में डलवाना शुरू किया। एक ही वार में
घोड़े का आधा लिंग उस लड़की की योनि में जा घुसा। यह देखकर रमा चकित रह गयी
और बोली, "यार सुनीता, तू तो पति का लिंग झेलने में डर रही थी, ये लड़की तो
घोड़े का झेल गयी।" सुनीता भी खेली-खाई लड़की थी। वह तो रमा को हिला कर
देखना चाहती थी कि वह कितने पानी में है। रमा बोली, "यार सुनीता, मुझे तो
तेरे भैया का डर लग रहा है क़ि वह कहीं आ न जाएँ। तू टीवी बंद कर दे, चल
वैसे ही बात हैं।" सुनीता बोली, "चल टीवी बंद कर देते हैं। अच्छा एक बात
बता, तेरी चड्डी गीली हुयी या नहीं?" रमा बोली, "हाँ यार, कुछ गीली तो हुई
है।" "देखूं तो, सुनीता ने ऊपर से ही हाथ लगा कर टटोला और बोली हाँ यार सच
में तेरी गीली हो गयी है। अन्दर देखूं ..." ऐसा कहते के साथ ही सुनीता ने
रमा की चड्डी के भीतर हाथ डालकर उसकी योनि पर हाथ फिराया और एक उँगली रमा
की योनि के अन्दर भी डाल दी। रमा उछल पड़ी। सुनीता बोली, "चल यार, सुहागरात
का खेल खेलते हैं। आज की ये रात भी बार-बार नहीं आएगी।" रमा की इच्छा भी
जागृत हो चुकी थी, बोली, "दूल्हा कौन बनेगा?" सुनीता बोली, "चल दूल्हा मैं
बन जाऊंगी, तू दुल्हिन बन जा।" सुनीता ने झपट कर रमा को अपनी बाहों में भर
लिया और उसके होटों पर अपने होंट टिका दिए। उसकी ब्रा के हुक खोल कर रमा की
छातियों को नंगा कर दिया और धीरे-धीरे उन्हें मसलने लगी ठीक एक अनुभवी पति
की भांति। धीरे-धीरे छातियों से वह नीचे की ओर उतरती हुई रमा की सलवार के
नाड़े को खोलने लगी और बोली, "मेरी रानी, असली माल तो इसमें छिपा हुआ है।
इसे भी तो देंखें, क्या है। ऐसा कह कर सुनीता ने रमा की सलवार भी खोल डाली
और उसे उतार कर एक तरफ रख दी। अब सुनीता के हाथ रमा की योनि से खेलने लगे
जो काफी गीली हो चुकी थी। सुनीता ने उसकी योनि में एक उँगली डाल कर उसे
अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया। रमा की सिसकारियां फूट पड़ी। वह बोली,
"सुनीता यार जोर-जोर से अन्दर-बाहर कर, बड़ा अच्छा लग रहा है। " "अभी करती
हूँ, पहले मैं भी तो अपने कपड़े उतात दूं। अब कोई खतरा नहीं है, भैया कबके
सो गए होंगे। तू भी अपनी कुर्ती उतार दे।" फिर दोनों ने अपने सभी कपड़े उतार
दिए और एक-दूजे से बुरी तरह चिपट गयीं। तेज रौशनी का बल्व बुझाकर
नाईट-बल्व जला दिया गया था मगर फिर भी दोनों के नंगे बदन का एक-एक
पुर्जा स्पष्ट दिखाई दे रहा था। सुनीता बोली, "यार मेरी भी योनि को जरा
सहला दे। चल ऐसा करते हैं कि एक-दूसरे की योनि को चाटते है।" रमा तुरंत मान
गयी और उसने सुनीता की छातियों को रगड़ना और उसकी योनि को चाटना शुरू कर
दिया। सुनीता ने रमा के योनि के बालों से खेलते हुए कहा, "यार रमा, तेरी
योनि पर तो काफी घने बाल हैं। इन्हें काटती क्यों नहीं है?" रमा बोली, कई
बार तो कैंची से काट चुकी हूँ, ये फिर से बड़े हो जाते हैं।" काफी देर की
चूमाचाटी के बाद रमा और सुनीता दोनों ही बुरी तरह से गर्म हो गईं। सुनीता
बोली, "यार, मेरा तो बहुत बुरा हाल है, पूरा बदन जल रहा है वासना की आग
में। हाय कोई हमारा भी बॉय-फ्रेंड होता पास तो जमकर अन्दर करवा लेते।" रमा
बोली, "बात तो तू सच ही कह रही है। इस वक्त मेरा भी बुरा हाल है। मेरी
योनि तो लिंग डलवाने को फड़-फड़ा रही है।" सुनीता बोली, "रमा एक बात बता, जरा
सोच अगर भैया आ जाएँ और कहें आज मैं तुम दोनों की लूँगा। तो तू क्या
करे?" "क्या करूंगी, चुपचाप दे दूँगी उन्हें। और तू क्या करेगी?" रमा ने
पूछा। सुनीता बोली, "जब तू दे देगी तो मुझे भी देनी ही पड़ेगी।" रमा हंसी,
बोली, "चल पगली, भैया को दे देगी?" सुनीता बोली, "तो क्या हुआ, मेरे भैया
ही तो हैं कोई गैर थोड़े ही हैं।" रमा ने हैरत से पूछा, "तू अपने सगे भाई का
लिंग ले जायेगी अपनी योनि में? राम-राम ...." सुनीता बोली, "इसमें तुझे
आश्चर्य क्यों हो रहा है? मेरी कितनी ही सहेलियां ऐसी हैं जो अपने सगे
भाइयों से डलवाती हैं। चल तुझे मैं अपनी सहेली 'कम्मो' की कहानी सुनाती
हूँ। तीन साल पहले मेरी उससे दोस्ती हुयी थी। एक दिन की बात है, कम्मो का
बड़ा भाई अपने कमरे में पढ़ रहा था। इस समय घर पर कोई नहीं था। सब लोग किसी
रिश्तेदार की शादी में गए हुए थे। कम्मो अपने भाई के कमरे में गयी और पूछने
लगी, "भैया, ये अनचाहे बाल क्या होते हैं? इस पेपर में लिखा है-अनचाहे
बालों से छुटकारा पायें।" उसका भैया बोला, "अनचाहे बाल वह होते हैं जो
गुप्त स्थानों पर उग आते हैं।" "भैया, गुप्त-स्थान क्या होते हैं?" भैया
झुंझलाते हुए बोला, "अब तुझे यह भी बताऊँ ..." "हां, बताओ भैया ये
गुप्त-स्थान क्या होते हैं?" "देख कम्मो, मुझे पढने दे। मेरा मूड खराब मत
कर।" "बता दो न भैया ..." कम्मो का भाई खीज उठा और बोला, "इधर आ, बताता
हूँ।" कम्मो जब पास आई तो भैया बोला, "जब लड़के-लड़की जवान हो जाते हैं, तो
उनके गुप्तांगों पर बाल उग आते हैं। अब ये न कहना कि गुप्तांग क्या होता है
भैया।" कम्मो बोली, "भैया, मुझे सच में नहीं पता कि गुप्तांग क्या होता
है।" भैया क्रोध से भर कर बोला, "पास आ तुझे बताता हूं कि गुप्तांग क्या
होता है।" कम्मो जब पास आई तो भैया ने बताया कि जिन-जिन अंगों से आदमी
टट्टी-पेशाब करता है उसे गुप्ताँग कहते हैं। जैसे तेरी पेशाब की जगह तेरा
गुप्तांग है, और मेरी पेशाब की जगह मेरा गुप्तांग है। इनके अलाबा भी ये बाल
बगलों में भी उग आते हैं। भैया ने कम्मो से कहा, "तेरी बगलों में बाल
होंगे, आ इधर आ देखूं।" भैया ने बगल में हाथ डाल कर देखा और बोला, "हाँ हैं
तो, इसी तरह से तेरी पेशाब की जगह पर भी बाल होने चाहिए ..." ऐसा कहकर
भैया ने कम्मो की सलवार में हाथ डाल दिया और बोला, "वहां भी बहुत बड़े-बड़े
बाल हैं, चल इन्हें साफ़ कर दूं। तू ऐसा कर पलंग पर जा कर लेट जा, मैं
दरवाज़ा बंद करके आता हूँ।" भैया जब दरवाज़ा बंद करके लौटा तो कम्मो
ख़ुशी-ख़ुशी पलंग पर लेती हुई थी। भैया ने आकर उसकी सलवार खोली और काफी देर
तक उसकी कुआंरी योनि को एक-टक निहारता रहा। बोला, "कम्मो, तेरी इस पर तो
काफी बड़े-बड़े बाल उग आये हैं। आज इन्हें साफ़ करके ही दम लूँगा।" भैया दौड़
कर अपना शेविंग रेज़र ले आया और उसने थोड़ी ही देर में सारे बाल साफ़ कर दिए।
योनि की सफाई करने के बाद वह बोला, "चल अपनी कुर्ती भी उतर दे आज तेरी
बगलों के बाल भी साफ़ कर दूं।" कम्मो ने झट-पट कुर्ती भी उतार दी। अब कम्मो
का गोरा, चिकना संगमरमर का सा नंगा बदन उसके भैया के सामने था। ऐसे में तो
बड़े-बड़े ऋषि-मुनि तक का मन डोल जाता है भला इंसान बेचारे की तो औकात ही
क्या है। कम्मो के निर्वसन शरीर पर उसके भैया का दिल भी डोल गया। वह बोल,
"कम्मो, तू मेरे गुप्तांग के बाल नहीं देखना चाहेगी?" कम्मो बोली,
"हाँ-हाँ, भैया दिखाओ अपने बाल भी ...." तभी उसके भैया ने अपना पायजामा खोल
कर अपना लिंग बाहर निकाला और बोला, "देख मेरे गुप्तांग पर भी कितने बाल
हैं।" कम्मो ने सलाह दी की वे उन्हें भी साफ़ कर दें। भैया ने झट-पट अपने
लिंग के ऊपर के बाल भी साफ़ कर दिए। और बोला, "कम्मो, एक काम करते हैं, तू
मेरा लिंग सहला और मैं तेरी ये जगह सहलाता हूँ। इससे हम-दोनों को ही अच्छा
लगेगा।" कम्मो, भैया की बात पर राज़ी हो गयी। उसने भैया के लिंग को मुट्ठी
में भर कर सहलाना शुरु कर दिया और भैया कभी कम्मो की योनि पर हाथ फेरता तो
कभी उसकी चूचियों को सहलाता और उन्हें मुंह में डाल कर चूंसता। कम्मो को
इसमें बड़ा ही मज़ा आ रहा था। उसकी योनि भैया की उँगली की रगड़ से बुरी तरह से
फड़कने लगी थी। भैया ने उँगली की रफ़्तार तेज कर दी तो कम्मो मारे मज़े के
सीत्कार कर उठी। बोली, "भैया, एक बार को उँगली से मोटी कोई चीज़ मेरी पेशाब
वाली जगह में घुसाकर देखो। मुझे बड़ा मज़ा आ रहा है।" "भैया ने कहा,
"सीधा-सीधा यह क्यों नहीं कहती कि अपना ये मोटा लिंग डाल दूं तेरी इस जगह
में। मगर, मेरी प्यारी कम्मो, अगर तेरी ये जगह फट गयी तो मेरे लिए परेशानी
बढ़ जायेगी।" भैया जानता था कि कम्मो अभी पूरे सोलह वर्ष की भी नहीं हुई थी।
अगर वह उसके लिंग की चोट बर्दाश्त न कर पाई तो उसकी योनि फट भी सकती है।
इसलिए बहुत सोच-समझ कर उसने कम्मो की योनि में अपना लिंग डालने की हिम्मत
जुटाई। इधर कम्मो लिंग अन्दर ले जाने को तड़प रही थी। इसके शरीर से आग की
चिंगारियां सी फुट रहीं थीं। भैया ने डरते-डरते कम्मो की योनि पर लिंग का
अग्र-भाग ही टिकाया और उसे धीरे-धीरे अन्दर सरकाने लगा। योनि बहुत चुस्त
थी। लिंग का अन्दर घुस पाना असंभव सा प्रतीत हो रहा था। इस वार हिम्मत करके
भैया ने आधे से ज्यादा लिंग कम्मो की योनि के अन्दर सरका दिया और कुछ देर
यों ही कम्मो के ऊपर टिका रहा। सारा वज़न उसने अपनी हथेलियों पर उठा रखा था।
इससे कम्मो को कोई खास तखलीफ़ भी नहीं हुई। भैया ने कम्मो से कहा, "कम्मो,
अब मैं अपना पूरा लिंग तेरी योनि में घुसेड़ने जा रहा हूँ, देख अगर न झेल
पाए तो बता दे।" "कम्मो बोली, "झेल लूंगी भैया, डालदो पूरा अन्दर ..."
भैया ने उसकी स्वीकृति पाकर एक जोर का धक्का योनि में मारा और धचाक से
समूंचा लिंग कम्मो की योनि में समां गया। दर्द के मारे कम्मो की चीख निकल
पडी, योनि फट गयी और उसकी योनि से खून बह चला। इसके बाद तो भैया पूरी
रफ़्तार पर आ गया। धक्के पे धक्का, फिर जो उसकी पिराई हुई तो कम्मो को भी
मजा आने लगा और वह चिल्लाने लगी, "भैया, जोर-जोर से धक्के मारो ...आह: मुझे
तो आज बड़ा ही मज़ा आ रहा है ....भैया ...आज मुझे पूरा निचोड़ कर रख दो भैया
..प्लीज़ ...मारो ...धक्के जोरों से मारो ...." भैया ने भी गाड़ी फुल स्पीड
पर छोड़ दी जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। लगभग पूरे एक घंटे तक कम्मो
की योनि में घर्षण चलता रहा और दोनों लोग जम कर जवानी के मज़े लेते रहे।
बहुत देर की पेलापेली के बाद भैया झड़ गया और कम्मो के ऊपर ही लुढ़क गया। उस
रात कम्मो बताती है कि भैया ने उसकी योनि तीन-चार वार मारी और उस दिन से
आज तक कम्मो की लेता ही चला आ रहा है। कम्मो बताती है कि वह अपने भैया के
अलाबा अन्य कई लड़कों से भी डलवा चुकी है पर जो मज़ा उसे भैया के साथ आता है
वो मज़ा किसी के साथ नहीं आता।
सारी कहानी सुनकर रमा बोली, "इसका मतलब ये हुआ कि तू भी अपने भाई से अपनी योनि में उसका लिंग डलवा सकती है?" "हाँ, अगर जरूरत पड़ी तो " इधर कम्मो की बातों को सुनकर तो रमा और भी उतावली हो उठी और बोली, "सुनीता, अब मुझसे कतई बर्दाश्त नहीं हो रहा। प्लीज़ अब कुछ भी कर, पर मेरी आग को ठंडी कर दे। में कामोन्माद से भुनी जा रही हूँ। ऐसा करते हैं, अजय भैया को बुला लाती हूँ। तेरा इलाज़ तो सिर्फ उन्हीं के पास है।" इसी बीच कमरे का दरवाज़ा एक ही झटके से खुल गया। अजय ने अन्दर आकर उन दोनों से कहा, "कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है। मैं अब आ गया हूँ ..अब सब ठीक कर दूंगा। सुन्नो तुझे भी और तेरी सहेली को भी ... आओ दोनों अब मुझे देने के लिए तैयार हो जाओ। बताओ, पहले किसकी आग ठंडी करूँ? सुन्नो तेरी या तेरी इस सहेली की?" सुनीता बोली, "भैया, पहले आप रमा की आग ठंडी कर दो। मेरी तो बाद में भी हो जायेगी। "क्या नाम है इसका? " "रमा।" "ओह रमा, आओ रमा रानी तुमसे ही शुरुआत करें।"
रमा डरी-डरी सी अजय की ओर बढ़ने लगी। अजय ने लपक कर उसकी बांह पकड़ कर अपनी ओर खीच लिया और उसे बांहों में कस कर अनेक चुम्बन उसके सारे बदन पर जड़ दिए। फिर अजय ने उसे गोद में उठाकर पलंग पर ला पटका और सुनीता से बोला, "सुन्नो, तू भी आजा मेरी वांयी तरफ .....आज तुम दोनों की मैं एक साथ लूँगा। सुन्नो, तू मेरा लिंग मुंह में लेकर चूंस तब तक मैं इसकी चूंसता हूँ।" रमा बोली, "भैया, अब ये चूंसा-चांसी बंद करके अपना ये मोटा लिंग मेरी योनि में डालकर इसे फाड़ डालो ....मुझ पर कामोन्माद बुरी तरह से छाया हुआ है ....भैया ..प्लीज़ ... डाल दो इसे मेरी सुलगती हुई इस भट्टी में ..." अजय ने अपना तन-तनाया लिंग रमा की योनि पर टिका कर एक हल्का सा धक्का लगाया जिससे उसका लिंग रास्ते की सारी बाधाओं को चीरता हुआ योनि की जड़ तक पूरा का पूरा समा गया। रमा की एक दबी-दबी सी चीख़ कमरे में गूँज कर रह गई। कुछ देर की तखलीफ़ के बाद रमा को भी आनंद आने लगा और वह कुल्हे हिला-हिला कर उसका पूरा साथ देने लगी। उसके मुंह से विचित्र सी आवाजें निकलने लगीं थी। इसका अर्थ सुनीता और अजय दोनों ही भली भांति जानते थे। अजय ने आज रमा की इस तरफ से मारी थी की वह निहाल हो गयी। इसके बाद बची-खुची मौज-मस्ती आई बेचारी सुनीता के हिस्से में। उसके साथ कुछ देर तक ही अजय टिक पाया और फिर तीनो थके-मांदे एक-दूसरे के साथ ही नंगे पड़ कर सो गए।
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बदलते रिश्ते (भाग - 6)
सारी कहानी सुनकर रमा बोली, "इसका मतलब ये हुआ कि तू भी अपने भाई से अपनी योनि में उसका लिंग डलवा सकती है?" "हाँ, अगर जरूरत पड़ी तो " इधर कम्मो की बातों को सुनकर तो रमा और भी उतावली हो उठी और बोली, "सुनीता, अब मुझसे कतई बर्दाश्त नहीं हो रहा। प्लीज़ अब कुछ भी कर, पर मेरी आग को ठंडी कर दे। में कामोन्माद से भुनी जा रही हूँ। ऐसा करते हैं, अजय भैया को बुला लाती हूँ। तेरा इलाज़ तो सिर्फ उन्हीं के पास है।" इसी बीच कमरे का दरवाज़ा एक ही झटके से खुल गया। अजय ने अन्दर आकर उन दोनों से कहा, "कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है। मैं अब आ गया हूँ ..अब सब ठीक कर दूंगा। सुन्नो तुझे भी और तेरी सहेली को भी ... आओ दोनों अब मुझे देने के लिए तैयार हो जाओ। बताओ, पहले किसकी आग ठंडी करूँ? सुन्नो तेरी या तेरी इस सहेली की?" सुनीता बोली, "भैया, पहले आप रमा की आग ठंडी कर दो। मेरी तो बाद में भी हो जायेगी। "क्या नाम है इसका? " "रमा।" "ओह रमा, आओ रमा रानी तुमसे ही शुरुआत करें।"
रमा डरी-डरी सी अजय की ओर बढ़ने लगी। अजय ने लपक कर उसकी बांह पकड़ कर अपनी ओर खीच लिया और उसे बांहों में कस कर अनेक चुम्बन उसके सारे बदन पर जड़ दिए। फिर अजय ने उसे गोद में उठाकर पलंग पर ला पटका और सुनीता से बोला, "सुन्नो, तू भी आजा मेरी वांयी तरफ .....आज तुम दोनों की मैं एक साथ लूँगा। सुन्नो, तू मेरा लिंग मुंह में लेकर चूंस तब तक मैं इसकी चूंसता हूँ।" रमा बोली, "भैया, अब ये चूंसा-चांसी बंद करके अपना ये मोटा लिंग मेरी योनि में डालकर इसे फाड़ डालो ....मुझ पर कामोन्माद बुरी तरह से छाया हुआ है ....भैया ..प्लीज़ ... डाल दो इसे मेरी सुलगती हुई इस भट्टी में ..." अजय ने अपना तन-तनाया लिंग रमा की योनि पर टिका कर एक हल्का सा धक्का लगाया जिससे उसका लिंग रास्ते की सारी बाधाओं को चीरता हुआ योनि की जड़ तक पूरा का पूरा समा गया। रमा की एक दबी-दबी सी चीख़ कमरे में गूँज कर रह गई। कुछ देर की तखलीफ़ के बाद रमा को भी आनंद आने लगा और वह कुल्हे हिला-हिला कर उसका पूरा साथ देने लगी। उसके मुंह से विचित्र सी आवाजें निकलने लगीं थी। इसका अर्थ सुनीता और अजय दोनों ही भली भांति जानते थे। अजय ने आज रमा की इस तरफ से मारी थी की वह निहाल हो गयी। इसके बाद बची-खुची मौज-मस्ती आई बेचारी सुनीता के हिस्से में। उसके साथ कुछ देर तक ही अजय टिक पाया और फिर तीनो थके-मांदे एक-दूसरे के साथ ही नंगे पड़ कर सो गए।
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