Friday, July 19, 2013

FUN-MAZA-MASTI फूफी फ़रहीन -2

FUN-MAZA-MASTI

फूफी फ़रहीन -2

उन्हे डराना ज़रूरी था ताके में जो कुछ करना चाहता था कर सकूँ और वो मुझे ना रोकैयन.

“पता नही ये है किया बला और कहाँ से मुझे चिमत गई है?” वो घबर्राहट में अपने माथे पर हाथ मार कर बोलीं. जिसम पर दाघों वाली बात ने उन्हे और भी परेशां कर दिया था.
“मैरा ख़याल है के ये किसी कीर्रे ने किया है. आप उस जगह हाथ ना लगा’यान कहीं हाथ पर भी ना लग जाए.” मैंने कहा.
“मैंने तो आज तक ऐसा कोई कीररा नही देखा. कीरे बदन पर फिर जांयें तो खारिश ज़रूर होती है लेकिन मुझे तो कोई खारिश नही हो रही.” उन्होने कहा और फॉरन अपने हाथ पीछे कर लिये.

अब मुझे अपना काम शुरू करना था. मैंने दिल बड़ा कर के कहा:
“फूफी फ़रहीन मुझे इस चीज़ को ख़तम करने के लिये आप की क़मीज़ के अंदर हाथ डालना पड़े गा.”
“तुम मेरे बच्चों की तरह हो तुम से मुझे कोई शरम नही. बस किसी तरह इस मुसीबत से मेरी जान छुड़ाव” उन्होने जल्दी से कहा. उस वक़्त उनकी जेहनी हालत ऐसी नही थी के वो शरम के बारे में सोकछतीं.

मैंने फ़रश पर बैठ कर फूफी फ़रहीन की क़मीज़ ऊपर उठाई और अपना हाथ अंदर कर के उनके पेट की तरफ ले गया. क़मीज़ टाइट थी इस लिये मेरा हाथ उनके नरम गरम पेट पर लगा. मैंने उनके पेट की गर्मी महसूस की और मेरा लंड अकड़ने लगा. उनके मम्मे मोटे होने की वजह से इतने बाहर निकले हुए थे के नीचे से मुझे उनका चेहरा नज़र नही आ रहा था क्योंके मम्मे सामने थे. मैंने ख़यालों ही ख़यालों में उनकी फुद्दी के अंदर अपना लंड घुसते हुए देखा और कोशिश की के उनकी क़मीज़ बदन से अलग हो जाए लेकिन ज़ाहिर है ऐसा नही हुआ. फिर में उनके चूतड़ों की तरफ आ गया और उस जगह पर उंगली फेरी जहाँ एल्फी लगी थी.

“फूफी फ़रहीन आप के कपड़े सख्ती से जिसम के साथ चिपके हुए हैं क़ैंची से काट कर ही अलग करना पड़े गा फिर शायद कोई हाल निकले.” मैंने मायूसी का इज़हार करते हुए कहा.
“ठीक है यही कर लो.” उन्होने बे-सबरी का इज़हार किया.

में भाग कर दूसरे कमरे से क़ैंची लाया और फूफी फ़रहीन की क़मीज़ के दामन को एहतियात से काट कर सीधा उनके मम्मों की तरफ ले गया. फिर मैंने जल्दी से उनकी क़मीज़ मुख्तलीफ़ जगहों से काट कर उनके जिसम से पूरी तरह अलग कर दी और उस का सिरफ़ एक छोटा सा तुकर्रा ही उनके मम्मों के नीचे चिपका रह गया. अब उनके ब्रा के अंदर क़ैद मम्मे मुझे नज़र आने लगे. फूफी फ़रहीन के मम्मे बे-इंतिहा मोटे थे और इतने बड़े साइज़ का ब्रा भी उन्हे पूरी तरह छुपाने में नाकाम था. कमरे में लगी हुई तीन ट्यूब लाइट्स की रोशनी में उनके गोरे मम्मे जैसे चमक रहे थे. दोनो मम्मों की गोलाइयाँ बिल्कुल एक जैसी लगती थीं और वो जैसे ब्रा से उबले पड़ रहे थे.

मैंने फूफी फ़रहीन की तरफ देखा तो उनके चेहरे पर कोई ऐसा ता’असुर नही था के मेरे सामने अपनी क़मीज़ उतारने से उन्हे कोई परैशानी हो रही थी. और होती भी क्यों में उनका सागा भतीजा था और वो ये सोच भी नही सकती थीं के में अपनी फूफी की फुद्दी लेना चाहता था. इस से पहले मैंने उनके साथ ऐसी कोई हरकत की भी नही थी जिस से उन्हे मुझ पर शक़ होता.

फूफी फ़रहीन के ब्रा का निचला हिस्सा भी एल्फी के साथ जिसम से चिपका हुआ था. मैंने हिम्मत कर के उनके भारी भर्कूं बांया मम्मे को हाथ में पकड़ा और हल्का सा खैंचा. जहाँ एल्फी लगी हुई थी में वो जगह देखता रहा और उनका मम्मा मुसलसल मेरे हाथ में ही रहा जिस को मैंने थोड़ा दबा कर पकडे रखा. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उनका मम्मा अभी ब्रा से बाहर आ जाए गा.

फूफी फ़रहीन के मम्मे ना सिर्फ़ बहुत बड़े थे बल्के अच्छे झासे सख़्त भी थे. फ़ूपा सलीम को शायद वो अपने मम्मों को चूसने नही देती थीं क्योंके जहाँ तक उनके मम्मे मुझे ब्रा में से नंगे नज़र आ रहे थे बिल्कुल बे-दाग थे.

"फूफी फ़रहीन मुझे आप का ब्रा भी काटना पड़े गा क्योंके ये भी क़मीज़ की तरह जिसम से अलग नही हो रहा.” मैंने फूफी फ़रहीन का मोटा मम्मा हाथ में पकडे पकडे कहा.

“हन तुम रूको में इस का हुक खोलती हूँ फिर एहतियात से काटना ताके क़ैंची की नोकैयन मुझे ज़ख़्मी ना करें.” मैंने फॉरन उनका मम्मा छोड़ दिया. उन्होने हाथ पीछे कर के अपने ब्रा का हुक खोल कर उससे उतार दिया जो ढीला हो कर उनके हाथों में आ गया. उनके मम्मों पर से ब्रा का दबाव हटा तो वो काफ़ी हद तक नंगे हो गए लेकिन अभी तक मुझे उनके निप्पल नज़र नही आ रहे थे. मैंने फूफी फ़रहीन के बांया मम्मे को दोबारा हाथ में पकड़ा और उस के ऊपर से ब्रा को काट दिया. उनके एक मोटे ताज़े मम्मे को अपने हाथ में महसूस कर के मेरे जिसम में आग सी लग गई और मेरा लंड तन कर लोहा बन गया.

फूफी फ़रहीन के रवये की वजह से मेरा दिल बढ़ गया था. ब्रा के काटने के बाद मैंने फॉरन उनके दांयें मम्मे के ऊपर से उससे हटाया और उस मम्मे को भी नंगा कर दिया. अब मैंने उनके सेहतमंद नंगे मम्मों पर नज़र डाली तो मेरे होश अर गए. इस में कोई शक नही के उनके मम्मे मेरे तसववर से भी ज़ियादा ज़बरदस्त थे. उनके मम्मों के निप्पल मोटे और लंबे थे और निप्पल के आस पास का हल्का ब्राउन हिस्सा बहुत बड़ा था. मम्मे इतने बड़े और वज़नी होने के बावजूद लटके हुए नही थे बल्के तने तने लगते थे.

में जानता था के खुश्क एल्फी को माल्टे के छिलके की तरह जिसम से बड़ी आसानी से उतारा जा सकता है. मैंने आहिस्ता से फूफी फ़रहीन के मम्मे के नीचे लगी हुई खुश्क एल्फी उतार ली.
“ये है किया?” उन्होने पूछा.
“पता नही फूफी फ़रहीन लेकिन बहरहाल उतार तो गया है.” मैंने जवाब दिया. मै उन्हे किया बताता के उनके बदन से चिपकी हुई चीज़ किया थी.
“अमजद मेरा सीना तो छोड़ो किया पकडे ही रहो गे.” फूफी फ़रहीन ने अचानक कहा लेकिन उनके लहजे में सख्ती या नागावारी नही थी. मै इस दोरान ये भूल गया था के फूफी फ़रहीन का एक मम्मा अभी तक मेरे हाथ में है.
मैंने उन का मम्मा फॉरन छोड़ दिया.
उन्होने एक हाथ अपने मम्मों पर रखा और दूसरे हाथ की उंगली बांया मम्मे के नीचे फेरी.
“हन लगता है ये चीज़ बदन से उतार गई है और कोई निशान भी नही चौड़ा क्योंके खुर्द्रा-पन ख़तम हो गया है.” उन्होने इतमीनान का साँस लेते हुए कहा.
“चलें अब पीछे भी ऐसा ही करते हैं.” मैंने कहा. “किया शलवार उतारों?” उन्होने पूछा.
“हन फूफी फ़रहीन तब ही तो में उससे काट सकूँ गा.” मैंने जवाब दिया. उन्होने अपनी शलवार का नाड़ा खोल दिया और उनकी शलवार नीचे गिरी लेकिन एक साइड से चूतड़ों के साथ चिपकी रही. मैंने पीछे जा कर उससे काट कर उनके बदन से अलग कर दिया.

फूफी फ़रहीन के गोल चूतड़ बड़े मोटे और चौड़े थे. मैंने पहले ही की तरह फूफी फ़रहीन के बांया चूतड़ के ऊपर का हिस्सा एल्फी से साफ़ कर दिया. मेरा हाथ उनके चूतड़ के साथ मुसलसल लगता रहा. उनके सफ़ेद उभरे हुए चूतड़ पर जहाँ एल्फी लगी थी हल्के लाल रंग का निशान पड़ गया था. मैंने कोशिश की मगर उनकी गांड़ का सुराख मोटे मोटे तवाना चूतड़ों के अंदर था इस लिये मुझे नज़र नही आ सका.

फूफी फ़रहीन की मोटी ताज़ी गांड़ मारने की खाहिश पता नही कब से मेरे दिल में थी और आज वो अपने नंगे चूतड़ों के साथ मेरे सामने खड़ी थीं . मेरा दिल कर रहा था के में उनके मोटे और भारी चूतड़ों पर हाथ फायरून और उन्हे दबाऊं मगर मैंने खुद पर क़ाबू रखा. फिर में उनके आगे आ गया और उनकी नंगी चूत की तरफ देखा. उनकी चूत कसी हुई थी और उस पर छोटे छोटे सियाह बाल थे. फूफी फ़रहीन का रंग बहुत गोरा था और चूत और नाफ़ के दरमियाँ के हिस्से की सफआयदी सियाह बालों के अंदर से भी झलक रही थी. वो नंगी खड़ी थीं और मुझे अपने सामने देख कर थोड़ा सा सटपटा गईं.
“अमजद बेटा अब जा कर मेरे कमरे से कपड़े ले आओ में नंगी खड़ी हूँ.” उन्होने अपनी चूत और मम्मों के सामने अपनी कटी हुई शलवार का परदा करते हुए कहा.

मैंने सोचा के अब मज़ीद देर करना गलत होगा. मै अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था के अगर में उन पर हाथ डालता तो फूफी फ़रहीन किया कर सकती थीं . मुझे यक़ीन था के वो अपने साथ होने वाली किसी हरकत के बारे में किसी को ना बता सकतीं. शायद हर औरत यही करती. फ़ूपा सलीम को तो वो वैसे भी किसी क़ाबिल नही समझती थीं इस लिये मुझे उनका खौफ तो बिल्कुल भी नही था.

“फूफी फ़रहीन आप का बदन बहुत शानदार है.” मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा और उनके क़रीब जा कर उनके कंधों पर अपने दोनो हाथ रख दिये. वो हैरान रह गईं मगर एक लम्हे के हजारवें हिस्से में जान गईं के में किया चाहता हूँ.
“अमजद तुम पागल तो नही हो गए. किया करना चाहते हो?” उन्होने ज़रा तेज़ आवाज़ में कहा और थोड़ा सा पीछे हट कर अपनी शलवार और ज़ियादा अपने बदन के सामने कर ली.

मैंने अपना एक हाथ नीचे कर के उनकी शलवार हटाई और दूसरा हाथ उनकी हरी भरी फुद्दी के ऊपर रख दिया. वो मेरे हाथ पर हाथ रखते हुए कुछ और पीछे हटीं मगर मैंने उनकी शलवार उन से छ्चीन कर फैंक दी और उन्हे गले से लगा कर उनके मुँह के बोसे लेने लगा. मैंने उनके वज़नी मम्मे पकड़ लिये और उन्हे आते की तरह गूंधने लगा. फूफी फ़रहीन दोहरी हो गईं और उनके मुँह से गुस्से में तेज़ घुरहट सी निकली. वो अपने आप को चुर्रने की कोशिश कर रही थीं . लेकिन मैंने उनका एक मम्मा मज़बूती से पकड़ लिया और अपना हाथ उनकी गर्दन में डाल कर उनके चेहरे को ऊपर कर के चटाख चटाख चूमने लगा.

फूफी फ़रहीन बेड के क़रीब खड़ी थीं और जब मुझ से बचने के लिये पीछे की तरफ गईं तो बेड से लग कर अपना तवाज़ून बार-क़रार ना रख सकीं और बेड पर बैठ गईं. उनकी मज़बूत पिंदलियान मेरे सामने थीं . मैंने झुक कर घुटनो के नीचे से उनकी टांगें उठा दीं और उनकी मोटी चूत में मुहन दे कर उससे चाटने की कोशिश करने लगा. वो बेड पर कमर के बल गिरीं लेकिन अपनी मज़बूत टाँगों से मुझे बड़ी बे-दरदी से पीछे ढकैलती रहीं. मेरा मुँह उनकी फुद्दी के बिल्कुल ऊपर था और वो मुझे खुद से दूर हटाने की कोशिश कर रही थीं .
“कुत्ते के बचे, मादरचोद, हरामी ये किया कर रहे हो किया तुम अपनी माँ को भी चोदते.” वो मुझे गालियाँ देने लगीं.
“फूफी फ़रहीन अगर मेरी माँ आप जैसी शानदार औरत होती तो उससे भी ज़रूर चोदता.” मैंने दोनो हाथों से उनकी टाँगें पकड़ कर ज़बरदस्ती खोलीं और उनकी फुद्दी पर मुँह रख दिया.
“कमीने अपनी फूफी को भी कोई चोदता है किया? तुम्हारी माँ की चूत.” वो गुस्से में चीखीं. घर खाली था इस मुझे उनकी तेज़ आवाज़ का कोई खौफ नही था.
में खामोशी से उनकी चूत चाटने में मसरूफ़ रहा.

उन्होने मुँह से तेज़ आवाजें निकालते हुए कई दफ़ा मुझे अपनी चूत के ऊपर से हटाने की कोशिश की मगर में उनकी मोटी रानों को पकड़ के उनकी चूत के ऊपर तेज़ी से ज़बान फेरता रहा. उन्होने अपनी दोनो टांगें बंद करनी चाहीं मगर उनके बीच में मेरा सर था. मै उनकी चूत का ज़ा’ऐइक़ा चख कर बयखुद हो गया था और पागलों की तरह उनकी चूत को ऊपर नीचे और साइड्स से चाट रहा था.

फूफी फ़रहीन ने कुछ देर में ही पानी चॉर्रणा शुरू कर दिया था और वो कमज़ोर पड़ती जा रही थीं . उनकी ज़ोर-आज़माई कम हुई तो में उनके ऊपर चढ़ गया और उनके बड़े बड़े मम्मों को दोनो हाथों में ले कर चूसने लगा. उन्होने मेरी कमर पर दो तीन मुक्के मारे मगर फिर गोया हार मान ली और मुझे रोकने की कोशिश तारक कर दी. वो अब मुझ से आँखें नही मिला रही थीं . मैंने बेड पर ही झट पाट अपने कपड़े उतारे और दोबारा अपनी अलिफ नंगी फूफी के ऊपर सवार हो गया. मेरा खड़ा हुआ लंड उनकी चूत के ऊपर आ गया और मैंने बड़ी बे-रहमी से उनके मम्मों के निप्पल चूसने शुरू कर दिये. उनके बदन को झटके से लग रहे था और साफ़ पता चल रहा था के मम्मे चुसवाना उन्हे बहुत ज़ियादा लुत्फ़ दे रहा है. मैंने उनका एक मम्मा मुँह में ले कर अपना लंड उनकी पानी से भरी हुई चूत के ऊपर रगड़ा. फूफी फ़रहीन के बदन ने एक झटका खाया और उन्होने कहा:
”कुत्ते के बच्चे, तुम्हारी माँ में लूआर्रा जाए क्यों मुझे पागल कर रहे हो मैंने तो कई सालों से चूत नही दी. उउउफफफफफ्फ़….तुम्हारी माँ पे कुत्ते छर्र्हैं, तुम्हारी माँ में खोते का लूँ डालूं.” उन्होने हमेशा मुझ से बड़े प्यार से बात की थी और कभी दांता तक नही था मगर इस वक़्त वो मुझे बड़ी गंदी गालियाँ दे रही थीं .

मुझे उसी लम्हे ये एहसास हुआ के गालियाँ उन्हे और भी गरम कर रही थीं और इसी लिये वो गालियाँ दे भी रही थीं . बाज़ औरतों को चूत मरवाते हुए गालियाँ दें तो उन्हे बहुत अच्छा लगता है और वो मज़ीद गरम होती हैं. फूफी फ़रहीन की तो वैसे भी गालियाँ देने की आदत थी. वो भी शायद ऐसी ही औरत थीं जिन्हे गालियाँ और गंदी बातें गरम करती हैं क्योंके उस वक़्त उनकी गालियों में मुझे नफ़रत और गुस्से का अंसार शामिल नही लग रहा था. मैंने सोचा के मुझे भी उन्हे गालियाँ देनी चाहिया’आन.

मैंने उनके मम्मे के निप्पल के इर्द गिर्द ब्राउन हिस्से को चाटा और फिर उनके होंठ चूम कर कहा:
”फूफी फ़रहीन आप का मोटा फुदा मारूं. आप का फुदा छोड़ों. आज मुझे अपनी फुदा दे कर आप खुश हो जांयें गी. आप की गांड़ में लंड दूँ. आप के मोटे और ताक़तवर फुद्दे को चोदना फ़ूपा सलीम के बस की बात नही है. आप जैसी मोटी ताज़ी गश्ती को जिस का इतना मोटा फुदा हो एक जवान लंड चाहिये.”
मुझे हैरत हुई के फूफी फ़रहीन को गालियाँ देने से मेरे जज़्बात भी बारँगाखहता हो रहे थे.

मैरा अंदाज़ा सही निकला. मेरे मुँह से ऐसी बातें सुन कर फूफी फ़रहीन बे-क़ाबू हो गईं. “तुम बहुत ही खनज़ीर के बच्चे हो, कंज़र, तुम्हारी माँ में खोते का लूँ डून” कह कर पहली बार उन्होने अपना मुँह मेरे मुँह में दे दिया. मैंने थोड़ी देर उनकी ज़बान अपने मुँह में रख कर चूसी और फिर उठ कर इस तरह उनके ऊपर लेट गया के मेरा लंड उनके मुँह की तरफ था और मुँह उनकी चूत की तरफ.

अब मैंने उनकी चूत को दोबारा चाटना शुरू कर दिया. वो मचलने लगीं और उनके मुँह से ऊँची ऊँची आवाजें निकालने लगीं. मेरा लंड बिल्कुल उनके मुँह के पास उनके गालों से टकरा रहा था. “फ़रहीन कंजड़ी, तेरा भोसड़ा मारूं, तारे फुद्दे में लंड डून, चल मेरा लंड चूस. कुतिया तेरी चूत के बड़े खाब देखे हैं में ने, तेरी बहन की मोटी चूत लूं. आज कुतिया की तरह अपने भतीजे से चूत मरवा ले और मज़े कर.” मैंने उन्हे मज़ीद गंदी गालियाँ दीं तो उनके शोक़् की आग और ज़ियादा भर्रक आती. “तुम्हारी माँ की चूत में लूँ मारूं, किसी रंडी की औलाद, गश्ती के बच्चे.” उन्होने भी जवाबन मुझे गालियाँ दीं. मै उनकी चूत चाटने के दोरान उनके मुँह के साथ अपने लंड को लगाता रहा. फिर कुछ कहे बगैर ही उन्होने मेरा लंड अपने मुँह में ले लिया और उससे तेज़ तेज़ चूसने लगीं. मेरे टट्टे उनकी नाक और गालों पर लग रहे थे और लंड मुँह के अंदर था. उनका थूक मुझे अपने लंड पर महसूस हो रहा था.

कुछ देर फूफी फ़रहीन की चूत चाटने और उन से अपना लंड चुसवाने के बाद में सीधा हो कर उनके ऊपर लेट गया और उनकी टांगें खोल कर अपना लंड उनकी मोटी ताज़ी चूत के अंदर डाल दिया.

फूफी फ़रहीन की चूत अब भी ज़ियादा नही खुली थी और मुझे महसूस हुआ जैसे मेरा लंड उनकी चूत को चीरता हुआ अंदर जा रहा हो. उन्होने ज़ोर की आवाज़ निकाली. "उफ़फ्फ़……. अमजद हरामी की नेज़ल मत छोड़ो मुझे में तुम्हारा लौड़ा बर्दाश्त नही कर सकती. किसी कुतिया रंडी के बच्चे, ऊऊओ एयाया में छ्छूटने वाली हूँ.” मुहजहे कुछ हैरानी हुई के वो इतनी जल्दी खलास हो रही थीं . शायद उन्होने बहुत अरसे बाद अपनी चूत में लंड लिया था और इस लिये उनकी क़ुवत-ए-बर्दाश्त काफ़ी कम हो गई थी. वो मेरे घस्सों की वजह से बेड पर आगे पीछे हिल रही थीं . वो ज़ियादा देर तक अपनी चूत के अंदर मेरे लंड को संभाल ना सकीं और आठ डूस ज़बरदस्त घस्सों के बाद ही खलास हो गईं. “हन, हाँ अमजद इधर ही झटके मारो….इधर ही…….इधर ही, इधर ही अपना लौड़ा रखो.” वो भारी आवाज़ में कहे जा रही थीं . मै उनकी फुद्दी में घस्से मारता रहा और वो लेतीं अपने चूतड़ों को ऊपर नीचे हिलाती रहीं.

तक़रीबन तीन चार मिनिट के बाद वो एक दफ़ा फिर खलास होने के क़रीब हो गईं और उनकी चूत ने पहले से भी ज़ियादा पानी छोड़ दिया. लेकिन में ये नही जान पाया के वो पूरी तरह खलास हुई हैं या नही. भरहाल मैंने अपना हाथ उनके चूतड़ों के नीचे किया और उनकी गांड़ के सुराख पर उंगली फेरने लगा. इस पर वो जैसे बिफर सी गईं और खुल खुला कर अपनी चूत मरवाने लगीं. अब वो ये भूल चुकी थीं के वो मेरी सग़ी फूफी हैं. भतीजे के जवान लंड ने फूफी की चूत को अच्छा मज़ा दिया था. मेरा लंड अब जड़ तक फूफी फ़रहीन की फुद्दी में जा रहा था. उनके मम्मे मेरी मुठियों में थे और में उन्हे कस कस कर भींच रहा था. वो अपनी मोटी भारी भरकम गांड़ उठा उठा कर मेरे घस्सों का पूरा पूरा मुक़ाबला करती रहीं और मेरे लंड को एक दफ़ा फिर पूरी तरह से अपनी चूत में लेने लगीं.

फिर में उनके ऊपर से हट गया और उन्हे अपने लंड पर बैठने को कहा. वो अपने क़ावी और जानदार जिसम को मेरे ऊपर ले आईं और मेरा लंड हाथ में पकड़ कर अपनी फुद्दी के अंदर डाल लिया. मैंने उनके मम्मों से खेलता रहा और उनका भरपूर बदन मेरे लंड पर ऊपर नीचे होता रहा. मेरी सग़ी फूफी मेरे लंड पर बैठ कर चूत मरवा रही थीं और में खुशी और हैरत के मिले जुले एहसास के साथ उनके गोरे बदन को देख रहा था. मुझे यक़ीन नही था के में कभी फूफी फ़रहीन को चोद सकूँ गा मगर खुश-क़िस्मती से वो दिन आ ही गया था. अचानक उनकी फुद्दी मेरे लंड के गिर्द कस गई और वो मेरे मुँह पर झुक गईं. उनके लंबे बाल मेरे कंधों को गुदगुदाने लगे. मैंने उनके होठों पर प्यार किया तो उन्होने तेज़ सिसकी ली और फिर तेज़ी से खलास होने लगीं.
फूफी फ़रहीन के मोटे मोटे चूतड़ों पर से में अपनी आँखें हटा नही पा रहा था. ना-जाने मेरे दिल में किया आया के में उनके भारी चूतड़ों पर अच्छा ख़ासा ज़ोरदार ठप्पर दे मारा. कमरे में धाप की तेज़ आवाज़ गूँजी और फूफी फ़रहीन ने भी आईं उसी वक़्त एक तेज़ चीख मारी. उनके दोनो सफ़ेद सफ़ेद चूतड़ों के दरमियाँ मेरे हाथ की उंगलियों का लाल निशान पड़ गया. कुछ देर उनके चूतड़ों को मसलने के बाद मैंने उन्हे चारों हाथों पैरों पर कुतिया बना कर पीछे से उनकी मोटी चूत में अपना लंड डाल दिया. “ज़लील के बच्चे, कंज़र तू ने मुझे वाक़ई कुतिया बना दिया है. उूउउफफफ्फ़….. कुत्ते, बहनचोद, रंडी के बच्चे मार दिया मुझे हरामी. तेरा लंड बहुत मोटा है, बहुत मोटा है तेरा लंड.” लज़्ज़त के उन लम्हो में फूफी फ़रहीन के मुँह से बे-तकान गालियाँ निकल रही थीं . रिश्ते नाते, इज़्ज़त एहतीराम, प्यार मुहब्बत सब ख़तम हो चुके थे. सिरफ़ लंड और चूत का खेल रह गया था. मुझे भी मज़ा आ रहा था क्योंके मेरे लिये भी ये एक बिल्कुल नया तजर्बा था. मै उनकी चूत मारता रहा.

उनकी गांड़ का गांड का सुराख मेरे सामने था जिस पर में उंगली फेरता जा रहा था. हर घस्से के साथ जुब मेरा लंड उनकी चूत के अंदर जाता तो उनके दूध की तरह गोरे और मोटे चूतड़ मेरी रानों से टकराते. कुछ ही देर में में फूफी फ़रहीन की चूत के अंदर खलास हो गया और मेरे लंड से मनी की पिचकारियाँ निकल कर उनकी गरम फुद्दी के अंदर चली गईं. वो बेड पर तक कर धायर हो गईं. यों अपनी खूबसूरत फूफी को चोदने का मेरा बरसों का अरमान पूरा हो गया.


फूफी फ़रहीन की चूत मार लेने के बाद अब एक और बड़ा अहम मरहला दरपाश था और वो था उनकी गांड़ लाना. उन्होने अगले दो दिन हमारे घर ही रहना था और मुझे इसी दोरान उनकी गांड़ मारनी थी जो बा-ज़ाहिर इतना आसान काम नही था. इस वक़्त भी हालात कुछ ऐसे अच्छे नही थे. अगर अपनी सग़ी फूफी को चोद लिया जाए तो टेंशन का होना बिल्कुल क़ुदरती अमर है. फूफी फ़रहीन एहसास-ई-जुर्म का शिकार थीं और अपने भतीजे से चूत मरवाने पर उन्हे बड़ी सख़्त नादामात महसूस हो रही थी. इस का साबोट ये था के कल वाले वाक़ई’आय के बाद उन्होने ना मेरा सामना किया था और ना ही मुझ से कोई बात की थी. मुझे उन्हे इस जेहनी पेरैशानि और एहसास-ए-जुर्म से निजात दिलानी थी ताके बात आगे चल सके और में उनकी गांड़ मार सकूँ.






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