FUN-MAZA-MASTI
जवानी की दहलीज-12
अब लोग अपने ग्लास से लड़कियों को ज़बरदस्ती शराब पिलाने की कोशिश कर रहे थे... कुछ पी रही थीं तो कुछ को जबरन पिलाया जा रहा था। मेरा भी दो लड़कों ने मुँह पकड़कर खोल दिया और उसमें शराब डाल दी। मेरी खांसी निकल गई और कुछ शराब मैंने उगल दी तो कुछ हलक से नीचे उतर गई।
हम लड़कियों के शरीर पर दर्जनों हाथ रेंग रहे थे... कोई दबा रहा था तो कोई च्यूंटी काट रहा था... कोई इधर उधर चूम रहा था। अचानक, हमारे ऊपर पानी की बौछार शुरू हो गई... मैंने अचरज में ऊपर देखा तो पता चला कि पूरे स्टेज के ऊपर बड़े बड़े शावर लगे हुए हैं जिनमें से पानी बरस रहा था। स्टेज पर पानी के बहने का पूरा प्रबंध था जिससे सारा पानी नालियों द्वारा बाहर जा रहा था। मैं इस प्रबंध से प्रभावित हुई...
अचानक गीले होने से आदमियों में हडकंप मचा और कुछ स्टेज से भाग गए... कुछ जिंदादिल लोग गीले होने का मज़ा उठाने लगे। उनमें से एक ने अपने कपड़े उतारने शुरू किये और देखते ही देखते वह सिर्फ चड्डी में नाच रहा था। उसकी देखा-देखी कुछ और लोग भी नंगे होने लगे। नंगी लड़कियों के साथ बारिश का मज़ा बहुत कम लोगों को नसीब होता है... लड़कियाँ भी अब मस्त सी होने लगी थीं... शायद नशा चढ़ने लगा था।
धीरे धीरे स्टेज पर से रौशनी धीमी होने लगी और फिर बंद हो गई... कमरे की बाकी बत्तियाँ भी धीरे धीरे मद्धम होने लगीं। अब तो बस बारिश, नंगी लड़कियां और मदहोश अर्ध-नंगे पुरुष स्टेज पर थे। रौशनी कम होने से सब का लज्जा-भाव भी गुल हो गया था... व्यभिचार के तांडव के लिए प्रबंध पूरे लग रहे थे।
धीरे धीरे लोग नाचने के बजाय लड़कियों को लेकर नीचे बैठने लगे... हर लड़की के साथ कम से कम दो मर्द तो थे ही। मैंने महसूस किया कि दो मर्दों ने मुझे पकड़ा... एक ने मेरे मुँह पर हाथ रख लिया जिससे में चिल्ला ना सकूँ और अँधेरे का फ़ायदा उठाते हुए दोनों मुझे घसीट कर स्टेज के पीछे एक कमरे में ले गए... मैंने देखा वहां ऐसे कई कमरे थे। अंदर ले जा कर उन्होंने कमरा अंदर से बंद कर लिया। मैंने देखा उनमें से एक भीमा था जिसने मेरा गजरा उतारा था और दूसरा अशोक था जिसने मेरे कान की बालियाँ उतारीं थीं। कमरे में मैंने देखा एक बड़ा बिस्तर है और पास ही एक खुला गुसलखाना है। उन दोनों ने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया और वहां रखे तौलियों से अपने आप को पौंछने और खुसुर-पुसुर करने लगे।
" मुझसे गजरा निकलवाया और खुद ब्रा और चड्डी उतारता है !" भीमा ने गुस्से में कहा।
" साला हर बार हमें बचा-कुचा ही खाने को मिलता है।" अशोक बोला।
" सबसे बढ़िया माल पहले खुद चोदेगा और बाद में हमारे लिए छोड़ देगा... जैसे हम उसके गुलाम हैं !!"
" आज इस साली को पहले हम चोदेंगे... जो होगा सो देखा जायेगा !" अशोक ने निर्णय लिया।
" अगर महेश ने पकड़ लिया तो?" भीमा ने चिंता जताई।
" अबे हम कोई उसके नौकर थोड़े ही हैं... हमें दोस्त कहता है... साला खुद तो मरियल है... हमारे बल-बूते पर अपना राज चलाता है ... अगर उसका बाप यहाँ का चौधरी नहीं होता तो साले को मैं अभी देख लेता !"
मैं उनकी बातें सुनकर डर गई।
अब तक अशोक बिल्कुल नंगा हो गया था और भीमा ने कमीज़ उतार दी थी। दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और फिर मुझे। उन्होंने फिर से एक दूसरे की तरफ देखा और कोई इशारा किया... यौन के मिलेजुले आवेश से उसका लिंग एक दम तना हुआ था। वह बिना किसी भूमिका के अपना लंड मेरी चूत में डालने की कोशिश करने लगा। मैं अपने आप को इधर-उधर हिला रही थी... उसने मेरे चूतड़ की बगल में एक ज़ोरदार चांटा मारा जिससे पूरा कमरा गूँज गया... मेरे मुँह से आह निकल गई।
" साली नखरे करती है...” कहते हुए उसने चूतड़ पर चपत लगानी जारी रखी और अपने दांतों से मेरे चूचक काटने लगा। लगातार चूतड़ पर एक ही जगह जोर से चपत लगने से मेरा वह हिस्सा लाल और संवेदनशील हो गया और उसके दांत मेरे कोमल स्तन और चूचियों को काट रहे थे। मेरी चीखें निकलने लगीं...
" अबे भीमा... साले क्या कर रहा है... यहाँ आ?" अशोक ने भीमा की मदद सी मांगी।
भीमा उठा और पहले उसने अपनी पैंट और चड्डी उतारी और फिर अशोक को उकसाता हुआ बोला " क्यों तुझसे नहीं संभल रही... साले मर्द का बच्चा नहीं है क्या?" और उसने मेरी दोनों टाँगें पकड़ लीं और उन्हें एक ही झटके में पूरी चौड़ी कर दीं। इतनी बेरहमी से उसने मेरी टांगें फैलाईं थीं कि मुझे लगा शायद चिर ही गई होंगी।
अशोक को बस इतनी ही मदद की ज़रूरत थी उसने मेरी सूखी चूत पर अपने उफनते नाग से हमला कर दिया। सूखी चूत से उसके लंड को भी तकलीफ हुई और उसने मेरी योनि-द्वार पर अपना थूक गिरा कर उसे गीला कर दिया। अब उसने लंड के सुपारे से मेरा चूत-छेद ढूंढा और उसे वहां टिका कर एक जोर का धक्का मार दिया। मेरी चूत लगभग कुंवारी ही थी और उसपर इस प्रकार का निर्दयी प्रहार पहले कभी नहीं हुआ था। बेचारी दर्द िसे कुलबुला गई और मैं तड़प के चिल्ला उठी। लंड करीब एक इंच ही अंदर गया होगा पर मेरी दुनिया मानो हिल सी गई थी।
भीमा मेरी टाँगें सख्ती से पकड़े हुआ था... मैं उन दो मर्दों की जकड़ में हिल-डुल भी नहीं पा रही थी। मेरा दम घुट रहा था पर मेरी अवस्था और मासूम चूत उन्हें और भी जोश दिला रही थी... अशोक ने लंड थोड़ा बाहर निकाला और एक बार फिर जोर से अंदर ठूंसने का वार किया। दर्द से मेरी फिर से चीख निकली और उसका लंड करीब तीन-चौथाई अंदर घुस गया। यह सब देखकर भीमा का लंड भी तन्ना रहा था... वह अपनी बारी के लिए बेचैन लग रहा था। अशोक ने लंड थोड़ा पीछे खींच कर एक बार और पूरे जोर से अंदर पेल दिया और मेरी एक और चीख के साथ उसके लंड का मूठ मेरी चूत की फांकों के साथ टकरा गया। उसकी इस फतह के साथ ही अशोक ने मेरी चुदाई शुरू की। मेरी चूत पर विजय पाने के बाद वह अपनी जीत का मज़ा ले रहा था... जोर जोर से चोद रहा था।
" यार कुछ भी कह ले... लड़की को चोदने का मज़ा तभी ज्यादा आता है जब वह चोदने में आनाकानी करे !" अशोक भीमा को बोला।
" अबे... सारे मज़े तू ही लेगा या मुझे भी लेने देगा..." भीमा बेताब हो रहा था और अपने लंड को सहला रहा था... मानो उसे धीरज धरने को कह रहा हो।
" तू किस का इंतज़ार कर रहा... तू भी शुरू हो जा !" अशोक ने सुझाव दिया।
" मतलब?"
" मतलब क्या... क्या तूने कभी गांड नहीं मारी? जिसकी चूत इतनी टाईट है उसकी गांड कितनी टाईट होगी साले !!"
" वाह ! क्या मज़े की बात कही है !" भीमा के मुँह से लार सी टपकने लगी।
भीमा उत्साह से बोला और फिर अशोक को मेरे ऊपर से पलट कर मुझे ऊपर और उसको नीचे करने का प्रयास करने लगा। अशोक ने उसका सहयोग किया और मेरी चुदाई रोक कर मेरी जगह पीठ पर लेट गया और मुझे अपनी तरफ मुँह करके अपने ऊपर लिटा लिया... मेरे मम्मे उसके सीने को लग रहे थे। तभी झट से भीमा पीछे से मेरे ऊपर आ गया और अपना लंड हाथ में पकड़ कर मेरी गांड पर लगाने लगा।
" अबे रुक... थोड़ा सब्र कर... पहले मेरा लंड तो इसकी चूत में घुस जाने दे..." अशोक ने भीमा को नसीहत दी। भीमा पीछे हट गया। अब अशोक फिर से मेरी चूत में अपना लंड घुसाड़ने के प्रयास में लगा गया। मेरी तरफ से कोई सहयोग नहीं होने से दोनों ने मेरे चूतड़ों पर एक एक जोर का तमाचा लगा दिया जिससे मेरे पहले से नाज़ुक चूतड़ तिलमिला उठे। मैंने अपने कूल्हे उठा कर अशोक के लंड के लिए जगह बनाईं पर उसका मुसमुसाया लंड चूत में नहीं घुस पा रहा था। अशोक ने मेरे कन्धों पर नीचे की ओर धक्का देते हुए मुझे नीचे खिसका दिया और अपने अधमरे लंड को मेरे मुँह में डालने लगा।
" चूस साली... !!" और मेरे चूतड़ पर एक ओर तमाचा रसीद कर दिया।मुझे उसके लंड को मुँह में लेना ही पड़ा। पता नहीं मर्दों को लंड चुसवाने से ज्यादा जोश आता है या फिर लड़की के चूतड़ पर मारने से... पर अशोक का लंड कुछ ही देर में चूत-प्रवेश लायक कड़क हो गया। उसने मुझे ऊपर के ओर खींचा और बिना विलम्ब के लंड अंदर डाल दिया... एक दो धक्कों के बाद उसने मूठ तक लंड अंदर ठोक दिया।
" ओके... अब मैं तैयार हूँ।" अशोक ने भीमा को ऐसे कहा मानो भीमा उसकी गांड मारने जा रहा था। मुझसे किसी ने नहीं पूछा...
भीमा अपने लंड को कड़क रखने के लिए सहलाए जा रहा था पर मेरी गांड मारने की उत्सुकता में उसे ऐसा करने की ज़रूरत नहीं थी। उसने मेरे पीछे आ कर स्थिति का मुआइना किया। मैं अशोक पर औंधी पड़ी थी... उसकी टांगें घुटनों से मुड़ी हुई मेरी कमर के दोनों तरफ थीं और हम बिस्तर के बीचों-बीच थे। ऐसी हालत में भीमा मेरी गांड नहीं मार सकता था।
" तुझे नीचा होना पड़ेगा... बिस्तर के किनारे पर..." भीमा ने अशोक को बताया और फिर उसकी दोनों टांगें पकड़ कर उसे बिस्तर के किनारे की तरफ खींचने लगा। मैं उससे ठुसी हुई उसके साथ साथ नीचे की ओर खिंचने लगी। भीमा ने अशोक के पैर बिस्तर के किनारे ला कर नीचे लटका दिए जिससे उसके पैर ज़मीन पर टिक गए... मेरे पैर भी ज़मीन से थोड़ी ऊपर लटक गए। अशोक के चूतड़ बिस्तर के किनारे पर थे। भीमा ने अब अशोक के चूतड़ के नीचे तकिये लगा कर हम दोनों को थोड़ा ऊंचा कर दिया। अब भीमा संतुष्ट हुआ क्योंकि उसने मेरी गांड की ऊंचाई ऐसे कर दी थी कि खड़े-खड़े उसका लंड मेरी गांड के छेद पर आराम से पहुँच रहा था। उसने झुक कर मेरी टांगें पूरी चौड़ी कर दीं। मैंने विरोध में अपनी टांगें जोड़नी चाहीं तो उसने एक जोर का चांटा मेरे कूल्हों और पीठ पर मारा और झटके के साथ मेरी टांगें फिर से खोल दीं।
kramashah.....................
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अब लोग अपने ग्लास से लड़कियों को ज़बरदस्ती शराब पिलाने की कोशिश कर रहे थे... कुछ पी रही थीं तो कुछ को जबरन पिलाया जा रहा था। मेरा भी दो लड़कों ने मुँह पकड़कर खोल दिया और उसमें शराब डाल दी। मेरी खांसी निकल गई और कुछ शराब मैंने उगल दी तो कुछ हलक से नीचे उतर गई।
हम लड़कियों के शरीर पर दर्जनों हाथ रेंग रहे थे... कोई दबा रहा था तो कोई च्यूंटी काट रहा था... कोई इधर उधर चूम रहा था। अचानक, हमारे ऊपर पानी की बौछार शुरू हो गई... मैंने अचरज में ऊपर देखा तो पता चला कि पूरे स्टेज के ऊपर बड़े बड़े शावर लगे हुए हैं जिनमें से पानी बरस रहा था। स्टेज पर पानी के बहने का पूरा प्रबंध था जिससे सारा पानी नालियों द्वारा बाहर जा रहा था। मैं इस प्रबंध से प्रभावित हुई...
अचानक गीले होने से आदमियों में हडकंप मचा और कुछ स्टेज से भाग गए... कुछ जिंदादिल लोग गीले होने का मज़ा उठाने लगे। उनमें से एक ने अपने कपड़े उतारने शुरू किये और देखते ही देखते वह सिर्फ चड्डी में नाच रहा था। उसकी देखा-देखी कुछ और लोग भी नंगे होने लगे। नंगी लड़कियों के साथ बारिश का मज़ा बहुत कम लोगों को नसीब होता है... लड़कियाँ भी अब मस्त सी होने लगी थीं... शायद नशा चढ़ने लगा था।
धीरे धीरे स्टेज पर से रौशनी धीमी होने लगी और फिर बंद हो गई... कमरे की बाकी बत्तियाँ भी धीरे धीरे मद्धम होने लगीं। अब तो बस बारिश, नंगी लड़कियां और मदहोश अर्ध-नंगे पुरुष स्टेज पर थे। रौशनी कम होने से सब का लज्जा-भाव भी गुल हो गया था... व्यभिचार के तांडव के लिए प्रबंध पूरे लग रहे थे।
धीरे धीरे लोग नाचने के बजाय लड़कियों को लेकर नीचे बैठने लगे... हर लड़की के साथ कम से कम दो मर्द तो थे ही। मैंने महसूस किया कि दो मर्दों ने मुझे पकड़ा... एक ने मेरे मुँह पर हाथ रख लिया जिससे में चिल्ला ना सकूँ और अँधेरे का फ़ायदा उठाते हुए दोनों मुझे घसीट कर स्टेज के पीछे एक कमरे में ले गए... मैंने देखा वहां ऐसे कई कमरे थे। अंदर ले जा कर उन्होंने कमरा अंदर से बंद कर लिया। मैंने देखा उनमें से एक भीमा था जिसने मेरा गजरा उतारा था और दूसरा अशोक था जिसने मेरे कान की बालियाँ उतारीं थीं। कमरे में मैंने देखा एक बड़ा बिस्तर है और पास ही एक खुला गुसलखाना है। उन दोनों ने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया और वहां रखे तौलियों से अपने आप को पौंछने और खुसुर-पुसुर करने लगे।
" मुझसे गजरा निकलवाया और खुद ब्रा और चड्डी उतारता है !" भीमा ने गुस्से में कहा।
" साला हर बार हमें बचा-कुचा ही खाने को मिलता है।" अशोक बोला।
" सबसे बढ़िया माल पहले खुद चोदेगा और बाद में हमारे लिए छोड़ देगा... जैसे हम उसके गुलाम हैं !!"
" आज इस साली को पहले हम चोदेंगे... जो होगा सो देखा जायेगा !" अशोक ने निर्णय लिया।
" अगर महेश ने पकड़ लिया तो?" भीमा ने चिंता जताई।
" अबे हम कोई उसके नौकर थोड़े ही हैं... हमें दोस्त कहता है... साला खुद तो मरियल है... हमारे बल-बूते पर अपना राज चलाता है ... अगर उसका बाप यहाँ का चौधरी नहीं होता तो साले को मैं अभी देख लेता !"
मैं उनकी बातें सुनकर डर गई।
अब तक अशोक बिल्कुल नंगा हो गया था और भीमा ने कमीज़ उतार दी थी। दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और फिर मुझे। उन्होंने फिर से एक दूसरे की तरफ देखा और कोई इशारा किया... यौन के मिलेजुले आवेश से उसका लिंग एक दम तना हुआ था। वह बिना किसी भूमिका के अपना लंड मेरी चूत में डालने की कोशिश करने लगा। मैं अपने आप को इधर-उधर हिला रही थी... उसने मेरे चूतड़ की बगल में एक ज़ोरदार चांटा मारा जिससे पूरा कमरा गूँज गया... मेरे मुँह से आह निकल गई।
" साली नखरे करती है...” कहते हुए उसने चूतड़ पर चपत लगानी जारी रखी और अपने दांतों से मेरे चूचक काटने लगा। लगातार चूतड़ पर एक ही जगह जोर से चपत लगने से मेरा वह हिस्सा लाल और संवेदनशील हो गया और उसके दांत मेरे कोमल स्तन और चूचियों को काट रहे थे। मेरी चीखें निकलने लगीं...
" अबे भीमा... साले क्या कर रहा है... यहाँ आ?" अशोक ने भीमा की मदद सी मांगी।
भीमा उठा और पहले उसने अपनी पैंट और चड्डी उतारी और फिर अशोक को उकसाता हुआ बोला " क्यों तुझसे नहीं संभल रही... साले मर्द का बच्चा नहीं है क्या?" और उसने मेरी दोनों टाँगें पकड़ लीं और उन्हें एक ही झटके में पूरी चौड़ी कर दीं। इतनी बेरहमी से उसने मेरी टांगें फैलाईं थीं कि मुझे लगा शायद चिर ही गई होंगी।
अशोक को बस इतनी ही मदद की ज़रूरत थी उसने मेरी सूखी चूत पर अपने उफनते नाग से हमला कर दिया। सूखी चूत से उसके लंड को भी तकलीफ हुई और उसने मेरी योनि-द्वार पर अपना थूक गिरा कर उसे गीला कर दिया। अब उसने लंड के सुपारे से मेरा चूत-छेद ढूंढा और उसे वहां टिका कर एक जोर का धक्का मार दिया। मेरी चूत लगभग कुंवारी ही थी और उसपर इस प्रकार का निर्दयी प्रहार पहले कभी नहीं हुआ था। बेचारी दर्द िसे कुलबुला गई और मैं तड़प के चिल्ला उठी। लंड करीब एक इंच ही अंदर गया होगा पर मेरी दुनिया मानो हिल सी गई थी।
भीमा मेरी टाँगें सख्ती से पकड़े हुआ था... मैं उन दो मर्दों की जकड़ में हिल-डुल भी नहीं पा रही थी। मेरा दम घुट रहा था पर मेरी अवस्था और मासूम चूत उन्हें और भी जोश दिला रही थी... अशोक ने लंड थोड़ा बाहर निकाला और एक बार फिर जोर से अंदर ठूंसने का वार किया। दर्द से मेरी फिर से चीख निकली और उसका लंड करीब तीन-चौथाई अंदर घुस गया। यह सब देखकर भीमा का लंड भी तन्ना रहा था... वह अपनी बारी के लिए बेचैन लग रहा था। अशोक ने लंड थोड़ा पीछे खींच कर एक बार और पूरे जोर से अंदर पेल दिया और मेरी एक और चीख के साथ उसके लंड का मूठ मेरी चूत की फांकों के साथ टकरा गया। उसकी इस फतह के साथ ही अशोक ने मेरी चुदाई शुरू की। मेरी चूत पर विजय पाने के बाद वह अपनी जीत का मज़ा ले रहा था... जोर जोर से चोद रहा था।
" यार कुछ भी कह ले... लड़की को चोदने का मज़ा तभी ज्यादा आता है जब वह चोदने में आनाकानी करे !" अशोक भीमा को बोला।
" अबे... सारे मज़े तू ही लेगा या मुझे भी लेने देगा..." भीमा बेताब हो रहा था और अपने लंड को सहला रहा था... मानो उसे धीरज धरने को कह रहा हो।
" तू किस का इंतज़ार कर रहा... तू भी शुरू हो जा !" अशोक ने सुझाव दिया।
" मतलब?"
" मतलब क्या... क्या तूने कभी गांड नहीं मारी? जिसकी चूत इतनी टाईट है उसकी गांड कितनी टाईट होगी साले !!"
" वाह ! क्या मज़े की बात कही है !" भीमा के मुँह से लार सी टपकने लगी।
भीमा उत्साह से बोला और फिर अशोक को मेरे ऊपर से पलट कर मुझे ऊपर और उसको नीचे करने का प्रयास करने लगा। अशोक ने उसका सहयोग किया और मेरी चुदाई रोक कर मेरी जगह पीठ पर लेट गया और मुझे अपनी तरफ मुँह करके अपने ऊपर लिटा लिया... मेरे मम्मे उसके सीने को लग रहे थे। तभी झट से भीमा पीछे से मेरे ऊपर आ गया और अपना लंड हाथ में पकड़ कर मेरी गांड पर लगाने लगा।
" अबे रुक... थोड़ा सब्र कर... पहले मेरा लंड तो इसकी चूत में घुस जाने दे..." अशोक ने भीमा को नसीहत दी। भीमा पीछे हट गया। अब अशोक फिर से मेरी चूत में अपना लंड घुसाड़ने के प्रयास में लगा गया। मेरी तरफ से कोई सहयोग नहीं होने से दोनों ने मेरे चूतड़ों पर एक एक जोर का तमाचा लगा दिया जिससे मेरे पहले से नाज़ुक चूतड़ तिलमिला उठे। मैंने अपने कूल्हे उठा कर अशोक के लंड के लिए जगह बनाईं पर उसका मुसमुसाया लंड चूत में नहीं घुस पा रहा था। अशोक ने मेरे कन्धों पर नीचे की ओर धक्का देते हुए मुझे नीचे खिसका दिया और अपने अधमरे लंड को मेरे मुँह में डालने लगा।
" चूस साली... !!" और मेरे चूतड़ पर एक ओर तमाचा रसीद कर दिया।मुझे उसके लंड को मुँह में लेना ही पड़ा। पता नहीं मर्दों को लंड चुसवाने से ज्यादा जोश आता है या फिर लड़की के चूतड़ पर मारने से... पर अशोक का लंड कुछ ही देर में चूत-प्रवेश लायक कड़क हो गया। उसने मुझे ऊपर के ओर खींचा और बिना विलम्ब के लंड अंदर डाल दिया... एक दो धक्कों के बाद उसने मूठ तक लंड अंदर ठोक दिया।
" ओके... अब मैं तैयार हूँ।" अशोक ने भीमा को ऐसे कहा मानो भीमा उसकी गांड मारने जा रहा था। मुझसे किसी ने नहीं पूछा...
भीमा अपने लंड को कड़क रखने के लिए सहलाए जा रहा था पर मेरी गांड मारने की उत्सुकता में उसे ऐसा करने की ज़रूरत नहीं थी। उसने मेरे पीछे आ कर स्थिति का मुआइना किया। मैं अशोक पर औंधी पड़ी थी... उसकी टांगें घुटनों से मुड़ी हुई मेरी कमर के दोनों तरफ थीं और हम बिस्तर के बीचों-बीच थे। ऐसी हालत में भीमा मेरी गांड नहीं मार सकता था।
" तुझे नीचा होना पड़ेगा... बिस्तर के किनारे पर..." भीमा ने अशोक को बताया और फिर उसकी दोनों टांगें पकड़ कर उसे बिस्तर के किनारे की तरफ खींचने लगा। मैं उससे ठुसी हुई उसके साथ साथ नीचे की ओर खिंचने लगी। भीमा ने अशोक के पैर बिस्तर के किनारे ला कर नीचे लटका दिए जिससे उसके पैर ज़मीन पर टिक गए... मेरे पैर भी ज़मीन से थोड़ी ऊपर लटक गए। अशोक के चूतड़ बिस्तर के किनारे पर थे। भीमा ने अब अशोक के चूतड़ के नीचे तकिये लगा कर हम दोनों को थोड़ा ऊंचा कर दिया। अब भीमा संतुष्ट हुआ क्योंकि उसने मेरी गांड की ऊंचाई ऐसे कर दी थी कि खड़े-खड़े उसका लंड मेरी गांड के छेद पर आराम से पहुँच रहा था। उसने झुक कर मेरी टांगें पूरी चौड़ी कर दीं। मैंने विरोध में अपनी टांगें जोड़नी चाहीं तो उसने एक जोर का चांटा मेरे कूल्हों और पीठ पर मारा और झटके के साथ मेरी टांगें फिर से खोल दीं।
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