Friday, September 16, 2011

हिंदी सेक्सी कहानियाँ सफेद लिबास -1


हिंदी सेक्सी कहानियाँ

सफेद लिबास -1


"रास्ता भूल गये हैं क्या साहिब" आवाज़ सुनकर मैं पलटा

वो एक छ्होटे से कद की लड़की थी, मुश्किल से 5 फुट, रंग सावला और आम सी शकल सूरत. देखने में उसमें कोई भी ख़ास बात नही थी जो एक लड़के को पसंद आए. उसने एक सफेद रंग की सलवार कमीज़ पहेन रखी थी.

मुझे अपनी तरफ ऐसे देखते पाया तो हँस पड़ी.

"मैने यहीं रहती हूँ, वो वहाँ पर मेरा घर है" हाथ से उसने पहाड़ के ढलान पर बने एक घर की तरफ इशारा किया "अक्सर शहर से लोग आते हैं और यहाँ रास्ता भूल जाया करते हैं. गेस्ट हाउस जाना है ना आपने?"

"हां पर यहाँ सब रास्ते एक जैसे ही लग रहे हैं. समझ ही नही आता के कौन से पहाड़ पर चढ़ु और किस से नीचे उतर जाऊं" मैने भी हँसी में उसका साथ देते हुए कहा.

मैं देल्ही से सरकारी काम से आया था. पेशे से मैं एक फोटोग्राफर हूँ और काई दिन से अफवाह सुनने में आ रही थी के यहाँ जंगल में एक 10 फुट का कोब्रा देखा गया है. इतना बड़ा कोब्रा हो सकता है इस बात पर यकीन करना ही ज़रा मुश्किल था पर जब बार बार कई लोगों ने ऐसा कहा तो मॅगज़ीन वालो ने मुझे यहाँ भेज दिया था के मैं आकर पता करूँ और अगर ऐसा साँप है तो उसकी तस्वीरें निकालु.

उत्तरकाशी तक मेरी ट्रिप काफ़ी आसान रही. देल्ही से मैं अपनी गाड़ी में आया था जो मैने उत्तरकाशी छ्चोड़ दी थी क्यूंकी वान्हा से उस गाओं तक जहाँ साँप देखा गया था, का रास्ता पैदल था. कोई सड़क नही थी, बस एक ट्रॅक थी जिसपर पैदल ही चलना था. मुझे बताया गया था के वहाँ पर एक सरकारी गेस्ट हाउस भी है क्यूंकी कुच्छ सरकारी ऑफिसर्स वहाँ अक्सर छुट्टियाँ मनाने आया करते थे.

मैं गाओं पहुँचा तो गाओं के नाम पर बस 10-15 घर ही दिखाई दिए और वो भी इतनी दूर दूर के एक घर से दूसरे घर तक जाने का मातब एक पहाड़ से उतरकर दूसरे पहाड़ पर चढ़ना. ऐसे में मैं गेस्ट हाउस ढूंढता फिर ही रहा था के मुझे वो लड़की मिल गयी.

यूँ तो उसमें कोई भी ख़ास बात नही थी पर फिर भी कुच्छ ऐसा था जो फ़ौरन उसकी तरफ आकर्षित करता था.

उसके सफेद रंग के कपड़े गंदे थे, बाल उलझे हुए, और देख कर लगता था के वो शायद कई दिन से नहाई भी नही थी.

"आइए मैं आपको गेस्ट हाउस तक छ्चोड़ दूं"

और तब मैने पहली बार उसकी आँखो में देखा. नीले रंग की बेहद खूबसूरत आँखें. ऐसी के इंसान एक पल आँखों में आँखें डालकर देख ले तो बस वहीं खोकर रह जाए.

वो मेरे आगे आगे चल पड़ी. शाम ढल रही थी और दूर हिमालय के पहाड़ों पर सूरज की लाली फेल रही थी.

चारों तरफ पहाड़, नीचे वादियों में उतरे बदल, आसमान में हल्की लाली, लगता था कि अगर जन्नत कहीं है तो बस यहीं हैं.

"ये है गेस्ट हाउस" कुच्छ दूर तक उसके पिछे चलने के बाद वो मुझे एक पुराने बड़े से बंगलो तक ले आई.

"थॅंक यू" कहकर मैने अपना पर्स निकाला और उसे कुच्छ पैसे देने चाहे. वो देखने में ही काफ़ी ग़रीब सी लग रही थी और मुझे लगा के वो शायद कुच्छ पैसो के लिए मुझे रास्ता दिखा रही थी.

मेरे हाथ में पैसे देख कर उसको शायद बुरा लगा.

"मैने ये पैसे के लिए नही किया था"

और वो खूबसूरत नीली सी आँखें उदास हो गयी. ऐसा लगा जैसे मेरे चारो तरफ की पूरी क़ायनात उदास हो गयी थी.

"आइ आम सॉरी" मैने फ़ौरन पैसे वापिस अपनी जेब में रखे "मुझे लगा था के....."

"कोई बात नही" उसने मुस्कुरा कर मेरी बात काट दी.

मैने गेस्ट हाउस में दाखिल हुआ. मैने अंदर खड़ा देख ही रहा था के वहाँ के बुड्ढ़ा केर टेकर एक कमरे से बाहर निकला.

"मेहरा साहब?" उसने मुझे देख कर सवालिया अंदाज़ में मेरा नाम पुकारा

"जी हान" मैने आगे बढ़कर उससे हाथ मिलाया "आपसे फोन पर बात हुई थी"

"जी बिल्कुल" उसने मेरा हाथ गरम जोशी से मिलाया "मैने आपका कमरा तैय्यार कर रखा है"

उसने मेरे हाथ से मेरा बॅग लिया और एक गेस्ट हाउस से बाहर आकर एक गार्डेन की तरफ चल पड़ा. वो लड़की भी हम दोनो के साथ साथ हमारे पिछे चल पड़ी.
"तुमने घर नही जाना" मैने उसको आते देखा तो पुछा उसने इनकार में गर्दन हिला दी.

"मुझसे कुच्छ कहा साहिब" केर्टेकर ने आगे चलते चलते मुझसे पुछा

"नही इनसे बात कर रहा था" मैने लड़की की तरफ इशारा किया

हम तीनो चलते हुए गार्डेन के बीच बने एक कॉटेज तक पहुँचे. मुझे लगा था के एक पुराना सा गेस्ट और एक पुराना सा रूम होगा अपर जो सामने आया वो उम्मीद से कहीं ज़्यादा था. गेस्ट हाउस से अलग बना एक छ्होटा सा
कॉटेज जो पहाड़ के एकदम किनारे पर था. दूसरी तरफ एक गहरी वादी और सामने डूबता हुआ सूरज.

"कोब्रा मिले या ना मिले" मैं दिल ही दिल में सोचा "पर मैं यहाँ बार बार आता रहूँगा"

"आप आराम करिए साहब" केर्टेकर ने मेरे कॉटेज का दरवाज़ा खोला और समान अंदर रखते हुए कहा "वैसे तो यहाँ हर चीज़ का इंटेज़ाम है, बाकी और कुच्छ चाहिए हो तो मुझे बताईएएगा"

कहकर उसने हाथ जोड़े और वापिस गेस्ट हाउस की तरफ चला गया. पर वो लड़की वहीं खड़ी रही.

मैं कॉटेज के अंदर आया तो वो भी मेरे साथ साथ ही अंदर आ गयी.

"क्या हुआ?" मैने उसको यूँ अंदर आते देखा तो पुछा

जवाब में उसने सिर्फ़ कॉटेज का दरवाज़ा बंद कर दिया और पलटकर मेरी तरफ देखा. इससे पहले की मैं कुच्छ और समझ पाता, उसने अपने गले से दुपट्टा निकाल कर एक तरफ फेंक दिया.

"ओहो हो हो " मैं उसकी इस हरकत पर एकदम घबरा कर पिछे को हट गया "क्या कर रही हो?"

तभी मुझे केर्टेकर की 2 मिनट पहले कही बात याद आई के यूँ तो यहाँ सब इंटेज़ाम है, पर कुच्छ और चाहिए हो तो मैं उसको बता दूं.

"देखो अपना दुपट्टा प्लीज़ उठा लो. मेरी इस तरह की कोई ज़रूरत नही है. अगर तुम पैसो के लिए ये सब कर रही हो तो वो मैं तुम्हें ऐसे ही दे दूँगा"

वो मेरे सामने एक सफेद रंग की कमीज़ में बिना दुपट्टे के खड़ी थी. कमीज़ के पिछे से सफेद ब्रा ब्रा की स्ट्रॅप्स नज़र आ रही थी. जैसे ही मैने फिर पैसे की बात की, उसकी वो नीली आँखें फिर से उदास हो चली.

"आपको लगता है ये मैं पैसे के लिए कर रही हूँ? किस तरह की लड़की समझ रहे हैं आप मुझे?"

कहते हुए उसकी आँखों में पानी भर आया. मेरा दिल अचानक ऐसे उदास हुआ जैसे मेरा जाने क्या खो गया हो, दिल किया के छाती पीटकर, दहाड़े मारकर रो पडू, अपने कपड़े फाड़ दूं, इस पहाड़ से कूद कर अपनी जान दे दूं.

"नही मेरा वो मतलब नही था" मैने फ़ौरन बात संभालते हुए कहा "मुझे समझ नही आया के तुम ऐसा क्यूँ कर रही हो. मेरा मतल्ब....."

मैं कह ही रहा था के वो धीरे धीरे चलती मेरे नज़दीक आ गयी.

"ष्ह्ह्ह्ह्ह" कहते हुए उसने अपनी अंगुली मेरे होंठों पर रख दी "यूँ कहिए के ये मैं सिर्फ़ इसलिए कर रही हूँ क्यूंकी आप पसंद हैं मुझे"

बाहर हल्का हल्का अंधेरा हो चला था. कमरे के अंदर भी कोई लाइट नही थी. उस हल्के अंधेरे में मैने एक नज़र उस पर डाली तो मुझे एहसास हुआ के वो गंदी सी दिखने वाली लड़की असल में कितनी सुंदर थी.

वो दुनिया की सबसे सुंदर लड़की थी.

मैने बेधड़क होकर अपने होंठ आगे किए और उसके होंठों पर रख दिए. उन होंठों की नर्माहट जैसे मेरे होंठों से होती मेरे जिस्म के रोम रोम में उतर गयी. हम दोनो दीवाना-सार एक दूसरे को चूम रहे थे. वो कभी मेरे
चेहरे को सहलाती तो कभी मेरे बालों में उंगलियाँ फिराती. कद में मुझसे काफ़ी छ्होटी होने के कारण उसको शायद मुझे चूमने के लिए अपने पंजों पर उठना पड़ रहा था और मुझको काफ़ी नीचे झुकना पड़ रहा था. अपने
हाथों से मैने उसकी कमर को पकड़ रखा था और उसको उपेर की तरफ उठा रहा था.

और तब मुझे एहसास हुआ के उसको चूमते चूमते अब मैं पूरी तरह सीधा खड़ा था. उसका चेहरा अब बिल्कुल मेरे चेहरे के सामने था और उसकी बाहें मेरे गले में थी. मैने हैरत में एक नज़र उसके पैरों की तरफ डाली तो
पता चला के मैने उसको कमर से पकड़ कर उपेर को उठा लिया था और उसकी पावं हवा में झूल रहे थे.

वो किसी फूल की तरह हल्की थी. मुझे एहसास ही नही हो रहा था के मैने एक जवान लड़की को यूँ अपने हाथों के बल हवा में पकड़ रखा है. ज़रा भी थकान नही. अगर वो उस वक़्त ना बोलती तो पता नही मैं कब तक उसको यूँ ही हवा में उठाए चूमता रहता.

"बिस्तर" उसने मुझे चूमते चूमते अपने होंठ पल भर के लिए अलग किए और उखड़ती साँसों के बीच बोली.

इशारा समझ कर मैं फ़ौरन उसको यूँ उठाए उठाए रूम के एक कोने में बने बेड तक लाया और उसको नीचे लेटाकार खुद उसके उपेर आ गया.

मैं इससे पहले भी कई बार कई अलग अलग लड़कियों के साथ बिस्तर पर जा चुका था इसलिए अंजान खिलाड़ी तो नही था. जानता था के क्या करना है पर उस वक़्त जैसे दिमाग़ ने काम करना ही बंद कर दिया था. जितना मज़ा मुझे उस वक़्त उसको चूमने में आ रहा था उठा तो कभी किसी लड़की को छोड़ कर भी नही आया था.

"एक मिनट" मैं एक पल के लिए अलग होता हुआ बोला "किस हद तक तुम्हारे लिए ठीक है"

आख़िर वो एक छ्होटे से गाओं की लड़की थी. पहली बार में सब कुच्छ शायद उसको ठीक ना लगे.

"मैं पूरी तरह से आपकी हूँ" उसने हल्की सी आवाज़ में कहा और फिर मुझे अपने उपेर खींच लिया.
दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः...................





SAFED LIBAAS -1


"Raasta bhool gaye hain kya sahib" Aawaz sunkar main palta

Vo ek chhote se kad ki ladki thi, mushkil se 5 foot, rang sawla aur aam si shakal soorat. Dekhne mein usmein koi bhi khaas baat nahi thi jo ek ladke ko pasand aaye. Usne ek safed rang ki salwar kameez pehen rakhi thi.

Mujhe apni taraf aise dekhte paya toh has padi.

"Maine yahin rehti hoon, vo vahan par mera ghar hai" Haath se usne pahad ke dhalan par bane ek ghar ki taraf ishara kiya "Aksar shehar se log aate hain aur yahan rasta bhool jaya karte hain. Guest house jana hai na aapne?"

"Haan par yahan sab raaste ek jaise hi lag rahe hain. Samajh hi nahi aata ke kaun se pahad par chadhun aur kis se neeche utar jaoon" Maine bhi hasi mein uska saath dete hue kaha.

Main Delhi se sarkari kaam se aaya tha. Peshe se main ek photographer hoon aur kayi din se afwah sunne mein aa rahi thi ke yahan jungle mein ek 10 foot ka cobra dekha gaya hai. Itna bada cobra ho sakta hai is baat par yakeen karna hi zara mushkil tha par jab baar baar kai logon ne aisa kaha toh magazine walo ne mujhe yahan bhej diya tha ke main aakar pata karun aur agar aisa saanp hai toh uski tasveeren nikalun.

Uttarkashi tak meri trip kaafi aasan rahi. Delhi se main apni gaadi mein aaya tha jo maine Uttarkashi chhod di thi kyunki ahan se us gaon tak jahan saanp dekha gaya tha, ka rasta paidal tha. Koi sadak nahi thi, bas ek track thi jispar paidal hi chalna tha. Mujhe bataya gaya tha ke vahan par ek sarkari guest house bhi hai kyunki kuchh sarkari officers vahan aksar chhuttiyan manane aaya karte the.

Main gaon pahuncha toh gaon ke naam par bas 10-15 ghar hi dikhai diye aur vo bhi itni door door ke ek ghar se doosre ghar tak jaane ka matab ek pahad se utarakar doosre pahad par chadhna. Aise mein main guest house dhoondhta phir hi raha tha ke mujhe vo ladki mil gayi.

Yun toh usmein koi bhi khaas baat nahi thi par phir bhi kuchh aisa tha jo fauran uski taraf aakarshit karta tha.

Uske safed rang ke kapde gande the, baal uljhe hue, aur dekh kar lagta tha ke vo shayad kai din se nahayi bhi nahi thi.

"Aaiye main aapko guest house tak chhod doon"

Aur tab maine pehli baar uski aankho mein dekha. Neele rang ki behad khoobsurat aankhen. Aisi ke insaan ek pal aankhon mein aankhen daalkar dekh le toh bas vahin khokar reh jaaye.

Vo mere aage aage chal padi. Shaam dhal rahi thi aur door himalay ke pahadon par sooraj ki laali phel rahi thi.

Chaaron taraf pahad, neeche vaadiyon mein utre badal, aasman mein halki laali, lagta tha je agar jannat kahin hai toh bas yahin hain.

"Ye hai guest house" Kuchh door tak uske pichhe chalne ke baad vo mujhe ek purane bade se bungalow tak le aayi.

"Thank you" kehkar maine apna purse nikala aur use kuchh paise dene chahe. Vo dekhne mein hi kaafi gareeb si lag rahi thi aur mujhe laga ke vo shayad kuchh paiso ke liye mujhe rasta dikha rahi thi.

Mere haath mein paise dekh kar usko shayad bura laga.

"Maine ye paise ke liye nahi kiya tha"

Aur vo khoobsurat neeli si aankhen udaas ho gayi. Aisa laga jaise mere chaaro taraf ki poori qaaynat udaas ho gayi thi.

"I am sorry" Maine fauran paise vaapis apni jeb mein rakhe "Mujhe laga tha ke....."

"Koi baat nahi" Usne muskura kar meri baat kaat di.

Maine guest house mein daakhil hua. Maine andar khada dekh hi raha tha ke vahan ke buddha care taker ek kamre se bahar nikla.

"Mehra sahab?" Usne mujhe dekh kar sawaliya andaz mein mera naam pukara

"Ji haan" Maine aage badhkar usse haath milaya "Aapse phone par baat hui thi"

"Ji bilkul" Usne mera haath garam joshi se milaya "Maine aapka kamra taiyyar kar rakha hai"

Usne mere haath se mera bag liya aur ek guest house se bahar aakar ek garden ki taraf chal pada. Vo ladki bhi ham dono ke saath saath hamare pichhe chal padi.
"Tumne ghar nahi jana" Maine usko aate dekha toh puchha Usne inkaar mein gardan hila di.

"Mujhse kuchh kaha sahib" Caretaker ne aage chalte chalte mujhse puchha

"Nahi inse baat kar raha tha" Maine ladki ki taraf ishara kiya

Ham teeno chalte hue garden ke beech bane ek cottage tak pahunche. Mujhe laga tha ke ek purana sa guest aur ek purana sa room hoga apar jo saamne aaya vo ummeed se kahin zyada tha. Guest house se alag bana ek chhota sa
cottage jo pahad ke ekdam kinare par tha. Doosri taraf ek gehri vaadi aur saamne doobta hua sooraj.

"Cobra mile ya na mile" Main dil hi dil mein socha "Par main yahan baar baar aata rahunga"

"Aap aaram kariye saahab" Caretaker ne mere cottage ka darwaza khola aur saman andar rakhte hue kaha "Vaise toh yahan har cheez ka intezaam hai, baaki aur kuchh chahiye ho toh mujhe bataiyega"

Kehkar usne haath jode aur vaapis guest house ki taraf chala gaya. Par vo ladki vahin khadi rahi.

Main cottage ke andar aaya toh vo bhi mere saath saath hi andar aa gayi.

"Kya hua?" Maine usko yun andar aate dekha toh puchha

Jawab mein usne sirf cottage ka darwaza band kar diya aur palatkar meri taraf dekha. Isse pehle ki main kuchh aur samajh pata, usne apne gale se dupatta nikal kar ek taraf phenk diya.

"oho ho ho " Main uski is harkat par ekdam ghabra kar pichhe ko hat gaya "Kya kar rahi ho?"

Tabhi mujhe caretaker ki 2 min pehle kahi baat yaad aayi ke yun toh yahan sab intezaam hai, par kuchh aur chahiye ho toh main usko bata doon.

"Dekho apna dupatta please utha lo. Meri is tarah ki koi zaroorat nahi hai. Agar tum paiso ke liye ye sab kar rahi ho toh vo main tumhein aise hi de doonga"

Vo mere saamne ek safed rang ki kameez mein bina dupatte ke khadi thi. Kameez ke pichhe se safed bra bra ki straps nazar aa rahi thi. Jaise hi maine phir paise ki baat ki, uski vo neeli aankhen phir se udaas ho chali.

"Aapko lagta hai ye main paise ke liye kar rahi hoon? Kis tarah ki ladki samajh rahe hain aap mujhe?"

Kehte hue uski aankhon mein pani bhar aaya. Mera dil achanak aise udaas hua jaise mera jaane kya kho gaya ho, dil kiya ke chhati peetkar, dahade maarkar ro padun, apne kapde phaad doon, is pahad se kood kar apni jaan de doon.

"Nahi mera vo matlab nahi tha" Maine fauran baat sambhalte hue kaha "Mujeh samajh nahi aaya ke tum aisa kyun kar rahi ho. Mera matalb....."

Main keh hi raha tha ke vo dheere dheere chalti mere nazdeek aa gayi.

"Shhhhhh" Kehte hue usne apni anguli mere honthon par rakh di "Yun kahiye ke ye main sirf isliye kar rahi hoon kyunki aap pasand hain mujhe"

Bahar halka halka andhera ho chala tha. Kamre ke andar bhi koi light nahi thi. Us halke andhere mein maine ek nazar us par daali toh mujhe ehsaas hua ke vo gandi si dikhne wali ladki asal mein kitni sundar thi.

Vo duniya ki sabse sundar ladki thi.

Maine bekarak hokar apne honth aage kiye aur uske honthon par rakh diye. Un honthon ki narmahat jaise mere honthon se hoti mere jism ke rom rom mein utar gayi. Ham dono deewana-saar ek doosre ko choom rahe the. Vo kabhi mere
chehre ko sehlati toh kabhi mere baalon mein ungliyan phirati. Kad mein mujhse kaafi chhoti hone ke karan usko shayad mujhe choomne ke liye apne panjon par uthna pad raha tha aur mujhko kaafi neech jhukna pad raha tha. Apne
haathon se maine uski kamar ko pakad rakha tha aur usko uper ki taraf utha raha tha.

Aur tab mujhe ehsaas hua ke usko choomte choomte ab main poori tarah sidha khada tha. Uska chehra ab bilkul mere chehre ke saamne tha aur uski baahen mere gale mein thi. Maine hairat mein ek nazar uske pairon ki taraf daali toh
pata chala ke maine usko kamar se pakad kar uper ko utha liya tha aur uski paon hawa mein jhool rahe the.

Vo kisi phool ki tarah halki thi. Mujhe ehsaas hi nahi ho raha tha ke maine ek jawan ladki ko yun apne haathon ke bal hawa mein pakad rakha hai. Zara bhi thakaan nahi. Agar vo us waqt na bolti toh pata nahi main kab tak usko yun hi hawa mein uthaye choomta rehta.

"Bistar" Usne mujhe choomte choomte apne honth pal bhar ke liye alag kiye aur ukhadti saanson ke beech boli.

Ishara samajh kar main fauran usko yun uthaye uthaye room ke ek one mein bane bed tak laya aur usko neeche letakar khud uske uper aa gaya.

Main isse pehle bhi kai baar kai alag alag ladkiyon ke saath bistar par ja chuka tha isliye anjaan khiladi toh nahi tha. Janta tha ke kya karna hai par us waqt jaise dimag ne kaam karna hi band kar diya tha. Jitna maza mujhe us waqt usko choomne mein aa raha tha utha toh kabhi kisi ladki ko chod kar bhi nahi aaya tha.

"Ek min" Main ek pal ke liye alag hota hua bola "Kis had tak tumhare liye theek hai"

Aakhir vo ek chhote se gaon ki ladki thi. Pehli baar mein sab kuchh shayad usko theek na lage.

"Main poori tarah se aapki hoon" Usne halki si aawaz mein kaha aur phir mujhe apne uper khinch liya.
kramashah...................





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