पीहर से ससुराल तक--3
सुखराम का सीना रश्मि की कमर से और लंड उसकी गांड सेचिपका हुआ था । अपनी गांड से सुखराम के लंड का आकर का अनुमान लगा के रश्मि का दिल जोर जोर से धधकने लगा ।उसको लगा सायद आज उसकी खेर नहीं । सुखराम अपने लंड का दबाव रश्मि की गांड पे दे रहा था । सहर में इतनी रंडिय चोद चोद चूका सुखराम को आज तक ऐसी गांड मारने को नहीं मिली । सुखराम ने अपना कुरता उतार दिया अब उसका नंगा सीना रश्मि की नंगी कमर से ऐसे चिपक गया मानो किसी लोहे से चुम्बक चिपक गई हो । सुखराम ने एक हाथ रश्मि की गांड की गोलाइयो पे फैर कर देखा इतनी सख्त और चिकनी गांड आज उसने पहली बार देखि थी । सुखराम ने अपने पायजामे का नाडा खोल दिया और उसका ८ इंच का लंड फनफनाता हुआ बाहर आ गया इन्द्र की बजाय उसके लंड की मोटाई ज्यादा थी । सुखराम अभी भी रश्मि के स्तनों को daba रहा था साथ हे उसकी गर्दन और गालों पे चुम्बन जड़ता जा रहा था निचे से उसका लंड रश्मि की गांड में घुसने का प्रयास कर रहा था उसका लंड बार बार रश्मि की गांड के छेद से रगड़ खा रहा rha लगातार रगड़न से सुखराम के लंड से रस की बुँदे टपकने लगी । अब उससे और नहीं रहा जा रहा था उसने रश्मि को उसी दशा में पलग पे सुला दिया और उसकी कमर को बीच से ऊपर उठा दिया रश्मि को कुतिया की पोजिसन में लेने के बाद सुखराम ने देखा की उसकी गांड का छेद एक दम गुलाबी था उसने अपनी एक ऊँगली उसकी गांड के छेद पे फेरी रश्मि को मानो करंट लग गया हो वो आगे की और खिसकने लगी परन्तु सुखराम ने उसको कास कर पकड़ लिया और एक हाथ से अपने लंड का सुपाडा रश्मि की गांड के छेद पे टिका दिया । रश्मि मिन्नत करने लगी की सुखराम पेचे से मत कर में मर जाउंगी फिर कभी कर लेना आज तो आगे से ही कर ले । पर सुखराम के सर पे तो मानो भुत सवार था उसको रश्मि की कोई बात सुने नहीं दे रही थी या सायद वो उसको उन्सुना कर रहा था ।
अपने एक हाथ से मुसल जैसे लंड को पकड़ कर उसने अपना लंड रश्मि की गांड में सरकाना सुरु किया । सुपाडा थोडा हे अन्दर गया होगा की रश्मि जोर से चिल्लाने लगी उसकी आँखों से आंसू निकल रहे थे वो रोने लग गई पर सुखराम ने इसकी कोई परवाह नहीं की वो तो आज रश्मि के बदन का पूरा रस लेना चाहता था । अब उसने एक धक्का और लगाया उसका लंड आधा अन्दर चला गया रश्मि एक दम बदहवास हो गई उसका सर चक्कर खाने लगा कुछ देर रुक कर सुखराम ने अपने लंड को अन्दर बहार करना सुरु किया । धीरे धीरे रश्मि का दर्द कुछ कम होने लगा अब उसको भी थोडा मजा आने लगा था परन्तु सुखराम का लंड तो अभी आधा हे अंदर गया था आधा तो बाहर ही था थोड़ी देर की चुदाई करने के बाद सुखराम ने एक जोरदार झटका दिया और उसका लंड ७ इंच तक रश्मि की गांड में चला गया । सुखराम के लंड पे थोडा खून लग गया । रश्मि की गांड इतनी टाईट थी की सुखराम के लंड की चमड़ी भी छील गई थी । उसको भी दर्द होने लगा था परन्तु सुखराम ने इसकी और कोई ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगा रहा जब दर्द थोडा कम हुआ तो सुखराम ने अपने झटको को बढ़ाना सुरु किया थोड़ी ही देर में दर्द की जगह मजे ने ले ली । अब तो रश्मि को भी इसका भरपूर मजा आने लगा । वो भी अपनी गांड उछाल उछाल कर सुखराम का साथ देने लगी । २० २५ मिनट की चुदाई के बाद सुखराम रश्मि की गांड में ही ढेर हो गया । आज रश्मि को लगा जैसे वो स्वर्ग की सैर कर आई हो । सान्त हो के रश्मि पलग पे उलटी हे लेट गई और सुखराम उसके ऊपर ही पड़ा रहा उसका लंड अभी भी रश्मि की गांड में ही था वो अब सिकुड़ गया था । और अपने आप रश्मि की गांड से बाहर आ गया था ।
अपने एक हाथ से मुसल जैसे लंड को पकड़ कर उसने अपना लंड रश्मि की गांड में सरकाना सुरु किया । सुपाडा थोडा हे अन्दर गया होगा की रश्मि जोर से चिल्लाने लगी उसकी आँखों से आंसू निकल रहे थे वो रोने लग गई पर सुखराम ने इसकी कोई परवाह नहीं की वो तो आज रश्मि के बदन का पूरा रस लेना चाहता था । अब उसने एक धक्का और लगाया उसका लंड आधा अन्दर चला गया रश्मि एक दम बदहवास हो गई उसका सर चक्कर खाने लगा कुछ देर रुक कर सुखराम ने अपने लंड को अन्दर बहार करना सुरु किया । धीरे धीरे रश्मि का दर्द कुछ कम होने लगा अब उसको भी थोडा मजा आने लगा था परन्तु सुखराम का लंड तो अभी आधा हे अंदर गया था आधा तो बाहर ही था थोड़ी देर की चुदाई करने के बाद सुखराम ने एक जोरदार झटका दिया और उसका लंड ७ इंच तक रश्मि की गांड में चला गया । सुखराम के लंड पे थोडा खून लग गया । रश्मि की गांड इतनी टाईट थी की सुखराम के लंड की चमड़ी भी छील गई थी । उसको भी दर्द होने लगा था परन्तु सुखराम ने इसकी और कोई ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगा रहा जब दर्द थोडा कम हुआ तो सुखराम ने अपने झटको को बढ़ाना सुरु किया थोड़ी ही देर में दर्द की जगह मजे ने ले ली । अब तो रश्मि को भी इसका भरपूर मजा आने लगा । वो भी अपनी गांड उछाल उछाल कर सुखराम का साथ देने लगी । २० २५ मिनट की चुदाई के बाद सुखराम रश्मि की गांड में ही ढेर हो गया । आज रश्मि को लगा जैसे वो स्वर्ग की सैर कर आई हो । सान्त हो के रश्मि पलग पे उलटी हे लेट गई और सुखराम उसके ऊपर ही पड़ा रहा उसका लंड अभी भी रश्मि की गांड में ही था वो अब सिकुड़ गया था । और अपने आप रश्मि की गांड से बाहर आ गया था ।
-- शाम को रश्मि की माँ काम पर से लौटी तो रश्मि की देखते ही उसको लगा रश्मि के व्यवहार में थोडा बदलाव था । रश्मि की चाल में भी एक लडखडात थी । उसकी माँ को सारा मामला समझते देर न लगी पर वो बोली कुछ नहीं । रात को जब रश्मि और उसकी माँ छत पे सो रहे थे तो रश्मि को अपनी पुरे दिन की घटनाएं याद आने लगी दिन भर का वाकया उसकी आँखों के सामने एक फिल्म की तरह चल रहा था रह रह कर उसको अपने काम क्रीडा के याद आ रही थी ।
दिन पर दिन बीत रहे थे ये सिलसिला यू ही चलता रहा । रोज इन्द्र आता और रश्मि के साथ इस खेल को खेलता और जबतक सुखराम गाव में रहा वो भी रश्मि के साथ अपनी आग को शांत कर लेता । अब तो रश्मि का जिस्म एक कली की जगह फूल बन गया था । उसकी चोली दिन दिन छोटी होती जा रही थी और अंगिया भी उसके स्तनों को पूरी तरह ढकने में असफल हो रही थी । उसके तन में गदराई और ज्यादा बढ़ गई थी । रश्मि की माँ ने सोचा क्यू न अब इस लड़की का विवाह कर देना चाहिए इस से पहले की और देर हो किसी भी परिवार में इसको ब्याह दे तो theek होगा वर्ना एक तो गरीबी और ऊपर से इस छोरी की जवानी हमको इस गाव में रहने न देगी ।
५ साल बाद रश्मि का बाप वापस गाव लौटा अब तक रश्मि २१ साल की हो चुकी थी । रश्मि की माँ ने उसके बाप को साड़ी बात बता दी उसने कहा रश्मि अब बड़ी हो गई हे गाव में कही अपनी बदनामी न हो जाए इस से पहले इस छोरी का ब्याह कर देना चाहिए । रश्मि के बाप ने भी बात मान ली उसे भी लगा की अब ज्यादा देर करना ठीक ना होगा इसलिए उसने तुरंत ही पास ही के कस्बे में रहने वाले एक परिवार में रश्मि के रिश्ते की बात चलाइ । लड़का उम्र में रश्मि से ७ साल बड़ा था पर अपने परिवार का इकलोता वारिस । किसी आचे दिन उन दोनों का विवाह कर दिया गया । पर रश्मि के दिमाग सेइन्द्र अभी भी निकल नहीं पा रहा था अपने से बड़ी उम्र के लड़के से ब्याह कर उसका मन बेचैन हो गया था वो तो अपने हम उम्र के साथ ही विवाह करना चाहती थी पर गरीबी जब घर के रास्ते हे आती हे तो साड़ी इछाये खिड़की से बाहर चली जाती हे । मजबूर हो के उसको ये विवाह करना पड़ा । वो इस चीज का विरोध भी नहीं कर सकी अपने सपनो को अपने मन में दफना के वो अपने ससुराल चली गई ।
आज रश्मि की सुहागरात है । कमरा फूलो से सजा है । सेज पे बैठी रश्मि अपने पति का इन्तजार कर रही है । उसके मन में किसी तरह का कोई डर नहीं है जैसा की एक नई नवेली दुल्हन को अपनी सुहागरात को होता है । क्यू की उसको पता है की सुहागरात को क्या क्या होता है वो तो बस चुप चाप सेज पे बैठी हुई है और आने वाले पलों की प्रतीक्षा कर रही है की कब उसके साजन आये और उसकी भावनाओं को दबा दे । काफी समय बाद करीब आधी रात को उसके पति ने कमरे में प्रवेश किया । उसका पारी अपनी उम्र के हिसाब से काफी छोटा देखता था और वो था भी खुबसूरत । रश्मि उसको देखते ही उसकी उम्र को भूल गई और उसकी खूबसूरती में खो गई । उसने सोचा की वो कितनी भग्य साली है जो उसको इतना अच्छा और खुबसूरत पति मिला अब उसके मन से इन्द्र के ख्याल बहार निकल गए थे वो अपने साजन के रूप में खो गई थी ।
५ साल बाद रश्मि का बाप वापस गाव लौटा अब तक रश्मि २१ साल की हो चुकी थी । रश्मि की माँ ने उसके बाप को साड़ी बात बता दी उसने कहा रश्मि अब बड़ी हो गई हे गाव में कही अपनी बदनामी न हो जाए इस से पहले इस छोरी का ब्याह कर देना चाहिए । रश्मि के बाप ने भी बात मान ली उसे भी लगा की अब ज्यादा देर करना ठीक ना होगा इसलिए उसने तुरंत ही पास ही के कस्बे में रहने वाले एक परिवार में रश्मि के रिश्ते की बात चलाइ । लड़का उम्र में रश्मि से ७ साल बड़ा था पर अपने परिवार का इकलोता वारिस । किसी आचे दिन उन दोनों का विवाह कर दिया गया । पर रश्मि के दिमाग सेइन्द्र अभी भी निकल नहीं पा रहा था अपने से बड़ी उम्र के लड़के से ब्याह कर उसका मन बेचैन हो गया था वो तो अपने हम उम्र के साथ ही विवाह करना चाहती थी पर गरीबी जब घर के रास्ते हे आती हे तो साड़ी इछाये खिड़की से बाहर चली जाती हे । मजबूर हो के उसको ये विवाह करना पड़ा । वो इस चीज का विरोध भी नहीं कर सकी अपने सपनो को अपने मन में दफना के वो अपने ससुराल चली गई ।
आज रश्मि की सुहागरात है । कमरा फूलो से सजा है । सेज पे बैठी रश्मि अपने पति का इन्तजार कर रही है । उसके मन में किसी तरह का कोई डर नहीं है जैसा की एक नई नवेली दुल्हन को अपनी सुहागरात को होता है । क्यू की उसको पता है की सुहागरात को क्या क्या होता है वो तो बस चुप चाप सेज पे बैठी हुई है और आने वाले पलों की प्रतीक्षा कर रही है की कब उसके साजन आये और उसकी भावनाओं को दबा दे । काफी समय बाद करीब आधी रात को उसके पति ने कमरे में प्रवेश किया । उसका पारी अपनी उम्र के हिसाब से काफी छोटा देखता था और वो था भी खुबसूरत । रश्मि उसको देखते ही उसकी उम्र को भूल गई और उसकी खूबसूरती में खो गई । उसने सोचा की वो कितनी भग्य साली है जो उसको इतना अच्छा और खुबसूरत पति मिला अब उसके मन से इन्द्र के ख्याल बहार निकल गए थे वो अपने साजन के रूप में खो गई थी ।
और अंत में वही hua सुदेश एक बार तो रश्मि को बिना चोदे हे झड गया । उसका अन्डरवेअर उसके अपने ही रससे भीग गया । यह देख कर रश्मि खिलखिला कर हंस पड़ी परन्तु सुदेश की हालत देखने laayak थी । वो अपने आप में बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहा था । खेर थोड़ी ही देर के बाद वो फिर से तैयार हो गया । इस बार वो अपना संतुलन बना के चल रहा था । उसने रश्मि को गोद में उठाया और उसको पलंग पे पटक दिया । अब वो अपने खेल में जल्दबाजी नहीं करना चाहता था । वो धीरे धीरे रश्मि के स्तनों को मसलने लगा और चूसने लगा । कभी कभी उसका मुह रश्मि की नाभि पे आ जाता तो रश्मि भी सिहर उठती । ये देख कर सुदेश को भी जोश आ जाता । सुदेश रश्मि के ओठों का रसपान करता तो रश्मि उसके हथियार को खिंच कर लम्बा करने का प्रयास करती । थोड़ी देर के खेल के बाद सुदेश अपना मुह रश्मि की चिकनी चूत पे ले गया उसकी चूत गरम हो चुकी थी वो अब चुदने को एक दम तैयार थी पर सुदेश तो चाहता था की जल्दबाजी में एक बार फिर से काम बिगड़ सकता हे इसलिए उसने धैर्य रखा और अपना काम करता रहा । उसने अपनी नाक को रश्मि की चूत के पास ले जा क सुंघा एक मादक सी महक उसके दिमाग पे छा गई उसे लगा जैसे किसी ने उसको बिना पानी या सोडे के ही सराब पिला दी हो वो मदहोस सा हो गया उसकी आँखे अधखुली थी अपनी अधखुली आँखों से वो रश्मि की चूत को भी निहार रहा था । धीरे से उसने अपनी जीब बाहर निकली और बड़े इत्मीनान से उसको रश्मि की चूत की चीर पे फेरा रश्मि को मानो करंट सा लग गया हो तो फडफडा उठी उसने अपनी टांगो को आपस में चिपका लिया ।
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