हिंदी सेक्सी कहानियाँ
सफेद लिबास -2
गतान्क से आगे.............
कमरे में अब पूरी तरह अंधेरा था. बस हम दोनो के चूमने की आवाज़, कपड़ो की सरसराहट और भारी साँसों के अलावा और कोई आवाज़ नही थी.
पहाड़ों में शाम ढल जाने के बाद एक अजीब सा सन्नाटा फेल जाता है. दूर दूर तक सिर्फ़ हवा और किसी जानवर के चिल्लाने की आवाज़ को छ्चोड़कर और कुच्छ सुनाई नही पड़ता. कुच्छ को ये सन्नाटा बड़ा आरामदेह लगता है और कुच्छ को
ये सन्नाटा रुलाने की ताक़त भी रखता है. उस वक़्त भी यही आलम था. बाहर पूरी तरह अजीब सी खामोशी थी.
जैसे पूरी क़ायनत खामोश खड़ी हम दोनो के मिलन की गवाह बन रही हो. दिल की धड़कन इस तरह तेज़ हो चली थी के मुझे लग रहा था के कहीं कोई शोर ना सुन ले.
मेरा दिमाग़ कुन्द पड़ चुका था. आगे बढ़ने का ख्याल भी मेरे दिमाग़ में नही आ रहा था. उस पर चढ़ा बस उसको चूमे जा रहा था.
तभी उसने मेरा एक हाथ पकड़ा और अपने गले से हटाते हुए धीरे से नीचे लाई और अपनी एक छाती पर रख दिया.
एक बड़ा सा नरम गुदाज़ अंग मेरी हथेली में आ गया.
"इतने बड़े" ये पहला ख्याल था जो मेरे दिमाग़ में आया था. उसको पहली बार देख कर ये अंदाज़ा हो ही नही सकता था के उसकी चूचियाँ इतनी बड़ी बड़ी हैं.
"बड़ी पसंद है ना आपको?" उसने धीरे से मेरी कान में कहा.
और ये सच भी था. अपनी लाइफ में काई ऐसी लड़कियाँ जो मुझपर फिदा थी उनको मैने इसलिए रिजेक्ट किया था क्यूंकी उनकी चूचियाँ बड़ी बड़ी नही थी. मेरे हिसाब से एक औरत की सबसे पहली पहचान थी उसकी चूचियाँ और अगर वो ही औरत होने की गवाही ना दें तो फिर क्या फायडा.
"हां" मैने हाँफती हुई आवाज़ में कहा और अपने हाथ में आए उस बड़े से अंग को धीरे धीरे दबाने लगा. तब भी मेरे दिमाग़ में ये नही आया के दूसरी चूची भी पकड़ लूँ और वो जैसे मेरा दिमाग़ पढ़ रही थी. उसने मेरा दूसरा हाथ भी पकड़ा और अपनी दूसरी चूची पर रख दिया.
"ज़ोर ज़ोर से दबाओ. मसल डालो"
और मेरे लिए शायद इतना इशारा ही काफ़ी था. मैने उसकी चूचियों को जानवर की तरह मसलना शुरू कर दिया और उसके गले पर बेतहाशा चूमने लगा. कोई और लड़की होती तो शायद इस तरह चूची दबाए जाने पर दर्द से बिलबिला पड़ती पर उसने चूं तक नही करी.
जब उसने देखा के मैं बस उसकी गले पर चूम रहा हूँ तो उसने मेरा सर पकड़ा और अपनी चूचियों की तरफ धकेला.
दबाए जाने के कारण दोनो चूचियो का काफ़ी हिस्सा कमीज़ के उपेर से बाहर को निकल रहा था और मेरे होंठ सीधा वहीं जाकर रुके. मैने नीचे से चूचियों को उपेर की ओर दबाया ताकि वो और कमीज़ के बाहर आएँ और उनके उपेर अपने होंठ और अपनी जीभ फिराने लगा.
उसको इस बात का एहसास हो चुका था के मैं दबा दबा कर उसकी कमीज़ के गले से उसकी चूचियाँ जितनी हो सकें बाहर निकलना चाह रहा हूँ.
"चाहिए?" उसने पुछा
"हां?" मैने चौंकते हुए पुछा
"ये चाहिए?"
कमरे में पूरा अंधेरा था और मैं उसको बिल्कुल देख नही सकता था, बस उसके जिस्म को महसूस कर सकता था पर फिर भी उसके पुच्छने के अंदाज़ से मैं समझ गया के वो अपनी चूचियों की बात कर रही थी.
इससे पहले के मैं कोई जवाब देता, उसने मुझे पिछे को धकेला और उठकर बैठ गयी. उसके जिस्म की सरसराहट से मैं समझ गया था के वो अपनी कमीज़ उतार रही थी.
जब उसने फिर मेरे हाथ पकड़ कर अपनी चूचियों पर रखे तो इस बार मेरे हाथ को उसके नंगेपन का एहसास हुआ. उसने अपनी ब्रा भी उतार दी थी.
"किस रूप में चाहोगे मुझे?" उसने पुछा
मुझे सवाल समझ नही आया और इस बार भी उसने शायद मेरा दिमाग़ पढ़ लिया. इससे पहले के मैं उससे मतलब पुछ्ता वो खुद ही बोल पड़ी.
"किसे चोदना चाहोगे आज? जो चाहो मैं वही बनने को तैय्यार हूँ"
मुझे अब भी समझ नही आ रहा था.
"कहो तो तुम्हारी पड़ोसन, तुम्हारे दोस्त की बीवी, एक अंजान लड़की"
मुझे अब उसकी बात समझ आ रही थी. शहेर में हम इसे रोल प्लेयिंग कहते थे.
"कहो तो मैं एक रंडी बन जाऊं"
वो बोले जा रही थी.
"या कोई गंदी ख्वाहिश है तुम्हारी. अपनी माँ, या बहेन, या भाभी को चोदने की
ख्वाहिश?"
मैने फ़ौरन उसकी बात काटी.
"मेरी बीवी" पता नही कहा से मेरे दिमाग़ में ये ख्याल आया.
और इसके आगे मुझे कुच्छ कहने की ज़रूरत नही पड़ी.
"मेरे साथ आपकी पहली रात है पातिदेव. आपकी बीवी पूरी तरह आपकी है. जैसे चाहिए मज़ा लीजिए"
कहते हुए उसने मेरी कमीज़ के बटन खोलने शुरू कर दिए. मेरा दिमाग़ अब भी जैसे काम नही कर रहा था. जो कर रही थी, बस वो कर रही थी. लग रहा था जैसे वो मर्द हो और मैं औरत.
धीरे धीरे उसने मेरे सारे कपड़े उतार दिए और उस अंधेरे में उसकी बाहों में मैं पूरी तरह से नंगा हो गया.
"काफ़ी बड़ा है" उसके हाथ मेरे लंड पर थे. वो उसको सहला रही थी.
इस बार जब उसने मुझे अपने उपेर खींचा तो मैं सीधा उसकी टाँगो के बीच आया. उसने अब भी सलवार पहेन रखी थी पर मेरा पूरी तरह से खड़ा हो चुका लंड सलवार के उपेर से ही जैसे उसकी चूत के अंदर घुसता जा रहा था.
एक हाथ से वो अब भी कभी मेरे लंड को सहलाती तो कभी मेरे टट्टो को.
"ओह" मेरे लंड का दबाव चूत पर पड़ते ही वो कराही "चाहिए?"
फिर वही सवाल.
"बोलो ना. चाहिए? मुझे तो चाहिए"
फिर से एक बार वो उठकर बैठी. अंधेरे में फिर कपड़ो के सरसराने की आवाज़. मैं जानता था के वो सलवार उतार रही है.
"आ जाओ. चोदो मुझे" उस वक़्त उसके मुँह से वो गंदे माने जाने वाले शब्द भी कितने मीठे लग रहे थे.
उसने मुझे अपने उपेर खींच लिया. मैं फिर उसकी टाँगो के बीच था. मेरे अंदाज़ा सही निकला था. उसने अपनी सलवार उतार दी थी और अब नीचे से पूरी नंगी थी. मेरा लंड सीधा उसकी नंगी, भीगी और तपती हुई चूत पर आ पड़ा.
मैं ऐसे बर्ताव कर रहा था जैसे ये मेरा पहली बार हो. अपनी कमर हिलाकर मैं उसकी चूत में लंड घुसाने की कोशिश करने लगा.
"रूको मेरे सरताज" वो ऐसे बोली जैसे सही में मेरी बीवी हो "पहले अपनी बीवी को अपने पति का लंड चूसने नही दोगे"
किसी बच्चे की तरह मैं उसकी बात मानता हुआ बिस्तर पर सीधा लेट गया. वो घुटनो के बल उठकर बिस्तर पर बैठ गयी. अंधेरे में मुझे वो बिल्कुल नज़र नही आ रही थी. बल्कि नीचे ज़मीन पर पड़े उसके सफेद कपड़ो की सिवाय कुच्छ भी नही दिख रहा था.
मेरे लंड पर मुझे कुच्छ गीला गीला सा महसूस हुआ और मैं समझ गया के ये उसकी जीभ गयी. वो मेरा लंड चाट रही थी. कभी लंड पर जीभ फिराती तो कभी टट्टो पर. उसके एक हाथ ने जड़ से मेरा लंड पकड़ रखा था और
धीरे धीरे हिला रहा था.
और फिर मुझे वो एहसास हस जो कभी किसी लड़की को चोद्ते हुए नही हुआ था. उसने जब मेरा लंड अपने मुँह में लिया तो वो मज़ा दिया जो किसी लड़की की चूत में भी नही आया था.
बड़ी देर तक वो यूँ ही मेरा लंड चूस्ति रही. कभी चूस्ति, कभी चाटने लगी तो कभी बस यूँ ही बैठी हुई हाथ से हिलाती.
"बस" मैने बड़ी मुश्किल से कहा "मेरा निकल जाएगा"
वो फ़ौरन समझ गयी. अंधेरे में वो हिली, उसका जिस्म मुझे अपने उपेर आते हुए महसूस हुआ और मेरा लंड एक बेहद गरम, बेहद टाइट और बेहद गीली जगह में समा गया.
दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः...................
SAFED LIBAAS -2
gataank se aage.............
Kamre mein ab poori tarah andhera tha. Bas ham dono ke choomne ki aawaz, kapdo ki sarsarahat aur bhaari saanson ke alawa aur koi aawaz nahi thi.
Pahadon mein shaam dhal jaane ke baad ek ajeeb sa sannata phel jata hai. Door door tak sirf hawa aur kisi janwar ke chillane ki aawaz ko chhodkar aur kuchh sunai nahi padta. Kuchh ko ye sannata bada aaramdeh lagta hai aur kuchh ko
ye sannata rulane ki taaqat bhi rakhta hai. Us waqt bhi yahi aalam tha. Bahar poori tarah ajeeb si khamoshi thi.
Jaise poori qaaynat khamosh khadi ham dono ke milan ki gawah ban rahi ho. Dil ki dhadkan is tarah tez ho chali thi ke mujhe lag raha tha ke kahin koi shor na sun le.
Mera dimag kundh pad chuka tha. Aage badhne ka khyaal bhi mere dimag mein nahi aa raha tha. Us par chadha bas usko choome ja raha tha.
Tabhi usne mera ek haath pakda aur apne gale se hatate hue dheere se neeche laayi aur apni ek chhati par rakh diya.
Ek bada sa naram gudaaz ang meri hatheli mein aa gaya.
"Itne bade" Ye pehla khyaal tha jo mere dimag mein aaya tha. Usko pehli baar dekh kar ye andaza ho hi nahi sakta tha ke uski chhatiyan itni badi badi hain.
"Badi pasand hai na aapko?" Usne dheere se meri kaan mein kaha.
Aur ye sach bhi tha. Apni life mein kayi aisi ladkiyan jo mujhpar fida thi unko maine isliye reject kiya tha kyunki unki chhatiyan badi badi nahi thi. Mere hisaab se ek aurat ki sabse pehli pehchan thi uski chhatiyan aur agar vo hi aurat hone ki gawahi na den toh phir kya fayda.
"Haan" Maine haanfti hui aawaz mein kaha aur apne haath mein aaye us bade se ang ko dheere dheere dabane laga. Tab bhi mere dimag mein ye nahi aaya ke doosri chhati bhi pakad loon aur vo jaise mera dimag padh rahi thi. Usne mera doosra haath bhi pakda aur apni doosri chhati par rakh diya.
"Zor zor se dabao. Masal daalo"
Aur mere liye shayad itna ishara hi kaafi tha. Maine uski chhatiyon ko jaanwar ki tarah masalna shuru kar diya aur uske gale par betahasha choomne laga. Koi aur ladki hoti toh shayad is tarah chhati dabaye jaane par dard se bilbila padti par usne choon tak nahi kari.
Jab usne dekha ke main bas uski gale par choom raha hoon to usne mera sar pakda aur apni chhatiyon ki taraf dhakela.
Dabaye jaane ke karan dono chhatiyon ka kaafi hissa kameez ke uper se bahar ko nikal raha tha aur mere honth sidha vahin jaakar ruke. Maine neeche se chhatiyon ko uper ki aur dabaya taaki vo aur kameez ke bahar aayen aur unke uper apne honth aur apni jeebh phirane laga.
Usko is baat ka ehsaas ho chuka tha ke main daba daba kar uski kameez ke gale se uski chhatiyan jitni ho saken bahar nikalna chah raha hoon.
"Chahiye?" Usne puchha
"Haan?" Maine chaunkte hue puchha
"Ye chahiye?"
Kamre mein poora andhera tha aur main usko bilkul dekh nahi sakta tha, bas uske jism ko mehsoos kar sakta tha par phir bhi uske puchhne ke andaz se main samajh gaya ke vo apni chhatiyon ki baat kar rahi thi.
Isse pehle ke main koi jawab deta, usne mujhe pichh ko dhakela aur uthkar beth gayi. Uske jism ki sarsarahat se main samajh gaya tha ke vo apni kameez utaar rahi thi.
Jab usne phir mere haath pakad kar apni chhatiyon par rakhe toh is baar mere haath ko uske nangepan ka ehsaas hua. Usne apni bra bhi utaar di thi.
"Kis roop mein chahoge mujhe?" Usne puchha
Mujhe sawal samajh nahi aaya aur is baar bhi usne shayad mera dimag padh liya. Isse pehle ke main usse matlab puchhta vo khud hi bol padi.
"Kise chodna chahoge aaj? Jo chaho main vahi banne ko taiyyar hoon"
Mujhe ab bhi samajh nahi aa raha tha.
"Kaho toh tumhari padosan, tumhare dost ki biwi, ek anjaan ladki"
Mujhe ab uski baat samajh aa rahi thi. Sheher mein ham ise role playing kehte the.
"Kaho toh main ek randi ban jaoon"
Vo bole ja rahi thi.
"Ya koi gandi khwahish hai tumhari. Apni maan, ya behen, ya bhabhi ko chodne ki
khwahish?"
Maine fauran uski baat kaati.
"Meri biwi" Pata nahi kaha se mere dimag mein ye khyaal aaya.
Aur iske aage mujhe kuchh kehne ki zaroorat nahi padi.
"Mere saath aapki pehli raat hai patidev. Aapki biwi poori tarah aapki hai. Jaise chahiye maza lijiye"
Kehte hue usne meri kameez ke button kholne shuru kar diye. Mera dimag ab bhi jaise kaam nahi kar raha tha. Jo kar rahi thi, bas vo kar rahi thi. Lag raha tha jaise vo mard ho aur main aurat.
Dheere dheere usne mere saare kapde utaar diye aur us andhere mein uski baahon mein main poori tarah se nanga ho gaya.
"Kaafi bada hai" Uske haath mere lund par the. Vo usko sehla rahi thi.
Is baar jab usne mujhe apne uper khincha toh main sidha uski taango ke beech aaya. Usne ab bhi salwar pehen rakhi thi par mera poori tarah se khada ho chuka lund salwar ke uper se hi jaise uski choot ke andar ghusta ja raha tha.
Ek haath se vo ab bhi kabhi mere lund ko sehlati toh kabhi mere tatto ko.
"Ohhhhhh" Mere lund ka dabaav choot par padte hi vo karahi "Chahiye?"
Phir vahi sawal.
"Bolo na. Chahiye? Mujhe toh chahiye"
Phir se ek baar vo uthkar bethi. Andhere mein phir kapdo ke sarsarane ki aawaz. Main janta tha ke vo salwar utaar rahi hai.
"Aa jao. Chodo mujhe" Us waqt uske munh se vo gande maane jaane wale shabd bhi kitne meethe lag rahe the.
Usne mujhe apne uper khinch liya. Main phir uski taango ke beech tha. Mere andaza sahi nikla tha. Usne apni salwar utaar di thi aur ab neeche se poori nangi thi. Mera lund sidha uski nangi, bheegi aur tapti hui choot par aa pada.
Main aise bartaav kar raha tha jaise ye mera pehli baar ho. Apni kamar hilakar main uski choot mein lund ghusane ki koshish karne laga.
"Ruko mere sartaj" Vo aise boli jaise sahi mein meri biwi ho "Pehle apni biwi ko apne pati ka lund choosne nahi doge"
Kisi bachche ki tarah main uski baat manta hua bistar par sidha let gaya. Vo ghutno ke bal uthkar bistar par beth gayi. Andhere mein mujhe vo bilkul naazar nahi aa rahi thi. Balki neeche zameen par pade uske safed kapdo ki sivaay kuchh bhi nahi dikh raha tha.
Mere lund par mujhe kuchh geela geela sa mehsoos hua aur main samajh gaya ke ye uski jeebh gayi. Vo mera lund chaat rahi thi. Kabhi lund par jeebh phirati toh kabhi tatto par. Uske ek haath ne jad se mera lund pakad rakha tha aur
dheere dheere hila raha tha.
Aur phir mujhe vo ehsaas hus jo kabhi kisi ladki ko chodte hue nahi hua tha. Usne jab mera lund apne munh mein liya toh vo maza diya jo kisi ladki ki choot mein bhi nahi aaya tha.
Badi der tak vo yun hi mera lund choosti rahi. Kabhi choosti, kabhi chaatne lagi toh kabhi bas yun hi bethi hui haath se hilati.
"Bas" Maine badi mushkil se kaha "Mera nikal jaayega"
Vo fauran samajh gayi. Andhere mein vo hili, uska jism mujhe apne uper aate hue mehsoos hua aur mera lund ek behad garam, behad tight aur behad geeli jagah mein sama gaya.
kramashah...................
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सफेद लिबास -2
गतान्क से आगे.............
कमरे में अब पूरी तरह अंधेरा था. बस हम दोनो के चूमने की आवाज़, कपड़ो की सरसराहट और भारी साँसों के अलावा और कोई आवाज़ नही थी.
पहाड़ों में शाम ढल जाने के बाद एक अजीब सा सन्नाटा फेल जाता है. दूर दूर तक सिर्फ़ हवा और किसी जानवर के चिल्लाने की आवाज़ को छ्चोड़कर और कुच्छ सुनाई नही पड़ता. कुच्छ को ये सन्नाटा बड़ा आरामदेह लगता है और कुच्छ को
ये सन्नाटा रुलाने की ताक़त भी रखता है. उस वक़्त भी यही आलम था. बाहर पूरी तरह अजीब सी खामोशी थी.
जैसे पूरी क़ायनत खामोश खड़ी हम दोनो के मिलन की गवाह बन रही हो. दिल की धड़कन इस तरह तेज़ हो चली थी के मुझे लग रहा था के कहीं कोई शोर ना सुन ले.
मेरा दिमाग़ कुन्द पड़ चुका था. आगे बढ़ने का ख्याल भी मेरे दिमाग़ में नही आ रहा था. उस पर चढ़ा बस उसको चूमे जा रहा था.
तभी उसने मेरा एक हाथ पकड़ा और अपने गले से हटाते हुए धीरे से नीचे लाई और अपनी एक छाती पर रख दिया.
एक बड़ा सा नरम गुदाज़ अंग मेरी हथेली में आ गया.
"इतने बड़े" ये पहला ख्याल था जो मेरे दिमाग़ में आया था. उसको पहली बार देख कर ये अंदाज़ा हो ही नही सकता था के उसकी चूचियाँ इतनी बड़ी बड़ी हैं.
"बड़ी पसंद है ना आपको?" उसने धीरे से मेरी कान में कहा.
और ये सच भी था. अपनी लाइफ में काई ऐसी लड़कियाँ जो मुझपर फिदा थी उनको मैने इसलिए रिजेक्ट किया था क्यूंकी उनकी चूचियाँ बड़ी बड़ी नही थी. मेरे हिसाब से एक औरत की सबसे पहली पहचान थी उसकी चूचियाँ और अगर वो ही औरत होने की गवाही ना दें तो फिर क्या फायडा.
"हां" मैने हाँफती हुई आवाज़ में कहा और अपने हाथ में आए उस बड़े से अंग को धीरे धीरे दबाने लगा. तब भी मेरे दिमाग़ में ये नही आया के दूसरी चूची भी पकड़ लूँ और वो जैसे मेरा दिमाग़ पढ़ रही थी. उसने मेरा दूसरा हाथ भी पकड़ा और अपनी दूसरी चूची पर रख दिया.
"ज़ोर ज़ोर से दबाओ. मसल डालो"
और मेरे लिए शायद इतना इशारा ही काफ़ी था. मैने उसकी चूचियों को जानवर की तरह मसलना शुरू कर दिया और उसके गले पर बेतहाशा चूमने लगा. कोई और लड़की होती तो शायद इस तरह चूची दबाए जाने पर दर्द से बिलबिला पड़ती पर उसने चूं तक नही करी.
जब उसने देखा के मैं बस उसकी गले पर चूम रहा हूँ तो उसने मेरा सर पकड़ा और अपनी चूचियों की तरफ धकेला.
दबाए जाने के कारण दोनो चूचियो का काफ़ी हिस्सा कमीज़ के उपेर से बाहर को निकल रहा था और मेरे होंठ सीधा वहीं जाकर रुके. मैने नीचे से चूचियों को उपेर की ओर दबाया ताकि वो और कमीज़ के बाहर आएँ और उनके उपेर अपने होंठ और अपनी जीभ फिराने लगा.
उसको इस बात का एहसास हो चुका था के मैं दबा दबा कर उसकी कमीज़ के गले से उसकी चूचियाँ जितनी हो सकें बाहर निकलना चाह रहा हूँ.
"चाहिए?" उसने पुछा
"हां?" मैने चौंकते हुए पुछा
"ये चाहिए?"
कमरे में पूरा अंधेरा था और मैं उसको बिल्कुल देख नही सकता था, बस उसके जिस्म को महसूस कर सकता था पर फिर भी उसके पुच्छने के अंदाज़ से मैं समझ गया के वो अपनी चूचियों की बात कर रही थी.
इससे पहले के मैं कोई जवाब देता, उसने मुझे पिछे को धकेला और उठकर बैठ गयी. उसके जिस्म की सरसराहट से मैं समझ गया था के वो अपनी कमीज़ उतार रही थी.
जब उसने फिर मेरे हाथ पकड़ कर अपनी चूचियों पर रखे तो इस बार मेरे हाथ को उसके नंगेपन का एहसास हुआ. उसने अपनी ब्रा भी उतार दी थी.
"किस रूप में चाहोगे मुझे?" उसने पुछा
मुझे सवाल समझ नही आया और इस बार भी उसने शायद मेरा दिमाग़ पढ़ लिया. इससे पहले के मैं उससे मतलब पुछ्ता वो खुद ही बोल पड़ी.
"किसे चोदना चाहोगे आज? जो चाहो मैं वही बनने को तैय्यार हूँ"
मुझे अब भी समझ नही आ रहा था.
"कहो तो तुम्हारी पड़ोसन, तुम्हारे दोस्त की बीवी, एक अंजान लड़की"
मुझे अब उसकी बात समझ आ रही थी. शहेर में हम इसे रोल प्लेयिंग कहते थे.
"कहो तो मैं एक रंडी बन जाऊं"
वो बोले जा रही थी.
"या कोई गंदी ख्वाहिश है तुम्हारी. अपनी माँ, या बहेन, या भाभी को चोदने की
ख्वाहिश?"
मैने फ़ौरन उसकी बात काटी.
"मेरी बीवी" पता नही कहा से मेरे दिमाग़ में ये ख्याल आया.
और इसके आगे मुझे कुच्छ कहने की ज़रूरत नही पड़ी.
"मेरे साथ आपकी पहली रात है पातिदेव. आपकी बीवी पूरी तरह आपकी है. जैसे चाहिए मज़ा लीजिए"
कहते हुए उसने मेरी कमीज़ के बटन खोलने शुरू कर दिए. मेरा दिमाग़ अब भी जैसे काम नही कर रहा था. जो कर रही थी, बस वो कर रही थी. लग रहा था जैसे वो मर्द हो और मैं औरत.
धीरे धीरे उसने मेरे सारे कपड़े उतार दिए और उस अंधेरे में उसकी बाहों में मैं पूरी तरह से नंगा हो गया.
"काफ़ी बड़ा है" उसके हाथ मेरे लंड पर थे. वो उसको सहला रही थी.
इस बार जब उसने मुझे अपने उपेर खींचा तो मैं सीधा उसकी टाँगो के बीच आया. उसने अब भी सलवार पहेन रखी थी पर मेरा पूरी तरह से खड़ा हो चुका लंड सलवार के उपेर से ही जैसे उसकी चूत के अंदर घुसता जा रहा था.
एक हाथ से वो अब भी कभी मेरे लंड को सहलाती तो कभी मेरे टट्टो को.
"ओह" मेरे लंड का दबाव चूत पर पड़ते ही वो कराही "चाहिए?"
फिर वही सवाल.
"बोलो ना. चाहिए? मुझे तो चाहिए"
फिर से एक बार वो उठकर बैठी. अंधेरे में फिर कपड़ो के सरसराने की आवाज़. मैं जानता था के वो सलवार उतार रही है.
"आ जाओ. चोदो मुझे" उस वक़्त उसके मुँह से वो गंदे माने जाने वाले शब्द भी कितने मीठे लग रहे थे.
उसने मुझे अपने उपेर खींच लिया. मैं फिर उसकी टाँगो के बीच था. मेरे अंदाज़ा सही निकला था. उसने अपनी सलवार उतार दी थी और अब नीचे से पूरी नंगी थी. मेरा लंड सीधा उसकी नंगी, भीगी और तपती हुई चूत पर आ पड़ा.
मैं ऐसे बर्ताव कर रहा था जैसे ये मेरा पहली बार हो. अपनी कमर हिलाकर मैं उसकी चूत में लंड घुसाने की कोशिश करने लगा.
"रूको मेरे सरताज" वो ऐसे बोली जैसे सही में मेरी बीवी हो "पहले अपनी बीवी को अपने पति का लंड चूसने नही दोगे"
किसी बच्चे की तरह मैं उसकी बात मानता हुआ बिस्तर पर सीधा लेट गया. वो घुटनो के बल उठकर बिस्तर पर बैठ गयी. अंधेरे में मुझे वो बिल्कुल नज़र नही आ रही थी. बल्कि नीचे ज़मीन पर पड़े उसके सफेद कपड़ो की सिवाय कुच्छ भी नही दिख रहा था.
मेरे लंड पर मुझे कुच्छ गीला गीला सा महसूस हुआ और मैं समझ गया के ये उसकी जीभ गयी. वो मेरा लंड चाट रही थी. कभी लंड पर जीभ फिराती तो कभी टट्टो पर. उसके एक हाथ ने जड़ से मेरा लंड पकड़ रखा था और
धीरे धीरे हिला रहा था.
और फिर मुझे वो एहसास हस जो कभी किसी लड़की को चोद्ते हुए नही हुआ था. उसने जब मेरा लंड अपने मुँह में लिया तो वो मज़ा दिया जो किसी लड़की की चूत में भी नही आया था.
बड़ी देर तक वो यूँ ही मेरा लंड चूस्ति रही. कभी चूस्ति, कभी चाटने लगी तो कभी बस यूँ ही बैठी हुई हाथ से हिलाती.
"बस" मैने बड़ी मुश्किल से कहा "मेरा निकल जाएगा"
वो फ़ौरन समझ गयी. अंधेरे में वो हिली, उसका जिस्म मुझे अपने उपेर आते हुए महसूस हुआ और मेरा लंड एक बेहद गरम, बेहद टाइट और बेहद गीली जगह में समा गया.
दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः...................
SAFED LIBAAS -2
gataank se aage.............
Kamre mein ab poori tarah andhera tha. Bas ham dono ke choomne ki aawaz, kapdo ki sarsarahat aur bhaari saanson ke alawa aur koi aawaz nahi thi.
Pahadon mein shaam dhal jaane ke baad ek ajeeb sa sannata phel jata hai. Door door tak sirf hawa aur kisi janwar ke chillane ki aawaz ko chhodkar aur kuchh sunai nahi padta. Kuchh ko ye sannata bada aaramdeh lagta hai aur kuchh ko
ye sannata rulane ki taaqat bhi rakhta hai. Us waqt bhi yahi aalam tha. Bahar poori tarah ajeeb si khamoshi thi.
Jaise poori qaaynat khamosh khadi ham dono ke milan ki gawah ban rahi ho. Dil ki dhadkan is tarah tez ho chali thi ke mujhe lag raha tha ke kahin koi shor na sun le.
Mera dimag kundh pad chuka tha. Aage badhne ka khyaal bhi mere dimag mein nahi aa raha tha. Us par chadha bas usko choome ja raha tha.
Tabhi usne mera ek haath pakda aur apne gale se hatate hue dheere se neeche laayi aur apni ek chhati par rakh diya.
Ek bada sa naram gudaaz ang meri hatheli mein aa gaya.
"Itne bade" Ye pehla khyaal tha jo mere dimag mein aaya tha. Usko pehli baar dekh kar ye andaza ho hi nahi sakta tha ke uski chhatiyan itni badi badi hain.
"Badi pasand hai na aapko?" Usne dheere se meri kaan mein kaha.
Aur ye sach bhi tha. Apni life mein kayi aisi ladkiyan jo mujhpar fida thi unko maine isliye reject kiya tha kyunki unki chhatiyan badi badi nahi thi. Mere hisaab se ek aurat ki sabse pehli pehchan thi uski chhatiyan aur agar vo hi aurat hone ki gawahi na den toh phir kya fayda.
"Haan" Maine haanfti hui aawaz mein kaha aur apne haath mein aaye us bade se ang ko dheere dheere dabane laga. Tab bhi mere dimag mein ye nahi aaya ke doosri chhati bhi pakad loon aur vo jaise mera dimag padh rahi thi. Usne mera doosra haath bhi pakda aur apni doosri chhati par rakh diya.
"Zor zor se dabao. Masal daalo"
Aur mere liye shayad itna ishara hi kaafi tha. Maine uski chhatiyon ko jaanwar ki tarah masalna shuru kar diya aur uske gale par betahasha choomne laga. Koi aur ladki hoti toh shayad is tarah chhati dabaye jaane par dard se bilbila padti par usne choon tak nahi kari.
Jab usne dekha ke main bas uski gale par choom raha hoon to usne mera sar pakda aur apni chhatiyon ki taraf dhakela.
Dabaye jaane ke karan dono chhatiyon ka kaafi hissa kameez ke uper se bahar ko nikal raha tha aur mere honth sidha vahin jaakar ruke. Maine neeche se chhatiyon ko uper ki aur dabaya taaki vo aur kameez ke bahar aayen aur unke uper apne honth aur apni jeebh phirane laga.
Usko is baat ka ehsaas ho chuka tha ke main daba daba kar uski kameez ke gale se uski chhatiyan jitni ho saken bahar nikalna chah raha hoon.
"Chahiye?" Usne puchha
"Haan?" Maine chaunkte hue puchha
"Ye chahiye?"
Kamre mein poora andhera tha aur main usko bilkul dekh nahi sakta tha, bas uske jism ko mehsoos kar sakta tha par phir bhi uske puchhne ke andaz se main samajh gaya ke vo apni chhatiyon ki baat kar rahi thi.
Isse pehle ke main koi jawab deta, usne mujhe pichh ko dhakela aur uthkar beth gayi. Uske jism ki sarsarahat se main samajh gaya tha ke vo apni kameez utaar rahi thi.
Jab usne phir mere haath pakad kar apni chhatiyon par rakhe toh is baar mere haath ko uske nangepan ka ehsaas hua. Usne apni bra bhi utaar di thi.
"Kis roop mein chahoge mujhe?" Usne puchha
Mujhe sawal samajh nahi aaya aur is baar bhi usne shayad mera dimag padh liya. Isse pehle ke main usse matlab puchhta vo khud hi bol padi.
"Kise chodna chahoge aaj? Jo chaho main vahi banne ko taiyyar hoon"
Mujhe ab bhi samajh nahi aa raha tha.
"Kaho toh tumhari padosan, tumhare dost ki biwi, ek anjaan ladki"
Mujhe ab uski baat samajh aa rahi thi. Sheher mein ham ise role playing kehte the.
"Kaho toh main ek randi ban jaoon"
Vo bole ja rahi thi.
"Ya koi gandi khwahish hai tumhari. Apni maan, ya behen, ya bhabhi ko chodne ki
khwahish?"
Maine fauran uski baat kaati.
"Meri biwi" Pata nahi kaha se mere dimag mein ye khyaal aaya.
Aur iske aage mujhe kuchh kehne ki zaroorat nahi padi.
"Mere saath aapki pehli raat hai patidev. Aapki biwi poori tarah aapki hai. Jaise chahiye maza lijiye"
Kehte hue usne meri kameez ke button kholne shuru kar diye. Mera dimag ab bhi jaise kaam nahi kar raha tha. Jo kar rahi thi, bas vo kar rahi thi. Lag raha tha jaise vo mard ho aur main aurat.
Dheere dheere usne mere saare kapde utaar diye aur us andhere mein uski baahon mein main poori tarah se nanga ho gaya.
"Kaafi bada hai" Uske haath mere lund par the. Vo usko sehla rahi thi.
Is baar jab usne mujhe apne uper khincha toh main sidha uski taango ke beech aaya. Usne ab bhi salwar pehen rakhi thi par mera poori tarah se khada ho chuka lund salwar ke uper se hi jaise uski choot ke andar ghusta ja raha tha.
Ek haath se vo ab bhi kabhi mere lund ko sehlati toh kabhi mere tatto ko.
"Ohhhhhh" Mere lund ka dabaav choot par padte hi vo karahi "Chahiye?"
Phir vahi sawal.
"Bolo na. Chahiye? Mujhe toh chahiye"
Phir se ek baar vo uthkar bethi. Andhere mein phir kapdo ke sarsarane ki aawaz. Main janta tha ke vo salwar utaar rahi hai.
"Aa jao. Chodo mujhe" Us waqt uske munh se vo gande maane jaane wale shabd bhi kitne meethe lag rahe the.
Usne mujhe apne uper khinch liya. Main phir uski taango ke beech tha. Mere andaza sahi nikla tha. Usne apni salwar utaar di thi aur ab neeche se poori nangi thi. Mera lund sidha uski nangi, bheegi aur tapti hui choot par aa pada.
Main aise bartaav kar raha tha jaise ye mera pehli baar ho. Apni kamar hilakar main uski choot mein lund ghusane ki koshish karne laga.
"Ruko mere sartaj" Vo aise boli jaise sahi mein meri biwi ho "Pehle apni biwi ko apne pati ka lund choosne nahi doge"
Kisi bachche ki tarah main uski baat manta hua bistar par sidha let gaya. Vo ghutno ke bal uthkar bistar par beth gayi. Andhere mein mujhe vo bilkul naazar nahi aa rahi thi. Balki neeche zameen par pade uske safed kapdo ki sivaay kuchh bhi nahi dikh raha tha.
Mere lund par mujhe kuchh geela geela sa mehsoos hua aur main samajh gaya ke ye uski jeebh gayi. Vo mera lund chaat rahi thi. Kabhi lund par jeebh phirati toh kabhi tatto par. Uske ek haath ne jad se mera lund pakad rakha tha aur
dheere dheere hila raha tha.
Aur phir mujhe vo ehsaas hus jo kabhi kisi ladki ko chodte hue nahi hua tha. Usne jab mera lund apne munh mein liya toh vo maza diya jo kisi ladki ki choot mein bhi nahi aaya tha.
Badi der tak vo yun hi mera lund choosti rahi. Kabhi choosti, kabhi chaatne lagi toh kabhi bas yun hi bethi hui haath se hilati.
"Bas" Maine badi mushkil se kaha "Mera nikal jaayega"
Vo fauran samajh gayi. Andhere mein vo hili, uska jism mujhe apne uper aate hue mehsoos hua aur mera lund ek behad garam, behad tight aur behad geeli jagah mein sama gaya.
kramashah...................
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