मासूम--2
गतान्क से आगे...................
विट्ठल ने जो भी उसके शरीर के अंदर छोड़ा था, अब वो बाहर निकल कर उसकी
टाँगो पर बहता महसूस हो
रहा था.
उस दिन जो हुआ था, उसका ज़िक्र सिरिशा ने कभी किसी से नही किया. फादर
पीटर से भी नही.
2 हफ्ते बाद ही उसे वो खबर सुनने को मिल गयी थी. गाओं में हर कोई इसी
बारे में बात कर रहा था.
विट्ठल की शादी राजलक्ष्मी से होने जा रही थी. विट्ठल की तरह ही
राजलक्ष्मी का परिवार भी आस पास के इलाक़े मे काफ़ी जाना माना था. पर
जहाँ विट्ठल के घरवाले सिर्फ़ व्यापारी थे और सिर्फ़ कपड़ो और जूतो का
धंधा करना जानते थे, वहीं राजलक्ष्मी के घरवाले पैसे के कारोबार में थे.
कर्ज़े पर पैसा देना और ब्याज़ कमाना, यही उनका काम था और पॉलिटीशियन और
बड़े बड़े लोगों के साथ उनका बहुत उठना बैठना था. ये कहना ग़लत नही होगा
के वो ताक़त और प्रतिष्ठा में विट्ठल के परिवार से 100 गुना ज़्यादा थे.
दो रईस और बड़े परिवार के बीच हो रहा ये रिश्ता जैसे उस वक़्त हर किसी की
ज़ुबान पर था.
जब सिरिशा को विट्ठल की शादी के बारे में पता चला तो वो खुद जैसे नफ़रत
के एक अंधे कुएँ में गिर गयी. धीरे धीरे नफ़रत बदला लेने की एक भारी
इच्छा में तब्दील होने लगी. उसे ऐसा लगने लगा जैसे वो विट्ठल से बदला
लेने के लिए, उसे तड़प्ता देखने के लिए कुच्छ भी करने को तैय्यार थी.
पर ऐसा कुच्छ ना तो वो कर पाई और ना ही उसे करने को मौका मिला. ज़िंदगी
यूँ ही धीरे धीरे आगे बढ़ती रही और वो अपने आप में कुढती रही, जलती रही.
कई बार दिल में ख्याल आया के सबको बता दे के विट्ठल ने उसके साथ क्या
किया था पर वो बखुबी जानती थी के ऐसा करना सिर्फ़ खुद उसे ही बदनाम करता.
उसकी ज़िंदगी अपनी स्कूल की किताबो और चर्च के बीच सिमट कर रह गयी थी.
"तू इतनी बड़ी भक्त कैसे बन गयी? अपनी उमर की लड़कियों को देखा है? सजने
सवरने से फ़ुर्सत नही मिलती उन्हें और तू है के बस पुजारन बनी बैठी है"
उसकी माँ ने एक दिन उसे कहा था.
"मुझे अच्छा लगता है चर्च जाना. वहाँ भगवान के सामने बैठती हूँ तो ऐसा
लगता है जैसे मेरा कुच्छ नही च्छूपा उनसे, सब देख रहे हैं वो" जवाब में
सिरिशा बस इतना ही कह पाई थी.
2 महीने गुज़र गये और उसने फिर कभी विट्ठल को नही देखा. फादर पीटर भी अब
अपने देश वापिस जा चुके थे. अब कन्फेशन बॉक्स में बैठकर उसने दिल का हाल
सुनने वाला और उसे समझने वाला कोई नही था.
और फिर बरसात का मौसम भी आ गया. पूरे अगस्त के महीने भी बारिश ने रुकने
का नाम नही लिया. बादल हर वक़्त आसमान में छाए रहते और कभी भी अचानक
बरसने लगते. गाओं की सड़कों पर हर तरफ कीचड़ जमा हो गया था और छत पर हर
वक़्त पड़ती बारिश की बूँदों की आवाज़ जैसे कभी कभी पागल
ही कर देती थी. और अगर बारिश रुकती भी थी तो हवा में इतनी नमी होती के
इंसान बैठे बैठे ही पसीने से नहा जाए और फिर बारिश की दुआ करने लगे.
और एक दिन, जबके उसका पूरा परिवार उसके छ्होटे भाई का बर्तडे मनाने के
लिए इकट्ठा हुआ था, कुच्छ ऐसा हुआ जिसका डर सिरिशा को हफ़्तो से सता रहा
था. वो अपने छ्होटे कज़िन के साथ बैठी बाल्कनी में खेल रही थी के अचानक
वो अंजान बच्चा सबके सामने बोल पड़ा.
"दीदी आप कितनी मोटी हो गयी हो. देखो आपका पेट कैसे बाहर को निकल आया है"
पूरे घर में हर किसी की नज़र सिरिशा के पेट की तरफ हो गयी थी. जैसे
सिरिशा के पेट का वो उठान देखा तो सबने था पर इंतेज़ार कर रहे थे के पहले
कौन बोलेगा.
उस दिन सिरिशा को ना स्कूल जाने दिया गया और ना चर्च.
"हमें यूँ शर्मिंदा करके तुझे क्या मिला?" उसकी माँ ने रोते हुए उससे
पुछा था "क्या कमी रह गयी थी हमारी तरफ से जो तूने हमें ये दिन दिखाया?
कौन करेगा अब तुझसे शादी? इस उमर में अपने बाप का नाम इस तरह उच्छालके
तुझे क्या हासिल हुआ? वो तो अच्छा हुआ के वो ये दिन देखने से पहले ही चल
बसे?
आज अगर वो ज़िंदा होते तो खड़े खड़े ही मर जाते"
सुबह शाम इस तरह की बातों का जैसे एक सिलसिला ही चल निकला. कभी उसकी माँ
तो कभी रिश्तेदार. हर कोई उसे यही बातें सुनाता रहता और हर किसी की
ज़ुबान पर एक ही सवाल था,
"बच्चे का बाप कौन है?"
और जब सिरिशा से और बर्दाश्त ना हुआ तो उसने हार कर उस दोपहर के बारे में
सबको बता दिया जब उसे राह चलते विट्ठल मिल गया था.
"अगर बदनाम होना ही था तो मेरी मासूम बच्ची अकेली बदनाम नही होगी. अपने
हिस्से की बदनामी विट्ठल भी उठाएगा" बात ख़तम होने पर उसकी माँ ने कहा था
और हर कोई हैरानी से उनकी तरफ देखने लगा था.
"इसको दाई के पास ले चलें? वो जानती हैं के बच्चा कैसे गिराते हैं" उसकी
बड़ी बहेन इंद्रा बोली
"तेरा दिमाग़ खराब हुआ है? उस औरत को बच्चा जानना तो आता नही, गिराएगी
क्या खाक" सिरिशा की माँ ने कहा
अगले दिन ही सिरषा अपनी माँ के साथ शहर के एक हॉस्पिटल में गयी थी.
टेस्ट्स से साबित हो गया था के वो प्रेग्नेंट थी.
"कुच्छ किया जा सकता है?" उसकी माँ ने डॉक्टर से पुछा
"जितनी जल्दी हो सके, इसकी शादी करा दीजिए" डॉक्टर ने जवाब दिया. वो उसके
पिता के एक पुराने दोस्त थे और अक्सर उनके घर आते जाते थे
"अब आप ही बताइए के इस मनहूस से शादी कौन करेगा? इस बच्चे का कुच्छ नही
हो सकता क्या?"
बाहर अब भी बारिश का मौसम था. आसमान में बदल इस कदर फेले हुए थे के दिन
में भी रात का एहसास होता था. कमरे में जल रहे बल्ब के चारो तरह अजीब
अजीब तरह के कीट पतंगे उड़ रहे थे.
"बच्चे का इंटेज़ाम मैं कर तो सकता हूँ" डॉक्टर बहुत धीमी आवाज़ में बोला
"पर पैदा होने के बाद. बच्चा इस वक़्त गिराया नही जा सकता. आपकी बेटी
वैसे ही बहुत दुबली पतली है और उपेर से 3 महीने की प्रेग्नेंट है. अगर जो
डेट्स ये हमें बता रही है वो सही हैं तो और 3 महीने में ये फुल टर्म हो
जाएगी. इस वक़्त कुच्छ भी किया तो मामला बिगड़ सकता है. बच्चे के साथ साथ
इसकी जान को भी ख़तरा हो सकता है"
"और अगर बच्चा पैदा किया" उसकी माँ ने मुँह बनाते हुए कहा "अगर पैदा किया
तो उसके बाद क्या?"
"मैं बच्चा रखना चाहती हूँ माँ" सिरिशा अचानक बोल पड़ी
"बेवकूफ़ मत बन"
"ये बच्चा मेरा है. मैं इसे पैदा करना चाहती हूँ. अपने पास रखना चाहती हूँ"
"और खर्चे कौन उठाएगा? कौन देखभाल करेगा तुम दोनो की?"
"मेरा होने वाला पति" सिरिशा ने अपनी माँ की आँख से पहली बार आँख मिलाई
"और कौन करेगा तुझसे शादी?"
"विट्ठल. मुझसे शादी वही करेगा जो मेरी इस हालत के लिए ज़िम्मेदार है"
"आपकी बेटी इतनी बेवकूफ़ है नही" डॉक्टर जो अब तक माँ बेटी की बातें सुन
रहा था बीच में बोल पड़ा.
"वैसे भी आपको इसकी शादी तो करनी है ही तो विट्ठल से ही एक बार बात चला
के देखिए. कोशिश करने में क्या हर्ज है?"
और फिर जैसा के सिरिशा चाहती थी, उसकी माँ उसे लेकर विट्ठल के घर जा
पहुँची. हैरानी सबको तब हुई जब विट्ठल ने बिना कोई ना नुकुर किए इस बात
की हामी भरी के उसने सिरिशा के साथ ज़बरदस्ती की थी. और उससे भी बड़ी
हैरानी तब हुई जब वो सिरिशा से शादी करने के लिए भी फ़ौरन तैय्यार हो
गया.
"शायद इतना बुरा ये है नही जितना मैं सोच रही थी" पहली बार सिरिशा के दिल
में विट्ठल के लिए एक नाज़ुक जगह बनी थी.
बात उड़ चुकी थी और साथ में उड़ चुका था विट्ठल के परिवार का नाम. हर तरफ
हो रही बदनामी से बचने का उनके पास अब एक ही रास्ता था और वो ये के जिस
ग़रीब लड़की का उनके बेटे ने फ़ायदा उठाया, वो उसे अपने घर की बहू बनाए.
और इसके लिए सबसे पहला कदम था राजलक्ष्मी के साथ तय हो चुकी विट्ठल की
शादी को तोड़ना.
किसी ने कहा के विट्ठल एक कायर था इसलिए शादी के लिए मान गया था.
किसी ने कहा के उसके घरवाले पोलीस के मामले में पड़ना नही चाहते थे इसलिए
शादी का ज़ोर डाला गया था.
किसी ने कहा था के सिरिशा ने विट्ठल पर रेप केस कर दिया था इसलिए शादी की
बात चला दी गयी थी.
किसी ने कहा, और जो कि खुद सिरिशा ने भी सोचा था, के विट्ठल उस बदसूरत
राजलक्ष्मी से शादी नही करना चाहता था इसलिए उसे फ़ौरन सिरिशा का हाथ थाम
लिया था. राजलक्ष्मी रईस और एक बड़े घराने से ज़रूर थी पर हर कोई जानता
था के वो देखने में सुंदर तो क्या, एक आम लड़की से भी गयी गुज़री थी,
और उपेर से कितनी मोटी भी तो थी वो. उसके मुक़ाबले मासूम सी दिखने वाली
सिरिशा तो जैसे आसमान से उतरी एक परी थी. विट्ठल ने ज़बरदस्ती राजलक्ष्मी
से हो रही अपनी शादी से बचने के लिए सिरिशा का सहारा लिया था.
मासूम--3
गतान्क से आगे...................
वजह जो भी थी, विट्ठल शादी के लिए मान गया था और उसने काफ़ी समझदार से
काम लिया था. और उससे कहीं ज़्यादा समझदारी दिखाई थी राजलक्ष्मी के
घरवालो ने. अंदर से भले ही उन्हें ही इस तरह रिश्ता तोड़ दिए जाने पर
बे-इज़्ज़ती महसूस हुई हो पर उपेर से उन्होने कुच्छ भी ज़ाहिर नही होने
दिया. और तो और, उन्होने तो विट्ठल के परिवार के साथ अपनी बोल-चाल भी
जारी रखी थी.
राजलक्ष्मी के तीनो भाइयों ने विट्ठल को अपने नये फार्म-हाउस पर आने का
नियोता तक भेज दिया ताकि दोनो परिवार के बीच जो कुच्छ भी हुआ था, वो
ख़ाता किया जा सके और वो लोग बिना दिल में कुच्छ रखे आगे बढ़ सकें.
विट्ठल भी यही चाहता था के इस सारे कांड में किसी को कोई नुकसान ना
पहुँचे इसलिए उसने फ़ौरन हां कर दी.
उसी दिन फार्म-हाउस की तरफ जाते हुए विट्ठल की कार का आक्सिडेंट हो गया
और उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया था. ना तो उस ट्रक का पता चला जिससे
विट्ठल की कार की टक्कर हुई थी और ना ही उस ट्रक ड्राइवर का.
3 दिन बाद विट्ठल का क्रिया करम कर दिया गया. एक बार फिर बातों का बाज़ार
गरम हो चला था. कुच्छ को भरोसा था के विट्ठल के साथ जो कुच्छ हुआ उसमें
भगवान का हाथ था. एक मासूम लड़की के साथ किए गये उसके सलूक की सज़ा भगवान
ने उसे दी थी. भगवान नाराज़ थे और यही वजह थी के इस साल इस क़दर
बरसात हुई थी.
कुच्छ लोगों का मानना था के विट्ठल मरा नही बल्कि उसे मारा गया है.
राजलक्ष्मी के परिवार वाले इज़्ज़त और रोबदार लोग थे. अपनी बेटी की यूँ
शादी तोड़ दिए जाने से सरे-आम हुई बदनामी को वो कैसे बर्दाश्त कर सकते
थे. 3 भाइयों की वो अकेली बहेन थी. अपनी बहेन का बदला लिया था भाइयों ने.
"कुच्छ भी हो भाय्या" क्रिया करम में शामिल होने आए लोगों में से किसी ने
कहा था "हम कौन हैं बोलने वाले? पोलीस ने तो लड़के का शरीर ठंडा पड़ने से
पहले ही आक्सिडेंट बोलकर फाइल बंद कर दी थी. आक्सिडेंट कैसे हुआ, क्यूँ
हुआ ये जाने की कोशिश तक नही की गयी थी.
हैरत की बात थी के इतने दिन से लगातार हो रही बरसात उस दिन रुकी थी जिस
दिन विट्ठल की चिता को आग दी गयी.
सबको लगा था के विट्ठल की मौत का सिरिशा को बहुत सदमा होगा. आख़िर वो
उसके बच्चे का बाप था और उसका होने वाला पति. और शायद ऐसा हुआ भी. सिरिशा
पूरी तरह मातम में शामिल थी. लोगों की बात माने तो ये सदमा था या
कुच्छ और पर ड्यू डेट आई और निकल गयी पर सिरिशा को बच्चा नही हुआ.
और जब हुआ तब तक ड्यू डेट को एक पूरा महीना निकल चुका था. यानी तब सिरिशा
पूरे 10 महीने की प्रेग्नेंट थी.
हॉस्पिटल का पूरा खर्चा विट्ठल के परिवार ने उठाया. शहर के एक महेंगे
हॉस्पिटल में बच्चे को जनम दिया गया और पैदा होने से पहले ही विट्ठल के
पिता इस बात के एलान कर चुके थे के बच्चे को विट्ठल का नाम दिया जाएगा और
उसे पाल पोसने का पूरा खर्चा वो खुद उठाएँगे.
वो खुद अपने पैरवार के साथ बच्चा हो जाने के बाद सिरिशा से मिलने भी आए
थे और बच्चे का नाम-करण कर गये थे.
पूरा दिन सिरिशा को अकेले रहने का बिल्कुल मौका नही मिला. लोगों का आना
जाना लगा रहा. कोई ना कोई उससे मिलने आता रहता. तरह तरह के गिफ्ट्स कोई
नयी माँ के लिए लाता तो बच्चे के लिए.
कोई उसके घर का था तो कोई विट्ठल के घर का जिन्होने शायद तकदीर के आगे
हार मान ली थी और अपने बेटे की निशानी, उसके बच्चे को अपना लिया था.
आने वालो में कोई शकल सूरत से बच्चे को सिरिशा जैसा बताता तो कोई विट्ठल जैसा.
अगले दिन जब उसकी माँ घर से कुच्छ समान लाने के लिए गयी तो सिरिशा को
पहली बार बच्चे के साथ अकेले होने का मौका मिला. उसने प्यार से अपने
बच्चे को गोद में लिया और उसकी तरफ तूकटुकी लगाकर देखने लगी.
एक नज़र में ही उसे एहसास हो गया था के बच्चा ना तो उसके जैसा दिखता था
और ना ही विट्ठल के जैसा.
बच्चे की आँखें भूरे रंग की थी और ब्राउन आइज़ ना तो सिरिशा की थी और ना विट्ठल की.
उन दोनो की क्या, पूरे गाओं में भूरी आँखें किसी की नही थी. तो
क्या................सोचो दोस्तो सिरिशा क्या वास्तव मे मासूम थी क्या
बच्चा वास्तव विट्ठल का था या फिर....
दोस्तो कैसी लगी ये कहानी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त........
Masoom--2
gataank se aage...................
Vitthal ne jo bhi uske shareer ke andar chhod tha, ab vo bahar nikal
kar uski taango par behta mehsoos ho
raha tha.
Us din jo hua tha, uska zikr Sirisha ne kabhi kisi se nahi kiya.
Father Peter se bhi nahi.
2 hafte baad hi use vo khabar sunne ko mil gayi thi. Gaon mein har koi
isi baare mein baat kar raha tha.
Vitthal ki shaadi Rajalakshmi se hone ja rahi thi. Vitthal ki tarah hi
Rajalakshmi ka pariwaar bhi aas paas ke ilaake bhi kaafi jana mana
tha. Par jahan Vitthal ke gharwale sirf vyapari thi aur sirf kapdo aur
jooto ka dhandha karna jaante the, vahin Rajalakshmi ke gharwale paise
ke kaarobar mein the. Karze par paisa dena aur byaaz kamana, yahi unka
kaam tha aur politician aur bade bade logon ke saath unka bahut uthna
bethna tha. Ye kehna galat nahi hoga ke vo taaqat aur pratishtha mein
Vitthal ke pariwar se 100 guna zyada the.
Do raees aur abde pariwar ke beech ho raha ye rishta jaise us waqt har
kisi ki zubaan par tha.
Jab Sirisha ko Vitthal ki shaadi ke baare mein pata chala toh vo khud
jaise nafrat ke ek andhe kuen mein gir gayi. Dheere dheere nafrat
badla lene ki ek bhaari ichha mein tabdeel hone lagi. Use aisa lagne
laga jaise vo Vitthal se badla lene ke liye, usse tadapta dekhne ke
liye kuchh bhi karne ko taiyyar thi.
Par aisa kuchh na toh vo kar paayi aur na hi use karne ko mauka mila.
Zindagi yun hi dheere dheere aage badhti rahi aur vo apne aap mein
kudhti rahi, jalti rahi. Kai baar dil mein khyaal aaya ke sabko bata
de ke Vitthal ne uske saath kya kiya tha par vo bakhubhi jaanti thi ke
aisa karna sirf khud use hi badnaam karta.
Uski zindagi apni school ki kitabo aur church ke beech simat kar reh gayi thi.
"Tu itni badi bhakt kaise ban gayi? Apni umar ki ladkiyon ko dekha
hai? Sajne sawarne se fursat nahi milti unhen aur tu hai ke bas
pujarin ban bethi hai" Uski maan ne ek din use kaha tha.
"ujhe achha lagta hai Church jana. Vahan bhagwan ke saamne bethti hoon
toh aisa lagta hai jaise mera kuchh nahi chhupa unse, sab dekh rahe
hain vo" Jawab mein Sirisha bas itna hi keh paayi thi.
2 mahine guzar gaye aur usne phir kabhi Vitthal ko nahi dekha. Father
Peter bhi ab apne desh vaapis ja chuke the. Ab confession box mein
bethkar usne dil ka haal sunne wala aur use samajhne wala koi nahi
tha.
Aur phir barsaat ka mausam bhi aa gaya. Poore August ke mahine bhi
baarish ne rukne ka naam nahi liya. Badal har waqt aasman mein chhaye
rehte aur kabhi bhi achanak barasne lagte. Gaon ki sadkon par har
taraf kichad jama ho gaya tha aur chhat par har waqt padti baarish ki
boondon ki aawaz jaise kabhi kabhi pagal
hi kar deti thi. Aur agar baarish rukti bhi thi toh hawa mein itni
nami hoti ke insaan bethe bethe hi pasine se naha jaaye aur phir
barish ki dua karne lage.
Aur ek din, jabke uska poora pariwaar uske chhote bhai ka birthday
manane ke liye ikattha hua tha, kuchh aisa hua jiska darr Sirisha ko
hafto se sata raha tha. Vo apne chhote cousin ke saath bethi balcony
mein khel rahi thi ke achanak vo anjaan bachcha sabke saamne bol pada.
"Didi aap kitni moti ho gayi ho. Dekho aapka pet kaise bahar ko nikal aaya hai"
Poore ghar mein har kisi ki nazar Sirisha ke pet ki taraf ho gayi thi.
Jaise Sirisha ke pet ka vo uthaan dekha toh sabne tha par intezaar kar
rahe the ke pehle kaun bolega.
Us din Sirisha ko na school jaane diya gaya aur na church.
"Hamein yun sharminda karke tujhe kya mila?" Uski maan ne rote hue
usse puchha tha "Kya kami reh gayi thi hamari taraf se jo tune hamein
ye din dikhaya? Kaun karega ab tujhse shaadi? Is umar mein apne baap
ka naam is tarah uchhalke tujhe kya haasil hua? Vo toh achha hua ke vo
ye din dekhne se pehle hi chal base?
Aaj agar vo zinda hote toh khade khade hi mar jaate"
Subah shaam is tarah ki baaton ka jaise ek silsila hi chal nikla.
Kabhi uski maan toh kabhi rishtedaar. Har koi use yahi baatein sunata
rehta aur har kisi ki zubaan par ek hi sawal tha,
"Bachche ka baap kaun hai?"
Aur jab Sirisha se aur bardasht na hua toh usne haar kar us dopahar ke
baare mein sabko bata diya jab use raah chalte Vitthal mil gaya tha.
"Agar badnaam hona hi tha toh meri masoom bachchi akeli badnaam nahi
hogi. Apne hisse ki badnami Vitthal bhi uthayega" Baat khatam hone par
uski maan ne kaha tha aur har koi hairani se unki taraf dekhne laga
tha.
"Isko daai ke paas le chalen? Vo jaanti hain ke bachcha kaise girate
hain" Uski badi behen Indra boli
"Tera dimaag kharab hua hai? Us aurat ko bachcha janna toh aata nahi,
girayegi kya khaak" Sirisha ki maan ne kaha
agale din hi Sirsha apni maan ke saath shehar ke ek hospital mein gayi
thi. Tests se saabit ho gaya tha ke vo pregnant thi.
"Kuchh kiya ja sakta hai?" Uski maan ne doctor se puchha
"Jitni jaldi ho sake, iski shaadi kara dijiye" Doctor ne jawab diya.
Vo uske pita ke ek purane dost the aur aksar unke ghar aate jaate the
"Ab aap hi bataiye ke is manhoos se shaadi kaun karega? Is bachche ka
kuchh nahi ho sakta kya?"
Bahar ab bhi baarish ka mausam tha. Aasman mein badal is kadar phele
hue the ke din mein bhi raat ka ehsaas hota tha. Kamre mein jal rahe
bulb ke chaaro tarah ajeeb ajeeb tarah ke keet patange ud rahe the.
"Bachche ka intezaam main kar toh sakta hoon" Doctor bahut dheemi
aawaz mein bola "Par paida hone ke baad. Bachcha is waqt giraya nahi
ja sakta. Aapki beti vaise hi bahut dubli patli hai aur uper se 3
mahine ki pregnant hai. Agar jo dates ye hamein bata rahi hai vo sahi
hain toh aur 3 mahine mein ye full term ho jaayegi. Is waqt kuchh bhi
kiya toh mamla bigad sakta hai. Bachche ke saath saath iski jaan ko
bhi khatra ho sakta hai"
"Aur agar bachcha paida kiya" Uski maan ne munh banate hue kaha "Agar
paida kiya toh uske baad kya?"
"Main bachcha rakhna chahti hoon maan" Sirisha achanak bol padi
"Bevakoof mat ban"
"Ye bachcha mera hai. Main ise paida karna chahti hoon. Apne paas
rakhna chahti hoon"
"Aur kharche kaun uthayega? Kaun dekhbhaal karega tum dono ki?"
"Mera hone wala pati" Sirisha ne apni maan ki aankh se pehli baar aankh milayi
"Aur kaun karega tujhse shaadi?"
"Vitthal. Mujhse shaadi vahi karega jo meri is halat ke liye zimmedar hai"
"Aapki beti itni bevakoof hai nahi" Doctor jo ab tak maan beti ki
baatein sun raha tha beech mein bol pada.
"Vaise bhi aapko iski shaadi toh karni hai hi toh Vitthal se hi ek
baar baat chalake dekhiye. Koshish karne mein kya harj hai?"
Aur phir jaisa ke Sirisha chahti thi, uski maan use lekar Vitthal ke
ghar ja pahunchi. Hairani sabko tab hui jab Vitthal ne bina koi na
nukur kiye is baat ki haami bhari ke usne Sirisha ke saath zabardasti
ki thi. Aur usse bhi badi hairani tab hui jab vo Sirisha se shaadi
karne ke liye bhi fauran taiyyar ho gaya.
"Shayad itna bura ye hai nahi jitna main soch rahi thi" Pehli baar
Sirisha ke dil mein Vitthal ke liye ek naazuk jagah bani thi.
Baat ud chuki thi aur saath mein ud chuka tha Vitthal ke pariwar ka
naam. Har taraf ho rahi badnami se bachne ka unke paas ab ek hi rasta
tha aur vo ye ke jis gareeb ladki ka unke bete ne fayda uthaya, vo use
apne ghar ki bahu banaye. Aur iske liye sabse pehla kadam tha
Rajalakshmi ke saath tai ho chuki Vitthal ki shaadi ko todna.
Kisi ne kaha ke Vitthal ek kaayar tha isliye shaadi ke liye maan gaya tha.
Kisi ne kaha ke uske gharwale police ke maamle mein padna nahi chahte
the isliye shaadi ka zor dala gaya tha.
Kisi ne kaha tha ke Sirisha ne Vitthal par rape case kar diya tha
isliye shaadi ki baat chala di gayi thi.
Kisi ne kaha, aur jo ki khud Sirisha ne bhi socha tha, ke Vitthal us
badsurat Rajalakshmi se shaadi nahi karna chahta tha isliye use fauran
Sirisha ka haath thaam liya tha. Rajalakshmi raees aur ek bade gharane
se zaroor thi par har koi jaanta tha ke vo dekhne mein sundar toh kya,
ek aam ladki se bhi gayi guzri thi,
Aur uper se kitni moti bhi toh thi vo. Uske mukaable Masoom si dikhne
wali Sirisha toh jaise aasman se utri ek pari thi. Vitthal ne
zabardasti Rajalakshmi se ho rahi apni shaadi se bachne ke liye
Sirisha ka sahara liya tha.
Vajah jo bhi thi, Vitthal shaadi ke liye maan gaya tha aur usne kaafi
samajhdar se kaam liya tha. Aur usse kahin zyada samajhdari dikhayi
thi Rajalakshmi ke gharwalo ne. Andar se bhale hi unhein hi is tarah
rishta tod diye jaane par be-izzati mehsoos hui ho par uper se unhone
kuchh bhi zaahir nahi hone diya. Aur to aur, unhone toh Vitthal ke
pariwar ke saath apni bol-chaal bhi jaari rakhi thi.
Rajalakshmi ke teeno bhaaiyon ne Vitthal ko apne naye farm-house par
aane ka niyota tak bhej diya taaki dono pariwar ke beech jo kuchh bhi
hua tha, vo khata kiya ja sake aur vo log bina dil mein kuchh rakhe
aage badh saken. Vitthal bhi yahi chahta tha ke is saare kaand mein
kisi ko koi nuksaan na pahunche isliye usne fauran haan kar di.
Usi din Farm-house ki taraf jaate hue Vitthal ki car ka accident ho
gaya aur usne mauke par hi dam tod diya tha. Na toh us truck ka pata
chala jisse Vitthal ki car ki takkar hui thi aur na hi us truck driver
ka.
3 din baad Vitthal ka kriya karam kar diya gaya. Ek baar phir baaton
ka bazar garam ho chala tha. Kuchh ko bharosa tha ke Vitthal ke saath
jo kuchh hua usmein bhagwan ka haath tha. Ek masoom ladki ke sath kiye
gaye uske salook ki saza bhagwan ne use di thi. Bhagwan naraz the aur
yahi vajah thi ke is saal is qadar
barsaat hui thi.
Kuchh logon ka maanna tha ke Vitthal mara nahi balki use mara gaya
hai. Rajalakshmi ka pariwar wale izzat aur robdaar log the. Apni beti
ki yun shaadi tod diye jaane se sare-aam hui badnami ko vo kaise
bardasht kar sakte the. 3 Bhaiyon ki vo akeli behen thi. Apni behen ka
badla liya tha bhaiyon ne.
"Kuchh bhi ho bhaiyya" Kriya karam mein shaamil hone aaye logon mein
se kisi ne kaha tha "Ham kaun hain bolne wale? Police ne toh ladke ka
shareer thanda padne se pehle hi accident bolkar file band kar di thi.
Accident kaise hua, kyun hua ye jaane ki koshish tak nahi ki gayi thi.
Hairat ki baat thi ke itne din se lagatar ho rahi barsaat us din ruki
thi jis din Vitthal ki chita ko aag di gayi.
Sabko laga tha ke Vitthal ki maut ka Sirisha ko bahut sadma hoga.
Aakhir vo uske bachche ka baap tha aur uska hone wala pati. Aur shayad
aisa hua bhi. Sirisha poori tarah matam mein shaamil thi. Logon ke
baat maane toh ye sadma tha ya
kuchh aur par Due date aayi aur nikal gayi par Sirisha ko bachcha nahi hua.
Aur jab hua tab tak Due date ko ek poora mahina nikal chuka tha. Yaani
tab Sirisha poore 10 mahine ki pregnant thi.
Hospital ka poora kharcha Vitthal ke pariwar ne uthaya. Shehar ke ek
mehenge hospital mein bachche ko janam diya gaya aur paida hone se
pehle hi Vitthal ke pita is baat ke elaan kar chuke the ke bachche ko
Vitthal ka naam diya jaayega aur use paal posne ka poora kharcha vo
khud uthayenge.
Vo khud apne pairwar ke saath bachcha ho jaane ke baad Sirisha se
milne bhi aaye the aur bachche ka naam-karan kar gaye the.
Poora din Sirisha ko akele rehne ka bilkul mauka nahi mila. Logon ka
aana jana laga raha. Koi na koi usse milne aata rehta. Tarah tarah ke
gifts koi nayi maan ke liye lata toh bachche ke liye.
Koi uske ghar ka tha toh koi Vitthal ke ghar ka jinhone shayad takdeer
ke aage haar maan li thi aur apne bete ki nishani, uske bachche ko
apna liya tha.
Aane walo mein koi shakal soorat se bachche ko Sirisha jaisa batata
toh koi Vitthal jaisa.
Agle din jab uski maan ghar se kuchh saman laane ke liye gayi toh
Sirisha ko pehli baar bachche ke saath akele hone ka mauka mila. Usne
pyaar se apne bachche ko god mein liya aur uski taraf tuktuki lagakar
dekhne lagi.
Ek nazar mein hi use ehsaas ho gaya tha ke bachcha na toh uske jaisa
dikhta tha aur na hi Vitthal ke jaisa.
Bachche ki aankhen bhoore rang ki thi aur brown eyes na toh Sirisha ki
thi aur na Vitthal ki.
Un dono ki kya, poore gaon mein bhoori aankhen kisi ki nahi thi.
samaapt........
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