FUN-MAZA-MASTI
परदेस से शुरू हुआ चुदाई का सिलसिला--14
गतांक से आगे...................
कुछ ही देर में मुझ पर मस्ती तारी होने लगी.
चलो अब एक एक करके सभी का अलग अलग स्वाद लिया जाया. हम्म........पहले किसको चखूँ.............हाँ उदिता से शुरुवात करता हूं.
मैंने उदिता की ओर रुख किया और उसकी पीठ से जा लगा. अपने पप्पू को उसके पीछे रगड़ने लगा.
दोनों हाथों से उसके मम्मे थामे और उन्हें मसलते हुए गर्दन पर चुप्पा चापी करने लगा.
कुछ देर मसला मसली का मज़ा लेने के बाद उसे घुमाया और गोद में लेते हुए अपने पेट पर चढ़ा लिया.
उसने अपने दोनों पैर मेरी कमर में लपेट दिए और अपनी बाहें मेरी गर्दन में.
बाकी सबने उसका वजन सँभालने के लिए उसकी कमर और नितम्बों को थाम लिया.
और फिर किसी ने मेरे पप्पू को अपने नाज़ुक हाथ में भरते हुए उसके योनिछिद्र पर टिकाया और उसे दबाते हुए पप्पू की उसके मोहल्ले में एंट्री करवा दी.
मैंने उसके मम्मों को अपनी छाती से चिपटाया और मुंह में मुंह डाल दिया.
अब सब हसीनाएं उसे उठा उठा कर मेरे पप्पू पर पेलने लगी.
लगभग एक मिनट मैं उसे रंभाता रहा और उसे मसल मसल कर भोगने के बाद फिर अपने मूसल पर से नीचे उतार दिया.
अब मैं शेफाली के मम्मो पर टूट पड़ा. काफी भरे पूरे थे. बहुत मज़ा आया.
और जब सबने उसे उठा कर उसे मेरे पप्पू पर पेला तो उसकी दरार में अलग ही मज़ा महसूस हुआ.
बहुत ही तंग दरार लगी जैसे कि वो कच्ची कलि हो. बहुत ही झूम झूम कर मज़े देने लगी.
उसे उतारने की इच्छा तो नहीं हो रही थी परन्तु सब सुंदरियों का भोग लगाने के लोभ में उस गार से अपनी राड खींची और फिर बारी आई पूनम पांडे की.
वो भयंकर सेक्सी एवं छरहरी कन्या थी. जैसे ही उसके मम्मे भींचे वो इतनी नाजों अदाएं दिखाने लगी कि उसे मोलेस्ट करने का मन होने लगा.
और जब उसको गोदी में उठा कर पप्पू को सरकाया तो लगा कि वो अन्दर कहीं टकराया...... उसके मुंह से आह निकली और उसने खुद अपने होंठ मेरे होंठो पर दे मारे.
सब उसके शरीर को उठा उठा कर घस्से मरवा रहे थे.....वो तो पता नहीं क्या हुआ उसे वो खुद भी मेरे पप्पू पे उछलने लग गई थी.
उसे जब मैंने बोला कि ‘बस’......तो वो बोली ‘नहीं, मैं तो आ रही हूं.........रुकना जरा भी मत......बस होने वाली हूं’
और फिर धमाधम उछाले खाने लगी थी.
जल्दी ही वो झड़ने के करीब पहुँच गई. गला फाड़ फाड़ कर जोर से चीख रही थी........
तभी किसी ने उसके पिछवाड़े में एक उंगली दे मारी........कहावत है ना कि ताबूत में आखरी कील. वो तुरंत फुरफुराने लगी और खल्लास हो गई.
अब मैंने याना को पकड़ा. उसको पीछे से बाँहों में भर कर जैसे ही उसके शरीर पर मेरे हाथ रेंगे, मैं दंग रह गया.
क्या किसी की त्वचा इतनी ज्यादा मुलायम हो सकती है. एकदम छुईमुई सी लगी.
और जब गोद में लेकर उसके अन्दर पेला तो बहुत ही कसावट भरा मुलायम और मखमली अहसास हुआ.
कुछ देर उसका अधर पान किया और फिर थोडा सा झुक कर उसके रेशमी मम्मे मुंह में भर लिए.
थोड़ी देर मखमली घिसाई करके उसे उतारा तो अब एक विदेशी स्वाद की तलब लगी.
अबकी बार स्थान परिवर्तन करने का विचार भी मन में आया.
मैं उस रशियन की कमर में हाथ डाल कर उसे पूल साइड पर लगे रिक्लाईनर की ओर ले चला. सभी हमारे पीछे पीछे बाहर आ गई.
मैं गीले बदन ही उस रिक्लाइनरपर लेट गया और उसको अपने पप्पू पर बैठा कर उसके अन्दर प्रवेश कर गया.
उसकी अत्यंत चर्बी रहित काया के साथ साथ उसकी सुरंग भी अति संकरी लगी और पप्पू महाशय अन्दर जकड लिए गए.
अब उसे अपने ऊपर लिटा कर घस्से मारने लगा. वो अपने पतले होंठो से मेरे होंठो की मुलायम मालिश कर रही थी.
वो एकदम दुबली पतली थी लेकिन भगवान से उसके उरोजों पर मेहरबानी करके उन्हें भरपूर चर्बी से नवाजा था. ऐसे भारी भरकम वक्ष मेरे सीने पर रोल हो रहे थे.
मैं अपने हाथों से उन्हें महसूस करने लगा. कुछ देर तक उस रूसी चिड़िया की फड़-फड़ाहट का लुत्फ़ लेने के बाद मेरी तवज्जो एक बार पुन: देसी माल पर गई.
उसके मेरे ऊपर से उठते ही, 'थोडा रेशम लगता है' फेम मेघना नायडू मेरे करीब आ गई.
भरे नितम्बो और गठीले वक्ष की मालकिन हालाँकि ढलने की कगार पे थी, फिर भी असीम गदराहट से भरी इस सांवली सलोनी को छकने से अपने आपको नहीं रोक पाया.
अब मैं भी उठ गया और उसे नीचे लिटा कर उसकी जांघो को फैला दिया.
उस पर झुकते ही पप्पू जी सहजता से अन्दर दाखिल हो गए. मैं पहले उसके मम्मो को कुछ देर चूसता रहा फिर होंठो को चूमते हुए कुछ देर घस्से मारता रहा.
हर बार एक नई मुर्गी का स्वाद लेते लेते शरीर तो कुछ कुछ थकने लगा था पर मन....... उसकी तो और और प्यास बढती ही जा रही थी.
सच ही कहा है किसी ने कि मन को जितना अधिक मिल चूका होता है, उससे कहीं ज्यादा और पा लेने की प्यास भी साथ साथ जग जाती है.
अब अगला नंबर था निशा कोठारी का.
रामू की इस दिलकश खोज का हौले से सर पकड़ कर मैं अपने पप्पू के सामने ले गया और उसने बिना देर किये अपने तजुर्बेकार होंठ उस पर कस दिए. वो बहुत ही मगन होकर उसे चूसने लगी.
कुछ देर चुसवा कर खड़े खड़े ही पप्पू को उसकी गहराइयों की अल्प-सैर पर ले गया.
हाथों से उसके मम्मो को थामा और मुंह से जैसे ही उसका मुखपान किया मुझे अपने ही खारे पानी का स्वाद आया.
अभी ये चल ही रहा था कि पीछे खड़े एक करारे माल पर नज़र पड़ी. वीना मलिक........
उसका नग्न सौन्दर्य और उस पर उसकी अदाएं...... निशा को छोड़ कर अब उस की ओर बड़ चला.
मैंने उसके भारी शरीर को अपनी गोद में उठा लिया.
बाकी सब ने तुरंत उसके इर्द गिर्द जमा होकर उसे थाम लिया. अब वो हम सबके हाथों में झूल रही थी.
मैंने उसे सबके सहारे छोड़ कर अपने हाथ उसकी छाती पर रखे दो बड़े बड़े गुंधे हुए आटे को गोलों पर रखा और उन्हें गूंधने लगा.
उस लेटिना ने वीना के दोनों पैरों को अपने कंधे पर झुलाया और अपना मुंह उसकी घास विहीन वाटिका में डाल कर हिनहिनाने लगी.
वीना झनझना गई और उसने मेरा मुंह अपने गुंधे आटे के गोले पर खींच लिया.
मैं 'मेड इन पाकिस्तान' मिल्क को स्वाद ले लेकर मुंह में निचोड़ने लगा. फिर कुछ देर तक उसके लबों पर चुप्पा लगाया.
इस तरह उसके चोबारों पर पर्याप्त छेड़कानी करने के बाद अब बचा था उसकी गली में थोड़ी आवारागर्दी करना.
उसे सबने लिटा दिया और मैं उस पर चढ़ गया. उस पाकिस्तानी चाची की लेने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.
उसका सारा शरीर जैसे डनलप का गद्दा था. हर धक्के पर रिटर्न गिफ्ट मिल रहा था वो भी एकदम करारा.
तभी वो रशियन मेरे पिछले द्वार पर आई और उसने अपना मुंह मेरे पीछे के छेद पर टिका कर जीभ थोड़ी अन्दर घुसा दी.
मैं नीचे से ऊपर तक मीठे -करंट से सराबोर हो उठा. मेरा पप्पू अचानक टॉप गियर में आ गया.
कभी वो जीभ घुसाती...... तो कभी दरार को फैला कर पुरे होंठो से उस वर्जित क्षेत्र की गीली-गर्म मालिश करती.
मैं तीव्र गति से मुहाने की ओर फिसलता चला गया. वीना भी काफी जोश में आकर मेरे घस्सों का जवाब दुगनी ताकत से देने लगी.
मेरे पिछवाड़े पर जब उस फिरंगी मुख की कोमल कारस्तानी हद से ज्यादा बढ़ी तो वहां से एक अत्यंत ही गहन सेंसेशन का बबूला उठा
और मेरे तेजी से आगे पीछे होते पप्पू में से निकल कर ऐन वीना की गली में फट पड़ा.
गली में भी सैलाब आ चूका था और इस चक्रवात में हम पता नहीं कहाँ पटक दिए गए. दोनों के दोनों निचुड़ चुके थे. मेरा भयंकर ओर्गास्म हुआ था.
तूफ़ान थमा तो हमने अपने आप को एक दुसरे की बाँहों में जकड़ा पाया. अभी भी नीचे की ओर स्लो मोशन में उचक-निचक का खेल चल रहा था.
मैं थक के चूर हो चूका था. उठते ही सबने तालियाँ बजायी.
तभी मोहम्मद की आवाज़ आई. पता नहीं कब से वो दूर कुर्सी पर बैठ कर जल क्रीड़ा का लाइव शो देख रहा था.
वो बोला....'तुम सबने मेरे दोस्त से बहुत मेहनत करवा ली. चलो अब इन्हें नहला धुला कर कुछ देर दुसरे कमरे में २-३ घंटे की नींद ले लेने दो. फिर एक और इंतजाम कर रखा है मैंने इनके लिए.'
फिर सबने मुझे रगड़ मसल कर नहलाया धुलाया और फिर मैं जाकर एक शयन कक्ष में गहन नींद के आगोश में समां गया.
मोबाईल का अलार्म बजा और मैं नींद से जागा. चारो ओर देखा तो पाया कि मैं होटल के रूम में हूं.
अरे मैं तो मोहम्मद भाई के यहाँ था, अभी अभी तो हिरोइनों को निपटाया था. मैं होटल कैसे आ गया.
जैसे जैसे मैं नींद से बाहर आया मुझे महसूस हुआ कि मैं एक बहुत ही हसीन ख्वाब देखा था.
मैं तो जैसे उसे ही सच समझ रहा था. मुझे बहुत दुःख हुआ.
चलो कम से कम रात ज़रीन के साथ बिताया समय तो सच था, ऐसे मैंने अपने आपको समझाया और बाथरूम की ओर बढ़ चला.
***
दिन के १० बज चुके थे. मैं नाश्ते के लिए उसी रेस्तरां ‘अल-नखील’ में गया जो सपने में देखा था.
बहुत वेक्यूम सा लग रहा था. एक साथ इतनी सारी हीरोइन तो हाथ से निकली ही निकली वो डायमंड भी हाथ से गए.
और हाँ, वो आक्शन गर्ल, उसे तो सपने में भी निपटा नहीं पाया.
मैंने अपने आप से प्रश्न किया. कल रात ज़रीन के साथ गुज़ारा समय और रात सपने में उड़ाए गुलछर्रे, दोनों में क्या फर्क है.
दोनों ही डेड हो चुके हैं और दोनों ही स्मृति का हिस्सा भर हैं. दोनों की याद बराबर गुदगुदा रही है.
बल्कि सपने वाली ज्यादा गुदगुदा रही है...... याने कि कोई फर्क नहीं......
गुज़रा समय भी सपने की ही मानिंद हो जाता है....... दोनों का ही कोई अस्तित्व नहीं अब .......
इसीलिए जो जानते है वो कहते है कि पास्ट से कोई अटेचमेंट ना रखते हुए सिर्फ और सिर्फ इस पल में जीना चाहिए. खैर..............
क्रमशः.....
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कुछ ही देर में मुझ पर मस्ती तारी होने लगी.
चलो अब एक एक करके सभी का अलग अलग स्वाद लिया जाया. हम्म........पहले किसको चखूँ.............हाँ उदिता से शुरुवात करता हूं.
मैंने उदिता की ओर रुख किया और उसकी पीठ से जा लगा. अपने पप्पू को उसके पीछे रगड़ने लगा.
दोनों हाथों से उसके मम्मे थामे और उन्हें मसलते हुए गर्दन पर चुप्पा चापी करने लगा.
कुछ देर मसला मसली का मज़ा लेने के बाद उसे घुमाया और गोद में लेते हुए अपने पेट पर चढ़ा लिया.
उसने अपने दोनों पैर मेरी कमर में लपेट दिए और अपनी बाहें मेरी गर्दन में.
बाकी सबने उसका वजन सँभालने के लिए उसकी कमर और नितम्बों को थाम लिया.
और फिर किसी ने मेरे पप्पू को अपने नाज़ुक हाथ में भरते हुए उसके योनिछिद्र पर टिकाया और उसे दबाते हुए पप्पू की उसके मोहल्ले में एंट्री करवा दी.
मैंने उसके मम्मों को अपनी छाती से चिपटाया और मुंह में मुंह डाल दिया.
अब सब हसीनाएं उसे उठा उठा कर मेरे पप्पू पर पेलने लगी.
लगभग एक मिनट मैं उसे रंभाता रहा और उसे मसल मसल कर भोगने के बाद फिर अपने मूसल पर से नीचे उतार दिया.
अब मैं शेफाली के मम्मो पर टूट पड़ा. काफी भरे पूरे थे. बहुत मज़ा आया.
और जब सबने उसे उठा कर उसे मेरे पप्पू पर पेला तो उसकी दरार में अलग ही मज़ा महसूस हुआ.
बहुत ही तंग दरार लगी जैसे कि वो कच्ची कलि हो. बहुत ही झूम झूम कर मज़े देने लगी.
उसे उतारने की इच्छा तो नहीं हो रही थी परन्तु सब सुंदरियों का भोग लगाने के लोभ में उस गार से अपनी राड खींची और फिर बारी आई पूनम पांडे की.
वो भयंकर सेक्सी एवं छरहरी कन्या थी. जैसे ही उसके मम्मे भींचे वो इतनी नाजों अदाएं दिखाने लगी कि उसे मोलेस्ट करने का मन होने लगा.
और जब उसको गोदी में उठा कर पप्पू को सरकाया तो लगा कि वो अन्दर कहीं टकराया...... उसके मुंह से आह निकली और उसने खुद अपने होंठ मेरे होंठो पर दे मारे.
सब उसके शरीर को उठा उठा कर घस्से मरवा रहे थे.....वो तो पता नहीं क्या हुआ उसे वो खुद भी मेरे पप्पू पे उछलने लग गई थी.
उसे जब मैंने बोला कि ‘बस’......तो वो बोली ‘नहीं, मैं तो आ रही हूं.........रुकना जरा भी मत......बस होने वाली हूं’
और फिर धमाधम उछाले खाने लगी थी.
जल्दी ही वो झड़ने के करीब पहुँच गई. गला फाड़ फाड़ कर जोर से चीख रही थी........
तभी किसी ने उसके पिछवाड़े में एक उंगली दे मारी........कहावत है ना कि ताबूत में आखरी कील. वो तुरंत फुरफुराने लगी और खल्लास हो गई.
अब मैंने याना को पकड़ा. उसको पीछे से बाँहों में भर कर जैसे ही उसके शरीर पर मेरे हाथ रेंगे, मैं दंग रह गया.
क्या किसी की त्वचा इतनी ज्यादा मुलायम हो सकती है. एकदम छुईमुई सी लगी.
और जब गोद में लेकर उसके अन्दर पेला तो बहुत ही कसावट भरा मुलायम और मखमली अहसास हुआ.
कुछ देर उसका अधर पान किया और फिर थोडा सा झुक कर उसके रेशमी मम्मे मुंह में भर लिए.
थोड़ी देर मखमली घिसाई करके उसे उतारा तो अब एक विदेशी स्वाद की तलब लगी.
अबकी बार स्थान परिवर्तन करने का विचार भी मन में आया.
मैं उस रशियन की कमर में हाथ डाल कर उसे पूल साइड पर लगे रिक्लाईनर की ओर ले चला. सभी हमारे पीछे पीछे बाहर आ गई.
मैं गीले बदन ही उस रिक्लाइनरपर लेट गया और उसको अपने पप्पू पर बैठा कर उसके अन्दर प्रवेश कर गया.
उसकी अत्यंत चर्बी रहित काया के साथ साथ उसकी सुरंग भी अति संकरी लगी और पप्पू महाशय अन्दर जकड लिए गए.
अब उसे अपने ऊपर लिटा कर घस्से मारने लगा. वो अपने पतले होंठो से मेरे होंठो की मुलायम मालिश कर रही थी.
वो एकदम दुबली पतली थी लेकिन भगवान से उसके उरोजों पर मेहरबानी करके उन्हें भरपूर चर्बी से नवाजा था. ऐसे भारी भरकम वक्ष मेरे सीने पर रोल हो रहे थे.
मैं अपने हाथों से उन्हें महसूस करने लगा. कुछ देर तक उस रूसी चिड़िया की फड़-फड़ाहट का लुत्फ़ लेने के बाद मेरी तवज्जो एक बार पुन: देसी माल पर गई.
उसके मेरे ऊपर से उठते ही, 'थोडा रेशम लगता है' फेम मेघना नायडू मेरे करीब आ गई.
भरे नितम्बो और गठीले वक्ष की मालकिन हालाँकि ढलने की कगार पे थी, फिर भी असीम गदराहट से भरी इस सांवली सलोनी को छकने से अपने आपको नहीं रोक पाया.
अब मैं भी उठ गया और उसे नीचे लिटा कर उसकी जांघो को फैला दिया.
उस पर झुकते ही पप्पू जी सहजता से अन्दर दाखिल हो गए. मैं पहले उसके मम्मो को कुछ देर चूसता रहा फिर होंठो को चूमते हुए कुछ देर घस्से मारता रहा.
हर बार एक नई मुर्गी का स्वाद लेते लेते शरीर तो कुछ कुछ थकने लगा था पर मन....... उसकी तो और और प्यास बढती ही जा रही थी.
सच ही कहा है किसी ने कि मन को जितना अधिक मिल चूका होता है, उससे कहीं ज्यादा और पा लेने की प्यास भी साथ साथ जग जाती है.
अब अगला नंबर था निशा कोठारी का.
रामू की इस दिलकश खोज का हौले से सर पकड़ कर मैं अपने पप्पू के सामने ले गया और उसने बिना देर किये अपने तजुर्बेकार होंठ उस पर कस दिए. वो बहुत ही मगन होकर उसे चूसने लगी.
कुछ देर चुसवा कर खड़े खड़े ही पप्पू को उसकी गहराइयों की अल्प-सैर पर ले गया.
हाथों से उसके मम्मो को थामा और मुंह से जैसे ही उसका मुखपान किया मुझे अपने ही खारे पानी का स्वाद आया.
अभी ये चल ही रहा था कि पीछे खड़े एक करारे माल पर नज़र पड़ी. वीना मलिक........
उसका नग्न सौन्दर्य और उस पर उसकी अदाएं...... निशा को छोड़ कर अब उस की ओर बड़ चला.
मैंने उसके भारी शरीर को अपनी गोद में उठा लिया.
बाकी सब ने तुरंत उसके इर्द गिर्द जमा होकर उसे थाम लिया. अब वो हम सबके हाथों में झूल रही थी.
मैंने उसे सबके सहारे छोड़ कर अपने हाथ उसकी छाती पर रखे दो बड़े बड़े गुंधे हुए आटे को गोलों पर रखा और उन्हें गूंधने लगा.
उस लेटिना ने वीना के दोनों पैरों को अपने कंधे पर झुलाया और अपना मुंह उसकी घास विहीन वाटिका में डाल कर हिनहिनाने लगी.
वीना झनझना गई और उसने मेरा मुंह अपने गुंधे आटे के गोले पर खींच लिया.
मैं 'मेड इन पाकिस्तान' मिल्क को स्वाद ले लेकर मुंह में निचोड़ने लगा. फिर कुछ देर तक उसके लबों पर चुप्पा लगाया.
इस तरह उसके चोबारों पर पर्याप्त छेड़कानी करने के बाद अब बचा था उसकी गली में थोड़ी आवारागर्दी करना.
उसे सबने लिटा दिया और मैं उस पर चढ़ गया. उस पाकिस्तानी चाची की लेने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.
उसका सारा शरीर जैसे डनलप का गद्दा था. हर धक्के पर रिटर्न गिफ्ट मिल रहा था वो भी एकदम करारा.
तभी वो रशियन मेरे पिछले द्वार पर आई और उसने अपना मुंह मेरे पीछे के छेद पर टिका कर जीभ थोड़ी अन्दर घुसा दी.
मैं नीचे से ऊपर तक मीठे -करंट से सराबोर हो उठा. मेरा पप्पू अचानक टॉप गियर में आ गया.
कभी वो जीभ घुसाती...... तो कभी दरार को फैला कर पुरे होंठो से उस वर्जित क्षेत्र की गीली-गर्म मालिश करती.
मैं तीव्र गति से मुहाने की ओर फिसलता चला गया. वीना भी काफी जोश में आकर मेरे घस्सों का जवाब दुगनी ताकत से देने लगी.
मेरे पिछवाड़े पर जब उस फिरंगी मुख की कोमल कारस्तानी हद से ज्यादा बढ़ी तो वहां से एक अत्यंत ही गहन सेंसेशन का बबूला उठा
और मेरे तेजी से आगे पीछे होते पप्पू में से निकल कर ऐन वीना की गली में फट पड़ा.
गली में भी सैलाब आ चूका था और इस चक्रवात में हम पता नहीं कहाँ पटक दिए गए. दोनों के दोनों निचुड़ चुके थे. मेरा भयंकर ओर्गास्म हुआ था.
तूफ़ान थमा तो हमने अपने आप को एक दुसरे की बाँहों में जकड़ा पाया. अभी भी नीचे की ओर स्लो मोशन में उचक-निचक का खेल चल रहा था.
मैं थक के चूर हो चूका था. उठते ही सबने तालियाँ बजायी.
तभी मोहम्मद की आवाज़ आई. पता नहीं कब से वो दूर कुर्सी पर बैठ कर जल क्रीड़ा का लाइव शो देख रहा था.
वो बोला....'तुम सबने मेरे दोस्त से बहुत मेहनत करवा ली. चलो अब इन्हें नहला धुला कर कुछ देर दुसरे कमरे में २-३ घंटे की नींद ले लेने दो. फिर एक और इंतजाम कर रखा है मैंने इनके लिए.'
फिर सबने मुझे रगड़ मसल कर नहलाया धुलाया और फिर मैं जाकर एक शयन कक्ष में गहन नींद के आगोश में समां गया.
मोबाईल का अलार्म बजा और मैं नींद से जागा. चारो ओर देखा तो पाया कि मैं होटल के रूम में हूं.
अरे मैं तो मोहम्मद भाई के यहाँ था, अभी अभी तो हिरोइनों को निपटाया था. मैं होटल कैसे आ गया.
जैसे जैसे मैं नींद से बाहर आया मुझे महसूस हुआ कि मैं एक बहुत ही हसीन ख्वाब देखा था.
मैं तो जैसे उसे ही सच समझ रहा था. मुझे बहुत दुःख हुआ.
चलो कम से कम रात ज़रीन के साथ बिताया समय तो सच था, ऐसे मैंने अपने आपको समझाया और बाथरूम की ओर बढ़ चला.
***
दिन के १० बज चुके थे. मैं नाश्ते के लिए उसी रेस्तरां ‘अल-नखील’ में गया जो सपने में देखा था.
बहुत वेक्यूम सा लग रहा था. एक साथ इतनी सारी हीरोइन तो हाथ से निकली ही निकली वो डायमंड भी हाथ से गए.
और हाँ, वो आक्शन गर्ल, उसे तो सपने में भी निपटा नहीं पाया.
मैंने अपने आप से प्रश्न किया. कल रात ज़रीन के साथ गुज़ारा समय और रात सपने में उड़ाए गुलछर्रे, दोनों में क्या फर्क है.
दोनों ही डेड हो चुके हैं और दोनों ही स्मृति का हिस्सा भर हैं. दोनों की याद बराबर गुदगुदा रही है.
बल्कि सपने वाली ज्यादा गुदगुदा रही है...... याने कि कोई फर्क नहीं......
गुज़रा समय भी सपने की ही मानिंद हो जाता है....... दोनों का ही कोई अस्तित्व नहीं अब .......
इसीलिए जो जानते है वो कहते है कि पास्ट से कोई अटेचमेंट ना रखते हुए सिर्फ और सिर्फ इस पल में जीना चाहिए. खैर..............
क्रमशः.....
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