FUN-MAZA-MASTI
शुभारम्भ-3
मेरे सर में हथोड़े चलने लगे. सारा शरीर सुन्न हो गया बस लंड धड़क रहा था. चाची अभी भी मुझे देख कर मंद मंद मुस्कुरा रही थी. तभी बेल की आवाज़ आई. माँ - पापा आ चुके थे.
मैं खाना खा के सीधा रूम में घुस गया. सर चकरा रहा था की ये आज कल हो क्या रहा हैं.....चाची ने कभी ऐसे नहीं किया था....और न ही मैंने उन्हें इस नज़र से देखा था.
मगर आज कल जब भी मैं उनको देखता तो वो मुझे ही देख रही होती और मंद मंद मुस्कुरा रही होती. साले चाचा से इसकी खुजाल मिट नहीं रही इसी लिए चाची दूसरा रास्ता देख रही थी. ये सोच कर मुझे थोडा कांफिडेंस आ गया. चलो देखते है क्या होता है......
सोचते सोचते कब नींद लग गयी पता ही नहीं चला. अचानक मेरा सेल बजने लगा और मैं झटके से उठा. घडी मैं १२ बजे थे. मैंने नंबर देखा. अनजाना नंबर था.
मैं : ह ह हेल्लो....
फ़ोन पर : हेल्लो.....इज इट शील ?
मैं : य य येस .......ह ह हु इस इट ?
फ़ोन पर : इसका मतलब तुम नहीं पहचाने....
मैं : न न नहीं ?
फ़ोन पर : भूल गए......रोज़ बस स्टॉप पर मिलते हो.......उस दिन मुझे स्मायल भी दी थी ....मेरा नंबर माँगा था और अपना नंबर दिया था
मैं कनफ्युस हो गया. कौन है ये ? डॉली शर्मा से आज तक बात नहीं की वो भेन्चोद तो नकचड़ी है.......ये हैं कौन ? ?
मैं : द द देखिये.....मैं अ अ आप को नहीं जानता.......और न ही मैंने मेरा नंबर आप को दिया था.
फ़ोन पर : फिर आप ......तुमसे कहा था न आप नहीं बोलना......
मैं : प प प पिया.....तुम हो ?
पिया : खिल खिला के हँसते हुए : हाँ यार.....क्या तुम भी.....लगता है सच मुच में कोई GF नहीं है तुम्हारी.....ये फ़ॉर्मूला तो हमेशा काम करता है. पर तुम भी न..
मेरी तो उड़ के लग गयी. स्वयं अप्सरा इस मिटटी के माधव को फ़ोन करे.........
मैं : प प प पर तुम्हे मेरा नंबर दिया किस ने ?
पिया : कहीं से भी मिला .....तुमसे मतलब.......अरे वो लायब्रेरी के कार्ड पर लिखा था. मैंने सेव कर लिया था की कभी काम पड़ा तो......
मैं : इतनी रात को कैसे फ़ोन किया.....
पिया : इतनी रात को मतलब......अरे मिस्टर अभी तो १२ ही बजे है...कोनसा तुमको नींद में से उठा दिया. अरे तुम सोये थे क्या ?
मैं : ह ह हाँ ...न न नहीं वो ....
पिया : यार सॉरी ...मुझे लगा की मैं लेट सोती हूँ तो सब लेट सोते होंगे....
मैं : अरे नहीं नहीं.....बोलो न....क्या हुआ ?
पिया : यार.....वो नोट्स न......मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा हैं.......नेक्स्ट मंथ तो सेम की एक्साम ही हैं......अब मैं क्या करू ?
मैं : क क क्या समझ नहीं आ रहा ?
पिया : देखो.....मैंने बेलेंस शीट बना ली........ट्रेडिंग अकाउंट बना लिया....मगर प्रोफिट अन लोस बनाया तो टोटल नहीं मिलती
मैंने सर ठोक लिया. इस पागल को जब येही नहीं पता तो घंटा अकाउंट में पास होगी. मैंने थोड़ी देर उसको समझाया मगर वो सब उसके सर के ऊपर से चला गया.
आखिर मैंने उसको बोला.
मैं : प प पिया.....तुम्हारे तो बेसिक ही क्लिअर नहीं हैं,
पिया : हाँ यार.....मैंने साईंस से कॉमर्स में स्विच किया था ना .....अब क्या होगा.....१५ दिन के लिए कोई ट्यूशन भी नहीं मिलेगी और मिली भी तो बेसिक कहाँ से आएगी.
मैं चुप था.....मगर मेरे दिमाग में कीड़ा कुलबुलाने लगा था.
मैं : प प पिया...तुम घर पर किसी प्रायवेट ट्यूटर से पढ़ लो ?
पिया : अरे पर अभी मिलेगा कौन यार ??? एक मिनिट ........तुम भी तो पढ़ा सकते हो....
मेरा दिल हाई जम्प मार रहा था. पहले तो मैंने नाटक किया फिर धीरे से मान गया.
मैं : ठीक हैं तुम कल शाम को मेरे घर आ जाओ........पांच बजे ठीक हैं ?
पिया : यार...वो क्या है की भाई को तुम जानते हो.......वो आने नहीं देगा.....क्या तुम मेरे घर पर आके नहीं पढ़ा सकते ?
अगर गांड फटने से आवाज़ आती होती तो बोफोर्स से तेज आवाज़ मेरी गांड फटने की आती. मैं उस सांड नवजोत के सामने तो फटकता नहीं था.....उसके घर जाना तो मौत को गले लगाने जैसा था.....पिया मुझे मनाने लगी और मैं चूतिया उस की बातों में आ गया.
सन्डे था. इस लिए आराम से उठा. चाय पी कर टीवी देख रहा था की चाची आई और बोली
चाची : लल्ला वो क्रीम लाया क्या ?
मैं : कौन सी क्रीम ? अच्छा वो.....हाँ वो वाली. सामने ही रखी है......चाची वो दवाई वाले ने कहा है की इसको लगाने के बाद ....
और मैं झिझकने की एक्टिंग करने लगा......
चाची : लगाने के बाद क्या ? बोल ना...
मैं : व व वो....आप वो मत पहनना..
चाची : क्या ? साड़ी ? बोल ना लल्ला ?
मैं : व वो पैंटी....म म मत पहनना.....ऐसा बोला दवाई वाले ने.
चाची : ओफ़ फ़ो........अरे लल्ला वो तो मैं दो दिन से उन्ही नहीं पहन रही.....इतनी खुजली चलती है. पैंटी पहनती तो अब तक
छील जाती मेरी..........
आप को तो पढ़ के मज़ा आ रहा हैं. मगर मेरी वहां पर हालत ख़राब हो गयी.......चाची मुझे मुस्कुरा कर देख रही थी और मैं कालिदास उनकी आधे ढलके आँचल में मचलते मम्म्मे और साड़ी की साइड से दिखती उनकी नाभि को देखे जा रहा था. मेरी सांसें तेज़ हो गयी थी..........तभी वो बोली
चाची : लल्ला....क्या बैठे बैठे सोफा तोड़ रहा है, चल मेरी मदद करवा दे. पानी की टंकी साफ़ करनी है. तेरी छुट्टी है और आज
नल भी नहीं आये टंकी पूरी खाली है.
अब चाची बोले और मैं मना कर दूँ ये संभव है क्या.......मैं चुप चाप चाची के साथ छत पर गया और सीधा टंकी में उतरने लगा.
चाची : अरे...ये कपडे गंदे नहीं हो जायेंगे क्या ? फिर मुझे ही धोना पड़ेंगे......ये पजामा और टी शर्त खोल और फिर अन्दर जा.
ये कह कर वो फिर वो ही मंद मंद मुस्कुराने लगी.
मैंने चाची से नज़ारे मिलते हुए अपना टी शर्ट खोला....अन्दर कुछ भी नहीं पहना था......मेरे सीने पर बाल ऊग चुके थे......
रोज़ दंड लगाने से कंधे और सीना भी मांसल और कसरती हो चला था. चाची बोली
चाची : हाय राम ......लल्ला तू तो पूरा गबरू जवान हो गया है रे......जब शादी हो कर आई थी तब तो लड़कियों जैसी आवाज़ थी
तेरी और वैसे ही दीखता था. एक दम चिकना.......मगर अब तो पहलवान दिखने लगा है.
मेरा सांप फुफकारी मारने लगा था. सुबह सुबह की ठंडी हवा.......मेरा नंगा सीना और चाची की गरमा गरम बातें.
मैंने उनको थोडा छेड़ा...
मैं : तो क्या चाची .....तब तो आप की लड़की जैसी दिखती थी..... अब तो आंटी हो गयी हो
चाची : राम.....राम......आंटी ? क्यों रे लल्ला ? मैं आंटी जैसी कहाँ से लगने लगी ?
मैंने हिम्मत जुटाई और उनकी उभरे हुए नितम्बो की तरफ इशारा कर दिया......
चाची ऑंखें तरेर कर बोली : हैं.......इतने भी मोटे नहीं हुए की आंटी बोलो.......
यह कहकर वो अपने ही नितम्ब दबा दबा कर देखने लगी.....जैसे जताना चाह रही हो की उनके नितम्ब आज भी सुडोल है. कौन कमबख्त कह सकता था की चाची के नितम्ब सुडोल नहीं.......कोई भी उनको देखता तो सबसे पहले उनके होटों के ऊपर का वो तिल ही देखता और फिर सीधी नज़र उनके गोल गोल उभरे हुए नितम्बो पर ही जाती........चाची अच्छी खासी गदराई हुयी थी.......मम्मे भी ऐसे थे की ब्लाउस से बाहर ही झाँका करते......कमर का घुमाव इस कदर नशीला था की नज़र उस पर रुक नहीं पाती और उन की नाभि पर ही जाके कर रूकती.
मैं : चाची......आपको पीछे से दीखता नहीं.....मगर सच्ची बहुत बढ गए है ये ....
चाची : तू तो यूँही कहता है लल्ला.....मुझे चिड़ा रहा है ना ? मैं कोई मोती थोड़ी ना हुई हूँ ?
कहकर थोड़ी मायूस सी शकल बना ली.
मैंने हिम्मर जुटाई और आगे बढ कर उनके नितम्बो पर हाथ रक्खा और दबाते हुए बोला......
मैं : य य ये देखो..... य य ये जो है ना......यहाँ पर थोडा सा मोटापा दीखता है. इतना मांस होने से अ अ अ अप म म मोटी
दिखती हो.
मैं लगातार उनके नितम्बो को अपने हाथो से नाप रहा था. वो एकटक मेरी तरफ ही देख रही थी......उनकी ऑंखें थोड़ी से नशीली हो गयी थी.....मैं हाथ उनकी कमर पर लगाया और बोला
मैं : अ अ अब ज ज जैसे यहाँ पर.......क क कम मांस है........पर आप के पिछवाड़े और (फिर हाथ उनकी मोटी मोटी जांघों पर फिरा कर बोला ) और आप के यहाँ पर थोडा मोटापा आ गया है.........और.....ये जो है ना.....(कहकर उनकी गांड मसकाने लगा)
यहाँ पर ही आप को देख कर कोई ब ब ब बोल सकता है की .....
तभी.................
माँ नीचे से आवाज़ लगा रही थी.
माँ : नीलू अरे ओ नीलू
मैंने तो माँ की आवाज़ सुनते ही घबरा कर हाथ चाची के नितम्बो से हटा दिया. मगर चाची के चेहरे पर शिकन तक नहीं आई. उन्होंने ऊपर खड़े खड़े ही माँ को बताया की वो टंकी धुलवा रही है और आधे घंटे मैं नीचे आएगी. यह बोल कर मेरी तरफ मुड़ी और बोली
चाची : चल लल्ला....मुझे तो तुने आंटी बना ही दिया....अब तो टंकी धो ले......
मैं टंकी में उतरने लगा और चाची फिर से मेरे पजामे की तरफ इशारा कर के बोली
चाची : अरे....इसको तो खोल लल्ला.....
मैंने सकपकाते हुए पजामा का नाडा खीचा और उसको नीचे उतार कर खड़ा हो गया. मैंने जौकी का अंडरवियर पहना था. चाची के बदन का मोटापा बताने के चक्कर में सांप खड़ा हो गया था..... चाची के माँ से बात करने के दौरान वो तो फिर से बैठ गया था मगर कुछ precum की बूंदें मेरे अंडरवियर के अगले हिस्से पर साफ़ दिख रही थी. एक गोल गोल गीला धब्बा आ गया था. चाची ने सीधा वही पर देखा.मैं उसे हाथों से छुपाने लगा मगर वो निर्लज्ज औरत तो ऐसे घुर घुर कर देख रही थी जैसे बिल्ली चूहे को घूरती है. उनके चेहरे पर वो ही टेडी मुस्कराहट थी. मैं चुप चाप टंकी में उतार गया. हमारी टंकी बहुत बड़ी है, उसे साफ़ तो करना ही था मगर कुछ दिन पहले टंकी में पानी देखने के चक्कर में माँ की एक सोने की चूड़ी भी उस में गिर गयी थी. टंकी में पानी तो ज़रा सा था मगर नीचे गंदगी होने से कुछ दिख नहीं रहा था, मैंने चाची से टार्च मांगी, वो तो सब सामान साथ लायी थी. मैंने टोर्च ली और उसे नीचे घुमा घुमा कर ढूँढना शुरू कर दिया, तभी चाची ने कुछ कहा और मैंने टंकी में से ऊपर देखा.
टंकी का मुंह ज़रा सा था, और चाची उसके दोनों और पैर कर के खड़ी थी. दोनों पैर खुल जाने से साड़ी झूल गयी थी. मैंने उनकी टांगो के बीच देखा, चिकनी चिकनी टंगे घुटनों तक दिख रही थी. मैंने टोर्च ऊपर की और उसका फोकस चाची की टांगो के बीच कर दिया और नज़ारे का मज़ा लेने लगा. मेरी नज़र एक कीड़े के तरह उनके पैरों पर चद्ती चली गयी. जैसे की मैंने बताया उनकी टांगे बहुत ही चिकनी थी......उनकी जांघें साफ़ साफ़ नज़र आ रही थी.....चाची सांवली थी मगर उनकी टांगे चिकनी होने के वजह से गोरी गोरी लग रही थी. तभी मैंने ध्यान से देखा....उनकी दांई जांघ पर कुछ लिखा था.....मैंने ध्यान से देखने की कोशिश की तो दिखा की वो गोदना थे. चाची ने जांघ पर कुछ लिखवा रखा था. मैंने गाँव के लोगो को अक्सर हाथों पर अपना या भगवन का नाम गुदवाये हुए देखा था मगर जांघ पर ...... ??? क्या लिखा है सोचते सोचते मेरी नज़र और ऊपर उठी और मेरी नस नस सनसनाने लगी.
चाची की वो चूत, जो मैं न ही दरवाजे की आड़ से जब वो चाचा से ठुकवा रही थी और न ही जब वो कपडे धो रही थी, नहीं देखा पाया था. वो चूत मेरी नज़र के सामने थी.
उन्होंने सही में पेंटी नहीं पहनी थी.
चाची मस्ती में अपनी दोनों टाँगें चौड़ी कर के टंकी के मुंह पर खड़ी थी और मैं टंकी के अंदर से टोर्च उनकी साड़ी के अंदर मार कर वो नज़ारा देख रहा था जो किसी सन्यासी को भी भोगी बना देता. भले चाची सांवली थी मगर उनकी चूत का सांवलापन मदहोश कर देने वाला था. चूत बालों से भरी हुयी थी .........चारो तरह झांटे इस तरह उगी हुयी थी जैसे खेत की सुरक्षा में बागड़ लगी हो. उनकी चूत के दोनों होंट थोड़े थोड़े से खुले और बाहर आये हुए थे. जैसे ही टोर्च की रौशनी उस पर पड़ी वो चमकने लगी पहले तो मैंने सोचा की ये क्या है ? फिर मुझे समझ में आया की चाची की मोटी मोटी गांड दबाने से उनकी चूत पनिया गयी है और कामरस निकलने लगी है. मेरे मन में आया की हाथ बड़ा कर चूत को छू लूँ......मगर मैं ठहरा गांडफट .....बड़ी मुश्किल से अपने आप को रोका, मगर लंड महाराज अपना सर उठा चुके थे.
मैं अंडरविअर में था. कहाँ छुपाता ? तभी चूड़ी मेरे पांव से टकराई और मैंने चाची की चूड़ी पकड़ा दी.......वो झुकी और मुझे उनके कसे हुए मम्मे मेरे चेहरे के ठीक ऊपर झूलते हुए दिखे. साली ने खुजली की वजह से पेंटी नहीं पहनी थी मगर ब्रा क्यों नहीं पहनी ये मेरी समझ से बाहर था....
चाची के झूलते मम्मे मेरे चेहरे से मुश्किल से २ फीट की दुरी पर थे. उनकी मीठी साँसें मेरे चेहरे से टकरा रही थी. उन्होंने चूड़ी ली और खुश होके बोली.
चाची : लल्ला......ये तो मानना पड़ेगा की नज़र तो तेरी तेज़ है. भाभी जी खुश हो जायेंगे. चल अब बहार आ जा.
मैं क्या बोलता और क्या बाहर आता. इतनी सी देर में इतना नज़ारा देख कर बाबुराव इतना कड़क हो गया था की अंडरविअर में तम्बू बन चूका था. एक बड़ा सा धब्बा सामने की तरफ आ गया था जो मेरे लार टपकाते लंड की कारस्तानी थी. मैंने चाची की टाला की आप जाओ मैं आ रहा हूँ. पर वो तो जिद्दी नंबर वन थी. मानी नहीं और मुझे ऊपर खिंच लिया. मैं बाहर आ के उनके सामने सर झुका के खड़ा हो गया. वो मुंह पर हाथ रख कर बोली :
चाची : हाय राम.....लल्ला टंकी साफ़ कर रहा था कि गन्दी ??
मैं : न न नहीं चाची.......व व वो .....मैं
kramashah.............
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शुभारम्भ-3
मेरे सर में हथोड़े चलने लगे. सारा शरीर सुन्न हो गया बस लंड धड़क रहा था. चाची अभी भी मुझे देख कर मंद मंद मुस्कुरा रही थी. तभी बेल की आवाज़ आई. माँ - पापा आ चुके थे.
मैं खाना खा के सीधा रूम में घुस गया. सर चकरा रहा था की ये आज कल हो क्या रहा हैं.....चाची ने कभी ऐसे नहीं किया था....और न ही मैंने उन्हें इस नज़र से देखा था.
मगर आज कल जब भी मैं उनको देखता तो वो मुझे ही देख रही होती और मंद मंद मुस्कुरा रही होती. साले चाचा से इसकी खुजाल मिट नहीं रही इसी लिए चाची दूसरा रास्ता देख रही थी. ये सोच कर मुझे थोडा कांफिडेंस आ गया. चलो देखते है क्या होता है......
सोचते सोचते कब नींद लग गयी पता ही नहीं चला. अचानक मेरा सेल बजने लगा और मैं झटके से उठा. घडी मैं १२ बजे थे. मैंने नंबर देखा. अनजाना नंबर था.
मैं : ह ह हेल्लो....
फ़ोन पर : हेल्लो.....इज इट शील ?
मैं : य य येस .......ह ह हु इस इट ?
फ़ोन पर : इसका मतलब तुम नहीं पहचाने....
मैं : न न नहीं ?
फ़ोन पर : भूल गए......रोज़ बस स्टॉप पर मिलते हो.......उस दिन मुझे स्मायल भी दी थी ....मेरा नंबर माँगा था और अपना नंबर दिया था
मैं कनफ्युस हो गया. कौन है ये ? डॉली शर्मा से आज तक बात नहीं की वो भेन्चोद तो नकचड़ी है.......ये हैं कौन ? ?
मैं : द द देखिये.....मैं अ अ आप को नहीं जानता.......और न ही मैंने मेरा नंबर आप को दिया था.
फ़ोन पर : फिर आप ......तुमसे कहा था न आप नहीं बोलना......
मैं : प प प पिया.....तुम हो ?
पिया : खिल खिला के हँसते हुए : हाँ यार.....क्या तुम भी.....लगता है सच मुच में कोई GF नहीं है तुम्हारी.....ये फ़ॉर्मूला तो हमेशा काम करता है. पर तुम भी न..
मेरी तो उड़ के लग गयी. स्वयं अप्सरा इस मिटटी के माधव को फ़ोन करे.........
मैं : प प प पर तुम्हे मेरा नंबर दिया किस ने ?
पिया : कहीं से भी मिला .....तुमसे मतलब.......अरे वो लायब्रेरी के कार्ड पर लिखा था. मैंने सेव कर लिया था की कभी काम पड़ा तो......
मैं : इतनी रात को कैसे फ़ोन किया.....
पिया : इतनी रात को मतलब......अरे मिस्टर अभी तो १२ ही बजे है...कोनसा तुमको नींद में से उठा दिया. अरे तुम सोये थे क्या ?
मैं : ह ह हाँ ...न न नहीं वो ....
पिया : यार सॉरी ...मुझे लगा की मैं लेट सोती हूँ तो सब लेट सोते होंगे....
मैं : अरे नहीं नहीं.....बोलो न....क्या हुआ ?
पिया : यार.....वो नोट्स न......मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा हैं.......नेक्स्ट मंथ तो सेम की एक्साम ही हैं......अब मैं क्या करू ?
मैं : क क क्या समझ नहीं आ रहा ?
पिया : देखो.....मैंने बेलेंस शीट बना ली........ट्रेडिंग अकाउंट बना लिया....मगर प्रोफिट अन लोस बनाया तो टोटल नहीं मिलती
मैंने सर ठोक लिया. इस पागल को जब येही नहीं पता तो घंटा अकाउंट में पास होगी. मैंने थोड़ी देर उसको समझाया मगर वो सब उसके सर के ऊपर से चला गया.
आखिर मैंने उसको बोला.
मैं : प प पिया.....तुम्हारे तो बेसिक ही क्लिअर नहीं हैं,
पिया : हाँ यार.....मैंने साईंस से कॉमर्स में स्विच किया था ना .....अब क्या होगा.....१५ दिन के लिए कोई ट्यूशन भी नहीं मिलेगी और मिली भी तो बेसिक कहाँ से आएगी.
मैं चुप था.....मगर मेरे दिमाग में कीड़ा कुलबुलाने लगा था.
मैं : प प पिया...तुम घर पर किसी प्रायवेट ट्यूटर से पढ़ लो ?
पिया : अरे पर अभी मिलेगा कौन यार ??? एक मिनिट ........तुम भी तो पढ़ा सकते हो....
मेरा दिल हाई जम्प मार रहा था. पहले तो मैंने नाटक किया फिर धीरे से मान गया.
मैं : ठीक हैं तुम कल शाम को मेरे घर आ जाओ........पांच बजे ठीक हैं ?
पिया : यार...वो क्या है की भाई को तुम जानते हो.......वो आने नहीं देगा.....क्या तुम मेरे घर पर आके नहीं पढ़ा सकते ?
अगर गांड फटने से आवाज़ आती होती तो बोफोर्स से तेज आवाज़ मेरी गांड फटने की आती. मैं उस सांड नवजोत के सामने तो फटकता नहीं था.....उसके घर जाना तो मौत को गले लगाने जैसा था.....पिया मुझे मनाने लगी और मैं चूतिया उस की बातों में आ गया.
सन्डे था. इस लिए आराम से उठा. चाय पी कर टीवी देख रहा था की चाची आई और बोली
चाची : लल्ला वो क्रीम लाया क्या ?
मैं : कौन सी क्रीम ? अच्छा वो.....हाँ वो वाली. सामने ही रखी है......चाची वो दवाई वाले ने कहा है की इसको लगाने के बाद ....
और मैं झिझकने की एक्टिंग करने लगा......
चाची : लगाने के बाद क्या ? बोल ना...
मैं : व व वो....आप वो मत पहनना..
चाची : क्या ? साड़ी ? बोल ना लल्ला ?
मैं : व वो पैंटी....म म मत पहनना.....ऐसा बोला दवाई वाले ने.
चाची : ओफ़ फ़ो........अरे लल्ला वो तो मैं दो दिन से उन्ही नहीं पहन रही.....इतनी खुजली चलती है. पैंटी पहनती तो अब तक
छील जाती मेरी..........
आप को तो पढ़ के मज़ा आ रहा हैं. मगर मेरी वहां पर हालत ख़राब हो गयी.......चाची मुझे मुस्कुरा कर देख रही थी और मैं कालिदास उनकी आधे ढलके आँचल में मचलते मम्म्मे और साड़ी की साइड से दिखती उनकी नाभि को देखे जा रहा था. मेरी सांसें तेज़ हो गयी थी..........तभी वो बोली
चाची : लल्ला....क्या बैठे बैठे सोफा तोड़ रहा है, चल मेरी मदद करवा दे. पानी की टंकी साफ़ करनी है. तेरी छुट्टी है और आज
नल भी नहीं आये टंकी पूरी खाली है.
अब चाची बोले और मैं मना कर दूँ ये संभव है क्या.......मैं चुप चाप चाची के साथ छत पर गया और सीधा टंकी में उतरने लगा.
चाची : अरे...ये कपडे गंदे नहीं हो जायेंगे क्या ? फिर मुझे ही धोना पड़ेंगे......ये पजामा और टी शर्त खोल और फिर अन्दर जा.
ये कह कर वो फिर वो ही मंद मंद मुस्कुराने लगी.
मैंने चाची से नज़ारे मिलते हुए अपना टी शर्ट खोला....अन्दर कुछ भी नहीं पहना था......मेरे सीने पर बाल ऊग चुके थे......
रोज़ दंड लगाने से कंधे और सीना भी मांसल और कसरती हो चला था. चाची बोली
चाची : हाय राम ......लल्ला तू तो पूरा गबरू जवान हो गया है रे......जब शादी हो कर आई थी तब तो लड़कियों जैसी आवाज़ थी
तेरी और वैसे ही दीखता था. एक दम चिकना.......मगर अब तो पहलवान दिखने लगा है.
मेरा सांप फुफकारी मारने लगा था. सुबह सुबह की ठंडी हवा.......मेरा नंगा सीना और चाची की गरमा गरम बातें.
मैंने उनको थोडा छेड़ा...
मैं : तो क्या चाची .....तब तो आप की लड़की जैसी दिखती थी..... अब तो आंटी हो गयी हो
चाची : राम.....राम......आंटी ? क्यों रे लल्ला ? मैं आंटी जैसी कहाँ से लगने लगी ?
मैंने हिम्मत जुटाई और उनकी उभरे हुए नितम्बो की तरफ इशारा कर दिया......
चाची ऑंखें तरेर कर बोली : हैं.......इतने भी मोटे नहीं हुए की आंटी बोलो.......
यह कहकर वो अपने ही नितम्ब दबा दबा कर देखने लगी.....जैसे जताना चाह रही हो की उनके नितम्ब आज भी सुडोल है. कौन कमबख्त कह सकता था की चाची के नितम्ब सुडोल नहीं.......कोई भी उनको देखता तो सबसे पहले उनके होटों के ऊपर का वो तिल ही देखता और फिर सीधी नज़र उनके गोल गोल उभरे हुए नितम्बो पर ही जाती........चाची अच्छी खासी गदराई हुयी थी.......मम्मे भी ऐसे थे की ब्लाउस से बाहर ही झाँका करते......कमर का घुमाव इस कदर नशीला था की नज़र उस पर रुक नहीं पाती और उन की नाभि पर ही जाके कर रूकती.
मैं : चाची......आपको पीछे से दीखता नहीं.....मगर सच्ची बहुत बढ गए है ये ....
चाची : तू तो यूँही कहता है लल्ला.....मुझे चिड़ा रहा है ना ? मैं कोई मोती थोड़ी ना हुई हूँ ?
कहकर थोड़ी मायूस सी शकल बना ली.
मैंने हिम्मर जुटाई और आगे बढ कर उनके नितम्बो पर हाथ रक्खा और दबाते हुए बोला......
मैं : य य ये देखो..... य य ये जो है ना......यहाँ पर थोडा सा मोटापा दीखता है. इतना मांस होने से अ अ अ अप म म मोटी
दिखती हो.
मैं लगातार उनके नितम्बो को अपने हाथो से नाप रहा था. वो एकटक मेरी तरफ ही देख रही थी......उनकी ऑंखें थोड़ी से नशीली हो गयी थी.....मैं हाथ उनकी कमर पर लगाया और बोला
मैं : अ अ अब ज ज जैसे यहाँ पर.......क क कम मांस है........पर आप के पिछवाड़े और (फिर हाथ उनकी मोटी मोटी जांघों पर फिरा कर बोला ) और आप के यहाँ पर थोडा मोटापा आ गया है.........और.....ये जो है ना.....(कहकर उनकी गांड मसकाने लगा)
यहाँ पर ही आप को देख कर कोई ब ब ब बोल सकता है की .....
तभी.................
माँ नीचे से आवाज़ लगा रही थी.
माँ : नीलू अरे ओ नीलू
मैंने तो माँ की आवाज़ सुनते ही घबरा कर हाथ चाची के नितम्बो से हटा दिया. मगर चाची के चेहरे पर शिकन तक नहीं आई. उन्होंने ऊपर खड़े खड़े ही माँ को बताया की वो टंकी धुलवा रही है और आधे घंटे मैं नीचे आएगी. यह बोल कर मेरी तरफ मुड़ी और बोली
चाची : चल लल्ला....मुझे तो तुने आंटी बना ही दिया....अब तो टंकी धो ले......
मैं टंकी में उतरने लगा और चाची फिर से मेरे पजामे की तरफ इशारा कर के बोली
चाची : अरे....इसको तो खोल लल्ला.....
मैंने सकपकाते हुए पजामा का नाडा खीचा और उसको नीचे उतार कर खड़ा हो गया. मैंने जौकी का अंडरवियर पहना था. चाची के बदन का मोटापा बताने के चक्कर में सांप खड़ा हो गया था..... चाची के माँ से बात करने के दौरान वो तो फिर से बैठ गया था मगर कुछ precum की बूंदें मेरे अंडरवियर के अगले हिस्से पर साफ़ दिख रही थी. एक गोल गोल गीला धब्बा आ गया था. चाची ने सीधा वही पर देखा.मैं उसे हाथों से छुपाने लगा मगर वो निर्लज्ज औरत तो ऐसे घुर घुर कर देख रही थी जैसे बिल्ली चूहे को घूरती है. उनके चेहरे पर वो ही टेडी मुस्कराहट थी. मैं चुप चाप टंकी में उतार गया. हमारी टंकी बहुत बड़ी है, उसे साफ़ तो करना ही था मगर कुछ दिन पहले टंकी में पानी देखने के चक्कर में माँ की एक सोने की चूड़ी भी उस में गिर गयी थी. टंकी में पानी तो ज़रा सा था मगर नीचे गंदगी होने से कुछ दिख नहीं रहा था, मैंने चाची से टार्च मांगी, वो तो सब सामान साथ लायी थी. मैंने टोर्च ली और उसे नीचे घुमा घुमा कर ढूँढना शुरू कर दिया, तभी चाची ने कुछ कहा और मैंने टंकी में से ऊपर देखा.
टंकी का मुंह ज़रा सा था, और चाची उसके दोनों और पैर कर के खड़ी थी. दोनों पैर खुल जाने से साड़ी झूल गयी थी. मैंने उनकी टांगो के बीच देखा, चिकनी चिकनी टंगे घुटनों तक दिख रही थी. मैंने टोर्च ऊपर की और उसका फोकस चाची की टांगो के बीच कर दिया और नज़ारे का मज़ा लेने लगा. मेरी नज़र एक कीड़े के तरह उनके पैरों पर चद्ती चली गयी. जैसे की मैंने बताया उनकी टांगे बहुत ही चिकनी थी......उनकी जांघें साफ़ साफ़ नज़र आ रही थी.....चाची सांवली थी मगर उनकी टांगे चिकनी होने के वजह से गोरी गोरी लग रही थी. तभी मैंने ध्यान से देखा....उनकी दांई जांघ पर कुछ लिखा था.....मैंने ध्यान से देखने की कोशिश की तो दिखा की वो गोदना थे. चाची ने जांघ पर कुछ लिखवा रखा था. मैंने गाँव के लोगो को अक्सर हाथों पर अपना या भगवन का नाम गुदवाये हुए देखा था मगर जांघ पर ...... ??? क्या लिखा है सोचते सोचते मेरी नज़र और ऊपर उठी और मेरी नस नस सनसनाने लगी.
चाची की वो चूत, जो मैं न ही दरवाजे की आड़ से जब वो चाचा से ठुकवा रही थी और न ही जब वो कपडे धो रही थी, नहीं देखा पाया था. वो चूत मेरी नज़र के सामने थी.
उन्होंने सही में पेंटी नहीं पहनी थी.
चाची मस्ती में अपनी दोनों टाँगें चौड़ी कर के टंकी के मुंह पर खड़ी थी और मैं टंकी के अंदर से टोर्च उनकी साड़ी के अंदर मार कर वो नज़ारा देख रहा था जो किसी सन्यासी को भी भोगी बना देता. भले चाची सांवली थी मगर उनकी चूत का सांवलापन मदहोश कर देने वाला था. चूत बालों से भरी हुयी थी .........चारो तरह झांटे इस तरह उगी हुयी थी जैसे खेत की सुरक्षा में बागड़ लगी हो. उनकी चूत के दोनों होंट थोड़े थोड़े से खुले और बाहर आये हुए थे. जैसे ही टोर्च की रौशनी उस पर पड़ी वो चमकने लगी पहले तो मैंने सोचा की ये क्या है ? फिर मुझे समझ में आया की चाची की मोटी मोटी गांड दबाने से उनकी चूत पनिया गयी है और कामरस निकलने लगी है. मेरे मन में आया की हाथ बड़ा कर चूत को छू लूँ......मगर मैं ठहरा गांडफट .....बड़ी मुश्किल से अपने आप को रोका, मगर लंड महाराज अपना सर उठा चुके थे.
मैं अंडरविअर में था. कहाँ छुपाता ? तभी चूड़ी मेरे पांव से टकराई और मैंने चाची की चूड़ी पकड़ा दी.......वो झुकी और मुझे उनके कसे हुए मम्मे मेरे चेहरे के ठीक ऊपर झूलते हुए दिखे. साली ने खुजली की वजह से पेंटी नहीं पहनी थी मगर ब्रा क्यों नहीं पहनी ये मेरी समझ से बाहर था....
चाची के झूलते मम्मे मेरे चेहरे से मुश्किल से २ फीट की दुरी पर थे. उनकी मीठी साँसें मेरे चेहरे से टकरा रही थी. उन्होंने चूड़ी ली और खुश होके बोली.
चाची : लल्ला......ये तो मानना पड़ेगा की नज़र तो तेरी तेज़ है. भाभी जी खुश हो जायेंगे. चल अब बहार आ जा.
मैं क्या बोलता और क्या बाहर आता. इतनी सी देर में इतना नज़ारा देख कर बाबुराव इतना कड़क हो गया था की अंडरविअर में तम्बू बन चूका था. एक बड़ा सा धब्बा सामने की तरफ आ गया था जो मेरे लार टपकाते लंड की कारस्तानी थी. मैंने चाची की टाला की आप जाओ मैं आ रहा हूँ. पर वो तो जिद्दी नंबर वन थी. मानी नहीं और मुझे ऊपर खिंच लिया. मैं बाहर आ के उनके सामने सर झुका के खड़ा हो गया. वो मुंह पर हाथ रख कर बोली :
चाची : हाय राम.....लल्ला टंकी साफ़ कर रहा था कि गन्दी ??
मैं : न न नहीं चाची.......व व वो .....मैं
kramashah.............
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