Sunday, August 4, 2013

FUN-MAZA-MASTI शुभारम्भ-5

FUN-MAZA-MASTI

शुभारम्भ-5
मैंने भी ढीली बाल देख के बल्ला घुमाया, "अब चाची इसमें इसका क्या दोष, बेचारे को इसकी साथीन दिखी तो यह खड़ा हो गया, हाल चाल पूछने के लिए"

चाची ने वो तिरछी नज़र मारी की दिल से लेकर मेरे गोटों तक सनसनी मच गयी.

चाची मंद मंद मुस्कुराते हुए देख रही थी. बड़ी अदा से इतरा कर बोली, " हाय राम....लल्ला......बहुत बदमाश हो गया है, तेरे लिए तो लड़की मैं ही ढूंढ़ कर लाऊंगी"

मैंने ने कहा, "हाँ चाची, अपने जैसी ही ढूंढ़ कर लाना", बेचारी का एकदम से चेहरा उतर गया. ठंडी सांस लेकर बोली, " मेरे जैसी ला कर क्या करेगा लल्ला, न मैं तेरे चाचा को बच्चा दे पाई ना तेरी माँ जैसा खूब दहेज़ लायी, मुझे तो लगता है की तेरे चाचा भी मुझसे प्यार नहीं करते......ऐसी लड़की का क्या करेगा रे...."

माहोल एक दम बदल गया. उनका चेहरा ही उतर गया था. अचानक मेरे मन में इस दुखियारी के लिए दया आ गयी. मैंने उनको खुश करने के लिए कहा,

" नहीं चाची, आप जैसी ही लाना, इतना सब होने के बाद भी आप कितनी हंसमुख हो, घर के सारे काम संभालती हो, आपके यहाँ आने के बाद से माँ को तो बस मंदिर दीखता है मगर आप फिर भी उनको इतनी इज्ज्ज़त देती हो..... चाचा अगर आपका ख्याल नही रखता और अगर बच्चा ना हुआ तो इसमें आपका क्या दोष ?
खराबी तो चाचा में है." वो एकदम आँखों गोल करके बोली, " क्या बोल रहा है रे लल्ला...." . मैंने और हिम्मत करते हुए कहा, " मुझे पता है की चाचा में शुक्राणु की कमी है, वो रिपोर्ट मैंने पढ़ ली थी"

चाची ने एक ठंडी गहरी सांस ली......उनका ब्लाउस ऐसा तना की लगा आज सारे हुक टूट जायेंगे. फिर बोली, " इसीलिए कहती हूँ लल्ला कि बुरी आदतों से दूर रह, कल तेरी बीवी को भी येही दुःख भोगना पड़ेगा. ना मन में शांति रहेगी ना ....तन में."

मैंने बात काटी, "नहीं चाची ऐसा नहीं हैं, मैं भी कोई रोज़ रोज़ नहीं करता, वो तो आजकल... , और वैसे भी डाक्टर चाचा ने बताया हैं कि कभी कभी करने से कुछ नहीं होता."

"आज कल क्या रे लल्ला......", चाची ने ऑंखें सिकोड़ के पूछा. मैंने हिम्मत जुटाई और पाँसा फेका, "न न न नहीं क क कुछ नहीं..... "

चाची ने आवाज़ कड़क कर के बोला, "बता ना ....आज कल क्या ? "

"वो च च चाची .....आप मजाक करती हो ना...तो मुझे करना पड़ता है"

"हाय राम......बेशरम. तो तू क्या मेरे बारे में सोच सोच कर........हाय राम....उठ यहाँ से.........खड़ा हो जा "

मेरी गांड फटी......"न न नहीं च च चाची.....म म मेरा मतलब है कि मुझे सपने आते है अजीब से......और वो सोचने से ये ऐसा हो जाता हैं, इ इ इस लिए करना पड़ता है"

चाची मुझे घुर रही थी और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करू ? फिर वो बोली, "देख लल्ला....मैं तुझ से बड़ी हु....तेरी चाची हूँ, ये गन्दा गन्दा मत सोचा कर, मैं तो समझ भी जाउंगी कि तू अभी बच्चा है मगर दुनिया क्या कहेगी....."

साली को ये दिक्कत नहीं कि मैं उसके बारे में सोच सोच कर लंड हिलाता हूँ, उसकी तो इज्ज्ज़त के नाम फटी है. मैंने कहा, " चाची मैं कभी किसी से कुछ नहीं बोलूँगा,
माँ की कसम, आप ही तो है घर में जो मुझको समझती है, बात करती हैं, इतना ध्यान रखती हैं, माँ को तो भगवान् और भजन से फुर्सत नहीं और पापा को तो ये भी नहीं पता होगा की मैं कौन सी क्लास में और कौन से कॉलेज में हूँ. चाचा तो यूँही काम में इतना बिजी रहते हैं.

इतनी भारी सेंटी मारी की चाची एकदम पसीज गयी और बोली, "नहीं रे लल्ला.....ऐसा मत बोल रे ...मैं हूँ ना.....तेरा पूरा ख्याल रखूंगी......तेरा मेरा दर्द एक जैसा ही है रे......" कह कर उन्होंने मुझे गले लगा लिया. उनकी हाईट तो कम थी मगर वो बैठी थी सोफे पर और मैं था निचे. मेरा सर सीधा उनके मम्मो के तकिये पर टिका.

एक पसीने और साबुन की खुशबु का मिला जुला झोंका मेरी नाक में आया और मेरा लंड जो उनके पैरों से चिपका था, सर उठाने लगा.

मैं उस गद्देदार तकिये के मज़े ले रहा था, ऐसा लग रहा था की बस यहीं पर समय रुक जाये. चाची ने मुझे धीरे से पीछे किया, और बोली, " लल्ला....तेरी लुगाई बहुत खुश रहेगी रे....तू अब समझदार हो गया हैं. तभी मैंने कहा, "और जवान भी". हम दोनों हंसने लगे.....तभी उनकी नज़र मेरी पेंट के उभर पर गयी जहाँ पर मेरा बाबुराव कसमसा रहा था. मुंह पर हाथ रख पर बोली," राम राम .....लड़का है की सांड है रे ?"

मैंने अनजान बनकर पूछा, "क्यों चाची, सांड क्यों ?"

चाची ने अपना निचला होंट मुंह में दबाया और बोली, "क्योकि सांड भी ऐसे ही होते हैं" . मैंने फिर कुरेदा, " मैं समझा नहीं"

"अरे लल्ला.....वो गाँव में अपने घर एक सांड पाला था.....6 -7 फुट ऊँचा और ऐसा भारी था की 100 गाँव तक उसकी बातें होती थी, वो तेरे चाचा ने उसको गाय गाभिन करने के काम पर ही लगा दिया था, लोग अपनी अपनी गाये लाते, गाय को स्टैंड में खड़ा करते और अपने सांड को उसके पीछे खड़ा कर के कुलहो पर एक लट्ठ मारते.
लठ खाते ही उसका ........वो....... तलवार जैसे बाहर निकलता और वो गाय पर चढ़ जाता. ऐसे वो एक दिन में 6 -7 बार कर लेता था. गाय गाभिन हो जाती, किसानों को अच्छे नस्ल के बछड़े मिल जाते और तेरे चाचा को हर बार के 500 रूपये. तेरे चाचा उस सांड से ही कुछ सीख लेते........"

चाची की आँखों में लाल लाल डोरे दिखने लगे थे, शायद सांड के तलवार जैसे लंड की याद आ गयी थी. मैंने कल्पना की की चाची घोड़ी बनी हुयी हैं और पीछे से मैं उनकी मार रहा हूँ . शायद इसलिए चाची मुझे सांड बोल रही थी.......

मतलब क्या चाची ...................

तभी मेरा मोबाइल बजा, मैं और चाची जैसे नींद से जागे. इतनी रात को कौन उंगली कर रहा था ? मैंने फ़ोन देखा.....

पिया का था. मेरी गांड फटी की अगर चाची ने पूछा की कौन है तो क्या बोलूँगा.

मैंने फ़ोन उठाया , "हाँ बोल..". मेरे ऐसे उत्तर से शायद को सकपका गयी, "ह ह ह हेलो, शील ?"

वाह रे ऊपर वाले, कभी मैं इस लड़की से बात करने समय हकलाता था, और आज यह मुझसे बात करने में हकला रही हैं.

मैंने कहा, "क्या हुआ भाई, सोया नहीं क्या अभी तक".

थी तो पिया भी शातिर, एक सेकंड में माजरा समझ गयी, " अरे कोई बैठा है क्या तुम्हारे पास ?". मैंने कहा, "हाँ यार, बस चाची के साथ बैठा था, गप्पे मार रहा था"

ऐसी गप्पे ही मारने को मिल जाये तो इंसान "दूसरी चीज़े मारने की क्यों सोचे ?? "

चाची ने इशारो से पूछा की कौन है, मैंने ऐसे ही चुतिया बनाया और पिया से बोला, "और बोल, पढाई वगेरह ठीक चल रही है"

"अरे मत पूछो, तुम्हारे जाने के बाद से फिर वोही हालत हो गयी, कुछ समझ नहीं आ रहा. मेरा मन आज तो पढ़ने का भी नहीं हो रहा.", वो बोली.

उसका यह कहना हुआ और मुझे उसका नरम और गरम हाथ का स्पर्श याद आ गया, हाय रे......वो सांड नवजोत नहीं आता तो क्या पता कुछ और होता.
यह सोचते ही ठरक जगी और सिग्नल खड़ा हो गया. साली जींस इतनी टाईट होती है की कोई ध्यान से देखे तो लंड क्या गोटे भी नाप ले. और वो ही काम चाची कर रही थी. मैंने सर उठाया और चाची को देखा तो उनकी टेडी नज़ारे मेरे तने हुए तम्बू पर ही थी. पहले ही पिया की हरकत याद करके मेरा हाल बुरा था उसके ऊपर से चाची की टेडी नज़ारे क़यामत ढा रही थी. धीरे धीरे उनके चेहरे पर वो ही मंद मंद मुस्कान आ गयी. उधर पिया जाने क्या बोले जा रही थी. मैंने कहा, "क्या ? क्या बोला ?"

वो एक दम चुप हो गयी.

मैंने कहा, "हेल्लो ....? आर यु देयर ? "
वो धीरे से बोली, "मैं तुम से बात कर रहू हूँ और तुम्हारा ध्यान ही नहीं हैं, अगर बिजी हो तो कोई बात नहीं"

"अ अ अरे ....क क कुछ नहीं यार...तू बोल ना"
"नहीं, मुझे बात नहीं करनी"

"अरे क्या हुआ" मैंने पूछा. उसका जवाब आये उसके पहले चाची मुझे घुर रही थी.
मैंने सोचा की पहले इसको कल्टी कर दू . नहीं तो चाची को शक हो जायेगा.

" .....अच्छा सुन, मैं तुझे कॉल करता हूँ...थोड़ी देर में.", मैंने उसको पुचकारने की कोशिश की.

"नहीं मत करना, फोन भाई के पास रहेगा.......".

जैसे किसी ने भरे बाज़ार में मेरी पेंट उतार ली हो. मेरी आवाज़ एक दम बंद हो गयी.

फिर मैंने कहा, "अ अ अच्छा.....त त त तो..... ठ ठ ठीक है नहीं क क करूँगा."

अचानक फ़ोन उसके खिलखिलाने की आवाज़ से गूंज उठा, वो जोर जोर से हंस रही थी और मुझे समझ ही नहीं आ रहा था की हुआ क्या ????

" अरे बुद्धू......फोन मेरे पास ही रहेगा, बिलकुल दिल से लगा के रख्खा है ....तुम फ्री हो कर फोन कर लेना..........तुम कितना डरते हो भाई से ......", और फिर जोर जोर से हंसने लगी.

साली .......इसको तो मैं रगड़ रगड़ के..........

मैंने बाय बाय करके फोन रखा

"कौन था लल्ला....."

"कोई नहीं चाची......दोस्त है"

"दोस्त या दोस्तनी ?"

"न न न नहीं चाची दोस्त है......."

"अच्छा .......आवाज़ तो लड़की की लग रही थी"

"न न नहीं चाची व् वो उसकी आवाज़ पतली है"

"लल्ला......पतली आवाज़ वाले दोस्तों से यारी करने से अच्छा हैं की लड़कियों से ही कर ले", कहकर वो भी खिलखिलाने लगी.

मैं भी हंसने लगा.....मैंने कहा, "क्या चाची आप भी.........आप को लगता है की मैं वैसे लडको से दोस्ती करूँगा ? "

"नहीं रे लल्ला....क्या पता........ज़माना ख़राब है, वैसे तू ऐसा करने का सोचता भी तो उसको पहले ही मैं तुझे सुधार देती"

मैंने भोला बन के पूछा...."कैसे चाची......."

"वो तो लल्ला अगर ऐसा कुछ होता तो तुझे पता लग ही जाता", चाची ऑंखें नचाती हुयी बोली.

"बताओं ना चाची.....देखो आप और मैं दोनों दोस्त जैसे ही तो है." मैंने जिद की.

"अरे लल्ला....क्या बताऊ तुझे.......औरत त्रिया चरित्र से हर मर्द से मनचाहा काम करा सकती हैं"

"त्रिया चरित्र ???? ये क्या है.....कोई दवाई है क्या ?", मैंने भोला बन के पूछा.......

ऐडा बन के पेड़ा खाने में तो अपन भी उस्ताद है.

"अरे लल्ला......त्रिया चरित्र मतलब........मतलब ........औरत जो अपने रूप और नखरो से किसी से कुछ भी करा लेती है ना.......उसको कहते हैं त्रिया चरित्र", चाची ने समझाया.

फास्ट बोलर के ओवर ख़तम.........स्पिन चालू. अपना बल्ला भी तैयार हो गया.

मैंने फिर कुरेदा, "चाची ......रूप और नखरे से क्या ? मतलब की...क्या करा ले ?

"अरे लल्ला, कुछ भी करवा सकती है औरत.....आदमी को ज़रा सा इशारा करते है उसके दिमाग का सारा खून वहां से, नीचे चला जाता है, औरत की बातों के आगे अच्छे अच्छे हर मान लेते है", चाची ने गुगली मारी.

"अच्छा चाची....अगर मैं ऐसे लडको से दोस्ती कर लेता, जो लडको को ही पसंद करते हैं तो क्या करती आप ?" , मैंने भी पूछ लिया.

चाची ने अपनी टांगो के बीच में खुजाते खुजाते कहा.

"अरे लल्ला......जो भी करती बस तुझे यह समझा देती की लडको के साथ वो बात नहीं जो एक औरत के साथ है",

अब मैंने भी अपनी नज़रे चाची की टांगो के बीच लगा दी. "चाची......अ अ आप ने वो साफ़ किया की नहीं......."

"क्या रे लल्ला.......", चाची ने ऑंखें तरेरी.

"व व व वोही......वो .....बाल......"

चाची ने धीमे से मुस्कुरा कर ऑंखें सिकोड़ कर सर हिला दिया.

हाय रे.....साला इतने में तो अपने पुरे बदन में सन सनन साय साय होने लगी.

"त त त तो च च चाची........फिर आपकी य य यह ख ख ख खुजली.......की दवाई कैसे काम करेगी.......?

चाची ने ठंडी सांस भरी, "अरे तो अब मैं क्या करू......मुझे बहुत डर लगता है.....ऐसे कैसे साफ़ करू......साफ़ करने के चक्कर में ब्लेड से कट लग गया तो....?"

तभी चाची के खेत के चारो तरफ, उजाड़ बंगले के बगीचे जैसे झाड़-झुरमुट उगा हुआ था. चाची ने कभी नीचे के बाल साफ़ किये ही नहीं थे.

"अरे क्या चाची.....आप भी.......रेज़र से थोड़ी साफ़ करते हैं. हेयर रिमूविंग क्रीम आती है, वो लगा लो. १० मिनट में सब साफ़."

"हे भगवान.....क्या क्या चीज़े आने लगी हैं.........बिलकुल साफ़ हो जायेगा ???"

"हाँ चाची......एकदम साफ हो जाता है....और एक दम चिकनी स्किन हो जाएगी..........आपके गाल जैसी"

"चल हट बदमाश........."

मगर उन्होंने हलके से अपने गालो को सहलाया और जायजा लिया की बाल साफ़ होने के बाद उनकी मुनिया कैसी चिकनी लगेगी.

चाची की आँखों में देखकर ऐसा लग रहा था मानो उन्होंने पी रखी हो.

ठंडी सांस ले कर बोली, "ठीक है लल्ला.....कल क्रीम ला देना.....अभी तो बहुत रात हो गयी....."

"च च चाची अ अ आप बोलो तो मेरे पास रखी हैं........वो क्रीम...", मैंने कहा.

"हाय राम......तुझे क्या काम उसका ? ", ऑंखें गोल गोल कर के उन्होंने पूछा.

"च च चाची........म म म मुझे वहां पर बाल पसंद नहीं......साफ़ रखो तो ख ख ख खुजली भी नहीं होती.......इ इ इसलिए"

चाची उठी और बोली, "चल .....दे दे...."

मैं अपने रूम में गया.......बाथरूम में जाके ट्यूब उठाई.....चाची मेरे पीछे पीछे वहां तक आ गयी थी.....मैं पलटा तो एकदम से हम टकरा गए......

मेरा सीना सीधा चाची के बिने ब्रा में कैद मम्मो से जा टकराया.......साली ये ब्रा क्यों नहीं पहनती. मेरा टी शर्त का कपडा भी पतला था. मुझे उनके खड़े हुए निप्पल महसूस हो गए थे. साली ........मस्ती इसको भी चढ़ रही थी.
kramashah.............













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