Sunday, August 18, 2013

FUN-MAZA-MASTI परदेस से शुरू हुआ चुदाई का सिलसिला--3

FUN-MAZA-MASTI
 परदेस से शुरू हुआ चुदाई का सिलसिला--3

गतांक से आगे...................
हर घर्षण पर वो 'आफ्टर शाक' जैसे हलके झटके खा रही थी. धीरे धीरे ये झटके भी शांत हो गए.

मेरी हथेली पर जम कर पिचकारियाँ चली थी.

अब उसने इशारा किया तो मैंने तुरंत अपना हाथ बाहर खींचा .......वो सीधी हुई और अपनी पेंटी और जींस को ऊपर खींच लिया और अच्छे से पहन लिया....और फिर बिना मुझसे नज़रें मिलाये बाथरूम की और बढ चली.

मैं भी सीधा हुआ और आसपास देखा.........कोई नहीं था......

मेरा पप्पू अब तक बहुत सारी चिकनाई छोड़ चूका था और ऊपर जींस पर एक बड़ा सा धब्बा बन चूका था जबकि अन्दर जोकी पहन रखी थी मैंने.....

मेरी पूरी हथेली पर चिकनाई की कोटिंग की गई मालूम पड़ रही थी.........मैंने रुमाल निकल कर हथेली को अच्छे से साफ किया......पूरा रुमाल गिला हो गया......फिर मैंने अपने सूखे हाथ को सुंघा तो बड़ी सुहानी और मादक खुशबू आ रही थी. अचानक रुमाल को देखा और सोचा कि इसे बिना धोये अपने पास रखूँगा.....उसके रस की निशानी.....

तभी केबिन में तेज़ रौशनी होने लगी और ज़रीन नज़र आई........वो शाल, हेडफोन वगैरह इकठ्ठा करने में जुट गई.....मेरे पास आकर मुझसे बड़े ही प्यार से पूछा.......कैसा रहा आपका सफ़र, मज़ा तो आया ना आपको और फिर वोही दिलकश मुस्कान.....मैं तो बस उसे देखता ही रह गया......और वो आगे बढ गई.....जाते जाते फिर से मेरे हाथ पर प्यारा सा दबाव देते हुए गई.......

मैं आयशा का इंतजार करने लगा.........लेंडिंग की घोषणा हो गई और वो अभी तक बाथरूम में ही थी............और जैसे ही प्लेन उतरने के करीब पहुंचा वो भाग कर आई, सीट बेल्ट लगाया और आँख बंद करके लेट गई.......

मैं उसे घूर घूर कर देखने लगा......एकदम संतुष्टि से भरा प्यारा सा चेहरा.......और ये मैंने प्रदान की है यह अहसास ही मुझे अपनी नज़रों में विशिष्ट बना रहा था.......

अब मेरी निगाहें उसकी सांस के साथ ऊपर निचे होते उभारों पर गई......मेरी नज़र में ये दुनिया के सबसे बढ़िया वक्ष थे......बहुत भरे भरे और मादक.....मैंने उसके हजारों फोटो सिर्फ इन बब्बुओं को देखने के लिए डाउनलोड किये थे...............और वो साक्षात् मुझसे सिर्फ ९ इंच दूर थे............मैं उनमे खो गया.......कब लेंडिंग हुई और कब सब लोग उठने लगे पता ही नहीं चला......

अरे ये तो जाने वाली है.........क्या इससे बात करूं.......दुबई या इंडिया का मोबाइल नंबर लूं.......क्या दोस्ती करेगी......आगे भी कोई चांस बनता है...........सोचता रहा पर इतने भाव खाने के बाद अब पूछने कि हिम्मत नहीं हो रही थी.........रिक्वेस्ट कैसे करूं...........

कुछ डिसाइड करूं इसके पहले ही वो उठी और बिना मुझे देखे या थैंक्स बोले आगे ज़रीन के पास चली गई जो गेट खोले जाने का वेट कर रही थी.......वो उसके पास जाकर बातें करने लगी.....परन्तु पलट कर एक बार भी नहीं देखा........

वहीँ दूसरी ओर ज़रीन बात तो उससे कर रही थी पर निगाहें बार बार मेरी और उठ रही थी........और फिर ज़रीन ने गेट खोला और आयशा बिना आखरी बार मुझे देखे, फुर्र से उड़ चली.

उसकी ओर से कोई तवज्जो न दिए जाने के कारण मुझे धक्का लगा और मैं अपनी सीट से हिला तक नहीं.

ज़रीन ने देखा तो मेरे पास आई और मेरा एक हाथ अपने दोनों हाथों में बड़े प्यार से लेकर पूछा......'क्या हुआ, आप उठे नहीं अब तक'....

मेरी तन्द्रा टूटी और मैंने ज़रीन को देखा. वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी.

'मैं आपकी स्थिति समझ सकती हूँ. वो तो बड़ी नाशुक्र निकली. और तो और जाते जाते आपको बाय कहकर भी नहीं गई.'......वो अभी भी मुस्कुरा रही थी.

'कौन..........किसने बाय नहीं किया मुझसे. ये आप क्या कह रही हैं.'.........मैं एकदम हैरानी से बोला.

'चलिए, अब आप बनिए मत. वो उस परदे के पीछे से मैंने पूरा मैच देखा है. आपने मेहनत तो बहुत की, पर
आपके हाथ कुछ भी ना आया.'........बड़ी अदा से बोली वो.

ये सुनकर मैं एकदम से सन्न रह गया. कुछ भी बोलते नहीं बना.

'अरे ये स्टार लोग होते ही ऐसे हैं, मतलबी........अपना काम निकल जाने पर पहचानते भी नहीं हैं. चलिए आप दुखी मत होईये. जो हुआ सो हुआ.’ उसने कहा.

मैं उठ खड़ा हुआ.

‘आज शाम को आप फ्री हैं क्या.’......उसके यह पूछते ही मैं चौंक गया. फिर संभल कर बोला...’हाँ, पर क्यों.’

‘क्योंकि आज शाम मैं भी एकदम फ्री हूँ. लाइए एक मिनट, आपका मोबाइल दीजिए तो’........ ये कहते हुए उसने मेरे हाथों से मोबाइल लिया और उसमें कोई नंबर फीड करने लगी.

मैं सोचने लगा कि अचानक ये मुझ पर मेहरबान क्यों हो रही हैं.

तभी उसने नंबर सेव करके डायल करते हुए मोबाईल वापिस लौटा दिया. मैंने देखा, उसमे ज़रीन का नंबर डायल हो रहा है.

फिर उसके मोबाइल की रिंग बजी और उसने कट करके मेरा नाम टाइप किया और फिर सेव कर लिया.

फिर वो मेरी ओर एक बहुत प्यारी सी मुस्कान बिखेरती हुई थोड़ी झुकी और अपने हाथ से मेरे गाल को अपनेपन से सहलाते हुए बोली.....'अच्छा अभिसार, शाम को मेरे कॉल का वेट करना. अभी चलती हूँ.......बाय'
और वो चली गयी.

मैंने भी अपना सामान समेटा और बाहर निकल गया.

दुबई में एक नए क्लाइंट को प्रेजेंटेशन देना है और उसके बाद फिर अग्रीमेंट भी करना है इसलिए सुबह जल्दी की फ्लाईट ली थी.

एक घंटे के बाद मैं एक बेहद आलिशान होटल 'ग्रेंड हयात' में अपने सुइट में था.

सारा दिमाग आज होने वाली मीटिंग पर केन्द्रित हो गया था.

दिन भर चली मीटिंग, सफल रही. कांट्रेक्ट फ़ाइनल करने के लिए तीसरे दिन का वक़्त तय हुआ. अब मैं परसों सुबह तक के लिए एकदम फ्री था.

शाम के चार बज चुके थे.

मैं वापिस अपने सुइट पहुंचा.

जैसे ही दरवाजा खोलने लगा तो देखा पास के सुइट से मेरा कालेज का दोस्त, अजय, एक बहुत ही खूबसूरत लड़की के साथ अपना दरवाजा बंद करके मेरी ओर आ रहा था.

जैसे ही उसने मुझे देखा वो एकदम से खिल गया..........’अभि, तू’

‘हाय अजय, अरे बड़े दिनों बाद दिखा यार और वो भी यहाँ.........क्या हो रहा है यार दुबई में, और ये साथ में कौन है.’.........मैंने धीरे से पूछा.

‘अभि, ये डॉली है.............और डॉली........ये मेरा कालेज का बहुत अच्छा दोस्त है.’ उसने परिचय करवाया.

हमने हाथ मिलाये........बहुत कोमल हाथ था.....

‘चलो आओ अंदर, कुछ देर बैठते हैं.’........मैंने उनसे कहा.

डॉली ने कहा......’अजय, फिर लेट नहीं हो जायेंगे.’

मैं उस खूबसूरती को कुछ देर और देखना चाहता था इसलिए बोला......’बस पांच मिनट.’
फिर वो अंदर आ गए और बैठ गए. आते ही अजय बोला....’एक मिनट में आ रहा हूँ टॉयलेट से होकर.’

अब हम दोनों सोफे पर आमने सामने बैठे थे.

क्या हसीन थी वो....... फूल सी नाज़ुक, कमनीय काया, नीली आँखे, आकर्षक चेहरा, खुले लंबे बाल और शिमर का पिंक इवेनिंग गाउन पहन रखा था.

ऊपर की तरफ वो उसके मोटे चुच्चों पर टंगा हुआ था, वहीँ नीचे घेर के एक साइड लंबा कट लगा हुआ था.

उसके बैठने से वो कट चौड़ा होकर उसकी पूरी टांग को नंगा कर गया. उसने उसे छुपाने के बजाय उसी टांग को दूसरी टांग पर चढ़ा लिया. कट के उपरी भाग में से क्रो़च-एरिया साफ़ दिखाई देने लगा.

स्वाभाविक तौर पर मेरी नज़र अंदर घुसी. वो अंदर काले रंग की पहने हुए थी. मैं गोरी टांगो में लिपटी काली चड्डी (कट वाली नहीं बल्कि थाई तक आने वाली) के लिए बहुत फिटीश था वहाँ से नज़र हटाना मुश्किल हो था था.

उसने मुझे डायवर्ट किया. वो अपना एक हाथ अपनी खुली थाई पर रख कर उसपे फिरने लगी. एकदम गोरी और चिकनी टांग देख कर मुझे कुछ कुछ होने लगा और वो लगातार मेरा इम्तेहान लेने में लगी हुई थी.

मैंने उसे देखा तो वो मुझे ही देख रही थी. अब उसने मेरी आँखों में अपनी आँखे डाल दी. मैंने तुरंत अपनी निगाह हटा ली.

फिर जब दुबारा उसे देखा तो पाया कि वो तो लगातार मुझे ही देखे जा रही थी.......अबकी बार पता नहीं क्या हुआ कि मैं अपनी नज़रें उसकी आँखों से हटा नहीं पाया और उनमें डूबने लगा.

पता ही नहीं चला कि अजय कब आया और हमें एक दूसरे में खोये हुए देख रहा था.

‘ये क्या चल रहा है दोनों में......’......उसकी आवाज़ सुन कर हम दोनों का ध्यान भंग हुआ.

मुझे थोड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई.

वो डॉली से चिपक कर बैठ गया और उसे अपनी बाँहों में भरते हुए मुझसे पूछा......’पता है ये डॉली मेरी क्या लगती है.’

मैंने ना में सर हिलाया.

‘ये मेरी कज़न है, मौसी की लड़की.’.....उसने अपने मुंह को उसके गाल पर रखते हुए बोला.

‘क्याआआआआआआआअ ........कज़न............’......मेरा मुंह खुला का खुला रह गया.

‘ये सिटी बैंक में काम करती है और एक सेमिनार अटेंड करने दुबई आई हुई है. मैं भी इसके साथ चुपके से आ गया हूँ.’......वो बोला और उसकी नंगी जांघ को सहलाने लगा.

डॉली ने तुरंत उसके हाथ पर मारा और बोला.....’क्या कर रहा है ......कुछ शरम लिहाज़ है कि नहीं.’

‘शरम लिहाज़ की बच्ची.......बड़ी बातें आ रही है..........क्या गुल खिला रही थी अभी तू..........कैसी बेशर्मी से नैन-मटक्का चल रहा था.’..........अजय ने उसे झिड़का.

उनकी नोंकझोंक से अनुमान लगाना मुश्किल था कि वे भाई बहन है. बातें तो प्रेमी प्रेमिका जैसी हो रही थीं.

मैं बड़ा ही असहज महसूस कर रहा था उन दोनों के रवैये से. आखिर भाई-बहन जो थे.

वो मेरी दुविधा समझ गया. उसने मुझसे सीधे-सीधे पूछ डाला.......’अभि, ये डॉली खूबसूरत दिखती है ना.......नहीं क्या. पर तुने तो अभी तक एक बार भी इसे कोम्प्लिमेंट नहीं दिया.’

‘ओह सॉरी सॉरी.........डॉली, यू आर वैरी ब्यूटीफुल.’......मैं बोला.

उसने अदा के साथ सर झुका कर थेंक्स कहा.

फिर दोनों ने कुछ देर खुसर पुसर की........डॉली कुटिलता से मुस्कुराने लगी.
क्रमशः.....







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