FUN-MAZA-MASTI
परदेस से शुरू हुआ चुदाई का सिलसिला--4
गतांक से आगे...................
अजय मुझे देख कर बोला.....’अच्छा अभि, डॉली कहाँ से ज्यादा खूबसूरत है.’
‘ये तो सर से पैर तक खूबसूरत है.’
‘नहीं.....मुझे स्पेसिफिक जवाब चाहिए.......इधर आकर गौर से देखो और बताओ.’
मैं नहीं उठा तो वे दोनों उठ कर मेरे करीब आये और अजय ने डॉली को मेरे पास सोफे पर धकेल दिया.
उसने मुझसे सटते हुए मेरी बांह थामी और आँखे मटकाते हुए पूछा.......’बताओ ना अभि........क्या चीज़ पसंद आई तुम्हे.’
‘आँखे.’
‘और’
‘और होंठ’.......
‘मतलब कि ये पसंद नहीं आये तुम्हे .’......कहते हुए उसने अपने बूब्स को हाथों में भरते हुए फुलाया.
‘हाँ ये भी अच्छे हैं.’.......बोलते हुए थोड़ा शर्मा गया मैं.
‘अच्छा तो अब ये बताओ कि मेरे होंठ ज्यादा अच्छे हैं या कि ये’.......और बोलते हुए उन उभारों को वो पिचका पिचका के नचा रही थी.
ना चाहते हुए भी मेरी निगाह उन डोलते गोलों पर जम गई और कोई जवाब ना दे पाया.
तब अजय ने अपना हाथ मेरे कंधे पर रखा और बोला.......’अभि, तुम एक काम करो. दोनों चीज़ों को हाथों से फील करो, फिर जवाब देना.’
‘हाँ ये ठीक रहेगा’..... ये कहते ही डॉली ने मेरा हाथ पकड़ा और उँगलियों को अपने होंठो पर फिरवाने लगी.
पहले पहल तो बाहर बाहर ही ......फिर उँगलियों को थोड़ा होंठ के अंदर घुसाया.
उसके अंदरूनी होंठ मक्खन की तरह मुलायम थे.
फिर उसने होंठो की पंखुडियां बंद की और उँगलियों को चूसने लगी.
थोड़ी ही देर में उसने सारी उँगलियाँ अपने थूक से लथेड़ दी. फिर उसने मेरा अंगूठा अपने मुंह में ले लिया और उसे बड़ी ही बेशर्मी से चूसने लगी.
दोनों हाथों से मेरी हथेलियों को थाम कर अंगूठा इस तरह से अंदर बाहर कर रही थी जैसे वो पप्पू को चूस रही हो. चूसते चूसते वो मुझे बड़ी ही सिड्यूसिंग निगाहों से देख रही थी.
इसी तरह फिर, उसने दूसरे अंगूठे का भी कस निकाला.
अब उसने मेरे दोनों हाथ थामे और उन्हें अपने बूब्स पर टिका दिए. शरीर के सुतवेंपन को देखते हुए मुझे वो काफी मोटे लगे.
अब वो मेरे हाथों से अपने मोम्मे दबवाने लगी. कुछ देर में, जब मैं खुद ही उन्हें दबाने लगा तो उसने अपने हाथ हटा कर मेरे कंधो पर रख दिए. उसके टपलू काफी कड़क थे.
‘अभि..... जरा अच्छे से मसलो इन्हें....वरना अंतर कैसे बताओगे’.......अजय बोला.
अब तक तो मैं उन्हें गोलाइंयों पर ही मसल रहा था.......पर अभी मैंने उन दोनों को अपनी पूरी हथेलियों में भर लिया.
अंदर ब्रा नहीं होने के कारण उसके कड़क निप्पल मेरे हाथों में चुभे.
अब उन मस्त गोलों को आटे की तरह गूंधने लगा. फिर उसकी चुन्ची पकड़ कर जैसे ही दो-तीन बार रोल करा, वो ‘सी’ ‘सी’ करने लगी.
उसके हाथ अपने आप मेरे कन्धों से ऊपर होते चले गए और वो मेरे सर को सहलाने लगी.
उसकी आँखे एकबार फिर से मेरी आँखों में डूबने लगी.
तभी, अजय डॉली के पीछे आया और उसने अपने मुंह को उसके कंधे पर टिकाकर उसे अपनी बाँहों में कस लिया.
अजय ने ज्यूँ ही उसके गाल पर चुम्मा दिया उसने तड़प कर अपना मुंह उसकी तरफ घुमाया और अपने होंठ उसके होंठो में घुसा दिए.
अब ठीक, मेरी आँखों के सामने उनकी चूमा-चाटी चालू हो गई. ये देख कर मेरे हाथ उसके मम्मों को रुई की तरह धुनने लगे.
उसके हाथ अभी भी मेरे सर पर थे. अचानक उसने अपने हाथ से मेरा सर उसकी तरफ खींचा.
जैसे ही मेरा मुंह उसके चेहरे के पास पहुंचा, उसने एक झटके में अपने होंठ अजय के मुंह से निकाले और मेरे में घुसा दिए.
मेरे हाथ अब उसके कंधों पर आ गए. उसके होंठ बहुत ही कोमल और रसभरे थे. मैं बड़ी ही नजाकत से उन्हें चूसने लगा. पर वो थोड़ी बेसब्र हो रही थी और अपनी जीभ बार बार मेरे मुंह में घुसा रही थी.
तभी अजय ने हम दोनों को खड़ा कर दिया.....तब भी हम एक दूसरे को कस के चूस रहे थे.
अब अजय ने डॉली के गाउन की ज़िप खींच दी और गाउन को उसके हाथों से सरकाता हुआ सर्र से नीचे टपका दिया.
वो वन पीस में सिमट गई.
अब उसने डॉली को धक्का देकर बड़े से सोफे पर गिरा दिया. मैं उस गिरे हुए मादक सौंदर्य को निहारने लगा.
वो मेरी आँखों में देखते हुए अपने बब्बू मसलने लगी. उसकी आँखे मादक हो चलीं थी और अब उस पर मस्ती चड़ने लगी थी.
अजय अपने कपड़े खोलते हुए बोला.....’अभि, चल जल्दी से निकाल ले तू भी’
और वो नंगा होकर उसके मुंह पर चढ़ गया. मुझे दिखाई तो नहीं दिया पर निश्चित रूप से उसने अपना हथियार उसके मुंह घुसा दिया था. उसके दोनों पैर तड़प कर आपस में चिपक गए.
मेरे संकोच पर अब माहौल की मादकता हावी हो चुकी थी. मैंने भी झट से अपने कपड़े उतारे और एकदम नंगा हो गया.
उसने सिर्फ एक पतली सी ब्लैक, निक्कर टाइप स्ट्रेचेबल चड्डी (Thong) पहनी थी.
उसकी सुडौल गोरी जाँघों पर कसी वो काली चड्डी मुझे आमंत्रित कर रही थी.
मैंने करीब जाकर उसकी दोनों टांगो को पकड़ कर जांघों को बीच से खोला तो पाया कि उसकी चड्डी के ठीक बीचोबीच एक गीला धब्बा उभर आया है.
अब मैं अपने होंठों को उसकी अंदरूनी जांघ पर घुटनों के पास वाले स्थान पर ले गया. वहाँ से चूमता हुआ ऊपर की और बढ़ा.
जैसे जैसे चूमते हुए ऊपर जा रहा था उसे सरसराहट सी होने लगी. उसने अपनी जांघों को बंद करना चाहा पर मेरा सर बीच में अड् गया.
मैंने अपने हाथ से उसकी जांघे फिर से चौड़ी करी और चूमना जारी रखा. उसकी काली चड्डी की लाइनिंग तक पहुँच गया. ये कट चड्डी नहीं थी बल्कि थोड़ी सी थाई तक आती थी.
अब मैंने अपनी उँगलियाँ उसकी चड्डी की किनोर में फंसाई और उसे ऊँचा कर दिया. अब और मुलायम जांघ मेरे होंठो को उपलब्ध हो गई.
मैं चूमता हुआ एन कोने तक पहुँच गया. फिर थोड़ा चड्डी में मुंह घुसा कर उसकी जांघ के मुलायम और संवेदी खांचे पर भी जुबान फेरने लगा.
चड्डी खींच कर मुंह घुसाने के प्रयास में मेरे एक हाथ की मुठ्ठी उसके गीले धब्बे को टच करने लगी.
वो लगातार दूसरी टांग को खींच कर दोनों टांगो को मिलाने का प्रयास कर रही थी ताकि वहाँ हो रही असहनीय सरसराहट से कुछ राहत मिले परन्तु मैंने उसकी दूसरी जांघ पर अपनी पीठ और कोहनी फंसा रखी थी.
फिर मैं जैसे ऊपर तक चढ़ा था वैसे ही वापिस नीचे चूमते हुए आने लगा. घुटने तक आकर अब इस टाँग को छोड़ा और दूसरी टाँग को पकड़ लिया.
अब एक और चिकनी और गोरी-गट जांघ मेरे सामने थी. पहले मैंने अपने होंठ और नाक उस पर टिकाई और लंबी सांस खींचता हुआ जल्दी से चड्डी तक मसलता हुआ पहुंचा और सांस छोड़ता हुआ वापिस नीचे तक रगड़ दिया.
उसके बदन की महक ने जहाँ एक ओर मुझे मस्त कर दिया वहीँ दूसरी ओर मेरी साँसों, नाक और होंठों की तेज़ रगड़ से उसको भी इतनी सनसनाहट हुई के उसके सारे रोयें खड़े हो गए हालांकि त्वचा वेक्स की हुई थी.
अब फिर वही चूमने का एक्शन रिप्ले दूसरी टाँग पर भी करने लगा. वही चड्डी को ऊपर करना, फिर चड्डी को खींच कर उसमें मुंह घुसाना.
इस बार मैंने काफी ज्यादा खींच दी थी चड्डी सो मुझे उसके झांटों वाला हिस्सा भी दिखाई देने लगा जो की एकदम सफाचट था.
चूमते हुए मैंने अपनी जुबान उधर भी घुमा दी. मेरी पहुँच उसके भगोष्ठ से मात्र आधे इंच दूर रह गई.
फिर रिवर्स गियर और चूमते चूमते वापिस नीचे आया. जाँघों को चूमने का भी अपना ही मज़ा है.
वो तो अच्छा हुआ कि अजय ने उसके मुंह और हाथों को अपने में व्यस्त करवा रखा था वरना वो गुदगुदाहट और सनसनाहट की अतिरेक के कारण मुझे इतने इत्मीनान से अपनी जांघे चूमने नहीं देती.
या तो वो मुझे अपने ऊपर खींच लेती या फिर मेरे मुंह को अपनी योनी में ही घुसा देती.
जैसे ही मैं थोड़ा सुस्ताया उसने अपनी दोनों टाँगे जकड कर बंद कर ली और आपस में मसलने लगी.
मैंने फिर उसके दोनों घुटनों को पकड़ा तो वो कड़क हो गई और मुंह से उन्हूँ उन्हूँ की आवाजे निकल रही थी.
मैंने उसके घुटनों पर जोर लगा कर फैलाया और जांघों को फिर से पूरा फैला दिया.
अब मैं चड्डी पर मौजूद गीले धब्बे के सामने अपना मुंह लाया. वो अब काफी फैल चूका था.
मैंने झुकते हुए उसकी दोनों जांघों को अपनी बाँहों में कस के लपेटते हुए बीचों बीच अपना मुंह घुसा मारा.
उसने एक जोर का झटका खाया और अपने दोनों पैरों को दबाते हुए मेरे सर को जकड लिया.
मैंने धब्बे वाली जगह पर अपना पूरा मुंह चौड़ा किया और दबाते हुए उसके नरम, गरम और गीले गोश्त को अपने होंठो से इस तरह कसते हुए मुंह में भरने लगा जैसे एक बड़ा सा लड्डू मुंह में भरने का प्रयास कर रहा हूँ.
५-६ बार इस तरह मेरे मुंह से पम्पिंग इफेक्ट पाकर वो सिसकने लगी.
वो तडपते हुए अपने चूतड़ उठा-उठा कर मेरे मुंह में घुसेड़ने लगी. उसकी योनी के कुछ उभरे हिस्से मेरे मुंह में जाने लगे.
अब मैं उस धब्बे पर से उसके रस को चुसक चुसक करके चूसने लगा. (बर्फ के गोले को जैसे चूसते हैं न उस तरह).
उसे गुदगुदी भी हो रही थी और मज़ा भी आ रहा था.
इस बीच अजय ने अपने पुठ्ठे उसके बब्बू पर इस तरह टिकाये कि डॉली का कड़ा निप्प्ल उसके गुदा छिद्र तक पहुँच गया.
उसने अपने हाथों से गुदा को फैलाया और यथासंभव उस निप्पल को ऊँगली से दबाते हुए उसके छेद में फंसा दिया.
थोड़ी सी कोशिश में उसने उस निप्पल को गुदा में खींच लिया और अब वो उस पर बैठ कर गुदा सिकोड़ने और छोड़ने लगा.
अपने निप्पल पर इतनी तेज़ी से होते अजीब से सेंसेशन से वो पगलाने लगी.
और उसने काली चड्डी में एक बार फिर नए सिरे से धार छोड़ दी. मुझे फिर से ताज़ा रस पीने को मिलने लगा.
क्रमशः.....
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‘ये तो सर से पैर तक खूबसूरत है.’
‘नहीं.....मुझे स्पेसिफिक जवाब चाहिए.......इधर आकर गौर से देखो और बताओ.’
मैं नहीं उठा तो वे दोनों उठ कर मेरे करीब आये और अजय ने डॉली को मेरे पास सोफे पर धकेल दिया.
उसने मुझसे सटते हुए मेरी बांह थामी और आँखे मटकाते हुए पूछा.......’बताओ ना अभि........क्या चीज़ पसंद आई तुम्हे.’
‘आँखे.’
‘और’
‘और होंठ’.......
‘मतलब कि ये पसंद नहीं आये तुम्हे .’......कहते हुए उसने अपने बूब्स को हाथों में भरते हुए फुलाया.
‘हाँ ये भी अच्छे हैं.’.......बोलते हुए थोड़ा शर्मा गया मैं.
‘अच्छा तो अब ये बताओ कि मेरे होंठ ज्यादा अच्छे हैं या कि ये’.......और बोलते हुए उन उभारों को वो पिचका पिचका के नचा रही थी.
ना चाहते हुए भी मेरी निगाह उन डोलते गोलों पर जम गई और कोई जवाब ना दे पाया.
तब अजय ने अपना हाथ मेरे कंधे पर रखा और बोला.......’अभि, तुम एक काम करो. दोनों चीज़ों को हाथों से फील करो, फिर जवाब देना.’
‘हाँ ये ठीक रहेगा’..... ये कहते ही डॉली ने मेरा हाथ पकड़ा और उँगलियों को अपने होंठो पर फिरवाने लगी.
पहले पहल तो बाहर बाहर ही ......फिर उँगलियों को थोड़ा होंठ के अंदर घुसाया.
उसके अंदरूनी होंठ मक्खन की तरह मुलायम थे.
फिर उसने होंठो की पंखुडियां बंद की और उँगलियों को चूसने लगी.
थोड़ी ही देर में उसने सारी उँगलियाँ अपने थूक से लथेड़ दी. फिर उसने मेरा अंगूठा अपने मुंह में ले लिया और उसे बड़ी ही बेशर्मी से चूसने लगी.
दोनों हाथों से मेरी हथेलियों को थाम कर अंगूठा इस तरह से अंदर बाहर कर रही थी जैसे वो पप्पू को चूस रही हो. चूसते चूसते वो मुझे बड़ी ही सिड्यूसिंग निगाहों से देख रही थी.
इसी तरह फिर, उसने दूसरे अंगूठे का भी कस निकाला.
अब उसने मेरे दोनों हाथ थामे और उन्हें अपने बूब्स पर टिका दिए. शरीर के सुतवेंपन को देखते हुए मुझे वो काफी मोटे लगे.
अब वो मेरे हाथों से अपने मोम्मे दबवाने लगी. कुछ देर में, जब मैं खुद ही उन्हें दबाने लगा तो उसने अपने हाथ हटा कर मेरे कंधो पर रख दिए. उसके टपलू काफी कड़क थे.
‘अभि..... जरा अच्छे से मसलो इन्हें....वरना अंतर कैसे बताओगे’.......अजय बोला.
अब तक तो मैं उन्हें गोलाइंयों पर ही मसल रहा था.......पर अभी मैंने उन दोनों को अपनी पूरी हथेलियों में भर लिया.
अंदर ब्रा नहीं होने के कारण उसके कड़क निप्पल मेरे हाथों में चुभे.
अब उन मस्त गोलों को आटे की तरह गूंधने लगा. फिर उसकी चुन्ची पकड़ कर जैसे ही दो-तीन बार रोल करा, वो ‘सी’ ‘सी’ करने लगी.
उसके हाथ अपने आप मेरे कन्धों से ऊपर होते चले गए और वो मेरे सर को सहलाने लगी.
उसकी आँखे एकबार फिर से मेरी आँखों में डूबने लगी.
तभी, अजय डॉली के पीछे आया और उसने अपने मुंह को उसके कंधे पर टिकाकर उसे अपनी बाँहों में कस लिया.
अजय ने ज्यूँ ही उसके गाल पर चुम्मा दिया उसने तड़प कर अपना मुंह उसकी तरफ घुमाया और अपने होंठ उसके होंठो में घुसा दिए.
अब ठीक, मेरी आँखों के सामने उनकी चूमा-चाटी चालू हो गई. ये देख कर मेरे हाथ उसके मम्मों को रुई की तरह धुनने लगे.
उसके हाथ अभी भी मेरे सर पर थे. अचानक उसने अपने हाथ से मेरा सर उसकी तरफ खींचा.
जैसे ही मेरा मुंह उसके चेहरे के पास पहुंचा, उसने एक झटके में अपने होंठ अजय के मुंह से निकाले और मेरे में घुसा दिए.
मेरे हाथ अब उसके कंधों पर आ गए. उसके होंठ बहुत ही कोमल और रसभरे थे. मैं बड़ी ही नजाकत से उन्हें चूसने लगा. पर वो थोड़ी बेसब्र हो रही थी और अपनी जीभ बार बार मेरे मुंह में घुसा रही थी.
तभी अजय ने हम दोनों को खड़ा कर दिया.....तब भी हम एक दूसरे को कस के चूस रहे थे.
अब अजय ने डॉली के गाउन की ज़िप खींच दी और गाउन को उसके हाथों से सरकाता हुआ सर्र से नीचे टपका दिया.
वो वन पीस में सिमट गई.
अब उसने डॉली को धक्का देकर बड़े से सोफे पर गिरा दिया. मैं उस गिरे हुए मादक सौंदर्य को निहारने लगा.
वो मेरी आँखों में देखते हुए अपने बब्बू मसलने लगी. उसकी आँखे मादक हो चलीं थी और अब उस पर मस्ती चड़ने लगी थी.
अजय अपने कपड़े खोलते हुए बोला.....’अभि, चल जल्दी से निकाल ले तू भी’
और वो नंगा होकर उसके मुंह पर चढ़ गया. मुझे दिखाई तो नहीं दिया पर निश्चित रूप से उसने अपना हथियार उसके मुंह घुसा दिया था. उसके दोनों पैर तड़प कर आपस में चिपक गए.
मेरे संकोच पर अब माहौल की मादकता हावी हो चुकी थी. मैंने भी झट से अपने कपड़े उतारे और एकदम नंगा हो गया.
उसने सिर्फ एक पतली सी ब्लैक, निक्कर टाइप स्ट्रेचेबल चड्डी (Thong) पहनी थी.
उसकी सुडौल गोरी जाँघों पर कसी वो काली चड्डी मुझे आमंत्रित कर रही थी.
मैंने करीब जाकर उसकी दोनों टांगो को पकड़ कर जांघों को बीच से खोला तो पाया कि उसकी चड्डी के ठीक बीचोबीच एक गीला धब्बा उभर आया है.
अब मैं अपने होंठों को उसकी अंदरूनी जांघ पर घुटनों के पास वाले स्थान पर ले गया. वहाँ से चूमता हुआ ऊपर की और बढ़ा.
जैसे जैसे चूमते हुए ऊपर जा रहा था उसे सरसराहट सी होने लगी. उसने अपनी जांघों को बंद करना चाहा पर मेरा सर बीच में अड् गया.
मैंने अपने हाथ से उसकी जांघे फिर से चौड़ी करी और चूमना जारी रखा. उसकी काली चड्डी की लाइनिंग तक पहुँच गया. ये कट चड्डी नहीं थी बल्कि थोड़ी सी थाई तक आती थी.
अब मैंने अपनी उँगलियाँ उसकी चड्डी की किनोर में फंसाई और उसे ऊँचा कर दिया. अब और मुलायम जांघ मेरे होंठो को उपलब्ध हो गई.
मैं चूमता हुआ एन कोने तक पहुँच गया. फिर थोड़ा चड्डी में मुंह घुसा कर उसकी जांघ के मुलायम और संवेदी खांचे पर भी जुबान फेरने लगा.
चड्डी खींच कर मुंह घुसाने के प्रयास में मेरे एक हाथ की मुठ्ठी उसके गीले धब्बे को टच करने लगी.
वो लगातार दूसरी टांग को खींच कर दोनों टांगो को मिलाने का प्रयास कर रही थी ताकि वहाँ हो रही असहनीय सरसराहट से कुछ राहत मिले परन्तु मैंने उसकी दूसरी जांघ पर अपनी पीठ और कोहनी फंसा रखी थी.
फिर मैं जैसे ऊपर तक चढ़ा था वैसे ही वापिस नीचे चूमते हुए आने लगा. घुटने तक आकर अब इस टाँग को छोड़ा और दूसरी टाँग को पकड़ लिया.
अब एक और चिकनी और गोरी-गट जांघ मेरे सामने थी. पहले मैंने अपने होंठ और नाक उस पर टिकाई और लंबी सांस खींचता हुआ जल्दी से चड्डी तक मसलता हुआ पहुंचा और सांस छोड़ता हुआ वापिस नीचे तक रगड़ दिया.
उसके बदन की महक ने जहाँ एक ओर मुझे मस्त कर दिया वहीँ दूसरी ओर मेरी साँसों, नाक और होंठों की तेज़ रगड़ से उसको भी इतनी सनसनाहट हुई के उसके सारे रोयें खड़े हो गए हालांकि त्वचा वेक्स की हुई थी.
अब फिर वही चूमने का एक्शन रिप्ले दूसरी टाँग पर भी करने लगा. वही चड्डी को ऊपर करना, फिर चड्डी को खींच कर उसमें मुंह घुसाना.
इस बार मैंने काफी ज्यादा खींच दी थी चड्डी सो मुझे उसके झांटों वाला हिस्सा भी दिखाई देने लगा जो की एकदम सफाचट था.
चूमते हुए मैंने अपनी जुबान उधर भी घुमा दी. मेरी पहुँच उसके भगोष्ठ से मात्र आधे इंच दूर रह गई.
फिर रिवर्स गियर और चूमते चूमते वापिस नीचे आया. जाँघों को चूमने का भी अपना ही मज़ा है.
वो तो अच्छा हुआ कि अजय ने उसके मुंह और हाथों को अपने में व्यस्त करवा रखा था वरना वो गुदगुदाहट और सनसनाहट की अतिरेक के कारण मुझे इतने इत्मीनान से अपनी जांघे चूमने नहीं देती.
या तो वो मुझे अपने ऊपर खींच लेती या फिर मेरे मुंह को अपनी योनी में ही घुसा देती.
जैसे ही मैं थोड़ा सुस्ताया उसने अपनी दोनों टाँगे जकड कर बंद कर ली और आपस में मसलने लगी.
मैंने फिर उसके दोनों घुटनों को पकड़ा तो वो कड़क हो गई और मुंह से उन्हूँ उन्हूँ की आवाजे निकल रही थी.
मैंने उसके घुटनों पर जोर लगा कर फैलाया और जांघों को फिर से पूरा फैला दिया.
अब मैं चड्डी पर मौजूद गीले धब्बे के सामने अपना मुंह लाया. वो अब काफी फैल चूका था.
मैंने झुकते हुए उसकी दोनों जांघों को अपनी बाँहों में कस के लपेटते हुए बीचों बीच अपना मुंह घुसा मारा.
उसने एक जोर का झटका खाया और अपने दोनों पैरों को दबाते हुए मेरे सर को जकड लिया.
मैंने धब्बे वाली जगह पर अपना पूरा मुंह चौड़ा किया और दबाते हुए उसके नरम, गरम और गीले गोश्त को अपने होंठो से इस तरह कसते हुए मुंह में भरने लगा जैसे एक बड़ा सा लड्डू मुंह में भरने का प्रयास कर रहा हूँ.
५-६ बार इस तरह मेरे मुंह से पम्पिंग इफेक्ट पाकर वो सिसकने लगी.
वो तडपते हुए अपने चूतड़ उठा-उठा कर मेरे मुंह में घुसेड़ने लगी. उसकी योनी के कुछ उभरे हिस्से मेरे मुंह में जाने लगे.
अब मैं उस धब्बे पर से उसके रस को चुसक चुसक करके चूसने लगा. (बर्फ के गोले को जैसे चूसते हैं न उस तरह).
उसे गुदगुदी भी हो रही थी और मज़ा भी आ रहा था.
इस बीच अजय ने अपने पुठ्ठे उसके बब्बू पर इस तरह टिकाये कि डॉली का कड़ा निप्प्ल उसके गुदा छिद्र तक पहुँच गया.
उसने अपने हाथों से गुदा को फैलाया और यथासंभव उस निप्पल को ऊँगली से दबाते हुए उसके छेद में फंसा दिया.
थोड़ी सी कोशिश में उसने उस निप्पल को गुदा में खींच लिया और अब वो उस पर बैठ कर गुदा सिकोड़ने और छोड़ने लगा.
अपने निप्पल पर इतनी तेज़ी से होते अजीब से सेंसेशन से वो पगलाने लगी.
और उसने काली चड्डी में एक बार फिर नए सिरे से धार छोड़ दी. मुझे फिर से ताज़ा रस पीने को मिलने लगा.
क्रमशः.....
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