Sunday, August 4, 2013

FUN-MAZA-MASTI शुभारम्भ-4

FUN-MAZA-MASTI


शुभारम्भ-4
मैं अपने खड़े लंड को हाथ से छुपा रहा था और वो ऑंखें सिकोड़ कर कभी मेरा चेहरा तो कभी मेरा लौड़ा देख रही थी. तभी फिर से माँ की आवाज़ आई. चाची ने मेरे लंड से बगैर नज़रे हटाये माँ से कहाँ कि वो आ रही है और मुझे मंद मंद मुस्कान देती हुयी गांड हिलाते हिलाते नीचे चली गयी. मुझे ऐसा लगा कि शायद आज उनकी गांड ज्यादा ही लचक खा रही है. मैं जानना चाहता था की उनकी जांघ पर क्या नाम गुदा हुआ है.
दिन में exbii पर गरम गरम कहानिया पढ़ रहा था की मोबाईल की घंटी बजी. मैंने देखा तो दिल ने झटका खाया......पिया का फ़ोन था.

मैं : ह ह हेल्लो...
पिया : हाईइ ....क्या कर रहे हो ?

मैं एक दम हडबडा गया.

मैं : म म म कहानी .....पढ़ .....म म म मतलब की......कहानी मूवी देख रहा हूँ...
पिया : क्या...घर पर ? अरे मुविस तो मल्टीप्लेक्स में देखते है.

मैं : हुह ? मतलब ?
पिया : अरे क्या तुम भी....आई मीन की घर पर मूवी क्या मूवी देख रहे हो....फ्रेंडस के साथ देखना चाहिए समझे

मुझे लगा की वो शायद चाहती है की मैं उसे ही साथ में चलने के लिए पूछ लूँ. तभी मुझे उस सांड नवजोत की शकल याद आ गयी और मेरे अरमानो की हवा निकल गयी. वो अब भी कुछ बोले जा रही थी

मैं : क्या ? क्या कह रही हो ?
पिया : अरे मैं पूछ रही हूँ की तुम आ रहे हो न घर पर ? कहाँ खोये रहते हो मिस्टर ? GF को मिस कर रहे हो क्या ?

मैं : न न नहीं ....म म मेरा मतलब है की ह ह हाँ मैं तुम्हारे घर आ रहा हूँ......व व वो तुम्हारे भैया को कोई ओब्जेक्शन तो नहीं है न ?
पिया : नहीं यार.....पहले तो उसने साफ़ मना कर दिया पर फिर मैंने पापा को बोला तो पापा ने उसको डांट दिया. मेरा साल ख़राब हो जायेगा तो ?

मुझे समझ नहीं आ रहा था की हँसु या रोऊ....उस सांड को मेरे उसकी बहन को पढ़ाने में दिक्कत थी, पर इस शाणी ने अपने बाप के थ्रू गेम जमा लिया था.......जितनी सीधी दिखती हैं उतनी सीधी तो नहीं हैं. मैंने उसको शाम 6 बजे आने का बोल दिया.

शाम को ६ बजे पता ढूंढता हुआ मैं सरदार प्रताप सिंह के घर पहुंचा. घर तो क्या था.....हवेली थी .....आगे जो लॉन बना था वो ही मेरे घर से बड़ा था. सरदार प्रताप सिंह, दारू और govt का बहुत बड़ा ठेकेदार था. येही समझो की सफ़ेद कपड़ो में डोन.
पुलिस हो या नेता.....सब उसकी जेब में रहते थे. इसीलिए तो नवजोत इतनी माँ चुदाता था.

मैंने बेल बजाई.......दरवाजा खुला और उसके साथ मेरा मुंह ही खुल गया ....

जिसने दरवाजा खोला था......हाईट करीब 5 फुट 8 इंच. दूध में मिले गुलाब के जैसा रंग. काला सलवार सूट बदन पर ऐसा कसा हुआ था की एक एक उभार चीख चीख के बुला रहा था. मस्त गदराया हुआ बदन था यार..........
आँखों में गहरा काजल था.......और बिलकुल गुलाबी होंट........और गले पर चिपके दुप्पट्टे के नीचे एक खाई...जी हाँ....खाई....
दो पहाड़ों के बीच की घाटी......उसके मम्मे इतने बड़े थे की उनको मम्मे नहीं थन कहना चाहिए था........
एक दुधारू भैंस के थन. पर अजीब बात यह थी की इतने बड़े मम्मे भी उस पर फब रहे थे क्योकि वो लम्बी भी थी और चौड़ी भी. डनलप का गद्दा थी साली.....सेक्सी आँखों से वो भी मुझे ऊपर से नीचे तक नाप रही थी और मैं तो उसको कभी से नाप चूका था. बल्कि अब तो मेरा सेकंड रिविजन चालू हो गया था.

उसकी शक्ल नवजोत और पिया से मिलती थी, शायद उनकी बड़ी बहन थी. मैं बोला

मैं : न न नमस्ते जी......म म म शील हूँ....व व

वो मेरी बात बीच में ही काट कर बोली, " हाँ हाँ शील बेटा......आओ आओ, पिया भी अभी आई हैं"

बेटा ??? अबे ये है कोन ? तभी अन्दर से पिया की आवाज़ आई.

पिया : कौन हैं मम्मा ?

मम्मा ? ये पटाखा पिया की माँ ? तभी मुझे समझ में आ गया की जब खेत इतना उपजाऊ है तो फसल तो हरी हरी ही आनी हैं.

उन दोनों ने मुझे ले जा कर सोफे पर बिठा दिया. पिया की माँ मेरे सामने बैठी थी और पिया उसके पीछे सोफे का सहारा लेकर खड़ी थी. दोनों की आँखों में वो चमक थी जिसे मैं न सिर्फ देख रहा था बल्कि अपने रोम रोम पर महसूस भी कर रहा था. पिया की माँ खनकती हुयी आवाज़ में बोली, "कहाँ रहते हो शील ? ", मैं जैसे नींद से जगा मैंने कहा, " गुलमोहर में, आंटी".

वो मुंह बनाती हुयी बोली, "आंटी नहीं, पम्मी नाम हैं मेरा, आंटी वांटी मत कहा करो, यु नो अजीब लगता है".

एक मैंने चाची को आंटी बोल दिया था तो पूरा शरीर नापने को मिल गया था. इसको तो आंटी - आंटी बोल कर चोद ही दूंगा.
वो इधर उधर की बातें करती रही और मैं उसको थनों और बैठने से फैली हुयी गांड की साइज़ नापने में लग गया. उनकी बातों से साफ़ था की सरदार प्रताप सिंह के रुतबे और डर की वजह से दोनों माँ बेटी का कोई सामाजिक जीवन नहीं था. सरदार जी को अपने काले कामो से फुर्सत नहीं थी और यहाँ पर इस दुधारू भैंस को कोई पूछने वाला नहीं था. काफी देर बाद पिया बोली, "ओफ्फो मम्मा, वो मुझे पढ़ाने आया है की आप की गोसिप सुनने, आप को भी गोसिप के अलावा कोई काम नहीं. चलो शील स्टडी करना है." मैंने कहा "ठीक हैं तुम बुक्स ले आओ".

"बुक्स ले आओ मतलब", पिया ने माथे पर सल लाके कहा, " मिस्टर, मेरे रूम में स्टडी टेबल हैं"

यह हसीना मुझे, अपने रूम में ले जा रही थी. और इधर उसकी माँ मुझे ऐसा देख रही थी जैसे मैं कोई दिल्ली दरबार में लटका चिकन हूँ. कसम से, मुझे ऐसा लगने लगा था की मेरी ग्रह दशा में कोई बहुत ही बड़ा बदलाव हुआ है. इतना सब कुछ इतने कम समय में हो रहा था की कुछ समझ नहीं आ रहा था.

रूम में जाते ही पिया ने दरवाजा बंद कर दिया, फिर मुझे देखकर बोली, "अरे यार, सब लोग इतना डिसटर्ब करते की पूछो मत.
इसी लिए डोर बंद कर दिया. अब कोई नहीं आएगा क्योकि अगर मेरे रूम का डोर बंद है तो फिर पापा भी पहले नोक करते है."

मैंने मन ही मन सोचा मेडम ये ज्ञान हमे क्यों दे रही हो. फिर मैंने थोडा सिरियस होके उसे पढने के लिया कहा. उसकी टेबल पर मैगज़ीन का अम्बार लगा हुआ था. वो उन्हें हटाने लगी मैंने उसकी स्टडी टेबल की चेयर खिंची और बैठ गया. बैठते ही मुझे लगा की चेयर पर कुछ रखा था, मैं उठा और मैं उस कपडे को उठा कर उसे देने लगा, "ये लो" और तभी मेरी नज़र उस कपडे पर पड़ी और मेरे कान गरम हो गए. वो एक डिज़ाइनर लेस वाली ब्रा थी, जिसका मटेरियल नेट का था. मतलब पूरा पारदर्शी.

उसने लपक के मेरे हाथो से ब्रा छीन ली और ड्रावर में रख ली. वो शर्म से हौले हौले मुस्कुरा रही थी और मुझे उस से भी ज्यादा शर्म आ रही थी.

थोड़ी ही देर में मुझे समझ आ गया की पिया को पढाई में कोई इंटरेस्ट नहीं हैं. मैं जैसे ही कुछ भी एक्सप्लेन करता और वो इधर उधर का टोपिक निकाल लेती. वो बस बातें करना चाहती थी. मुझे समझ आ रहा था की इस के सांड भाई की वजह से ये कभी भी लौन्डों से दोस्ती नहीं कर पाई हैं और अपने माँ बाप को पढाई के नाम पर चुतिया बना कर इस को सिर्फ गप्पे मारनी है.

सिर्फ गप्पे मारनी है या.......

कीड़ा......कुलबुलाने लगा था.

उसने व्हाइट टी शर्ट पहनी थी और उसके नीचे सोफ्ट सा पजामा. जहाँ टी शर्ट ख़तम होती थी और जहा से पजामा शुरू होता था उसके बीच थोड़ी सी जगह थी जहाँ से उसकी संगमरमर जैसे कमर दिख रही थी. वो जैसे ही झुकती, दीदार हो जाता. मैं बैठा बैठा आनंद ले रहा था. उसने अचानक मुझे ताड़ते हुए देख लिया और मैं सकपका कर इधर उधर देखने लगा. वो मुझे देखने लगी और कुछ सोचने लगी. अचानक वो बोली, " शील, तुमसे कुछ पुछु ? बुरा तो नहीं मानोगे ?". मैंने कहा पूछो ना.

वो पूछ पड़ी "तुम्हारी हेल्थ-हाईट अच्छी है, दिखने में बुरे नहीं हो, तुम में तमीज़ है.......तुम ये हकलाने की बीमारी का इलाज क्यों नहीं कराते ?" मैंने ठंडी सांस ली और कहा, " पिया, दरअसल डॉक्टर का कहना है की मेरे गले में कोई दिक्कत नहीं है, मैं सिर्फ गुस्से में या नर्वस होने पर ही हकलाता हूँ" . "हम्म........गुस्से का तो समझ आया......मगर तुम नर्वस कब होते हो ? "
उसने पुछा. मैंने उसे बताया, "जब कोई गलती कर दू या कोई लड़की मुझसे बात कर रही हो या......."

"या मतलब क्या ? मैं तो तुमसे बात कर रही हूँ तो क्या मैं लड़की नहीं हूँ ? ", उसने माथे पर सल लाके पुछा .

यह कहकर उसने मेरे जांघ पर अपने हाथ रख दिया और सीधा मेरी आँखों में देखकर बोली, " ऐसे होते तो क्या नर्वस ?"
यह सुनकर मेरा लंड नींद में से जगा और उसने अपना पूरा फन फैला लिया. मुझे दिक्कत होने लगी मगर पिया का हाथ इतना गरम आनंद दे रहा था की हिलने की इच्छा भी नहीं हो रही थी. ज्यादा प्रोब्लम हुयी तो मैं एकदम हिला और अपने लंड को
एडजस्ट किया. पिया की निगाहे मेरे लंड पे टिक गयी और उसने मेरी पेंट के उभर की तरफ इशारा करके पुछा, " नर्वस होते हो तो ऐसा भी होता है क्या ?" कसम से इच्छा हुयी की इस को यहीं पटक कर अपना लंड पेल दू, मैंने उसकी तरफ हाथ बढाया और तभी किसी ने दरवाजा जोर से खटखटाया.

नवजोत की आवाज़ आई, "पिया.....दरवाजा खोल". पिया का चेहरा एकदम तमतमा गया, वो उठी और पैर पटकती हुयी दरवाजे पर गयी. उसने जोर से दरवाजा खोला, "क्या है भाई ?, आप तो पढ़ते नहीं मुझे तो पढने दो."

नवजोत ने कहा, "हाँ हाँ ...पढ़ ले...,.मैं तो तेरे माट साब से नमस्ते करने आया हूँ. नमस्ते माट साब."

मेरी गांड की फटफटी चल निकली थी. साला मादर चोद.....इसको अभी ही आना था. मैंने कुछ नहीं कहा और घडी देखते हुए उठा और पिया से कहा, "अच्छा मैं चलता हूँ, आप रिवायिस कर लेना."

नीचे आया तो पम्मी आंटी बैठी थी, वो बोली, "जा रहे हो शील, (बेटा लगाना भूल गयी). ध्यान रखना पिया का. अकाउंट में बहुत वीक हैं. कल भी ६ बजे ही आओगे ? " मैंने हाँ कहा और चुप चाप सुमड़ी में निकाल लिया. अचानक पीछे से आवाज़ आई,
" ओये हकले......अबे रुक.....", साला सांड मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा.

मैं रुक गया. नवजोत आया और मुझे घूरने लगा.......मैं उस से नज़रे नहीं मिला रहा था.....उसने कहा ," देख बेटा, पढ़ाने आता है, सिर्फ पढ़ाइयो......कुछ इधर उधर किया तो समझ लियो ....."

मैं हाँ हूँ बुदबुदाते हुए चुप चाप निकाल लिया.

इधर उधर घूम कर घर पहुंचा तो 11 बज गए थे. चाची बैठी बैठी टीवी देख रही थी. मुझे देखकर बोली,

"आ गया लल्ला....चल खाना खा ले.". मेरा सर भारी हो रहा था मैंने मना कर दिया. वो उठ कर मेरे पास आई, "क्या हुआ लल्ला, तबियत ठीक नहीं क्या ? ". मैंने कहा, "चाची सर भारी हो रहा है". वो बोली, "चल सर में तेल मालिश कर दूँ. मैंने मना कर दिया और उनको कहा की वो सो जाए.

तो वो बोली," क्या सो जाऊं लल्ला, आज ३ ट्रक माल आया है, तेरे चाचा खाली करवा कर आयेंगे. फिर उनको खाना देने उठना पड़ेगा और तुझे पता है की मैं एक बार सो गयी तो बम फूट जाये तो भी नहीं उठती. चल तू इधर आ"

कहकर उन्होंने मुझे बैठा दिया. वो सोफे पर बैठी थी और मैं उनके आगे ज़मीं पर. उन्होंने अपने दोनों पेरों को थोडा थोडा खोल कर फैला लिया और मुझे पीछे खिंच कर बैठा लीया. वो ठंडा तेल लगा रही थी, उनके नर्म नर्म उंगलियों से छुने से ही मेरा सर हल्का होने लगा. वो टीवी भी देख रही थी. गोविंदा की मूवी आ रही थी जो उनका फेवरेट हीरो था. अचानक एक कॉमेडी का सीन आया और चाची जोर जोर से हंसने लगी. हँसते हँसते वो आगे झुक गयी और उनके दोनों मम्मे मेरे सर से टकराने लगे.
लंड तुरंत खड़ा हो गया. मैंने थोडा सर घुमाया तो छोटे से ब्लाउस में फंसे बेचारे मम्मे उन्हें बाहर निकालने की फरियाद कर रहे थे. चाची के सोफ्ट मम्मे मेरे मुंह से सिर्फ कुछ इंच दूर थे. लंड ऐसा तना की लगा पैंट में ही छेद कर देगा.चाची ने अपनी टांगो से भी मुझे जकड लिया था. मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला.

कीड़ा........कुलबुलाने लगा.

मैंने समझ गया की चाचा २-३ घंटे नहीं आएगा और माँ - पापा तो कब के सो चुके होंगे . मैंने चाची से पुछा.

"चाची वो.......आप की खुजली अब ठीक है ?"

एक सेकंड में चाची के हाव भाव बदल गए. उन्होंने एक पल मुझे टेडी नज़र से देखा और फिर बोली,

" नहीं रे लल्ला, थोडा तो आराम है मगर अभी भी हो जाती है. देख ना तुने याद दिला दिया और शुरू हो गयी".

उन्होंने तुरंत अपनी साड़ी के ऊपर से अपनी मुनिया को खुजाना शुरू कर दिया. वो बिंदास मेरी आँखों में ऑंखें डाल कर अपनी चूत खुजाले जा रही थी. मेरा सांप ऐसा लहराने लगा जैसे कोई सपेरा बीन बजा रहा हो. मैंने पुछा,

"चाची.....आप पेंटी तो नहीं पहन रही हो ना ?". चाची से एक ठंडी सांस ली, अपने मम्मे और उभारे और बोली, "अरे लल्ला....पेंटी तो कब से ही नहीं पहनी. दिन भर ऐसे ही घुमती हूँ......कभी हवा तेज़ चलती है ना तो वहां तक झोंके आते है"

चाची की ऐसी बातें सुन सुन कर लंड लार टपकाने लगा. मैंने झोंक झोंक में उनसे पुछा....

"चाची, मैं आपको बोलना भूल गया वो दवाई वाले ने ये भी कहा था की ये दवा बाल साफ़ कर के लगानी है, पर आप ने तो साफ़ किये ही नहीं"

ये बोलते ही चाची ने एक दम पलट के मुझे देखा. एक सेकंड तो वो मुझे देखती रही और फिर उन्होंने पुछा...

"क्यों रे लल्ला....तुझे क्या पता की मैंने...........वहां के बाल साफ़ नहीं किये"

मेरी गांड की फटफटी फिर चल निकली.

मुझे काटो तो खून नहीं. मेरा दिल सीने से उतर के गांड में चला गया था. जैसे दिल धड़कता है वैसे मेरी गांड धड़क रही थी. शायद इसी को गांड फटना कहते हैं.
चाची ने आज मुझे दूसरी बार रंगे हाथों पकड़ लिया था. मैंने कुछ नहीं कहा और सर नीचे कर लिया.

चाची ने मेरे यह हाव भाव देखे तो आवाज कड़क कर के बोली, "बोल लल्ला, तुझे क्या पता की मैंने बाल साफ़ नहीं किये"

मैंने चाची को घुमाने के लिए बोल दिया, "न न न नहीं च च च चाची.....व व वो ....म म म मैं ......म म मैंने ऐसे ही बोल दिया"

उन्होंने फिर से कड़क आवाज़ में पूछा,"बताता हैं की मैं........तेरे चाचा को बोल दूँ"

भाई साहब अपनी तो सांस ही रुक गयी.......सारी गांड मस्ती निकल गयी. मैं चूतिये जैसे मुंह नीचे कर के खड़ा था और वो मेरे सामने अपने दोनों हाथ कमर पर रख कर खड़ी थी. जैसे कोई दरोगा किसी चोर को चोरी करते पकड़ ले. मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था. उन्होंने फिर पूछा,

"बता लल्ला......कहीं तू मेरे कमरे और बाथरूम में ताक झांक तो नहीं करता ? अरे कहीं तू हिरसू तो नहीं है रे ???"

"न न नहीं च च चाची.......म म मैं ताक झांक नहीं करता. वो आज सुबह टंकी में था न......ज ज जब आप टंकी के ऊपर दोनों टाँगें चौड़ी कर के खड़ी थी........तो दिख गया था........मम्मी की कसम चाची......मैं ताक झांक नहीं करता. प प प प्लीज़ आ आ आ आप किसी को म म म मत बोलना.....", मैं रुवांसा हो गया.

उस कमीनी ने फिर पलटा खाया और धीरे धीरे मुस्कुराने लगी.......बोली,

" हाय राम......ये मरी खुजली......न ये होती.....न मैं ऐसी नंगी घुमती......न मेरी फूल कुंवर ज़माने को दिखती"

सीन चेंज हो गया था. चाची के मुंह से उनकी चुत का नाम सुन के मेरे लौड़े ने तुरंत सलामी दी. मैंने हिम्मत की......

"च च चाची.....आप चिंता मत करो. ज़माने ने थोड़ी ही देखा, वो तो मुझे दिख गयी गलती से....."

"अरे लल्ला मैं सब जानती हूँ, मैं तभी सोची थी की ये लल्ला टोर्च की रौशनी मेरी साड़ी में क्यों मार रहा है", चाची ने आखें तरेर के कहा.
"और तभी तू टंकी से बाहर नहीं आ रहा था, क्योकि ये खड़ा हो गया था." वो मेरे लंड की तरफ इशारा कर के बोली.
kramashah.............






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