Sunday, August 18, 2013

FUN-MAZA-MASTI परदेस से शुरू हुआ चुदाई का सिलसिला--16

FUN-MAZA-MASTI
परदेस से शुरू हुआ चुदाई का सिलसिला--16

गतांक से आगे...................
मैं उत्तेजना से भर उठता हूं. मेरा पप्पू कड़क हो जाता है.

अब वो अपना सर उठाती है और अपने गाल मेरे गालों पर रख देती है. कुछ देर तक वो गाल से गाल सहलाती रहती है.

अचानक वो मेरा मुँह पकडती है और अपना सिर उठाकर मेरे होंठों में अपने होंठ डाल देती है और उन्हें बेतहाशा चूमने लगती है.

जिस तरह से वो चूम रही थी ऐसा लग रहा था कि पहली बार वो ऐसा कर रही है. बहुत ही पेशोनेट हो जाती है वो.

कोई दस मिनट बाद वो रूकती है और मेरी आँखों में देखती है. फिर वो अपनी नज़रें झुका कर मुस्कुराती है और फिर से मेरे सीने में गुम हो जाती है.

मैं उसे जकड़े हुए धीरे से बैठ जाता हूं और फिर उसे गोद में उठा कर बेड रूम की ओर बढता हूं. वो अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लेटी है.

जैसे ही उसे बेड पर रखता हूं वो शर्मा कर बिस्तर में मुँह छुपा लेटी है और बस इतना ही कह पाती है कि .........’प्लीज़ लाईट बंद कर दो.’

मैं एकदम अँधेरा कर देता हूं. फिर धीरे से उसके पास आकर लेट जाता हूं. वो मेरी ओर करवट लेटी है और फिर से मुझसे चिपक जाती है. मैं भी उसे फिर जकड़ लेता हूं.

वो खींच कर मुझे अपने ऊपर करने लगती है. मैं अपने दोनों हाथ और पैरों पर वजन लेटे हुए उसके ऊपर आ जाता हूं.

वो अपने दोनों पैर चौड़े करके मुझे अपने अंदर ले लेती है. मेरा पप्पू उसके क्रोच पर टिक जाता है.

वो अपने हाथों से मेरा चेहरा खींच कर फिर चूमने लगती है.

उसके हाथ मेरी पीठ पर फिरने लगते हैं.

अचानक उसके हाथ मेरे लोअर को नीचे खिसकाने लगते हैं. कुछ ही देर मैं वो मेरा लोअर और अंडरवियर निकालने में कामयाब हो जाती है. अभी भी चुम्बन जारी था.

अब उसके हाथ मेरे पुट्ठों को सहलाने लगते हैं.

अचानक मैं घूमता हूं और उसको अपने ऊपर ले लेता हूं. उसके कुर्ते को पकड़ कर ऊपर खींचने लगता हूं. वो भी थोड़ा उठ कर निकालने में मदद करती है. वो फिर मुझसे चिपक जाती है.

अब मैं उसकी ब्रा के हुक खोलता हूं और उसके स्ट्रेप कन्धों से नीचे सरका देता हूं. वो खुद ब्रा को अपने वक्ष से खींच कर अलग कर देती है.

फिर वो उठ कर मेरे पेट पर बैठ जाती है और अपने सलवार का नाडा खोलती है. मैं भी अपना टीशर्ट और बनियान निकाल देता हूं.

वो खड़ी होकर अपनी सलवार और पेंटी निकाल देती है और फिर से मेरे ऊपर आकार लेट जाती है.

उसके बब्बू मेरे सीने में चुभने लगते हैं वहीँ मेरा पप्पू उसके पेट पर.

अब वो मुझे अपने ऊपर कर लेती है. मैं अपना सिर उसके मम्मों पर लाता हूं तो वो उसे उन पर दबा देती है. मैं उन्हें चूसने लगता हूं.

कुछ ही देर में वो सिसकने लगती है. बारी बारी से दोनों मम्मों को चूसता जाता हूं.

वो गरमाने लगती है. वो अपनी क्रोच को मेरे पप्पू पर घिसने लगती है.

मैं अपना एक हाथ उसकी योनी पर ले जाता हूं. जैसे ही क्लिट को छूता हूं वो सरसरा उठती है.

मैं अचानक उसके मम्में छोड़ता हूं और सीधा अपना मुँह उसकी योनी पर ले जाता हूं. वो मना करती है पर मैं जबरदस्ती उसमे मुँह घुसेड़ देता हूं

वो चीख उठती है. मैं जोर जोर से उसकी योनी को चूसने और चाटने लगता हूं. वो पनियाने लगती है.

उसकी लगातार चींखे निकल रही थी और मैं उसे चूसता ही जा रहा था. वो अचानक भरभरा कर ढेर हो जाती है.

सुनयना के ढेर होते ही उसके हाथों की पकड़ मेरे बालों पर से ढीली पड़ती चली गई. मैं उठा तो मैंने अपना पूरा मुँह उसके योनी-रस से लिथड़ा हुआ पाया.

मैंने बाथरूम जाकर अपना चेहरा साफ़ किया और वापिस आकर सुनयना के बाजू में लेट गया.

वो तो अभी भी अपने इस भीषण ओर्गास्म के गिरफ्त में थी और उसकी साँसे अब तक सामान्य नहीं हो पा रही थी.

मैं करवट लेकर अपना मुँह उसके कंधे में घुसाता हूं और एक हाथ उसके मम्मों पर रखकर अपना एक पैर मोड़ कर उसके पैरों के ऊपर रखता हूं.

जैसे ही मेरे बेईमान हाथ की शैतानी शुरू हुई, वो तुरंत करवट लेकर मुझ से लिपट गई और मुझे कस के जकड़ लिया.

मेरे होंठ उसके नंगे कंधे पर आ जाते हैं. मुलायम गद्देदार अंग का स्पर्श मेरे होंठों पर थरथराहट उत्पन्न कर देता है और मैं उन्हें चूमने का लोभ संवरण नहीं कर पाया.

उधर उसे भी कुछ मस्ती सूझी तो उसने अपने होंठ से मेरे कान की लटकन सड़प ली और फिर उस मृदु-अंग को मज़े ले लेकर चूसने लगी.

उसके शरीर की सुगंध मुझे बेहद खुशगवार लग रही थी. अपनी नाक को उसकी त्वचा पर घिस घिस कर उसे अपने नथुनों में समाने लगा.

इतनी खेली-खायी होने के बावजूद भी वो मुझे इतनी मासूम सी प्रतीत हो रही थी कि मैं उस पर फ़िदा होने लगा. मैं उसके पावन प्रेमाबंध में नख से शिख तक आबद्ध होने लगा था.

इस श्वेत-वर्णीय तरुणी पर मुझे दुनिया भर का प्यार उमड़ आया और उसी के वशीभूत मैंने उसकी काया को कस कर आबंधित कर लिया और उसके गालों पर चुम्मों की अनवरत झड़ी लगा दी.

उसने भी मेरी भावनाएं एकदम सही ट्यूनिंग से कैच कर ली और उसने भी मुझे अपने में लिपटा लिया और कस के चिपटने लगी.

हम दोनों ही एक दूसरे के और और नज़दीक पहुंचना चाह रहे थे परन्तु शरीर की सीमा-रेखा हमें एक जान नहीं होने दे रही थी.

पता नहीं एक-दूजे लोग कैसे समा जाते हैं, हम तो इस वक्त जरा भी सफल नहीं हो पा रहे थे.

अब मैंने फिर से अपना निशाना ताड़ा और अपना मुँह उसके निप्पल पर ले आया. उसे गुलाबजामुन की तरह पूरा गप्प किया और फिर पूरी शिद्दत से उसे चूसने लगा.

उसने कोई विरोध नहीं किया वरन वो पलट कर पीठ के बल हुई और मुझे अपने पर्वत शिखरों पर जी भर कर कुलाँचे भरने की पूरी आज़ादी प्रदान कर दी.

मैंने अपने आपको, अपने चोपायों पर संतुलित किया और उसके उभरे कोमलांगों में फिर से यहाँ वहाँ मुँह मारने लगा.

मेरे होंठ और जीभ की सरपट-सरपट गीली कार्यवाही, उसमे पुन: काम तरंगे प्रवाहित करने लगी.

उसके शरीर में डायनामिक फ़ोर्स उत्पन्न होने लगा जिसके चलते वो मस्ती से मचलने लगी. मज़े की अधिकता उसके मुँह से कराहों के माध्यम से अभिव्यक्त होने लगी.

वो इतनी मदमस्त हो गई कि उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करें. कभी मेरा मुँह अपनी छाती में दबाती कभी; अपनी दोनों टाँगे बिस्तर पर पटकती, तो कभी मुझे अपनी बाँहों में समेटने का असफल प्रयास करती.

इसी तारतम्य में अचानक उसके कर-कमल मेरे कटी-प्रदेश मध्य स्थित, अग्र-उर्ध्व दौलीत, मखमली चर्म-मंडित, अति-सख्त श्याम दंड पर पड़े, तो उसके अंग-प्रत्यंग में उत्साह और उमंग की सैकड़ों लहरें दौड़ गई.

वो मस्तानी अब मेरे दंड को बड़ी ही बेहयाई से मुठियाने लगी.

मैं अभी भी उसके पर्वत-द्वय की ख़ाक छान रहा था जबकि पर्वतमाला के सुदूर ढलान पर स्थित उसका महीनों से सूखा पड़ा पहाड़ी झरना आज ही आज में दूसरी बार पुन: तीव्र वेग से छलक उठा.

मेरी जालिम कार्यवाही से उसकी छाती पर जड़े दो श्याम-रत्नों पर उत्पन्न होने वाले कामुक संवेगों से वो इतनी उद्वेलित हो गई कि उसका दूसरा हाथ, खुद-ब-खुद उसके झर-झर फुरफुराते पहाड़ी नाले पर पहुँच गया.

उसकी उँगलियाँ उस तंग गीली गार में रिसती चिकनाई में मटकने लगी. ये उसका, इस अजब-गजब संवेदनों से भरे खेल में लगातार बढ़ती बैचेनी को काबू में लाने का असफल सा प्रयास था.

पर वो बावली क्या जाने कि अनजाने ही वो अपने अति-संवेदनशील अंग को कुरेद कुरेद कर उसकी खुजली को और बड़ा ही रही थी.

अब उसके दोनों कर-कमल, हस्त-मैथुन में लिप्त थे. एक हाथ मेरे दंड पर व्यस्त, तो दूजा स्वयं की फुद्दी में पैवस्त.

आखिर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती. अब तो उसकी शीरी को मेरे फरहाद से मिलना ही था.

और ये नेक कार्य भी उसके ही दोनों हाथों ने अंजाम दिया. वो अपने हाथ से मेरे बकरे को हलाल-गृह की ओर खींचने लगी.

मैंने भी अपने दोनों घुटने उसकी जांघों के बीच में फसायें और उनको चौड़ाते हुए अपने पिस्टन को इंजन के मुख पर झुकाता चला गया.

केस्ट्रोल की उत्तम चिकनाई युक्त स्निग्धता में मेरा पिस्टन इंजन में समाता चला गया और देखते ही देखते किसी कुशल डाइवर की भांति वो उस पूल में ओझल हो गया.

उसके हाथों ने जो जिम्मा लिया था वो पूरा हो गया था. मेरा पप्पू जन्नते-गार में मस्ती की डुबकियां लगाने लगा.

‘शीरी-फरहाद की तो निकल पड़ी’.

और अब शुरू हुआ वो खेल जिसके लिए सारी कायनात पागल है. मैं भी पूरा मगन होकर एक्स्बी-नेशन के इस राष्ट्रिय खेल को खेलने लगा.

खेल के शुरुवाती दौर में सारी सर्विस में ही कर रहा था. कभी मेरे धक्के दायर हो रहे थे, तो कभी कुछ मिस-फायर. लेकिन कुछ ही देर में हम दोनों खिलाडियों ने अपनी लय पकड़ ली.

नीचे जब सब कुछ स्मूथली हेंडल होने लगा तो, कुछ अतिरिक्त बोनस मज़े पाने और देने के लिए मैंने अपने होंठ सुनयना के होंठों में ठेल दिए. उसने उचक-निचक करते करते ही मेरे अधरों को बुरी तरह से जकड़ लिया.

अब तो उसकी निकलने वाली सारी कराहें और आंहे मुँह के बजाय नाक से निकलने लगी.

मैंने उसकी मस्ती में थोड़ा और तड़का लगाने के लिए अपनी कोहनियों को मोड़ कर उँगलियाँ उसकी छाती पर उभरे अंगूरों के इर्द-गिर्द कसी और लगा उन्हें मरोड़ने.

मेरा ऐसा करना हुआ और सामने वाला खिलाड़ी का खेल भी पूरे शवाब पर आने लगा.

मुझे अब वो एक भी ‘ऐस’ नहीं मारने दे रही थी और हर सर्विस पर जोरदार रिटर्न लगाने लगी.

अब लंबी लंबी रैली चलने लगी. दोनों ही पूरे जोशो-खरोश से शॉट पे शॉट लगाने लगे.

अभी कुछ देर पहले ही उसने पहला सेट लूज किया था तो इस सेट में वो कतई खेल को जल्दी खतम करना नहीं चाहती थी. पर उसे डर था कि मैं जल्दी ये सेट ना छोड़ दूं.

पर आप तो जानते ही हैं ना आपके अभि ब्रो को. वो जब तक चाहे, खेल में बना रह सकता है. लिहाजा अब मैं सर्विस करने में थोड़ी ढील देने लगा.

वो डर गई कि शायद मैं आ रहा हूं तो उसने मेरे होंठ उगले और बोली.....’अभि, मुझे तो जरा और देर लगेगी. कहीं तुम हो तो नहीं रहे हो ना.’

तो मैं बोला.......’बेबी, आज तुम पर किस्मत मेहरबान है तो मैं तुम्हारे साथ ना-इंसाफी करने वाला कौन होता हूं. तुम हुकुम तो करो, ये उचक-निचक अगले एक घंटे तक भी जारी रह सकती है.’

‘ओह माय जानू, यू आर सिम्पली सुपर्ब.’.........ये कहते हुए मारे खुशी के मुझसे कस के चिपट गई और नीचे से हौले हौले शॉट मारने लगी.

‘एनिथिंग फोर यू डार्लिंग. आज तो तुम जी भर के जी ही लो.’......ये कहते हुए मैंने फिर से अपने सारे मोर्चे मुस्तैदी से संभाल लिए. वोही.... चुम्बन ..... मर्दन.... और..... धमाधम.

कुछ देर यूँ ही लयबद्ध आवृति में दोनों ओर से बराबरी का खेल चलता रहा.
क्रमशः.....




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