FUN-MAZA-MASTI
परदेस से शुरू हुआ चुदाई का सिलसिला--7
गतांक से आगे...................
पहले उसने अपनी नाक से पप्पू को साइड में हटा कर खुजलाने के लिए जगह बनाने की गरज से थोड़ी कोशिश की. पप्पू थोड़ा साइड में खिसका तो पर जब उसकी नाक का सहारा उसपे से हटा तो वो ढुलक कर वापिस अपनी जगह पर आ गया. उसने तीन चार बार प्रयास किया पर हर बार नाकाम.
इस प्रयास में उसका मुंह बार बार मेरी झांटो से भरी अंडे वाली थैली से घिसता रहा और उसकी खुजली को और बढाता रहा. अंत में थक हार कर उसे अपनी नाक और मुंह को मेरे पप्पू पर ही टिकाना पड़ा.
अब उसने अपने खुजला रहे हिस्सों को जोर जोर से पप्पू पे रगड़ना चालू कर दिया. उसने पप्पू की ऐसी घिसाई की के मैं बस सांस रोके उसे बड़ा होने से रोके हुए था. मैंने अपनी गुदा को यथासंभव अंदर खींच लिया कि पप्पू तनाव से बचा रहे. और वो थी के उसकी खुजली खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी.
एक बार तो मुंह पप्पू पर घिसने के प्रयास में, पता नहीं उसके थोड़े से होंठ खुले. उसी वक्त मेरे सुपाड़े का उसके होंठ के कोने में फँसना हुआ और उसका अपने मुंह को दूसरी डायरेक्शन में मूव करना हुआ..........परिणाम....... मेरा सुपाड़ा उसके होंठो में फिसलता हुआ उसके मुंह में चला गया.
उसने तुरंत उसे बाहर निकालने के लिए झटका मारा. उसके मुंह में फंसा पप्पू मेरे से नब्बे डिग्री के कोण पर आ गया. झटका मारने से अचानक उसकी गर्दन में जोर का दर्द हुआ और राहत की तलाश में उसने सर मेरे पे टिकाया. ऐसा करते ही वो अर्ध-पिल्पिलेश्वर महाराज पूरा उसके मुंह में घुस गए. पप्पूजी पूर्ण गर्म और मुलायम आवरण से आच्छादित हो गए.
मुझे झुरझुरी आने लगी. कुछ पल भी बहुत ज्यादा महसूस हो रहे थे.
अब उसने पप्पू को मुंह से छुड़ाने के लिए अपना मुंह उठाया पर पता नहीं मुंह खोलने का ख्याल नहीं आया या कि फिर डर की ज्यादती........उलटे उसका मुंह कस के पप्पू पे और भी जकड़ गया था.
अब मेरा पप्पू उसके मुंह से ऐसा चुसवाता हुआ बाहर आया जैसे वो कोई बहुत ही स्वादिष्ट कुल्फी को चूसते हुए बाहर निकाल रही हो. पप्पू पर लगी सारी नमी वो मुंह से चूस गई थी.
आखिरकार उसे पप्पू से निजात मिल गई और वो भाई साहब फिर अंडे की थैली पर ढुलक गए.
वो भी थक गई थी और आराम के लिए वो फिर मेरे पप्पू से चिपक गई. पर इस बार उसने अपने मुंह के बजाय गाल आगे किया और उसी से पप्पू को दबा दिया.
उधर ऋतू ये सब नज़ारा लाचार होकर देख रही थी. लेकिन खुजलन की उलझन और उस पर मेरे अर्ध-खड़ेश्वर की भटकन उसे जरा भी रास नहीं आई. वो बड़ी ही खीज़ कर चिल्लाई..........'संजू, जरा संभल के, और कम से कम भैया का बरमूडा तो ऊपर कर दे.'
'ऋतू ये अटक गया है, मुझसे नहीं हो पा रहा है.'.....संजू ने पप्पू से सर टिकाये हुए ही बोला. गर्दन में दर्द जो हो रहा था उसके.
अब मेरा अपने पप्पू से विरोध दम तोड़ने लगा था, क्योंकि उसका नरम मुलायम गाल का दबाव और गर्मी पप्पू को जन्नत की सैर करा रही थी. वो धीमे धीमे कड़कनाथ बनता जा रहा था.
इससे पहले की संजू के लिए एक नई मुसीबत खड़ी हो जाये मैं उसको जल्दी से बोला.......'संजू पैरों से सपोर्ट लेकर थोड़ा और ऊपर खिसको.'
और उसने जैसे ही अपना मुंह हवा में उठाया, मेरा पप्पू स्प्रिंग की तरह उछला और झटके से पूरा खड़ा होकर पेट पर चिपक गया.
ऋतू और संजू हैरान.
आखिर वो हो ही गया जिससे बचने की मैं पूरी कोशिश कर रहा था. मैं बहुत शर्मिन्दगीं महसूस करने लगा लेकिन अब पप्पू पर मेरा कोई बस नहीं चल पा रहा था.
खैर.........फिर किसी तरह संजू ने ऊपर घिसटना शुरू किया. उसके होंठ अभी मेरे पप्पू की जड़ पर थे. वो धीरे धीरे उपर खिसकने लगी.
उसके होंठ मेरे पूर्ण-खडेश्वर की लम्बाई पर घिस्सा मारने लगे. पुरे आठ इंच के ऊपर आने तक के सफर में, उसके होंठ पप्पू पर घिसते घिसते सुपाड़े के सबसे सेंसेटिव हिस्से पर आकर चिपक गए. ये चमड़ी की सिलावट वाला हिस्सा है जिसे मुस्लिम लोग, खतना करके उधेड़ देते हैं.
वो अब थोड़ा और ऊपर खिसकी तो उसका उपरी होंठ सुपाड़े के शीर्ष कर्व से फिसल कर मेरे छेद पर पहुंच गया. नीचे के होंठ पर थोड़ा सा दबाव आया और वो अंदर से पूरा खुल कर मेरे संवेदी भाग पर छा गया.
छेद से निकली कुछ प्री-कम की बुँदे उसके उपरी होंठ के अंदर फैल गई. ज्यूँ ही उसे जीभ पर नमकीन स्वाद आया, एक बार फिर उसे छटपटाहट हुई. वो झुमा झटकी मचाने लगी. ऐसा करते ही उसका निचला अंदरूनी होंठ मेरे संवेदी भाग पर जोर का घिसाया और मेरे अंदर एक तेज़ करंट प्रवाहित हो गया.
उसकी फिर से बुरी स्थिति हो गई क्योंकि इस चक्कर में मेरा थोड़ा सा सुपाड़ा उसके मुंह में फिर घुस गया. पर फिर, वो एक झटके से वो थोड़ी और ऊपर आई और उसके होंठ पप्पू से मुक्त होकर उपर की और बढ़ चले. अब वो जरा ठहरी और राहत भरी सांस ली.
अब मुझे लगा के वो इतनी ऊपर तो आ ही चुकी है कि उसके हाथ मेरे कंधो तक पहुँच जायेंगे. मैंने उसे इसके लिए निर्देश दिया तो उसने एक हाथ को मेरी कमर से हटा कर कंधे की और बढ़ाया. फिर ऐसे ही दूसरा भी और फिर उसने कस के ग्रिप बनाई. मेरे हाथ अभी भी फ्री नहीं थे तो मैं उसे कुछ भी सहारा नहीं दे पा रहा था.
जैसे तैसे उसने हाथ वहाँ सेट करके ऊपर की ओर धीरे धीरे घिसटना शुरू किया. अब उसके होंठ मेरे नंगे पेट पर रगड़ खाने लगे. उसकी गर्म साँसे मुझे अब और पागल कर रही थी.
और उसके घिसटने के दौरान एक घटना और घट गई जो अब संजू को आक्वर्ड फील करा रही थी.
ऊपर घिसटने के दौरान उसकी ड्रेस वक्ष से नीचे खिसक गई और उसके दोनों बब्बू एकदम नंगे हो गए और अब वो ठीक मेरे पप्पू के ऊपर थे. नंगे उभारों का कोमल स्पर्श मेरे पप्पू की कठिन परीक्षा ले रहा था जिसमे अभी तक तो वो जरा भी खरा नहीं उतरा था.
धीरे धीरे वो ऊपर आई और उसका मुंह ठीक मेरी छोटी सी चुन्ची पर आ गया. वो जब ऊपर खिसक रही थी तो उसकी एक निप्पल ठीक मेरे पप्पू पर रगड़ खाती रही. अभी भी मेरा सुपाड़ा उसकी नाली में फंसा हुआ था.
कुछ देर वो सुस्ताई और इस दौरान उसके होंठ ठीक मेरी चुन्ची पर रहे. थोड़ी से होंठो की नमी भी उस पर लग गई थी.
अब वो फिर मेरे कन्धों पर जोर लगा कर ऊपर उठी. उसके बब्बू मेरे पेट पर रगड़ खाने लगे. अब उसका मुंह मेरे एक कान पर आ गया और अब उसकी गर्म साँस कानो में घुस कर मेरी उत्तेजना को बहुत बढ़ा रही थी. मैंने अपने कान को उसके होंठो पर जोर से रगडा.
तभी ऊपर से ऋतू की आवाज़ आई........'हाँ संजू अब ये चादर को पकड़ने की कोशिश करो.'
उसने अब अपना एक हाथ ऊपर बढाया पर तुरंत ही फिर से नीचे ले आई. उसके लिए ये मुश्किल था. अब मुझे ही कुछ करना था.
अब मुझे दुसरे पैर के नीचे कुछ सपोर्ट की दरकार थी. थोड़ी जद्दोजहद के बाद आखिर दूसरा पैर भी एक नुक्के पर टिका दिया. मैंने हाथों से सपोर्ट को छोड़ा और संजू की कमर पर हाथ कसते हुए उसको जकड लिया और उसे थोडा ऊपर खिंचा. उसके बब्बू फिर मेरे सीने पर रगड़ खाए.
इस बार वो मुझे जोर से चुभे जैसे दो नुकीली खीलें लगी हो उन पर. शायद इतनी रगडा मसली का उनपर भी कुछ असर हुआ हो और वो एकदम कड़े हो गए. अब हम दोनों के चेहरे सामानांतर हो गए. वो ठीक मेरे बदन से चिपकी हुई थी.
अब उसने मेरा सहारा पाते ही एक बार फिर ऊपर लटकी चादर को पकड़ने की कोशिश की लेकिन वो उसकी पहुँच से बाहर थी.
अब उसे ऊपर खिसकाने के लिए मैंने अपने हाथ उसके पुठ्ठों की और बढाये. उसकी ड्रेस तो वहां थी ही नहीं. मेरे हाथों में उसके पेंटी में कसे नितम्ब थे. शायद जब वो नीचे फिसली थी तब वो ड्रेस रोल होकर कमर तक ऊपर हो गयी होगी इसीलिए जब वो ऊपर खिसकी तब भी वो नीचे नहीं हुई.
मेरी हथेली पेंटी लाइन के ऊपर थी. उसके नंगे नितम्ब भी फील हो रहे थे.
अब मैंने उसके नितम्ब भींचे और उसे थोडा ऊपर खिसकाया और ऐसा करते ही उसकी योनी ठीक मेरे पप्पू के ऊपर आ गई. इस कड़क खम्बे पर उसकी मुलायम योनी के दबाव से वो एकदम असहज हो गयी और कसमसाने लगी. जितना कसमसा रही थी उतनी ही ज्यादा पप्पू की रगड़ उसकी योनी पर लग रही थी.
'संजू अब कोशिश करो ऊपर पकड़ने की.'...मैंने कहा
उसने प्रयास किया और जैसे ही वो थोडा हिली मुझे लगा कि कहीं मेरा बैलेंस ना बिगड़ जाये इसलिए मैंने उसको एकदम से रुकने को बोला. अब उसने अपने हाथों से कुछ सपोर्ट खोज कर थोड़ी सी मेरी मुश्किल आसन कर दी. मेरे दोनों हाथ उसके पुट्ठों से भरे हुए थे. और उसे ऐसे ही भींचे हुए मैं कुछ देर सुस्ताया. मेरा पप्पू एकदम योनी दरार पर चिपका हुआ था.
तभी मुझे अपने पप्पू पर कुछ गीला गीला सा अहसास हुआ. इसका सिर उसकी योनी के दाने वाली जगह में घुसा हुआ था. वहाँ पर उसकी हलचल ने ही शायद संजू के छेद में कुछ बारिश करवा दी. उस पानी की वजह से उसकी पेंटी काफी हद तक गीली हो चुकी थी. जो कुछ भी अनहोनी होती जा रही थी उसपर हम दोनों का कुछ भी बस नहीं था.
अब मैंने जोर लगाकर उसको फिर ऊपर धकेला. उसकी गीली दरार ठीक मेरे पप्पू के ऊपर से घिसाती हुई गुजरी. मुझे एक बहुत ही कामोत्तेजक अहसास हुआ.
अब वो पप्पू से ऊपर गुजर चुकी थी और वो हवा में थोड़ा सा फ्री हो गया.
तभी वो थोड़ी सी फिसली और इस बार मेरा पप्पू ऐन उसके गुदा द्वार में जाकर फँस गया. उसकी जोर से चीख निकल गई.
ऊपर से ऋतू ने घबडाकर संजू से पूछा कि क्या हुआ तो वो सिर्फ यही बोली कि कुछ नहीं, बस जरा सी फिसल गई थी.
साथ ही साथ एक बात और हो गई. अब उसका एक चुच्चा ठीक मेरे होंठो पर आ गया. मेरी नाक से निकलने वाली गरमा-गरम सांसे उसे अपने एरोला पर महसूस हो रही थी. मारे उत्तेजना के मैं उसकी निप्पल को मुंह में लेने के लिए तड़प उठा. पर शायद स्थिति की गंभीरता, ऊपर से ऋतू की ठीक उसी जगह पर निगाहें, और संजू के चचेरे भाई होने का अहसास.....इन सब बातों ने मुझे और कमीनापन करने से रोक लिया.
पर संजू का क्या करता मैं. उसे अपने चुच्चे पर होने वाली सनसनाहट और नीचे पिछले छिद्र में पेंटी के ऊपर से फंसे मेरे लिंग के कारण बहुत बेचेनी हो रही थी. चुच्चे पर तो इतनी उत्तेजना रही होगी के वो इससे बचने के चक्कर में उस चुच्चे को ही मेरे होंठ और नाक पर मसलने लगी.
पर वो नादान क्या समझ पाती कि इससे उसकी ठरक कम तो होने से रही बल्कि और भड़क उठेगी. और उसी के हाथों मजबूर वो अपनी निप्पल को कस के मेरी नाक और होंठ पर रगड़ने लगी.
तभी उसके उभार की चर्बी से मेरी नाक एकदम से बंद हुई तो, सांस लेने के लिए मेरे होंठ अपने आप ही खुल गए और देखते ही देखते उसका निप्पल मेरे होंठो की हद में आया और दबाव के कारण वो खट्ट से मेरे मुंह में दाखिल हो गया. निप्पल का अंदर जाना हुआ और मेरे होंठो का उन पर कसना हुआ. वो मेरे मुंह में कैद हो गया.
फिर पता नहीं क्या हुआ, मैं उन्हें चूसने लगा. गहन अवचेतन में बचपन के स्तन-पान की गहरी स्मृति.........शायद उसी के वशीभूत मुंह में निप्पल जाते ही उसकी चुसाई शुरू हो गई.
वहाँ ऊपर ऋतू चादर को पकडे ना चाहते हुए भी ये सब सीन देख रही थी. मुझे इस चुचुक-चुसाई में तल्लीन देख वो जोर से गुस्से में चिल्लाई ..........'ये क्या करने लग गए अब. उसे ऊपर धकेलो जल्दी........... बस जरा सी ही दूर है वो चादर से.'
मैं यकायक होश में आया. मैंने निप्पल को बाहर उगला और एक बार फिर उसके चूतड़ों को कस के भींचते हुए ऊपर जोर लगाया और संजू को बोला......' अब चादर पकड़ने की पूरी कोशिश करो संजू .'
संजू भी जैसे किसी नींद से जागी हो. एकदम हडबड़ा कर बोली.... 'हाँ भाई, एक बार फिर प्रयास करती हूँ.'
और इस बार उसने चादर की वो गाँठ थाम ली. पहली बार मेरे ऊपर उसका प्रेशर कुछ कम हुआ तो काफी राहत मिली.
अब हम तीनो ही संजू को ऊपर सरकाने का प्रयास करने लगे. वो काफी ऊपर आ गई थी. अब मेरी नाक ठीक उसके नाभि वाली जगह पर थी. उसकी ड्रेस के ऊपर से ही मेरा एक गर्म सांस का गुबार उसकी नाभि में भरते ही वो सरसराई और उसने अपना पेट मेरे मुंह पर रगड़ दिया.
उसके इस जोर से हिलने का खतरनाक परिणाम ये हुआ कि, अचानक से मेरा पैर स्लिप हुआ और मैं थोडा सा नीचे खिसक गया. गनीमत थी कि उसके वजन में दबा होने के कारण फ्री फाल नहीं हुआ. मेरे पैर कुछ नए सपोर्ट पर अटक गए.
मैंने तुरंत अपने पैरों को उन नुक्को पर अच्छे से जमाया और फिर स्थिर हो तो गया लेकिन..................
..........लेकिन इस दौरान एक ऐसी घटना घट गई जो नहीं होनी थी.
हुआ ये कि थोडा सा नीचे सरकने के कारण मेरा मुंह अब उसकी जांघों की खोह में घुस गया था. मेरे होंठ उसकी गीली पेंटी पर रगड़ते हुए आ थमे. उसके पानी की तीखी गंध मेरे नथुनों में भर गई. मेरे दोनों हाथ उसकी निचली जांघो को थामे हुए थे. मैं इसी स्थिति में फ्रीज़ हो गया था.
क्रमशः.....
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परदेस से शुरू हुआ चुदाई का सिलसिला--7
गतांक से आगे...................
पहले उसने अपनी नाक से पप्पू को साइड में हटा कर खुजलाने के लिए जगह बनाने की गरज से थोड़ी कोशिश की. पप्पू थोड़ा साइड में खिसका तो पर जब उसकी नाक का सहारा उसपे से हटा तो वो ढुलक कर वापिस अपनी जगह पर आ गया. उसने तीन चार बार प्रयास किया पर हर बार नाकाम.
इस प्रयास में उसका मुंह बार बार मेरी झांटो से भरी अंडे वाली थैली से घिसता रहा और उसकी खुजली को और बढाता रहा. अंत में थक हार कर उसे अपनी नाक और मुंह को मेरे पप्पू पर ही टिकाना पड़ा.
अब उसने अपने खुजला रहे हिस्सों को जोर जोर से पप्पू पे रगड़ना चालू कर दिया. उसने पप्पू की ऐसी घिसाई की के मैं बस सांस रोके उसे बड़ा होने से रोके हुए था. मैंने अपनी गुदा को यथासंभव अंदर खींच लिया कि पप्पू तनाव से बचा रहे. और वो थी के उसकी खुजली खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी.
एक बार तो मुंह पप्पू पर घिसने के प्रयास में, पता नहीं उसके थोड़े से होंठ खुले. उसी वक्त मेरे सुपाड़े का उसके होंठ के कोने में फँसना हुआ और उसका अपने मुंह को दूसरी डायरेक्शन में मूव करना हुआ..........परिणाम....... मेरा सुपाड़ा उसके होंठो में फिसलता हुआ उसके मुंह में चला गया.
उसने तुरंत उसे बाहर निकालने के लिए झटका मारा. उसके मुंह में फंसा पप्पू मेरे से नब्बे डिग्री के कोण पर आ गया. झटका मारने से अचानक उसकी गर्दन में जोर का दर्द हुआ और राहत की तलाश में उसने सर मेरे पे टिकाया. ऐसा करते ही वो अर्ध-पिल्पिलेश्वर महाराज पूरा उसके मुंह में घुस गए. पप्पूजी पूर्ण गर्म और मुलायम आवरण से आच्छादित हो गए.
मुझे झुरझुरी आने लगी. कुछ पल भी बहुत ज्यादा महसूस हो रहे थे.
अब उसने पप्पू को मुंह से छुड़ाने के लिए अपना मुंह उठाया पर पता नहीं मुंह खोलने का ख्याल नहीं आया या कि फिर डर की ज्यादती........उलटे उसका मुंह कस के पप्पू पे और भी जकड़ गया था.
अब मेरा पप्पू उसके मुंह से ऐसा चुसवाता हुआ बाहर आया जैसे वो कोई बहुत ही स्वादिष्ट कुल्फी को चूसते हुए बाहर निकाल रही हो. पप्पू पर लगी सारी नमी वो मुंह से चूस गई थी.
आखिरकार उसे पप्पू से निजात मिल गई और वो भाई साहब फिर अंडे की थैली पर ढुलक गए.
वो भी थक गई थी और आराम के लिए वो फिर मेरे पप्पू से चिपक गई. पर इस बार उसने अपने मुंह के बजाय गाल आगे किया और उसी से पप्पू को दबा दिया.
उधर ऋतू ये सब नज़ारा लाचार होकर देख रही थी. लेकिन खुजलन की उलझन और उस पर मेरे अर्ध-खड़ेश्वर की भटकन उसे जरा भी रास नहीं आई. वो बड़ी ही खीज़ कर चिल्लाई..........'संजू, जरा संभल के, और कम से कम भैया का बरमूडा तो ऊपर कर दे.'
'ऋतू ये अटक गया है, मुझसे नहीं हो पा रहा है.'.....संजू ने पप्पू से सर टिकाये हुए ही बोला. गर्दन में दर्द जो हो रहा था उसके.
अब मेरा अपने पप्पू से विरोध दम तोड़ने लगा था, क्योंकि उसका नरम मुलायम गाल का दबाव और गर्मी पप्पू को जन्नत की सैर करा रही थी. वो धीमे धीमे कड़कनाथ बनता जा रहा था.
इससे पहले की संजू के लिए एक नई मुसीबत खड़ी हो जाये मैं उसको जल्दी से बोला.......'संजू पैरों से सपोर्ट लेकर थोड़ा और ऊपर खिसको.'
और उसने जैसे ही अपना मुंह हवा में उठाया, मेरा पप्पू स्प्रिंग की तरह उछला और झटके से पूरा खड़ा होकर पेट पर चिपक गया.
ऋतू और संजू हैरान.
आखिर वो हो ही गया जिससे बचने की मैं पूरी कोशिश कर रहा था. मैं बहुत शर्मिन्दगीं महसूस करने लगा लेकिन अब पप्पू पर मेरा कोई बस नहीं चल पा रहा था.
खैर.........फिर किसी तरह संजू ने ऊपर घिसटना शुरू किया. उसके होंठ अभी मेरे पप्पू की जड़ पर थे. वो धीरे धीरे उपर खिसकने लगी.
उसके होंठ मेरे पूर्ण-खडेश्वर की लम्बाई पर घिस्सा मारने लगे. पुरे आठ इंच के ऊपर आने तक के सफर में, उसके होंठ पप्पू पर घिसते घिसते सुपाड़े के सबसे सेंसेटिव हिस्से पर आकर चिपक गए. ये चमड़ी की सिलावट वाला हिस्सा है जिसे मुस्लिम लोग, खतना करके उधेड़ देते हैं.
वो अब थोड़ा और ऊपर खिसकी तो उसका उपरी होंठ सुपाड़े के शीर्ष कर्व से फिसल कर मेरे छेद पर पहुंच गया. नीचे के होंठ पर थोड़ा सा दबाव आया और वो अंदर से पूरा खुल कर मेरे संवेदी भाग पर छा गया.
छेद से निकली कुछ प्री-कम की बुँदे उसके उपरी होंठ के अंदर फैल गई. ज्यूँ ही उसे जीभ पर नमकीन स्वाद आया, एक बार फिर उसे छटपटाहट हुई. वो झुमा झटकी मचाने लगी. ऐसा करते ही उसका निचला अंदरूनी होंठ मेरे संवेदी भाग पर जोर का घिसाया और मेरे अंदर एक तेज़ करंट प्रवाहित हो गया.
उसकी फिर से बुरी स्थिति हो गई क्योंकि इस चक्कर में मेरा थोड़ा सा सुपाड़ा उसके मुंह में फिर घुस गया. पर फिर, वो एक झटके से वो थोड़ी और ऊपर आई और उसके होंठ पप्पू से मुक्त होकर उपर की और बढ़ चले. अब वो जरा ठहरी और राहत भरी सांस ली.
अब मुझे लगा के वो इतनी ऊपर तो आ ही चुकी है कि उसके हाथ मेरे कंधो तक पहुँच जायेंगे. मैंने उसे इसके लिए निर्देश दिया तो उसने एक हाथ को मेरी कमर से हटा कर कंधे की और बढ़ाया. फिर ऐसे ही दूसरा भी और फिर उसने कस के ग्रिप बनाई. मेरे हाथ अभी भी फ्री नहीं थे तो मैं उसे कुछ भी सहारा नहीं दे पा रहा था.
जैसे तैसे उसने हाथ वहाँ सेट करके ऊपर की ओर धीरे धीरे घिसटना शुरू किया. अब उसके होंठ मेरे नंगे पेट पर रगड़ खाने लगे. उसकी गर्म साँसे मुझे अब और पागल कर रही थी.
और उसके घिसटने के दौरान एक घटना और घट गई जो अब संजू को आक्वर्ड फील करा रही थी.
ऊपर घिसटने के दौरान उसकी ड्रेस वक्ष से नीचे खिसक गई और उसके दोनों बब्बू एकदम नंगे हो गए और अब वो ठीक मेरे पप्पू के ऊपर थे. नंगे उभारों का कोमल स्पर्श मेरे पप्पू की कठिन परीक्षा ले रहा था जिसमे अभी तक तो वो जरा भी खरा नहीं उतरा था.
धीरे धीरे वो ऊपर आई और उसका मुंह ठीक मेरी छोटी सी चुन्ची पर आ गया. वो जब ऊपर खिसक रही थी तो उसकी एक निप्पल ठीक मेरे पप्पू पर रगड़ खाती रही. अभी भी मेरा सुपाड़ा उसकी नाली में फंसा हुआ था.
कुछ देर वो सुस्ताई और इस दौरान उसके होंठ ठीक मेरी चुन्ची पर रहे. थोड़ी से होंठो की नमी भी उस पर लग गई थी.
अब वो फिर मेरे कन्धों पर जोर लगा कर ऊपर उठी. उसके बब्बू मेरे पेट पर रगड़ खाने लगे. अब उसका मुंह मेरे एक कान पर आ गया और अब उसकी गर्म साँस कानो में घुस कर मेरी उत्तेजना को बहुत बढ़ा रही थी. मैंने अपने कान को उसके होंठो पर जोर से रगडा.
तभी ऊपर से ऋतू की आवाज़ आई........'हाँ संजू अब ये चादर को पकड़ने की कोशिश करो.'
उसने अब अपना एक हाथ ऊपर बढाया पर तुरंत ही फिर से नीचे ले आई. उसके लिए ये मुश्किल था. अब मुझे ही कुछ करना था.
अब मुझे दुसरे पैर के नीचे कुछ सपोर्ट की दरकार थी. थोड़ी जद्दोजहद के बाद आखिर दूसरा पैर भी एक नुक्के पर टिका दिया. मैंने हाथों से सपोर्ट को छोड़ा और संजू की कमर पर हाथ कसते हुए उसको जकड लिया और उसे थोडा ऊपर खिंचा. उसके बब्बू फिर मेरे सीने पर रगड़ खाए.
इस बार वो मुझे जोर से चुभे जैसे दो नुकीली खीलें लगी हो उन पर. शायद इतनी रगडा मसली का उनपर भी कुछ असर हुआ हो और वो एकदम कड़े हो गए. अब हम दोनों के चेहरे सामानांतर हो गए. वो ठीक मेरे बदन से चिपकी हुई थी.
अब उसने मेरा सहारा पाते ही एक बार फिर ऊपर लटकी चादर को पकड़ने की कोशिश की लेकिन वो उसकी पहुँच से बाहर थी.
अब उसे ऊपर खिसकाने के लिए मैंने अपने हाथ उसके पुठ्ठों की और बढाये. उसकी ड्रेस तो वहां थी ही नहीं. मेरे हाथों में उसके पेंटी में कसे नितम्ब थे. शायद जब वो नीचे फिसली थी तब वो ड्रेस रोल होकर कमर तक ऊपर हो गयी होगी इसीलिए जब वो ऊपर खिसकी तब भी वो नीचे नहीं हुई.
मेरी हथेली पेंटी लाइन के ऊपर थी. उसके नंगे नितम्ब भी फील हो रहे थे.
अब मैंने उसके नितम्ब भींचे और उसे थोडा ऊपर खिसकाया और ऐसा करते ही उसकी योनी ठीक मेरे पप्पू के ऊपर आ गई. इस कड़क खम्बे पर उसकी मुलायम योनी के दबाव से वो एकदम असहज हो गयी और कसमसाने लगी. जितना कसमसा रही थी उतनी ही ज्यादा पप्पू की रगड़ उसकी योनी पर लग रही थी.
'संजू अब कोशिश करो ऊपर पकड़ने की.'...मैंने कहा
उसने प्रयास किया और जैसे ही वो थोडा हिली मुझे लगा कि कहीं मेरा बैलेंस ना बिगड़ जाये इसलिए मैंने उसको एकदम से रुकने को बोला. अब उसने अपने हाथों से कुछ सपोर्ट खोज कर थोड़ी सी मेरी मुश्किल आसन कर दी. मेरे दोनों हाथ उसके पुट्ठों से भरे हुए थे. और उसे ऐसे ही भींचे हुए मैं कुछ देर सुस्ताया. मेरा पप्पू एकदम योनी दरार पर चिपका हुआ था.
तभी मुझे अपने पप्पू पर कुछ गीला गीला सा अहसास हुआ. इसका सिर उसकी योनी के दाने वाली जगह में घुसा हुआ था. वहाँ पर उसकी हलचल ने ही शायद संजू के छेद में कुछ बारिश करवा दी. उस पानी की वजह से उसकी पेंटी काफी हद तक गीली हो चुकी थी. जो कुछ भी अनहोनी होती जा रही थी उसपर हम दोनों का कुछ भी बस नहीं था.
अब मैंने जोर लगाकर उसको फिर ऊपर धकेला. उसकी गीली दरार ठीक मेरे पप्पू के ऊपर से घिसाती हुई गुजरी. मुझे एक बहुत ही कामोत्तेजक अहसास हुआ.
अब वो पप्पू से ऊपर गुजर चुकी थी और वो हवा में थोड़ा सा फ्री हो गया.
तभी वो थोड़ी सी फिसली और इस बार मेरा पप्पू ऐन उसके गुदा द्वार में जाकर फँस गया. उसकी जोर से चीख निकल गई.
ऊपर से ऋतू ने घबडाकर संजू से पूछा कि क्या हुआ तो वो सिर्फ यही बोली कि कुछ नहीं, बस जरा सी फिसल गई थी.
साथ ही साथ एक बात और हो गई. अब उसका एक चुच्चा ठीक मेरे होंठो पर आ गया. मेरी नाक से निकलने वाली गरमा-गरम सांसे उसे अपने एरोला पर महसूस हो रही थी. मारे उत्तेजना के मैं उसकी निप्पल को मुंह में लेने के लिए तड़प उठा. पर शायद स्थिति की गंभीरता, ऊपर से ऋतू की ठीक उसी जगह पर निगाहें, और संजू के चचेरे भाई होने का अहसास.....इन सब बातों ने मुझे और कमीनापन करने से रोक लिया.
पर संजू का क्या करता मैं. उसे अपने चुच्चे पर होने वाली सनसनाहट और नीचे पिछले छिद्र में पेंटी के ऊपर से फंसे मेरे लिंग के कारण बहुत बेचेनी हो रही थी. चुच्चे पर तो इतनी उत्तेजना रही होगी के वो इससे बचने के चक्कर में उस चुच्चे को ही मेरे होंठ और नाक पर मसलने लगी.
पर वो नादान क्या समझ पाती कि इससे उसकी ठरक कम तो होने से रही बल्कि और भड़क उठेगी. और उसी के हाथों मजबूर वो अपनी निप्पल को कस के मेरी नाक और होंठ पर रगड़ने लगी.
तभी उसके उभार की चर्बी से मेरी नाक एकदम से बंद हुई तो, सांस लेने के लिए मेरे होंठ अपने आप ही खुल गए और देखते ही देखते उसका निप्पल मेरे होंठो की हद में आया और दबाव के कारण वो खट्ट से मेरे मुंह में दाखिल हो गया. निप्पल का अंदर जाना हुआ और मेरे होंठो का उन पर कसना हुआ. वो मेरे मुंह में कैद हो गया.
फिर पता नहीं क्या हुआ, मैं उन्हें चूसने लगा. गहन अवचेतन में बचपन के स्तन-पान की गहरी स्मृति.........शायद उसी के वशीभूत मुंह में निप्पल जाते ही उसकी चुसाई शुरू हो गई.
वहाँ ऊपर ऋतू चादर को पकडे ना चाहते हुए भी ये सब सीन देख रही थी. मुझे इस चुचुक-चुसाई में तल्लीन देख वो जोर से गुस्से में चिल्लाई ..........'ये क्या करने लग गए अब. उसे ऊपर धकेलो जल्दी........... बस जरा सी ही दूर है वो चादर से.'
मैं यकायक होश में आया. मैंने निप्पल को बाहर उगला और एक बार फिर उसके चूतड़ों को कस के भींचते हुए ऊपर जोर लगाया और संजू को बोला......' अब चादर पकड़ने की पूरी कोशिश करो संजू .'
संजू भी जैसे किसी नींद से जागी हो. एकदम हडबड़ा कर बोली.... 'हाँ भाई, एक बार फिर प्रयास करती हूँ.'
और इस बार उसने चादर की वो गाँठ थाम ली. पहली बार मेरे ऊपर उसका प्रेशर कुछ कम हुआ तो काफी राहत मिली.
अब हम तीनो ही संजू को ऊपर सरकाने का प्रयास करने लगे. वो काफी ऊपर आ गई थी. अब मेरी नाक ठीक उसके नाभि वाली जगह पर थी. उसकी ड्रेस के ऊपर से ही मेरा एक गर्म सांस का गुबार उसकी नाभि में भरते ही वो सरसराई और उसने अपना पेट मेरे मुंह पर रगड़ दिया.
उसके इस जोर से हिलने का खतरनाक परिणाम ये हुआ कि, अचानक से मेरा पैर स्लिप हुआ और मैं थोडा सा नीचे खिसक गया. गनीमत थी कि उसके वजन में दबा होने के कारण फ्री फाल नहीं हुआ. मेरे पैर कुछ नए सपोर्ट पर अटक गए.
मैंने तुरंत अपने पैरों को उन नुक्को पर अच्छे से जमाया और फिर स्थिर हो तो गया लेकिन..................
..........लेकिन इस दौरान एक ऐसी घटना घट गई जो नहीं होनी थी.
हुआ ये कि थोडा सा नीचे सरकने के कारण मेरा मुंह अब उसकी जांघों की खोह में घुस गया था. मेरे होंठ उसकी गीली पेंटी पर रगड़ते हुए आ थमे. उसके पानी की तीखी गंध मेरे नथुनों में भर गई. मेरे दोनों हाथ उसकी निचली जांघो को थामे हुए थे. मैं इसी स्थिति में फ्रीज़ हो गया था.
क्रमशः.....
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