FUN-MAZA-MASTI
परदेस से शुरू हुआ चुदाई का सिलसिला--5
गतांक से आगे...................
अब मैं थोड़ा उठा और अपने दोनों हाथ उसकी जांघों पर कसी चड्डी की लाइनिंग में से अंदर घुसाये.
तुरंत ही वो उसकी रिसती हुई चिकनी योनी पर पहुँच गए. सफाचट योनी थी. मैं अपने हाथों से उसकी मालिश करने लगा.
फिर दायें हाथ के अंगूठे से उसके दाने को रगड़ने लगा और बाएं हाथ से पूरी योनी को गूंधने लगा.
फिर जैसे ही एक ऊँगली उसकी रस की कटोरी में डुबोई वो फडफडाने लगी. कुछ देर यूँ ही हाथों से उसकी जवानी से खिलवाड़ करता रहा.
अब अपने गीले हाथों को उसकी काली चड्डी के सूखे भाग से रगड़ रगड़ कर सुखाया.
अब तक वो इतनी तड़पने लगी थी कि दोनों टांगो को फिर से एक करके ऊपर नीचे करते हुए योनी को मसलने लगी.
ऊपर अजय ने उसके मुंह में अपना डंडा ऐसा ठूंस रखा था कि उसकी हर चीख गले में ही फँस कर रह जाती थी.
अब मैंने एक बार फिर उसकी टांगो को खोला और झटके से जांघों के बीच अपना मुंह घुसा दिया.
क्या करूँ, काली चड्डी मेरी कमजोरी है और मुझे लगता है बस उसी में घुसे रहो.
अब अपनी नाक उसके दाने पर टिकाई और होंठ योनी के खांचे में घुसा दिए.
अब धीरे धीरे मैंने अपने मुंह को वहाँ पर वायब्रेट करना शुरू किया.
उसके मुंह में अजय का हथियार होने की वजह से उसके चीखने की आवाज़ बस गूं गूं होकर रह गई.
फिर वाइब्रेशन में तेज़ी लाते हुए रुक रुक कर घसा-घसी करने लगा.
एक बार में तीन-चार सेकेंड के लिए जोर से हिनहिनाता और फिर रुक जाता.
मैं अपने हिनहिनाने की स्पीड बढ़ाते ही जा रहा था. झकोलता फिर रुक जाता. ऐसे रुक रुक कर उसकी योनी का मर्दन कर था.
अब मैं रुकने का समय बदलने लगा. कभी तीन-चार सेकण्ड की मोहलत देता, कभी १० सेकण्ड और कभी और ज्यादा.
अभी वो समझ ही नहीं पा रही थी कि कब मैं आक्रमण करूँगा और कब रुकूँगा.
इसके चलते उसकी पूरी कांशियसनेस उसकी योनी पर सिमट आई और उसके मज़े में कई गुना बढोतरी हो गई थी.
रुक रुक कर होने वाले योनी मर्दन पर उसे जोर जोर के झटके लगने लगे थे.
फिर अचानक ही मैंने एक बार जो हिनहिनाना शुरू किया तो बस मसलता ही चला गया. तेज़ से भी तेज़.
वो पागल होने लगी. बहुत जोर जोर से गूं गूं की आवाजें निकालने लगी.
अब वो अपने बस में नहीं थी और अपने पैर मेरी पीठ पर जोर जोर से पटकने लगी.
मैंने उसके दोनों पैर ही दबा लिए. अब वो फिक्स हो गई और बस हलक में ही चीख पा रही थी.
मेरी नाक में तीखी गंध घुस रही थी और पूरा का पूरा मुंह उसकी चिकनाई से सराबोर हो चूका था पर मैं अपने नाक और मुंह से उसकी योनी की घिसाई करता ही चला गया.
और अब उसका रुकना मुश्किल था. वो थर्थार्राने लगी और फिर झटके मार मार के झड़ने लगी.
बड़ी देर तक वो झडती रही. फिर वो धीरे धीरे ढीली पड़ गई.
अब मैं हटा और फिर उसकी गीली चड्डी को नीचे खींचा. ये उसकी योनी के प्रथम दर्शन थे.
उसकी चिकनी-चपाट योनी अभी भी रह रहकर रस उगल रही थी. इतनी गोरी योनी मैंने पहली बार देखी थी.
अब मैं उसके मुंह की तरफ चला गया. उसने जैसे ही मेरे पप्पू को देखा वो उस पर टूट पड़ी.
अब अजय ने सुझाव दिया कि आगे की कार्यवाही अंदर बेड पर चल कर करते हैं.
डॉली ने मेरा पप्पू छोड़ा और अपने दोनों हाथ बिलकुल छोटे बच्चे की तरह मेरे सामने फैला दिए.
मैंने उसे बिलकुल फूल की तरह अपनी बाँहों में उठा लिया. वो मुझ से कसकर चिपक गई.
उसने अपने पैर मेरी कमर पर इस तरह डाल दिए कि उसकी योनी दरार ठीक मेरे तने पप्पू पर चिपक गई. मेरे चलने से वो उस पर ऊपर नीचे फिसल फिसल कर मज़े लेने लगी.
बेड पर पहुँच कर उसे नीचे टिका कर हटने लगा तो उसने मेरी गर्दन पर से अपनी बाहें और कमर से टाँगे हटाई ही नहीं.
उलटे उसने एक झटका देकर मुझे अपने ऊपर गिरा लिया.
मैंने गिरते ही उसको बाँहों में भर लिया और उसको दबाए हुए झटके से पलट गया.
वो आसानी से मेरे ऊपर आ गई.
अब वो अपनी दरार को मेरे पप्पू पे, बब्बुओं को मेरे सीने पर होंठो को मेरे होंठो पर रगड़ने लगी.
तभी अजय ने उसके नितंबों को पकड़ कर खोला और अपने घुटने मेरी जांघों के दोनों ओर करके, झुकते हुए स्वयं के हथियार को उसकी योनी में पीछे से घुसा दिया.
डॉली ने अपने पुठ्ठे थोड़े हवा में ऊँचे कर दिए ताकि अजय का हथियार आसानी से अंदर बाहर हो सके.
उसका दाना ठीक मेरे पप्पू पर अब और भी जोर से गड कर घिसा रहा था.
मैं उसके रसीले होंठो को चूसते हुए हाथों से उसकी चुन्चियों को उमेठने लगा.
अब वो लगातार घस्से मारे चला जा रहा था. इस दौरान अपने आप ही घस्सो की स्पीड बढ़ रही थी. वो भी अपने कूल्हे उचका उचका कर उसका बराबरी से साथ देने लगी.
अजय ने स्पीड फूल बड़ा दी और कुछ ही देर में वो डकारने लगा.
इतनी तेज़ घस्से चल रहे थे कि डॉली का पूरा वजूद ज़लज़ले की चपेट में आ गया था.
मेरे होंठो से उसके होंठ पता नहीं कब बिछुड़ गए. अब उलटे मैंने डॉली को स्टेबल करने के लिए अपने हाथों से थम लिया था.
घस्से मारते मारते अजय चीखता हुआ झड़ने लगा. उसकी पिचकारी ने जोर जोर से धार मारना चालू कर दी थी.
धीरे धीरे उसकी रफ़्तार कम होती चली गई और अब वो बस हौले हौले डॉली में हिल रहा था.
एक और राउंड की समाप्ति. पहला राउंड जहाँ डॉली के नाम रहा वहीँ दूसरा अजय के. मेरा नंबर देखो कब आता है.
इधर अजय खल्लास हुआ और उधर तब तक डॉली फॉर्म में आ चुकी थी.
वो उसके ढीले होते हथियार को हिल हिल कर और अंदर लेने की कोशिश कर रही थी.
मैं उसके इन डेस्परेट प्रयासों को देख कर उसकी हालत समझ गया कि ये झड़ने के बिलकुल करीब है.
मैंने उसको थोड़ा आगे खींचा. उसका योनी छिद्र मेरे पेट पर चिपके सुपाडे की जद में आया.
अब छेद और सुपाड़े को इस तरह से एडजस्ट किया की पप्पू ठीक नब्बे डिग्री पर तना हुआ था और उसके ठीक ऊपर डॉली का छेद उसे अपने में समां लेने को तैयार. बस देर थी तो डॉली के उस पर दबाव देकर बैठने की.
और अपने ही पल वही हुआ.
मेरी मोटाई उस संकरी सी योनी के लिए थोड़ी ज्यादती थी.
वो चीखती-चिल्लाती आखिर उस पर बैठ ही गई. अब अपने हाथ मेरी छाती पर टिकाये और कमर को इधर उधर हिलाते हुए उसने अंदर घुसे पप्पू को ठीक से एडजस्ट किया.
मैंने अब उसकी कमर थामी और नीचे से हौले हौले तीन चार घस्से मार कर देखा कि रास्ता अंदर तक क्लियर है कि नहीं.
दोनों ने क्वालिटी टेस्ट ओके कर दिया. अब शुरुवाती मूव उसने लिया.
वो धीरे धीरे कमर को गोल गोल घुमा कर पप्पू को मथने लगी. उसके बब्बू भी इस घूर्णन से गतिशील होते हुए सर्कुलर मोशन में झूलने लगे.
उन पर निगाह पड़ते ही मैंने अपने हाथों से उन्हें थाम लिया.
लटके हुए टप्पू ज्यादा बड़े और गुदगुदे महसूस होते हैं, लिहाज़ा उन्हें मसलने में और ज्यादा मज़ा आता है.
उनको अपनी पूरी हथेलियों में भरा और फिर उन्हें पिचकाने लगा.
उसे ज्यादा सेंसेशन की तलाश थी तो उसने अपनी कोहनियाँ बिस्तर पर टिकाई और अपना एक चुच्चा मेरे होंठो के करीब लटका दिया.
इशारा समझते ही मैंने सर उठाया और उसकी निप्पल लपक ली. अब उसने कमर को गोल हिलाने के बजाय हौले हौले से आगे पीछे करना शुरू कर दिया.
मैं तन्मय होकर उसकी चुसाई कर रहा था. उधर नीचे मैं अपने दोनों हाथ उसकी एस-चीक पर ले गया और उन्हें खींच खींच कर उसके छेद पर सरसराहट पैदा करने लगा.
मैंने नीचे से धक्के देने शुरू किये तो वो भी मस्तानी होके उस पर कूदने लगी.
अजय मेरे पेट पर बैठ गया और उसके झूलते झालते बब्बुओं को पकड़ पकड़ कर चूसने लगा. जरा ही देर में वो फिर ढेर हो गई.
वो दोनों मेरे आजू बाजू अपनी पीठ के बल लेट गए.
कुछ देर बाद डॉली मेरे पास आकर चिपक गई और गाल चुमते हुए बोलने लगी........’बहुत करारे हो यार तुम तो......अभी भी झड़े नहीं हो तुम.’ ....मैं हंस दिया.
फिर हम तीनो बैठ गए.
मैंने अजय से पूछा......’यार ये कज़न के साथ कैसे दांव लग गया......ये तो बहन ही है......खराब महसूस नहीं होता.’
अजय बोला....’वो एक दुर्घटना वश हम दोनों एक दूसरे से ओपन हो गए और जब तक ये अहसास होता कि हम भाई बहन हैं हम बहुत नज़दीक आ चुके थे.'
अब या तो आगे बडें या मर्यादा के दायरे के बाहर ही रुक जाये. पर हम दोनों के ही मन में चोर था तो बस, नतीजा तुम देख ही रहे हो. मेरे साथ हिल हिल कर ये तो अब महा-चुदक्कड बन चुकी है.’
तभी डॉली बोली.....’अभि, बताओ कैसे झडना है तुम्हे.’
मैं बोला .........’यार मुझे तो बहुत टाइम लगेगा........तो एक एक करके सभी हथकंडे अपनाओ तुम.’
‘चलो पहले चूस देती हूँ’........और वो झुक कर पप्पू को चूसने लगी. १० मिनट में बुरी तरह हांफने लगी.....उसने निराशा में मुझसे पूछा........’ये पानी छोड़ता है कि नहीं’
मुझे हंसी आ गई.
क्रमशः.....
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गतांक से आगे...................
अब मैं थोड़ा उठा और अपने दोनों हाथ उसकी जांघों पर कसी चड्डी की लाइनिंग में से अंदर घुसाये.
तुरंत ही वो उसकी रिसती हुई चिकनी योनी पर पहुँच गए. सफाचट योनी थी. मैं अपने हाथों से उसकी मालिश करने लगा.
फिर दायें हाथ के अंगूठे से उसके दाने को रगड़ने लगा और बाएं हाथ से पूरी योनी को गूंधने लगा.
फिर जैसे ही एक ऊँगली उसकी रस की कटोरी में डुबोई वो फडफडाने लगी. कुछ देर यूँ ही हाथों से उसकी जवानी से खिलवाड़ करता रहा.
अब अपने गीले हाथों को उसकी काली चड्डी के सूखे भाग से रगड़ रगड़ कर सुखाया.
अब तक वो इतनी तड़पने लगी थी कि दोनों टांगो को फिर से एक करके ऊपर नीचे करते हुए योनी को मसलने लगी.
ऊपर अजय ने उसके मुंह में अपना डंडा ऐसा ठूंस रखा था कि उसकी हर चीख गले में ही फँस कर रह जाती थी.
अब मैंने एक बार फिर उसकी टांगो को खोला और झटके से जांघों के बीच अपना मुंह घुसा दिया.
क्या करूँ, काली चड्डी मेरी कमजोरी है और मुझे लगता है बस उसी में घुसे रहो.
अब अपनी नाक उसके दाने पर टिकाई और होंठ योनी के खांचे में घुसा दिए.
अब धीरे धीरे मैंने अपने मुंह को वहाँ पर वायब्रेट करना शुरू किया.
उसके मुंह में अजय का हथियार होने की वजह से उसके चीखने की आवाज़ बस गूं गूं होकर रह गई.
फिर वाइब्रेशन में तेज़ी लाते हुए रुक रुक कर घसा-घसी करने लगा.
एक बार में तीन-चार सेकेंड के लिए जोर से हिनहिनाता और फिर रुक जाता.
मैं अपने हिनहिनाने की स्पीड बढ़ाते ही जा रहा था. झकोलता फिर रुक जाता. ऐसे रुक रुक कर उसकी योनी का मर्दन कर था.
अब मैं रुकने का समय बदलने लगा. कभी तीन-चार सेकण्ड की मोहलत देता, कभी १० सेकण्ड और कभी और ज्यादा.
अभी वो समझ ही नहीं पा रही थी कि कब मैं आक्रमण करूँगा और कब रुकूँगा.
इसके चलते उसकी पूरी कांशियसनेस उसकी योनी पर सिमट आई और उसके मज़े में कई गुना बढोतरी हो गई थी.
रुक रुक कर होने वाले योनी मर्दन पर उसे जोर जोर के झटके लगने लगे थे.
फिर अचानक ही मैंने एक बार जो हिनहिनाना शुरू किया तो बस मसलता ही चला गया. तेज़ से भी तेज़.
वो पागल होने लगी. बहुत जोर जोर से गूं गूं की आवाजें निकालने लगी.
अब वो अपने बस में नहीं थी और अपने पैर मेरी पीठ पर जोर जोर से पटकने लगी.
मैंने उसके दोनों पैर ही दबा लिए. अब वो फिक्स हो गई और बस हलक में ही चीख पा रही थी.
मेरी नाक में तीखी गंध घुस रही थी और पूरा का पूरा मुंह उसकी चिकनाई से सराबोर हो चूका था पर मैं अपने नाक और मुंह से उसकी योनी की घिसाई करता ही चला गया.
और अब उसका रुकना मुश्किल था. वो थर्थार्राने लगी और फिर झटके मार मार के झड़ने लगी.
बड़ी देर तक वो झडती रही. फिर वो धीरे धीरे ढीली पड़ गई.
अब मैं हटा और फिर उसकी गीली चड्डी को नीचे खींचा. ये उसकी योनी के प्रथम दर्शन थे.
उसकी चिकनी-चपाट योनी अभी भी रह रहकर रस उगल रही थी. इतनी गोरी योनी मैंने पहली बार देखी थी.
अब मैं उसके मुंह की तरफ चला गया. उसने जैसे ही मेरे पप्पू को देखा वो उस पर टूट पड़ी.
अब अजय ने सुझाव दिया कि आगे की कार्यवाही अंदर बेड पर चल कर करते हैं.
डॉली ने मेरा पप्पू छोड़ा और अपने दोनों हाथ बिलकुल छोटे बच्चे की तरह मेरे सामने फैला दिए.
मैंने उसे बिलकुल फूल की तरह अपनी बाँहों में उठा लिया. वो मुझ से कसकर चिपक गई.
उसने अपने पैर मेरी कमर पर इस तरह डाल दिए कि उसकी योनी दरार ठीक मेरे तने पप्पू पर चिपक गई. मेरे चलने से वो उस पर ऊपर नीचे फिसल फिसल कर मज़े लेने लगी.
बेड पर पहुँच कर उसे नीचे टिका कर हटने लगा तो उसने मेरी गर्दन पर से अपनी बाहें और कमर से टाँगे हटाई ही नहीं.
उलटे उसने एक झटका देकर मुझे अपने ऊपर गिरा लिया.
मैंने गिरते ही उसको बाँहों में भर लिया और उसको दबाए हुए झटके से पलट गया.
वो आसानी से मेरे ऊपर आ गई.
अब वो अपनी दरार को मेरे पप्पू पे, बब्बुओं को मेरे सीने पर होंठो को मेरे होंठो पर रगड़ने लगी.
तभी अजय ने उसके नितंबों को पकड़ कर खोला और अपने घुटने मेरी जांघों के दोनों ओर करके, झुकते हुए स्वयं के हथियार को उसकी योनी में पीछे से घुसा दिया.
डॉली ने अपने पुठ्ठे थोड़े हवा में ऊँचे कर दिए ताकि अजय का हथियार आसानी से अंदर बाहर हो सके.
उसका दाना ठीक मेरे पप्पू पर अब और भी जोर से गड कर घिसा रहा था.
मैं उसके रसीले होंठो को चूसते हुए हाथों से उसकी चुन्चियों को उमेठने लगा.
अब वो लगातार घस्से मारे चला जा रहा था. इस दौरान अपने आप ही घस्सो की स्पीड बढ़ रही थी. वो भी अपने कूल्हे उचका उचका कर उसका बराबरी से साथ देने लगी.
अजय ने स्पीड फूल बड़ा दी और कुछ ही देर में वो डकारने लगा.
इतनी तेज़ घस्से चल रहे थे कि डॉली का पूरा वजूद ज़लज़ले की चपेट में आ गया था.
मेरे होंठो से उसके होंठ पता नहीं कब बिछुड़ गए. अब उलटे मैंने डॉली को स्टेबल करने के लिए अपने हाथों से थम लिया था.
घस्से मारते मारते अजय चीखता हुआ झड़ने लगा. उसकी पिचकारी ने जोर जोर से धार मारना चालू कर दी थी.
धीरे धीरे उसकी रफ़्तार कम होती चली गई और अब वो बस हौले हौले डॉली में हिल रहा था.
एक और राउंड की समाप्ति. पहला राउंड जहाँ डॉली के नाम रहा वहीँ दूसरा अजय के. मेरा नंबर देखो कब आता है.
इधर अजय खल्लास हुआ और उधर तब तक डॉली फॉर्म में आ चुकी थी.
वो उसके ढीले होते हथियार को हिल हिल कर और अंदर लेने की कोशिश कर रही थी.
मैं उसके इन डेस्परेट प्रयासों को देख कर उसकी हालत समझ गया कि ये झड़ने के बिलकुल करीब है.
मैंने उसको थोड़ा आगे खींचा. उसका योनी छिद्र मेरे पेट पर चिपके सुपाडे की जद में आया.
अब छेद और सुपाड़े को इस तरह से एडजस्ट किया की पप्पू ठीक नब्बे डिग्री पर तना हुआ था और उसके ठीक ऊपर डॉली का छेद उसे अपने में समां लेने को तैयार. बस देर थी तो डॉली के उस पर दबाव देकर बैठने की.
और अपने ही पल वही हुआ.
मेरी मोटाई उस संकरी सी योनी के लिए थोड़ी ज्यादती थी.
वो चीखती-चिल्लाती आखिर उस पर बैठ ही गई. अब अपने हाथ मेरी छाती पर टिकाये और कमर को इधर उधर हिलाते हुए उसने अंदर घुसे पप्पू को ठीक से एडजस्ट किया.
मैंने अब उसकी कमर थामी और नीचे से हौले हौले तीन चार घस्से मार कर देखा कि रास्ता अंदर तक क्लियर है कि नहीं.
दोनों ने क्वालिटी टेस्ट ओके कर दिया. अब शुरुवाती मूव उसने लिया.
वो धीरे धीरे कमर को गोल गोल घुमा कर पप्पू को मथने लगी. उसके बब्बू भी इस घूर्णन से गतिशील होते हुए सर्कुलर मोशन में झूलने लगे.
उन पर निगाह पड़ते ही मैंने अपने हाथों से उन्हें थाम लिया.
लटके हुए टप्पू ज्यादा बड़े और गुदगुदे महसूस होते हैं, लिहाज़ा उन्हें मसलने में और ज्यादा मज़ा आता है.
उनको अपनी पूरी हथेलियों में भरा और फिर उन्हें पिचकाने लगा.
उसे ज्यादा सेंसेशन की तलाश थी तो उसने अपनी कोहनियाँ बिस्तर पर टिकाई और अपना एक चुच्चा मेरे होंठो के करीब लटका दिया.
इशारा समझते ही मैंने सर उठाया और उसकी निप्पल लपक ली. अब उसने कमर को गोल हिलाने के बजाय हौले हौले से आगे पीछे करना शुरू कर दिया.
मैं तन्मय होकर उसकी चुसाई कर रहा था. उधर नीचे मैं अपने दोनों हाथ उसकी एस-चीक पर ले गया और उन्हें खींच खींच कर उसके छेद पर सरसराहट पैदा करने लगा.
मैंने नीचे से धक्के देने शुरू किये तो वो भी मस्तानी होके उस पर कूदने लगी.
अजय मेरे पेट पर बैठ गया और उसके झूलते झालते बब्बुओं को पकड़ पकड़ कर चूसने लगा. जरा ही देर में वो फिर ढेर हो गई.
वो दोनों मेरे आजू बाजू अपनी पीठ के बल लेट गए.
कुछ देर बाद डॉली मेरे पास आकर चिपक गई और गाल चुमते हुए बोलने लगी........’बहुत करारे हो यार तुम तो......अभी भी झड़े नहीं हो तुम.’ ....मैं हंस दिया.
फिर हम तीनो बैठ गए.
मैंने अजय से पूछा......’यार ये कज़न के साथ कैसे दांव लग गया......ये तो बहन ही है......खराब महसूस नहीं होता.’
अजय बोला....’वो एक दुर्घटना वश हम दोनों एक दूसरे से ओपन हो गए और जब तक ये अहसास होता कि हम भाई बहन हैं हम बहुत नज़दीक आ चुके थे.'
अब या तो आगे बडें या मर्यादा के दायरे के बाहर ही रुक जाये. पर हम दोनों के ही मन में चोर था तो बस, नतीजा तुम देख ही रहे हो. मेरे साथ हिल हिल कर ये तो अब महा-चुदक्कड बन चुकी है.’
तभी डॉली बोली.....’अभि, बताओ कैसे झडना है तुम्हे.’
मैं बोला .........’यार मुझे तो बहुत टाइम लगेगा........तो एक एक करके सभी हथकंडे अपनाओ तुम.’
‘चलो पहले चूस देती हूँ’........और वो झुक कर पप्पू को चूसने लगी. १० मिनट में बुरी तरह हांफने लगी.....उसने निराशा में मुझसे पूछा........’ये पानी छोड़ता है कि नहीं’
मुझे हंसी आ गई.
क्रमशः.....
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