सबाना और ताजीन की चुदाई -2
गतान्क से आगे............
अब प्रताप ने अपना लंड शबाना के मुँह से निकाला और शबाना की चूत छ्चोड़कर
उसके होंठों को चूसने लगा. शबाना झाड़ चुकी थी लेकिन लंड की प्यास उसे
बराबर पागल किए हुए थी. अब वो बिल्कुल नंगी प्रताप के नीचे लेटी हुई थी,
और प्रताप भी एकदम नंगा उसके ऊपर लेटा हुआ था, प्रताप का लंड उसकी चूत पर
ठोकर मार रहा था और शबाना अपनी गांद उठा उठा कर प्रताप के लंड को खाने की
फिराक में थी. प्रताप अब उसके टाँगों के बीच बैठ गया और उसकी टाँगों को
उठा कर अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ने लगा. शबाना आहें भर रही थी, अपने सर
के नीचे रखे तकिये को अपने हाथों में पकड़ कर मसल रही थी. उसकी गंद रह रह
कर उठ जाती थी, प्रताप के लंड को खा जाने के लिए, मगर प्रताप तो जैसे उसे
तडपा तडपा कर चोदना चाहता था, वो उसकी चूत पर अपने लंड को रगडे जा रहा था
ऊपर से नीचे. अब शबाना से रहा नहीं जा रहा था - असीम आनंद की वजह से उसकी
आँखें बंद हो चुकी थी और मुँह से सिसकारियाँ छ्छूट रही थी. प्रताप का लंड
धीरे धीरे फिसल रहा था, फिसलता हुआ वो शबाना की चूत में घुस जाता और बाहर
निकल जाता - अब प्रताप उसे चोदना शुरू कर चुका था. हल्के हल्के धक्के लग
रहे थे और शबाना भी अपनी गांद उठा उठा कर लंड खा रही थी. धीरे धीरे
धक्कों की रफ़्तार बढ़ रही थी और शबाना की सिसकारियों से सारा कमरा गूँज
रहा था...प्रताप का लंड कोयले के एंजिन के टाइयर पर लगी पट्टी की तरह
शबाना की चूत की गहराई नाप रहा था. प्रताप की चुदाई में एक लय थी और अब
धक्कों ने रफ़्तार पकड़ ली थी. प्रताप का लंड तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा
था और शबाना भी पागल हो चुकी थी, वो अपनी गंद उठा उठा कर प्रताप के लंड
को अपनी चूत में दबाकर पीस रही थी - अचानक शबाना ने प्रताप को कसकर पकड़
लिया और अपने दोनों पैर प्रताप की कमर पर बाँध कर झूल गई, प्रताप समझ गया
कि यह फिर झड़ने वाली है - प्रताप ने अपने धक्के और तेज़ कर दिए - उसका
लंड शबाना की चूत में एकदम धंसता चला जाता, और, बाहर आकर और तेज़ी से घुस
जाता. शबाना की चूत से फव्वारा छ्छूट गया और प्रताप के लंड ने भी शबाना
की चूत में पूरा पानी उडेल दिया...
प्रताप और शबाना अब जब भी मौका मिलता एक दूसरे के जिस्म की भूख मिटा देते थे.
शबाना बहोत दिनों से प्रताप का लंड नहीं ले पाई थी. परवेज़ की बेहन
ताज़ीन घर आई हुई थी. वो पूरे दिन घर पर ही रहती थी, जिस वजह से ना तो
शबाना कहीं जा पाती थी और ना ही प्रताप को बुला सकती थी.
"शबाना में दो दिनों के लिए बाहर जा रहा हूँ, कुच्छ ज़रूरी काम है,
ताज़ीन घर पर नहीं होती तो तुम्हें भी ले चलता". "कोई बात नहीं, आप अपना
काम निपटा कर आइए". शबाना को परवेज़ के जाने की कोई परवाह नहीं थी, और
उसके साथ जाने की इच्च्छा भी नहीं थी. वो तो ताज़ीन को भी भगा देना चाहती
थी, जिसकी वजह से उसे प्रताप का साथ नहीं मिल पा रहा था, पूरे पंद्रह दिन
से. और ताज़ीन अभी और 15 दिन रुकने वाली थी.
रात को ताज़ीन और शबाना बेडरूम में बिस्तर पर लेटे हुए फिल्म देख रहे थे.
शबाना को नींद आने लगी थी, और वो गाउन पहन कर सो गई. सोने से पहले शबाना
ने लाइट बंद करके डिम लाइट चालू कर दी थी. ताज़ीन किसी चॅनेल पर इंग्लीश
फिल्म देख रही थी. फिल्म में काफ़ी खुलापन और सेक्स के सीन्स थे.
नींद में शबाना ने एक घुटना उपर उठाया तो अनायास ही उसका गाउन फिसल कर
घुटने के उपर तक सरक गया. टीवी और डिम लाइट की रोशनी में उसकी दूधिया रंग
की जाँघ चमक रही थी. अब ताज़ीन का ध्यान फिल्म में ना होकर शबाना के
जिस्म पर था, और रह रह कर उसकी नज़र शबाना के गोरे जिस्म पर टिक जाती थी.
शबाना की खूबसूरत जांघें उसे मादक लग रही थी. कुच्छ तो फिल्म के सेक्स
सीन्स का असर था और कुच्छ शबाना की खूबसूरती का. ताज़ीन ने टीवी बंद किया
और वहीं शबाना के पास सो गई. थोड़ी देर तक बिना कोई हरकत किए सोई रही,
फिर उसने अपना हाथ शबाना के उठे हुए घुटने वाली जाँघ पर रख दिया. हाथ रख
कर वो ऐसे ही लेटी रही, एकदम स्थिर. जब शबाना ने कोई हरकत नही की, तो
ताज़ीन ने अपने हाथ को शबाना की जाँघ पर फिराना शुरू कर दिया. हाथ भी
इतना हल्का कि सिर्फ़ उंगलियाँ ही शबाना को च्छू रही थी, हथेली बिल्कुल
भी नहीं. फिर उसने हल्के हाथों से शबाना के गाउन को पूरा नीचे कर दिया,
अब शबाना की पॅंटी भी सॉफ नज़र आ रही थी. ताज़ीन की उंगलियाँ अब शबाना के
घुटनों से होती हुई उसकी पॅंटी तक जाती और फिर वापस ऊपर घुटनों पर आ
जाती. यही सब तकरीबन 2-3 मिनिट तक चलता रहा. जब शबाना ने कोई हरकत नहीं
की, तो ताज़ीन ने शबाना की पॅंटी को छुना शुरू कर दिया, लेकिन तरीका वोही
था. घुटनों से पॅंटी तक उंगलियाँ परदे कर रही थी. अब ताज़ीन धीरे से उठी
और उसने अपना गाउन और ब्रा उतार दिया, और सिर्फ़ पॅंटी में शबाना के पास
बैठ गई. शबाना के गाउन में आगे की तरफ बटन लगे हुए थे, ताज़ीन ने बिल्कुल
हल्के हाथों से बटन खोल दिए. फिर गाउन को हटाया तो शबाना के गोरे चिट
मम्मे नज़र आने लगे. अब ताज़ीन के दोनों हाथ व्यस्त हो गये थे, उसके एक
हाथ की उंगलियाँ शबाना की जाँघ और दूसरे हाथ की उंगलियाँ शबाना के मम्मों
को सहला रही थी. उसकी उंगलियाँ अब शबाना को किसी मोर-पंख की तरह लग रही
थी. जी हाँ दोस्तो, शबाना उठ चुकी थी, लेकिन उसे अच्च्छा लग रहा था इसलिए
बिना हरकत लेटी रही. वो इस खेल को रोकना नहीं चाहती थी.
अब ताज़ीन की हिम्मत बढ़ गई थी, उसने झुककर शबाना की चुचि को किस किया.
फिर उठी, और शबाना के पैरों के बीच जाकर बैठ गई. शबाना को अपनी जाँघ पर
गर्म हवा महसूस हो रही थी, वो समझ गई ताज़ीन की साँसें हैं. वो शबाना की
जाँघ को अपने होंठों से च्छू रही थी, बिल्कुल उसी तरह जैसे वो अपनी
उंगलियाँ फिरा रही थी. अब वोही साँसें शबाना को अपनी चड्डी पर महसूस हो
रही थी, लेकिन उसे नीचे दिखाई नहीं दे रहा था. वैसे भी उसने अभी तक आँखें
नहीं खोली थी. अब ताज़ीन ने अपनी जीभ बाहर निकाली और उसे शबाना की पॅंटी
में से झाँक रही गरमागरम चूत की दरार पर टिका दी. कुच्छ देर ऐसे ही उसने
अपनी जीभ को पॅंटी पर ऊपर नीचे फिराया. शबाना की चड्डी ताज़ीन के थूक से
और, चूत से निकल रहे पानी से भीगने लगी थी. अचानक ताज़ीन ने शबाना की
पॅंटी को साइड में किया और शबाना की नंगी चूत पर अपने होंठ रख दिए. शबाना
से और बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपनी गंद उठा दी, और दोनों हाथों से
ताज़ीन के सिर को पकड़ कर उसका मुँह अपनी चूत से चिपका लिया. ताज़ीन की
तो मन की मुराद पूरी हो गई थी !! अब कोई डर नहीं था, वो जानती थी कि अब
शबाना सबकुच्छ करने को तैयार है - और आज की रात रंगीन होने वाली थी.
ताज़ीन ने अपना मुँह उठाया और शबाना की चड्डी को दोनों हाथों में पकड़ कर
खींचने लगी, शबाना ने भी अपनी गांद उठा कर उसकी मदद की. फिर शबाना ने
अपना गाउन भी उतार फेंका और ताज़ीन से लिपट गई. ताज़ीन ने भी अपनी पॅंटी
उतारी और अब दोनों बिल्कुल नंगी एक दूसरे के होंठ चूस रही थी. दोनों के
मम्मे एक दूसरे से उलझ रहे थे, ताज़ीन अपनी कमर को झटका देकर शबाना की
चूत पर अपनी चूत लगा रही थी, जैसे की उसे चोद रही हो. शबाना भी सेक्स के
नशे में चूर हो चुकी थी और उसने ताज़ीन की चूत में एक उंगली घुसा दी. अब
ताज़ीन ने शबाना को नीचे गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गई. ताज़ीन ने शबाना
के मम्मों को चूसना शुरू किया, उसके हाथ शबाना के जिस्म से खेल रहे थे.
शबाना अपने मम्मे चुसवाने के बाद ताज़ीन के ऊपर आ गयी और नीचे उतरती चली
गई, ताज़ीन के मुम्मों को चूस्कर उसकी नाभि से होते हुए उसकी जीभ ताज़ीन
की चूत में घुस गई. ताज़ीन भी अपनी गांद उठा उठा कर शबाना का साथ दे रही
थी. काफ़ी देर तक ताज़ीन की चूत चूसने के बाद शबाना ताज़ीन के पास आ कर
लेट गई और उसके होंठ चूसने लगी अब ताज़ीन ने शबाना के मम्मों को दबाया और
उन्हें अपने मुँह में ले लिया - ताज़ीन का एक हाथ शबाना के मम्मों पर और
दूसरा उसकी चूत पर था. उसकी उंगलियाँ शबाना की चूत के अंदर खलबली मचा रही
थी, शबाना एकदम निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी और उसके मुँह से अजीब अजीब
आवाज़ें आने लगी. तभी ताज़ीन नीचे की तरफ गई और शबाना की चूत को चूसना
शुरू कर दिया, अपने दोनों हाथों से उसने चूत को फैलाया और उसमें दिख रहे
दाने को मुँह में ले लिया और उसपर जीभ रगड़ रगड़ कर चूसने लगी. शबाना तो
जैसे पागल हो रही थी, उसकी गांद ज़ोर ज़ोर से ऊपर उठाती और एक आवाज़ के
साथ बेड पर गिर जाती, जैसे की वो अपनी गांद को बिस्तर पर पटक रही हो. फिर
उसने अचानक ताज़ीन के सिर को पकड़ा और अपनी चूत में और अंदर धकेल दिया,
उसकी गांद जैसे हवा में तार रही थी और ताज़ीन लगभग बैठी हुई उसकी चूत खा
रही थी - वो समझ गई अब शबाना झड़ने वाली है और उसने तेज़ी से अपना मुँह
निकाला और दो उंगलियाँ शबाना की चूत के एकदम भीतर तक घुसेड दी, उंगलियों
के दो तीन ज़बरदस्त झटकों के बाद शबाना की चूत से जैसे पर्नाला बह निकला.
पूरा बिस्तर उसके पानी से गीला हो गया. फिर ताज़ीन ने अपनी चूत को शबाना
की चूत पर रख दिया और ज़ोर ज़ोर से हिलने लगी, जैसे की वो शबाना को चोद
रही हो. दोनों की चूत एक दूसरे से रगड़ रही थी और ताज़ीन शबाना के ऊपर
चढ़ कर उसकी चुदाई कर रही थी, शबाना का भी बुरा हाल था और वो अपनी गंद
उठा उठा कर ताज़ीन का सहयोग कर रही थी. तभी ताज़ीन ने ज़ोर से आवाज़
निकाली और शबाना की चूत पर दबाव बढ़ा दिया - फिर तीन चार ज़ोरदार भारी
भरकम धक्के देकर वो शांत हो गयी. उसकी चूत का सारा पानी अब शबाना की चूत
को नहला रहा था.
फिर दोनों उसी हालत में सो गये.
अगले दिन शबाना और ताज़ीन नाश्ते के बाद बातें करने लगे. "भाभी सच कहूँ
तो बहोत मज़ा आया कल रात" "मुझे भी" "लेकिन अगर असली चीज़ मिलती तो शायद
और भी मज़ा आता" "क्यों दीदी, जीजाजी को बुलायें ?" आँख मारते हुए कहा
शबाना ने. "उनको छ्चोड़ो, उन्हें तो महीने में एक बार जोश आता है और वो
भी मेरे ठंडे होने से पहले बह जाता है. और जहाँ तक में परवेज़ को जानती
हूँ, वो किसी औरत को खुश नहीं कर सकता. तुमने भी तो इंतज़ाम किया होगा
अपने लिए" यह सुनकर शबाना चौंक गई, लेकिन कुच्छ कहा नहीं.
ताज़ीन ने चुप्पी तोड़ी "भाभी, अगर आपकी पहचान का कोई है तो उसे बुलाए
ना." सुनकर शबाना मन ही मन खुश हो गई. "ठीक है में बुलाती हूँ, लेकिन तुम
छुप कर देखना फिर मौका देख कर आ जाना"
शबाना के दरवाज़ा खोलते ही प्रताप उसपर टूट पड़ा. उसने शबाना को गोद में
उठाया और उसके होंठों को चूस्ते हुए उसे बिस्तर पर ले गया. शबाना ने
सिर्फ़ गाउन पहन रखा था. वो प्रताप का ही इंतेज़ार रही थी और पिच्छले
पंद्रह दिनों से सेक्स ना करने की वजह से जल्दी में भी थी..चुदाई करवाने
की जल्दी.
प्रताप ने उसे बिस्तर पर लिटाया और सीधे उसके गाउन में घुस गया, नीचे से.
अब शबाना आहें भर रही थी..उसकी चूत पर जैसे चींटियाँ चल रही हो...उसे
अपना गाउन उठा हुआ दिख रहा था और वो प्रताप के सर और हाथों के हिसाब से
उपर नीचे हो रहा था. प्रताप ने उसकी चूत को अपने मुँह में दबा रखा था और
उसकी जीभ ने जैसे शबाना की चूत में घमासान मचा दिया था. एकाएक शाना की
गंद ऊपर उठ गई, और उसने अपने गाउन को खींचा और अपने सर पर से उसे निकाल
कर फर्श पर फेंक दिया. उसके पैर अब भी बेड से नीच लटक रहे थे और प्रताप
बेड से नीचे बैठा हुआ उसकी चूत खा रहा था... शबाना उठा कर बैठ गई और
प्रताप ने अब उसकी चूत में उंगली घुसाइ - जैसे वो शबाना की चूत को खाली
रहने ही नहीं देना चाहता था. और शबाना के मम्मों को बेतहसह चूमने और
चूसने लगा. शबाना की आँखें बंद थी और वो मज़े ले रही थी..उसकी गंद रह रह
कर हिल जाती जैसे प्रताप की उंगली को अपनी चूत से खा जाना चाहती थी.
फिर उसने प्रताप के मुँह को उपर उठाया और अपने होंठ प्रताप के होंठों पर
रख दिए. उसे प्रताप के मुँह का स्वाद बहोत अच्छा लग रहा था. उसकी जीभ को
अपने मुँह में दबाकर वो उसे चूसे जा रही थी. प्रताप खड़ा हो गया. अब
शबाना की बारी थी, उसने बेड पर बैठे हुए ही प्रताप की बेल्ट उतारी,
प्रताप की पॅंट पर उसके लंड का उभार सॉफ नज़र आ रहा था. शबाना ने उस उभार
को मुँह में ले लिया और पॅंट की हुक खोल दी, फिर जैसे ही ज़िप खोली
प्रताप की पॅंट सीधे ज़मीन पर आ गिरी जिसे प्रताप ने अपने पैरों से निकाल
कर दूर धकेल दिया. प्रताप ने वी कट वाली अंडरवेर पहन रखी थी. शबाना ने
अंडरवेर नहीं निकाली, उसने प्रताप की अंडरवेर के साइड में से अंदर हाथ
डाल कर उसके लंड को अंडरवेर के बाहर खींच लिया. फिर उसने हमेशा की तरह
अपनी आँखें बंद की और लंड को अपने चेहरे पर सब जगह घुमाया फिराया और उसे
अच्छि तरह अपनी नाक के पास ले जाकर सूंघने लगी. उसे प्रताप के लंड की महक
मादक कर रही थी और वो मदहोश हुए जा रही थी. उसके चेहरे पर सब जगह प्रताप
के लंड से निकल रहा "प्रेकुं" (पानी) लग रहा था. शबाना को ऐसा करना
अच्च्छा लगता था. फिर उसने अपना मुँह खोला और लंड को अंदर ले लिया. फिर
बाहर निकाला और अपने चेहरे पर एकबार फिर उसे घुमाया. शबाना ने अपने मुँह
में काफ़ी थूक भर लिया था, और फिर उसने लंड के सुपरे पर से चमड़ी पीछे की
और उसे मुँह में ले लिया. प्रताप का लंड शबाना के मुँह में था और शबाना
अपनी जीभ में लपेट लपेट कर उसे चूसे जा रही थी...ऊपर से नीचे तक, सुपरे
से जड़ तक..उसके होंठों से लेकर गले तक सिर्फ़ एक ही चीज़ थी, लंड. और वो
मस्त हो चुकी थी..उसके एक हाथ की उंगलियाँ उसकी चूत पर थिरक रही थी और
दूसरा हाथ प्रताप के लंड को पकड़ कर उसे मुँह में खींच रहा था. फिर शबाना
ने प्रताप की गोटियों को खींचा, जो कि अंदर घुस गई थी एक्सेयैटमेंट की
वजह से. आह गोतिया बाहर आ गई थी और शबाना ने अपने मुँह से लंड को निकाला
और उसे ऊपर कर दिया. फिर प्रताप की गोटियों को मुँह में लिया और बेतहाशा
चूसने लगी. प्रताप की सिसकारिया पूरे कमरे में गूँज रही थी और अब उसके
लंड को घुसना था, शबाना की चूत में. दोस्तो कैसी लग रही है कहानी आप सबको
ज़रूर बताना आगे की कहानी जानने के लिए इस कहानी अगले पार्ट ज़रूर पढ़े
आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः................
सबाना और ताजीन की चुदाई -2
gataank se aage............
Ab Pratap ne apna lund Shabana ke munh se nikala aur Shabana ki choot
chhodkar uske honthon ko choosne laga. Shabana jhad chuki thi lekin
lund ki pyaas use barabar pagal kiye hue thi. Ab woh bilkul nangi
Pratap ke neeche leti hui thi, aur Pratap bhi ekdum nanga uske oopar
leta hua tha, Pratap ka lund uski chut par thokar maar raha tha aur
Shabana apni gaand utha utha kar Pratap ke lund ko khane ki firaak
mein thi. Pratap ab uske taangon ke beech baith gaya aur uski tangon
ko utha kar apna lund uski choot par ragadne laga. shabana aahein bhar
rahi thi, apne sar ke neeche rakhe takiye ko apne haathon mein pakad
kar masal rahi thi. Uski gand rah rah kar uth jaati thi, Pratap ke
lund ko kha jaane ke liye, magar Pratap to jaise use tadpa tadpa kar
chodna chahta tha, woh uski choot par apne lund ko ragde ja raha tha
oopar se neeche. Ab Shabana se raha nahin ja raha tha - aseem anand ki
wajah se uski aankhein band ho chuki thi aur munh se siskariyan chhoot
rahi thi. Pratap ka lund dheere dheere phisal raha tha, phisalta hua
woh Shabana ki choot mein ghus jaata aur bahar nikal jaata - ab Pratap
use chodna shuru kar chuka tha. halke halke dhakke lag rahe the aur
shabana bhi apni gaand utha utha kar lund kha rahi thi. dheere dheere
dhakkon ki raftaar badh rahi thi aur Shabana ki siskariyon se sara
kamra goonj raha tha...Pratap ka lund koyle ke engine ke tyre par lagi
patti ki tarah Shabana ki choot ki gahraai naap raha tha. pratap ki
chudaai mein ek lay thi aur ab dhakkon ne raftaar pakad li thi. Pratap
ka lund tezi se andar bahar ho raha tha aur Shabana bhi pagal ho chuki
thi, woh apni gand utha utha kar Pratap ke lund ko apni choot mein
dabakar pees rahi thi - achanak Shabana ne Pratap ko kaskar pakad liya
aur apne donon pair Pratap ki kamar par baandh kar jhool gai, Pratap
samajh gaya ki yeh phir jhadne waali hai - Pratap ne apne dhakke aur
tez kar diye - uska lund Shabana ki choot mein ekdum dhansta chala
jaata, aur, bahar aakar aur tezi se ghus jaata. Shabana ki choot se
phawwara chhoot gaya aur Pratap ke lund ne bhi shabana ki choot mein
poora pani udel diya...
Pratap aur Shabana ab jab bhi mauka milta ek dusre ke jism ki bhukh
mita dete the.
Shabana bahot dinon se Pratap ka lund nahin le pai thi. Parvez ki
behan Tazeen ghar aai hui thi. Woh pure din ghar par hi rahti thi, jis
wajah se na to shabana kahin ja pati thi aur na hi Pratap ko bula
sakti thi.
"Shabana mein do dinon ke liye bahar ja raha hun, kuchh zaroori kaam
hai, Tazeen ghar par nahin hoti to tumhein bhi le chalta". "Koi baat
nahin, aap apna kaam nipta kar aaiye". Shabana ko Parvez ke jane ki
koi parwah nahin thi, aur uske saath jane ki ichchha bhi nahin thi.
Woh to Tazeen ko bhi bhaga dena chahti thi, jiski wajah se use Pratap
ka saath nahin mil pa raha tha, poore pandrah din se. Aur Tazeen abhi
aur 15 din rukne wali thi.
Raat ko Tazeen aur Shabana bedroom mein bistar par lete hue film dekh
rahe the. Shabana ko neend aane lagi thi, aur woh gown pehan kar so
gai. Sone se pahle Shabana ne light band karke dim light chalu kar di
thi. Tazeen kisi channel par English film dekh rahi thi. Film mein
kaafi khulapan aur sex ke scenes the.
Neend mein Shabana ne ek ghutna upar uthaya to anayas hi uska gown
fisal kar ghutne ke upar tak sarak gaya. TV aur dim light ki roshni
mein uski dudhiya rang ki jaangh chamak rahi thi. ab Tazeen ka dhyan
Film mein na hokar Shabana ke jism par tha, aur rah rah kar uski nazar
Shabana ke gore jism par tik jaati thi. Shabana ki khoobsurat
jaanghein use madak lag rahi thi. Kuchh to Film ke sex scenes ka asar
tha aur kuchh Shabana ki khoobsurti ka. Tazeen ne TV band kiya aur
wahin Shabana ke paas so gai. Thodi der tak bina koi harkat kiye soi
rahi, phir usne apna haath Shabana ke uthe hue ghutne wali jaangh par
rakh diya. Haath rakh kar woh aise hi leti rahi, ekdum sthir. jab
Shabana ne koi harkat nahi ki, to Tazeen ne apne haath ko Shabana ki
jaangh par phirana shuru kar diya. Haath bhi itna halka ki sirf
ungliyan hi Shabana ko chhu rahi thi, hatheli bilkul bhi nahin. Phir
usne halke haathon se Shabana ke gown ko poora neeche kar diya, ab
Shabana ki panty bhi saaf nazar aa rahi thi. Tazeen ki ungliyan ab
Shabana ke ghutnon se hoti hui uski panty tak jaati aur phir wapas
oopar ghutnon par aa jati. Yehi sab takreeban 2-3 minute tak chalta
raha. Jab Shabana ne koi harkat nahin ki, to Tazeen ne Shabana ki
panty ko chhuna shuru kar diya, lekin tarika wohi tha. Ghutnon se
panty tak ungliyan parade kar rahi thi. Ab tazeen dheere se uthi aur
usne apna gown aur bra utar diya, aur sirf panty mein Shabana ke paas
baith gai. Shabana ke gown mein aage ki taraf button lage hue they,
Tazeen ne bilkul halke haathon se button khol diye. Phir gown ko
hataya to Shabana ke gore chitte mammay nazar aane lage. Ab Tazeen ke
donon haath vyast ho gaye the, uske ek haath ki ungliyan Shabana ki
jaangh aur doosre haath ki ungliyan Shabana ke mammon ko sehla rahi
thi. Uski ungliyan ab Shabana ko kisi mor-pankh ki tarah lag rahi thi.
Jee haan, Shabana uth chuki thi, lekin use achchha lag raha tha isliye
bina harkat leti rahi. Woh is khel ko rokna nahin chahti thi.
Ab Tazeen ki himmat badh gai thi, usne jhukkar Shabana ki chuchi ko
kiss kiya. Phir uthi, aur Shabana ke pairon ke beech jakar baith gai.
Shabana ko apni jaangh par garm hawa mehsoos ho rahi thi, woh samajh
gai Tazeen ki saansein hain. Woh Shabana ki jaangh ko apne honthon se
chhu rahi thi, bilkul usi tarah jaise woh apni ungliyan phira rahi
thi. Ab wohi saansein Shabana ko apni chaddi par mehsoos ho rahi thi,
lekin use neeche dikhai nahin de raha tha. Waise bhi usne abhi tak
aankhein nahin kholi thi. Ab Tazeen ne apni jeebh bahar nikali aur use
Shabana ki panty mein se jhaank rahi garmagaram choot ki daraar par
tika di. Kuchh der aise hi usne apni jeebh ko panty par oopar neeche
phiraya. Shabana ki chaddi Tazeen ke thook se aur, choot se nikal rahe
paani se bheegne lagi thi. Achanak Tazeen ne Shabana ki panty ko side
mein kiya aur Shabana ki nangi choot par apne honth rakh diye. Shabana
se aur bardaasht nahin hua aur usne apni gand utha di, aur donon
haathon se Tazeen ke sir ko pakad kar uska munh apni choot se chipka
liya. Tazeen ki to man ki muraad poori ho gai thi !! ab koi dar nahin
tha, woh janti thi ki ab Shabana sabkuchh karne ko taiyar hai - aur
aaj ki raat rangeen hone wali thi.
Tazeen ne apna munh uthaya aur Shabana ki chaddi ko donon haathon mein
pakad kar kheenchne lagi, Shabana ne bhi apni gaand utha kar uski
madad ki. Phir Shabana ne apna gown bhi utar phenka aur Tazeen se
lipat gai. Tazeen ne bhi apni panty utari aur ab donon bilkul nangi ek
dusre ke honth chus rahi thi. donon ke mammay ek doosre se ulajh rahe
the, Tazeen apni kamar ko jhatka dekar Shabana ki chut par apni chut
laga rahi thi, jaise ki use chod rahi ho. Shabana bhi sex ke nashe
mein choor ho chuki thi aur usne Tazeen ki chut mein ek ungli ghusa
di. Ab Tazeen ne Shabana ko neeche gira diya aur uske oopar chadh gai.
Tazeen ne Shabana ke mammon ko chusna shuru kiya, uske haath Shabana
ke jism se khel rahe the. Shabana apne mammay chuswane ke baad Tazeen
ke oopar aa gayi aur neeche utarti chali gai, Tazeen ke mummon ko
chooskar uski nabhi se hote hue uski jeebh Tazeen ki chut mein ghus
gai. Tazeen bhi apni gaand utha utha kar Shabana ka saath de rahi thi.
Kafi der tak Tazeen ki choot chusne ke baad Shabana Tazeen ke paas aa
kar late gai aur uske honth chusne lagi ab Tazeen ne Shabana ke mammon
ko dabaya aur unhen apne munh mein le liya - Tazeen ka ek haath
Shabana ke mammon par aur doosra uski choot par tha. Uski ungliyan
Shabana ki chut ke andar khalbali macha rahi thi, Shabana ekdum nidhal
hokar bistar par gir padi aur uske munh se ajeeb ajeeb awazein aane
lagi. Tabhi Tazeen neeche ki taraf gai aur Shabana ki chut ko choosna
shuru kar diya, apne donon haathon se usne chut ko phailaya aur usmein
dikh rahe daane ko munh mein le liya aur uspar jeebh ragad ragad kar
chusne lagi. Shabana to jaise pagal ho rahi thi, uski gaand zor zor se
oopar uthti aur ek aawaz ke sath bed par gir jati, jaise ki woh apni
gaand ko bistar par patak rahi ho. Phir usne achanak Tazeen ke sir ko
pakda aur apni chut mein aur andar dhakel diya, uski gaand jaise hawa
mein tair rahi thi aur Tazeen lagbhag baithi hui uski chut kha rahi
thi - woh samajh gai ab Shabana jhadne wali hai aur usne tezi se apna
munh nikala aur do ungliyan Shabana ki choot ke ekdum bheetar tak
ghused di, Ungliyon ke do teen zabardast jhatkon ke baad Shabana ki
chut se jaise parnala beh nikla. Poora bistar uske paani se geela ho
gaya. Phir Tazeen ne apni chut ko Shabana ki chut par rakh diya aur
zor zor se hilane lagi, jaise ki woh Shabana ko chod rahi ho. Donon ki
choot ek doosre se ragad rahi thi aur Tazeen Shabana ke oopar chadh
kar uski chudai kar rahi thi, Shabana ka bhi bura haal tha aur woh
apni gand utha utha kar Tazeen ka sahyog kar rahi thi. Tabhi Tazeen ne
zor se aawaz nikali aur Shabana ki chut par dabav badha diya - phir
teen chaar zordaar bhari bharkam dhakke dekar woh shant ho gayi. Uski
choot ka saara pani ab Shabana ki chut ko nehla raha tha.
Phir donon usi halat mein so gaye.
Agle din Shabana aur Tazeen nashte ke baad baatein karne lage. "bhabhi
sach kahoon to bahot maza aaya kal raat" "mujhe bhi" "lekin agar asli
cheez milti to shayad aur bhi mazaa aata" "kyon didi, jijaji ko
bulayein ?" aankh maarte hue kaha Shabana ne. "unko chhodo, unhein to
mahine mein ek baar josh aata hai aur woh bhi mere thande hone se
pahle beh jaata hai. Aur jahan tak mein Parvez ko janti hun, woh kisi
aurat ko khush nahin kar sakta. tumne bhi to intezaam kiya hoga apne
liye" Yeh sunkar Shabana chaunk gai, lekin kuchh kaha nahin.
Tazeen ne chuppi todi "bhabhi, agar aapki pehchan ka koi hai to use
bulaiye na." Sunkar Shabana man hi man khush ho gai. "Theek hai mein
bulati hun, lekin tum chhup kar dekhna phir mauka dekh kar aa jana"
Shabana ke darwaza kholte hi Pratap uspar toot pada. Usne Shabana ko
god mein uthaya aur uske honthon ko chooste hue use bistar par le
gaya. Shabana ne sirf gown pehan rakha tha. Woh Pratap ka hi intezar
rahi thi aur pichhle pandrah dinon se sex na karne ki wajah se jaldi
mein bhi thi..chudai karwane ki jaldi.
Pratap ne use bistar par litaya aur seedhe uske gown mein ghus gaya,
neeche se. Ab shabana aahein bhar rahi thi..uski chut par jaise
cheentiyan chal rahi ho...use apna gown utha hua dikh raha tha aur woh
Pratap ke sar aur haathon ke hisaab se upar neeche ho raha tha. Pratap
ne uski choot ko apne munh mein daba rakha tha aur uski jeebh ne jaise
Shaban ki chut mein ghamasan macha diya tha. Ekaek Shana ki gand oopar
uth gai, aur usne apne gown ko kheencha aur apne sar par se use nikal
kar farsh par phenk diya. Uske pair ab bhi bed se neech latak rahe the
aur Pratap bed se neeche baitha hua uski choot kha raha tha... shabana
utha kar baith gai aur Pratap ne ab uski chut mein ungli ghusai -
jaise woh Shabana ki chut ko khali rahne hi nahin dena chahta tha. Aur
Shabana ke mammon ko betahasah chumne aur choosne laga. Shabana ki
aankhein band thi aur woh mazay lay rahi thi..uski gand rah rah kar
hil jati jaise Pratap ki ungli ko apni chut se kha jana chahti thi.
Phir usne Pratap ke munh ko upar uthaya aur apne honth Pratap ke
honthon par rakh diye. Use Pratap ke munh ka swad bahot achchha lag
raha tha. Uski jeebh ko apne munh mein dabakar woh use choose ja rahi
thi. Pratap khada ho gaya. Ab Shabana ki baari thi, usne bed par
baithe hue hi Pratap ki belt utari, Pratap ki pant par uske lund ka
ubhar saaf nazar aa raha tha. Shabana ne us ubhar ko munh mein le liya
aur pant ki hook khol di, phir jaise hi zip kholi Pratap ki pant
seedhe zameen par aa giri jise Pratap ne apne pairon se nikal kar door
dhakel diya. Pratap ne V cut wali underwear pehan rakhi thi. Shabana
ne underwear nahin nikali, usne Pratap ki underwear ke side mein se
andar haath daal kar uske lund ko underwear ke bahar kheench liya.
Phir usne hamesha ki tarah apni aankhein band ki aur lund ko apne
chehre par sab jagah ghumaya phiraya aur use achchhi tarah apne naak
ke paas le jakar soonghne lagi. Use Pratap ke lund ki mehak madak kar
rahi thi aur woh madhosh hue ja rahi thi. Uske chehre par sab jagah
Pratap ke lund se nikal raha "precum" (paani) lag raha tha. Shabana ko
aisa karna achchha lagta tha. Phir usne apna munh khola aur lund ko
andar le liya. Phir bahar nikala aur apne chehre par ekbaar phir use
ghumaya. Shabana ne apne munh mein kafi thook bhar liya tha, aur phir
usne lund ke supare par se chamdi peechhe ki aur use munh mein le
liya. Pratap ka lund Shabana ke munh mein tha aur Shabana apni jeebh
mein lapet lapet kar use choose ja rahi thi...oopar se neeche tak,
Supare se jad tak..uske honthon se lekar gale tak sirf ek hi cheez
thi, lund. Aur woh mast ho chuki thi..uske ek haath ki ungliyan uski
choot par thirak rahi thi aur doosra haath Pratap ke lund ko pakad kar
use munh mein kheench raha tha. Phir shabana ne Pratap ki gotiyon ko
kheencha, jo ki andar ghus gai thi exceitement ki wajah se. Ah gotiya
bahar aa gai thi aur Shabana ne apne munh se lund ko nikala aur use
oopar kar diya. Phir Pratap ki gotiyon ko munh mein liya aur betahasha
choosne lagi. Pratap ki siskariya poore kamre mein goonj rahi thi aur
ab uske lund ko ghusna tha, Shabana ki choot mein.
kramashah................
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