Saturday, February 26, 2011

हिंदी सेक्सी कहानियाँ सबाना और ताजीन की चुदाई -2

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

सबाना और ताजीन की चुदाई  -2
गतान्क से आगे............
अब प्रताप ने अपना लंड शबाना के मुँह से निकाला और शबाना की चूत छ्चोड़कर
उसके होंठों को चूसने लगा. शबाना झाड़ चुकी थी लेकिन लंड की प्यास उसे
बराबर पागल किए हुए थी. अब वो बिल्कुल नंगी प्रताप के नीचे लेटी हुई थी,
और प्रताप भी एकदम नंगा उसके ऊपर लेटा हुआ था, प्रताप का लंड उसकी चूत पर
ठोकर मार रहा था और शबाना अपनी गांद उठा उठा कर प्रताप के लंड को खाने की
फिराक में थी. प्रताप अब उसके टाँगों के बीच बैठ गया और उसकी टाँगों को
उठा कर अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ने लगा. शबाना आहें भर रही थी, अपने सर
के नीचे रखे तकिये को अपने हाथों में पकड़ कर मसल रही थी. उसकी गंद रह रह
कर उठ जाती थी, प्रताप के लंड को खा जाने के लिए, मगर प्रताप तो जैसे उसे
तडपा तडपा कर चोदना चाहता था, वो उसकी चूत पर अपने लंड को रगडे जा रहा था
ऊपर से नीचे. अब शबाना से रहा नहीं जा रहा था - असीम आनंद की वजह से उसकी
आँखें बंद हो चुकी थी और मुँह से सिसकारियाँ छ्छूट रही थी. प्रताप का लंड
धीरे धीरे फिसल रहा था, फिसलता हुआ वो शबाना की चूत में घुस जाता और बाहर
निकल जाता - अब प्रताप उसे चोदना शुरू कर चुका था. हल्के हल्के धक्के लग
रहे थे और शबाना भी अपनी गांद उठा उठा कर लंड खा रही थी. धीरे धीरे
धक्कों की रफ़्तार बढ़ रही थी और शबाना की सिसकारियों से सारा कमरा गूँज
रहा था...प्रताप का लंड कोयले के एंजिन के टाइयर पर लगी पट्टी की तरह
शबाना की चूत की गहराई नाप रहा था. प्रताप की चुदाई में एक लय थी और अब
धक्कों ने रफ़्तार पकड़ ली थी. प्रताप का लंड तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा
था और शबाना भी पागल हो चुकी थी, वो अपनी गंद उठा उठा कर प्रताप के लंड
को अपनी चूत में दबाकर पीस रही थी - अचानक शबाना ने प्रताप को कसकर पकड़
लिया और अपने दोनों पैर प्रताप की कमर पर बाँध कर झूल गई, प्रताप समझ गया
कि यह फिर झड़ने वाली है - प्रताप ने अपने धक्के और तेज़ कर दिए - उसका
लंड शबाना की चूत में एकदम धंसता चला जाता, और, बाहर आकर और तेज़ी से घुस
जाता. शबाना की चूत से फव्वारा छ्छूट गया और प्रताप के लंड ने भी शबाना
की चूत में पूरा पानी उडेल दिया...

प्रताप और शबाना अब जब भी मौका मिलता एक दूसरे के जिस्म की भूख मिटा देते थे.

शबाना बहोत दिनों से प्रताप का लंड नहीं ले पाई थी. परवेज़ की बेहन
ताज़ीन घर आई हुई थी. वो पूरे दिन घर पर ही रहती थी, जिस वजह से ना तो
शबाना कहीं जा पाती थी और ना ही प्रताप को बुला सकती थी.

"शबाना में दो दिनों के लिए बाहर जा रहा हूँ, कुच्छ ज़रूरी काम है,
ताज़ीन घर पर नहीं होती तो तुम्हें भी ले चलता". "कोई बात नहीं, आप अपना
काम निपटा कर आइए". शबाना को परवेज़ के जाने की कोई परवाह नहीं थी, और
उसके साथ जाने की इच्च्छा भी नहीं थी. वो तो ताज़ीन को भी भगा देना चाहती
थी, जिसकी वजह से उसे प्रताप का साथ नहीं मिल पा रहा था, पूरे पंद्रह दिन
से. और ताज़ीन अभी और 15 दिन रुकने वाली थी.

रात को ताज़ीन और शबाना बेडरूम में बिस्तर पर लेटे हुए फिल्म देख रहे थे.
शबाना को नींद आने लगी थी, और वो गाउन पहन कर सो गई. सोने से पहले शबाना
ने लाइट बंद करके डिम लाइट चालू कर दी थी. ताज़ीन किसी चॅनेल पर इंग्लीश
फिल्म देख रही थी. फिल्म में काफ़ी खुलापन और सेक्स के सीन्स थे.

नींद में शबाना ने एक घुटना उपर उठाया तो अनायास ही उसका गाउन फिसल कर
घुटने के उपर तक सरक गया. टीवी और डिम लाइट की रोशनी में उसकी दूधिया रंग
की जाँघ चमक रही थी. अब ताज़ीन का ध्यान फिल्म में ना होकर शबाना के
जिस्म पर था, और रह रह कर उसकी नज़र शबाना के गोरे जिस्म पर टिक जाती थी.
शबाना की खूबसूरत जांघें उसे मादक लग रही थी. कुच्छ तो फिल्म के सेक्स
सीन्स का असर था और कुच्छ शबाना की खूबसूरती का. ताज़ीन ने टीवी बंद किया
और वहीं शबाना के पास सो गई. थोड़ी देर तक बिना कोई हरकत किए सोई रही,
फिर उसने अपना हाथ शबाना के उठे हुए घुटने वाली जाँघ पर रख दिया. हाथ रख
कर वो ऐसे ही लेटी रही, एकदम स्थिर. जब शबाना ने कोई हरकत नही की, तो
ताज़ीन ने अपने हाथ को शबाना की जाँघ पर फिराना शुरू कर दिया. हाथ भी
इतना हल्का कि सिर्फ़ उंगलियाँ ही शबाना को च्छू रही थी, हथेली बिल्कुल
भी नहीं. फिर उसने हल्के हाथों से शबाना के गाउन को पूरा नीचे कर दिया,
अब शबाना की पॅंटी भी सॉफ नज़र आ रही थी. ताज़ीन की उंगलियाँ अब शबाना के
घुटनों से होती हुई उसकी पॅंटी तक जाती और फिर वापस ऊपर घुटनों पर आ
जाती. यही सब तकरीबन 2-3 मिनिट तक चलता रहा. जब शबाना ने कोई हरकत नहीं
की, तो ताज़ीन ने शबाना की पॅंटी को छुना शुरू कर दिया, लेकिन तरीका वोही
था. घुटनों से पॅंटी तक उंगलियाँ परदे कर रही थी. अब ताज़ीन धीरे से उठी
और उसने अपना गाउन और ब्रा उतार दिया, और सिर्फ़ पॅंटी में शबाना के पास
बैठ गई. शबाना के गाउन में आगे की तरफ बटन लगे हुए थे, ताज़ीन ने बिल्कुल
हल्के हाथों से बटन खोल दिए. फिर गाउन को हटाया तो शबाना के गोरे चिट
मम्मे नज़र आने लगे. अब ताज़ीन के दोनों हाथ व्यस्त हो गये थे, उसके एक
हाथ की उंगलियाँ शबाना की जाँघ और दूसरे हाथ की उंगलियाँ शबाना के मम्मों
को सहला रही थी. उसकी उंगलियाँ अब शबाना को किसी मोर-पंख की तरह लग रही
थी. जी हाँ दोस्तो, शबाना उठ चुकी थी, लेकिन उसे अच्च्छा लग रहा था इसलिए
बिना हरकत लेटी रही. वो इस खेल को रोकना नहीं चाहती थी.


अब ताज़ीन की हिम्मत बढ़ गई थी, उसने झुककर शबाना की चुचि को किस किया.
फिर उठी, और शबाना के पैरों के बीच जाकर बैठ गई. शबाना को अपनी जाँघ पर
गर्म हवा महसूस हो रही थी, वो समझ गई ताज़ीन की साँसें हैं. वो शबाना की
जाँघ को अपने होंठों से च्छू रही थी, बिल्कुल उसी तरह जैसे वो अपनी
उंगलियाँ फिरा रही थी. अब वोही साँसें शबाना को अपनी चड्डी पर महसूस हो
रही थी, लेकिन उसे नीचे दिखाई नहीं दे रहा था. वैसे भी उसने अभी तक आँखें
नहीं खोली थी. अब ताज़ीन ने अपनी जीभ बाहर निकाली और उसे शबाना की पॅंटी
में से झाँक रही गरमागरम चूत की दरार पर टिका दी. कुच्छ देर ऐसे ही उसने
अपनी जीभ को पॅंटी पर ऊपर नीचे फिराया. शबाना की चड्डी ताज़ीन के थूक से
और, चूत से निकल रहे पानी से भीगने लगी थी. अचानक ताज़ीन ने शबाना की
पॅंटी को साइड में किया और शबाना की नंगी चूत पर अपने होंठ रख दिए. शबाना
से और बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपनी गंद उठा दी, और दोनों हाथों से
ताज़ीन के सिर को पकड़ कर उसका मुँह अपनी चूत से चिपका लिया. ताज़ीन की
तो मन की मुराद पूरी हो गई थी !! अब कोई डर नहीं था, वो जानती थी कि अब
शबाना सबकुच्छ करने को तैयार है - और आज की रात रंगीन होने वाली थी.

ताज़ीन ने अपना मुँह उठाया और शबाना की चड्डी को दोनों हाथों में पकड़ कर
खींचने लगी, शबाना ने भी अपनी गांद उठा कर उसकी मदद की. फिर शबाना ने
अपना गाउन भी उतार फेंका और ताज़ीन से लिपट गई. ताज़ीन ने भी अपनी पॅंटी
उतारी और अब दोनों बिल्कुल नंगी एक दूसरे के होंठ चूस रही थी. दोनों के
मम्मे एक दूसरे से उलझ रहे थे, ताज़ीन अपनी कमर को झटका देकर शबाना की
चूत पर अपनी चूत लगा रही थी, जैसे की उसे चोद रही हो. शबाना भी सेक्स के
नशे में चूर हो चुकी थी और उसने ताज़ीन की चूत में एक उंगली घुसा दी. अब
ताज़ीन ने शबाना को नीचे गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गई. ताज़ीन ने शबाना
के मम्मों को चूसना शुरू किया, उसके हाथ शबाना के जिस्म से खेल रहे थे.
शबाना अपने मम्मे चुसवाने के बाद ताज़ीन के ऊपर आ गयी और नीचे उतरती चली
गई, ताज़ीन के मुम्मों को चूस्कर उसकी नाभि से होते हुए उसकी जीभ ताज़ीन
की चूत में घुस गई. ताज़ीन भी अपनी गांद उठा उठा कर शबाना का साथ दे रही
थी. काफ़ी देर तक ताज़ीन की चूत चूसने के बाद शबाना ताज़ीन के पास आ कर
लेट गई और उसके होंठ चूसने लगी अब ताज़ीन ने शबाना के मम्मों को दबाया और
उन्हें अपने मुँह में ले लिया - ताज़ीन का एक हाथ शबाना के मम्मों पर और
दूसरा उसकी चूत पर था. उसकी उंगलियाँ शबाना की चूत के अंदर खलबली मचा रही
थी, शबाना एकदम निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी और उसके मुँह से अजीब अजीब
आवाज़ें आने लगी. तभी ताज़ीन नीचे की तरफ गई और शबाना की चूत को चूसना
शुरू कर दिया, अपने दोनों हाथों से उसने चूत को फैलाया और उसमें दिख रहे
दाने को मुँह में ले लिया और उसपर जीभ रगड़ रगड़ कर चूसने लगी. शबाना तो
जैसे पागल हो रही थी, उसकी गांद ज़ोर ज़ोर से ऊपर उठाती और एक आवाज़ के
साथ बेड पर गिर जाती, जैसे की वो अपनी गांद को बिस्तर पर पटक रही हो. फिर
उसने अचानक ताज़ीन के सिर को पकड़ा और अपनी चूत में और अंदर धकेल दिया,
उसकी गांद जैसे हवा में तार रही थी और ताज़ीन लगभग बैठी हुई उसकी चूत खा
रही थी - वो समझ गई अब शबाना झड़ने वाली है और उसने तेज़ी से अपना मुँह
निकाला और दो उंगलियाँ शबाना की चूत के एकदम भीतर तक घुसेड दी, उंगलियों
के दो तीन ज़बरदस्त झटकों के बाद शबाना की चूत से जैसे पर्नाला बह निकला.
पूरा बिस्तर उसके पानी से गीला हो गया. फिर ताज़ीन ने अपनी चूत को शबाना
की चूत पर रख दिया और ज़ोर ज़ोर से हिलने लगी, जैसे की वो शबाना को चोद
रही हो. दोनों की चूत एक दूसरे से रगड़ रही थी और ताज़ीन शबाना के ऊपर
चढ़ कर उसकी चुदाई कर रही थी, शबाना का भी बुरा हाल था और वो अपनी गंद
उठा उठा कर ताज़ीन का सहयोग कर रही थी. तभी ताज़ीन ने ज़ोर से आवाज़
निकाली और शबाना की चूत पर दबाव बढ़ा दिया - फिर तीन चार ज़ोरदार भारी
भरकम धक्के देकर वो शांत हो गयी. उसकी चूत का सारा पानी अब शबाना की चूत
को नहला रहा था.

फिर दोनों उसी हालत में सो गये.

अगले दिन शबाना और ताज़ीन नाश्ते के बाद बातें करने लगे. "भाभी सच कहूँ
तो बहोत मज़ा आया कल रात" "मुझे भी" "लेकिन अगर असली चीज़ मिलती तो शायद
और भी मज़ा आता" "क्यों दीदी, जीजाजी को बुलायें ?" आँख मारते हुए कहा
शबाना ने. "उनको छ्चोड़ो, उन्हें तो महीने में एक बार जोश आता है और वो
भी मेरे ठंडे होने से पहले बह जाता है. और जहाँ तक में परवेज़ को जानती
हूँ, वो किसी औरत को खुश नहीं कर सकता. तुमने भी तो इंतज़ाम किया होगा
अपने लिए" यह सुनकर शबाना चौंक गई, लेकिन कुच्छ कहा नहीं.

ताज़ीन ने चुप्पी तोड़ी "भाभी, अगर आपकी पहचान का कोई है तो उसे बुलाए
ना." सुनकर शबाना मन ही मन खुश हो गई. "ठीक है में बुलाती हूँ, लेकिन तुम
छुप कर देखना फिर मौका देख कर आ जाना"

शबाना के दरवाज़ा खोलते ही प्रताप उसपर टूट पड़ा. उसने शबाना को गोद में
उठाया और उसके होंठों को चूस्ते हुए उसे बिस्तर पर ले गया. शबाना ने
सिर्फ़ गाउन पहन रखा था. वो प्रताप का ही इंतेज़ार रही थी और पिच्छले
पंद्रह दिनों से सेक्स ना करने की वजह से जल्दी में भी थी..चुदाई करवाने
की जल्दी.

प्रताप ने उसे बिस्तर पर लिटाया और सीधे उसके गाउन में घुस गया, नीचे से.
अब शबाना आहें भर रही थी..उसकी चूत पर जैसे चींटियाँ चल रही हो...उसे
अपना गाउन उठा हुआ दिख रहा था और वो प्रताप के सर और हाथों के हिसाब से
उपर नीचे हो रहा था. प्रताप ने उसकी चूत को अपने मुँह में दबा रखा था और
उसकी जीभ ने जैसे शबाना की चूत में घमासान मचा दिया था. एकाएक शाना की
गंद ऊपर उठ गई, और उसने अपने गाउन को खींचा और अपने सर पर से उसे निकाल
कर फर्श पर फेंक दिया. उसके पैर अब भी बेड से नीच लटक रहे थे और प्रताप
बेड से नीचे बैठा हुआ उसकी चूत खा रहा था... शबाना उठा कर बैठ गई और
प्रताप ने अब उसकी चूत में उंगली घुसाइ - जैसे वो शबाना की चूत को खाली
रहने ही नहीं देना चाहता था. और शबाना के मम्मों को बेतहसह चूमने और
चूसने लगा. शबाना की आँखें बंद थी और वो मज़े ले रही थी..उसकी गंद रह रह
कर हिल जाती जैसे प्रताप की उंगली को अपनी चूत से खा जाना चाहती थी.

फिर उसने प्रताप के मुँह को उपर उठाया और अपने होंठ प्रताप के होंठों पर
रख दिए. उसे प्रताप के मुँह का स्वाद बहोत अच्छा लग रहा था. उसकी जीभ को
अपने मुँह में दबाकर वो उसे चूसे जा रही थी. प्रताप खड़ा हो गया. अब
शबाना की बारी थी, उसने बेड पर बैठे हुए ही प्रताप की बेल्ट उतारी,
प्रताप की पॅंट पर उसके लंड का उभार सॉफ नज़र आ रहा था. शबाना ने उस उभार
को मुँह में ले लिया और पॅंट की हुक खोल दी, फिर जैसे ही ज़िप खोली
प्रताप की पॅंट सीधे ज़मीन पर आ गिरी जिसे प्रताप ने अपने पैरों से निकाल
कर दूर धकेल दिया. प्रताप ने वी कट वाली अंडरवेर पहन रखी थी. शबाना ने
अंडरवेर नहीं निकाली, उसने प्रताप की अंडरवेर के साइड में से अंदर हाथ
डाल कर उसके लंड को अंडरवेर के बाहर खींच लिया. फिर उसने हमेशा की तरह
अपनी आँखें बंद की और लंड को अपने चेहरे पर सब जगह घुमाया फिराया और उसे
अच्छि तरह अपनी नाक के पास ले जाकर सूंघने लगी. उसे प्रताप के लंड की महक
मादक कर रही थी और वो मदहोश हुए जा रही थी. उसके चेहरे पर सब जगह प्रताप
के लंड से निकल रहा "प्रेकुं" (पानी) लग रहा था. शबाना को ऐसा करना
अच्च्छा लगता था. फिर उसने अपना मुँह खोला और लंड को अंदर ले लिया. फिर
बाहर निकाला और अपने चेहरे पर एकबार फिर उसे घुमाया. शबाना ने अपने मुँह
में काफ़ी थूक भर लिया था, और फिर उसने लंड के सुपरे पर से चमड़ी पीछे की
और उसे मुँह में ले लिया. प्रताप का लंड शबाना के मुँह में था और शबाना
अपनी जीभ में लपेट लपेट कर उसे चूसे जा रही थी...ऊपर से नीचे तक, सुपरे
से जड़ तक..उसके होंठों से लेकर गले तक सिर्फ़ एक ही चीज़ थी, लंड. और वो
मस्त हो चुकी थी..उसके एक हाथ की उंगलियाँ उसकी चूत पर थिरक रही थी और
दूसरा हाथ प्रताप के लंड को पकड़ कर उसे मुँह में खींच रहा था. फिर शबाना
ने प्रताप की गोटियों को खींचा, जो कि अंदर घुस गई थी एक्सेयैटमेंट की
वजह से. आह गोतिया बाहर आ गई थी और शबाना ने अपने मुँह से लंड को निकाला
और उसे ऊपर कर दिया. फिर प्रताप की गोटियों को मुँह में लिया और बेतहाशा
चूसने लगी. प्रताप की सिसकारिया पूरे कमरे में गूँज रही थी और अब उसके
लंड को घुसना था, शबाना की चूत में. दोस्तो कैसी लग रही है कहानी आप सबको
ज़रूर बताना आगे की कहानी जानने के लिए इस कहानी अगले पार्ट ज़रूर पढ़े
आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः................

सबाना और ताजीन की चुदाई  -2
gataank se aage............
Ab Pratap ne apna lund Shabana ke munh se nikala aur Shabana ki choot
chhodkar uske honthon ko choosne laga. Shabana jhad chuki thi lekin
lund ki pyaas use barabar pagal kiye hue thi. Ab woh bilkul nangi
Pratap ke neeche leti hui thi, aur Pratap bhi ekdum nanga uske oopar
leta hua tha, Pratap ka lund uski chut par thokar maar raha tha aur
Shabana apni gaand utha utha kar Pratap ke lund ko khane ki firaak
mein thi. Pratap ab uske taangon ke beech baith gaya aur uski tangon
ko utha kar apna lund uski choot par ragadne laga. shabana aahein bhar
rahi thi, apne sar ke neeche rakhe takiye ko apne haathon mein pakad
kar masal rahi thi. Uski gand rah rah kar uth jaati thi, Pratap ke
lund ko kha jaane ke liye, magar Pratap to jaise use tadpa tadpa kar
chodna chahta tha, woh uski choot par apne lund ko ragde ja raha tha
oopar se neeche. Ab Shabana se raha nahin ja raha tha - aseem anand ki
wajah se uski aankhein band ho chuki thi aur munh se siskariyan chhoot
rahi thi. Pratap ka lund dheere dheere phisal raha tha, phisalta hua
woh Shabana ki choot mein ghus jaata aur bahar nikal jaata - ab Pratap
use chodna shuru kar chuka tha. halke halke dhakke lag rahe the aur
shabana bhi apni gaand utha utha kar lund kha rahi thi. dheere dheere
dhakkon ki raftaar badh rahi thi aur Shabana ki siskariyon se sara
kamra goonj raha tha...Pratap ka lund koyle ke engine ke tyre par lagi
patti ki tarah Shabana ki choot ki gahraai naap raha tha. pratap ki
chudaai mein ek lay thi aur ab dhakkon ne raftaar pakad li thi. Pratap
ka lund tezi se andar bahar ho raha tha aur Shabana bhi pagal ho chuki
thi, woh apni gand utha utha kar Pratap ke lund ko apni choot mein
dabakar pees rahi thi - achanak Shabana ne Pratap ko kaskar pakad liya
aur apne donon pair Pratap ki kamar par baandh kar jhool gai, Pratap
samajh gaya ki yeh phir jhadne waali hai - Pratap ne apne dhakke aur
tez kar diye - uska lund Shabana ki choot mein ekdum dhansta chala
jaata, aur, bahar aakar aur tezi se ghus jaata. Shabana ki choot se
phawwara chhoot gaya aur Pratap ke lund ne bhi shabana ki choot mein
poora pani udel diya...

Pratap aur Shabana ab jab bhi mauka milta ek dusre ke jism ki bhukh
mita dete the.

Shabana bahot dinon se Pratap ka lund nahin le pai thi. Parvez ki
behan Tazeen ghar aai hui thi. Woh pure din ghar par hi rahti thi, jis
wajah se na to shabana kahin ja pati thi aur na hi Pratap ko bula
sakti thi.

"Shabana mein do dinon ke liye bahar ja raha hun, kuchh zaroori kaam
hai, Tazeen ghar par nahin hoti to tumhein bhi le chalta". "Koi baat
nahin, aap apna kaam nipta kar aaiye". Shabana ko Parvez ke jane ki
koi parwah nahin thi, aur uske saath jane ki ichchha bhi nahin thi.
Woh to Tazeen ko bhi bhaga dena chahti thi, jiski wajah se use Pratap
ka saath nahin mil pa raha tha, poore pandrah din se. Aur Tazeen abhi
aur 15 din rukne wali thi.

Raat ko Tazeen aur Shabana bedroom mein bistar par lete hue film dekh
rahe the. Shabana ko neend aane lagi thi, aur woh gown pehan kar so
gai. Sone se pahle Shabana ne light band karke dim light chalu kar di
thi. Tazeen kisi channel par English film dekh rahi thi. Film mein
kaafi khulapan aur sex ke scenes the.

Neend mein Shabana ne ek ghutna upar uthaya to anayas hi uska gown
fisal kar ghutne ke upar tak sarak gaya. TV aur dim light ki roshni
mein uski dudhiya rang ki jaangh chamak rahi thi. ab Tazeen ka dhyan
Film mein na hokar Shabana ke jism par tha, aur rah rah kar uski nazar
Shabana ke gore jism par tik jaati thi. Shabana ki khoobsurat
jaanghein use madak lag rahi thi. Kuchh to Film ke sex scenes ka asar
tha aur kuchh Shabana ki khoobsurti ka. Tazeen ne TV band kiya aur
wahin Shabana ke paas so gai. Thodi der tak bina koi harkat kiye soi
rahi, phir usne apna haath Shabana ke uthe hue ghutne wali jaangh par
rakh diya. Haath rakh kar woh aise hi leti rahi, ekdum sthir. jab
Shabana ne koi harkat nahi ki, to Tazeen ne apne haath ko Shabana ki
jaangh par phirana shuru kar diya. Haath bhi itna halka ki sirf
ungliyan hi Shabana ko chhu rahi thi, hatheli bilkul bhi nahin. Phir
usne halke haathon se Shabana ke gown ko poora neeche kar diya, ab
Shabana ki panty bhi saaf nazar aa rahi thi. Tazeen ki ungliyan ab
Shabana ke ghutnon se hoti hui uski panty tak jaati aur phir wapas
oopar ghutnon par aa jati. Yehi sab takreeban 2-3 minute tak chalta
raha. Jab Shabana ne koi harkat nahin ki, to Tazeen ne Shabana ki
panty ko chhuna shuru kar diya, lekin tarika wohi tha. Ghutnon se
panty tak ungliyan parade kar rahi thi. Ab tazeen dheere se uthi aur
usne apna gown aur bra utar diya, aur sirf panty mein Shabana ke paas
baith gai. Shabana ke gown mein aage ki taraf button lage hue they,
Tazeen ne bilkul halke haathon se button khol diye. Phir gown ko
hataya to Shabana ke gore chitte mammay nazar aane lage. Ab Tazeen ke
donon haath vyast ho gaye the, uske ek haath ki ungliyan Shabana ki
jaangh aur doosre haath ki ungliyan Shabana ke mammon ko sehla rahi
thi. Uski ungliyan ab Shabana ko kisi mor-pankh ki tarah lag rahi thi.
Jee haan, Shabana uth chuki thi, lekin use achchha lag raha tha isliye
bina harkat leti rahi. Woh is khel ko rokna nahin chahti thi.


Ab Tazeen ki himmat badh gai thi, usne jhukkar Shabana ki chuchi ko
kiss kiya. Phir uthi, aur Shabana ke pairon ke beech jakar baith gai.
Shabana ko apni jaangh par garm hawa mehsoos ho rahi thi, woh samajh
gai Tazeen ki saansein hain. Woh Shabana ki jaangh ko apne honthon se
chhu rahi thi, bilkul usi tarah jaise woh apni ungliyan phira rahi
thi. Ab wohi saansein Shabana ko apni chaddi par mehsoos ho rahi thi,
lekin use neeche dikhai nahin de raha tha. Waise bhi usne abhi tak
aankhein nahin kholi thi. Ab Tazeen ne apni jeebh bahar nikali aur use
Shabana ki panty mein se jhaank rahi garmagaram choot ki daraar par
tika di. Kuchh der aise hi usne apni jeebh ko panty par oopar neeche
phiraya. Shabana ki chaddi Tazeen ke thook se aur, choot se nikal rahe
paani se bheegne lagi thi. Achanak Tazeen ne Shabana ki panty ko side
mein kiya aur Shabana ki nangi choot par apne honth rakh diye. Shabana
se aur bardaasht nahin hua aur usne apni gand utha di, aur donon
haathon se Tazeen ke sir ko pakad kar uska munh apni choot se chipka
liya. Tazeen ki to man ki muraad poori ho gai thi !! ab koi dar nahin
tha, woh janti thi ki ab Shabana sabkuchh karne ko taiyar hai - aur
aaj ki raat rangeen hone wali thi.

Tazeen ne apna munh uthaya aur Shabana ki chaddi ko donon haathon mein
pakad kar kheenchne lagi, Shabana ne bhi apni gaand utha kar uski
madad ki. Phir Shabana ne apna gown bhi utar phenka aur Tazeen se
lipat gai. Tazeen ne bhi apni panty utari aur ab donon bilkul nangi ek
dusre ke honth chus rahi thi. donon ke mammay ek doosre se ulajh rahe
the, Tazeen apni kamar ko jhatka dekar Shabana ki chut par apni chut
laga rahi thi, jaise ki use chod rahi ho. Shabana bhi sex ke nashe
mein choor ho chuki thi aur usne Tazeen ki chut mein ek ungli ghusa
di. Ab Tazeen ne Shabana ko neeche gira diya aur uske oopar chadh gai.
Tazeen ne Shabana ke mammon ko chusna shuru kiya, uske haath Shabana
ke jism se khel rahe the. Shabana apne mammay chuswane ke baad Tazeen
ke oopar aa gayi aur neeche utarti chali gai, Tazeen ke mummon ko
chooskar uski nabhi se hote hue uski jeebh Tazeen ki chut mein ghus
gai. Tazeen bhi apni gaand utha utha kar Shabana ka saath de rahi thi.
Kafi der tak Tazeen ki choot chusne ke baad Shabana Tazeen ke paas aa
kar late gai aur uske honth chusne lagi ab Tazeen ne Shabana ke mammon
ko dabaya aur unhen apne munh mein le liya - Tazeen ka ek haath
Shabana ke mammon par aur doosra uski choot par tha. Uski ungliyan
Shabana ki chut ke andar khalbali macha rahi thi, Shabana ekdum nidhal
hokar bistar par gir padi aur uske munh se ajeeb ajeeb awazein aane
lagi. Tabhi Tazeen neeche ki taraf gai aur Shabana ki chut ko choosna
shuru kar diya, apne donon haathon se usne chut ko phailaya aur usmein
dikh rahe daane ko munh mein le liya aur uspar jeebh ragad ragad kar
chusne lagi. Shabana to jaise pagal ho rahi thi, uski gaand zor zor se
oopar uthti aur ek aawaz ke sath bed par gir jati, jaise ki woh apni
gaand ko bistar par patak rahi ho. Phir usne achanak Tazeen ke sir ko
pakda aur apni chut mein aur andar dhakel diya, uski gaand jaise hawa
mein tair rahi thi aur Tazeen lagbhag baithi hui uski chut kha rahi
thi - woh samajh gai ab Shabana jhadne wali hai aur usne tezi se apna
munh nikala aur do ungliyan Shabana ki choot ke ekdum bheetar tak
ghused di, Ungliyon ke do teen zabardast jhatkon ke baad Shabana ki
chut se jaise parnala beh nikla. Poora bistar uske paani se geela ho
gaya. Phir Tazeen ne apni chut ko Shabana ki chut par rakh diya aur
zor zor se hilane lagi, jaise ki woh Shabana ko chod rahi ho. Donon ki
choot ek doosre se ragad rahi thi aur Tazeen Shabana ke oopar chadh
kar uski chudai kar rahi thi, Shabana ka bhi bura haal tha aur woh
apni gand utha utha kar Tazeen ka sahyog kar rahi thi. Tabhi Tazeen ne
zor se aawaz nikali aur Shabana ki chut par dabav badha diya - phir
teen chaar zordaar bhari bharkam dhakke dekar woh shant ho gayi. Uski
choot ka saara pani ab Shabana ki chut ko nehla raha tha.

Phir donon usi halat mein so gaye.

Agle din Shabana aur Tazeen nashte ke baad baatein karne lage. "bhabhi
sach kahoon to bahot maza aaya kal raat" "mujhe bhi" "lekin agar asli
cheez milti to shayad aur bhi mazaa aata" "kyon didi, jijaji ko
bulayein ?" aankh maarte hue kaha Shabana ne. "unko chhodo, unhein to
mahine mein ek baar josh aata hai aur woh bhi mere thande hone se
pahle beh jaata hai. Aur jahan tak mein Parvez ko janti hun, woh kisi
aurat ko khush nahin kar sakta. tumne bhi to intezaam kiya hoga apne
liye" Yeh sunkar Shabana chaunk gai, lekin kuchh kaha nahin.

Tazeen ne chuppi todi "bhabhi, agar aapki pehchan ka koi hai to use
bulaiye na." Sunkar Shabana man hi man khush ho gai. "Theek hai mein
bulati hun, lekin tum chhup kar dekhna phir mauka dekh kar aa jana"

Shabana ke darwaza kholte hi Pratap uspar toot pada. Usne Shabana ko
god mein uthaya aur uske honthon ko chooste hue use bistar par le
gaya. Shabana ne sirf gown pehan rakha tha. Woh Pratap ka hi intezar
rahi thi aur pichhle pandrah dinon se sex na karne ki wajah se jaldi
mein bhi thi..chudai karwane ki jaldi.

Pratap ne use bistar par litaya aur seedhe uske gown mein ghus gaya,
neeche se. Ab shabana aahein bhar rahi thi..uski chut par jaise
cheentiyan chal rahi ho...use apna gown utha hua dikh raha tha aur woh
Pratap ke sar aur haathon ke hisaab se upar neeche ho raha tha. Pratap
ne uski choot ko apne munh mein daba rakha tha aur uski jeebh ne jaise
Shaban ki chut mein ghamasan macha diya tha. Ekaek Shana ki gand oopar
uth gai, aur usne apne gown ko kheencha aur apne sar par se use nikal
kar farsh par phenk diya. Uske pair ab bhi bed se neech latak rahe the
aur Pratap bed se neeche baitha hua uski choot kha raha tha... shabana
utha kar baith gai aur Pratap ne ab uski chut mein ungli ghusai -
jaise woh Shabana ki chut ko khali rahne hi nahin dena chahta tha. Aur
Shabana ke mammon ko betahasah chumne aur choosne laga. Shabana ki
aankhein band thi aur woh mazay lay rahi thi..uski gand rah rah kar
hil jati jaise Pratap ki ungli ko apni chut se kha jana chahti thi.

Phir usne Pratap ke munh ko upar uthaya aur apne honth Pratap ke
honthon par rakh diye. Use Pratap ke munh ka swad bahot achchha lag
raha tha. Uski jeebh ko apne munh mein dabakar woh use choose ja rahi
thi. Pratap khada ho gaya. Ab Shabana ki baari thi, usne bed par
baithe hue hi Pratap ki belt utari, Pratap ki pant par uske lund ka
ubhar saaf nazar aa raha tha. Shabana ne us ubhar ko munh mein le liya
aur pant ki hook khol di, phir jaise hi zip kholi Pratap ki pant
seedhe zameen par aa giri jise Pratap ne apne pairon se nikal kar door
dhakel diya. Pratap ne V cut wali underwear pehan rakhi thi. Shabana
ne underwear nahin nikali, usne Pratap ki underwear ke side mein se
andar haath daal kar uske lund ko underwear ke bahar kheench liya.
Phir usne hamesha ki tarah apni aankhein band ki aur lund ko apne
chehre par sab jagah ghumaya phiraya aur use achchhi tarah apne naak
ke paas le jakar soonghne lagi. Use Pratap ke lund ki mehak madak kar
rahi thi aur woh madhosh hue ja rahi thi. Uske chehre par sab jagah
Pratap ke lund se nikal raha "precum" (paani) lag raha tha. Shabana ko
aisa karna achchha lagta tha. Phir usne apna munh khola aur lund ko
andar le liya. Phir bahar nikala aur apne chehre par ekbaar phir use
ghumaya. Shabana ne apne munh mein kafi thook bhar liya tha, aur phir
usne lund ke supare par se chamdi peechhe ki aur use munh mein le
liya. Pratap ka lund Shabana ke munh mein tha aur Shabana apni jeebh
mein lapet lapet kar use choose ja rahi thi...oopar se neeche tak,
Supare se jad tak..uske honthon se lekar gale tak sirf ek hi cheez
thi, lund. Aur woh mast ho chuki thi..uske ek haath ki ungliyan uski
choot par thirak rahi thi aur doosra haath Pratap ke lund ko pakad kar
use munh mein kheench raha tha. Phir shabana ne Pratap ki gotiyon ko
kheencha, jo ki andar ghus gai thi exceitement ki wajah se. Ah gotiya
bahar aa gai thi aur Shabana ne apne munh se lund ko nikala aur use
oopar kar diya. Phir Pratap ki gotiyon ko munh mein liya aur betahasha
choosne lagi. Pratap ki siskariya poore kamre mein goonj rahi thi aur
ab uske lund ko ghusna tha, Shabana ki choot mein.
kramashah................

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हिंदी सेक्सी कहानियाँ सबाना और ताजीन की चुदाई -1

हिंदी सेक्सी कहानियाँ
सबाना और ताजीन की चुदाई  -1
हेल्लो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और मस्त कहानी लेकर हाजिर हूँ
दोस्तो आप तो जानते ही होंगे की एक मर्द से ज़्यादा सेक्स एक औरत मे होता
है जब मर्द औरत की गर्मी शांत नही कर पाता है तो औरत पर क्या गुजरती है
और यही से एक औरत का पतन होना शुरू हो जाता है ये कहानी एक भी कामातुर
हसीना सबाना की है जो अपने पति से संतुष्ट ना हो पाने की वजह से बाहर की
दुनिया मे अपने कदम बढ़ा देती हैअब आप कहानी का मज़ा लीजिए और रेप्लाई
ज़रूर दे
सुबह के आठ बज रहे थे. परवेज़ ने जल्दी से अपना पिजामा पहना और बाहर निकल
गया. शबाना अभी बिस्तर पर लेटी हुई ही थी, बिल्कुल नंगी. उसकी चूत पर अब
भी पठान का पानी नज़र आ रहा था, और मायूसी मे उसकी टांगे फैली हुई थी. आज
फिर पठान उसे प्यासा छ्चोड़ कर चला गया था.

"हरामजाड़ा छक्का" पठान को गाली देते हुए शबाना ने अपनी चूत में उंगली
डाली और ज़ोर ज़ोर से अंदर बाहर करने लगी. फिर एक भारी सिसकारी के साथ वो
शिथिल पड़ने लगी, उसकी चूत ने पानी छ्चोड़ दिया. लेकिन चूत में अब भी आग
लगी हुई थी, लंड की प्यासी चूत को उंगली से शांत करना मुश्किल था.

नहाने के बाद अपना शरीर पोंच्छ कर वो बाथरूम से बाहर निकली और नंगी ही
आईने के सामने खड़ी हो गई. आईने में अपने जिस्म को देखकर वो मुस्कुराने
लगी, उसे खुद अपनी जवानी से जलन हो रही थी. शानदार गुलाबी चुचियाँ, भरे
हुए मम्मे पतली कमर, क्लीन शेव चूत जिसके उपरी हिस्से पर बालों की एक
पतली सी लकीर जैसे रास्ता बता रही हो - जन्नत का.

उसने एक ठंडी आह भरी, अपनी चूत को थपथपाया और चड्डी पहन ली. फिर अपने
गदराए हुए एकदम गोल और कसे हुए मम्मों को ब्रा में लपेटकर उसने हुक बंद
कर लिया. अपने उरोजो को ठीक से सेट किया, वो तो जैसे उच्छल कर ब्रा से
बाहर आ रहे थे. ब्रा का हुक बंद करने के बाद उसने अलमारी खोली और सलवार
कमीज़ निकाली, लेकिन फिर कुच्छ सोचकर उसने कपड़े वापस अलमारी में रख दिए
और बुर्क़ा निकाल लिया.

अब वो बिल्कुल तैयार थी, सिर्फ़ एक ही बदलाव था, आज उसने बुर्क़े में
सिर्फ़ चड्डी और ब्रा पहनी थी. फिर अपना छ्होटा सा पर्स जो कि मुट्ठी में
आ सके और जिसमें 10-50 रुपये के 4-5 नोट रख सके, लेकर निकल गई. अब वो बस
स्टॉप पर आकर बस का इंतेज़ार करने लगी, उसे पता था इस वक़्त बस में भीड़
होगी और उसे बैठने की क्या, खड़े होने की भी जगह नहीं मिलेगी. यही चाहती
थी वो. शबाना सर से पैर तक बुर्क़े में धकि हुई थी, सिर्फ़ आँखें नज़र आ
रही थी. किसी के भी उसे पहचान पाने की कोई गुंजाइश नहीं थी.

जैसे ही बस आई, वो धक्का मुक्की करके चढ़ गई, किसी तरह टिकेट ली और बीच
में पहुँच गई और इंतेज़ार करने लगी. किसी मर्द का जो उसे छुए, उसके
प्यासे जिस्म को राहत पहुँचाए. उसे ज़्यादा इंतेज़ार नहीं करना पड़ा.
उसकी जाँघ पर कुच्छ गरम गरम लगा. वो समझ गई कि यह लंड है. सोचते ही उसकी
धड़कनें तेज़ हो गई, और उसने अपने आपको थोड़ा अड्जस्ट किया. अब वो लंड
बिल्कुल उसकी गंद में सेट हो चुका था. उसने धीरे से अपनी गांद को पीछे की
तरफ दबाया. उसके पीछे खड़ा था प्रताप सिंग, जो बस में ऐसे ही मौकों की
तलाश में रहता था. प्रताप समझ गया कि लाइन क्लियर है. उसने अपना हाथ नीचे
किया और अपने लंड को सीधा करके शबाना की गंद पर फिट कर दिया. अब प्रताप
ने अपना हाथ शबाना की गंद पर रखा और दबाने लगा. हाथ लगाते ही प्रताप चौंक
गया, वो समझ गया कि बुर्क़े के नीचे सिर्फ़ चड्डी है. उसने धीरे धीरे
शबाना की मुलायम गोल गोल उठी हुई गंद की मसाज करना शुरू कर दिया. अब
शबाना एकदम गरम होने लगी थी. प्रताप ने अपना हाथ अब उपर किया और शबाना की
कमर पर से होता हुआ उसका हाथ उसकी बगल में पहुँच गया. वो शबाना की हल्की
हल्की मालिश कर रहा था, उसकी पीठ पर से होता हुआ उसका हाथ शबाना की कमर
और गंद को बराबर दबा रहा था. और नीचे प्रताप का लंड शबाना की गंद की दरार
में धंसा हुआ धक्के लगा रहा था. फिर प्रताप ने हाथ नीचे लिया और उसके
बुर्क़े को पीछे से उठाने लगा. शबाना ने कोई विरोध नहीं किया और अब
प्रताप का हाथ शबाना की चड्डी पर था. वो उसकी जाँघ और गंद को अपने हाथों
से आटे की तरह गूँथ रहा था. फिर प्रताप ने शबाना की दोनों जांघों के बीच
हाथ डाला और उंगलियों से दबाया. शबाना समझ गई और उसने अपनी टाँगें फैला
दी. अब प्रताप ने बड़े आराम से अपनी उंगलियाँ शबाना की चूत पर रखी और उसे
चड्डी के उपर से सहलाने लगा. शबाना मस्त हो चुकी थी और उसकी साँसें तेज़
चलने लगी थी. उसने नज़रें उठाई और इतमीनान किया कि किसी की नज़र तो नहीं,
यकीन होने के बाद उसने अपनी आँखें बंद की और मज़े लेने लगी. अब प्रताप की
उंगली चड्डी के किनारे से अंदर चली गई थी. शबाना की भीगी हुई चूत पर
प्रताप की उंगलियाँ जैसे कहर बरपा रही थी. ऊपर नीचे, अंदर-बाहर - शबाना
की चूत जैसे तार-तार हो रही थी और प्रताप की उंगलिया खेत में चल रहे हल
की तरह उसकी लंबाई, चौड़ाई और गहराई नाप रही थी. प्रताप का पूरा हाथ
शबाना की चूत के पानी से भीग चुका था - फिर उसने अपनी दो उंगलियाँ एक साथ
चूत में घुसा और दो तीन ज़ोर के झटके दिए - शबाना ऊपर से नीचे तक हिल गई
और उसके पैर उखड़ गये, वो प्रताप पर एकदम से निढाल होकर गिर पड़ी. वो
झाड़ चुकी थी. आज तक इतना शानदार स्खलन नहीं हुआ था उसका. उसने अपना हाथ
पीछे किया और प्रताप के लंड को पकड़ लिया. इतने में झटके के साथ बस रुकी
और बहोत से लोग उतर गये. बस तकरीबन खाली हो गयी. शबाना ने अपना बुर्क़ा
झट से नीचे किया और सीधी नीचे उतर गई. आज उसे भरपूर मज़ा मिला था, रोज़
तो सिर्फ़ कोई पीछे से लंड रगड़ कर छ्चोड़ देते थे. आज जो हुआ वो पहले
कभी नहीं हुआ था. आप ठीक समझे शबाना यही करके मज़े लूट रही थी. क्योंकि
पठान उसे कभी खुश नहीं कर पाया था.

उसने नीचे उतरकर रोड क्रॉस की और रिक्क्षा पकड़ ली. ऐसा मज़ा ज़िंदगी में
पहली बार आया था. वो बार बार अपना हाथ देख रही थी, उसकी मुट्ठी बनाकर
प्रताप के लंड के बारे में सोच रही थी. उसने घर से थोड़ी दूर ही रिक्क्षा
छ्चोड़ दिया ताकि किसी को पता ना चले कि वो रिक्कशे से आई है. वो पैदल
चलकर अपने मकान में पहुँची और ताला खोलकर अंदर चली गई.

अभी उसने दरवाज़ा बंद किया ही था कि घंटी की आवाज़ सुनकर उसने फिर
दरवाज़ा खोला. सामने प्रताप खड़ा था. वो समझ गई की प्रताप उसका पीछा कर
रहा था, इस डर से की कोई और ना देख ले उसने प्रताप का हाथ पकड़ कर उसे
अंदर खींच लिया. दरवाज़ा बंद करके उसने प्रताप की तरफ देखा, वो हैरान थी
प्रताप कि इस हरकत से. "क्यों आए हो यहाँ ?" "यह तो तुम अच्छि तरह जानती
हो." "देखो कोई आ जाएगा" "कोई आनेवाला होता तो तुम इस तरह बस में मज़े
लेने के लिए नहीं घूम रही होती". "में तुम्हें जानती भी नहीं हूँ" "मेरा
नाम प्रताप है, अपना नाम तो बताओ" "मेरा नाम शबाना है, अब तुम जाओ यहाँ
से". बातें करते करते प्रताप शबाना के जिस्म पर हाथ फिरा रहा था. प्रताप
के हाथ उसकी चुचियो से लेकर उसकी कमर और पेट और जांघों को सहला रहे थे.
शबाना बार बार उसका हाथ झटक रही थी और प्रताप बार बार उन्हें फिर शबाना
के जिस्म पर रख रहा था. लेकिन प्रताप समझ गया था कि शबाना की ना में हां
है

अब प्रताप ने शबाना को अपनी बाहों भर लिया और बुर्क़े से झाँकति आँखों पर
चुंबन जड़ दिया. शबाना की आँखें बंद हो गई और उसके हाथ अपने आप प्रताप के
कंधों पर पहुँच गये. प्रताप ने उसके बुर्क़े को उठाया, जैसे कोई घूँघट
उठा रहा हो. चेहरा देखकर प्रताप को अपनी किस्मत पर भरोसा नहीं हो रहा था.
गजब की खूबसूरत थी शबाना - गुलाबी रंग के पतले होंठ, बड़ी आँखें, गोरा
चिटा रंग और होंठों के ठीक नीचे दाईं तरफ एक छ्होटा सा तिल. प्रताप ने अब
धीरे धीरे उसके गालों को चूमना और चाटना शुरू कर दिया. शबाना ने आँखें
बंद कर ली और प्रताप उसे चूमे जा रहा था. उसके गालों को चाट रहा था, उसके
होंठों को चूस रहा था. अब शबाना भी अच्च्छा साथ दे रही थी और उसकी जीभ
प्रताप की जीभ से कुश्ती कर रही थी. प्रताप ने हाथ नीचे किया और उसके
बुर्क़े को उठा दिया, शबाना ने अपने दोनों हाथ ऊपर कर दिए और प्रताप ने
बुर्क़ा उतार फेंका. प्रताप शबाना को देखता रह गया, इतना शानदार जिस्म
जैसे किसीने ने तराश कर बनाया हो.

"दरवाज़े पर ही करना है सबकुच्छ ?" - प्रताप मुस्कुरा दिया और उसने शबाना
को अपनी बाहों में उठा लिया और गोद में लेकर बिस्तर की तरफ चल पड़ा. उसने
शबाना को बेड के पास ले जाकर गोद से उतार दिया और बाहों में भर लिया.
शबाना की ब्रा खोलते ही जैसे दो परिंदे पिंजरे से छ्छूट कर उड़े हों.
बड़े बड़े मम्मे और उनपर छ्होटी छ्होटी गुलाबी चुचियाँ और उठे हुए
निपल्स. प्रताप तो देखता ही रह गया, जैसे की हर कपड़ा उतरने के बाद कोई
ख़ज़ाना सामने आ रहा था. प्रताप ने अपना मुँह नीचे लिया और शबाना की
चूचियों को चूसता चला गया और चूस्ते हुए ही उसने शबाना को बिस्तर पर लिटा
दिया. शबाना के मुँह से सिसकारिया निकल रही थी और वो प्रताप के बालों में
हाथ फिरा रही थी, उसे दबा रही थी और अपनी चूचियों को उसके मुँह में धकेल
रही थी. शबाना मस्त हो चुकी थी. अब प्रताप उसके पेट को चूस रहा था और
प्रताप का हाथ शबाना की चड्डी पर से उसकी चूत की मसाज कर रहा था. शबाना
मस्त हो चुकी थी, उसकी चूत की लंड की प्यास उसे मदहोश कर रही थी. उसकी
सिसकारियाँ बंद नहीं हो रही थी और टाँगें अपनेआप फैलकर लंड को चूत में
घुसने का निमंत्रण दे रही थी. प्रताप उसके पेट को चूमते हुए उसकी जांघों
के बीच पहुँच चुका था. शबाना बिस्तर पर लेटी हुई थी और उसकी टाँगें बेड
से नीचे लटक रही थी. प्रताप उसके पैरों के बीच से होता हुआ बेड के नीचे
बैठ गया और शबाना के पैर फैला दिए. वो शबाना की गोरी गोरी, गदराई हुई
भारी भारी सुडौल जांघों को बेतहाशा चूम रहा था और उसकी उंगलिया चड्डी पर
से उसकी चूत सहला रही थी. प्रताप के नथुनो में शबाना की चूत से रिस्ते
हुए पानी की खुश्बू आ रही थी और वो मदहोश हो रहा था. शबाना पर तो जैसे
नशा चढ़ गया था और वो अपनी गांद उठा उठा कर अपनी चूत को प्रताप की
उंगलियों पर रगड़ रही थी.

अब प्रताप चड्डी के ऊपर से ही शबाना की चूत को चूमने लगा, हल्के हल्के
दाँत गढ़ा रहा था शबाना की चूत पर. और शबाना प्रताप के सिर को पकड़ कर
अपनी चूत पर दबा रही थी, गांद उठा उठा कर चूत को प्रताप के मुँह में घुसा
रही थी. फिर प्रताप ने शबाना की चड्डी उतार दी. अब उसके सामने सबसे हसीन
चूत थी एकदम गुलाबी एकदम प्यारी. एकदम सफाई से रखी हुई कोई सीप जैसी.
प्रताप उसकी खुश्बू से मदहोश हो रहा था और उसने अपनी जीभ शबाना की चूत पर
रख दी. शबाना उच्छल पड़ी और उसके शरीर में जैसे करेंट दौड़ गया, उसने
प्रताप के सिर को पकड़ा और अपनी गंद उचका कर चूत को प्रताप के मुँह पर
रगड़ दी. प्रताप की जीभ शबाना की चूत में धँस गई और प्रताप ने अपने
होंठों से शबाना की चूत को ढँक लिया और एक उंगली भी शबाना की चूत में
घुसा दी - अब शबाना की चूत में प्रताप की जीभ और उंगली घमासान मचा रही
थी. शबाना रह रह कर अपनी गांद उठा उठा कर प्रताप के मुँह में चूत दबा रही
थी. उसकी चूत से निकल रहा पानी उसकी गांद तक पहुँच गया था. प्रताप ने अब
उंगली चूत से निकाली और शबाना की गंद पर उंगली फिराने लगा. चूत के पानी
की वजह से गंद में उंगली फिसल कर जा रही थी. शबाना को कुच्छ होश नहीं था
- वो तो चुदाई के नशे से मदहोश हो चुकी थी, आज तक उसे इतना मज़ा नहीं आया
था. उसकी सिसकारिया बंद नहीं हो रही थी. उसकी गंद में उंगली और चूत में
जीभ घुसी हुई थी और वो नशे में धुत्त शराबी की तरह बिस्तर पर इधर उधर हो
रही थी. उसकी आँखें बंद थी और वो जन्नत की सैर कर रही थी. किसी तेज़
खुश्बू की वजह से उसने आँखें खोली, तो सामने प्रताप का लंड था. उसे पता
ही नहीं चला कब प्रताप ने अपने कपड़े उतार दिए और 69 की पोज़िशन में आ
गया. शबाना ने प्रताप के लंड को पकड़ा और ऊपर नीचे करने लगी, प्रताप के
लंड से पानी गिर रहा था और वो चिपचिप हो रहा था - शबाना ने लंड को अच्छि
तरह सूँघा, उसे अपने चेहरे पर लगाया और उसका अच्छि तरह जायज़ा लेने के
बाद उसे चूम लिया. फिर अपना मुँह खोला और लंड को मुँह में लेकर चूसना
शुरू कर दिया. वो एक लॉलिपोप की तरह लंड चूस रही थी, लंड के सुपरे को
अपने मुँह में लेकर अंदर ही उसे जीभ से लपेटकर अच्छि तरह चूस रही थी. और
प्रताप उसकी चूत अब भी चूस रहा था.

अचानक जैसे ज्वालामुखी फटा और लावा बहने लगा. शबाना का जिस्म बुरी तरह
अकड़ गया और उसकी टाँगें सिकुड गई, प्रताप का मुँह जैसे शबाना की जांघों
में पिस रहा था, शबाना बुरी तरह झाड़ गई और उसकी चूत ने एकदम से पानी
छ्चोड़ दिया, और वो एकदम निढाल गई. आज एक घंटे में वो दो बार झाड़ चुकी
थी जबकि अब तक उसकी चूत में लंड गया भी नहीं था.
क्रमशः................


सबाना और ताजीन की चुदाई  -1

Subah ke aath baj rahe the. parvez ne jaldi se apna pyjama pehna aur
bahar nikal gaya. Shabana abhi bistar par leti hui hi thi, bilkul
nangi. uski chut par ab bhi pathan ka pani nazar aa raha tha, aur
taanur jisgein phaili hui thi. aaj phir pathan use pyasa chhod kar
chala gaya tha.

"Haramzada chhakka" Pathaan ko gaali dete hue Shabana ne apni chut
mein ungli dali aur jor jor se andar bahar karne lagi. Phir ek bhari
siskari ke saath woh shithil padne lagi, uski chut ne paani chhod
diya. Lekin chut mein ab bhi aag lagi hui thi, lund ki pyasi chut ko
ungli se shant karna mushkil tha.

Nahane ke baad apna sharir ponchh kar woh bathroom se bahar nikli aur
nangi hi aaine ke saamne khadi ho gai. Aaine mein apne jism ko dekhkar
woh muskurane lagi, use khud apni jawani se jalan ho rahi thi.
Shaandar Gulabi chuchian, bhare hue mammay patli kamar, clean shave
choot jiske upari hisse par balon ki ek patli si lakir jaise raasta
bata rahi ho - jannat ka.

Usne ek thandi aah bhari, apni choot ko thapthapaya aur chaddi pehan
li. phir apne gadraye hue ekdum gol aur kase hue mammon ko bra mein
lapetkar usne hook band kar li. apne urozon ko theek se set kiya, woh
to jaise uchhal kar bra se baahar aa rahe the. Bra ka hook band karne
ke baad usne almari kholi aur salwar kameez nikali, lekin phir kuchh
sochkar usne kapde wapas almari mein rakh diye aur burqa nikal liya.

Ab woh bilkul taiyar thi, sirf ek hi badlaav tha, aaj usne burqe mein
sirf chaddi aur bra pehni thi. Phir apna chhota sa purse jo ki mutthi
mein aa sake aur jismein 10-50 rupaye ke 4-5 note rakh sake, lekar
nikal gai. Ab woh bus stop par aakar bus ka intezaar karne lagi, usay
pata tha is waqt bus mein bheed hogi aur use baithne ki kya, khade
hone ki bhi jagah nahin milegi. Yehi chahti thi woh. Shabana sar se
pair tak burke mein dhaki hui thi, sirf aankhein nazar aa rahi thi.
Kisi ke bhi usay pehchaan pane ki koi gunjaish nahin thi.

Jaise hi bus aai, woh dhakka mukki karke chadh gai, kisi tarah ticket
li aur beech mein pahunch gai aur intezaar karne lagi. Kisi mard ka jo
use chhue, uske pyaase jism ko rahat pahunchaye. Use zyada intezaar
nahin karna pada. Uski jaangh par kuchh garam garam laga. Woh samajh
gai ki yeh lund hai. Sochte hi uski dhadkanein tez ho gai, aur usne
apne aapko thoda adjust kiya. Ab woh lund bilkul uski gand mein set ho
chuka tha. Usne dheere se apni gaand ko peechhe ki taraf dabaya. Uske
peechhe khada tha Pratap Singh, jo bus mein aise hi maukon ki talash
mein rehta tha. Pratap samajh gaya ki line clear hai. Usne apna haath
neeche kiya aur apne lund ko seedha karke Shabana ki gand par fit kar
diya. Ab Pratap ne apna haath Shabana ki gand par rakha aur dabane
laga. Haath lagate hi Pratap chaunk gaya, woh samajh gaya ki burque ke
neeche sirf chaddi hai. Usne dheere dheere Shabana ki mulayam gol gol
uthi hui gand ki massage karna shuru kar diya. Ab Shabana ekdum garam
hone lagi thi. Pratap ne apna haath ab upar kiya aur Shabana ki kamar
par se hota hua uska haath uski bagal mein pahunch gaya. Woh Shabana
ki halki halki maalish kar raha tha, uski peeth par se hota hua uska
haath Shabana ki kamar aur gand ko barabar daba raha tha. Aur neeche
Pratap ka lund Shabana ki gand ki daraar mein dhansa hua dhakke laga
raha tha. Phir Pratap ne haath neeche liya aur uske burke ko peechhe
se uthane laga. Shabana ne koi virodh nahin kiya aur ab Pratap ka
haath Shabana ki chaddi par tha. Woh uski Jaangh aur gand ko apne
haathon se aate ki tarah goonth raha tha. Phir Pratap ne Shabana ki
donon jaanghon ke beech haath dala aur ungliyon se dabaya. Shabana
samajh gai aur usne apni taangein phaila di. Ab Pratap ne bade aaram
se apni ungliyan shabana ki choot par rakhi aur usay chaddi ke upar se
sehlane laga. Shabana mast ho chuki thi aur uski saansein tez chalne
lagi thi. Usne nazrein uthai aur itminan kiya ki kisi ki nazar to
nahin, yakeen hone ke baad usne apni aankhein band ki aur maze lene
lagi. Ab Pratap ki ungli chaddi ke kinare se andar chali gai thi.
Shabana ki bheegi hui choot par Pratap ki ungliyan jaise kehar barpa
rahi thi. Oopar neeche, andar-bahar - Shabana ki chut jaise taar-taar
ho rahi thi aur Pratap ki ungliya khet mein chal rahe hal ki tarah
uski lambai, chaudai aur gehrai naap rahi thi. Pratap ka poora haath
shabana ki chut ke paani se bheeg chuka tha - phir usne apni do
ungliyan ek saath chut mein ghusai aur do teen zor ke jhatke diye -
Shabana oopar se neeche tak hil gai aur uske pair ukhad gaye, woh
Pratap par ekdum se nidhaal hokar gir padi. Woh jhad chuki thi. Aaj
tak itna shaandar skhalan nahin hua tha uska. Usne apna haath peechhe
kiya aur Pratap ke lund ko pakad liya. Itne mein jhatke ke saath bus
ruki aur bahot se log utar gaye. Bus takreeban khali ho gayi. Shabana
ne apna burqa jhat se neeche kiya aur seedhi neeche utar gai. Aaj use
bharpoor maza mila tha, roz to sirf koi peechhe se lund ragad kar
chhod dete the. Aaj jo hua woh pehle kabhi nahin hua tha. Aap theek
samjhe Shabana yehi karke maze loot rahi thi. Kyonki pathan use kabhi
khush nahin kar paya tha.

Usne neeche utarkar road cross ki aur rickshaw pakad li. Aisa maza
zindagi mein pehli baar aaya tha. Woh baar baar apna haath dekh rahi
thi, uski mutthi banakar Pratap ke lund ke baare mein soch rahi thi.
Usne ghar se thodi door hi rickshaw chhod diya taki kisi ko pata na
chale ki woh rickshaw se aai hai. Woh paidal chalkar apne makaan mein
pahunchi aur tala kholkar andar chali gai.

Abhi usne darwaza band kiya hi tha ki ghanti ki aawaz sunkar usne phir
darwaza khola. Samne Pratap khada tha. Woh samajh gai ki Pratap uska
peechha kar raha tha, is dar se ki koi aur na dekh le usne Pratap ka
haath pakad kar use andar kheench liya. Darwaza band karke usne Pratap
ki taraf dekha, woh hairan thi Prata ki is harkat se. "Kyon aaye ho
yahan ?" "yeh to tum achchhi tarah jaanti ho." "Dekho koi aa jayega"
"Koi aanewala hota to tum is tarah bus mein maze lene ke liye nahin
ghoom rahi hoti". "mein tumhein jaanti bhi nahin hoon" "mera naam
Pratap hai, apna naam to batao" "mera naam Shabana hai, ab tum jao
yahan se". Baatein karte karte Pratap Shabana ke jism par haath phira
raha tha. Pratap ke haath uske urozon se lekar uski kamar aur pait aur
jaanghon ko sehla rahe the. Shabana baar baar uska haath jhatak rahi
thi aur Pratap baar baar unhein phir Shabana ke jism par rakh raha
tha. Lekin Pratap samajh gaya tha ki Shabana ki na mein haan hai

Ab Pratap ne Shabana ko apni baahon bhar liya aur burke se jhaankti
aankhon par chumban jad diya. Shabana ki aankhein band ho gai aur uske
haath apne aap Pratap ke kandhon par pahunch gaye. Pratap ne uske
burke ko uthaya, jaise koi ghunghat utha raha ho. Chehra dekhkar
Pratap ko apni kismat par bharosa nahin ho raha tha. Ghazab ki
khoobsurat thi Shabana - gulabi rang ke patle honth, badi aankhen,
gora chitta rang aur honthon ke theek niche dayin taraf ek chhota sa
til. Pratap ne ab dheere dheere uske gaalon ko chumna aur chatna shuru
kar diya. Shabana ne aankhein band kar li aur Pratap use choome ja
raha tha. Uske gaalon ko chaat raha tha, uske honthon ko choos raha
tha. Ab Shabana bhi achchha saath de rahi thi aur uski jeebh Pratap ki
jeebh se kushti kar rahi thi. Pratap ne haath neeche kiya aur uske
burke ko utha diya, Shabana ne apne donon haath oopar kar diye aur
Pratap ne burka utar phenka. Pratap Shabana ko dekhta reh gaya, Itna
shandar jism jaise kisine ne tarash kar banaya ho.

"Darwaze par hi karna hai sabkuchh ?" - Pratap muskura diya aur usne
Shabana ko apni baahon mein utha liya aur god mein lekar bistar ki
taraf chal pada. Usne Shabana ko bed ke paas le jakar god se utar diya
aur baahon mein bhar liya. shabana ki bra kholte hi jaise do parinday
pinjre se chhoot kar ude hon. Bada bade mammay aur unpar chhoti chhoti
gulabi chuchiyan aur uthe hue nipples. Pratap to dekhta hi reh gaya,
jaise ki har kapda utarne ke baad koi khazana saamne aa raha tha.
Pratap ne apna munh neeche liya aur Shabana ki choochiyon ko chhosta
chala gaya aur chooste hue hi usne Shabana ko bistar par lita diya.
Shabana ke munh se siskariya nikal rahi thi aur woh Pratap ke baalon
mein haath phira rahi thi, use daba rahi thi aur apni chhochiyan uske
munh mein dhakel rahi thi. Shabana mast ho chuki thi. Ab Pratap uske
pet ko choos raha tha aur Pratap ka haath shabana ki chaddi par se
uski chut ki massage kar raha tha. Shabana mast ho chuki thi, uski
chut ki lund ki pyaas use madhosh kar rahi thi. Uski siskariyan band
nahin ho rahi thi aur taangein apneaap phailkar lund ko chut mein
ghusne ka nimantran de rahi thi. Pratap uske pait ko chumte hue uski
jaanghon ke beech pahunch chuka tha. Shabana bistar par leti hui thi
aur uski taangein bed se neeche latak rahi thi. Pratap uske pairon ke
beech se hota hua bed ke neeche baith gaya aur Shabana ke pair phaila
diye. Woh Shabana ki gori gori, gadrai hui bhari bhari sudoul janghon
ko betahaasha chum raha tha aur uski ungliya chaddi par se uski chut
sehla rahi thi. Pratap ke nathunon mein shabana ki chut se riste hue
paani ki khushbu aa rahi thi aur woh madhosh ho raha tha. Shabana par
to jaise nasha chadh gay tha aur woh apni gaand utha utha kar apni
chut ko Pratap ki ungliyon par ragad rahi thi.

Ab Pratap chaddi ke oopar se hi Shabana ki chut ko choomne laga, halke
halke daant gada raha tha shabana ki chut par. Aur Shabana Pratap ke
sir ko pakad kar apni chut par daba rahi thi, gaand utha utha kar chut
ko Pratap ke munh mein ghusa rahi thi. Phir Pratap ne Shabana ki
chaddi utar di. Ab uske saamne sabse haseen chut thi ekdum gulabi
ekdum pyari. ekdum safai se rakhi hui koi seep jaisi. Pratap uski
khushbu se madhosh ho raha tha aur usne apni jeebh Shabana ki chut par
rakh di. Shabana uchhal padi aur uske shareer mein jaise current daud
gaya, usne Pratap ke sir ko pakda aur apni gand uchka kar chut ko
Pratap ke munh par ragad di. Pratap ki jeebh Shabana ki chut mein
dhans gai aur Pratap ne apne honthon se Shabana ki chut ko dhank liya
aur ek ungli bhi shabana ki chut mein ghusa di - ab shabana ki chut
mein Pratap ki jeebh aur ungli ghamasan macha rahi thi. Shabana reh
reh kar apni gaand utha utha kar Pratap ke munh mein chut daba rahi
thi. Uski chut se nikal raha paani uski gaand tak pahunch gaya tha.
Pratap ne ab ungli chut se nikali aur Shabana ki gand par ungli
phirane laga. Chut ke paani ki wajah se gand mein ungli phisal kar ja
rahi thi. Shabana ko kuchh hosh nahin tha - woh to chudai ke nashe se
madhosh ho chuki thi, aaj tak use itna maza nahin aaya tha. Uski
siskariya band nahin ho rahi thi. Uski gand mein ungli aur chut mein
jeebh ghusi hui thi aur woh nashe mein dhutt sharabi ki tarah bistar
par idhar udhar ho rahi thi. Uski aankhein band thi aur woh jannat ki
sair kar rahi thi. Kisi tez khushbu ki wajah se usne aankhein kholi,
to saamne Pratap ka lund tha. Use pata hi nahin chala kab Pratap ne
apne kapde utar diye aur 69 ki position mein aa gaya. Shabana ne
Pratap ke lund ko pakda aur oopar neeche karne lagi, Pratap ke lund se
paani gir raha tha aur woh chipchip ho raha tha - Shabana ne lund lo
achchhi tarah sungha, use apne chehre par lagaya aur uska achchhi
tarah jaayza lene ke baad use choom liya. Phir apna munh khola aur
lund ko munh mein lekar chusna shuru kar diya. Woh ek lollipop ki
tarah lund chus rahi thi, lund ke supare ko apne munh mein lekar andar
hi use jeebh se lapetkar achchhi tarah choos rahi thi. Aur Pratap uski
chut ab bhi chus raha tha.

Achanak jaise jwalamukhi phata aur lava behne laga. Shabana ka jism
buri tarah akad gaya aur uski taangein sikud gai, Pratap ka munh jaise
Shabana ki jaanghon mein pis raha tha, Shabana buri tarah jhad gai aur
uski chut ne ekdum se paani chhod diya, aur woh ekdum nidhaal gai. Aaj
ek ghante mein woh do bar jhad chuki thi jabki ab tak uski chut mein
lund gaya bhi nahin tha.
kramashah................

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दो बदन एक जान पार्ट--2

दो बदन एक जान  पार्ट--2
गतान्क से आगे.............
रोमा के मन मे जलन सी जाग गयी ये सोच कर कि कितनी लड़कियाँ उसके
भाई पर जान छिड़कती है. उसकी आँखों मे हल्की सी नमी सी आ गयी.
दिल मे एक अजीब सा दर्द सा उठने लगा जो हमेशा किसी वक्त उसके
प्यार से भरा रहता था. अब वो उसपर ध्यान ही नही देता था.

रोमा ने देखा कि राज उनकी तरफ ही बढ़ रहा है. जलन के मारे उसने
गीता को देखा जो घास पर लेटी थी और अपने उठे हुए मम्मे दीखाने
की कोशिश कर रही थी. उसकी चुचियाँ किसी मधुमक्खी के छ्त्ते
की तरह उठी हुई थी जैसे की मक्खियो को न्योता दे रही हो. उसकी
समझ मे नही आ रहा था कि अगर राज ने उसकी तरफ ध्यान दिया और
कुछ कहा तो वो क्या करेगी.

किंतु राज ने ऐसा कुछ नही किया और उसकी बगल से गुज़ारते हुए उसके
सिर को ठप थपाते हुए सिर्फ़ इतना कहा, "अपनी जिंदगी को जीना
सीखो और मेरी जिंदगी मे दखल देना बंद करो."

राज की बात उसके दिल को चुब सी गयी किंतु दिल मे एक अजीब सी खुशी
भी जाग उठी. आज कितने महीनो बाद उसके भाई ने उससे बात की थी.
खुशी की एक हल्की लकीर उसके होठों पर आ गयी.

"में तो अपनी जिंदगी जी रही हूं लेकिन एक तुम हो जो अपनी जिंदगी
से भाग रहे हो..." रोमा ने अपनी खुशी को छुपाते हुए कहा.

राज ने एक राहत की सांस ली. वो हमेशा से डरता था कि अगर वो रोमा
के ज़्यादा करीब रहेगा तो एक दिन उसकी बेहन उसके मन की भावनाओ को
पहचान लेगी. जबसे उसकी कल्पनाओ मे वो आने लगी थी उसने उसके करीब
रहना छोड़ दिया था. एक यही तरीका था उसके पास से अपने ज़ज्बात और
अपनी भावनाओ को छिपाने का. वो अपनी बेहन को बहोत प्यार करता था
और उससे दूर रह कर ही वो एक बड़े भाई का फ़र्ज़ निभा सकता था.

"तुम सच कहती हो रोमा, वो अपनी जिंदगी से भाग ही रहा है." राज
के व्यवहार को देख गीता को एक बार फिर दुख पहुँचा था. उसने
कितना प्रयत्न किया था कि वो राज को आकर्षित कर सके किंतु वो
सफल नही हो पा रही थी.

"रोमा में अब चलती हू सोमवार को सुबह कॉलेज मे मिलेंगे." गीता
इतना कहकर वहाँ से चली गयी.

रोमा ने पलट कर अपने भाई की ओर देखा. राज उसकी नज़रों से ओझल
हो चुका था लेकिन वो अब भी उसके ख़यालों मे बसा हुआ था. उसे लगा
कि वो घूम कर उसके पास आ गया है और उसकी बगल मे घास पर
बैठ गया हो. वो उससे उसके दोस्त, उसकी कॉलेज लाइफ के बारे मे पूछ
रहा है.

उसकी कल्पना मे आया कि अचानक उसका बाँया हाथ उसके दाएँ हाथ से
टकरा गया और उसके बदन मे जैसे बिजली का करेंट दौड़ गया हो.
उसके मन मे आया कि वो उसे सब कुछ बता दे कि किस तरह उसकी कमी
उसके जीवन को खोखला कर रही है, उसे अपना वही पुराना भाई
चाहिए जो पहले था.

* * * * * * * * *

"रोमा ज़रा ये कचरा तो बाहर फैंक देना." उसकी मम्मी ने कहा.

"पर मम्मी ये तो राज का काम है ना." रोमा ने कहा.

"राज घर पर नही है, और तुम घर पर हो इसलिए मुझसे ज़्यादा
बहस मत करो और जाकर कचरा फैंक कर आओ." उसकी मम्मी ने थोड़ा
गुस्सा दिखाते हुए कहा.

बेमन से रोमा ने कचरे की थैली बस्टबिन से बाहर निकाली और बगल
मे रख दी. फिर एक फ्रेश नई थैली डस्ट बिन मे लगा दी तभी उसका
ध्यान कचरे की थैली से बाहर झाँकती एक कीताब पर पड़ी.
उत्स्सूकता वश उसने वो कीताब उठा ली और बगल की अलमारी मे छिपा
दी.

रोमा कचरे की थैली घर से बाहर फैंक कर वापस आई और वो
कीताब अलमारी से निकाल अपने कमरे मे आ गयी. कमरे का दरवाज़ा अंदर
से बंद कर वो कीताब खोल देखने लगी. उसने देखा कि कीताब के
पन्ने कोरे थे और उनपर कुछ भी नही लिखा था.

उसका दिल मायूशी मे डूब गया. उसे लगा था कि वो राज की कहानी का
राज आज जान जाएगी तभी उसने देखा कि पन्नो पर लिखाई के कुछ
अक्षर दिख रहे है.

वो दौड़ कर अपने कॉलेज बॅग से पेन्सिल निकाल कर ले आई और उन
पन्नो पर घिसने लगी. थोड़ी ही देर मे लीखाई के अक्षर उभर कर
सॉफ हो गये.

कीताब पर लीखे शब्दों को पढ़ वो चौंक गयी. क्या राज यही सब
अपनी कहानी मे लीखता रहता है.

...."मेने उससे कह दिया कि मैं उससे प्यार करता हूँ. वो मुस्कुरा
कर मेरी तरफ देखती है. मैं हल्के से उसकी चुचि को छूता हूँ
और वो सिसक पड़ती है. में और ज़ोर से दबाता हूँ. उसे आछा
लगता है.

......अब में उसकी दोनो चुचियों को दबाता हूँ. अब वो गरमाने
लगती है. में जानता हूँ वो मुझे पाना चाहती है........"

"कौन है ये लड़की...?" रोमा मन ही मन बदबूदा उठती है. कोई
कल्पनायक लड़की है या हक़ीकत मे कोई है...."

रोमा कीताब को अपनी छाती से लगाए पलंग पर लेट जाती है. वो
सोचने लगती है कि वो लड़की कौन हो सकती है. अचानक उसे लगता
है कि वो लड़की खुद ही है. अपनी ही कल्पना मे खोए वो अपने अक्स
को उन कोरे पन्नो मे ढूँदने की कोशिश करती है.

"ओह्ह्ह्ह राज में तुमसे कितना प्यार करती हूँ." वो कह उठती है, उसे
लगता है कि राज उसकी बगल मे ही लेटा हुआ है.

अपना प्यार खुद पर जाहिर कर उसे लगा कि उसके दिल से बोझ उत्तर
गया. जिन भावनाओ को वो छुपाते आई थी आज वो रंग दीखाने लगी
थी. उसके हाथ खुद बा खुद उसकी चुचियों पर जा पहुँचे और
वो उन्हे मसल्ने लगती है. उत्तेजना और प्यार की मादकता मे उसके
निपल तन कर खड़े जो जाते है. कामुकता की आग मे उसका बदन
ऐंठने लगता है.

दरवाज़े पर थपथपाहट सुन उसका ध्यान भंग होता है. फिर जैसे
वो दरवाज़े को खुलता देखती है झट से अपना हाथ अपनी चुचियों से
खींच लेती है.

राज ने अर्ध खुले दरवाज़े से अंदर झाँका. उसने देखा कि रोमा का लाल
रंग का टॉप थोड़ा उपर को खिसका हुआ था और उसकी चुचियों की
गोलियाँ साफ दिखाई दे रही थी साथ ही उसके खड़े निपल भी उसकी
नज़र से बच नही सके. इस नज़ारे को देख उसका लंड उसकी शॉर्ट मे
फिर एक बार तन कर खड़ा हो गया.

रोमा ने उसकी नज़रों का पीछा किया तो उसने देखा कि राज उसकी
चुचियों को ही घूर रहा था. उसने झट से अपने टॉप को नीचे किया
पर ऐसा करने से उसके निपल और तने हुए देखाई देने लगे. शर्म
और हया के मारे उसका चेहरा लाल हो गया.

"तुम मेरी जगह पर कचरा फैंक कर आई उसके लिए तुम्हे थॅंक्स
कहने आया था." राज ने कहा.

"कोई बात नही." वो चाहती थी कि राज जल्दी से जल्दी यहाँ से चला
जाए.

राज कुछ और कहना चाहता था लेकिन जब उसने देखा कि रोमा शर्मा
रही है तो उसके मन को पढ़ते हुए वो चुपचाप वहाँ से चला गया.

रोमा अपने चेहरे को अपने हाथों से धक अपने आपको कोसने
लगी, "बेवकूफ़ लड़की आज कितने महीनो बाद उसने तुमसे इस तरह
प्यार से बात की और तुम हो कि उसे भगा दिया. तुम्हे बिस्तर पर उठ
कर बैठ जाना था और उसे कमरे मे आने के लिए कहती. बेवकूफ़
बेवकूफ़."

जैसे ही वो बिस्तर पर से उठने लगी उसकी नज़र राज की किताब और
पेन्सिल पर पड़ी, "हे भागन काश उसने ये सब ना देखा हो."

रोमा सोच मे पड़ गयी कि हे भगवान उसने ये क्या किया. अगर राज ने
वो कीताब देख ली होगी तो एक बार फिर उसने राज को खो दिया है. वो
अपनी रुलाई को रोक ना पाई, उसकी आँखों से तार तार आँसू बहने लगे.

* * * * *

राज का ध्यान अपनी बेहन पर से हटाए नही हट रहा था. जब वो
बाहर से आया तो मम्मी ने उससे कहा था कि वो जाकर रोमा का
धन्यवाद करे क्यों कि उसका काम रोमा ने किया था.

मम्मी की अग्या मान वो उसके कमरे मे गया था और उसने उसे थॅंक्स
कहा था. जब उसने रोमा को बिस्तर पर लेटे देखा तो उसे वो किसी
अप्सरा से कम नही लगी थी. जिस तरह से वो लेटी थी और उसके टॉप मे
उपर को उठी हुई उसकी चुचियाँ और उसके खड़े निपल दीख रहे
थे वो ठीक किसी काम देवी की तरह लग रही थी.

उसके दिल मे तो आया कि उन कुछ लम्हो मे वो अपने दिल की बात रोमा को
बता दे लेकिन दिल की बात ज़ुबान तक आ नही पाई. उसकी समझ मे
नही आया कि वो अपने ज़ज्बात किस तरह अपनी सग़ी बेहन को बताए. वो
अपनी बातों को शब्दों मे ढाल नही पाया. उसे पता था कि थोड़े
दिनो मे रोमा कॉलेज चली जाएग्गी और शायद उसे फिर मौका ना मिले
उसे बताने का.

राज अपने कमरे मे आ गया, वो चाहता तो सीधे रोमा के कमरे मे
जाता और उसे सब कुछ बता देता पर उसमे शायद इतनी हिम्मत नही
थी कि वो उसे बता पाए.

उसे उमीद थी कि रात के खाने पर रोमा से उसकी मुलाकात होगी. पर
रोमा थी कि उसका कहीं पता नही था. राज ने खाना ख़त्म ही किया
था कि उसका सबसे प्यारा दोस्त जय अपनी बेहन रिया के साथ आ
पहुँचा. रिया बगल के सहर के कॉलेज मे पढ़ती थी. जय राज की
ही उमर का था और दोनो ने ग्रॅडुटाशॉन साथ साथ पूरा किया था.
क्रमशः.............

दो बदन एक जान  paart--2
gataank se aage.............
Roma ke man me jalan si jag gayi ye soch kar ki kitni ladkiyan uske
bhai par jan chidakti hai. Uski aankhon me halki si nami si aa gayi.
Dil me ek ajeeb sa dard sa uthne laga jo hamesha kisi wakt uske
pyaar se bhara rehta tha. Ab wo uspar dhyaan hi nahi deta tha.

Roma ne dekha ki Raj unki taraf hi badh raha hai. Jalan ke mare usne
Geeta ko dekha jo ghas par leti thi aur ape uthe hue mame deekhane
ki koshish kar rahi thi. Uski chuchiyan kisi madhumakkhi ke chaate
ki tarah uthi hui thi jaise ki makhiyon ko nyota de rahi ho. Uski
samajh me nahi aa raha tha ki agar Raj ne suki taraf dhyan diya aur
kuch kaha to wo kya karegi.

Kintu Raj ne aisa kuch nahi kiya aur uski bagal se guzarte hue uske
sir ko thap thapate hue sirf itna kaha, "Apni jindagi ko jeena
seekho aur meri jindagi me dakhal dena band karo."

Raj ki baat uske dil ko chub si gayi kintu dil me ek ajeeb si khushi
bhi jaag uthi. Aaj kitne mahino baad uske bhai ne usse baat ki thi.
Khushi ki ek halki lakeer uske hothon par aa gayi.

"Mein to apni jindagi jee rahi hoon lekin ek tum ho jo apni jindagi
se bhaag rahe ho..." Roma ne apni khushi ko chupate hue kaha.

Raj en ek rahat ki sans lee. Wo hamesha se darta tha ki agar wo Roma
ke jyada kareeb rahega to ek din uski behan uske man ki bhavnao ko
pehchan legi. Jabse uski kalpanao wo aane lagi thi usne uske kareeb
rehna chod diya tha. Ek yahi tareeka tha uske paas apne jajbat aur
apni bahvanaon ko chipane ka. Wo apni behan ko bahot pyaar karta tha
aur usse door reh kar hi wo ek bade bhai ka farz nibha sakta tha.

"Tum sach kehti ho Roma, wo apni jindagi se bhaag hi raha hai." Raj
ke vyavhar ko dekh Geeta ko ek bar phir dukh pahuncha tha. Usne
kitna prayatna kiya tha ki wo Raj ko aakarshit kar sake kintu wo
safal nahi ho paa rahi thi.

"Roma mein ab chalti hon somvar ko subah college me milenge." Geeta
itna kehkar wahan se chali gayi.

Roma ne palat kar apne bhai ki aur dekha. Raj uski nazron se ojhal
ho chuka tha lekin wo ab bhi uske khayalon me basa hua tha. Use laga
ki wo ghoom kar uske paas aa gaya hai aur uski bagal me ghas par
baith gaya hao. Wo usse uske dost, uski college life ke bare me puch
raha hai.

Uski kalpana me aya ki achanak uska bayan hath use daayen hath se
takra gaya aur uske badan me jaise bijlee ka current daud gaya ho.
Uske man me aaya ki wo use sab kuch bata de ki kis tarah uski kami
uske jeevan ko khokhla kar rahi hai, use apna wahi purana bhai
chaihiye jo pehle tha.

* * * * * * * * *

"Roma jara ye kachra to bahar faink dena." uski mummy ne kaha.

"Par mummy ye to Raj ka kaam hai na." Roma ne kaha.

"Raj ghar par nahi hai, aur tum ghar par ho isliye mujhse jyada
behas mat karo aur jakar kachra faink kar aao." uski mummy ne thoda
gussa deekhate hue kaha.

Beman se Roma ne kachre ki thaili bustbin se bahar nikali aur bagal
me rakh di. Phir ek fresh nai thaili dust bin me laga di tabhi uska
dhayan kachre ki thaili se bahar jhankti ek keetab par padi.
Utssukta wash usne wo keetab utha lee aur bagal ki almari me cheepa
di.

Roma kachre ki thaili ghar se bahar faink kar wapas aayi aur wo
keetab almari se nikal apne kamre me aa gayi. Kamre ka darwaza andar
se band kar wo keetab khol dekhne lagi. Usne dekha ki keetab ke
paane kore the aur unpar kuch bhi nahi likha tha.

Uska dil maausi me doob gaya. Use laga tha ki wo Raj ki kahani ka
raj aaj jaan jayegi tabhi usne dekha ki panno par leekhai ke kuch
aksh deekh rahe hai.

Wo daud kar apne college bag se pencil nikal kar le aayi aur un
panno par ghasne lagi. Thodi hi der me leekhai ke aksh ubhar kar
saaf ho gaye.

Keetab par leekhe shabdon ko padh wo chaunk gayi. Kya Raj yahi sab
apni kahani me leekhata rehta hai.

...."meine usse keh diya ki mien usse pyaar karta hun. Wo muskura
kar meri taraf dekhti hai. Mien halke se uski chuchi ko chuta hun
aur wo sisak padti hai. Mein aur jor se dabata hoon. Usse aacha
lagta hai.

......Ab mein uski dono chuchiyon ko dabaata hoon. Ab wo garmane
lagti hai. Mein janta hoon wo mujhe pana chahti hai........"

"Kaun hai ye ladki...?" Roma man hi man badbuda uthti hai. Koi
kalpanaik ladki hai ya hakikat me koi hai...."

Roma keetab ko apni chati se lagaye palang par let jaati hai. Wo
sochne lagti hai ki wo ladki kaun ho sakti hai. Achanak use lagata
hai ki wo ladki khud hi hai. Apni hi kalpana me khoye wo apne aksh
ko un kore panno me dhoondne ki koshish karti hai.

"Ohhhh Raj mein tumse kitna pyar karti hoon." Wo keh uthti hai, use
lagta hai ki Raj uske bagal me hi leta hua hai.

Apna pyaar khud par jahir kar use laga ki uske dil se bojh uttar
gaya. Jin bhavnao ko wo chupate aayi thi aaj wo rang deekhane lagi
thi. Uske hath khud ba khud uski chuchiyon par jaa pahunche aur
wo unhe masalne lagti hai. Uttejna aur pyaar ki madakta me uske
nipple tan kar khade jo jate hai. Kaamukta ki aag me uska badan
ainthne lagta hai.

Darwaze par thapthapahat sun uska dhyaan bhang hota hai. Phir jaise
wo darwaze ko khulta dekhti hai jhat se apna hath apni chuchiyon se
kheench leti hai.

Raj ne ardh khule darwaze se andar jhanka. Usne dekha ki Roma ka lal
rang ka top thoda upar ko khiska hua tha aur uski chuchiyon ki
goliyan saaf deekh de rahi thi sath hi uske khade nipple bhi uski
nazar se bach nahi sake. Is nazare ko dekh uska lund uski short me
phir ek bar tan kar khada ho gaya.

Roma ne uski nazron ka peecha kiya to usne dekha ki Raj uski
chuchiyon ko hi ghoor raha tha. Usne jhat se apne top ko niche kiya
par aisa karne se uske nipple aur tane hue dekhai dene lagi. Sharm
aur haya ke mare uska chehra laal ho gaya.

"Tum meri jagah par kachra faink kar aayi uske liye tumhe thanks
kehne aaya tha." Raj ne kaha.

"Koi baat nahi." wo chahti thi ki Raj jaldi se jaldi yahan se chala
jaye.

Raj kuch aur kehna chahta tha lekin jab usne dekha ki Roma sharma
rahi hai to uski man ko padhte hue wo chupchap wahan se chala gaya.

Roma apne chehre ke apne hathon se dhak apne aapko kosne
lagi, "bewkoof ladki aaj kitne mahino baad usne tumnse is tarah
pyaar se baat ki aur tum ho ki use bhaga diya. Tumhe bistar par uth
kar bith jana tha aur use kamre me aane ke liye kehti. Bewkoof
bewkoof."

Jaise hi wo bistar par se uthne lagi uski nazar Raj ki kitab aur
pencil par padi, "Hey bhagan kaash usne ye sab na dekha ho."

Roma soch me pad gayi ki hey bhagwan usne ye kya kiya. Agar Raj ne
wo keetab dekh li hogi to ek bar phir usne Raj ko kho diya hai. Wo
apni rulai ko rok na payi, uski aankhon se tar tar aansu behne lage.

* * * * *

Raj ka dhyan apni behan par se hataye nahi hat raha tha. Jab wo
bahar se aaya to mummy ne usse kaha tha ki wo jakar Roma ka
dhanyawad kare kyon ki uska kaam Roma ne kiya tha.

Mummy ki agya maan wo uske kamre me gaya tha aur usne use thanks
kaha tha. Jab usne Roma ko bistar par lete dekha to use wo kisi
apsara se kam nahi lagi thi. Jis tarah se wo leti thi aur uske top
upar ko uthe hue uski chuchiyan ko aur uske khade nipple deekh rahe
the wo thik kisi kaam devi ki tarah lag rahi thi.

Uske dil me to aaya ki un kuch lamho me wo apne dil ki baat Roma ko
bata de lekin dil ki baat juban tak aa nahi payi. Uski samajh me
nahi aaya ki wo apne jajbat kis tarah apni sagi behan ko bataye. Wo
apni baaton ko shabdon me dhaal nahi paya. Use pata tha ki thode
dino me Roma college chali jayeggi aur shayad use phir mauka na mile
use batane ka.

Raj apne kamre me aa gaya, wo chahta to seedhe Roma ke kamre me
jaata aur use sab kuch bata deta par usme shayad itni himmat nahi
thi ki wo use bata paye.

Use umeed thi ki raat ke khane par Roma se uski mulakat hogi. Par
Roma thi ki uska kahin pata nahi tha. Raj ne khana khatma hi kiya
tha ki uska sabse pyara dost Jay apni behan Riya ke sath aa
pahuncha. Riya bagal ke sehar ke college me padhti thi. Jay Raj ki
hi umar ka tha aur dono ne gradutaion sath sath pura kiya tha.
kramashah.............

आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ , मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ .. मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,, बस यही सोचकर थोडा सा पाप
भी कर लेता हूँ आपका दोस्त राज शर्मा (¨`·.·´¨) Always `·.¸(¨`·.·´¨)
Keep Loving & (¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling ! `·.¸.·´ -- raj

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दो बदन एक जान पार्ट--1

दो बदन एक जान   पार्ट--1
राज अपने घर से कुछ दूरी पर बने तालाब के किनारे एक पेड़ की छाया
मे बैठा था. राज एक 21 वर्ष का गथीला नौजवान था. सिर पर
काले घूघराले बाल, चौड़ी बलिश्त छाती और मजबूत बाहें.

ये उसकी पसंदीदा जगह थी. उसे जब भी समय मिलता वो यहीं आकर
बैठता था. यहाँ का शांत वातावरण और एकांत उसे अछा लगता था.

राज ने आगे बढ़कर एक पत्थर को उठा लिया और हवा मे उछालने लगा
जैसे की उसका वजन नाप रहा हो. फिर उसकी निगाह आपने सामने रखे
कुछ पन्नो पर पड़ी, जिनपर सुंदर अक्षरों मे कुछ लिखा हुआ था.
काग़ज़ के पन्ने हवा मे फड़ फाडा रहे थे.

पत्थर के वजन से सन्तूस्त हो उसने वो पन्ने अपनी गोद मे रख लिए
और पत्थर को ठीक उनके बीचों बीच रख कर पन्नो को उस पत्थर से
लपेट दिया. फिर अपनी जेब से एक पतली सी रस्सी निकाल उसने उन पन्नो
को बाँध दिया.

वो अपनी जगह से उठा और तालाब के किनारे पर आकर उस पत्थर को
पानी के बीचों बीच फैंक दिया. पत्थर के फैंकते ही पानी जोरों से
चारों तरफ उछला और वो पत्थर तालाब की गहराइयों मे समाता चला
गया.

राज चुपचाप सोच रहा था कि ना जाने कितने ही ऐसे पन्ने इस तालाब
की गहराईओं मे दफ़न पड़े है. वैसे तो पानी का एक कतरा उन पर
लीखी लकीरो को मिटाने के लिए काफ़ी है पर अगर शब्द सिर्फ़
धुंधले पड़ गये तो वो पढ़ने के लिए काफ़ी होंगे. क्या उसे इन पन्नो
को जला देना चाहिए था जिसपर उसने अपनी कल्पना को एक कहानी की
शक्ल मे अंजाम दिया था.

तभी उसे तालाब के दूसरी तरफ़ से कुछ आवाज़ सुनाई दी. उसने अपनी
बेहन की आवाज़ को तुरंत पहचान लिया. वो तुरत उस पेड़ के पीछे
छिप गया जिससे आनेवाले की नज़र उस पर ना पड़ सके. जैसे ही उसने
अपनी बेहन को देखा जिसने एक सफेद रंग की शॉर्ट्स के उपर एक लाल
रंग का टॉप पहन रखा था उसकी आँखें बंद हो गयी. उसने पेड़ का
सहारा ले लिया और अपने ख़यालों मे खोया अपनी बेहन रोमा की प्यारी
हँसी सुनने लगा.

थोड़ी ही देर मे उसका लंड उसकी शॉर्ट मे तन कर खड़ा हो गया. दिल
मे ज़ज्बात का एक मीठा मीठा दर्द उमड़ने लगा. वो जानता था कि उसे
एक दिन अपनी बेहन को पाना है. रोमा रोज़ अपनी सहेलियों को घर लाकर
उसे चिढ़ाती थी. उसे उसकी इस हरकत पर प्यार आता था पर वो अपनी
बेहन से इससे कहीं ज़्यादा प्यार करता था. वो जानता था कि रोमा की
सब सहेलियाँ उसे लाइन मारती है पर उसकी सब सुंदर सहेलियाँ भी
उसे अपनी बेहन से अलग नही कर सकती थी.

राज का दायां हाथ उसके खड़े लंड पर आ गया. शॉर्ट्स के उपर से ही
वो अपने लंड के सूपदे को मसल्ने लगा. उसके मुँह से एक मादक कराह
निकली तो पेड़ पर बैठे कुछ पंछी उसकी बेहन की दिशा मे उड़ गये.
उसे तुरंत अपनी ग़लती का एहसास हुआ. उसने अपने आप को और पेड़ के
पीछे इस कदर छुपा लिया कि किसी की भी नज़र उस पर ना पड़ सके.

अपने एकांत से संतुष्ट हो उसने अपनी शॉर्ट्स की ज़िप खोली और अपने
खड़े लंड को खुली हवा मे आज़ाद कर दिया. अब वो अपनी आँखे बंद
अपने लंड को मसल्ने लगता है. खुली आँखों की जगह वो बंद
आखों से अपनी बेहन को और ज़्यादा अच्छे रूप मे देख रहा था.

उसने देखा कि उसकी बेहन नंगे पावं घास पर दौड़ रही है. राज अपनी
18 वर्षीया बेहन के पीछे दौड़ रहा है उसे पकड़ने के लिए और
आख़िर मे वो उसे पकड़ ही लेता है. दोनो घास पर गिर जाते है और
रोमा हंस पड़ती है.

थोड़ी देर बाद वो उसके मुलायम पंजो को मसल्ने लगता है. वो खुले
आसमान के नीचे घास पर लेटे उसकी उंगलियों को महसूस कर रही थी.
वो अपनी जादुई उंगलियों से उसकी पैरों की मालिश करने लगा तो वो
सिसक पड़ी और उसकी छोटे छोटे मम्मे टॉप के अंदर उछलने लगे.

उसने उसकी दाँयी टांग को उठा कर अपनी गोद मे रख लिया. इससे उसकी
जंघे थोड़ी फैल गयी और उसकी नज़र ठीक उसकी जांघों के बीच मे
पड़ी. पैर थोड़ा सा उठा हुआ होने की वजह से शॉर्ट्स के अंदर से सब
दीख रहा था. उसने देखा कि उसने काले रंग की पॅंटी पहन रखी
है और उसकी चूत की बारीक़ियाँ पॅंटी के बगल से दिख रही है.

राज अपनी कल्पना को किसी फिल्म की तरह अपने ख़यालों मे देख रहा
था, और उसका हाथ पूरी रफ़्तार से खुद के लंड पर चल रहा था.

अपनी कल्पना मे राज अपने हाथ उसके नाज़ुक पंजो को मसल्ते मसल्ते
उसके घूटनो तक ले आया और वहाँ की मालिश करने लगा. कितनी
सुंदर मुलायम त्वचा थी. घूटनो की मालिश करते करते भी उसकी
निगाह शॉर्ट्स मे दीखती काली पॅंटी पर टिकी हुई थी. घुटनो से आगे
बढ़ कर उसके हाथ अब जाँघो के अन्द्रुनि हिस्सों पर पहुँचे.

जैसे ही उसका हाथ जांघों से थोड़ा उपर पहुँचा उसका शरीर कांप
उठा. एक शांत रज़ामंदी पा उसके हाथ शॉर्ट्स के अंदर उसकी पॅंटी के
किनारे तक पहुँचे तो उसे लगा जैसे कि कोई गरम भाप पॅंटी के
अंदर से उठ रही है.

ये उसकी कल्पना थी. आखरी क्षण मे जब उसके लंड मे उबाल आने
लगा तो उसने यहाँ तक सोच डाला कि वो उसके पैरों के बीच बैठा
अपने लंड को उस छोटे से छेद मे घुसा रहा हो. उसका लंड उस छोटे
छेद की दीवारों को चीरता हुआ अंदर तक घुस रहा है.

तभी उसके लंड ने उबाल खाया और विर्य की एक लंबी पिचकारी सामने
के पत्रों पर गिरने लगी. वो जोरों से अपने लंड को मसल्ते हुए लंड
से आखरी बूँद तक पत्थरो पर फैंकने लगा. उसने अपनी आँखे
खोली और सामने गिरे वीर्य को देखने लगा.

************

"कहाँ है वो?" रोमा ने अपने आप से पूछा. वो और उसकी सहेली गीता
एक दूसरे का हाथ पकड़े तालाब के किनारे तक आ गये थे. उसने अभी
थोड़ी देर पहले उसे तालाब के किनारे बैठे एक पत्थर को तालाब मे
फैंकते देखा था, अब कहाँ चला गया.

"यार मे तो थक गयी हूँ" गीता ने शिकायत की. उसे पता था कि
उसकी कोई अदा कोई तरीका राज को अपनी तरफ आकर्षित करने मे कामयाब
नही हो पाएगी, "मेरी तो समझ मे नही आ रहा कि में क्या करूँ."

"आओ यहाँ तालाब के किनारे बैठते है." रोमा ने कहा.

तालाब के किनारे बैठते ही उसका ध्यान अपने 21 वर्षीया भाई राज पर
आ टिका. कितना अकेला अकेला रहता है वो. वो हमेशा अपनी सहेलियों
को घर लेकर आती जिससे उसका दिल बहल जाए. पर वो है कि अलग
अलग ही रहना पसंद करता है.

रोमा को पता था कि उसका भाई एक प्यारा और जज्बाती इंसान है. वो
अपने कॉलेज की आखरी साल मे थी और राज ग्रॅजुयेशन कर चुका था.
ग्रॅजुयेशन करने के बाद भी उसने अभी तक कोई गर्ल फ़्रेंड नही
बनाई थी. वो इसी उम्मीद से अपनी सहेलियों को घर लाती कि शायद
इनमे से कोई उसके भाई को भा जाए. पर ऐसा ना होने पर अब उसकी
सहेलियों ने भी आना छोड़ दिया था. गीता भी यही शिकायत कर
रही थी. रोमा को सब समझ मे आ रहा था और उसे अपने भाई पर
झुंझलाहट भी हो रही थी और उसकी इस अदा पर प्यार भी आता था.

"सिर्फ़ अपनी स्टुपिड किताब मे कुछ लिखता रहता है." रोमा ने शिकायत
करते हुए कहा.

"राज...और लिखता रहता है?" गीता ने आश्‍चर्या से पूछा.

"हाँ और क्या." रोमा ने कहा, "यही काम है जो वो दिन भर करता
रहता है. ग्रॅजुयेशन के बाद कितना बदल गया है वो. ऐसा लगता
है कि उसकी जिंदगी किसी जगह आकर ठहर गयी है. वो मुझे भी
हर समय नज़र अंदाज़ करता रहता है. समझ मे नही आता की उसे
परेशानी क्या है. "

"क्या लिखता रहता है वो अपनी किताब मे?" गीता ने पूछा.

रोमा ने अपने कंधे उचकते. हुए कहा, "मुझे पता नही. मेने कई
बार जानने की कोशिश कि लेकिन वो अपनी कीताब इस कदर छुपा कर
रखता है कि कुछ पता नही. जब वो लिखना ख़तम कर लेता है तो
उन पन्नो को किताब मे से फाड़ देता है. हज़ारों कहानियाँ लिखी होगी
उसने."

"हो सकता हो कि वो कहानियाँ ना हो, सिर्फ़ डायरी मेनटेन करता हो"
गीता ने कहा.

"हां हो सकता है," रोमा ने इतना कहा ही था कि उसने राज को पेड़ के
पीछे से बाहर आते देखा. पहली बार उसे एहसास हुआ कि वो पेड़ के
पीछे था, पर वो कर क्या रहा था? उसने सोचा.

"शैतान का नाम लो और शैतान हाज़िर है." गीता ने हंसते हुए
कहा, "तुम्हे पता है रोमा अगर ये तेरा भाई अगर मुझे रत्ती भर
भी लिफ्ट देता तो में पहले ही दिन उसे सेंचुरी बनाने का मौका दे
देती."

"चल छीनाल कहीं की." रोमा ने कहा, "अछा एक बात तो बता .
अब तक कितने बॅट्स्मन को बॅटिंग करने का मौका दिया है?"

"वैसे अभी तक तो छीनाल बनी नही हूँ." गीता ने कहा, "पर हां
तेरे भाई के लिए छीनाल बनने को भी तय्यार हूँ, मैं तो बस इतना
कहती हूँ कि मैं अपनी जान देती हूँ इसपर."

"हां ये तो है." रोमा ने अपने भाई की ओर देखते हुए कहा जो तालाब
के राउंड लगाते हुए उनकी तरफ ही आ रहा था.
क्रमशः.............


दो बदन एक जान  paart--1
Raj apne ghar se kuch doori par bane talab ke kinare ek ped ki chaya
me baitha tha. Raj ek 21 varsh ka gatheela naujawan tha. Sir par
kaale ghooghralu baal, chaudi balisht chaati aur majboot bahen.

Ye uski pasindada jagah thi. Use jab bhi samay milta wo yahin aakar
baithta tha. Yahan ka shant vatavaran aur ekant use acha lagta tha.

Raj ne aage badhkar ek pathar ko utha liya aur hawa me uchalne laga
jaise ki uska wajan naap raha ho. Phir uski nigah aapne saamne rakhe
kuch panno par padi, jinpar sundar aksharon me kuch likha hua tha.
Kagaz ke panne hawa me phad phada rahe the.

Pathar ke wajan se santoosht ho usne wo panne apni god me rakh liye
aur pathar ko thik unke beechon beech rakh kar panno ko us pather se
lapet diya. Phir apni jeb se ek patli si rassi nikal usne un panno
ko bandh diya.

Wo apni jagah se utha aur talab ke kinare par aakar us pathar ko
pani ke beechon beech faink diya. Pathar ke fainkte hi pani joron se
charon taraf uchala aur wo pathar talab ki gehraiyon me samata chala
gaya.

Raj chupchap soch raha tha ki naa jane kitne hi aise panne is talab
ki gehraion me dafan pade hai. Waise to pani ka ek katra un par
leekhi lakeereon ko mitane ke liye kafi hai par agar shabd sirf
dhoondle pad gaye to wo padhne ke liye kafi honge. Kya use in panno
ko jala dena chahiye tha jispar usne apni kalpaana ko ek kahani ki
shakl me anjaam diya tha.

Tabhi use talab ke doosri tarf se kuch awaaz sunai dee. Usne apni
behan ki awaaz ko turant pehchan liya. Wo turat us ped ke peeche
chip gaya jisse aanewale ki nazar us par na pad sake. Jaise hi usne
apni behan ko dekha jisne ek safed rang ki shorts ke upar ek laal
rang ka top pehan rakha tha uski aankhen band ho gayi. Usne ped ka
sahara le liya aur apne khayalon me khoya apni behan Roma ki pyaari
hansi sunne laga.

Thodi he der me uska lund uski short me tan kar khada ho gaya. Dil
me jajbat ka ek meetha meetha dard umadne laga. Wo janta tha ki use
ek din apni behan ko pana hai. Roma roz apni saheliyon ko ghar lakar
use chidhati thi. Use uski is harkat par pyaar aata tha par wo apni
behan se isse kahin jyada pyaar karta tha. Wo janta tha ki Roma ki
sab saheliyan use line marti hai par uski sab sunder saheliyan bhi
use apni behan se alag nahi kar sakti thi.

Raj ka dayan hath uske khade lund par aa gaya. Shorts ke upar se hi
wo apne lund ke supade ko masalne laga. Uske munh se ek madak karah
nikali to ped par baithe kuch panchi uski behan ki disha me ud gaye.
Use turant apni galti ka ehsas hua. Usne apne aap ko aur ped ke
peeche is kadar chupa liya ki kisi ki bhi nazar us par na pad sake.

Apne ekant se santoosht ho usne apni shorts ki zip kholi aur apne
khade lund ko khuli hawa me azaad kar diya. Ab wo apni aankhe band
apne lund ko masalne lagta hai. Khuli aankhon ke jagah wo band
aakhon se apni behan ko aur jyada acche roop me dekh raha tha.

Usne dekha ki uski behan nange paon ghas par daud rahi hai. Raj apni
18 varshiya behan ke peeche daud raha hai use pakadne ke liye aur
aakhir me wo use pakad hi leta hai. Dono ghas par gir jaate hai aur
Roma hans padti hai.

Thodi der bad wo uske mulayam panjo ko masalne lagta hai. Wo khule
aasman ke neeche ghas par lete uski ungliyon ko mehsus kar rahi thi.
Wo apni jaadui ungliyon se uski pairon ki maalish karne laga to wo
sisak padi aur uski chote chote mame top ke andar uchalne lage.

Usne uski daanyi tang ko utha kar apni god me rakh liya. Isse uski
janghe thodi fail gayi aur uski nazar thik uski janghon ke beech me
padi. Pair thoda sa utha hua hone ki wajah se shorts ke andar se sab
deekh raha tha. Usne dekha ki usne kale rang ki panty pehan rakhi
hai aur uski choot ki baarikiyan panty ke bagal se dikh rahi hai.

Raj apni kalpana ko kisi film ki tarah apne khayalon me dekh raha
tha, aur uska hath puri raftar se khud ke lund par chal raha tha.

Apni kalpana me Raj apne hath uske naajuk panjo ko masalte masalte
uske ghootno tak le aya aur wahan ki maalish karne laga. Kitni
sunder mulayam twacha thi. Ghootno ki maalish karte karte bhi uski
nigah shorts me deekhti kali panty par tiki hui thi. Ghutno se aage
badh kar uske hath ab jangho ke andruni hisson par pahunche.

Jaise hi uska hath janghon se thoda upar pahuncha uska sharir kanp
utha. Ek shant razamandi paa uske hath shorts ke andar uski panty ke
kinare tak pahunche to use laga jaise ki koi garam bhap panty ke
andar se uth rahi hai.

Ye uski kalapana thi. Aakhri chano me jab uske lund me ubaal aane
laga to usne yaahn tak soch dala ki wo uske pairon ke beech baitha
apne lund ko us chote se ched me ghusa raha ho. Uska lund us chote
ched ki deewaron ko chirta hua andar tak ghus raha hai.

Tabhi uske lund ne ubal khaya aur virya ki ek lambi pichkari samne
ke pathron par girne lagi. Wo joron se apne lund ko masalte hue lund
se aakhri boond tak pathoron par fainkne laga. Usne apni aankhe
kholi aur samne gire virya ko dekhne laga.

************

"Kahan hai wo?" Roma ne apne aap se pucha. Wo aur suki saheli Geeta
ek doosre ka hath pakde talab ke kinare tak aa gaye the. Usne abhi
thodi der pehle use talab ke kinare baithe ek pathar ko talab me
fainkte dekha tha, ab kahan chala gaya.

"Yaar me to thak gayi hun" Geeta ne shikayat ki. Use pata tha ki
uski koi ada koi tareeka Raj ko apni taraf aakarshit karne me kamyab
nahi ho paigi, "Meri to samajh me nahi aa raha ki mein kya karun."

"Aao yahan talab ke kinare baithte hai." Roma ne kaha.

Talab ke kinare baithte hi uska dhyaan apne 21 varshiya bhai Raj par
aa tika. Kitna akela akela rehta hai wo. Wo hamesha apni saheliyon
ko ghar lekar aati jisse uska dil behal jaye. Par wo hai ki alag
alag hi rehna pasand karta hai.

Roma ko pata tha ki uska bhai ek pyaara aur jajbati insaan hai. Wo
apne college ki aakhri saal me thi aur Raj graduation kar chuka tha.
Graduation karne ke baad bhi usne abhi tak koi girl freind nahi
banayi thi. Wo isi umeed se apni saheliyon ko ghar laati ki shayad
inme se koi uske bhai ko bha jaye. Par aisa na hone par ab uski
saheliyon ne bhi aana chod diya tha. Geeta bhi yahi shikayat kar
rahi thi. Roma ko sab samajh me aaa raha tha aur use apne bhai par
jh*****at bhi ho rahi thi aur uski is ada par pyaar bhi aata tha.

"Sirf apni stupid kitab me kuch likhta rahta hai." Roma ne shikayat
karte hue kaha.

"Raj...aur likhta rehta hai?" Geeta ne ashcarya se pucha.

"Haan aur kya." Roma ne kaha, "yahi kaam hai jo wo din bhar karta
rehta hai. Graduation ke baad kitna badal gaya hai wo. Aisa lagata
hai ki uski jindagi kisi jagah aakar thehar gayi hai. Wo mujhe bhi
har samay nazar andaz karta rehta hai. Samajh me nahi aata ki use
pareshani kya hai. "

"Kya likhta rehta hai wo apni kitaab me?" Geeta ne pucha.

Roma ne apne kandhe uchkate hue kaha, "mujhe pata nahi. Meine kai
bar janne ki koshish ki lekin wo pani keetab is kadar chupa kar
rakhta hai ki kuch pata nahi. Jab wo likhna khatam kar leta hai to
un panno ko kitaab me se phad deta hai. Hazaron kahaniyan likhi hogi
usne."

"Ho sakta ho ki wo kahaniyan na ho, sirf dairy maintain karta ho"
Geeta ne kaha.

"Haan ho sakta hai," Roma ne itna kaha hi tha ki usne Raj ko ped ke
peeche se bahar aate dekha. Pehli baar use ehsas hua ki wo ped ke
peeche tha, par wo kar kya raha tha? usne socha.

"Shaitan ka naam lo aur shaitan hazir hai." Geeta ne hanste hue
kaha, "tumhe pata hai Roma agar ye tera bhai agar mujhe rati bhar
bhi lift deta to mein pehel hi din use century banane ka mauka de
deti."

"Chal chinal kahin ki." Roma ne kaha, "achaa ek baat to bata wiase
ab tak kitne batsman ko batting karne ka mauka diya hai?"

"Waise abhi tak to chinal bani nahi hun." Geeta ne kaha, "par haan
tere bhai ke liye chinal banne ko bhi tayyar hun, mein to bas itna
kehti hun ki mein apni jaan deti hun ispar."

"Haan ye to hai." Roma ne apne bhai ki aur dekhte hue kaha jo talab
ke round lagate hue unki taraf hi aa raha tha.
kramashah.............


आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ , मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ .. मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,, बस यही सोचकर थोडा सा पाप
भी कर लेता हूँ आपका दोस्त राज शर्मा (¨`·.·´¨) Always `·.¸(¨`·.·´¨)
Keep Loving & (¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling ! `·.¸.·´ -- raj

--

हिंदी सेक्सी कहानियाँ मस्त काम वाली सोना बाई

मस्त काम वाली सोना बाई
प्रेषिका : कामिनी सक्सेना
सोना कई वर्षों से घर में नौकरानी का काम करती थी। नीरजा और करण पति
पत्नी थे और उनकी कोई सन्तान नहीं थी। करण का व्यवसाय अच्छा चल रहा था।
नीरजा तो बस अपनी सहेलियों के साथ किटी पार्टी और दूसरे कामों में लगी
रहती थी। उसका झुकाव करण के एक व्यवसायी मित्र आनन्द और मन्जीत की तरफ़ भी
था। उनकी और नीरजा की मित्रता के कारण वो करण को अधिक समय नहीं दे पाती
थी, रात्रि-मिलन भी कम ही हो पाता था। करण को उसके इन सम्बन्धों का पता
था, ऐसे में कई महीनों से करण का झुकाव घर की नौकरानी सोना की तरफ़ हो चला
था। उसका बदन तराशा हुआ था। वो दुबली पतली इकहरे बदन की थी, उसकी छातियाँ
सुडौल और मांसल थी। बदन पर लुनाई थी। कसे बदन वाली सोना से करण कई बार
प्रणय की कोशिश भी कर चुका था। पर सोना सब समझ कर भी उनसे दूर रहती थी।
उसे पता था कि नीरजा को पता चलेगा तो उसकी जमी हुई नौकरी हाथ से चली
जायेगी। सोना का दिल भी करण को चाहने लगा था।
सोना का पति एक बूढ़ा आदमी था जो लगभग 60 वर्ष का था, बीमार रहता था।
पैसों का लालच देकर उसने कम उम्र सोना को ब्याह लिया था। पर उसके साथ
शारिरिक सम्बन्ध ना के बराबर थे। नीरजा अक्सर उससे चुदाई की बातें पूछा
करती थी। सोना निराशा से उसे बरसों पहले हुई अपने आदमी की चुदाई की बातें
बताती थी, कि कैसे वो दारू पी कर उसके साथ चुदाई क्या बल्कि बलात्कार
करता था। सोना जब उससे करण से चुदाई के बारे में पूछती तो वो नीरजा बहुत
रंग में आकर उसे सेक्सी बातें बताया करती थी। सोना तो जैसे उसकी बातें
सुन कर सपनो में खो जाया करती थी। नीरजा उसके चेहरे के उतार-चढ़ाव को
देखती थी, उसके भावों को समझती थी।
एक दिन सोना को नीरजा ने बड़े प्यार से झटका दे दिया,"सोना, करण से चुदवायेगी ?"
सोना की आँखें फ़टी की फ़टी रह गई। उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि नीरजा क्या कह रही है।
"जी, क्या कहा आपने ?"
"करण तुझ पर मरता है, तुझे चोदना चाहता है !"
"दीदी, यह आप कह रही है, वो तो मुझे भी अच्छे लगते हैं, पर यह सब? तौबा !"
"अच्छा, मैं तुझे इस काम के लिये बहुत पैसे दूंगी, प्लीज सोना मान जा !"
सोना ने मुस्करा कर अपना सर झुका लिया। वो धीरे से नीरजा के पास जाकर
नीचे बैठ गई और उसके पैर पकड़ लिये।
"मेरी किस्मत ऐसी कहाँ है, दीदी ... आपकी मेहरबानी सर आँखो पर ... मैं तो
हमेशा के लिये आपकी दासी हो गई..."
नीरजा ने उसे उठा कर अपने गले से लगा लिया।
शाम को सोना काम पर आई तो सोना ने अपने हिसाब से अपना मेकअप किया हुआ था।
पर नीरजा ने उसे फिर से अच्छा सा सजाया और उसे करण के कमरे में काम करने
के लिये भेज दिया। करण ने उसे देखा तो वो देखता ही रह गया। सोना इतनी
खूबसूरत है यह तो उसने कभी सोचा भी नहीं था। नीरजा जानती थी कि करण को
क्या पसन्द है उसने उसे वैसा ही सजा दिया था।
"सोना, तुम तो बहुत सुन्दर हो ... जरा पास तो आओ !"
सोना सकुचाती हुई उसके पास चली आई।
करण उसे छू कर बोला,"ये तुम्हीं हो ना या कोई सपना !"
सोना ने अपनी बड़ी बड़ी आँखें धीरे धीरे करके ऊपर उठाई और मुस्कराई।
"आपने तो हमें कभी ठीक से देखा तक नहीं, भला नौकरों की तरफ़ क्यूँ कोई देखेगा?"
करण ने उसके मुख पर अपनी अंगुली रख दी। सोना एक कदम और आगे बढ़ गई, उसे
नीरजा की तरफ़ से छूट जो मिल गई थी। करण ने उसको इतना समीप से कभी नहीं
देखा था। उसकी शरीर की खुशबू करण के नथुनो में समाती चली गई। करण ने
अन्जाने में सोना का हाथ पकड़ लिया। सोना पर जैसे हजारों बिजलियाँ कड़क
उठी, शरीर थर्रा गया। करण की गरम सांसें अपने चेहरे पर आती हुई प्रतीत
हुई। उसने आँखें खोली तो देखा करण के होंठ उस तक पहुँच रहे थे। सोना घबरा
सी गई, उसे लगा कि यह पाप है।
"ना, भैया, नहीं ! मैं गरीब मर जाऊंगी !" उसकी आवाज में घबराहट और कम्पन था।
"नहीं, आज ना मत कहो, कब तक मैं जलता रहूंगा?"
"गरीब पर दया करो, भैया जी।"
पर करण ने उसे दबोच लिया और उसके पतले पंखुड़ियों जैसे होंठों को अपने
होंठों से लगा लिया। करण के हाथ उसकी पीठ को यहाँ-वहाँ दबाने लगे थे।
सोना होश खोती जा रही थी। उसके सपनों का साथी उसे मिल गया था।
तभी ताली की आवाज आई,"बहुत खूब ! तो यह सब हो रहा है? तो करण, तुमने सोना
को पटा ही लिया?" नीरजा सभी कुछ देख रही थी, बस उसे उसे अच्छा मौका
चाहिये था, कमरे में प्रवेश करने के लिये।
"नहीं, नीरजा वो तो यूँ ही मैं..."
"... किस कर रहा था, किये जाओ, रुक क्यों गये ?"
"अरे तुम तो बुरा मान गई, सोना, जाओ यहाँ से... चलो !"
"अरे नहीं, करण मुझे बुरा नहीं लगा, हां पर सोना को जरूर लगेगा। लगे रहो,
मैं खुश हूँ कि तुमने सोना को पटा लिया ... चलो शुरू हो जाओ !"
नीरजा वापस अपने कमरे में लौट गई। जाते जाते उसने कमरे का दरवाजा बन्द कर
दिया। सोना ने करण को फिर से अपने से चिपका लिया और दोनों प्यार करने
लगे।
करण ने सोना का स्तन अपने हाथों में लेकर उसे सहलाना आरम्भ कर दिया। सोना
की चूचियाँ सख्त होने लगी। चुचूक कड़े हो कर और भी सीधे हो गये। सोना के
दिल पर उन दोनों के इस नाटक का कोई असर नहीं हुआ था, वो तो चुदने को
बेताब थी। करण ने सोना का ब्लाऊज सामने से खोल दिया था और उसके नंगे
उरोजों को दबा रहा था। सोना से भी नहीं रहा गया तो उसने उसका कड़क लण्ड
पकड़ लिया, उसकी पैन्ट खोल कर खींच कर बाहर निकाल लिया और उसे धीरे धीरे
मलने लगी। दोनों के मुख से सिसकारियाँ निकलने लगी थी।
तभी नीरजा बिल्कुल नंगी हो कर कमरे में आ गई। उसने आते ही करण को आंख
मारी जो सोना ने भी देख लिया था। उसने पीछे से आकर सोना का ब्लाऊज उतार
दिया और उसकी साड़ी भी उतार दी।
"कहो सोना, पेटीकोट भी उतार दूँ या इसे ऊँचा करके काम चलाओगी?" नीरजा
हंसीयुक्त आवाज ने सोना को शर्म से पानी पानी कर दिया। नीरजा ने जल्दी से
उसका नाड़ा खोला और पेटीकोट नीचे सरका दिया। सोना का दमकता रूप देख कर वो
स्वयं भी हैरान रह गई। कीचड़ में कमल का फ़ूल ! सोना का एक एक अंग तराशा
हुआ था, गजब के कट्स थे। उसकी गहराईयाँ और उभार बहुत पुष्ट और सुघड़ थे।
नीरजा ने सोचा कि तभी करण इस पर मरता था, मरना ही चाहिये था ! उसे खुद का
जिस्म देख कर शर्म सी आने लगी थी, साधारण सा उभार, कोई विशेष बात नहीं,
फिर भी करण उसे बहुत प्यार करता था, बहुत इज्जत देता था।
नीरजा करण के पास गई और उसकी पैंट और चड्डी उतारने लगी। फिर उसकी बनियान
भी उतार दी। नीरजा ने उन दोनों देखा, लगा कि जैसे ये दोनों एक दूसरे के
लिये ही बने हैं। किस्मत का खेल देखो, सोना को मिला बुढ्ढा और मुझे मिला
एक सजीला खूबसूरत जवान, जिसकी उस स्वयं ने कभी कदर नहीं की।
नीरजा बड़े प्यार से दोनों को धीरे धीरे सेज पर ले गई।
" सोना, कहो, पहले आगे या पिछाड़ी, ये गाण्ड बहुत प्यारी मारते हैं।"
वो शर्म से सिमटने लगी। उसका चेहरा लाल हो चुका था।
"दीदी, कैसी बातें करती हो, मैं तो आपकी दासी हूँ ... ये तो जैसी आपकी इच्छा..."
"अच्छा करण तुम बताओ, क्या मारोगे, सोना की चूत या गाण्ड ?"
"मेरी प्यारी सोना की गोल गोल गाण्ड बड़ी मोहक है, नीरजा चलो वहीं से
आरम्भ करते हैं।"
"तो सोना जी, हो जाओ तैयार, और कर दो अपनी मेहरबानी करण पर, उठ जाओ और बन
जाओ घोड़ी !"
सोना उठ कर पलट कर अपनी गाण्ड ऊंची कर ली और घोड़ी सी बन गई। उसके खूबसूरत
गोरे गोरे चूतड़ो का जोड़ा चमक रहा था, उसमें से उसकी प्यारी गाण्ड का फ़ूल
खिलता हुआ नजर आ रहा था। भूरा और गुलाबी रंग का द्वार ... करण से रहा
नहीं गया। वो झुक गया गया। उसकी लम्बी सी जीभ लपलपा कर उसकी गाण्ड चाटने
लगी। जीभ को मोड़ कर उसने गाण्ड के भीतर भी घुसाने की कोशिश की। उसका यह
कृत्य सोना को बहुत आनन्दित कर रहा था। नीरजा भी अपने हाथों से सोना के
चूतड़ों को पकड़ कर खींच कर और खोल रही थी। सोना की चूत रस से भर गई थी और
उसका गीलापन बाहर निकल रहा था। उसकी चूत का जायका भी उसकी जीभ ने मधुरता
से ले ही लिया। सड़ाक सड़ाक करके उसका रस करण के मुख में प्रवेश कर गया।
सोना ने वासना से भर कर नीरजा की जांघ को अपने दांतों से काट लिया।
"अब हो जाये ... एक भरपूर वार !" नीरजा ने करण को इशारा किया और अपनी
कोल्ड क्रीम की शीशी खोल कर सोना के गाण्ड के भीतर और बाहर चुपड़ दी। थोड़ी
सी करण के लौड़े पर भी लगा दी। करण तो बहुत उतवला होने लगा था। वो अपना
लण्ड सोना की गाण्ड पर लगा कर दबाने लगा। क्रीम का असर था, लण्ड फ़क से
भीतर चला गया। सोना चिहुंक उठी। फिर एक हल्का झटका, लण्ड एक चौथाई अन्दर
घुस गया। उसे दर्द हुआ, उसका जबड़ा दर्द से भिंच गया। दूसरे झटके में लण्ड
आधा अन्दर पहुँच गया था। उसके चेहरे पर दर्द की लकीरें उभर आई थी। एक
हल्की सी कराह निकल पड़ी थी। नीरजा का इशारा पा कर करण ने भी अब रहम करना
छोड़ दिया और आखिरी शॉट जोर से मार दिया। लण्ड पूरा घुस चुका था। सोना के
मुख से एक चीख निकल पड़ी।
"बहुत दर्द होता है, दीदी, कहो ना धीरे से चोदें !"
पर करण कहाँ सुनने वाला था। उसने उसे तीव्र गति से चोदना आरम्भ कर दिया
था, वो कराहती जा रही थी। नीरजा उसके स्तनों को मसल मसल कर उसे मस्त करना
चाह रही थी, पर शायद दर्द अधिक हो रहा था। कुछ देर यूँ ही गाण्ड चोदने के
बाद उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।
नीरजा समझ गई थी कि अब उसे चूत की चाह है। नीरजा ने सोना की चूत पर हाथ
फ़ेरा और उसकी चूत खोल दी। रस से लबरेज चूत लप-लप कर रही थी। लण्ड के
गाण्ड से निकलते ही सोना ने राहत की सांस ली। तभी नीरजा ने उसकी चूत खोली
तो वो मस्त होने लगी। उसे लगा कि अब मुझे एक प्यारा सा लण्ड मिलने वाला
है। वो वर्षों से नहीं चुदी थी, वो गाण्ड का दर्द भूल कर आसक्ति से करण
को देखने लगी,"भैया, अन्दर डालो ना ... मुझे मस्त कर दो... हाय !"
नीरजा ने करण का लौड़ा पकड़ कर उसकी योनि में प्रवेश करा दिया। लण्ड के
घुसते ही उसके मुख से सुख भरी आह निकल गई। उसने नीरजा का इशारा पा कर
धीरे धीरे लण्ड से चूत में घर्षण आरम्भ कर दिया। पर एक स्थान पर जाकर वो
रुक गया, उसने देखा कि लण्ड तो आधा ही अन्दर घुसा है, उसने जोर मार कर
धक्का दिया।
सोना चीख उठी,"धीरे से ... यहाँ भी दर्द हो रहा है ... भैया प्लीज !"
पर करण ने फिर से एक धक्का और दिया। वो फिर से चीख उठी। तभी करण ने अगला
करारा शॉट जोर से मारा। सोना दर्द से बिलख उठी।
"भैया, क्या फ़ाड़ ही डालोगे !"
"नहीं री मेरी सोना, देखो गाण्ड में भी दर्द हुआ था ना, क्या हुआ ... बस
दर्द ही ना ... फिर तो रोज चुदवाओगी तो मजा आने लगेगा।"
"सच भैया, मुझे रोज चोदोगे..." सोना खुश हो गई।
अब करण जम के चुदाई करने लगा। कुछ ही देर में सोना भी मस्त होने लगी। उसे
बहुत ही आनन्द आने लगा। वो भी सीत्कार के रूप में अपना आनन्द दर्शा रही
थी। वो अपनी गाण्ड और भी पीछे की ओर उभार कर चुदवाने लगी थी। नीरजा
मुस्कराती हुई उसके स्तन मसल रही थी। फिर नीरजा करण के पीछे चली आई। करण
सोना का स्तन मर्दन करने लगा था। तभी करण की गाण्ड में नीरजा ने चिकनाई
लगाकर अपनी एक अंगुली घुसेड़ दी। उसे पता था कि ऐसे करने से करण बहुत
उत्तेजित हो जाता था। करण की लटकती गोलियाँ नीरजा दूसरे हाथ से पकड़ कर
खींच रही थी और सहला रही थी। अंगुली तेजी से गाण्ड के अन्दर-बाहर आ-जा
रही थी। करण जबरदस्त उत्तेजना का शिकार होने लगा। तभी सोना ने एक खुशी की
किलकारी भरी और झड़ने लगी। उसके झड़ने के बाद नीरजा ने करण का कड़क लण्ड
बाहर खींच लिया। सोना निढाल हो कर बिस्तर पर चित लेट गई।
नीरजा ने करण का लण्ड अपने मुठ में भर लिया। गाण्ड में अंगुली से चोदते
हुये उसने करण का मुठ मारना आरम्भ कर दिया। करण आनन्द के मारे तड़प उठा और
उसकी एक वीर्य की मोटी धार लण्ड मे से पिचकारी जैसी निकल पड़ी। वीर्य सोना
के अंगो में गिर कर उसे गीला करता रहा। करण ईह्ह्ह्ह उफ़्फ़्फ़ करके झड़ता
रहा। नीरजा ने करण को अपने वक्ष से लगा लिया और प्यार करने लगी।
"करण मजा आया ना?"
"पूछने की बात है कोई, ये तो कमाल की चीज़ है यार !"
"अब तो मुझे आनन्द से चुदाई के लिये मना तो नहीं करोगे ना ?" नीरजा ने
अपना मतलब निकाला।
"अरे आनन्द क्या, वो मंजीत सरदार के लिये भी कुछ ना कहूँगा।"
नीरजा ने उसे करण को बहुत प्यार किया फिर सोना से लिपट कर बोली,"आज से
तुम मेरी नौकरानी नहीं, सौत नहीं, मेरी बहन हो। तुम चाहो तो मैं तुम्हें
आनन्द और मन्जीत से भी चुदवा दूंगी।" नीरजा भाव में बह कर बोलने लगी।
"दीदी, आप जिससे कहेंगी, मैं मजा ले लूंगी, देखो भूलना नहीं, वो आनन्द और
मन्जीत वाली बात।"
तीनों एक दूसरे से लिपट कर प्यार करने लगे।
कामिनी सक्सेना
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