गतान्क से आगे.............
रोमा के मन मे जलन सी जाग गयी ये सोच कर कि कितनी लड़कियाँ उसके
भाई पर जान छिड़कती है. उसकी आँखों मे हल्की सी नमी सी आ गयी.
दिल मे एक अजीब सा दर्द सा उठने लगा जो हमेशा किसी वक्त उसके
प्यार से भरा रहता था. अब वो उसपर ध्यान ही नही देता था.
रोमा ने देखा कि राज उनकी तरफ ही बढ़ रहा है. जलन के मारे उसने
गीता को देखा जो घास पर लेटी थी और अपने उठे हुए मम्मे दीखाने
की कोशिश कर रही थी. उसकी चुचियाँ किसी मधुमक्खी के छ्त्ते
की तरह उठी हुई थी जैसे की मक्खियो को न्योता दे रही हो. उसकी
समझ मे नही आ रहा था कि अगर राज ने उसकी तरफ ध्यान दिया और
कुछ कहा तो वो क्या करेगी.
किंतु राज ने ऐसा कुछ नही किया और उसकी बगल से गुज़ारते हुए उसके
सिर को ठप थपाते हुए सिर्फ़ इतना कहा, "अपनी जिंदगी को जीना
सीखो और मेरी जिंदगी मे दखल देना बंद करो."
राज की बात उसके दिल को चुब सी गयी किंतु दिल मे एक अजीब सी खुशी
भी जाग उठी. आज कितने महीनो बाद उसके भाई ने उससे बात की थी.
खुशी की एक हल्की लकीर उसके होठों पर आ गयी.
"में तो अपनी जिंदगी जी रही हूं लेकिन एक तुम हो जो अपनी जिंदगी
से भाग रहे हो..." रोमा ने अपनी खुशी को छुपाते हुए कहा.
राज ने एक राहत की सांस ली. वो हमेशा से डरता था कि अगर वो रोमा
के ज़्यादा करीब रहेगा तो एक दिन उसकी बेहन उसके मन की भावनाओ को
पहचान लेगी. जबसे उसकी कल्पनाओ मे वो आने लगी थी उसने उसके करीब
रहना छोड़ दिया था. एक यही तरीका था उसके पास से अपने ज़ज्बात और
अपनी भावनाओ को छिपाने का. वो अपनी बेहन को बहोत प्यार करता था
और उससे दूर रह कर ही वो एक बड़े भाई का फ़र्ज़ निभा सकता था.
"तुम सच कहती हो रोमा, वो अपनी जिंदगी से भाग ही रहा है." राज
के व्यवहार को देख गीता को एक बार फिर दुख पहुँचा था. उसने
कितना प्रयत्न किया था कि वो राज को आकर्षित कर सके किंतु वो
सफल नही हो पा रही थी.
"रोमा में अब चलती हू सोमवार को सुबह कॉलेज मे मिलेंगे." गीता
इतना कहकर वहाँ से चली गयी.
रोमा ने पलट कर अपने भाई की ओर देखा. राज उसकी नज़रों से ओझल
हो चुका था लेकिन वो अब भी उसके ख़यालों मे बसा हुआ था. उसे लगा
कि वो घूम कर उसके पास आ गया है और उसकी बगल मे घास पर
बैठ गया हो. वो उससे उसके दोस्त, उसकी कॉलेज लाइफ के बारे मे पूछ
रहा है.
उसकी कल्पना मे आया कि अचानक उसका बाँया हाथ उसके दाएँ हाथ से
टकरा गया और उसके बदन मे जैसे बिजली का करेंट दौड़ गया हो.
उसके मन मे आया कि वो उसे सब कुछ बता दे कि किस तरह उसकी कमी
उसके जीवन को खोखला कर रही है, उसे अपना वही पुराना भाई
चाहिए जो पहले था.
* * * * * * * * *
"रोमा ज़रा ये कचरा तो बाहर फैंक देना." उसकी मम्मी ने कहा.
"पर मम्मी ये तो राज का काम है ना." रोमा ने कहा.
"राज घर पर नही है, और तुम घर पर हो इसलिए मुझसे ज़्यादा
बहस मत करो और जाकर कचरा फैंक कर आओ." उसकी मम्मी ने थोड़ा
गुस्सा दिखाते हुए कहा.
बेमन से रोमा ने कचरे की थैली बस्टबिन से बाहर निकाली और बगल
मे रख दी. फिर एक फ्रेश नई थैली डस्ट बिन मे लगा दी तभी उसका
ध्यान कचरे की थैली से बाहर झाँकती एक कीताब पर पड़ी.
उत्स्सूकता वश उसने वो कीताब उठा ली और बगल की अलमारी मे छिपा
दी.
रोमा कचरे की थैली घर से बाहर फैंक कर वापस आई और वो
कीताब अलमारी से निकाल अपने कमरे मे आ गयी. कमरे का दरवाज़ा अंदर
से बंद कर वो कीताब खोल देखने लगी. उसने देखा कि कीताब के
पन्ने कोरे थे और उनपर कुछ भी नही लिखा था.
उसका दिल मायूशी मे डूब गया. उसे लगा था कि वो राज की कहानी का
राज आज जान जाएगी तभी उसने देखा कि पन्नो पर लिखाई के कुछ
अक्षर दिख रहे है.
वो दौड़ कर अपने कॉलेज बॅग से पेन्सिल निकाल कर ले आई और उन
पन्नो पर घिसने लगी. थोड़ी ही देर मे लीखाई के अक्षर उभर कर
सॉफ हो गये.
कीताब पर लीखे शब्दों को पढ़ वो चौंक गयी. क्या राज यही सब
अपनी कहानी मे लीखता रहता है.
...."मेने उससे कह दिया कि मैं उससे प्यार करता हूँ. वो मुस्कुरा
कर मेरी तरफ देखती है. मैं हल्के से उसकी चुचि को छूता हूँ
और वो सिसक पड़ती है. में और ज़ोर से दबाता हूँ. उसे आछा
लगता है.
......अब में उसकी दोनो चुचियों को दबाता हूँ. अब वो गरमाने
लगती है. में जानता हूँ वो मुझे पाना चाहती है........"
"कौन है ये लड़की...?" रोमा मन ही मन बदबूदा उठती है. कोई
कल्पनायक लड़की है या हक़ीकत मे कोई है...."
रोमा कीताब को अपनी छाती से लगाए पलंग पर लेट जाती है. वो
सोचने लगती है कि वो लड़की कौन हो सकती है. अचानक उसे लगता
है कि वो लड़की खुद ही है. अपनी ही कल्पना मे खोए वो अपने अक्स
को उन कोरे पन्नो मे ढूँदने की कोशिश करती है.
"ओह्ह्ह्ह राज में तुमसे कितना प्यार करती हूँ." वो कह उठती है, उसे
लगता है कि राज उसकी बगल मे ही लेटा हुआ है.
अपना प्यार खुद पर जाहिर कर उसे लगा कि उसके दिल से बोझ उत्तर
गया. जिन भावनाओ को वो छुपाते आई थी आज वो रंग दीखाने लगी
थी. उसके हाथ खुद बा खुद उसकी चुचियों पर जा पहुँचे और
वो उन्हे मसल्ने लगती है. उत्तेजना और प्यार की मादकता मे उसके
निपल तन कर खड़े जो जाते है. कामुकता की आग मे उसका बदन
ऐंठने लगता है.
दरवाज़े पर थपथपाहट सुन उसका ध्यान भंग होता है. फिर जैसे
वो दरवाज़े को खुलता देखती है झट से अपना हाथ अपनी चुचियों से
खींच लेती है.
राज ने अर्ध खुले दरवाज़े से अंदर झाँका. उसने देखा कि रोमा का लाल
रंग का टॉप थोड़ा उपर को खिसका हुआ था और उसकी चुचियों की
गोलियाँ साफ दिखाई दे रही थी साथ ही उसके खड़े निपल भी उसकी
नज़र से बच नही सके. इस नज़ारे को देख उसका लंड उसकी शॉर्ट मे
फिर एक बार तन कर खड़ा हो गया.
रोमा ने उसकी नज़रों का पीछा किया तो उसने देखा कि राज उसकी
चुचियों को ही घूर रहा था. उसने झट से अपने टॉप को नीचे किया
पर ऐसा करने से उसके निपल और तने हुए देखाई देने लगे. शर्म
और हया के मारे उसका चेहरा लाल हो गया.
"तुम मेरी जगह पर कचरा फैंक कर आई उसके लिए तुम्हे थॅंक्स
कहने आया था." राज ने कहा.
"कोई बात नही." वो चाहती थी कि राज जल्दी से जल्दी यहाँ से चला
जाए.
राज कुछ और कहना चाहता था लेकिन जब उसने देखा कि रोमा शर्मा
रही है तो उसके मन को पढ़ते हुए वो चुपचाप वहाँ से चला गया.
रोमा अपने चेहरे को अपने हाथों से धक अपने आपको कोसने
लगी, "बेवकूफ़ लड़की आज कितने महीनो बाद उसने तुमसे इस तरह
प्यार से बात की और तुम हो कि उसे भगा दिया. तुम्हे बिस्तर पर उठ
कर बैठ जाना था और उसे कमरे मे आने के लिए कहती. बेवकूफ़
बेवकूफ़."
जैसे ही वो बिस्तर पर से उठने लगी उसकी नज़र राज की किताब और
पेन्सिल पर पड़ी, "हे भागन काश उसने ये सब ना देखा हो."
रोमा सोच मे पड़ गयी कि हे भगवान उसने ये क्या किया. अगर राज ने
वो कीताब देख ली होगी तो एक बार फिर उसने राज को खो दिया है. वो
अपनी रुलाई को रोक ना पाई, उसकी आँखों से तार तार आँसू बहने लगे.
* * * * *
राज का ध्यान अपनी बेहन पर से हटाए नही हट रहा था. जब वो
बाहर से आया तो मम्मी ने उससे कहा था कि वो जाकर रोमा का
धन्यवाद करे क्यों कि उसका काम रोमा ने किया था.
मम्मी की अग्या मान वो उसके कमरे मे गया था और उसने उसे थॅंक्स
कहा था. जब उसने रोमा को बिस्तर पर लेटे देखा तो उसे वो किसी
अप्सरा से कम नही लगी थी. जिस तरह से वो लेटी थी और उसके टॉप मे
उपर को उठी हुई उसकी चुचियाँ और उसके खड़े निपल दीख रहे
थे वो ठीक किसी काम देवी की तरह लग रही थी.
उसके दिल मे तो आया कि उन कुछ लम्हो मे वो अपने दिल की बात रोमा को
बता दे लेकिन दिल की बात ज़ुबान तक आ नही पाई. उसकी समझ मे
नही आया कि वो अपने ज़ज्बात किस तरह अपनी सग़ी बेहन को बताए. वो
अपनी बातों को शब्दों मे ढाल नही पाया. उसे पता था कि थोड़े
दिनो मे रोमा कॉलेज चली जाएग्गी और शायद उसे फिर मौका ना मिले
उसे बताने का.
राज अपने कमरे मे आ गया, वो चाहता तो सीधे रोमा के कमरे मे
जाता और उसे सब कुछ बता देता पर उसमे शायद इतनी हिम्मत नही
थी कि वो उसे बता पाए.
उसे उमीद थी कि रात के खाने पर रोमा से उसकी मुलाकात होगी. पर
रोमा थी कि उसका कहीं पता नही था. राज ने खाना ख़त्म ही किया
था कि उसका सबसे प्यारा दोस्त जय अपनी बेहन रिया के साथ आ
पहुँचा. रिया बगल के सहर के कॉलेज मे पढ़ती थी. जय राज की
ही उमर का था और दोनो ने ग्रॅडुटाशॉन साथ साथ पूरा किया था.
क्रमशः.............
दो बदन एक जान paart--2
gataank se aage.............
Roma ke man me jalan si jag gayi ye soch kar ki kitni ladkiyan uske
bhai par jan chidakti hai. Uski aankhon me halki si nami si aa gayi.
Dil me ek ajeeb sa dard sa uthne laga jo hamesha kisi wakt uske
pyaar se bhara rehta tha. Ab wo uspar dhyaan hi nahi deta tha.
Roma ne dekha ki Raj unki taraf hi badh raha hai. Jalan ke mare usne
Geeta ko dekha jo ghas par leti thi aur ape uthe hue mame deekhane
ki koshish kar rahi thi. Uski chuchiyan kisi madhumakkhi ke chaate
ki tarah uthi hui thi jaise ki makhiyon ko nyota de rahi ho. Uski
samajh me nahi aa raha tha ki agar Raj ne suki taraf dhyan diya aur
kuch kaha to wo kya karegi.
Kintu Raj ne aisa kuch nahi kiya aur uski bagal se guzarte hue uske
sir ko thap thapate hue sirf itna kaha, "Apni jindagi ko jeena
seekho aur meri jindagi me dakhal dena band karo."
Raj ki baat uske dil ko chub si gayi kintu dil me ek ajeeb si khushi
bhi jaag uthi. Aaj kitne mahino baad uske bhai ne usse baat ki thi.
Khushi ki ek halki lakeer uske hothon par aa gayi.
"Mein to apni jindagi jee rahi hoon lekin ek tum ho jo apni jindagi
se bhaag rahe ho..." Roma ne apni khushi ko chupate hue kaha.
Raj en ek rahat ki sans lee. Wo hamesha se darta tha ki agar wo Roma
ke jyada kareeb rahega to ek din uski behan uske man ki bhavnao ko
pehchan legi. Jabse uski kalpanao wo aane lagi thi usne uske kareeb
rehna chod diya tha. Ek yahi tareeka tha uske paas apne jajbat aur
apni bahvanaon ko chipane ka. Wo apni behan ko bahot pyaar karta tha
aur usse door reh kar hi wo ek bade bhai ka farz nibha sakta tha.
"Tum sach kehti ho Roma, wo apni jindagi se bhaag hi raha hai." Raj
ke vyavhar ko dekh Geeta ko ek bar phir dukh pahuncha tha. Usne
kitna prayatna kiya tha ki wo Raj ko aakarshit kar sake kintu wo
safal nahi ho paa rahi thi.
"Roma mein ab chalti hon somvar ko subah college me milenge." Geeta
itna kehkar wahan se chali gayi.
Roma ne palat kar apne bhai ki aur dekha. Raj uski nazron se ojhal
ho chuka tha lekin wo ab bhi uske khayalon me basa hua tha. Use laga
ki wo ghoom kar uske paas aa gaya hai aur uski bagal me ghas par
baith gaya hao. Wo usse uske dost, uski college life ke bare me puch
raha hai.
Uski kalpana me aya ki achanak uska bayan hath use daayen hath se
takra gaya aur uske badan me jaise bijlee ka current daud gaya ho.
Uske man me aaya ki wo use sab kuch bata de ki kis tarah uski kami
uske jeevan ko khokhla kar rahi hai, use apna wahi purana bhai
chaihiye jo pehle tha.
* * * * * * * * *
"Roma jara ye kachra to bahar faink dena." uski mummy ne kaha.
"Par mummy ye to Raj ka kaam hai na." Roma ne kaha.
"Raj ghar par nahi hai, aur tum ghar par ho isliye mujhse jyada
behas mat karo aur jakar kachra faink kar aao." uski mummy ne thoda
gussa deekhate hue kaha.
Beman se Roma ne kachre ki thaili bustbin se bahar nikali aur bagal
me rakh di. Phir ek fresh nai thaili dust bin me laga di tabhi uska
dhayan kachre ki thaili se bahar jhankti ek keetab par padi.
Utssukta wash usne wo keetab utha lee aur bagal ki almari me cheepa
di.
Roma kachre ki thaili ghar se bahar faink kar wapas aayi aur wo
keetab almari se nikal apne kamre me aa gayi. Kamre ka darwaza andar
se band kar wo keetab khol dekhne lagi. Usne dekha ki keetab ke
paane kore the aur unpar kuch bhi nahi likha tha.
Uska dil maausi me doob gaya. Use laga tha ki wo Raj ki kahani ka
raj aaj jaan jayegi tabhi usne dekha ki panno par leekhai ke kuch
aksh deekh rahe hai.
Wo daud kar apne college bag se pencil nikal kar le aayi aur un
panno par ghasne lagi. Thodi hi der me leekhai ke aksh ubhar kar
saaf ho gaye.
Keetab par leekhe shabdon ko padh wo chaunk gayi. Kya Raj yahi sab
apni kahani me leekhata rehta hai.
...."meine usse keh diya ki mien usse pyaar karta hun. Wo muskura
kar meri taraf dekhti hai. Mien halke se uski chuchi ko chuta hun
aur wo sisak padti hai. Mein aur jor se dabata hoon. Usse aacha
lagta hai.
......Ab mein uski dono chuchiyon ko dabaata hoon. Ab wo garmane
lagti hai. Mein janta hoon wo mujhe pana chahti hai........"
"Kaun hai ye ladki...?" Roma man hi man badbuda uthti hai. Koi
kalpanaik ladki hai ya hakikat me koi hai...."
Roma keetab ko apni chati se lagaye palang par let jaati hai. Wo
sochne lagti hai ki wo ladki kaun ho sakti hai. Achanak use lagata
hai ki wo ladki khud hi hai. Apni hi kalpana me khoye wo apne aksh
ko un kore panno me dhoondne ki koshish karti hai.
"Ohhhh Raj mein tumse kitna pyar karti hoon." Wo keh uthti hai, use
lagta hai ki Raj uske bagal me hi leta hua hai.
Apna pyaar khud par jahir kar use laga ki uske dil se bojh uttar
gaya. Jin bhavnao ko wo chupate aayi thi aaj wo rang deekhane lagi
thi. Uske hath khud ba khud uski chuchiyon par jaa pahunche aur
wo unhe masalne lagti hai. Uttejna aur pyaar ki madakta me uske
nipple tan kar khade jo jate hai. Kaamukta ki aag me uska badan
ainthne lagta hai.
Darwaze par thapthapahat sun uska dhyaan bhang hota hai. Phir jaise
wo darwaze ko khulta dekhti hai jhat se apna hath apni chuchiyon se
kheench leti hai.
Raj ne ardh khule darwaze se andar jhanka. Usne dekha ki Roma ka lal
rang ka top thoda upar ko khiska hua tha aur uski chuchiyon ki
goliyan saaf deekh de rahi thi sath hi uske khade nipple bhi uski
nazar se bach nahi sake. Is nazare ko dekh uska lund uski short me
phir ek bar tan kar khada ho gaya.
Roma ne uski nazron ka peecha kiya to usne dekha ki Raj uski
chuchiyon ko hi ghoor raha tha. Usne jhat se apne top ko niche kiya
par aisa karne se uske nipple aur tane hue dekhai dene lagi. Sharm
aur haya ke mare uska chehra laal ho gaya.
"Tum meri jagah par kachra faink kar aayi uske liye tumhe thanks
kehne aaya tha." Raj ne kaha.
"Koi baat nahi." wo chahti thi ki Raj jaldi se jaldi yahan se chala
jaye.
Raj kuch aur kehna chahta tha lekin jab usne dekha ki Roma sharma
rahi hai to uski man ko padhte hue wo chupchap wahan se chala gaya.
Roma apne chehre ke apne hathon se dhak apne aapko kosne
lagi, "bewkoof ladki aaj kitne mahino baad usne tumnse is tarah
pyaar se baat ki aur tum ho ki use bhaga diya. Tumhe bistar par uth
kar bith jana tha aur use kamre me aane ke liye kehti. Bewkoof
bewkoof."
Jaise hi wo bistar par se uthne lagi uski nazar Raj ki kitab aur
pencil par padi, "Hey bhagan kaash usne ye sab na dekha ho."
Roma soch me pad gayi ki hey bhagwan usne ye kya kiya. Agar Raj ne
wo keetab dekh li hogi to ek bar phir usne Raj ko kho diya hai. Wo
apni rulai ko rok na payi, uski aankhon se tar tar aansu behne lage.
* * * * *
Raj ka dhyan apni behan par se hataye nahi hat raha tha. Jab wo
bahar se aaya to mummy ne usse kaha tha ki wo jakar Roma ka
dhanyawad kare kyon ki uska kaam Roma ne kiya tha.
Mummy ki agya maan wo uske kamre me gaya tha aur usne use thanks
kaha tha. Jab usne Roma ko bistar par lete dekha to use wo kisi
apsara se kam nahi lagi thi. Jis tarah se wo leti thi aur uske top
upar ko uthe hue uski chuchiyan ko aur uske khade nipple deekh rahe
the wo thik kisi kaam devi ki tarah lag rahi thi.
Uske dil me to aaya ki un kuch lamho me wo apne dil ki baat Roma ko
bata de lekin dil ki baat juban tak aa nahi payi. Uski samajh me
nahi aaya ki wo apne jajbat kis tarah apni sagi behan ko bataye. Wo
apni baaton ko shabdon me dhaal nahi paya. Use pata tha ki thode
dino me Roma college chali jayeggi aur shayad use phir mauka na mile
use batane ka.
Raj apne kamre me aa gaya, wo chahta to seedhe Roma ke kamre me
jaata aur use sab kuch bata deta par usme shayad itni himmat nahi
thi ki wo use bata paye.
Use umeed thi ki raat ke khane par Roma se uski mulakat hogi. Par
Roma thi ki uska kahin pata nahi tha. Raj ne khana khatma hi kiya
tha ki uska sabse pyara dost Jay apni behan Riya ke sath aa
pahuncha. Riya bagal ke sehar ke college me padhti thi. Jay Raj ki
hi umar ka tha aur dono ne gradutaion sath sath pura kiya tha.
kramashah.............
आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ , मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ .. मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,, बस यही सोचकर थोडा सा पाप
भी कर लेता हूँ आपका दोस्त राज शर्मा (¨`·.·´¨) Always `·.¸(¨`·.·´¨)
Keep Loving & (¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling ! `·.¸.·´ -- raj
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