Friday, February 11, 2011

हिंदी सेक्सी कहानियाँ मस्तानी हसीना पार्ट--1


हिंदी सेक्सी कहानियाँ

मस्तानी हसीना पार्ट--1

मैं बचपन से ही बहुत सुंदर थी. मेरा एक छोटा भाई है, विकी. विकी मुझ से दो साल छोटा है. विकी भी लंबा तगड़ा जवान है. मेरी छातियाँ भर आई थी. बगल में और टाँगों के बीच में काफ़ी बाल निकलने लगे थे. 18 साल तक पहुँचते पहुँचते तो मैं मानो पूरी जवान लगने लगी थी. गली में और बाज़ार में लड़के आवाज़ें कसने लगे थे. ब्रा की ज़रूरत तो पहले से ही पद गयी थी. 18साल में साइज़ 34 इंच हो गया था. अब तो टाँगों के बीच में बाल बहुत ही घने और लंबे हो गये थे. हालाँकि कमर काफ़ी पतली थी लेकिन मेरे नितंब काफ़ी भारी और चौड़े हो गये थे. मुझे अहसास होता जा रहा था कि लड़कों को मेरी दो चीज़ें बहुत आकर्षित करती हैं – मेरे नितंब और मेरी उभरी हुई छातियाँ. स्कूल में मेरी बहुत सी सहेलियों के चक्कर थे, लेकिन मैं कभी इस लाफदे में नहीं पड़ी. स्कूल से ही मेरे पीछे बहुत से लड़के दीवाने थे. लड़कों को और भी ज़्यादा तड़पाने में मुझे बड़ा मज़ा आता था. स्कूल में सिर्फ़ घुटनों से नीचे तक की स्कर्ट ही अलोड थी. क्लास में बैठ कर मैं अपनी स्कर्ट जांघों तक चढ़ा लेती थी और लड़कों को अपनी गोरी गोरी सुडोल मांसल टाँगों के दर्शन कराती. केयी लड़के जान बूझ कर अपना पेन या पेन्सिल नीचे गिरा कर, उठाने के बहाने मेरी टाँगों के बीच में झाँक कर मेरी पॅंटी की झलक पाने की नाकामयाब कोशिश करते.
19 साल की उम्र में तो मेरा बदन पूरी तरह से भर गया था. अब तो अपनी जवानी को कपड़ों में समेटना मुश्किल होता जा रहा था. छातियों का साइज़ 36 इंच हो गया था.मेरे नितुंबों को संभालना मेरी पॅंटी के बस में नहीं रहा. और तो और टाँगों के बीच में बाल इतने घने और लंबे हो गये कि दोनो तरफ से पॅंटी के बाहर निकलने लगे थे. ऐसी उल्हड़ जवानी किसी पर भी कहर बरसा सकती थी. मेरा छोटा भाई विकी भी जवान हो रहा था, लेकिन आप जानते हैं लड़कियाँ जल्दी जवान हो जाती हैं. हम दोनो एक ही स्कूल में पढ़ते थे. हम दोनो भाई बेहन में बहुत प्यार था. कभी कभी मुझे महसूस होता कि विकी भी मुझे अक्सर और लड़कों की तरह देखता है.
लेकिन मैं यह विचार मन से निकाल देती. लड़कों की ओर मेरा भी आकर्षण बढ़ता जा रहा था, लेकिन मैं लड़कों को तडपा कर ही खुश हो जाती थी.
मेरी एक सहेली थी नीलम. उसका कॉलेज के लड़के, सुधीर के साथ चक्कर था. वो अक्सर अपने इश्क़ की रसीली कहानियाँ सुनाया करती थी. उसकी कहानियाँ सुन कर मेरे बदन में भी आग लग जाती. नीलम और सुधीर के बीच में शारीरिक संबंध भी थे. नीलम ने ही मुझे बताया था कि लड़कों के गुप्तांगों को लंड या लॉडा और लड़कियो के गुप्तांगों को चूत कहते हैं. जब लड़के का लंड लड़की की चूत में जाता है तो उसे चोदना कहते हैं. नीलम ने ही बताया की जब लड़के उत्तेजित होते हैं तो उनका लंड और भी लंबा मोटा और सख़्त हो जाता है जिसको लंड का खड़ा होना बोलते हैं. 16 साल की उम्र तक मुझे ऐसे शब्दों का पता नहीं था. अभी तक ऐसे शब्द मुँह से निकालते हुए मुझे शर्म आती है पर लिखने में संकोच कैसा? हालाँकि मैने बच्चों की नूनियाँ बहुत देखी थी पर आज तक किसी मर्द का लंड नहीं देखा था. नीलम के मुँह से सुधीर के लंड का वर्णन सुन कर मेरी चूत भी गीली हो जाती. सुधीर नीलम को हफ्ते में तीन चार बार चोद्ता था. एक बार मैं सुधीर और नीलम के साथ स्कूल से भाग कर पिक्चर देखने गये. पिक्चर हॉल में नीलम हम दोनो के बीच में बैठी थी. लाइट ऑफ हुई और पिक्चर शुरू हुई. कुच्छ देर बाद मुझे ऐसा लगा मानो मैने नीलम के मुँह से सिसकी की आवाज़ सुनी हो. मैने कन्खिओ से नीलम की ओर देखा. रोशनी कम होने के कारण साफ तो दिखाई नहीं दे रहा था पर जो कुच्छ दिखा उसेदेख कर मैं डांग रह गयी. नीलम की स्कर्ट जांघों तक उठी हुई थी और सुधीर का हाथ नीलम की टाँगों के बीच में था. सुधीर की पॅंट के बटन खुले हुए थे और नीलम सुधीर के लंड को सहला रही थी. अंधेरे में मुझे सुधीर के लंड का साइज़ तो पता नहीं लगा लेकिन जिस तरह नीलम उस पर हाथ फेर रही थी, उससे लगता था की काफ़ी बड़ा होगा. सुधीर का हाथ नीलम की टाँगों के बीच में क्या कर रहा होगा ये सोच सोच कर मेरी चूत बुरी तरह से गीली हो चुकी थी और पॅंटी को भी गीला कर रही थी. इंटर्वल में हम लोग बाहर कोल्ड ड्रिंक पीने गये. नीलम का चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया था. सुधीर की पॅंट में भी लंड का उभार सॉफ नज़र आ रहा था. सुधीर ने मुझे अपने लंड के उभार की ओर देखते हुए पकड़ लिया. मेरी नज़रें उसकी नज़रें से मिली और मैं मारे शर्म के लाल हो गयी. सुधीर मुस्कुरा दिया. किसी तरह इंटर्वल ख़तम हुआ और मैने चैन की साँस ली. पिक्चर शुरू होते ही नीलम का हाथ फिर से सुधीर के लंड पे पहुँच गया. लेकिन सुधीर ने अपना हाथ नीलम के कंधों पर रख लिया. नीलम के मुँह से सिसकी की आवाज़ सुन कर मैं समझ गयी की अब वो नीलम की चूचियाँ दबा रहा था. अचानक सुधीर का हाथ मुझे टच करने लगा. मैने सोचा ग़लती से लग गया होगा. लेकिन धीरे धीरे वो मेरी पीठ सहलाने लगा और मेरी ब्रा के ऊपर हाथ फेरने लगा. नीलम इससे बिल्कुल बेख़बर थी. मैं मारे डरके पसीना पसीना हो गयी और हिल ना सकी. अब सुधीर का साहस और बढ़ गया और उसने साइड से हाथ डाल कर मेरी उभरी हुई चूची को शर्ट के ऊपर से पकड़ कर दबा दिया. मैं बिल्कुल बेबुस थी. उठ कर चली जाती तो नीलम को पता लग जाता. हिम्मत मानो जबाब दे चुकी थी. सुधीर ने इसका पूरा फ़ायदा उठाया. वो धीरे धीरे मेरी चूची सहलाने लगा. इतने में नीलम मुझसे बोली," कंचन पेशाब लगी है ज़रा बाथरूम जा कर आती हूँ." मेरा कलेजा तो धक से रह गया. जैसे ही नीलम गयी सुधीर ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया. मैने एकदम से हड़बड़ा के हाथ खींचने की कोशिश की, लेकिन सुधीर ने मेरा हाथ कस कर पकड़ रखा था. लंड काफ़ी गरम, मोटा और लोहे के समान सख़्त था. मैं रुनासि होके बोली
" सुधीर ये क्या कर रहे हो ? छोड़ो मुझे, नहीं तो नीलम को बता दूँगी." सुधीर मंजा हुआ खिलाड़ी था, बोला,
" मेरी जान तुम पर तो मैं मरता हूँ. तुमने मेरी रातों की नींद चुरा ली है. मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ." यह कह कर वो मेरा हाथ अपने लंड पर रगड़ता रहा.
" सुधीर तुम नीलम को धोका दे रहे हो. वो बेचारी तुमसे शादी करना चाहती है और तुम दूसरी लड़कियो के पीछे पड़े हो."
" कंचन मेरी जान तुम दूसरी कहाँ, मेरी हो. नीलम से दोस्ती तो मैने तुम्हें पाने के लिए की थी."
" झूट ! नीलम तो अपना सूब कुच्छ तुम्हें सौंप चुकी है. तुम्हें शर्म आनी चाहिए उस बेचारी को धोका देते हुए. प्लीज़ मेरा हाथ छोड़ो."
इतने में नीलम वापस आ गयी. सुधीर ने झट से मेरा हाथ छोड़ दिया. मेरी लाचारी का फायेदा उठाने के कारण मैं बहुत गुस्से में थी, लेकिन ज़िंदगी में पहली बार किसी मर्द के खड़े लंड को हाथ लगाने के अनुभव से खुश भी थी. नीलम के बैठने के बाद सुधीर ने फिर से अपना हाथ उसके कंधे पर रख दिया. नीलम ने उसका हाथ अपने कंधों से हटा कर अपनी टाँगों के बीच में रख दिया और सुधीर के लंड को फिर से सहलाने लगी. सुधीर भी नीलम की स्कर्ट में हाथ डाल कर उसकी चूत सहलाने लगा. जैसे ही नीलम ने ज़ोर की सिसकी ली मैं समझ गयी कि सुधीर ने अपनी उंगली उसकी चूत में घुसा दी है.
इस घटना के बाद मैने सुधीर से बिल्कुल बात करना बंद कर दिया. लेकिन अब सुधीर मेरे घर के चक्कर लगाने लगा और मेरे भाई विकी से भी दोस्ती कर ली. वो विकी से मिलने के बहाने घर आने लगा लेकिन मैने उसे कभी लिफ्ट नहीं दी. कुच्छ दिनों के बाद हमने अपना घर बदल लिया. सुधीर यहाँ भी आने लगा. मेरे कमरे के बाहर खुला मैदान था. लोग अक्सर मेरी खिड़की के नज़दीक पेशाब करने खड़े हो जाया करते थे. मेरी तो मानो मन की मुराद ही पूरी हो गयी. मैं रोज़ खिड़की के पीछे से लोगों को पेशाब करते देखती. दिन में कम से कम 10 से 15 लोगों के लंड के दर्शन हो जाते थे. मुझे काफ़ी निराशा होने लगी क्योंकि किसी भी आदमी का लंड 2 से 3 इंच लंबा नहीं था. सभी लंड सिकुदे हुए और भद्दे से लगते थे. किसी का भी लंड देखने लायक नहीं था. नीलम ने मुझे हिन्दी की सेक्स की कहानियों की राज शर्मा की एक साइट बताई. उसमे कहानियो के साथ साथ 8 इंच या 10 इंच के लंड का वर्णन था. यहाँ तक कि एक कहानी में तो एक फुट लंबे लंड का भी जीकर था. केयी दिन इंतज़ार करने के बाद मेरी मनो कामना पूरी हुई. एक दिन मैं और नीलम मेरे कमरे में पढ़ रहे थे कि नीलम की नज़र खिड़की के बाहर गयी. उसने मुझे कोहनी मार के बाहर देखने का इशारा किया. खिड़की के बिकुल नज़दीक ही एक लंबा तगड़ा साधु खड़ा इधेर उधेर देख रहा था. अचानक साधु ने अपना तहमद पेशाब करने के लिए ऊपर उठाया. मेरे मुँह से तो चीख ही निकल गयी. साधु की टाँगों के बीच में मोटा, काला और बहुत ही लंबा लंड झूल रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे उसका लंड उसके घुटनों से तीन या चार इंच ही उँचा था. नीलम भी पसीने पसीने हो गयी . लंड बहुत ही भयंकर लग रहा था. साधु ने दोनो हाथों से अपना लंड पकड़ के पेशाब किया. साधु का लंड देख कर मुझे गधे के लंड की याद आ गयी. मैदान में केयी गधे घूमते थे जिनके लटकते हुए मोटे लंबे लंड को देख कर मेरी चूत गीली हो जाती थी. जब साधु चला गया तो नीलम बोली,
" हाई राम ! ऐसा लंड तो औरत की ज़िंदगी बना दे. खड़ा हो के तो बिजली के खंबे जैसा हो जायगा. काश मेरी चूत इतनी खुशनसीब होती ! ऊऊऊफ़ ! फॅट ही जाती." " नीलम! नीलम ! तू ये क्या बोल रही है. कंट्रोल कर. तुझे तो सिर्फ़ सुधीर के बारे में ही सोचना चाहिए."
" हां मेरी प्यारी कंचन ! सिर्फ़ फरक इतना है कि सुधीर का खड़ा हो के 6 इंच का होता है और साधु महाराज का सिक्युडा हुआ लंड भी 10 इंच का था. ज़रा सोच कंचन, एक फुट का मूसल तेरी चूत में जाए तो तेरा क्या होगा. भगवान की माया देख, एक फुट का लॉडा दिया भी उसे जिसे औरत में कोई दिलचस्पी नहीं."
" तुझे कैसे पता साधु महाराज को औरतों में दिलचस्पी नहीं. हो सकता है साधु महाराज अपने लंड का पूरा इस्तेमाल करते हों." मैने नीलम को चिड़ाते हुए कहा.
" हाई मर जाउ ! काश तेरी बात बिल्कुल सच हो. साधु महाराज की रास लीला देखने के लिए तो मैं एक लाख रुपये देने को तैयार हूँ."" और साधु महाराज से चुदवाने की लिए ?"
" ओई मा. साधु महाराज से चुदवाने की लिए तो मैं जान भी देने को तैयार हूँ. कंचन, तूने चुदाई का मज़ा लिया ही कहाँ है. तूने कभी घोड़े को घोड़ी पर चढ़ते देखा है? जब ढाई फुट का लॉडा घोड़ी के अंडर जाता है तो उसकी हालत देखते ही बनती है. साधु महाराज जिस औरत पर चढ़ेंगे उस औरत का हाल भी घोड़ी जैसा ही होगा."
मैने कुत्ते को कुतिया पर और सांड को गाय पर चढ़ते तो देखा था लेकिन घोड़े को घोड़ी पर चढ़ते कभी नहीं देखा था. अब तो साधु महाराज का लंड मुझे सपनों में भी आने लगा. बड़े और मोटे लंड की तो मैं दीवानी हो गयी थी. हालाँकि मेरे हज़ारों दीवाने थे पर मैं किसी को लिफ्ट नहीं देती थी. मुझे उन सबका इरादा अच्छी तरह मालूम था.
अब मैं 18 बरस की हो गयी थी और स्कूल में 12 क्लास में मेरा आखरी साल था. मुझे साड़ी में देख कर कोई कह नहीं सकता था कि मैं स्कूल में पढ़ती हूँ. चूचियाँ 38 इंच होने जा रही थी. मेरे बदन का सबसे सेक्सी हिस्सा शायद मेरे भारी नितूंब थे. लड़कों को देख कर मैं और मटक कर चलती. उनकी आहें सुन कर मुझे बड़ा मज़ा आता. अक्सर मेरे नितुंबों पर लड़के कॉमेंट पास किया करते थे. एक दिन तो हद ही हो गयी. मैने एक लड़के को बोलते सुना, " हाई क्या कातिल चूतर हैं. आजा मेरी जान पूरा लॉडा तेरी गांद में पेल दूं." मैं ऐसी अश्लील बातें खुले आम सुन कर दंग रह गयी. जब मैने उस लड़के के कॉमेंट के बारे में नीलम को बताया तो वो हस्ने लगी.
" तू कितनी अनारी है कंचन. तेरे चूतर हैं ही इतने सेक्सी की किसी भी लड़के का मन डोल जाए."
" लेकिन वो तो कुच्छ और भी बोल रहा था."
" तेरी गांद में लंड पेलने को बोल रहा था? मेरी भोली भाली सहेली बहुत से मर्द औरत की चूत ही नहीं गांद भी चोद्ते हैं. ख़ास कर तेरी जैसी लड़कियो की, जिनकी गांद इतनी सुन्दर हो. अभी तो सती सावित्री है , जब तेरी शादी होगी तो याद रख एक दिन तेरा पति तेरी गांद ज़रूर चोदेगा. सच कंचन अगर मेरे पास लंड होता तो मैं भी तेरी गांद ज़रूर मारती."
" हट नालयक ! सुधीर ने भी तेरी गांद चोदि है ?"
" नहीं रे अपनी किस्मत में इतने सेक्सी चूतर कहाँ."
मुझे पहली बार पता लगा कि औरत की आगे और पीछे दोनो ओर से ली जाती है. तभी मेरे आँखों के सामने साधु महाराज का लंड घूम गया और मैं काँप उठी. अगर वो बिजली का खंबा गांद में गया तो क्या होगा! मुझे अभी भी नीलम की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. इतने छ्होटे से छेद में लंड कैसे जाता होगा.
इस दौरान सुधीर ने मेरे भाई विकी से अच्छी दोस्ती कर ली थी. दोनो साथ साथ ही घूमा करते थे. एक दिन जब मैं बाज़ार से वापस आई तो मैने देखा कि सुधीर और विकी ड्रॉयिंग रूम में कुच्छ ख़ुसर पुसर कर रहे हैं और हस रहे हैं . मैं दीवार से कान लगा कर उनकी बातें सुनने लगी. उनकी बातें सुन के मैं हैरान रह गयी. सुधीर कह रहा था,
" विकी तूने कभी किसी लड़की की चूत देखी है ?"
" नहीं यार अपनी किस्मत ऐसी कहाँ ? तूने देखी है?"
" देखी ही नहीं ली भी है."
" झूट मत बोल. किसकी ली है ?"
" तू विश्वास नहीं करेगा."
" अरे यार बोल ना. विश्वास की क्या बात है?"
" तो सुन, तेरी बेहन कंचन की सहेली नीलम को मैं रोज़ चोद्ता हूँ?"
" क्या बात कर रहा है? मेरी दीदी की सहेलियाँ ऐसी हो ही नहीं सकती. मेरी दीदी ऐसी लड़कियो से दोस्ती नहीं कर सकती."
" देख विकी तू बहुत भोला है. तेरी बहन जवान हो चुकी है और अच्छी तरह जानती है कि नीलम मुझसे चुदवाति है."
" मैं सोच भी नहीं सकता की दीदी ऐसी लड़की से दोस्ती रखती है."
" विकी एक बात कहूँ? बुरा तो नहीं मानेगा?"
" नहीं, बोल."
" यार, तेरी दीदी भी पताका है. क्या गदराया हुआ बदन है. तूने कभी अपनी दीदी की ओर ध्यान नहीं दिया.?"
" सुधीर! क्या बकवास कर रहा है. अगर तू मेरा दोस्त नहीं होता तो मैं तुझे धक्के मार के घर से निकाल देता."
" नाराज़ मत हो मेरे दोस्त. तू और मैं दोनो मर्द हैं. लड़की तो लड़की ही होती है, बेहन ही क्यों ना हो. सच कहूँ, मैं तो अपनी बड़ी बेहन को केयी बार नंगी देख चुक्का हूँ. मैने बाथरूम के दरवाज़े में एक छेद कर रखा है. जब भी वो नहाने जाती है तो मैं उस छेद में से उसको नंगी नहाते हुए देखता हूँ. तू मेरे साथ घर चल एक दिन तुझे भी दिखा दूँगा. अब तो खुश है ना! अब सच सच बता तूने अपनी दीदी को नंगी देखा है.?"
विकी थोड़ा हिचकिचाया और फिर जो बोला उसे सुन कर मैं दंग रह गयी.
" नहीं यार. दिल तो बहुत करता है लेकिन मोका कभी नहीं मिला. कभी कभी दीदी जब लापरवाही से बैठती है तो एक झलक उसकी पॅंटी की मिल जाती है. जब कभी वो नहा कर निकलती है तो मैं झट से बाथरूम में घुस जाता हूँ और उसकी उतारी हुई पॅंटी को सूंघ लेता हूँ और अपने लंड पे रगड़ लेता हूँ."
" वाह प्यारे! तू तो छुपा रुस्तम निकला. कैसी सुघन्ध है तेरी दीदी की चूत की?"
" बहुत ही मादक है यार. दीदी की चूत पे बॉल भी बहुत लंबे हैं. अक्सर पॅंटी पर रह जाते है. कम से कम तीन इंच लंबी झाँटें होंगी."
" हाई यार मेरा लंड तो अभी से खड़ा हो रहा है. एक दिन अपनी दीदी की पॅंटी की महक हमें भी सूँघा दे. तेरा कभी अपनी दीदी को चोदने का मन नहीं करता?"
" करता तो बहुत है लेकिन जो चीज़ मिल नहीं सकती उसके पीछे क्या पड़ना? दीदी के नाम की मूठ मार लेता हूँ."
क्रमशः.........


Mastaani hasina  paart--1

Main bachpan se hi bahut sunder thi. Mera ek chota bhai hai, Viky. Viky mujh se do saal chota hai. Viky bhi lumba tagra jawan hai. Meri chhatiyan bhar aayi thi. Bagal mein aur tangon ke beech mein kaafi baal niklne lage the. 18 saal tak pahunchte pahunchte to main mano poori jawan lagne lagi thi. Gali mein aur bazaar mein ladke awaazen kasne lage the. Bra ki zaroorat to pahle se hi par gayi thi. 18saal mein size 34 inch ho gaya tha. Ab to tangon ke beech mein baal bahut hi ghane aur lumbe ho gaye the. Halanki kamar kaafi patli thi lekin mere nitamb kaafi bhaari aur chaure ho gaye the. Mujhe ahsaas hota ja raha tha ki ladkon ko meri do cheezen bahut akarshit karti hain – mere nitamb aur meri ubhri hui chaatiyan. School mein meri bahut si saheliyon ke chakkar the, lekin main kabhi is lafde mein nahin pari. School se hi mere peeche bahut se ladke deewane the. Ladkon ko aur bhi zyada tadpaane mein mujhe bara mazaa aata tha. School mein sirf ghutnon se neeche tak ki skirt hi allowed thi. Class mein baith kar main apni skirt janghon tak chadha leti thi aur ladkon ko apni gori gori sudol mansal taangon ke darshan karaati. Kayi ladke jaan boojh kar apna pen ya pencil neeche gira kar, uthaane ke bahaane meri taangon ke beech mein jhank kar meri panty ki jhalak pane ki nakamyab koshish karte.
19 saal ki umr mein to mera badan poori tarah se bhar gaya tha. Ab to apni jawaani ko kapadon mein sametna mushkil hota jaa raha tha. Chaatiyon ka size 36 inch ho gaya tha.Mere nitumbon ko sambhaalna meri panty ke bus mein nahin raha. Aur to aur taangon ke beech mein baal itne ghane aur lumbe ho gaye ki dono taraf se panty ke baahar niklne lage the. Aisi ulharh jawaani kisi par bhi kahar barsa sakti thi. Mera chota bhai Viky bhi jawaan ho raha tha, lekin aap jante hain ladkian jaldi jawaan ho jaati hain. Hum dono ek hi school mein parhte the. Hum dono bhai behan mein bahut pyar tha. Kabhi kabhi mujhe mahsoos hota ki Viky bhi mujhe aksar aur ladkon ki tarah dehkta hai.
Lekin main yah vichaar man se nikaal deti. Ladkon ki or mera bhi aakarshan barhta ja raha tha, lekin main ladkon ko tadpa kar hi khush ho jaati thi.
Meri ek saheli thi Neelam. Uska college ke ladke, Sudhir ke saath chakkar tha. Vo aksar apne ishq ki raseeli kahanian sunaya karti thi. Uski kahaniyan sun kar mere badan mein bhi aag lag jaati. Neelam aur Sudhir ke beech mein shaaririk sambandh bhi the. Neelam ne hi mujhe bataya tha ki ladkon ke guptangon ko lund ya lauda aur ladkion ke guptangon ko choot kahte hain. Jab ladke ka lund ladki ki choot mein jaata hai to use chodna kahte hain. Neelam ne hi bataya ki jab ladke uttejit hote hain to unka lund aur bhi lumba mota aur sakht ho jaata hai jisko lund ka khara hona bolte hain. 16 saal ki umr tak mujhe aise shabdon ka pata nahin tha. Abhi tak aise shabd munh se nikalte hue mujhe sharm aati hai par likhane mein sankoch kaisa? Halanki maine bachhon ki noonian bahut dekhee thi par aaj tak kisi mard ka lund nahin dekha tha. Neelam ke munh se Sudhir ke lund ka varnan sun kar meri choot bhi gili ho jaati. Sudhir Neelam ko hafte mein teen chaar baar chodta tha. Ek baar main Sudhir aur Neelam ke saath school se bhag kar picture dekhne gayi. Picture hall mein Neelam hum dono ke beech mein baithi thi. Light off hui aur picture shuru hui. Kuchh der baad mujhe aisa laga mano maine Neelam ke munh se siski ki aawaz suni ho. Maine kankhion se Neelam ki or dekha. Roshni kam hone ke karan saaf to dikhai nahin de raha tha par jo kuchh dikha use sekh kar main dung rah gayi. Neelam ki skirt janghon tak uthi hui thi aur Sudhir ka haath Neelam ki taangon ke beech mein tha. Sudhir ki pant ke button khule hue the aur Neelam Sudhir ke lund ko sahla rahi thi. Andhere mein mujhe Sudhir ke lund ka size to pata nahin laga lekin jis tarah Neelam us par haath pher rahi thi, usse lagta tha ki kaafi bara hoga. Sudhir ka haath Neelam ki taangon ke beech mein kya kar raha hoga ye soch soch kar meri choot buri tarah se geeli ho chuki thi aur panty ko bhi geela kar rahi thi. Interval mein hum log baahar cold drink peene gaye. Neelam ka chehra uttejana se laal ho gaya tha. Sudhir ki pant mein bhi lund ka ubhaar saaf nazar aa raha tha. Sudhir ne mujhe apne lund ke ubhaar ki or dehte hue pakar liya. Meri nazrein uski nazrein so mili aur main mare sharm ke laal ho gayi. Sudhir muskura diya. Kisi tarah interval khatam hua aur maine chain ki saans lee. Picture shuru hote hi Neelam ka haath phir se Sudhir ke lund pe pahunch gaya. Lekin Sudhir ne apna haath Neelam ke kandhon par rakh liya. Neelam ke munh se siski ki aawaz sun kar main samajh gayi ki ab vo Neelam ki choochian daba raha tha. Achanak Sudhir ka haath mujhe touch karne laga. Maine socha galti se lag gaya hoga. Lekin dheere dheere vo meri peeth sahlaane laga aur meri bra ke oopar haath pherne laga. Neelam isse bilkul bekhabar thi. Main maare darke paseena paseena ho gayi aur hil na saki. Ab Sudhir ka saahas aur barh gaya aur usne side se haath daal kar meri ubhri hui choochi ko shirt ke oopar se pakar kar dabaa diya. Main bilkul bebus thi. Uth kar chali jaati to Neelam ko pata lag jata. Himmat mano jabaab de chuki thi. Sudhir ne iska poora faayada uthaya. Vo dheere dheere meri choochi sahalane laga. Itne mein Neelam mujhse boli," Kanchan peshaab lagi hai zara bathroom ja kar aati hun." Mera kaleja to dhak se rah gaya. Jaise hi Neelam gayi Sudhir ne mera haath pakar kar apne lund par rakh diya. Maine ekdum se harbara ke haath kheenchne ki koshish ki, lekin Sudhir ne mera haath kus kar pakar rakha tha. Lund kaafi garam, mota aur lohe ke samaan sakht tha. Main runaasi hoke boli
" Sudhir ye kya kar rahe ho ? Choro mujhe, nahin to Neelam ko bata dungi." Sudhir manja hua khilari tha, bola,
" Meri jaan tum par to main marta hun. Tumne meri raaton ki neend chura li hai. Main tumse bahut pyar karne laga hun." Yah kah kar vo mera haath apne lund par ragarta raha.
" Sudhir tum Neelam ko dhoka de rahe ho. Vo bechari tumse shaadi karna chahati hai aur tum doosri ladkion ke peeche pare ho."
" Kanchan meri jaan tum doosri kahan, meri ho. Neelam se dosti to maine tumhen pane ke liye ki thi."
" Jhoot ! Neelam to apna sub kuchh tumhen somp chuki hai. Tumhen sharm aani chaahiye us bechaari ko dhoka dete hue. Please mera haath choro."
Itne mein Neelam wapas aa gayi. Sudhir ne jhat se mera haath chor diya. Meri laachari ka faayeda uthane ke karan main bahut gusse mein thi, lekin zindagi mein pahli baar kisi mard ke khare lund ko haath lagane ke anubhav se khush bhi thi. Neelam ke baithne ke baad Sudhir ne phir se apna haath uske kandhe par rakh diya. Neelam ne uska haath apne kandhon se hata kar apni tangon ke beech mein rakh diya aur Sudhir ke lund ko phir se sahalaane lagi. Sudhir bhi Neelam ki skirt mein haath daal kar uski choot sahlaane laga. Jaise hi Neelam ne zor ki siski lee main samazh gayi ki Sudhir ne apni ungli uski choot mein ghusa dee hai.
Is ghatna ke baad maine Sudhir se bilkul baat karna bund kar diya. Lekin ab Sudhir mere ghar ke chakkar lagaane laga aur mere bhai Viky se bhi dosti kar lee. Vo Viky se milne ke bahaane ghar aane laga lekin maine use kabhi lift nahin dee. Kuchh dinon ke baad humne apna ghar badal liya. Sudhir yahan bhi aane laga. Mere kamre ke baahar khula maidaan tha. Log aksar meri khidki ke nazdeek peshaab karne khare ho jaaya karte the. Meri to mano man ki muraad hi poori ho gayi. Main roz khidki ke peeche se logon ko peshaab karte dekhti. Din mein kum se kum 10 se 15 logon ke lund ke darshan ho jaate the. Mujhe kaafi niraasha hone lagi kyonki kisi bhi aadmi ka lund 2 se 3 inch lumba nahin tha. Sabhi lund sikude hue aur bhadde se lagte the. Kisi ka bhi lund dekhne laayak nahin tha. Neelan ne mujhe hindi ki sex ki kahanion ki ek do kitaaben di thi. Unme to 8 inch ya 10 inch ke lund ka varnan tha. Yahan tak ki ek kitaab mein to ek foot lumbe lund ka bhi zikar tha. Kayi din intzaar karne ke baad meri mano kamna poori hui. Ek din main aur Neelam mere kamre mein parh rahe the ki Neelam ki nazar khidki ke baahar gayi. Usne mujhe kohni maar ke baahar dekhne ka ishaara kiya. Khidki ke bikul nazdeek hi ek lumba tagra saadhu khara idher udher dekh raha tha. Achanak saadhu ne apna tahmad peshaab karne ke liye oopar uthaya. Mere munh se to cheekh hi nikal gayi. Saadhu ki taangon ke beech mein mota, kala aur bahut hi lumba lund jhool raha tha. Aisa lag raha tha jaise uska lund uske ghutnon se teen ya chaar inch hi uncha tha. Neelam bhi paseene paseene ho gayi . Lund bahut hi bhayankar lag raha tha. Saadhu ne dono haathon se apna lund pakar ke peshaab ki. Saadhu ka lund dekh kar mujhe gadhe ke lund ki yaad aa gayi. Maidaan mein kayi gadhe ghoomte the jinke latkte hue mote lumbe lund ko dekh kar meri choot geeli ho jaati thi. Jab saadhu chala gaya to Neelam boli,
" hai Ram ! aisa lund to aurat ki zindagi bana de. Khara ho ke to bijli ke khambe jaisa ho jaiga. Kaash meri choot itni khushnaseeb hoti ! ooooooph ! phat hi jaati." " Neelam! Neelam ! tu ye kya bol rahi hai. Control kar. Tujhe to sirf Sudhir ke bare mein hi sochna chaahiye."
" Haan meri pyari Kanchan ! Sirf pharak itna hai ki Sudhir ka khada ho ke 6 inch ka hota hai aur saadhu maharaj ka sikuda hua lund bhi 10 inch ka tha. Zara soch Kanchan, ek foot ka moosal teri choot mein jaye to tera kya hoga. Bhagawaan ki maya dekh, ek foot ka lauda diya bhi use jise aurat mein koyi dilchaspi nahin."
" Tujhe kaise pata saadhu maharaj ko auraton mein dilchaspi nahin. Ho sakta hai sadhu maharaj apne lund ka poora istemaal karte hon." Maine Neelam ko chidate hue kaha.
" Hai mar jaaon ! kaash teri baat bilkul such ho. Sadhu maharaj ki raas leela dekhne ke liye to main ek laakh rupaye dene ko tayar hun."" Aur sadhu maharaj se chudwane ki liye ?"
" oui maa. Sadhu maharaj se chudwane ki liye to main jaan bhi dene ko tayar hun. Kanchan, tune chudai ka maza liya hi kahan hai. Tune kabhi ghore ko ghori par chadte dekha hai? Jab dhaai foot ka lauda ghori ke under jata hai to uski haalat dekhte hi banti hai. Sadhu maharaj jis aurat par chadenge us aurat ka haal bhi ghori jaisa hi hoga."
Maine kutte ko kutia par aur sand ko guy par chadte to dekha tha lekin ghore ko ghori par chadte kabhi nahin dekha tha. Ab to sadhu maharaj ka lund mujhe sapnon mein bhi aane laga. Bare aur mote lund ki to main deewani ho gayi thi. Halanki mere hazaron deewane the par main kisi ko lift nahin deti thi. Mujhe un sbka iraada achhi tarah maloom tha.
Ab main 18 baras ki ho gayi thi aur school mein 12 class mein mera aakhri saal tha. Mujhe saari mein dekh kar koi kah nahin sakta tha ki main school mein parhti hun. Chhtiyan 38 inch hone jaa rahi thi. Mere badan ka subse sexy hissa shayad mere bhari nitumb the. Ladkon ko dekh kar main aur matak kar chalti. Unki aahen sun kar mujhe bara maza aata. Aksar mere nitumbon par ladke comment pass kiya karte the. Ek din to hud hi ho gayi. Maine ek ladke ko bolte suna, " Hai kya kaatil chootar hain. Aaja meri jaan poora lauda teri gaand mein pel dun." Main aisi ashleel baaten khule aam sun kar dung rah gayi. Jab maine us ladke ke comment ke bare mein Neelam ko bataya to vo hasne lagi.
" Tu kitni anari hai Kanchan. Tere chootar hain hi itne sexy ki kisi bhi ladke ka man dol jaye."
" Lekin vo to kuchh aur bhi bol raha tha."
" Teri gaand mein lund pelne ko bol raha tha? Meri bholi bhali saheli bahut se mard aurat ki choot hi nahin gaand bhi chodte hain. Khaas kar teri jaisi ladkion ki, jinki gaand itni sunder ho. Abhi to sati savitri hai , jab teri shaadi hogi to yaad rakh ek din tera pati teri gaand zaroor chodega. Such Kanchan agar mere paas lund hota to main bhi teri gaand zaroor maarti."
" Hut nalayak ! Sudhir ne bhi teri gaand chodi hai ?"
" Nahin re apni kismat mein itne sexy chootar kahan."
Mujhe pahli baar pata laga ki aurat ki aage aur peeche dono or se lee jaati hai. Tabhi mere aankhon ke saamne sadhu maharaj ka lund ghoom gaya aur main kaanp uthi. Agar vo bijli ka khamba gaand mein gaya to kya hoga! Mujhe abhi bhi Neelam ki baat par vishwas nahin ho raha tha. Itne chhote se chhed mein lund kaise jata hoga.
Is dauraan Sudhir ne mere bhai Viky se achhi dosti kar lee thi. Dono saath saath hi ghooma karte the. Ek din jab main bazaar se wapas aayi to maine dekha ki Sudhir aur Viky drawing room mein kuchh khusar pusar kar rahe hain aur hus rahe hain . Main deewar se kaan laga kar unki baaten sunane lagi. Unki baaten sun ke main hairaan rah gayi. Sudhir kah raha tha,
" Viky tune kabhi kisi ladki ki choot dekhi hai ?"
" Nahin yaar apni kismat aisi kahan ? Tune dekhi hai?"
" Dekhi hi nahin lee bhi hai."
" jhoot mut bol. kiski lee hai ?"
" Tu vishwaas nahin karega."
" Are yaar bol na. Vishwaas ki kya baat hai?"
" To sun, teri behan Kanchan ki saheli Neelam ko main roz chodta hun?"
" Kya baat kar raha hai? Meri didi ki saheliyan aisi ho hi nahin sakti. Meri didi aisi ladkion se dosti nahin kar sakti."
" Dekh Viki tu bahut bhola hai. Teri bahan jawan ho chuki hai aur achhi tarah jaanti hai ki Neelam mujhse chudwaati hai."
" Main soch bhi nahin sakta ki didi aisi ladki se dosti rakhati hai."
" Viki ek baat kahun? Bura to nahin maanega?"
" Nahin, bol."
" Yaar, teri didi bhi pataka hai. Kya gadaraya hua badan hai. Tune kabhi apni didi ki or dhyan nahin diya.?"
" Sudhir! Kya bakwaas kar raha hai. Agar tu mera dost nahin hota to main tujhe dhakke maar ke ghar se nikal deta."
" Naraaz mut ho mere dost. Tu aur main dono mard hain. Ladki to ladki hi hoti hai, behan hi kyon na ho. Such kahun, main to apni bari behan ko kayi baar nangi dekh chukka hun. Maine bathroom ke darwaze mein ek chhed kar rakha hai. Jab bhi vo nahane jaati hai to main us chhed mein se usko nangi nahate hue dekhata hun. Tu mere saath ghar chal ek din tujhe bhi dikha dunga. Ab to khush hai na! Ab such such bata tune apni didi ko nangi dekha hai.?"
Viky thora hichkichaya aur bhir jo bola use sun kar main dung rah gayi.
" Nahin yaar. Dil to bahut karta hai lekin moka kabhi nahin mila. Kabhi kabhi didi jab laaparwahi se baithati hai to ek jhalak uski panty ki mil jaati hai. Jab kabhi vo naha kar nikalti hai to main jhat se bathroom mein ghus jata hun aur uski utaari hui panty ko soongh leta hun aur apne lund pe ragar leta hun."
" Wah pyare! Tu to chupa rustam nikla. Kaisi sughandh hai teri didi ki choot ki?"
" Bahut hi madak hai yaar. Didi ki choot pe baal bhi bahut lumbe hain. Aksar panty par rah jaate hai. Kum se kam teen inch lumbi jhaanten hongi."
" Hai yaar mera lund to abhi se khara ho raha hai. Ek din apni didi ki panty ki mahak hamen bhi sungha de. Tera kabhi apni didi ko chodne ka man nahin karta?"
" Karta to bahut hai lekin jo cheese mil nahin sakti uske peeche kya parna? Didi ke naam ki muth maar leta hun."
kramashah.........





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