Saturday, February 26, 2011

हिंदी सेक्सी कहानियाँ सबाना और ताजीन की चुदाई -1

हिंदी सेक्सी कहानियाँ
सबाना और ताजीन की चुदाई  -1
हेल्लो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और मस्त कहानी लेकर हाजिर हूँ
दोस्तो आप तो जानते ही होंगे की एक मर्द से ज़्यादा सेक्स एक औरत मे होता
है जब मर्द औरत की गर्मी शांत नही कर पाता है तो औरत पर क्या गुजरती है
और यही से एक औरत का पतन होना शुरू हो जाता है ये कहानी एक भी कामातुर
हसीना सबाना की है जो अपने पति से संतुष्ट ना हो पाने की वजह से बाहर की
दुनिया मे अपने कदम बढ़ा देती हैअब आप कहानी का मज़ा लीजिए और रेप्लाई
ज़रूर दे
सुबह के आठ बज रहे थे. परवेज़ ने जल्दी से अपना पिजामा पहना और बाहर निकल
गया. शबाना अभी बिस्तर पर लेटी हुई ही थी, बिल्कुल नंगी. उसकी चूत पर अब
भी पठान का पानी नज़र आ रहा था, और मायूसी मे उसकी टांगे फैली हुई थी. आज
फिर पठान उसे प्यासा छ्चोड़ कर चला गया था.

"हरामजाड़ा छक्का" पठान को गाली देते हुए शबाना ने अपनी चूत में उंगली
डाली और ज़ोर ज़ोर से अंदर बाहर करने लगी. फिर एक भारी सिसकारी के साथ वो
शिथिल पड़ने लगी, उसकी चूत ने पानी छ्चोड़ दिया. लेकिन चूत में अब भी आग
लगी हुई थी, लंड की प्यासी चूत को उंगली से शांत करना मुश्किल था.

नहाने के बाद अपना शरीर पोंच्छ कर वो बाथरूम से बाहर निकली और नंगी ही
आईने के सामने खड़ी हो गई. आईने में अपने जिस्म को देखकर वो मुस्कुराने
लगी, उसे खुद अपनी जवानी से जलन हो रही थी. शानदार गुलाबी चुचियाँ, भरे
हुए मम्मे पतली कमर, क्लीन शेव चूत जिसके उपरी हिस्से पर बालों की एक
पतली सी लकीर जैसे रास्ता बता रही हो - जन्नत का.

उसने एक ठंडी आह भरी, अपनी चूत को थपथपाया और चड्डी पहन ली. फिर अपने
गदराए हुए एकदम गोल और कसे हुए मम्मों को ब्रा में लपेटकर उसने हुक बंद
कर लिया. अपने उरोजो को ठीक से सेट किया, वो तो जैसे उच्छल कर ब्रा से
बाहर आ रहे थे. ब्रा का हुक बंद करने के बाद उसने अलमारी खोली और सलवार
कमीज़ निकाली, लेकिन फिर कुच्छ सोचकर उसने कपड़े वापस अलमारी में रख दिए
और बुर्क़ा निकाल लिया.

अब वो बिल्कुल तैयार थी, सिर्फ़ एक ही बदलाव था, आज उसने बुर्क़े में
सिर्फ़ चड्डी और ब्रा पहनी थी. फिर अपना छ्होटा सा पर्स जो कि मुट्ठी में
आ सके और जिसमें 10-50 रुपये के 4-5 नोट रख सके, लेकर निकल गई. अब वो बस
स्टॉप पर आकर बस का इंतेज़ार करने लगी, उसे पता था इस वक़्त बस में भीड़
होगी और उसे बैठने की क्या, खड़े होने की भी जगह नहीं मिलेगी. यही चाहती
थी वो. शबाना सर से पैर तक बुर्क़े में धकि हुई थी, सिर्फ़ आँखें नज़र आ
रही थी. किसी के भी उसे पहचान पाने की कोई गुंजाइश नहीं थी.

जैसे ही बस आई, वो धक्का मुक्की करके चढ़ गई, किसी तरह टिकेट ली और बीच
में पहुँच गई और इंतेज़ार करने लगी. किसी मर्द का जो उसे छुए, उसके
प्यासे जिस्म को राहत पहुँचाए. उसे ज़्यादा इंतेज़ार नहीं करना पड़ा.
उसकी जाँघ पर कुच्छ गरम गरम लगा. वो समझ गई कि यह लंड है. सोचते ही उसकी
धड़कनें तेज़ हो गई, और उसने अपने आपको थोड़ा अड्जस्ट किया. अब वो लंड
बिल्कुल उसकी गंद में सेट हो चुका था. उसने धीरे से अपनी गांद को पीछे की
तरफ दबाया. उसके पीछे खड़ा था प्रताप सिंग, जो बस में ऐसे ही मौकों की
तलाश में रहता था. प्रताप समझ गया कि लाइन क्लियर है. उसने अपना हाथ नीचे
किया और अपने लंड को सीधा करके शबाना की गंद पर फिट कर दिया. अब प्रताप
ने अपना हाथ शबाना की गंद पर रखा और दबाने लगा. हाथ लगाते ही प्रताप चौंक
गया, वो समझ गया कि बुर्क़े के नीचे सिर्फ़ चड्डी है. उसने धीरे धीरे
शबाना की मुलायम गोल गोल उठी हुई गंद की मसाज करना शुरू कर दिया. अब
शबाना एकदम गरम होने लगी थी. प्रताप ने अपना हाथ अब उपर किया और शबाना की
कमर पर से होता हुआ उसका हाथ उसकी बगल में पहुँच गया. वो शबाना की हल्की
हल्की मालिश कर रहा था, उसकी पीठ पर से होता हुआ उसका हाथ शबाना की कमर
और गंद को बराबर दबा रहा था. और नीचे प्रताप का लंड शबाना की गंद की दरार
में धंसा हुआ धक्के लगा रहा था. फिर प्रताप ने हाथ नीचे लिया और उसके
बुर्क़े को पीछे से उठाने लगा. शबाना ने कोई विरोध नहीं किया और अब
प्रताप का हाथ शबाना की चड्डी पर था. वो उसकी जाँघ और गंद को अपने हाथों
से आटे की तरह गूँथ रहा था. फिर प्रताप ने शबाना की दोनों जांघों के बीच
हाथ डाला और उंगलियों से दबाया. शबाना समझ गई और उसने अपनी टाँगें फैला
दी. अब प्रताप ने बड़े आराम से अपनी उंगलियाँ शबाना की चूत पर रखी और उसे
चड्डी के उपर से सहलाने लगा. शबाना मस्त हो चुकी थी और उसकी साँसें तेज़
चलने लगी थी. उसने नज़रें उठाई और इतमीनान किया कि किसी की नज़र तो नहीं,
यकीन होने के बाद उसने अपनी आँखें बंद की और मज़े लेने लगी. अब प्रताप की
उंगली चड्डी के किनारे से अंदर चली गई थी. शबाना की भीगी हुई चूत पर
प्रताप की उंगलियाँ जैसे कहर बरपा रही थी. ऊपर नीचे, अंदर-बाहर - शबाना
की चूत जैसे तार-तार हो रही थी और प्रताप की उंगलिया खेत में चल रहे हल
की तरह उसकी लंबाई, चौड़ाई और गहराई नाप रही थी. प्रताप का पूरा हाथ
शबाना की चूत के पानी से भीग चुका था - फिर उसने अपनी दो उंगलियाँ एक साथ
चूत में घुसा और दो तीन ज़ोर के झटके दिए - शबाना ऊपर से नीचे तक हिल गई
और उसके पैर उखड़ गये, वो प्रताप पर एकदम से निढाल होकर गिर पड़ी. वो
झाड़ चुकी थी. आज तक इतना शानदार स्खलन नहीं हुआ था उसका. उसने अपना हाथ
पीछे किया और प्रताप के लंड को पकड़ लिया. इतने में झटके के साथ बस रुकी
और बहोत से लोग उतर गये. बस तकरीबन खाली हो गयी. शबाना ने अपना बुर्क़ा
झट से नीचे किया और सीधी नीचे उतर गई. आज उसे भरपूर मज़ा मिला था, रोज़
तो सिर्फ़ कोई पीछे से लंड रगड़ कर छ्चोड़ देते थे. आज जो हुआ वो पहले
कभी नहीं हुआ था. आप ठीक समझे शबाना यही करके मज़े लूट रही थी. क्योंकि
पठान उसे कभी खुश नहीं कर पाया था.

उसने नीचे उतरकर रोड क्रॉस की और रिक्क्षा पकड़ ली. ऐसा मज़ा ज़िंदगी में
पहली बार आया था. वो बार बार अपना हाथ देख रही थी, उसकी मुट्ठी बनाकर
प्रताप के लंड के बारे में सोच रही थी. उसने घर से थोड़ी दूर ही रिक्क्षा
छ्चोड़ दिया ताकि किसी को पता ना चले कि वो रिक्कशे से आई है. वो पैदल
चलकर अपने मकान में पहुँची और ताला खोलकर अंदर चली गई.

अभी उसने दरवाज़ा बंद किया ही था कि घंटी की आवाज़ सुनकर उसने फिर
दरवाज़ा खोला. सामने प्रताप खड़ा था. वो समझ गई की प्रताप उसका पीछा कर
रहा था, इस डर से की कोई और ना देख ले उसने प्रताप का हाथ पकड़ कर उसे
अंदर खींच लिया. दरवाज़ा बंद करके उसने प्रताप की तरफ देखा, वो हैरान थी
प्रताप कि इस हरकत से. "क्यों आए हो यहाँ ?" "यह तो तुम अच्छि तरह जानती
हो." "देखो कोई आ जाएगा" "कोई आनेवाला होता तो तुम इस तरह बस में मज़े
लेने के लिए नहीं घूम रही होती". "में तुम्हें जानती भी नहीं हूँ" "मेरा
नाम प्रताप है, अपना नाम तो बताओ" "मेरा नाम शबाना है, अब तुम जाओ यहाँ
से". बातें करते करते प्रताप शबाना के जिस्म पर हाथ फिरा रहा था. प्रताप
के हाथ उसकी चुचियो से लेकर उसकी कमर और पेट और जांघों को सहला रहे थे.
शबाना बार बार उसका हाथ झटक रही थी और प्रताप बार बार उन्हें फिर शबाना
के जिस्म पर रख रहा था. लेकिन प्रताप समझ गया था कि शबाना की ना में हां
है

अब प्रताप ने शबाना को अपनी बाहों भर लिया और बुर्क़े से झाँकति आँखों पर
चुंबन जड़ दिया. शबाना की आँखें बंद हो गई और उसके हाथ अपने आप प्रताप के
कंधों पर पहुँच गये. प्रताप ने उसके बुर्क़े को उठाया, जैसे कोई घूँघट
उठा रहा हो. चेहरा देखकर प्रताप को अपनी किस्मत पर भरोसा नहीं हो रहा था.
गजब की खूबसूरत थी शबाना - गुलाबी रंग के पतले होंठ, बड़ी आँखें, गोरा
चिटा रंग और होंठों के ठीक नीचे दाईं तरफ एक छ्होटा सा तिल. प्रताप ने अब
धीरे धीरे उसके गालों को चूमना और चाटना शुरू कर दिया. शबाना ने आँखें
बंद कर ली और प्रताप उसे चूमे जा रहा था. उसके गालों को चाट रहा था, उसके
होंठों को चूस रहा था. अब शबाना भी अच्च्छा साथ दे रही थी और उसकी जीभ
प्रताप की जीभ से कुश्ती कर रही थी. प्रताप ने हाथ नीचे किया और उसके
बुर्क़े को उठा दिया, शबाना ने अपने दोनों हाथ ऊपर कर दिए और प्रताप ने
बुर्क़ा उतार फेंका. प्रताप शबाना को देखता रह गया, इतना शानदार जिस्म
जैसे किसीने ने तराश कर बनाया हो.

"दरवाज़े पर ही करना है सबकुच्छ ?" - प्रताप मुस्कुरा दिया और उसने शबाना
को अपनी बाहों में उठा लिया और गोद में लेकर बिस्तर की तरफ चल पड़ा. उसने
शबाना को बेड के पास ले जाकर गोद से उतार दिया और बाहों में भर लिया.
शबाना की ब्रा खोलते ही जैसे दो परिंदे पिंजरे से छ्छूट कर उड़े हों.
बड़े बड़े मम्मे और उनपर छ्होटी छ्होटी गुलाबी चुचियाँ और उठे हुए
निपल्स. प्रताप तो देखता ही रह गया, जैसे की हर कपड़ा उतरने के बाद कोई
ख़ज़ाना सामने आ रहा था. प्रताप ने अपना मुँह नीचे लिया और शबाना की
चूचियों को चूसता चला गया और चूस्ते हुए ही उसने शबाना को बिस्तर पर लिटा
दिया. शबाना के मुँह से सिसकारिया निकल रही थी और वो प्रताप के बालों में
हाथ फिरा रही थी, उसे दबा रही थी और अपनी चूचियों को उसके मुँह में धकेल
रही थी. शबाना मस्त हो चुकी थी. अब प्रताप उसके पेट को चूस रहा था और
प्रताप का हाथ शबाना की चड्डी पर से उसकी चूत की मसाज कर रहा था. शबाना
मस्त हो चुकी थी, उसकी चूत की लंड की प्यास उसे मदहोश कर रही थी. उसकी
सिसकारियाँ बंद नहीं हो रही थी और टाँगें अपनेआप फैलकर लंड को चूत में
घुसने का निमंत्रण दे रही थी. प्रताप उसके पेट को चूमते हुए उसकी जांघों
के बीच पहुँच चुका था. शबाना बिस्तर पर लेटी हुई थी और उसकी टाँगें बेड
से नीचे लटक रही थी. प्रताप उसके पैरों के बीच से होता हुआ बेड के नीचे
बैठ गया और शबाना के पैर फैला दिए. वो शबाना की गोरी गोरी, गदराई हुई
भारी भारी सुडौल जांघों को बेतहाशा चूम रहा था और उसकी उंगलिया चड्डी पर
से उसकी चूत सहला रही थी. प्रताप के नथुनो में शबाना की चूत से रिस्ते
हुए पानी की खुश्बू आ रही थी और वो मदहोश हो रहा था. शबाना पर तो जैसे
नशा चढ़ गया था और वो अपनी गांद उठा उठा कर अपनी चूत को प्रताप की
उंगलियों पर रगड़ रही थी.

अब प्रताप चड्डी के ऊपर से ही शबाना की चूत को चूमने लगा, हल्के हल्के
दाँत गढ़ा रहा था शबाना की चूत पर. और शबाना प्रताप के सिर को पकड़ कर
अपनी चूत पर दबा रही थी, गांद उठा उठा कर चूत को प्रताप के मुँह में घुसा
रही थी. फिर प्रताप ने शबाना की चड्डी उतार दी. अब उसके सामने सबसे हसीन
चूत थी एकदम गुलाबी एकदम प्यारी. एकदम सफाई से रखी हुई कोई सीप जैसी.
प्रताप उसकी खुश्बू से मदहोश हो रहा था और उसने अपनी जीभ शबाना की चूत पर
रख दी. शबाना उच्छल पड़ी और उसके शरीर में जैसे करेंट दौड़ गया, उसने
प्रताप के सिर को पकड़ा और अपनी गंद उचका कर चूत को प्रताप के मुँह पर
रगड़ दी. प्रताप की जीभ शबाना की चूत में धँस गई और प्रताप ने अपने
होंठों से शबाना की चूत को ढँक लिया और एक उंगली भी शबाना की चूत में
घुसा दी - अब शबाना की चूत में प्रताप की जीभ और उंगली घमासान मचा रही
थी. शबाना रह रह कर अपनी गांद उठा उठा कर प्रताप के मुँह में चूत दबा रही
थी. उसकी चूत से निकल रहा पानी उसकी गांद तक पहुँच गया था. प्रताप ने अब
उंगली चूत से निकाली और शबाना की गंद पर उंगली फिराने लगा. चूत के पानी
की वजह से गंद में उंगली फिसल कर जा रही थी. शबाना को कुच्छ होश नहीं था
- वो तो चुदाई के नशे से मदहोश हो चुकी थी, आज तक उसे इतना मज़ा नहीं आया
था. उसकी सिसकारिया बंद नहीं हो रही थी. उसकी गंद में उंगली और चूत में
जीभ घुसी हुई थी और वो नशे में धुत्त शराबी की तरह बिस्तर पर इधर उधर हो
रही थी. उसकी आँखें बंद थी और वो जन्नत की सैर कर रही थी. किसी तेज़
खुश्बू की वजह से उसने आँखें खोली, तो सामने प्रताप का लंड था. उसे पता
ही नहीं चला कब प्रताप ने अपने कपड़े उतार दिए और 69 की पोज़िशन में आ
गया. शबाना ने प्रताप के लंड को पकड़ा और ऊपर नीचे करने लगी, प्रताप के
लंड से पानी गिर रहा था और वो चिपचिप हो रहा था - शबाना ने लंड को अच्छि
तरह सूँघा, उसे अपने चेहरे पर लगाया और उसका अच्छि तरह जायज़ा लेने के
बाद उसे चूम लिया. फिर अपना मुँह खोला और लंड को मुँह में लेकर चूसना
शुरू कर दिया. वो एक लॉलिपोप की तरह लंड चूस रही थी, लंड के सुपरे को
अपने मुँह में लेकर अंदर ही उसे जीभ से लपेटकर अच्छि तरह चूस रही थी. और
प्रताप उसकी चूत अब भी चूस रहा था.

अचानक जैसे ज्वालामुखी फटा और लावा बहने लगा. शबाना का जिस्म बुरी तरह
अकड़ गया और उसकी टाँगें सिकुड गई, प्रताप का मुँह जैसे शबाना की जांघों
में पिस रहा था, शबाना बुरी तरह झाड़ गई और उसकी चूत ने एकदम से पानी
छ्चोड़ दिया, और वो एकदम निढाल गई. आज एक घंटे में वो दो बार झाड़ चुकी
थी जबकि अब तक उसकी चूत में लंड गया भी नहीं था.
क्रमशः................


सबाना और ताजीन की चुदाई  -1

Subah ke aath baj rahe the. parvez ne jaldi se apna pyjama pehna aur
bahar nikal gaya. Shabana abhi bistar par leti hui hi thi, bilkul
nangi. uski chut par ab bhi pathan ka pani nazar aa raha tha, aur
taanur jisgein phaili hui thi. aaj phir pathan use pyasa chhod kar
chala gaya tha.

"Haramzada chhakka" Pathaan ko gaali dete hue Shabana ne apni chut
mein ungli dali aur jor jor se andar bahar karne lagi. Phir ek bhari
siskari ke saath woh shithil padne lagi, uski chut ne paani chhod
diya. Lekin chut mein ab bhi aag lagi hui thi, lund ki pyasi chut ko
ungli se shant karna mushkil tha.

Nahane ke baad apna sharir ponchh kar woh bathroom se bahar nikli aur
nangi hi aaine ke saamne khadi ho gai. Aaine mein apne jism ko dekhkar
woh muskurane lagi, use khud apni jawani se jalan ho rahi thi.
Shaandar Gulabi chuchian, bhare hue mammay patli kamar, clean shave
choot jiske upari hisse par balon ki ek patli si lakir jaise raasta
bata rahi ho - jannat ka.

Usne ek thandi aah bhari, apni choot ko thapthapaya aur chaddi pehan
li. phir apne gadraye hue ekdum gol aur kase hue mammon ko bra mein
lapetkar usne hook band kar li. apne urozon ko theek se set kiya, woh
to jaise uchhal kar bra se baahar aa rahe the. Bra ka hook band karne
ke baad usne almari kholi aur salwar kameez nikali, lekin phir kuchh
sochkar usne kapde wapas almari mein rakh diye aur burqa nikal liya.

Ab woh bilkul taiyar thi, sirf ek hi badlaav tha, aaj usne burqe mein
sirf chaddi aur bra pehni thi. Phir apna chhota sa purse jo ki mutthi
mein aa sake aur jismein 10-50 rupaye ke 4-5 note rakh sake, lekar
nikal gai. Ab woh bus stop par aakar bus ka intezaar karne lagi, usay
pata tha is waqt bus mein bheed hogi aur use baithne ki kya, khade
hone ki bhi jagah nahin milegi. Yehi chahti thi woh. Shabana sar se
pair tak burke mein dhaki hui thi, sirf aankhein nazar aa rahi thi.
Kisi ke bhi usay pehchaan pane ki koi gunjaish nahin thi.

Jaise hi bus aai, woh dhakka mukki karke chadh gai, kisi tarah ticket
li aur beech mein pahunch gai aur intezaar karne lagi. Kisi mard ka jo
use chhue, uske pyaase jism ko rahat pahunchaye. Use zyada intezaar
nahin karna pada. Uski jaangh par kuchh garam garam laga. Woh samajh
gai ki yeh lund hai. Sochte hi uski dhadkanein tez ho gai, aur usne
apne aapko thoda adjust kiya. Ab woh lund bilkul uski gand mein set ho
chuka tha. Usne dheere se apni gaand ko peechhe ki taraf dabaya. Uske
peechhe khada tha Pratap Singh, jo bus mein aise hi maukon ki talash
mein rehta tha. Pratap samajh gaya ki line clear hai. Usne apna haath
neeche kiya aur apne lund ko seedha karke Shabana ki gand par fit kar
diya. Ab Pratap ne apna haath Shabana ki gand par rakha aur dabane
laga. Haath lagate hi Pratap chaunk gaya, woh samajh gaya ki burque ke
neeche sirf chaddi hai. Usne dheere dheere Shabana ki mulayam gol gol
uthi hui gand ki massage karna shuru kar diya. Ab Shabana ekdum garam
hone lagi thi. Pratap ne apna haath ab upar kiya aur Shabana ki kamar
par se hota hua uska haath uski bagal mein pahunch gaya. Woh Shabana
ki halki halki maalish kar raha tha, uski peeth par se hota hua uska
haath Shabana ki kamar aur gand ko barabar daba raha tha. Aur neeche
Pratap ka lund Shabana ki gand ki daraar mein dhansa hua dhakke laga
raha tha. Phir Pratap ne haath neeche liya aur uske burke ko peechhe
se uthane laga. Shabana ne koi virodh nahin kiya aur ab Pratap ka
haath Shabana ki chaddi par tha. Woh uski Jaangh aur gand ko apne
haathon se aate ki tarah goonth raha tha. Phir Pratap ne Shabana ki
donon jaanghon ke beech haath dala aur ungliyon se dabaya. Shabana
samajh gai aur usne apni taangein phaila di. Ab Pratap ne bade aaram
se apni ungliyan shabana ki choot par rakhi aur usay chaddi ke upar se
sehlane laga. Shabana mast ho chuki thi aur uski saansein tez chalne
lagi thi. Usne nazrein uthai aur itminan kiya ki kisi ki nazar to
nahin, yakeen hone ke baad usne apni aankhein band ki aur maze lene
lagi. Ab Pratap ki ungli chaddi ke kinare se andar chali gai thi.
Shabana ki bheegi hui choot par Pratap ki ungliyan jaise kehar barpa
rahi thi. Oopar neeche, andar-bahar - Shabana ki chut jaise taar-taar
ho rahi thi aur Pratap ki ungliya khet mein chal rahe hal ki tarah
uski lambai, chaudai aur gehrai naap rahi thi. Pratap ka poora haath
shabana ki chut ke paani se bheeg chuka tha - phir usne apni do
ungliyan ek saath chut mein ghusai aur do teen zor ke jhatke diye -
Shabana oopar se neeche tak hil gai aur uske pair ukhad gaye, woh
Pratap par ekdum se nidhaal hokar gir padi. Woh jhad chuki thi. Aaj
tak itna shaandar skhalan nahin hua tha uska. Usne apna haath peechhe
kiya aur Pratap ke lund ko pakad liya. Itne mein jhatke ke saath bus
ruki aur bahot se log utar gaye. Bus takreeban khali ho gayi. Shabana
ne apna burqa jhat se neeche kiya aur seedhi neeche utar gai. Aaj use
bharpoor maza mila tha, roz to sirf koi peechhe se lund ragad kar
chhod dete the. Aaj jo hua woh pehle kabhi nahin hua tha. Aap theek
samjhe Shabana yehi karke maze loot rahi thi. Kyonki pathan use kabhi
khush nahin kar paya tha.

Usne neeche utarkar road cross ki aur rickshaw pakad li. Aisa maza
zindagi mein pehli baar aaya tha. Woh baar baar apna haath dekh rahi
thi, uski mutthi banakar Pratap ke lund ke baare mein soch rahi thi.
Usne ghar se thodi door hi rickshaw chhod diya taki kisi ko pata na
chale ki woh rickshaw se aai hai. Woh paidal chalkar apne makaan mein
pahunchi aur tala kholkar andar chali gai.

Abhi usne darwaza band kiya hi tha ki ghanti ki aawaz sunkar usne phir
darwaza khola. Samne Pratap khada tha. Woh samajh gai ki Pratap uska
peechha kar raha tha, is dar se ki koi aur na dekh le usne Pratap ka
haath pakad kar use andar kheench liya. Darwaza band karke usne Pratap
ki taraf dekha, woh hairan thi Prata ki is harkat se. "Kyon aaye ho
yahan ?" "yeh to tum achchhi tarah jaanti ho." "Dekho koi aa jayega"
"Koi aanewala hota to tum is tarah bus mein maze lene ke liye nahin
ghoom rahi hoti". "mein tumhein jaanti bhi nahin hoon" "mera naam
Pratap hai, apna naam to batao" "mera naam Shabana hai, ab tum jao
yahan se". Baatein karte karte Pratap Shabana ke jism par haath phira
raha tha. Pratap ke haath uske urozon se lekar uski kamar aur pait aur
jaanghon ko sehla rahe the. Shabana baar baar uska haath jhatak rahi
thi aur Pratap baar baar unhein phir Shabana ke jism par rakh raha
tha. Lekin Pratap samajh gaya tha ki Shabana ki na mein haan hai

Ab Pratap ne Shabana ko apni baahon bhar liya aur burke se jhaankti
aankhon par chumban jad diya. Shabana ki aankhein band ho gai aur uske
haath apne aap Pratap ke kandhon par pahunch gaye. Pratap ne uske
burke ko uthaya, jaise koi ghunghat utha raha ho. Chehra dekhkar
Pratap ko apni kismat par bharosa nahin ho raha tha. Ghazab ki
khoobsurat thi Shabana - gulabi rang ke patle honth, badi aankhen,
gora chitta rang aur honthon ke theek niche dayin taraf ek chhota sa
til. Pratap ne ab dheere dheere uske gaalon ko chumna aur chatna shuru
kar diya. Shabana ne aankhein band kar li aur Pratap use choome ja
raha tha. Uske gaalon ko chaat raha tha, uske honthon ko choos raha
tha. Ab Shabana bhi achchha saath de rahi thi aur uski jeebh Pratap ki
jeebh se kushti kar rahi thi. Pratap ne haath neeche kiya aur uske
burke ko utha diya, Shabana ne apne donon haath oopar kar diye aur
Pratap ne burka utar phenka. Pratap Shabana ko dekhta reh gaya, Itna
shandar jism jaise kisine ne tarash kar banaya ho.

"Darwaze par hi karna hai sabkuchh ?" - Pratap muskura diya aur usne
Shabana ko apni baahon mein utha liya aur god mein lekar bistar ki
taraf chal pada. Usne Shabana ko bed ke paas le jakar god se utar diya
aur baahon mein bhar liya. shabana ki bra kholte hi jaise do parinday
pinjre se chhoot kar ude hon. Bada bade mammay aur unpar chhoti chhoti
gulabi chuchiyan aur uthe hue nipples. Pratap to dekhta hi reh gaya,
jaise ki har kapda utarne ke baad koi khazana saamne aa raha tha.
Pratap ne apna munh neeche liya aur Shabana ki choochiyon ko chhosta
chala gaya aur chooste hue hi usne Shabana ko bistar par lita diya.
Shabana ke munh se siskariya nikal rahi thi aur woh Pratap ke baalon
mein haath phira rahi thi, use daba rahi thi aur apni chhochiyan uske
munh mein dhakel rahi thi. Shabana mast ho chuki thi. Ab Pratap uske
pet ko choos raha tha aur Pratap ka haath shabana ki chaddi par se
uski chut ki massage kar raha tha. Shabana mast ho chuki thi, uski
chut ki lund ki pyaas use madhosh kar rahi thi. Uski siskariyan band
nahin ho rahi thi aur taangein apneaap phailkar lund ko chut mein
ghusne ka nimantran de rahi thi. Pratap uske pait ko chumte hue uski
jaanghon ke beech pahunch chuka tha. Shabana bistar par leti hui thi
aur uski taangein bed se neeche latak rahi thi. Pratap uske pairon ke
beech se hota hua bed ke neeche baith gaya aur Shabana ke pair phaila
diye. Woh Shabana ki gori gori, gadrai hui bhari bhari sudoul janghon
ko betahaasha chum raha tha aur uski ungliya chaddi par se uski chut
sehla rahi thi. Pratap ke nathunon mein shabana ki chut se riste hue
paani ki khushbu aa rahi thi aur woh madhosh ho raha tha. Shabana par
to jaise nasha chadh gay tha aur woh apni gaand utha utha kar apni
chut ko Pratap ki ungliyon par ragad rahi thi.

Ab Pratap chaddi ke oopar se hi Shabana ki chut ko choomne laga, halke
halke daant gada raha tha shabana ki chut par. Aur Shabana Pratap ke
sir ko pakad kar apni chut par daba rahi thi, gaand utha utha kar chut
ko Pratap ke munh mein ghusa rahi thi. Phir Pratap ne Shabana ki
chaddi utar di. Ab uske saamne sabse haseen chut thi ekdum gulabi
ekdum pyari. ekdum safai se rakhi hui koi seep jaisi. Pratap uski
khushbu se madhosh ho raha tha aur usne apni jeebh Shabana ki chut par
rakh di. Shabana uchhal padi aur uske shareer mein jaise current daud
gaya, usne Pratap ke sir ko pakda aur apni gand uchka kar chut ko
Pratap ke munh par ragad di. Pratap ki jeebh Shabana ki chut mein
dhans gai aur Pratap ne apne honthon se Shabana ki chut ko dhank liya
aur ek ungli bhi shabana ki chut mein ghusa di - ab shabana ki chut
mein Pratap ki jeebh aur ungli ghamasan macha rahi thi. Shabana reh
reh kar apni gaand utha utha kar Pratap ke munh mein chut daba rahi
thi. Uski chut se nikal raha paani uski gaand tak pahunch gaya tha.
Pratap ne ab ungli chut se nikali aur Shabana ki gand par ungli
phirane laga. Chut ke paani ki wajah se gand mein ungli phisal kar ja
rahi thi. Shabana ko kuchh hosh nahin tha - woh to chudai ke nashe se
madhosh ho chuki thi, aaj tak use itna maza nahin aaya tha. Uski
siskariya band nahin ho rahi thi. Uski gand mein ungli aur chut mein
jeebh ghusi hui thi aur woh nashe mein dhutt sharabi ki tarah bistar
par idhar udhar ho rahi thi. Uski aankhein band thi aur woh jannat ki
sair kar rahi thi. Kisi tez khushbu ki wajah se usne aankhein kholi,
to saamne Pratap ka lund tha. Use pata hi nahin chala kab Pratap ne
apne kapde utar diye aur 69 ki position mein aa gaya. Shabana ne
Pratap ke lund ko pakda aur oopar neeche karne lagi, Pratap ke lund se
paani gir raha tha aur woh chipchip ho raha tha - Shabana ne lund lo
achchhi tarah sungha, use apne chehre par lagaya aur uska achchhi
tarah jaayza lene ke baad use choom liya. Phir apna munh khola aur
lund ko munh mein lekar chusna shuru kar diya. Woh ek lollipop ki
tarah lund chus rahi thi, lund ke supare ko apne munh mein lekar andar
hi use jeebh se lapetkar achchhi tarah choos rahi thi. Aur Pratap uski
chut ab bhi chus raha tha.

Achanak jaise jwalamukhi phata aur lava behne laga. Shabana ka jism
buri tarah akad gaya aur uski taangein sikud gai, Pratap ka munh jaise
Shabana ki jaanghon mein pis raha tha, Shabana buri tarah jhad gai aur
uski chut ne ekdum se paani chhod diya, aur woh ekdum nidhaal gai. Aaj
ek ghante mein woh do bar jhad chuki thi jabki ab tak uski chut mein
lund gaya bhi nahin tha.
kramashah................

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