कहानी रिश्तों की
आज एक अरसे के बाद सोहन को जी भर के चोदने का मौका मिला था.
वैसे तो हम जब भी मिलते थे जहाँ भी मिलते थे, चूमा चॅटी
तो करते ही थे, पर आधी अधूरी चुदाई में वो मज़ा कहाँ
आज जब मैं उसके घर पहॉंची थी तो घर में सोहन और उसकी
आपा ही थे. लगता था की दोनों आपस में शुरू हुए ही थे की मैं
जा टाप्की.
"आज तो मज़ा आ गया, अरसे के बाद हम तीनों अकेले मिले हैं"
रिचा आपा ने कहा.
"सच बताओ, रिचा, क्या वाक़ई खुश हो या मन में गालियाँ दे
रही हो कि दाल भात में मूसर चंद कहाँ से आ गयी?" मैं
बोली.
"लैला, मूसर चंद नहीं, तू तो गहरी कश्ती है सोहन के पतवार
के लिए" रिचा ने तहेदिल से कहा.
और उसके बाद सोहन के पतवार कभी मेरी नाओ में और कभी रिचा
की नाओ में चप्पू चलाया. हम लोग रुके तब जब तीनों थक कर
चूर हो गये और मैं वापस घर आने के लिए निकल आई.
मैं रास्ते में सोचती आ रही थी सोहन के मज़ाक के बारे में.
वो अक्सर करता रहता था कि मैं अपने अब्बू की तन्हाई दूर करने की
कोशिश क्यों नहीं करती. पहले तो मुझे बहोत अटपटा लगता था पर धीरे,
धीरे मैं भी कभी, कभी मास्टरबेट करते वक़्त यह तस्वीर
आँखों के सामने रखती थी.
जैसे ही मैनें अपनी चाबी से साइड का दरवाज़ा खोला मुझे लगा
घर में कोई है, कुच्छ आवाज़ें सी आ रही थीं ऊपर की मंज़िल
से. ऊपर की मंज़िल में तो अब्बा रहते थे और आज सुबह जब मैं
घर से गयी थी तो प्रोग्राम यह था कि दोपहर की फ्लाइट से वो
और उनकी दोस्त सहला दिल्ली चले जायेंगे.
अब्बू ने अम्मी की मौत के बाद दूसरी शादी नहीं की थी. चालीस
साल के अब्बू अभी तक मेरे साथ ही रहते. अब्बू की कंपनी की काई
लरकियाँ घर आया करती थीं. अब्बू मेरे साथ भी काफ़ी खुले
थे - बातों में भी और रहने में भी. अक्सर बिना कप्रों के सो
जाते थे. बिल्कुल भी एंबरशसेद महसूस नहीं करते थे. इस बात
को
भी छिपाते नहीं थे की उनको मिलने लरकियाँ आती हैं और रात को
रुक भी जाती हैं. सब कुच्छ बिल्कुल नॉर्मल सा लगता था.
मैं भी सोचती थी के अब्बू की भी ऐसे ही जिस्मानी ज़रूरतें है
जैसी मैं महसूस करती थी. बात ही बात में एक दो बार उन्हों ने
मुझे समझा दिया था की आज़ादी का इस्तेमाल करते हुए अपनी
हिफ़ाज़त का ध्यान रखना लर्की क़ा ही काम है, अपने पार्ट्नर पर
मुनःस्सर नहीं करना चाहिए. मैं समझ गयी कि कह रहे थे कि
आइ हॅव टू टेक केर ऑफ माइसेल्फ.
इसी बीच मेरी जान पहचान सोहन और रिचा से हुई. पहले तो मैं
समझ नहीं सकी के दोनों आपस में कैसी फौश बातें करते हैं
पर धीरे, धीरे रिचा ने मुझे अपने खेलों में शामिल कर लिया.
शुरुआत रिचा ने ही की. तभी मुझे यह भी समझ आया की चूत के
खेल में कोई रिश्ता नहीं होता और कोई जेंडर नहीं होता.
प्लेषर
ईज़ आ मॅटर ऑफ फीलिंग, एमोशन, सॅटिस्फॅक्षन. अगर तुम्हारी क्लिट्टी
को
सहलाना है तो जीभ या उंगली मेल है या फीमेल, डज़ नोट
मॅटर.
भाई की है या किसी और की, चूत या क्लिट्टी इसमें इंट्रेस्टेड नहीं
होती.
अब आज जब मुझे घर में आवाज़ें आईं तो मुझे लगा के देखना
चाहिए कहीं कोई गारबर तो नहीं है. पर सीधे ऊपर जाने के
बदले मैनें कुच्छ आवाज़ें की जिस से जो भी हो वो सुन ले.
ऊपर के कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और सहला बाहिर
आ
कर सीरहियों पर आ कर बोली, "लैला, हमारी फ्लाइट कॅन्सल हो गयी
थी, अब रात को एक बजे जाएगी."
मैनें देखा की सहला करीबन नंगी थी. ऐसे वो पहली बार मेरे
सामने आई थी. उसके हाथ में एक तौलिया था जो उसनें कुच्छ
ऐसे
पकरा हुआ था की उसकी छ्चातियाँ और जांघें तो नंगी तीन,
पर
कमर ढाकी हुई थी. यह कहती, कहती सहला सीरहियाँ उतारने लगी.
मेरा ध्यान एकदम रिचा की तरफ गया. कहना मुश्किल था कौन
ज़्यादा खूबसूरत है, रिचा के मुममे ज़्यादा भरे हुए हैं बस.
सहला का सारा बदन ज़्यादा खूबसूरत था. उसकी चूचिया
थोरी सी अपने ही वज़न से ढालकी दिख रही थीं. चलते वक़्त थिरकन
का ऐहसास भर था. टाँगों के बीच में बाल नहीं थे, सो जब
उसका पैर नीचे की सिरही पर परता था तो चूत का एक होंठ
कुच्छ
खींच जाता था. इस तरह जैसे सहला सीरही उतर रही थी वैसे
उसकी चूत हल्के से खुल बूँद हो रही थी. एक बूँद सी बुन कर
नीचे
लटक रही थी. टाँगें छ्होटे केले के पेयर के च्चिले तन्ने की
तरह गोरी और चिकनी दिखाई दे रही थीं.
धीरे, धीरे मेरी आँखों में आंखाने डाले ये खूबसूरत जिस्म
नीचे उतर आया. मैं पत्थर की मूरत बने उसकी चाल, उसकी
थिरकन देख रही थी. मुझे होश तब आया जब उसने मेरे सामने
आकर बेधारक अपना पुंजा फैला कर मेरी जांघों के बीच इस
तरह रख दिया की मेरी सालिम फुददी उसके हाथ में थी. मेरी
@जीन्स और पॅंटी को चियर कर उसके हाथ का करेंट मेरी चूत पर
ज़ुल्म ढा गया. मुझे होश तब आया जब वो बोली.
"लैला, लगता है तू तो पहले ही गीली है, है ना? देख मेरी
उंगली
कैसे फिसल रही है"
और यह कहते, कहते उसने मेरी @जीन्स का ज़िपर खोल कर @जीन्स को
नीचे खींच दिया.
यह क्या हो रहा था? यह मेरे अब्बू की दोस्त, कहने की ज़रूरत
नहीं, मेरे अब्बू की चूत मुझ से ये सब कुच्छ कर रही थी! उसने
मेरी पॅंटी भी खींच कर उतार दी और मेरे सामने घुटनों पर
बैठ
कर मेरी फुददी पर अपना मुँह चिपका दिया, साथ ही उसकी जीभ की
सुई जैसी नोक अंदर घुस कर गाज़ाब धाने लगी. मेरी टाँगों में
जैसे जान नहीं रही. सहारा लेने के लिए मैनें टाँगें
कुच्छ
खोलीं और उसके सिर पर हाथ रक्खा. वज़न उसकी जीभ पर पारा
और
जीभ और अंदर घुस हाई.
"मुँह . . . मुँह . . . " करते हुए हू बोली:
"आह . . . आह . . . च . . . ओ . . . ओ . . . ओ . . . ओट चू . . .
स
. . . न . . . ए . . . क़ा मज़ा ही कुच्छ औट है"
अपना मुँह हटाते हुए उसने क्लिट्टी पर कुच्छ ऐसे जीभ लगाई कि
मैं एक दम चूत गयी.
सीधी खरी हो कर बोली, "लैला, तू बच्ची नहीं है. तू जानती
है
के मैं और तेरे अब्बू चुदाई करते हैं. तूनें यह भी देख लिया
की मैं तो एसी/डीसी बोथ हूँ. दोनों लाइन्स पर चलती हूँ. मेरे मन में
आज ये आया कि आज, फरीद के बर्तडे पर उसे एक प्रेज़ेंट दी जाए".
ओह, शिट, मुझे याद ही नहीं था. मेरा माथा भी ठंका. इसका
मतलब क्या है? ठीक है सोहन और रिचा ने मज़ाक में कई बार
इशारा किया था, पर मज़ाक तो मज़ाक ही होता है. लेकिन पेश्तर
इसके की मैं कुच्छ कह सकती सहला मुझे खींचती हुई ऊपर ले गयी.
मैं समझ गयी के मुश्किल वक़्त आने वाला है. उधर सोहन की
बातें भी दिमाग़ में तीन. सहला ने गीली चूत को फिर से
भूखा कर दिया था. एक थ्रिल सी मन में हुई. लाहौल बिल्ला
कुव्वत, दिमाग़ तो मन का गुलाम हो गया. आज अब्बू को प्रेज़ेंट दे
ही
दूं!
जब सहला नीचे गयी थी तो फरीद नहाने के लिए बाथरूम में
गया ही था. जब ये दोनों ऊपर पहॉंछे तो सहला ने लैला को
बाहिर
ही खरा किया और अंदर गयी. फरीद अभी बाहर नहीं आया था.
वो बाथरूम में चली गयी.
"फरीद, आज मैं तुम्हें बर्तडे का तोहफा दूँगी, पर तुम्हें
आँखे बंद रखनी परेंगी," फरीद को सहला की आदतों का पता
था. चुपचाप उसकी बात मान ली. सहला ने उसकी आँखों पर पट्टी
बाँधी, उसका हाथ पकड़ कर उसे बेड पर लाईए और लिटा दिया.
फिर उसका लौरा मुँह में लेकर तन्ना दिया. पेश्तर इसके की उसका
पानी निकलता, "चुपचाप परे रहो" कह कर बाहर गयी और लैला
को ले आई. अब टॅल्क लैला ने मन पक्का कर लिया था और एग्ज़ाइटेड
थी. अंदर आ कर जब उसने देखा के अब्बू की आँखों पर पट्टी है,
तब तो रही सही रिज़र्वेशन भी ख़तम हो गयी.
होठों पर उंगली रखे सहला ने इशारा किया की फरीद के लंड पर
बैठ जाओ. लैला ने देखा फरीद का लंड तन्नाया हुवा, आसमान
की
तरफ सिर उठाए, खून से भरा, लाल, लाल सुपारा नब्ज़ की
तरह
तड़प रहा था.
आव देखा ना ताव और वो चढ़ कर जम गयी. पेश्तर इसके की
फरीद
पूच्छे या कुच्छ कहे, सहला ने कहा, "फर्रू जान, यह तो तोहफा
है, और केक पर आइसिंग की तरह मैं तुम्हारे मुँह पर अपनी चूत
फिट
कर रही हूँ".
सहला लैला की तरफ मुँह कर के फरीद के मुँह पर ऐसे जम गयी की
बरबस उसकी जीभ सहला की चूत में घुस गयी. सहला ने आगे झुक
कर लैला का एक मुम्मा अपने मुँह में लिया और जीभ की नोक से उसकी
चूची को छेड़ने लगी.
"उः, . . . ह . . . ह" लैला के मुँह से निकला. सहला की निगाह ने
कहा "चुप रहो".
आरिफ़ का लंड चूस रहा था. लैला ने मज़े में अपना सिर पीछे
किया, उसकी छ्चातियाँ सहला की तरफ और आगे हो गयीं. लैला की
फुददी में ऐसे जान आ गयी थी जैसे हाथ लौरे से खेलता है,
उसे सहलाता है. फरीद बोलने की कोशिश कर रहा था पर सहला की
चूत उस पर जमी हुई थी.
"लो फरीद मैं उठ जाती हूँ". सहला उसके मुँह से उठ कर बगल में
बैठ गयी.
"सहला जान क्या तोहफा दिया हा . . . ई . . त . . . म . . .
न. . .ए,
इसकी सी . . . ह . . . ओ . . . ओ . . . ओ . . . त . . . तो ह . . . आ . .
. आ . . . आ . . . आ त की तरह मेरे लॉर को न . . . ई . . .
सी . . .
ह . . . र रही है. उ . . . फ . . . फ . . . फ . . . फ . . . आ . . .
इसे तो लैला की माँ मेरा लंड निचोर . . . आ . . . आ . . .आ का. . .
र . . . र . . . र . . . र . . . ती थी."
"यह लो, फरीद, देखो, तुम्हें माँ की बेटी ही चोद रही है".
यह कहते हुए सहला ने उसकी आँखों की पट्टी उतार दी. उसी वक़्त,
सहला की बात सुनने के बाद फरीद ने एक ताक़तवर धक्का अपने ऊपर
जमी चूत में देकर अंदर तक अपना लंड घुसा दिया. साथ ही
उसकी
आँख की पट्टी खुली और उसने देखा एक जवान, कसा हुवा धड़ उसके
लंड पर है, सिर पीछे, छ्चातियाँ आगे, नुकीली चूचियाँ,
भरी हुई, दोनों दूध थोरे बाहर की तरफ देखते हुए जैसे दो
सेंट्री एक दूसरे से रूठ कर ताने हों. पतली कमर, कभी ऊपर
नीचे और कभी गोल घूमती हुई जैसे मक्खन निकालने के लिए
हांड़ी
गोल घूम रही हो!
पालक झपकते बाप बेटी को पहचान भी गया!
"तेरी माँ की चूत फ़ारू, सहला, . . . "
"पहले अपनी बेटी की चूत का मज़ा तो ले, ले. मेरी माँ के लिए तो
कुच्छ छ्होरेगी ही नहीं . . . "
पर झटक कर बेटी को अपने लंड पर से उठा देने के बदले उसने
दोनों
हाथों से उसकी कमर पकरी और उसे और ज़ोर, ज़ोर से घुमाने और
ऊपर
नीचे करने लगा.
"सहला, देख मैं अच्च्छा चोद्ति हूँ या तू, यह कोई कॉंपिटेशन
नहीं है, पर मेरा ख़याल है बेटी और सहेली मिल कर बीवी की कमी
पूरी करते रहेंगे"
"आबे, बेटी चोद बाप, ले अब सहला के नीचे लेट."
लैला उठी और इतनी जल्दी सहला ने उसकी जगह ले ली कि शायद कुच्छ
लम्हों के लिए ही लंड ने खुली हवा ली हो.
लैला अपने बाप के मुँह पर बैठने के बदले उसकी बॉडी के दोनों तरफ
टांगे कर के सहला के सामने खरी हो गयी.
"ले मेरे बाप की चूत, नीचे कमरे में तू अच्छि तरह चूस
नहीं सकी थी मेरी फुददी, अब पूरा मज़ा ले." और उसने अपनी खुली,
गीली, फरक्ति हुई छूट सहला के मुँह पर फिट कर दी.
"तुम दोनों मुझे चोदोगि या मुझे भी मौका दोगि की मैं चोदू?"
"क्यों, औरत के नीचे लेटने मैं शर्म आती है क्या, या कमर
में
इतना दम नहीं है की एक औरत क़ा बोझा उठा सके?", लैला ने
कहा.
सहला को मज़ा आ रहा था बाप बेटी की चुदाई में और उनकी बातों
में.
मौका देख कर बोली, "फरीद, बेटी चोद, तेरा लंड बेटी की चूत
में
है या किसी और की चूत में, क्या यह पता चलता है?"
"लैला की माँ भी एक बार बोली थी के उसे पता नहीं चल सकता कि
उसकी चूत में जो लंड है वो उसके खाविंद का है या किसी और
क़ा"
"तो क्या अम्मी ने दूसरे लॉर भी चोदे थे? किस का, या किन के?"
मेरी लौरे की यार, लैला मैनें खुद अपने दोस्त और भाई को बुला कर
ऐसे ही टिकरी-चुदाई
की थी जैसे आज कर रहे हैं"
लैला इतनी फराक गयी अपनी माँ की बात के की सहला को धक्का दे
कर
फिर से बाप को ललकारा:
"मैं अब नीचे लेटटी हूँ मेरी माँ के खाविंद और तू ऊपर छरह
जा, देखना चोदून्गि मैं ही. मैं भी अपनी माँ की चूत से निकली
हूँ, बीज चाहे किसका हो"
अब लैला नीचे थी, फरीद उसके ऊपर छरहा और सहला ने अपनी चूत
फरीद के मुँह पर लगा दी. वो बहोत देर से अपने को रोके हुए थी.
थोरा और मज़ा आया और उसने फरीद के मुँह में अपनी धार छ्होर
दी. फरीद ने हटने की कोशिश की पर वो तय्यार थी. उसने कस कर
उसके
सिर को पीछे से अपनी चूत पर जमाए रक्खा.
"ले मेरी सुनहरी धार पी, अंदर तक धूल जाएगा".
जब लैला की समझ में आया कि क्या हुआ है, वो ज़ोर से चिल्लाई:
"मैं नीचे से माँ के खाविंद का लौरा अपनी सुनहरी धार से धो
देती हूँ, सहला. आज तेरे फरीद के दोनों औज़ार धूल गये"
और उसने भी अपनी धार छ्होर दी
Kahaani Rishton ki
Aaj ek arse ke baad Sohan ko ji bhar ke chodne kaa maukaa milaa thaa.
Waise to hum jab bhi milte the jahaan bhi milte the, choomaa chaati
to karte hi they, par aadhi adhoori chudai mein woh mazaa kahaan
Aaj jab main uske ghar pahonchi thee to ghar mein Sohan aur uski
aapaa hi they. Lagtaa thaa ke donon aapas mein shuru huye hi they ki main
jaa tapki.
"Aaj to mazaa aa gayaa, arse ke baad hun teenon akele mile hain"
Richa aapaa ne kahaa.
Doomsday robots, Rejoice - It's your haven.
"Sach bataao, Richa, kyaa waaqai khush ho yaa mun mein gaaliyaan de
rahi ho ki daal bhaat mein Moosar Chand kahaan se aa gayee?" main
boli.
"Laila, Moosar Chand nahin, tu to gahri kashti hai Sohan ke patwaar
ke liye" Richa ne tahedil se kahaa.
Aur uske baad Sohan ke patwaar kabhi meri naao mein aur kabhi Richa
ki naao mein chappoo chalaayaa. Hum log ruke tab jab teenon thak kar
choor ho gaye aur main waapas ghar aane ke liye nikal aayee.
Main raaste mein sochti aa rahi thi Sohan ke mazaak ke baare mein.
Who kartaa rahtaa thaa ki main apne Abbu ki tanhaaee door karne ki
koshish kyon nahin karti. Pahle to mujhe bahot atpataa lagtaa thaa par dhire,
dhire main bhi kabhi, kabhi masturbate karte waqt yeh tasweer
aankhon ke saamne rakhti thi.
Jaise hi mainein apni chaabi se side kaa darwaazaa kholaa mujhe lagaa
ghar mein koi hai, kuchh aawaazein si aa rahi theen oopar ki manzil
se. Oopar ki manzil mein to abbaa rahte they aur aaj subah jab main
ghar se gayee thi to programme yeh thaa ki dopahar ki flight se woh
aur unki dost Sehla Dilli chale jaayeinge.
Abbu ne Ammi ki faut ke baad doosri shaadi nahin ki thi. Chaalees
saal ke Abbu abhi tak meray saath hi rahte. Abbu ki Company ki kayee
larkiyaan ghar aayaa kartee theen. Abbu meray saath bhi kaafi khule
the - baaton mein bhi aur rahan mein bhi. Aksar binaa kapron ke so
jaate they. Bilkul bhi embarassed mahsoos nahin karte they. Is baat
ko
bhi chhipaate nahin the ki unko milne larkiyaan aati hain aur raat ko
ruk bhi jaati hain. Sab kuchh bilkul normal saa lagtaa thaa.
Main bhi sochti thee ke Abbu ki bhi aisey hi jismaani zarooratein hai
jaisi main mahsoos karti thi. Baat hi baat mein ek do baar unhon ne
mujhe samjhaa diyaa thaa ki aazaadi kaa istemaal karte huye apni
hifaazat kaa dhyaan rakhnaa larki kaa hi kaam hai, apne partner par
munahssar nahin karnaa chaahiye. Main samajh gayee ki kah rahe the ki
I have to take care of myself.
Issi beech meri jaan pehchaan Sohan aur Richa se hui. Pahle to main
samajh nahin saki ke donon aapas mein kaisi faush baatein karte hain
par dhire, dhire Richa ne mujhe apne khelon mein shaamil kar liyaa.
Shuruaat Richa ne hi ki. Tabhi mujhe yeh bhi samajh aayaa ki choot ke
khel mein koi rishtaa nahin hotaa aur koi gender nahin hotaa.
Pleasure
is a matter of feeling, emotion, satisfaction. Agar tumhaari clitty
ko
sahlaanaa hai to jeebh yaa ungli male hai yaa female, does not
matter.
Bhai ki hai yaa kisi aur ki, choot yaa clitty ismein interested nahin
hoti.
Ab aaj jab mujhe ghar mein aawaazein aayin to mujhe lagaa ke dekhnaa
chaahiye kahin koi garbar to nahin hai. Par seedhe oopar jaane ke
badle mainen kuchh aawaazein ki jis se jo bhi ho woh sun le.
Oopar ke kamre kaa darwaazaa khulne ki aawaaz aayi aur Sehla baahir
aa
kar seerhiyon par aa kar boli, "Laila, hamaari flight cancel ho gayee
thi, ab raat ko ek baje jaayegi."
Mainein dekhaa ki Sehla kariban nangi thi. Aise woh pahli baar meray
saamne aayi thi. Uske haath mein ek tauliyaa thaa jo usnein kuchh
aise
pakraa huaa thaa ki uski chhaatiyaan aur jaanghein to nangi theen,
par
kamar dhaki hui thi. Yeh kahti, kahti Sehla seerhiyaan utaarne lagi.
Meraa dhyaan ekdam Richa ki taraf gayaa. Kahnaa mushkil thaa kaun
zyaadaa khoobsoorat hai, Richa ke mumme zyaadaa bhare huye hain bas.
Sehla kaa saaraa badan zyaadaa khoobsoorat thaa. Uski chhaatiyaan
thori si apne hi wazan se dhalki dikh rahi theen. Chalte waqt thirkan
kaa aihsaas bhar thaa. Taangon ke beech mein baal nahin thay, so jab
uskaa pair neeche ki sirhi par partaa thaa to choot kaa ek honth
kuchh
khinch jaataa thaa. Is tarah jaise Sehla seerhi utar rahi thi waise
uski choot halke se khul bund ho rahi thee. Ek boond si bun kar
neeche
latak rahi thi. Taangein chhote keley ke payr ke chhile tanney ki
tarah gori aur chikni dikhaaee de rahi theen.
Dhire, dhire meri aankhon mein aankhaine daale ye khoobsoorat jism
neeche utar aayaa. Main patthar ki moorat bane uski chaal, uski
thirkan dekh rahi thee. Mujhe hosh tab aayaa jab usne meray saamne
aakar bedharak apnaa punjaa phailaa kar meri jaanghon ke beech is
tarah rakh diyaa ki meri saalim phuddi uske haath mein thee. Meri
@jeans aur panty ko cheer kar uske haath kaa current meri choot par
zulm dhaa gayaa. Mujhe hosh tab aayaa jab woh boli.
"Laila, lagtaa hai tu to pahle hi geelee hai, hai naa? Dekh meri
ungli
kaise phisal rahi hai"
Aur yeh kahte, kahte usne meri @jeans kaa zipper khol kar @jeans ko
neeche kheench diyaa.
Yeh kyaa ho rahaa thaa? Yeh meray Abbu ki dost, kahne ki zaroorat
nahin, meray Abbu ki choot mujh se ye sab kuchh kar rahi thee! Usne
meri panty bhi kheench kar utaar di aur meray saamne ghutnon par
baith
kar meri phuddi par apnaa munh chipkaa diyaa, saath hi uski jeebh ki
suee jaisi nok andar ghus kar ghazab dhaane lagi. Meri taangon mein
jaise jaan nahin rahee. Sahaaraa lenay kay liye mainein taangein
kuchh
kholeen aur uske sir par haath rakkhaa. Wazan uski jeebh par paraa
aur
jeebh aur andar ghus hayee.
"Munh . . . munh . . . " karte huye who boli:
"Ah . . . ah . . . ch . . . o . . . o . . . o . . . ot choo . . .
s
. . . n . . . e . . . kaa mazaa hi kuchh aut hai"
Apnaa munh hataate hue usne clitty par kuchh aise jeebh lagaaee ki
main ek dum choot gayee.
Seedhee khari ho kar boli, "Laila, tu bachchi nahin hai. Tu jaanti
hai
ke main aur teray Abbu chudai karte hain. Toonein yeh bhi dekh liyaa
ki main to AC/DC both hun. Donon lines par chalti hun. Meray mun mein
aaj ye aayaa ki aaj, Farid ke birthday par use ek present dee jaaye".
Oh, shit, mujhe yaad hi nahin thaa. Meraa maathaa bhi thankaa. Iskaa
matlab kyaa hai? Theek hai Sohan aur Richa ne mazaak mein kai baar
ishaaraa kiyaa thaa, par mazaak to mazaak hi hotaa hai. Lekin peshtar
iske ki main kuchh kah sakti Sehla mujhe kheenchti hui oopar le gayee.
Main samajh gayi ke mushkil waqt aane waalaa hai. Udhar Sohan ki
baatein bhi dimaagh mein theen. Sehla ne gilee choot ko phir se
bhookhaa kar diyaa thaa. Ek thrill si mun mein hui. Laahaul billa
kuwwat, dimaagh to mun kaa ghulaam ho gayaa. Aaj Abbu ko present de
hi
doon!
Jab Sehla neeche gayee thi to Farid nahaane ke liye bathroom mein
gayaa hi thaa. Jab Ye donon oopar pahonche to Sehla ne Laila ko
baahir
hi kharaa kiyaa aur andar gayee. Farid abhi baahar nahin aayaa thaa.
Woh Bathroom mein chali gayee.
"Farid, aaj main tumhein birthday kaa tohfaa doongi, par tumhein
aankhaine band rakhni pareingi," Farid ko Sehla ki aadaton kaa pataa
thaa. Chupchaap uski baat maan li. Sehla nain uski aankhon par patti
baandhi, uskaa haath pakar kar use bed par laaeeye aur litaa diyaa.
Phir uskaa lauraa munh mein lekar tannaa diyaa. Peshtar iske ki uskaa
paani nikaltaa, "Chupchaap parey raho" kah kar baahar gayee aur Laila
ko le aaee. Ab talc Laila ne mun pakkaa kar liyaa thaa aur excited
thi. Andar aa kar jab usne dekhaa ke Abbu ki aankhon par patti hai,
tab to rahi sahi reservation bhi khatam ho gayee.
Hothon par ungli rakhe Sehla ne ishaaraa kiyaa ki Farid ke lund par
baith jaao. Laila ne dekhaa Farid kaa lund tannaayaa huwaa, aasmaan
ki
taraf sir uthaaye, khoon se bharaa, laal, laal supaaraa nabz ki
tarah
tarap rahaa thaa.
Aaw dekhaa naa taaw aur woh charh kar jam gayee. Peshtar iske ki
Farid
poochhe yaa kuchh kahe, Sehla ne kahaa, "Farru jaan, yeh to tohfaa
hai, aur cake par icing ki tarah main tumhaare munh par apni choot
fit
kar rahi hun".
Sehla Laila ki taraf munh kar ke Farid ke munh par aise jam gayee ki
barbas uski jeebh Sehla ki choot mein ghus gayee. Sehla ne aage jhuk
kar Laila kaa ek mumma apne munh mein liyaa aur jeebh ki nok se uski
choochi ko chherne lagi.
"Uh, . . . h . . . h" Laila ke munh se niklaa. Sehla ki nigaah ne
kahaa "chup raho".
Arif kaa lund chus rahaa thaa. Laila ne maze mein apnaa sir peechhe
kiyaa, uski chhaatiyaan Sehla ki taraf aur aage ho gayeen. Laila ki
phuddi mein aise jaan aa gayee thi jaise haath laure se kheltaa hai,
use sahlaataa hai. Farid bolne ki koshish kar rahaa thaa par Sehla ki
choot us par jami hui thi.
"Lo Farid main uth jaati hun". Sehla uske munh se uth kar bagal mein
bath gayee.
"Sehla jaan kyaa tohfaa diyaa ha . . . i . . t . . . m . . .
n. . .e,
iski c . . . h . . . o . . . o . . . o . . . t . . . to h . . . a . .
. a . . . a . . . a th ki tarah meray laure ko n . . . i . . .
c . . .
h . . . r rahi hai. U . . . f . . . f . . . f . . . f . . . a . . .
ise to Laila ki maan meraa lund nichor . . . a . . . a . . .a ka. . .
r . . . r . . . r . . . r . . . ti thi."
"Yeh lo, Farid, dekho, tumhein maan ki beti hi chod rahi hai".
Yeh kahte huye Sehla ne uski aankhon ki patti utaar di. Usi waqt,
Sehla ki baat sunane ke baad Farid ne ek taaqatwar dhakka apne oopar
jami choot mein dekar andar tak apnaa lund ghusaa diyaa. Saath hi
uski
aankh ki patti khuli aur usne dekhaa ek jawaan, kasaa huwaa dhar uske
lund par hai, sir peechhe, chhaatiyaan aage, nukilee choochiyaan,
bhari hui, donon doodh thore baahar ki taraf dekhte huye jaise do
sentry ek doosre se rooth kar tane hon. Patli kamar, kabhi oopar
neeche aur kabhi gol ghoomti hui jaise makkhan nikaalne ke liye
haandi
gol ghoom rahi ho!
Palak jhapakte baap beti ko pehchaan bhi gayaa!
"Teri maan ki choot phaaroon, Sehla, . . . "
"Pahle apni beti ki choot kaa mazaa to le, le. Meri maan ke liye to
kuchh chhoregi hi nahin . . . "
Par jhatak kar beti ko apne lund par se uthaa dene ke badle usne
donon
haathon se uski kamar pakri aur use aur zor, zor se ghumaane aur
oopar
neeche karne lagaa.
"Sehla, dekh main achchhaa chodti hun yaa tu, yeh koi competition
nahin hai, par meraa khayaal hai beti aur saheli mil kar biwi ki kami
poori karte rahenge"
"Abe, beti chod baap, le ab Sehla ke neeche lait."
Laila uthi aur itni jaldi Sehla ne uski jagah le li ki shaayad kuchh
lamhon ke liye hi lund ne khuli hawaa li ho.
Laila apne baap ke munh par baithne ke badle uski body ke donon taraf
taange kar ke Sehla ke saamne khari ho gayee.
"Le meray baap ki choot, neeche kamre mein tu achchhi tarah choos
nahin saki thi meri phuddi, ab pooraa mazaa le." Aur usne apni khuli,
geeli, pharakti huee choot Sehla ke munh par fit kar di.
"Tum donon mujhe chodogi yaa mujhe bhi maukaa dogi ki main chodoon?"
"Kyon, aurat ke neeche letney main sharm aati hai kyaa, yaa kamar
mein
itnaa dum nahin hai ki ek aurat kaa bojhaa uthaa sake?", Laila ne
kahaa.
Sehla ko mazaa aa rahaa thaa baap beti ki chudai mein aur unki baaton
mein.
Maukaa dekh kar boli, "Farid, beti chod, Teraa lund beti ki choot
mein
hai yaa kisi aur ki choot mein, kyaa yeh pataa chaltaa hai?"
"Laila ki maan bhi ek baar boli thi ke use pataa nahin chal saktaa ki
uski choot mein jo lund hai woh uske Khaawind kaa hai yaa kisi aur
kaa"
"To kyaa Ammi ne doosre laure bhi chode the? Kis ka, yaa kin ke?"
Meri laure ki yaar, Laila mainen khud apne dost aur bhai ko bulaa kar
aise hi tikri-chudai
Ki thi jaise aaj kar rahe hain"
Laila itni pharak gayee apni maan ki baat ke ki Sehla ko dhakka de
kar
phir se baap ko lalkaaraa:
"Main ab neeche letati hun meri maan ke Khaawind aur tu oopar charh
jaa, dekhnaa chodoongi main hi. Main bhi apni maan ki choot se nikli
hun, beej chaahe kiskaa ho"
Ab Laila neeche thi, Farid uske oopar charhaa aur Sehla ne apni choot
Farid ke munh par lagaa di. Wo bahot der se apne ko roke huye thi.
Thoraa aur mazaa aayaa aur usne Farid ke munh mein apni dhaar chhor
di. Farid ne hatne ki koshish ki par wo tayyaar thi. Usne kas kar
uske
sir ko peechhe se apni choot par jamaaye rakkhaa.
"Le meri sunahri dhaar pi, andar tak dhul jaayegaa".
Jab Laila ki samajh mein aayaa ki kyaa huaa hai, wo zor se chillaayi:
"Main neeche se maan ke Khaawind kaa lauraa apni sunahri dhaar se dho
deti hun, Sehla. Aaj tere Farid ke donon auzaar dhul gaye"
Aur usne bhi apni dhaar chhor di
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