Friday, February 4, 2011

कोका - पंडित

हिंदी सेक्सी कहानियाँ
कोका - पंडित

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एक बार ब्रज भूमि मैं एसी एक चुड़ैल ओरात पैदा हुई जिस'की चूत मैं हमैशा
आग लगी रहती थी. उस'की सदैव एक ही इच्च्छा रहती थी कि उस'की चूत मैं दिन
रात मोटा और तगरा लंड रहे. वह हमैशा मर्दों की सोहबत मैं रहती. उस'ने
अप'ने कई प्रेमी बनाए लेकिन कोई भी उस'की चूत की ज्वाला को शांत नहीं कर
पाया. जब उस'की कामाग्नि और बढ़ गई तो उस'ने अप'ने सारे वस्त्र उतार दिए
और रास्तों पर नंगी ही फिर'ने लगी. लोग उस'से तरह तरह के सवाल पूच्छ'ने
लगे, जिस'के जबाब मैं वह कहती,
"मैं'ने अप'ने सारे कप'रे उतार दिए हैं और जो चाहे मुझे ले सक'ता है और
अप'नी मर्दान'जी साबित करे. मैं कसम खाती हूँ मैं जब तक नंगी घूम'ती
रहूंगी तब तक की मुझे एसा मर्द न मिल जाए जो मेरी काम की ज्वाला को पूर्ण
रूप से शांत कर सके."
एसा कह कर वह ब्रज भूमि के समस्त शहरों मैं घूम'ने लगी. कई लोगों ने
उस'की प्यास बुझाने की चेस्टा भी की पर कोई भी सफल न हुआ. इस'से उस'की
हिम्मत और बढ़ गई और वह ब्रज की राज'धानी मथुरा के दर'बार मैं नंगी ही
पहून्च गई. यह देख'कर पूरी राज सभा अचम्भित हो गई और एक दर'बारी ने
पूचछा,
"अरे हराम'जादी कुतिया तुम कौन हो और कहाँ से आई हो? इस तरह से राज
दर'बार में आने में तुम्हें ज़रा भी लज्जा नहीं आई."
तब वह पूरी सभा की और बिल्कुल निडर'ता से मूडी और बोली,

"अरे हराम'जादे मुझे तुम क्या कुत्ती बोल रहे हो. तुम तो साले सब के सब
हिंज'रे हो. क्या यहाँ एक भी एसा मर्द मौजूद है जो मेरी वास'ना शांत कर
सके. अरे तुम लोगों ने तो अप'ने रनिवास और हारमों मैं रंडिया पाल रखी है
जिन'की आग तुम आप'ने लौरों से नहीं बल्कि उन्हें धन दौलत और जेवर देकर
बूझाते हो." वह अप'ने चुत्तऱ पर हाथ रखे हुए और अप'नी मस्त चूचियों को
आगे उभार'ती हुई पूरी सभा को लल'कारे जा रही थी. फिर उस'ने अप'नी टाँगें
फैलाई और इस प्रकार पूरी सभा को अप'नी भोस'री ठीक से दिखाई और कहा,
"अरे मथुरा के दर'बार के हिंज'रों देखो, तुम सारे के सारे चूतिए हो, अगर
किसी मैं दम है तो मेरे पास आ जाए."
सारे के सारे दर'बारी आपस मैं चर्चा कर'ने लगे. "इस बेशर्म रन्डी का क्या
उपा'य किया जा'य जो सरे आम हमारी बेइजाती कर रही है."
तभी सभा मैं से एक रंजीत सिंग नाम के राजपूत ने दर'बारियों से कहा,
"मेरे दर'बारी दोस्तों! मैं अप'ने आप को इस दर'बार की इज़्ज़त बचाने के
लिए समर्पित कर'ता हूँ. मैं अलग अलग जाती की 10 ओरटों के साथ रहा हूँ और
मुझे काम का अच्च्छा ख़ासा अनुभव है. मुझे आगे बढ़'ने दीजिए मैं इस'की
चुनौती स्वीकार कर'ता हूँ."
यह सुन'कर दर'बारियों के चह'रे खिल गये और रंजीत सिंग ने राजा से आग्या
माँगी की उसे इस ओरात के साथ एक रात बिताने दी जा'य. उसे आग्या मिल गई और
वह उसे अप'ने महल मैं ले गया. रात मैं उस'ने हर तरह से कोशीस की पर वह उस
ओरात की काम अग्नि शांत न कर सका. उस ओरात ने उसे बूरी तरह से निचौऱ
लिया. दूसरे दिन वह बहुत ही थका हुआ राज'दरबार मैं पाहूंचा और अप'नी हार
स्वीकार कर ली.
"महाराज! मुझे क्षमा करें. मैं अप'नी हार स्वीकार कर'ता हूँ. यह ओरात
मेरे बस की नहीं." वह ओरात भी वहाँ मौजूद थी और दुगुने जोश से कहे जा रही
थी,
"अरे राजपूतों तुम पर शर्म है. तुम केवल बऱी बऱी बातें कर'ना जान'ते हो.
इस सभा मैं एक भी मर्द का बच्चा नहीं है. अरे तुम से तो हिंज'रे ही भले.
यह सिद्ध हो गया कि राजपूत लंड एक कम'ज़ोर लंड है."
राज'दरबार मैं सन्नट छा गया और दर'बारियों ने अप'ने सर झुका लिए. किसी के
मूँ'ह से बोल नहीं फूट रहा था. तभी राजा ने सभा का सनाट भंग कर'ते हुए
कहा,
"हे रंजीत सिंग तुम'ने पूरी राजपूत जाती की नाक कटा दी. अब हम क्या कर
सक'ते हैं? अब यह ओरात और शोर मचाएगी और पूरी राजपूत जाती की बाद'नामी
करेगी. इस'की तुम्हें सज़ा मिलेगी."
"महाराज! क्षमा करें, क्षमा करें. यह ओरात एक नंबर की रन्डी और कुत्ती
है. मैने अप'ने जीवन मैं एसी कामिनी ओरात नहीं देखी. पता नहीं इस'की चूत
मैं क्या है, शायद कोई जादू टोना जान'ती हो."
यह सुन कर एक दूसरा राजपूत हीरो आगे आया, जिस'का नाम मान सिंग था. वह
आप'नी जवानमर्दी के लिए विख्यात था. उस'ने उस ओरात के साथ एक रात बिताने
की इच्च्छा जाहिर की. उस'ने दावा किया कि वह उस'की एसी चुदाई करेगा की
रन्डी आने वाले 10 दिनों तक चल भी नहीं पाएगी. सारे दर'बारी बहुत खुस हुए
और एक स्वर से महाराज से वीं'टी की कि मान सिंग को एक मौका दिया जा'य.
"ठीक है मान सिंग हम तुम्हें यह मौका देते हैं. पर ख़याल रहे यदि तुम
काम'याब नहीं हुए तो हम तुम्हें देश निकाला दे देंगे."
"महाराज यदि मैं अस'फल रहा तो राज'सभा को अप'ना मूँ'ह नहीं दिखऊन्ग." एसा
कह कर मान सिंग उस ओरात को आप'ने साथ ले गया.
उस रात मान सिंग ने उस'की कस के चुदाई क़ी. मान सिंग ने उस के अंदर 3 बार
अप'ना वीर्या झाड़ा पर वह ओरात फिर भी सन्तुश्ट नहीं हुई. वह चोथी बार
मान सिंग को चुदाई कर'ने के लिए उक्'साने लगी, पर उस'में और ताक़त नहीं
बची थी. वह सुबह उस ओरात को सोता छोड़ के ही न जाने कहाँ चला गया.
दूस'रे दिन वह ओरात अकेली और बिल'कुल नंगी फिर दर'बार मैं पाहूंची. उस
ओरात को दरबार मैं देख'ते ही राजा के साथ साथ सारे दर'बारी भी सक'ते मैं
आ गये. वह कह'ने लगी,
"महाराज! मैने आप राजपूतों की ताक़त देख ली. आप'का लौंडा तो न जाने कहाँ
चला गया. किसी राजपूत लंड मैं और ताक़त बची है तो ज़ोर आज'मा ले."
सारे दर'बारियों के सर शर्म से झुक गये. तभी एक दुबला पतला ब्राह्मण आगे
आया. उस ब्राह्मण का नाम कोका पंडित ( राज शर्मा )था और वह दर'बार का
ज्योत्शी था. उस'ने कहा,
"महाराज आप एक अव'सर मुझे दें. यदि मेरी हार हो जाती है तो सारे दर'बार
की हार मान ली जाएगी."
इस पर सारे राजपूत बहुत क्रोधित हुए. यह दुब'ला पात'ला ब्राह्मण अप'ने आप
को क्या समझ'ता है. इस उम्र में इस'की मति क्यों फिर गई है. एक दर'बारी
चिल्ला कर बोला,
"अरे जब बड़े बड़े राजपूत लंड इस ओरात की चूत की गर्मी ठन्डी नहीं कर सके
तो तेरा छोटा सा ब्राह्मण लंड क्या कर लेगा. यह तो सब जान'ते हैं कि
क्षत्रिया लंड के मुकाब'ले ब्राह्मण लंड छ्होटा और कम'ज़ोर होता है."
चारों तरफ से लोग उस'के सुर मैं सुर मिलाने लगे. और उस ब्राह्मण का हंस
हंस के उप'हास उड़ाने लगे. पर ब्राह्मण शांत था और राजा के बोल'ने का
इंत'ज़ार कर रहा था. जब दर'बारी शांत हो गये तो राजा ने कहा,
"राजपूत जाती के श्रेस्ठ व्यक्ति भी इस ओरात की प्यास बुझाने मैं असफल
रहे हैं. हम अब'तक असफल रहे हैं और यदि अब हम'ने इस ओरात को एसे ही जाने
दिया तो हम अप'ने सर कभी भी उँचे नहीं उठा सकेंगे. हम मैं से कोई भी ब्रज
की नारी को छ्छूने की कभी भी हिम्मत नहीं जुट पाएगा. अब यदि इस ब्राह्मण
के अलावा और कोई इस ओरात के साथ रात बिताना चाह'ता है तो वह आगे आए. नहीं
तो इस ब्राह्मण को मौका नहें देना अन्याय होगा."
राजा की यह बात सुन'कर सभा मैं एक बार फिर सन्नाटा छा गया. कोई भी आप'नी
बेइज़्ज़ती के डर से आगे नहीं आ रहा था. तब राजा ने कोका पंडित को आग्या
दे दी. कोका उस ओरात को अप'ने घर ले गया.

कोका पंडित ने सारी समस्या पर गंभीर'ता से विचार किया और उस'ने ठान लिया
कि वह जल्द बाजी से काम नहीं लेगा. रात मैं वे दोनों एकांत मैं अप'ने
कम'रे मैं आए और कोका ने अप'नी धोती उतारी. धोती के उतार'ते ही कोका के
लंड और उस'के शरीर की कम'ज़ोर बनावट को देख वह ओरात हंस पड़ी और कह'ने
लगी,
"पागल ब्राह्मण तुम्हारा लंड तो दूस'रे राजपूतों के लंड, जिन्हों ने मुझे
चोदा, उनसे आधा भी नहीं है. अरे तुम से तो सीधा खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा
है फिर भी तुम सोच रहे हो मेरी प्यास बुझा दोगे. तुम पागल ही नहीं पूरे
अक्खऱ और सन'की भी हो."
कोका ने कहा, "हराम'जादी कुतिया आज तुम्हे तुम्हारे लायक कोई आद'मी मिला
है. अरे ओरात को शांत कर'ने के लिए लंड का आकार और शरीर का तगड़ा होना ही
केवल ज़रूरी नहीं है. मर्द को काम कला आनी चाहिए. मेरा लंड छोटा है तो यह
कोई भी योनि मैं आराम से समा जाता है. अब तुम'ने बहुत बातें कर ली. चलो
अब अप'नी टाँगें फैलाओ, वैश्या कहीं की."
तब वह बिस्तर पर चित होके लेट गई और अप'नी टाँगें फैला दी. कोका काम कला
का जान'कार था जो राजपूत नहीं जान'ते थे. सब'से पह'ले उस'ने चुंबन लेने
प्रारंभ किए. वह उस'की जीभ और उपर नीचे के होठों को चूस'ने लगा. वह उस'के
होठों को पूरी तरह से जाकड़ उस'का पूरा साँस अप'ने फेफ'रों में ले लेता
जिस'से वह बिना साँस के व्याकुल हो छट'पटाने लग'ती और जब कोका उसे छोड़ता
तो ज़ोर ज़ोर से साँस भर'ने लग'ती. यह क्रिया काफ़ी देर तक चली, जिस'से
वह शिथिल पड़'ने लगी.
फिर वह उस'के स्तनों पर आ गया. पह'ले उस'ने धीरे धीरे स्तन मर'दन कर'ना
प्रारंभ किया. फिर चूचुक पर धीरे धीरे जीभ फेर'नी शुरू की. इस'से उस ओरात
की काम ज्वाला भड़क के सात'वें आस'मान पर जा पाहूंची. वह चूत मैं लंड
लेने के लिए व्याकुल हो उठी. पर इधर कोका को कोई जल्दी नहीं थी.
तब कोका उस'की नाभी के इर्द गिर्द जीभ फेर'ने लगा. कभी कभी बीच मैं उस'के
पेऱू (पेल्विस) पर झांतों मैं हल्के से अंगुली फिरा देता. साथ मैं वह
उस'के नितंबों के नीचे अप'नी हथैली ले जा उन्हे सहलाए भी जा रहा था और
उस'के भारी चुट्टरों पर कभी कभी हल'के से नाख़ून भी गाढ रहा था. इन
क्रियाओं के फल'स्वरूप वह चुड़ैल ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगी और कोका से
चोद'ने के लिए विनती कर'ने लगी.
तब कोका ने आख़िर में उस'की चूत मैं एक अंगुली डाली. कोका धीरे धीरे
उस'के चूत के दाने पर अंगुली की टिप का प्रहार कर रहा था. फिर उस'ने दो
अंगुल डाली और अंत मैं तीन अंगुल उस'की चूत मैं डाल दी. वह काफ़ी देर तक
उस'की अंगुल से चुदाई कर'ता रहा. वह ओरात भी गान्ड उपर उठा उठा के झट'के
देने लगी मानो उस'का पूरा हाथ ही अप'नी चूत मैं समा लेना चाह'ती हो.
आधी से अधिक रात्री बीत चुकी थी. ओरात की साँसे उखाड़'ने लगी थी. तब कोका
ने बहुत ही शान्ती के साथ उस'की योनि मैं अप'ना लिंग प्रवेश किया. वह
ताबाद तोड़ चुदाई के मूड मैं कतई न था. वह लंड को घूमा फिराकार उस'की चूत
के अंदर की हर जगह को छ्छू रहा था, उस'की चूत की हर दीवार का घर्सन कर
रहा था. जब भी ओरात अप'नी चूत से लंड को कस के निचोड़ना चाह'ती. कोका लंड
बाहर निकाल लेता और आसान बदल लेता. उस रात कोका ने 64 बार आसान बद'ले जो
काम सुत्र मैं वर्णित हैं. उस'ने हर आसान से उस'की शान्ती पूर्वक चुदाई
की. जेसे ही भोर होने को हुआ वह ओरात पूरी तरह से पस्त हो चुकी थी. अब उस
मैं हिल'ने डुल'ने की भी ताक़त नहीं बची थी. बहुत ही धीमी आवाज़ मैं वह
कह रही थी,
"हे पंडित मेरी जिंद'गी मैं तुम पह'ले आद'मी हो जिस'ने मुझे पूर्ण रूप से
तृप्त किया है. किसी ने भी मेरे साथ इस तरह नहीं किया जेसा तुम'ने किया.
और तुम्हारी चुदाई हा'य क्या कह'ना. इत'ने तरीकों से भी किसी ओरात को
चोदा जा सक'ता है मैं अभी तक आश्चयचकित हूँ. तुम'ने सच कहा था ओरात को
सन्तुश्ट कर'ने के लिए बड़े लंड की दर'कार नहीं बल्कि तरीका आना चाहिए.
पंडित मैं तुम'से हार गई हूँ और आज से मैं तुम्हारी दासी हूँ. तुम मेरे
मालिक हो और इस दासी पर तुम्हारा पूर्ण अधिकार है."
यह सुन'कर कोका ने उसे नित्य कर्म से निवृत हो स्नान कर आने को कहा.
कुच्छ सम'य बाद कोका और वह कम'रे मैं फिर आम'ने साम'ने थे. कोका ने उसे
आप'ने पास बैठाया. उसके पाओं मैं पाजेब पहनाई, हाथों मैं चूरियाँ पहनाई
फिर सुंदर सी सारी और अंगिया दी. जब वह अच्छी तरह से वस्त्र पहन आई तब
कोका ने अप'ने हाथों से उस'का शृंगार कर'ना प्रारंभ किया. हाथों मैं
मेहंदी रचाई, पाँव मैं आल'ता, आँखों मैं काजल और फिर हर अंग के आभुश्ण.
फिर कोका ने कहा,
"जो ओरात नंगी रहती है वह एक नंगे छोटे बच्चे के समान है, काम के सुख से
सर्वथा अन्भिग्य. तुम नंगी होके सारी दुनिया मैं फिर'ती रही, और तुम्हारे
अंदर की नारी समाप्त हो गई. तुम्हारे काम अंगों की सर'सराहट ख़त्म हो गई.
अब जो भी तुम्हारी चुदाई कर'ता तुम सन्तुश्ट नहीं होती थी. ओरात वस्त्रा
केवल अप'ने अंगों को ढक'ने के लिए नहीं पहन'ती बल्कि अच्छे वस्त्र पहन के
बनाव शृंगार कर'के वह अप'नी काम क्षम'ता को बढाती है. इस'से पुरुश उस'की
ओर आकर्शित होते हैं. यह बात नारी बहुत अच्छी तरह से समझ'ती है कि वह
आकर्शण दे रही है. और इसी मनोस्थिति मैं नारी जब स्वयं आकर्शित होके किसी
पुरुश को अप'ना देह सौंप'ती है तभी उसे सच्ची संतुष्टि मिल'ती है."
"आप'ने आज मेरी आँखें खोल दी. पह'ले तो लोग मुझे खिलौना समझ'ते थे. मेरी
जेसी अकेली नारी को जिस'ने चाहा जेसे चाहा आप'ने नीचे सुलाया. बात यहाँ
तक पाहूंछ गई क़ी मैं स्वयं अप'नी चूत मैं हरदम लंड चाह'ने लगी. जब मैं
इस'के लिए आगे बढ़ी तो जो पह'ले जिस काम के लिए मुझे बहलाते फूस'लाते थे
वही मुझे देख कर दूर भाग'ने लगे. इस'से मैं विद्रोह'नी हो गई और उस'का
चर्म राज'सभा तक पहून्च कर हुआ."
फिर वे दोनों राजसभा मैं पहून्चे. राजा और दर'बारी उसे सजी धजी और लज्जा
की प्रतिमूरती बनी देख द्न्ग रह गये. कल की नंगी घूम'ने वाली बेशर्म
रन्डी आज एक सभ्रान्त महिला नज़र आ रही थी. तब कोका ने उसे बोल'ने के लिए
इशारा किया,
"महाराज मैं अप'नी हार स्वीकार कर'ती हूँ. जिस ब्राह्मण का सब उप'हास
उड़ा रहे थे उसी ने मुझे जीवन का सब'से आद'भूत काम सुख दिया है." उस'ने
सर पर पल्लू ठीक कर'ते हुए कहा. इस पर राजा ने कोका पंडित को आदर मान
देते हुए कहा,
"इस दर'बार की मान मर्यादा बचाने के लिए आप'का बहुत बहुत धन्यवाद. फिर भी
मेरी उत्सुक'ता यह जान'ने के लिए बढ़ी जा रही है कि जिसे हट्टे कट्टे
राजपूत नहीं कर सके वो आप किस तरह कर पाए."
"राजन यह कार्य मैने अप'ने काम शास्त्रा के ग्यान के आधार पर पूरा किया.
पर राजन उन सब'का इस सभा मैं एसे वर्णन कर'ना शिश्टाचार के विरुद्ध
होगा."
तब राजा ने एकांत की व्यवस्था कर दी और कोका पंडित ने विस्तार से कई
दिनों मैं राजा के सम्मुख उस'का वर्णन किया. तब राजा ने आग्या दी की वह
इस'को एक ग्रंथ का रूप दे. तब कोका पंडित अप'ने कार्य मैं जुट गये और
परिणाम एक महान ग्रंथ "रतिरहस्य" या "कोक-शास्त्र" के रूप मैं दुनिया के
समक्ष आया.

एंड


KOKA - PANDIT

ek baar Braj bhoomi main Esee ek chudail Orat paida huee jis'kee choot
main hamaisha aag lagee rahatee thee. us'kee sadaiv ek hee ichchha
rahatee thee ki us'kee choot main din raat moTa aur tagaRa lunD rahe.
vah hamaisha mardon kee sohabat main rahatee. us'ne ap'ne kaee premee
banaaye lekin koee bhee us'kee choot kee jvaala ko shant naheen kar
paaya. jab us'kee kaamaagni aur baDh gaee to us'ne ap'ne saare vastra
utaar diye aur raaston par nangee hee phir'ne lagee. log us'se tarah
tarah ke savaal poochh'ne lage, jis'ke jabaab main vah kahatee,
"main'ne ap'ne saare kap'Re utaar diye hain aur jo chaahe mujhe le
sak'ta hai aur ap'nee mardaan'gee saabit kare. main kasam khaatee hoon
main jab tak nangee ghoom'tee rahoongee tab tak ki mujhe Esa mard n
mil jaaye jo meree kaam kee jvaala ko poorN roop se shaant kar sake."
Esa kah kar vah Braj bhoomi ke samast shaharon main ghoom'ne lagee.
kaee logon ne us'kee pyaas bujhaane kee cheSTa bhee kee par koee bhee
saphal n huA. is'se us'kee himmat aur baDh gaee aur vah Braj kee
raaj'dhaanee Mathura ke dar'baar main nangee hee pahoonch gaee. yah
dekh'kar pooree raaj sabha achmbhit ho gaee aur ek dar'baaree ne
poochha,
"are haraam'jaadee kutia tum kaun ho aur kahan se aaee ho? is tarah se
raaj dar'baar men aane men tumhen jara bhee lajja naheen aaee."
tab vah pooree sabha kee aur bilkul niDar'ta se muRee aur bolee,

"are haraam'jaade mujhe tum kya kuttee bol rahe ho. tum to saale sab
ke sab hinj'Re ho. kya yahan ek bhee Esa mard maujood hai jo meree
vaas'na shaant kar sake. are tum logon ne to ap'ne ranivaas aur harmon
main rnDiyan paal rakhee hai jin'kee aag tum ap'ne lauRon se naheen
balki unhen dhan daulat aur jevar dekar boojhaate ho." vah ap'ne
chuttaR par haath rakhe hue aur ap'nee mast choochiyon ko aage
ubhaar'tee huee pooree sabha ko lal'kaare ja rahee thee. phir us'ne
ap'nee Taangen phailaee aur is prakaar pooree sabha ko ap'nee bhos'Ree
Theek se dikhaee aur kaha,
"are Mathura ke dar'baar ke hinj'Ron dekho, tum saare ke saare chutiye
ho, agar kisee main dam hai to mere paas aa jaaye."
saare ke saare dar'baaree aapas main charcha kar'ne lage. "is besharm
ranDee ka kya upaa'y kiya jaa'y jo sare aam hamaaree beijaatee kar
rahee hai."
tabhee sabha main se ek Ranjeet Singh naam ke Rajput ne dar'baariyon
se kaha,(posted for 'hindiromance')
"mere dar'baaree doston! main ap'ne aap ko is dar'baar kee ijjat
bachaane ke liye samarpit kar'ta hoon. main alag alag jaati kee 10
Oraton ke saath raha hoon aur mujhe kaam ka achchha khaasa anubhav
hai. mujhe aage baDh'ne deejiye main is'kee chunautee sweekaar kar'ta
hoon."
yah sun'kar dar'baariyon ke cheh're khil gaye aur Ranjit Singh ne raja
se aagya mangee ki use is Orat ke saath ek raat bitaane dee jaa'y. use
aagya mil gaee aur vah use ap'ne mahal main le gaya. raat main us'ne
har tarah se koshees kee par vah us Orat kee kaam agni shaant n kar
saka. us Orat ne use booree tarah se nichauR liya. doosre din vah
bahut hee thaka hua raaj'darbaar main pahooncha aur ap'nee haar
sweekaar kar lee.
"maharaj! mujhe xama karen. main ap'nee haar sweekaar kar'ta hoon. yah
Orat mere bas kee naheen." vah Orat bhee vahan maujood thee aur dugune
josh se kahe jaa rahee thee,
"are rajputon tum par sharm hai. tum keval baRee baRee baten kar'na
jaan'te ho. is sabha main ek bhee mard ka bachcha naheen hai. are tum
se to hinj'Re hee bhale. yah siddh ho gaya ki rajput lund ek kam'jor
lunD hai."
raj'darbaar main sannaTa chha gaya aur dar'baariyon ne ap'ne sar jhuka
liye. kisee ke mun'h se bol naheen phooT raha tha. tabhee raja ne
sabha ka sanaaTa bhang kar'te hue kaha,(posted for 'hindiromance')
"he Ranjit Singh tum'ne pooree Rajput jaati kee naak kaTa dee. ab ham
kya kar sak'te hain? ab yah Orat aur shor machaayegee aur pooree
Rajput jaati kee bad'naamee karegee. is'kee tumhen saja milegee."
"maharaj! xama karen, xama karen. yah Orat ek number kee ranDee aur
kuttee hai. maine ap'ne jeevan main Esee kaminee Orat naheen dekhee.
pata naheen is'kee choot main kya hai, shaayad koee jaadoo Tona
jaan'tee ho."
yah sun kar ek doosra Rajput hero aage aaya, jis'ka naam Man Singh
tha. vah ap'nee javanmardee ke liye vikhyaat tha. us'ne us Orat ke
saath ek raat bitaane kee ichchha jaahir kee. us'ne daava kiya ki vah
us'kee Esee chudaee karega ki ranDee aane vaale 10 dinon tak chal bhee
naheen paayegee. saare dar'baaree bahut khus hue aur ek swar se
maharaj se vin'tee kee ki Man Singh ko ek mauka diya jaa'y.
"Theek hai Man Singh ham tumhen yah mauka deten hain. par khayaal rahe
yadi tum kaam'yaab naheen hue to ham tumhen desh nikaala de denge."
"Maharaj yadi main as'phal raha to raj'sabha ko ap'na mun'h naheen
dikhaUnga." Esa kah kar Man Singh us Orat ko ap'ne saath le gaya.
us raat Man Singh ne us'kee kas ke chudaee kee. Man Singh ne us ke
andar 3 baar ap'na virya jhaaRa par vah Orat phir bhee santuST naheen
huee. vah chothee baar Man Singh ko chudaee kar'ne ke liye uk'saane
lagee, par us'men aur taakat naheen bachee thee. vah subah us Orat ko
sota chhoR ke hee n jaane kahan chala gaya.
doos're din vah Orat akelee aur bil'kul nangee phir dar'baar main
pahoonchee. us Orat ko darbaar main dekh'te hee raja ke saath saath
saare dar'baaree bhee sak'te main aa gaye. vah kah'ne lagee,
"maharaj! maine aap Rajputon kee taakat dekh lee. aap'ka launDa to n
jaane kahan chala gaya. kisee Rajput lunD main aur taakat bachee hai
to jor aj'ma le."
saare dar'baariyon ke sar sharm se jhuk gaye. tabhee ek dubla patla
Brahmin aage aaya. us Brahmin ka naam Koka Pandit tha aur vah dar'baar
ka jyotSee tha. us'ne kaha,
"maharaj aap ek av'sar mujhe den. yadi meree haar ho jaatee hai to
saare dar'baar kee haar maan lee jaayegee."
is par saare Rajput bahut krodhit hue. yah dub'la pat'la Brahmin ap'ne
aap ko kya samajh'ta hai. is umra men is'kee mati kyon phir gaee hai.
ek dar'baaree chilla kar bola,
"are jab baRe baRe rajput lunD is Orat kee choot kee garmee ThanDee
naheen kar sake to tera chhoTa sa brahmin lunD kya kar lega. yah to
sab jaan'te hain ki xatriya lunD ke mukaab'le brahmin lund chhoTa aur
kam'jor hota hai."
charon taraf se log us'ke sur main sur milaane lage. aur us brahmin ka
hans hans ke up'haas uRaane lage. par brahmin shaant tha aur raja ke
bol'ne ka int'zaar kar raha tha. jab dar'baaree shaant ho gaye to raja
ne kaha,
"rajput jaati ke shresTh vyakti bhee is Orat kee pyaas bujhaane main
asphal rahe hain. ham ab'tak asphal rahe hain aur yadi ab ham'ne is
Orat ko Ese hee jaane diya to ham ap'ne sar kabhee bhee Unche naheen
uTha sakenge. ham main se koee bhee Braj kee naaree ko chhoone kee
kabhee bhee himmat naheen juTa paayega. ab yadi is brahmin ke alaava
aur koee is Orat ke saath raat bitaana chaah'ta hai to vah aage aaye.
naheen to is brahmin ko mauka nahen dena anyaay hoga."
raja kee yah baat sun'kar sabha main ek baar phir sannaTa chha gaya.
koee bhee ap'nee beizzatee ke Dar se aage naheen aa raha tha. tb raja
ne Koka Pandit ko aagya de dee. Koka us Orat ko ap'ne ghar le gaya.

Koka Pandit ne saaree samasya par gambheer'ta se vichaar kiya aur
us'ne Thaan liya ki vah jald baajee se kaam naheen lega. raat main ve
donon ekaant main ap'ne kam're main aaye aur Koka ne ap'nee dhotee
utaaree. dhotee ke utar'te hee Koka ke lunD aur us'ke shareer kee
kam'jor banaavaT ko dekh vah Orat hans paRee aur kah'ne lagee,
"paagal brahmin tumhaara lunD to doos're rajputon ke lunD, jinhon ne
mujhe choda, unse aadha bhee naheen hai. are tum se to seedha khaRa
bhee naheen hua ja raha hai phir bhee tum soch rahe ho meree pyaas
bujha doge. tum paagal hee naheen poore akkhaR aur san'kee bhee ho."
Koka ne kaha, "haraam'jaadee kutia aaj tumhe tumhaare laayak koee
aad'mee mila hai. are Orat ko shaant kar'ne ke liye lunD ka aakaar aur
shareer ka tagaRa hona hee keval jarooree naheen hai. mard ko kaam
kala aanee chaahiye. mera lunD chhoTa hai to yah koee bhee yoni main
aaraam se sama jaata hai. ab tum'ne bahut baaten kar lee. chalo ab
ap'nee Tangen phailaao, vaishya kaheen kee."
tab vah bistar par chit hoke leT gaee aur ap'nee Tangen phaila dee.
Koka ua kala ka jaan'kaar tha jo Rajput naheen jaan'te the. sab'se
pah'le us'ne chumban lene praarambh kiye. vah us'kee jeebh aur Upar
neeche ke hoThon ko choos'ne laga. vah us'ke hoThon ko pooree tarah se
jakaR us'ka poora saans ap'ne pheph'Ron men le leta jis'se vah bina
saans ke vyaakul ho chhaT'paTaane lag'tee aur jab Koka use chhoRta to
jor jor se saans bhar'ne lag'tee. yah kriya kaee der tak chalee,
jis'se vah shithil paR'ne lagee.
phir vah us'ke stanon par aa gaya. pah'le us'ne dheere dheere stan
mar'dan kar'na praarambh kiya. phir chuchuk par dheere dheere jeebh
pher'nee shuru kee. is'se us Orat kee kaam jvaala bhaRak ke saat'ven
aash'maan par jaa pahoonchee. vah choot main lunD lene ke liye vyaakul
ho uThee. par idhar Koka ko koee jaldee naheen thee.
tab Koka us'kee naabhee ke ird gird jeebh pher'ne laga. kabhee kabhee
beech main us'ke peRoo (pelvis) par jhaanTon main halke se angulee
phira deta. saath main vah us'ke nitambon ke neeche ap'nee hathailee
le ja unhe sahalaaye bhee jaa raha tha aur us'ke bhaaree chuttaRon par
kabhee kabhee hal'ke se naakhoon bhee gaRa raha tha. in kriyaaon ke
phal'swaroop vah chudail jor jor se saans lene lagee aur Koka se
chod'ne ke liye vin'tee kar'ne lagee.
tab Koka ne aakhir men us'kee choot main ek angulee Daalee. Koka
dheere dheere us'ke choot ke daane par angulee kee tip ka prahaar kar
raha tha. phir us'ne do angul Daalee aur ant main teen angul us'kee
choot main Daal dee. vah kaee der tak us'kee angul se chudaee kar'ta
raha. vah Orat bhee gaanD Upar uTha uTha ke jhaT'ke dene lagee maano
us'ka poora haath hee ap'nee choot main sama lena chaah'tee ho.
aadhee se adhik raatree beet chukee thee. Orat kee saanse ukhaR'ne
lagee thee. tab Koka ne bahut hee shaantee ke saath us'kee yoni main
ap'na ling pravesh kiya. vah taabaR toR chudaee ke mood main kataee n
tha. vah lund ko ghooma phiraakar us'kee choot ke andar kee har jagah
ko chhoo raha tha, us'kee choot kee har diwaar ka gharSN kar raha tha.
jab bhee Orat ap'nee choot se lunD ko kas ke nichoRna chaah'tee. Koka
lunD baahar nikaal leta aur aasan badal leta. us raat Koka ne 64 baar
aasan bad'le jo kaam sutra main varNit hain. us'ne har aasan se us'kee
shaantee poorvak chudaee kee. jEse hee bhor hone ko hua vah Orat
pooree tarah se past ho chukee thee. ab us main hil'ne Dul'ne kee bhee
taakat naheen bachee thee. bahut hee dheemee aavaaj main vah kah rahee
thee,
"he pandit meree jind'gee main tum pah'le Ad'mee ho jis'ne mujhe purN
roop se tript kiya hai. kisee ne bhee mere saath is tarah naheen kiya
jEsa tum'ne kiya. aur tumhaaree chudaee haa'y kya kah'na. it'ne
tarikon se bhee kisee Orat ko choda jaa sak'ta hai main abhee tak
Ashchayachakit hoon. tum'ne sach kaha tha Orat ko santuST kar'ne ke
liye baRe lunD kee dar'kaar naheen balki tarika aana chaahiye. pandit
main tum'se haar gaee hoon aur aaj se main tumhaaree daasee hoon. tum
mere maalik ho aur is daasee par tumhaara poorN adhikaar hai."
yah sun'kar Koka ne use nitya karm se nivrit ho snaan kar aane ko kaha.
kuchh sama'Y baad Koka aur vah kam're main phir aam'ne saam'ne the.
Koka ne use ap'ne paas baiThaaya. use paavon main paajeb pahanaee,
haathon main chooRiyan pahanaee phir sundar see saaree aur angiya dee.
jab vah achchhee tarah se vastra pahan aaee tab Koka ne ap'ne haathon
se us'ka shringaar kar'na praarambh kiya. haathon main mehandee
rachaee, paanv main aal'ta, aankhon main kaajal aur phir har ang ke
aabhuSN. phir Koka ne kaha,
"jo Orat nangee rahatee hai vah ek nange chhoTe bachche ke samaan hai,
kaam ke sukh se sarvatha anbhigya. tum nangee hoke saaree duniya main
phir'tee rahee, aur tumhaare andar kee naaree samaapt ho gaee.
tumhaare kaam angon kee sar'saraahaT khatm ho gaee. ab jo bhee
tumhaaree chudaee kar'ta tum santuST naheen hotee thee. Orat vastra
keval ap'ne angon ko Dhak'ne ke liye naheen pahan'tee balki achchhe
vastra pahan ke banaav shringaar kar'ke vah ap'nee kaam xam'ta ko
baDhaatee hai. is'se puruS us'kee or AkarSit hote hain. yah baat
naaree bahut achchhee tarah se samajh'tee hai ko vah AkarSaN de rahee
hai. aur isee manosthiti main naaree jab swayn AkarSit hoke kisee
puruS ko ap'na deh saump'tee hai tabhee use sachchee tuSTee mil'tee
hai."
"aap'ne aaj meree aankhen khol dee. pah'le to log mujhe khilauna
samajh'te the. meree jEsee akelee naaree ko jis'ne chaaha jEse chaaha
ap'ne neeche sulaaya. baat yahan tak pahoonch gaee kee main swayn
ap'nee choot main hardam lunD chaah'ne lagee. jab main is'ke liye aage
baDhee to jo pah'le jis kaam ke liye mujhe bahalaate phus'laate the
vahee mujhe dekh kar door bhaag'ne lage. is'se main vidroh'Nee ho gaee
aur us'ka charm raj'sabha tak pahoonch kar huA."
phir ve donon Rajsabha main pahoonche. raja aur dar'baaree use sajee
dhajee aur lajja kee pratimurtee banee dekh dng rah gaye. kal kee
nangee ghoom'ne vaalee besharm ranDee aaj ek sabhraant mahila nazar aa
rahee thee. tab Koka ne use bol'ne ke liye ishaara kiya,
"maharaj main ap'nee haar sweekaar kar'tee hoon. jis brahmin ka sab
up'haas uRa rahe the usee ne mujhe jeevan ka sab'se ad'bhut kaam sukh
diya hai." us'ne sar par palloo Theek kar'te hue kaha. is par raja ne
Koka Pandit ko aadar maan dete hue kaha,
"is dar'baar kee maan maryaada bachaane ke liye aap'ka bahut bahut
dhanyavaad. phir bhee meree utsuk'ta yah jaan'ne ke liye baDhee ja
rahee hai ki jise haTTe kaTTe rajput naheen kar sake vo aap kis tarah
kar paaye."
"rajan yah kaarya maine ap'ne kaam shaastra ke gyaan ke aadhaar par
poora kiya. par rajan un sab'ka is sabha main Ese varNan kar'na
shiSTaachaar ke viruddh hoga."
tab raja ne ekaant kee vyavstha kar dee aur Koka Pandit ne vistaar se
kaee dinon main raja ke sammukh us'ka varNan kiya. tab raja ne aagya
dee ki vah is'ko ek granth ka roop de. tab Koka Pandit ap'ne kaarya
main juT gaye aur pariNaam ek mahaan granth "ratirahasya" ya
"Kok-Shastra" ke roop main duniya ke samax aaya.

End

आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj


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