राज अपने घर से कुछ दूरी पर बने तालाब के किनारे एक पेड़ की छाया
मे बैठा था. राज एक 21 वर्ष का गथीला नौजवान था. सिर पर
काले घूघराले बाल, चौड़ी बलिश्त छाती और मजबूत बाहें.
ये उसकी पसंदीदा जगह थी. उसे जब भी समय मिलता वो यहीं आकर
बैठता था. यहाँ का शांत वातावरण और एकांत उसे अछा लगता था.
राज ने आगे बढ़कर एक पत्थर को उठा लिया और हवा मे उछालने लगा
जैसे की उसका वजन नाप रहा हो. फिर उसकी निगाह आपने सामने रखे
कुछ पन्नो पर पड़ी, जिनपर सुंदर अक्षरों मे कुछ लिखा हुआ था.
काग़ज़ के पन्ने हवा मे फड़ फाडा रहे थे.
पत्थर के वजन से सन्तूस्त हो उसने वो पन्ने अपनी गोद मे रख लिए
और पत्थर को ठीक उनके बीचों बीच रख कर पन्नो को उस पत्थर से
लपेट दिया. फिर अपनी जेब से एक पतली सी रस्सी निकाल उसने उन पन्नो
को बाँध दिया.
वो अपनी जगह से उठा और तालाब के किनारे पर आकर उस पत्थर को
पानी के बीचों बीच फैंक दिया. पत्थर के फैंकते ही पानी जोरों से
चारों तरफ उछला और वो पत्थर तालाब की गहराइयों मे समाता चला
गया.
राज चुपचाप सोच रहा था कि ना जाने कितने ही ऐसे पन्ने इस तालाब
की गहराईओं मे दफ़न पड़े है. वैसे तो पानी का एक कतरा उन पर
लीखी लकीरो को मिटाने के लिए काफ़ी है पर अगर शब्द सिर्फ़
धुंधले पड़ गये तो वो पढ़ने के लिए काफ़ी होंगे. क्या उसे इन पन्नो
को जला देना चाहिए था जिसपर उसने अपनी कल्पना को एक कहानी की
शक्ल मे अंजाम दिया था.
तभी उसे तालाब के दूसरी तरफ़ से कुछ आवाज़ सुनाई दी. उसने अपनी
बेहन की आवाज़ को तुरंत पहचान लिया. वो तुरत उस पेड़ के पीछे
छिप गया जिससे आनेवाले की नज़र उस पर ना पड़ सके. जैसे ही उसने
अपनी बेहन को देखा जिसने एक सफेद रंग की शॉर्ट्स के उपर एक लाल
रंग का टॉप पहन रखा था उसकी आँखें बंद हो गयी. उसने पेड़ का
सहारा ले लिया और अपने ख़यालों मे खोया अपनी बेहन रोमा की प्यारी
हँसी सुनने लगा.
थोड़ी ही देर मे उसका लंड उसकी शॉर्ट मे तन कर खड़ा हो गया. दिल
मे ज़ज्बात का एक मीठा मीठा दर्द उमड़ने लगा. वो जानता था कि उसे
एक दिन अपनी बेहन को पाना है. रोमा रोज़ अपनी सहेलियों को घर लाकर
उसे चिढ़ाती थी. उसे उसकी इस हरकत पर प्यार आता था पर वो अपनी
बेहन से इससे कहीं ज़्यादा प्यार करता था. वो जानता था कि रोमा की
सब सहेलियाँ उसे लाइन मारती है पर उसकी सब सुंदर सहेलियाँ भी
उसे अपनी बेहन से अलग नही कर सकती थी.
राज का दायां हाथ उसके खड़े लंड पर आ गया. शॉर्ट्स के उपर से ही
वो अपने लंड के सूपदे को मसल्ने लगा. उसके मुँह से एक मादक कराह
निकली तो पेड़ पर बैठे कुछ पंछी उसकी बेहन की दिशा मे उड़ गये.
उसे तुरंत अपनी ग़लती का एहसास हुआ. उसने अपने आप को और पेड़ के
पीछे इस कदर छुपा लिया कि किसी की भी नज़र उस पर ना पड़ सके.
अपने एकांत से संतुष्ट हो उसने अपनी शॉर्ट्स की ज़िप खोली और अपने
खड़े लंड को खुली हवा मे आज़ाद कर दिया. अब वो अपनी आँखे बंद
अपने लंड को मसल्ने लगता है. खुली आँखों की जगह वो बंद
आखों से अपनी बेहन को और ज़्यादा अच्छे रूप मे देख रहा था.
उसने देखा कि उसकी बेहन नंगे पावं घास पर दौड़ रही है. राज अपनी
18 वर्षीया बेहन के पीछे दौड़ रहा है उसे पकड़ने के लिए और
आख़िर मे वो उसे पकड़ ही लेता है. दोनो घास पर गिर जाते है और
रोमा हंस पड़ती है.
थोड़ी देर बाद वो उसके मुलायम पंजो को मसल्ने लगता है. वो खुले
आसमान के नीचे घास पर लेटे उसकी उंगलियों को महसूस कर रही थी.
वो अपनी जादुई उंगलियों से उसकी पैरों की मालिश करने लगा तो वो
सिसक पड़ी और उसकी छोटे छोटे मम्मे टॉप के अंदर उछलने लगे.
उसने उसकी दाँयी टांग को उठा कर अपनी गोद मे रख लिया. इससे उसकी
जंघे थोड़ी फैल गयी और उसकी नज़र ठीक उसकी जांघों के बीच मे
पड़ी. पैर थोड़ा सा उठा हुआ होने की वजह से शॉर्ट्स के अंदर से सब
दीख रहा था. उसने देखा कि उसने काले रंग की पॅंटी पहन रखी
है और उसकी चूत की बारीक़ियाँ पॅंटी के बगल से दिख रही है.
राज अपनी कल्पना को किसी फिल्म की तरह अपने ख़यालों मे देख रहा
था, और उसका हाथ पूरी रफ़्तार से खुद के लंड पर चल रहा था.
अपनी कल्पना मे राज अपने हाथ उसके नाज़ुक पंजो को मसल्ते मसल्ते
उसके घूटनो तक ले आया और वहाँ की मालिश करने लगा. कितनी
सुंदर मुलायम त्वचा थी. घूटनो की मालिश करते करते भी उसकी
निगाह शॉर्ट्स मे दीखती काली पॅंटी पर टिकी हुई थी. घुटनो से आगे
बढ़ कर उसके हाथ अब जाँघो के अन्द्रुनि हिस्सों पर पहुँचे.
जैसे ही उसका हाथ जांघों से थोड़ा उपर पहुँचा उसका शरीर कांप
उठा. एक शांत रज़ामंदी पा उसके हाथ शॉर्ट्स के अंदर उसकी पॅंटी के
किनारे तक पहुँचे तो उसे लगा जैसे कि कोई गरम भाप पॅंटी के
अंदर से उठ रही है.
ये उसकी कल्पना थी. आखरी क्षण मे जब उसके लंड मे उबाल आने
लगा तो उसने यहाँ तक सोच डाला कि वो उसके पैरों के बीच बैठा
अपने लंड को उस छोटे से छेद मे घुसा रहा हो. उसका लंड उस छोटे
छेद की दीवारों को चीरता हुआ अंदर तक घुस रहा है.
तभी उसके लंड ने उबाल खाया और विर्य की एक लंबी पिचकारी सामने
के पत्रों पर गिरने लगी. वो जोरों से अपने लंड को मसल्ते हुए लंड
से आखरी बूँद तक पत्थरो पर फैंकने लगा. उसने अपनी आँखे
खोली और सामने गिरे वीर्य को देखने लगा.
************
"कहाँ है वो?" रोमा ने अपने आप से पूछा. वो और उसकी सहेली गीता
एक दूसरे का हाथ पकड़े तालाब के किनारे तक आ गये थे. उसने अभी
थोड़ी देर पहले उसे तालाब के किनारे बैठे एक पत्थर को तालाब मे
फैंकते देखा था, अब कहाँ चला गया.
"यार मे तो थक गयी हूँ" गीता ने शिकायत की. उसे पता था कि
उसकी कोई अदा कोई तरीका राज को अपनी तरफ आकर्षित करने मे कामयाब
नही हो पाएगी, "मेरी तो समझ मे नही आ रहा कि में क्या करूँ."
"आओ यहाँ तालाब के किनारे बैठते है." रोमा ने कहा.
तालाब के किनारे बैठते ही उसका ध्यान अपने 21 वर्षीया भाई राज पर
आ टिका. कितना अकेला अकेला रहता है वो. वो हमेशा अपनी सहेलियों
को घर लेकर आती जिससे उसका दिल बहल जाए. पर वो है कि अलग
अलग ही रहना पसंद करता है.
रोमा को पता था कि उसका भाई एक प्यारा और जज्बाती इंसान है. वो
अपने कॉलेज की आखरी साल मे थी और राज ग्रॅजुयेशन कर चुका था.
ग्रॅजुयेशन करने के बाद भी उसने अभी तक कोई गर्ल फ़्रेंड नही
बनाई थी. वो इसी उम्मीद से अपनी सहेलियों को घर लाती कि शायद
इनमे से कोई उसके भाई को भा जाए. पर ऐसा ना होने पर अब उसकी
सहेलियों ने भी आना छोड़ दिया था. गीता भी यही शिकायत कर
रही थी. रोमा को सब समझ मे आ रहा था और उसे अपने भाई पर
झुंझलाहट भी हो रही थी और उसकी इस अदा पर प्यार भी आता था.
"सिर्फ़ अपनी स्टुपिड किताब मे कुछ लिखता रहता है." रोमा ने शिकायत
करते हुए कहा.
"राज...और लिखता रहता है?" गीता ने आश्चर्या से पूछा.
"हाँ और क्या." रोमा ने कहा, "यही काम है जो वो दिन भर करता
रहता है. ग्रॅजुयेशन के बाद कितना बदल गया है वो. ऐसा लगता
है कि उसकी जिंदगी किसी जगह आकर ठहर गयी है. वो मुझे भी
हर समय नज़र अंदाज़ करता रहता है. समझ मे नही आता की उसे
परेशानी क्या है. "
"क्या लिखता रहता है वो अपनी किताब मे?" गीता ने पूछा.
रोमा ने अपने कंधे उचकते. हुए कहा, "मुझे पता नही. मेने कई
बार जानने की कोशिश कि लेकिन वो अपनी कीताब इस कदर छुपा कर
रखता है कि कुछ पता नही. जब वो लिखना ख़तम कर लेता है तो
उन पन्नो को किताब मे से फाड़ देता है. हज़ारों कहानियाँ लिखी होगी
उसने."
"हो सकता हो कि वो कहानियाँ ना हो, सिर्फ़ डायरी मेनटेन करता हो"
गीता ने कहा.
"हां हो सकता है," रोमा ने इतना कहा ही था कि उसने राज को पेड़ के
पीछे से बाहर आते देखा. पहली बार उसे एहसास हुआ कि वो पेड़ के
पीछे था, पर वो कर क्या रहा था? उसने सोचा.
"शैतान का नाम लो और शैतान हाज़िर है." गीता ने हंसते हुए
कहा, "तुम्हे पता है रोमा अगर ये तेरा भाई अगर मुझे रत्ती भर
भी लिफ्ट देता तो में पहले ही दिन उसे सेंचुरी बनाने का मौका दे
देती."
"चल छीनाल कहीं की." रोमा ने कहा, "अछा एक बात तो बता .
अब तक कितने बॅट्स्मन को बॅटिंग करने का मौका दिया है?"
"वैसे अभी तक तो छीनाल बनी नही हूँ." गीता ने कहा, "पर हां
तेरे भाई के लिए छीनाल बनने को भी तय्यार हूँ, मैं तो बस इतना
कहती हूँ कि मैं अपनी जान देती हूँ इसपर."
"हां ये तो है." रोमा ने अपने भाई की ओर देखते हुए कहा जो तालाब
के राउंड लगाते हुए उनकी तरफ ही आ रहा था.
क्रमशः.............
दो बदन एक जान paart--1
Raj apne ghar se kuch doori par bane talab ke kinare ek ped ki chaya
me baitha tha. Raj ek 21 varsh ka gatheela naujawan tha. Sir par
kaale ghooghralu baal, chaudi balisht chaati aur majboot bahen.
Ye uski pasindada jagah thi. Use jab bhi samay milta wo yahin aakar
baithta tha. Yahan ka shant vatavaran aur ekant use acha lagta tha.
Raj ne aage badhkar ek pathar ko utha liya aur hawa me uchalne laga
jaise ki uska wajan naap raha ho. Phir uski nigah aapne saamne rakhe
kuch panno par padi, jinpar sundar aksharon me kuch likha hua tha.
Kagaz ke panne hawa me phad phada rahe the.
Pathar ke wajan se santoosht ho usne wo panne apni god me rakh liye
aur pathar ko thik unke beechon beech rakh kar panno ko us pather se
lapet diya. Phir apni jeb se ek patli si rassi nikal usne un panno
ko bandh diya.
Wo apni jagah se utha aur talab ke kinare par aakar us pathar ko
pani ke beechon beech faink diya. Pathar ke fainkte hi pani joron se
charon taraf uchala aur wo pathar talab ki gehraiyon me samata chala
gaya.
Raj chupchap soch raha tha ki naa jane kitne hi aise panne is talab
ki gehraion me dafan pade hai. Waise to pani ka ek katra un par
leekhi lakeereon ko mitane ke liye kafi hai par agar shabd sirf
dhoondle pad gaye to wo padhne ke liye kafi honge. Kya use in panno
ko jala dena chahiye tha jispar usne apni kalpaana ko ek kahani ki
shakl me anjaam diya tha.
Tabhi use talab ke doosri tarf se kuch awaaz sunai dee. Usne apni
behan ki awaaz ko turant pehchan liya. Wo turat us ped ke peeche
chip gaya jisse aanewale ki nazar us par na pad sake. Jaise hi usne
apni behan ko dekha jisne ek safed rang ki shorts ke upar ek laal
rang ka top pehan rakha tha uski aankhen band ho gayi. Usne ped ka
sahara le liya aur apne khayalon me khoya apni behan Roma ki pyaari
hansi sunne laga.
Thodi he der me uska lund uski short me tan kar khada ho gaya. Dil
me jajbat ka ek meetha meetha dard umadne laga. Wo janta tha ki use
ek din apni behan ko pana hai. Roma roz apni saheliyon ko ghar lakar
use chidhati thi. Use uski is harkat par pyaar aata tha par wo apni
behan se isse kahin jyada pyaar karta tha. Wo janta tha ki Roma ki
sab saheliyan use line marti hai par uski sab sunder saheliyan bhi
use apni behan se alag nahi kar sakti thi.
Raj ka dayan hath uske khade lund par aa gaya. Shorts ke upar se hi
wo apne lund ke supade ko masalne laga. Uske munh se ek madak karah
nikali to ped par baithe kuch panchi uski behan ki disha me ud gaye.
Use turant apni galti ka ehsas hua. Usne apne aap ko aur ped ke
peeche is kadar chupa liya ki kisi ki bhi nazar us par na pad sake.
Apne ekant se santoosht ho usne apni shorts ki zip kholi aur apne
khade lund ko khuli hawa me azaad kar diya. Ab wo apni aankhe band
apne lund ko masalne lagta hai. Khuli aankhon ke jagah wo band
aakhon se apni behan ko aur jyada acche roop me dekh raha tha.
Usne dekha ki uski behan nange paon ghas par daud rahi hai. Raj apni
18 varshiya behan ke peeche daud raha hai use pakadne ke liye aur
aakhir me wo use pakad hi leta hai. Dono ghas par gir jaate hai aur
Roma hans padti hai.
Thodi der bad wo uske mulayam panjo ko masalne lagta hai. Wo khule
aasman ke neeche ghas par lete uski ungliyon ko mehsus kar rahi thi.
Wo apni jaadui ungliyon se uski pairon ki maalish karne laga to wo
sisak padi aur uski chote chote mame top ke andar uchalne lage.
Usne uski daanyi tang ko utha kar apni god me rakh liya. Isse uski
janghe thodi fail gayi aur uski nazar thik uski janghon ke beech me
padi. Pair thoda sa utha hua hone ki wajah se shorts ke andar se sab
deekh raha tha. Usne dekha ki usne kale rang ki panty pehan rakhi
hai aur uski choot ki baarikiyan panty ke bagal se dikh rahi hai.
Raj apni kalpana ko kisi film ki tarah apne khayalon me dekh raha
tha, aur uska hath puri raftar se khud ke lund par chal raha tha.
Apni kalpana me Raj apne hath uske naajuk panjo ko masalte masalte
uske ghootno tak le aya aur wahan ki maalish karne laga. Kitni
sunder mulayam twacha thi. Ghootno ki maalish karte karte bhi uski
nigah shorts me deekhti kali panty par tiki hui thi. Ghutno se aage
badh kar uske hath ab jangho ke andruni hisson par pahunche.
Jaise hi uska hath janghon se thoda upar pahuncha uska sharir kanp
utha. Ek shant razamandi paa uske hath shorts ke andar uski panty ke
kinare tak pahunche to use laga jaise ki koi garam bhap panty ke
andar se uth rahi hai.
Ye uski kalapana thi. Aakhri chano me jab uske lund me ubaal aane
laga to usne yaahn tak soch dala ki wo uske pairon ke beech baitha
apne lund ko us chote se ched me ghusa raha ho. Uska lund us chote
ched ki deewaron ko chirta hua andar tak ghus raha hai.
Tabhi uske lund ne ubal khaya aur virya ki ek lambi pichkari samne
ke pathron par girne lagi. Wo joron se apne lund ko masalte hue lund
se aakhri boond tak pathoron par fainkne laga. Usne apni aankhe
kholi aur samne gire virya ko dekhne laga.
************
"Kahan hai wo?" Roma ne apne aap se pucha. Wo aur suki saheli Geeta
ek doosre ka hath pakde talab ke kinare tak aa gaye the. Usne abhi
thodi der pehle use talab ke kinare baithe ek pathar ko talab me
fainkte dekha tha, ab kahan chala gaya.
"Yaar me to thak gayi hun" Geeta ne shikayat ki. Use pata tha ki
uski koi ada koi tareeka Raj ko apni taraf aakarshit karne me kamyab
nahi ho paigi, "Meri to samajh me nahi aa raha ki mein kya karun."
"Aao yahan talab ke kinare baithte hai." Roma ne kaha.
Talab ke kinare baithte hi uska dhyaan apne 21 varshiya bhai Raj par
aa tika. Kitna akela akela rehta hai wo. Wo hamesha apni saheliyon
ko ghar lekar aati jisse uska dil behal jaye. Par wo hai ki alag
alag hi rehna pasand karta hai.
Roma ko pata tha ki uska bhai ek pyaara aur jajbati insaan hai. Wo
apne college ki aakhri saal me thi aur Raj graduation kar chuka tha.
Graduation karne ke baad bhi usne abhi tak koi girl freind nahi
banayi thi. Wo isi umeed se apni saheliyon ko ghar laati ki shayad
inme se koi uske bhai ko bha jaye. Par aisa na hone par ab uski
saheliyon ne bhi aana chod diya tha. Geeta bhi yahi shikayat kar
rahi thi. Roma ko sab samajh me aaa raha tha aur use apne bhai par
jh*****at bhi ho rahi thi aur uski is ada par pyaar bhi aata tha.
"Sirf apni stupid kitab me kuch likhta rahta hai." Roma ne shikayat
karte hue kaha.
"Raj...aur likhta rehta hai?" Geeta ne ashcarya se pucha.
"Haan aur kya." Roma ne kaha, "yahi kaam hai jo wo din bhar karta
rehta hai. Graduation ke baad kitna badal gaya hai wo. Aisa lagata
hai ki uski jindagi kisi jagah aakar thehar gayi hai. Wo mujhe bhi
har samay nazar andaz karta rehta hai. Samajh me nahi aata ki use
pareshani kya hai. "
"Kya likhta rehta hai wo apni kitaab me?" Geeta ne pucha.
Roma ne apne kandhe uchkate hue kaha, "mujhe pata nahi. Meine kai
bar janne ki koshish ki lekin wo pani keetab is kadar chupa kar
rakhta hai ki kuch pata nahi. Jab wo likhna khatam kar leta hai to
un panno ko kitaab me se phad deta hai. Hazaron kahaniyan likhi hogi
usne."
"Ho sakta ho ki wo kahaniyan na ho, sirf dairy maintain karta ho"
Geeta ne kaha.
"Haan ho sakta hai," Roma ne itna kaha hi tha ki usne Raj ko ped ke
peeche se bahar aate dekha. Pehli baar use ehsas hua ki wo ped ke
peeche tha, par wo kar kya raha tha? usne socha.
"Shaitan ka naam lo aur shaitan hazir hai." Geeta ne hanste hue
kaha, "tumhe pata hai Roma agar ye tera bhai agar mujhe rati bhar
bhi lift deta to mein pehel hi din use century banane ka mauka de
deti."
"Chal chinal kahin ki." Roma ne kaha, "achaa ek baat to bata wiase
ab tak kitne batsman ko batting karne ka mauka diya hai?"
"Waise abhi tak to chinal bani nahi hun." Geeta ne kaha, "par haan
tere bhai ke liye chinal banne ko bhi tayyar hun, mein to bas itna
kehti hun ki mein apni jaan deti hun ispar."
"Haan ye to hai." Roma ne apne bhai ki aur dekhte hue kaha jo talab
ke round lagate hue unki taraf hi aa raha tha.
kramashah.............
आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ , मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ .. मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,, बस यही सोचकर थोडा सा पाप
भी कर लेता हूँ आपका दोस्त राज शर्मा (¨`·.·´¨) Always `·.¸(¨`·.·´¨)
Keep Loving & (¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling ! `·.¸.·´ -- raj
--
No comments:
Post a Comment