कामुक-कहानियाँ.ब्लॉगस्पोट.कॉम
मस्तानी हसीना पार्ट--4
गतान्क से आगे ......
उन्होने मुझे उठा के खड़ा किया और बाहों में भर के चूम लिया. उसके बाद मुझे नंगी ही अपनी बाहों में उठा कर बाथरूम में ले गये और एक स्टूल पे बैठा दिया. फिर मेरी टाँगें चौड़ी करके मेरी चूत पे पानी डाल के धोने लगे. मुझे बहुत शर्म आ रही थी और दर्द भी हो रहा था. उन्होने खूब अच्छी तरह से मेरी झांटें और चूत सॉफ की और फिर टवल से पोच्छा. मेरी झाँटें सुखाने के बाद बड़े ध्यान से मेरी फैली हुई टाँगों के बीच देखने लगे. मैं तो शरम से पानी पानी हो गयी,
" अब हमे छोड़िए ना.. ऐसे क्या देख रहे हैं ?"
" मेरी जान तुम तो कली से फूल बुन ही गयी हो लेकिन देखो ना जब हमने तुम्हें चोदना शुरू किया था तो उस वक़्त तुम्हारी चूत एक बूँद कच्ची काली लग रही थी. और अब देखो तुम्हारी वो कच्ची कली बिकुल फूल की तरह खिल गयी है. ऐसा लग रहा है जैसे एक बंद कली की पंखुड़ीयाँ खुल के फैल गयीं हों."
मैने शर्म के मारे अपने मुँह दोनो हाथों से धक लिया. मैने वापस बेडरूम में जाने से पहले टवल लपेटने की कोशिश की तो उन्होने मेरे हाथ से टवल ले लिया और बोले,
" तुम नंगी इतनी खूबसूरत लगती हो, टवल लपेटने की क्या ज़रूरत है." मुझे टाँगें चौड़ी करके चलना पड़ रहा था. हम दोनो नंगे ही सो गये. सुबह उठ कर वो एक बार फिर से मुझे चोदना चाहते थे, लेकिन मैने उनसे कहा कि बहुत दर्द हो रहा है, मैं और सह नहीं पाउन्गि. इस तरह मैं सुबह की चुदाई से तो बच गयी. अगले दिन हम लोग हनिमून पे चले गये. सुहाग रात की ज़बरदस्त चुदाई के कारण मेरी चूत अभी तक सूजी हुई थी और दर्द भी कम नहीं हुआ था. मैं अभी और चुदाई के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन क्या करती. हनिमून में तो चुदाई से बचाने का कोई रास्ता नहीं था. जिस दिन हम शिमला पहुँचे, उसी रात उन्होने मुझे चार बार जम के चोदा. कोई भी मेरी चाल देख के बता सकता था कि मेरी ज़बरदस्त चुदाई हो रही है. मैं बचाने की काफ़ी कोशिश करती, फिर भी ये मोका लगते ही दिन में एक या दो बार और रात में तीन से चार बार मुझे चोद्ते थे. 10 दिन के हनिमून में कम से कम 50 बार मेरी चुदाई हुई. होनेमून से वापस आने तक मेरी चूत इतनी फूल गयी थी कि मैं खुद उसे पहचान नहीं पा रही थी. मैं यह सोच के परेशान थी कि यदि चुदाई का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो बहुत मुश्किल हो जाएगा. मेरी चूत को आराम की सख़्त ज़रूरत थी. लेकिन वैसा नहीं हुआ जैसा मैं सोचती थी.
हनिमून से वापस आने के बाद इनका ऑफीस शुरू हो गया. अब दिन में तो चुदाई नहीं हो पाती थी लेकिन रात में एक बार तो ज़रूर चोद्ते थे. अब मेरी चूत का दर्द ख़तम हो गया था और झिझक भी कम हो गई थी . चुदवाने में बहुत मज़ा आने लगा था और चूत बहुत गीली हो जाती. मैं भी अब चूतर उचका उचका के खूब मज़े ले कर चुदवाती थी. मेरी चूत इतना रस छ्चोड़ती की जब ये धक्के लगाते तो मेरी चूत में से फ़च.. फ़च….फ़च की आवाज़ें आती. मैं रोज़ रात होने का बेसब्री से इंतज़ार करती थी. कभी कभी च्छुतटी के दिन, दिन में भी चोद देते थे. मैं बहुत खुश थी. इनका लंड 8 इंच लंबा और अच्छा ख़ासा मोटा था. जब भी चोदते, एक घंटे से पहले नहीं झाड़ते थे. मेरा बहुत दिल करता था कि ये भी मेरे साथ वो सब कुच्छ करें जो पापा मम्मी के साथ करते थे. लेकिन ये मुझे सिर्फ़ एक ही मुद्रा में चोदते थे. कभी अपना लंड मेरे मुँह में नहीं डाला ओर ना ही मेरी चूत को कभी चॅटा. मेरी गांद की तरफ भी कभी ध्यान नहीं दिया.
पहले 6 महीने तो रोज़ रात को एक बार चुदाई हो ही जाती थी. धीरे धीरे हफ्ते में तीन बार चोदने लगे. शादी को एक साल गुज़रने वाला था. चुदाई और भी कम हो गयी थी. अब तो महीने में सिर्फ़ दो तीन बार ही चोदते थे. सब कुच्छ उल्टा हो रहा था. जैसे जैसे मुझे चुदवाने का शोक बढ़ने लगा , इन्होने चोदना और भी कम कर दिया. शादी के एक साल बाद ये आलम था कि महीने में दो तीन बार से ज़्यादा चुदाई नहीं होती थी. मैं रोज़ रात बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करती कि आज चोदेन्गे लॅकिन रोज़ ही निराशा हाथ लगती. ऑफीस से बहुत लेट आते थे इसलिए थक जाते थे. जब कभी चोद्ते तो पूरी तरह नंगी भी नहीं करते, बस सारी उठा कर पेल देते. मेरी वासना की आग बढ़ती जा रही थी. मेरे पति के पास मेरी प्यास बुझाने का समय नहीं था.
हमारे साथ मेरे पति का छ्होटा भाई यानी मेरा देवर रामू भी रहता था. रामू एक लंबा तगड़ा सुडोल जवान था. वो कॉलेज में पढ़ता था और बॉडी बिल्डिंग भी किया करता था. मैं उसे मथ्स पढ़ाया करती थी. वो मेरी ओर आकर्षित था. हम दोनो में बहुत हँसी मज़ाक चलता रहता था. मैं उसे केयी बार अपने ब्लाउस के अंडर या टाँगों के बीच में झाँकते हुए पकड़ चुकी थी. मुझे मालूम था कि वो केयी बार मेरी पॅंटी के दर्शन कर चुका था. एक बार जब मैं नहाने जा रही थी तो उसने मुझे नंगी भी देख लिया था. मेरी एक पॅंटी भी उसने चुरा ली थी और उस पॅंटी के साथ वो क्या करता होगा ये भी मैं अच्छी तरह जानती थी. हँसी मज़्ज़ाक़ इस हद तक बढ़ गया था कि हम सब प्रकार की बातें बेझिझक करते थे. लेकिन मैं उसके साथ एक सीमा से बाहर नहीं जाना चाहती थी. अपने ही देवर के साथ किसी तरह का शारीरिक संबंध ठीक नहीं था. लेकिन मेरा ये विचार उस दिन बिल्कुल बदल गया जिस दिन मैं ग़लती से उसका लंड देख बैठी. ऊफ़ क्या मोटा और लंबा लंड था ! जब से मेरी नज़र उसके मूसल जैसे लंड पे पड़ी तब से मेरी रातों की नींद गायब हो गयी. आगे क्या हुआ ये आप "कंचन भाभी पार्ट 1,2 और 3" में मेरे देवर रामू की ज़ुबानी सुन सकते हैं.
मेरा नाम रामू है. मैं कॉलेज में पढ़ता हूँ. मेरी उम्र अब बीस साल है. मैं एक साल से अपने भैया और भाभी के साथ रह रहा हूँ. भैया एक बड़ी कंपनी में काम करते हैं. मेरी भाभी कंचन बहुत ही सुन्दर है. भैया की शादी को दो साल हो चुके हैं. भाभी की उम्र 24 साल है. मैं भाभी की बहुत इज़्ज़त करता हूँ और वो भी मुझे बहुत चाहती है. हम दोनो में खूब दोस्ती है और हँसी मज़ाक चलता रहता है. भाभी पढ़ाई में भी मेरी सहायता करती है. वो मुझे मथ्स पढ़ाती है.
एक दिन की बात है. भाभी मुझे पढ़ा रही थी और भैया अपने कमरे में लेटे हुए थे. रात के दस बजे थे. इतने में भैया की आवाज़ आई " कंचन, और कितनी देर है जल्दी आओ ना". भाभी आधे में से उठते हुए बोली " रामू बाकी कल करेंगे तुम्हारे भैया आज कुकछ ज़्यादा ही उतावले हो रहे हैं." यह कह कर वो जल्दी से अपने कमरे में चली गयी. मुझे भाभी की बात कुकछ ठीक से समझ नही आई. काफ़ी देर तक सोचता रहा, फिर अचानक ही दिमाग़ की ट्यूब लाइट जली और मेरी समझ में आ गया कि भैया को किस बात की उतावली हो रही थी. मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गयी. आज तक मेरे दिल में भाभी को ले कर बुरे विचार नही आए थे, लेकिन भाभी के मुँह से उतावले वाली बात सुन कर कुकछ अजीब सा लग रहा था. मुझे लगा कि भाभी के मुँह से अनायास ही यह निकल गया होगा. जैसे ही भाभी के कमरे की लाइट बंद हुई मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो गयी. मैने जल्दी से अपने कमरे की लाइट भी बंद कर दी और चुपके से भाभी के कमरे के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया. अंडर से फुसफुसाने की आवाज़ आ रही थी पर कुकछ कुकछ ही सॉफ सुनाई दे रहा था.
" क्यों जी आज इतने उतावले क्यों हो रहे हो?"
" मेरी जान कितने दिन से तुमने दी नही. इतना ज़ुल्म तो ना किया करो."
"चलिए भी,मैने कब रोका है, आप ही को फ़ुर्सत नही मिलती. रामू का कल एग्ज़ॅम है उसे पढ़ाना ज़रूरी था."
" अब श्रीमती जी की इज़ाज़त हो तो आपकी चूत का उद्घाटन करूँ."
" हाई राम! कैसी बातें बोलते हो.शरम नही आती"
" शर्म की क्या बात है. अब तो शादी को दो साल हो चुके हैं, फिर अपनी ही बीबी को चोदने में शरम कैसी"
" बड़े खराब हो. आह..एयेए..आह है राम….वी माआ……अयाया…… धीरे करो राजा अभी तो सारी रात बाकी है"
मैं दरवाज़े पर और ना खड़ा रह सका. पसीने से मेरे कपड़े भीग चुके थे. मेरा लंड अंडरवेर फाड़ कर बाहर आने को तैयार था. मैं जल्दी से अपने बिस्तेर पर लेट गया पर सारी रात भाभी के बारे में सोचता रहा. एक पल भी ना सो सका.ज़िंदगी में पहली बार भाभी के बारे में सोच कर मेरा लंड
खड़ा हुआ था. सुबह भैया ऑफीस चले गये. मैं भाभी से नज़रें नही मिला पा रहा था जबकि भाभी मेरी कल रात की करतूत से बेख़बर थी. भाभी किचन में काम कर रही थी. मैं भी किचन में खड़ा हो गया. ज़िंदगी में पहली बार मैने भाभी के जिस्म को गौर से देखा. गोरा भरा हुआ गदराया सा बदन,लंबे घने काले बॉल जो भाभी के घुटने तक लटकते थे, बरी बरी आँखें, गोल गोल आम के आकार की चुचियाँ जिनका साइज़ 38 से कम ना होगा, पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए चौड़े, भारी नितंब . एक बार फिर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी . इस बार मैने हिम्मत कर के भाभी से पूछ ही लिया.
" भाभी, मेरा आज एग्ज़ॅम है और आप को तो कोई चिंता ही नही थी. बिना पढ़ाए ही आप कल रात सोने चल दी"
" कैसी बातें करता है रामू, तेरी चिंता नही करूँगी तो किसकी करूँगी?"
" झूट, मेरी चिंता थी तो गयी क्यों?"
" तेरे भैया ने जो शोर मचा रखा था."
" भाभी, भैया ने क्यों शोर मचा रखा था" मैने बारे ही भोले स्वर में पूछा. भाभी शायद मेरी चालाकी समझ गयी और तिरछी नज़र से देखते हुए बोली,
" धात बदमाश, सब समझता है और फिर भी पूछ रहा है. मेरे ख्याल से तेरी अब शादी कर देनी चाहिए. बोल है कोई लड़की पसंद?"
" भाभी सच कहूँ मुझे तो आप ही बहुत अच्छी लगती हो.
" चल नालयक भाग यहाँ से और जा कर अपना एग्ज़ॅम दे."
मैं एग्ज़ॅम तो क्या देता, सारा दिन भाभी के ही बारे में सोचता रहा. पहली बार भाभी से ऐसी बातें की थी और भाभी बिल्कुल नाराज़ नही हुई. इससे मेरी हिम्मत और बढ़ने लगी. मैं भाभी का दीवाना होता जा रहा था. भाभी रोज़ रात को देर तक पढ़ाती थी . मुझे महसूस हुआ शायद भैया भाभी को महीने में दो तीन बार ही चोद्ते थे. मैं अक्सर सोचता, अगर भाभी जैसी खूबसूरत औरत मुझे मिल जाए तो दिन में चार दफे चोदु.
दीवाली के लिए भाभी को मायके जाना था. भैया ने उन्हें मायके ले जाने का कम मुझे सोन्पा क्योंकि भैया को च्छुतटी नही मिल सकी. बहुत भीड़ थी. मैं भाभी के पीछे रेलवे स्टेशन पर रिज़र्वेशन की लाइन में खड़ा था. धक्का मुक्की के कारण आदमी आदमी से सटा जा रहा था. मेरा लंड बार बार भाभी के मोटे मोटे नितंबों से रगड़ रहा था.मेरे दिल की धड़कन तेज़ होने लगी. हालाकी मुझे कोई धक्का भी नही दे रहा था, फिर भी मैं भाभी के पीछे चिपक के खड़ा था. मेरा लंड फंफना कर अंडरवेर से बाहर निकल कर भाभी के चूतरों के बीच में घुसने की कोशिश कर रहा था. भाभी ने हल्के से अपने चूतरो को पीछे की तरफ धक्का दिया जिससे मेरा लंड और ज़ोर से उनके चूतरों से रगड़ने लगा. लगता है भाभी को मेरे लंड की गर्माहट महसूस हो गयी थी और उसका हाल पता था लेकिन उन्होनें दूर होने की कोशिश नही की. भीर के कारण सिर्फ़ भाभी को ही रिज़र्वेशन मिला. ट्रेन में हम दोनो एक ही सीट पर थे. रात को भाभी के कहने पर मैने अपनी टाँगें भाभी के तरफ और उन्होने अपनी टाँगें मेरी तरफ कर लीं और इस प्रकार हम दोनो आसानी से लेट गये. रात को मेरी आँख खुली तो ट्रेन के नाइट लॅंप की हल्की हल्की रोशनी में मैने देखा, भाभी गहरी नींद में सो रही थी और उसकी सारी जांघों तक सरक गयी थी . भाभी की गोरी गोरी नंगी टाँगें और मोटी मांसल जंघें देख कर मैं अपना कंट्रोल खोने लगा. सारी का पल्लू भी एक तरफ गिरा हुआ था और बड़ी बड़ी चुचियाँ ब्लाउस में से बाहर गिरने को हो रही थी. मैं मन ही मन मनाने लगा की सारी थोड़ी और उपर उठ जाए ताकि भाभी की चूत के दर्शन कर सकूँ. मैने हिम्मत करके बहुत ही धीरे से सारी को उपर सरकाना शुरू किया. सारी अब भाभी की चूत से सिर्फ़ 2 इंच ही नीचे थी पर कम रोशनी होने के कारण मुझे यह नही समझ आ रहा था की 2इंच उपर जो कालीमा नज़र आ रही थी वो काले रंग की कछि थी या भाभी की झटें. मैने सारी को थोड़ा और उपर उठाने की जैसे ही कोशिस की, भाभी ने करवट बदली और सारी को नीचे खींच लिया. मैने गहरी सांस ली और फिर से सोने की कोशिश करने लगा.
क्रमशः.........
Mastaani hasina paart--4
Gataank se aage ......
Unhone mujhe utha ke khara kiya aur baahon mein bhar ke choom liya. Uske baad mujhe nangi hi apni baahon mein utha kar bathoom mein le gaye aur ek stool pe baitha diya. Phir meri taangen chauri karke meri choot pe pani daal ke dhone lage. Mujhe bahut sharm aa rahi thi aur dard bhi ho raha tha. Unhone khoob achhi tarah se meri jhanten aur choot saaf ki aur phir towel se pochha. Meri jhaanten suhaane ke baad bare dhyaan se meri phaili hui taangon ke beech dekhne lage. Main to sharam se pani pani ho gayi,
" Ab humen chhoriye na.. aise kya dekh rahe hain ?"
" meri jaan tum to kali se phool bun hi gayi ho lekin dekho na jub humne tumhen chodna shuru kiya tha to us waqt tumhaari choot ek bund kacchhi kali lug rahi thi. Aur ab dekho tumhaari vo kacchhi kali bikul phool ki tarah khil gayi hai. Aisa lug raha hai jaise ek bund kali ki pankhudian khul ke phail gayin hon."
Maine sharm ke mare apne munh dono haathon se dhak liya. Maine wapas bedroom mein jaane se pahle towel lapetne ki koshish ki to unhone mere haath se towel le liya aur bole,
" Tum nangi itni khoobsoorat lagti ho, towel lapetne ki kya zaroorat hai." Mujhe tangen chauri karke chalna par raha tha. Hum dono nange hi so gaye. Subah uth kar vo ek baar phir se mujhe chodna chahte the, lekin maine unse kaha ki bahut dard ho raha hai, main aur sah nahin paaungi. Is tarah main subah ki chudai se to bach gayi. Agle din hum log honeymoon pe chale gaye. Suhaag raat ki zabaradast chudai ke karan meri choot abhi tak sooji hui thi aur dard bhi kum nahin hua tha. Main abhi aur chudai ke liye tayar nahin thi, lekin kya karti. Honeymoon mein to chudai se bachane ka koi rasta nahin tha. Jis din hum Shimla pahunche, usi raat unhone mujhe char baar jum ke choda. Koi bhi meri chaal dekh ke bata sakta tha ki meri zabardast chudai ho rahi hai. Main bachane ki kaafi koshish karti, phir bhi ye moka lagte hi din mein ek ya do baar aur raat mein teen se chaar baar mujhe chodte the. 10 din ke honeymoon mein kum se kum 50 baar meri chudai hui. Honemoon se wapas aane tak meri choot itni phool gayi thi ki main khud use pahchan nahin paa rahi thi. Main yeh soch ke pareshan thi ki yadi chudai ka silsila aise hi chalta raha to bahut mushkil ho jaaega. Meri choot ko aaraam ki sakht zaroorat thi. Lekin vaisa nahin hua jaisa main sochti thi.
Honeymoon se wapas aane ke baad inka office shuru ho gaya. Ab din mein to chudai nahin ho pati thi lekin raat mein ek baar to zaroor chodte the. Ab meri choot ka dard khatam ho gaya tha aur jhijhak bhi kum ho gyi thi .Chudwane mein bahut maza aane laga tha aur choot bahut geeli ho jaati. Main bhi ab chootar uchka uchka ke khoob maze le kar chudwati thi. Meri choot itna ras chhodati ki jub ye dhakke lagate to meri choot mein se phach.. phach….phach ki awaazen aati. Main roz raat hone ka besabri se intazaar karti thi. Kabhi kabhi chhutti ke din, din mein bhi chod dete the. Main bahut khush thi. Inka lund 8 inch lumba aur achha khasa mota tha. Jub bhi chodate, ek ghante se pahle nahin jhadte the. Mera bahut dil karta tha ki Ye bhi mere saath vo sub kuchh Karen jo papa mummy ke saath karte the. Lekin Ye mujhe sirf ek hi mudra mein chodate the. Kabhi apna lund mere munh mein nahin dala or na hi meri choot ko kabhi chaata. Meri gaand ki taraf bhi kabhi dhyan nahin diya.
Pahale 6 maheene to roz raat ko ek baar chudai ho hi jaati thi. Dheere dheere hafte mein teen baar chodane lage. Shaadi ko ek saal guzarne wala tha. Chudai aur bhi kum ho gayi thi. Ab to maheene mein sirf do teen baar hi chodate the. Sub kuchh ulta ho raha tha. Jaise jaise mujhe chudwane ka shok barhne laga , inhone chodna aur bhi kum kar diya. Shaadi ke ek saal baad ye aalam tha ki meheene mein do teen baar se zyada chudai nahin hoti thi. Main roz raat bari besabri se intzar karti ki aaj chodenge lakin roz hi nirasha haath lagti. Office se bahut late aate the isliye thak jaate the. Jub kabhi chodte to poori tarah nangi bhi nahin karte, bus saari utha kar pel dete. Meri vaasna ki aag barhti jaa rahi thi. Mere pati ke paas meri pyas bujhane ka samay nahin tha.
Hamaare saath mere pati ka chhota bhai yani mera devar Ramu bhi rahata tha. Ramu ek lumba tagra sudol jawan tha. Vo college mein parhta tha aur body building bhi kiya karta tha. Main use maths parhaya karti thi. Vo meri or aakarshit tha. Hum dono mein bahut hansi mazaak chalta rahata tha. Main use kayi baar apne blouse ke under ya tangon ke beech mein jhankte hue pakar chuki thi. Mujhe maloom tha ki vo kayi baar meri panty ke darshan kar chuka tha. Ek baar jub main nahaane jaa rahi thi to usne mujhe nangi bhi dekh liya tha. Meri ek panty bhi usne chura lee thi aur us panty ke saath vo kya karta hoga ye bhi main achhi tarah jaanti thi. Hansi mazzak is hud tak barh gaya tha ki hum sub prakaar ki baaten bejhijhak karte the. Lekin main uske saath ek seema se baahar nahin jaana chaahati thi. Apne hi devar ke saath kisi tarah ka shaareerik sumbandh theek nahin tha. Lekin mera ye vichaar us din bilkul badal gaya jis din main galti se uska lund dekh baithi. Ooph kya mota aur lumba lund tha ! Jub se meri nazar uske moosal jaise lund pe pari tub se meri raaton ki neend gaayab ho gayi. Aage kya hua ye aap "Kanchan Bhabhi Part 1,2 aur 3" mein mere devar Ramu ki jubaani sun sakte hain.
Mera naam Ramu hai. Main college mein parhata hun. Meri umra ab bees saal hai. Main ek saal se apne bhaiya aur bhabhi ke saath rah raha hun. Bhaiya ek bari company mein kam karte hain. Meri bhabhi kanchan bahut hi sunder hai. Bhaiya ki shaadi ko do saal ho chuke hain. Bhabhi ki umra 24 saal hai. Main bhabhi ki bahut izzat karta hun aur voh bhi mejhe bahut chahati hai. Hum dono mein khoob dosti hai aur hansi mazak chalta rahta hai. Bhabhi parhai mein bhi meri sahayata karti hai. Voh mujhe maths parhati hai.
Ek din ki baat hai. Bhabhi mujhe parha rahi thi aur bhaiya apne kamare mein lete hue the. raat ke das baje the. Itne mein bhaiya ki awaz aai " kanchan, aur kitni der hai jaldi aao na". Bhabhi adhe mein se uthate hue boli " ramu baki kal karenge tumhare bhaiya aaj kucch jada hi utavale ho rahe hain." Yah kah kar voh jaldi se apne kamare mein chali gayi. Mujhe bhabhi ki baat kucch theek se samajh nahi aai. Kafi der tak sochata raha, phir achanak hi dimag ki tube light jali aur meri samajh mein aa gaya ki bhaiya ko kis baat ko utavala ho rahi thi. Mere dil ki dhadkan tez ho gayi. Aaj tak mere dil mein bhabhi ko le kar bure vichar nahi aye the, lekin bhabhi ke munh se utavle vali baat sun kar kucch ajeeb sa lag raha tha. Mujhe laga ki bhabhi ke munh se anayas hi yeh nikal gaya hoga. Jaise hi bhabhi ke kamare ki light bund hui mere dil ki dhakan aur tez ho gayi. Maine jaldi se apne kamare ki light bhi bund kar di aur chupke se bhabhi ke kamare ke darwaze se kaan laga kar khara ho gaya. Under se phusphusane ki awaz aa rahi thi par kucch kucch hi saaf sunai de raha tha.
" kyon ji aaj itne utavle kyon ho rahe ho?"
" meri jaan kitne din se tumne di nahi. Itna julm to na kiya karo."
"chaliye bhi,maine kab roka hai, aap hi ko phursat nahi milti. Ramu ka kal exam hai use parhana zaroori tha."
" ab srimati ji ki izazat ho to apki choot ka udghatan karun."
" hai Ram! Kaisi baten bolte ho.sharam nahi aati"
" sharm ki kya baat hai. Ab to shaadi ko do saal ho chuke hain, phir apni hi bibi ko chodne mein sharam kaisi"
" bare kharab ho. Ah..aaa..ah hai Ram….oui maaa……aaaah…… dheere karo raja abhi to sari raat baki hai"
main darwaze par aur na khara rah saka. Paseene se mere kapare bheeg chuke the. Mera lund underwear phar kar bahar aane ko tayar tha. Main jaldi se apne bister par lait gaya par sari rat bhabhi ke bare mein sochata raha. Ek pal bhi na so saka.zindagi mein pahli bar bhabhi ke bare mein soch kar mera lund
khara hua tha. Subah bhaiya office chale gaye. Main bhabhi se nazaren nahi mila pa raha tha jabaki bhabhi meri kal raat ki kartoot se bekhabar thi. Bhabhi kitchen mein kam kar rahi thi. Main bhi kitchen mein khara ho gaya. Zindagi mein pahali bar maine bhabhi ke jism ko gaur se dekha. Gora bhara hua gadaraya sa badan,lumbe ghane kale baal jo bhabhi ke ghutne tak latakte the, bari bari ankhen, gol gol aam ke akar ki chuchian jinka size 38 se kam na hoga, patli kamar aur uske neeche phailte hue chaure, bhari nitamb . ek bar phir mere dil ki dhakan barh gayi . is bar maine himmat kar ke bhabhi se pooch hi liya.
" bhabhi, mera aaj exam hai aur aap ko to koi chinta hi nahi thi. Bina parhahe hi aap kal raat sone chal di"
" kaisi baaten karata hai Ramu, teri chinta nahi karungi to kiski karungi?"
" jhoot, meri chinta thi to gayi kyon?"
" tere bhaiya ne jo shor macha rakha tha."
" bhabhi, bhaiya ne kyon shor macha rakha tha" maine bare hi bhole swar mein poocha. Bhabhi shayad meri chalaki samajh gayi aur tirchi nazar se dekhte hue boli,
" dhat badmash, sab samajhta hai aur phir bhi pooch raha hai. Mere khyal se teri ab shaadi kar deni chahiye. Bol hai koi ladki pasand?"
" bhabhi sach kahun mujhe to aap hi bahut achhi lagti ho.
" chal nalayak bhag yehan se aur ja kar apna exam de."
Main exam to kya deta, sara din bhabhi ke hi bare mein sochata raha. Pahli bar bhabhi se aisi baten ki thi aur bhabhi bilkul naraz nahi hui. Isse meri himmat aur badhane lagi. Main bhabhi ka diwana hota ja raha tha. Bhabhi roz raat ko der tak parhati thi . mujhe mahsus hua shayad bhaiya bhabhi ko maheene mein do teen bar hi chodte the. Main aksar sochta, agar bhabhi jaisi khoobsoorat aurat mujhe mil jaye to din mein char dafe chodun.
Diwali ke liye bhabhi ko mayake jana tha. Bhaiya ne unhen mayake le jane ka kam mujhe sonpa kyonki bhaiya ko chhutti nahi mil saki. Bahut bheer thi. Main bhabhi ke peeche railway station par reservation ki line mein khara tha. Dhakka mukki ke karan admi admi se sata ja raha tha. Mera lund bar bar bhabhi ke mote mote nitambon se ragar raha tha.mere dil ki dhakan tez hone lagi. Halaki mujhe koi dhakka bhi nahi de raha tha, phir bhi main bhabhi ke peeche chipak ke khara tha. Mera lund phanphana kar underwear se bahar nikal kar bhabhi ke chutaron ke beech mein ghusne ki koshish kar raha tha. Bhabhi ne halke se apne chutron ko peeche ki taraf dhakka diya jisase mera lund aur jor se unke chutaron se ragarne laga. Lagta hai bhabhi ko mere lund ki garmahat mahsus ho gayi thi aur uska haal pata tha lekin unhonen door hone ki koshish nahi ki. Bheer ke karan sirf bhabhi ko hi reservation mila. Train mein hum dono ek hi seat par the. Raat ko bhabhi ke kahne par maine apni tangen bhabhi ke taraf aur unhone apni tangen meri taraf kar lin aur is prakar hum dono asani se lait gaye. Raat ko meri ankh khuli to train ke night lamp ki halki halki roshni mein maine dekha, bhabhi gahari neend mein so rahi thi aur Uski sari janghon tak sarak gayi thi . Bhabhi ki gori gori nangi tangen aur moti mansal janghen dekh kar main apna control khone laga. Sari ka pallu bhi ek taraf gira hua tha aur bari bari chuchian blouse mein se bahar girne ko ho rahi thi. Main man hi man manane laga ki sari thori aur upar uth jaye taki bhabhi ki choot ke darshan kar sakun. Maine himmat karke bahut hi dheere se sari ko upar sarkana shuru kiya. Sari ab bhabhi ki choot se sirf 2 inch hi neeche thi par kam roshni hone ke karan mujhe yah nahi samajh aa raha tha ki 2inch upar jo kalima nazar aa rahi thi voh kale rang ki kachhi thi ya bhabhi ki jhaten. Maine sari ko thora aur upar uthane ki jaise hi koshisk ki, bhabhi ne karvat badli aur sari ko neeche kheench liya. Maine gaharee sans li aur phir se sone ki koshish karne laga.
kramashah.........
आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ , मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ .. मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,, बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ आपका दोस्त राज शर्मा (¨`·.·´¨) Always `·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving & (¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling ! `·.¸.·´ -- raj
मस्तानी हसीना पार्ट--4
गतान्क से आगे ......
उन्होने मुझे उठा के खड़ा किया और बाहों में भर के चूम लिया. उसके बाद मुझे नंगी ही अपनी बाहों में उठा कर बाथरूम में ले गये और एक स्टूल पे बैठा दिया. फिर मेरी टाँगें चौड़ी करके मेरी चूत पे पानी डाल के धोने लगे. मुझे बहुत शर्म आ रही थी और दर्द भी हो रहा था. उन्होने खूब अच्छी तरह से मेरी झांटें और चूत सॉफ की और फिर टवल से पोच्छा. मेरी झाँटें सुखाने के बाद बड़े ध्यान से मेरी फैली हुई टाँगों के बीच देखने लगे. मैं तो शरम से पानी पानी हो गयी,
" अब हमे छोड़िए ना.. ऐसे क्या देख रहे हैं ?"
" मेरी जान तुम तो कली से फूल बुन ही गयी हो लेकिन देखो ना जब हमने तुम्हें चोदना शुरू किया था तो उस वक़्त तुम्हारी चूत एक बूँद कच्ची काली लग रही थी. और अब देखो तुम्हारी वो कच्ची कली बिकुल फूल की तरह खिल गयी है. ऐसा लग रहा है जैसे एक बंद कली की पंखुड़ीयाँ खुल के फैल गयीं हों."
मैने शर्म के मारे अपने मुँह दोनो हाथों से धक लिया. मैने वापस बेडरूम में जाने से पहले टवल लपेटने की कोशिश की तो उन्होने मेरे हाथ से टवल ले लिया और बोले,
" तुम नंगी इतनी खूबसूरत लगती हो, टवल लपेटने की क्या ज़रूरत है." मुझे टाँगें चौड़ी करके चलना पड़ रहा था. हम दोनो नंगे ही सो गये. सुबह उठ कर वो एक बार फिर से मुझे चोदना चाहते थे, लेकिन मैने उनसे कहा कि बहुत दर्द हो रहा है, मैं और सह नहीं पाउन्गि. इस तरह मैं सुबह की चुदाई से तो बच गयी. अगले दिन हम लोग हनिमून पे चले गये. सुहाग रात की ज़बरदस्त चुदाई के कारण मेरी चूत अभी तक सूजी हुई थी और दर्द भी कम नहीं हुआ था. मैं अभी और चुदाई के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन क्या करती. हनिमून में तो चुदाई से बचाने का कोई रास्ता नहीं था. जिस दिन हम शिमला पहुँचे, उसी रात उन्होने मुझे चार बार जम के चोदा. कोई भी मेरी चाल देख के बता सकता था कि मेरी ज़बरदस्त चुदाई हो रही है. मैं बचाने की काफ़ी कोशिश करती, फिर भी ये मोका लगते ही दिन में एक या दो बार और रात में तीन से चार बार मुझे चोद्ते थे. 10 दिन के हनिमून में कम से कम 50 बार मेरी चुदाई हुई. होनेमून से वापस आने तक मेरी चूत इतनी फूल गयी थी कि मैं खुद उसे पहचान नहीं पा रही थी. मैं यह सोच के परेशान थी कि यदि चुदाई का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो बहुत मुश्किल हो जाएगा. मेरी चूत को आराम की सख़्त ज़रूरत थी. लेकिन वैसा नहीं हुआ जैसा मैं सोचती थी.
हनिमून से वापस आने के बाद इनका ऑफीस शुरू हो गया. अब दिन में तो चुदाई नहीं हो पाती थी लेकिन रात में एक बार तो ज़रूर चोद्ते थे. अब मेरी चूत का दर्द ख़तम हो गया था और झिझक भी कम हो गई थी . चुदवाने में बहुत मज़ा आने लगा था और चूत बहुत गीली हो जाती. मैं भी अब चूतर उचका उचका के खूब मज़े ले कर चुदवाती थी. मेरी चूत इतना रस छ्चोड़ती की जब ये धक्के लगाते तो मेरी चूत में से फ़च.. फ़च….फ़च की आवाज़ें आती. मैं रोज़ रात होने का बेसब्री से इंतज़ार करती थी. कभी कभी च्छुतटी के दिन, दिन में भी चोद देते थे. मैं बहुत खुश थी. इनका लंड 8 इंच लंबा और अच्छा ख़ासा मोटा था. जब भी चोदते, एक घंटे से पहले नहीं झाड़ते थे. मेरा बहुत दिल करता था कि ये भी मेरे साथ वो सब कुच्छ करें जो पापा मम्मी के साथ करते थे. लेकिन ये मुझे सिर्फ़ एक ही मुद्रा में चोदते थे. कभी अपना लंड मेरे मुँह में नहीं डाला ओर ना ही मेरी चूत को कभी चॅटा. मेरी गांद की तरफ भी कभी ध्यान नहीं दिया.
पहले 6 महीने तो रोज़ रात को एक बार चुदाई हो ही जाती थी. धीरे धीरे हफ्ते में तीन बार चोदने लगे. शादी को एक साल गुज़रने वाला था. चुदाई और भी कम हो गयी थी. अब तो महीने में सिर्फ़ दो तीन बार ही चोदते थे. सब कुच्छ उल्टा हो रहा था. जैसे जैसे मुझे चुदवाने का शोक बढ़ने लगा , इन्होने चोदना और भी कम कर दिया. शादी के एक साल बाद ये आलम था कि महीने में दो तीन बार से ज़्यादा चुदाई नहीं होती थी. मैं रोज़ रात बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करती कि आज चोदेन्गे लॅकिन रोज़ ही निराशा हाथ लगती. ऑफीस से बहुत लेट आते थे इसलिए थक जाते थे. जब कभी चोद्ते तो पूरी तरह नंगी भी नहीं करते, बस सारी उठा कर पेल देते. मेरी वासना की आग बढ़ती जा रही थी. मेरे पति के पास मेरी प्यास बुझाने का समय नहीं था.
हमारे साथ मेरे पति का छ्होटा भाई यानी मेरा देवर रामू भी रहता था. रामू एक लंबा तगड़ा सुडोल जवान था. वो कॉलेज में पढ़ता था और बॉडी बिल्डिंग भी किया करता था. मैं उसे मथ्स पढ़ाया करती थी. वो मेरी ओर आकर्षित था. हम दोनो में बहुत हँसी मज़ाक चलता रहता था. मैं उसे केयी बार अपने ब्लाउस के अंडर या टाँगों के बीच में झाँकते हुए पकड़ चुकी थी. मुझे मालूम था कि वो केयी बार मेरी पॅंटी के दर्शन कर चुका था. एक बार जब मैं नहाने जा रही थी तो उसने मुझे नंगी भी देख लिया था. मेरी एक पॅंटी भी उसने चुरा ली थी और उस पॅंटी के साथ वो क्या करता होगा ये भी मैं अच्छी तरह जानती थी. हँसी मज़्ज़ाक़ इस हद तक बढ़ गया था कि हम सब प्रकार की बातें बेझिझक करते थे. लेकिन मैं उसके साथ एक सीमा से बाहर नहीं जाना चाहती थी. अपने ही देवर के साथ किसी तरह का शारीरिक संबंध ठीक नहीं था. लेकिन मेरा ये विचार उस दिन बिल्कुल बदल गया जिस दिन मैं ग़लती से उसका लंड देख बैठी. ऊफ़ क्या मोटा और लंबा लंड था ! जब से मेरी नज़र उसके मूसल जैसे लंड पे पड़ी तब से मेरी रातों की नींद गायब हो गयी. आगे क्या हुआ ये आप "कंचन भाभी पार्ट 1,2 और 3" में मेरे देवर रामू की ज़ुबानी सुन सकते हैं.
मेरा नाम रामू है. मैं कॉलेज में पढ़ता हूँ. मेरी उम्र अब बीस साल है. मैं एक साल से अपने भैया और भाभी के साथ रह रहा हूँ. भैया एक बड़ी कंपनी में काम करते हैं. मेरी भाभी कंचन बहुत ही सुन्दर है. भैया की शादी को दो साल हो चुके हैं. भाभी की उम्र 24 साल है. मैं भाभी की बहुत इज़्ज़त करता हूँ और वो भी मुझे बहुत चाहती है. हम दोनो में खूब दोस्ती है और हँसी मज़ाक चलता रहता है. भाभी पढ़ाई में भी मेरी सहायता करती है. वो मुझे मथ्स पढ़ाती है.
एक दिन की बात है. भाभी मुझे पढ़ा रही थी और भैया अपने कमरे में लेटे हुए थे. रात के दस बजे थे. इतने में भैया की आवाज़ आई " कंचन, और कितनी देर है जल्दी आओ ना". भाभी आधे में से उठते हुए बोली " रामू बाकी कल करेंगे तुम्हारे भैया आज कुकछ ज़्यादा ही उतावले हो रहे हैं." यह कह कर वो जल्दी से अपने कमरे में चली गयी. मुझे भाभी की बात कुकछ ठीक से समझ नही आई. काफ़ी देर तक सोचता रहा, फिर अचानक ही दिमाग़ की ट्यूब लाइट जली और मेरी समझ में आ गया कि भैया को किस बात की उतावली हो रही थी. मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गयी. आज तक मेरे दिल में भाभी को ले कर बुरे विचार नही आए थे, लेकिन भाभी के मुँह से उतावले वाली बात सुन कर कुकछ अजीब सा लग रहा था. मुझे लगा कि भाभी के मुँह से अनायास ही यह निकल गया होगा. जैसे ही भाभी के कमरे की लाइट बंद हुई मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो गयी. मैने जल्दी से अपने कमरे की लाइट भी बंद कर दी और चुपके से भाभी के कमरे के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया. अंडर से फुसफुसाने की आवाज़ आ रही थी पर कुकछ कुकछ ही सॉफ सुनाई दे रहा था.
" क्यों जी आज इतने उतावले क्यों हो रहे हो?"
" मेरी जान कितने दिन से तुमने दी नही. इतना ज़ुल्म तो ना किया करो."
"चलिए भी,मैने कब रोका है, आप ही को फ़ुर्सत नही मिलती. रामू का कल एग्ज़ॅम है उसे पढ़ाना ज़रूरी था."
" अब श्रीमती जी की इज़ाज़त हो तो आपकी चूत का उद्घाटन करूँ."
" हाई राम! कैसी बातें बोलते हो.शरम नही आती"
" शर्म की क्या बात है. अब तो शादी को दो साल हो चुके हैं, फिर अपनी ही बीबी को चोदने में शरम कैसी"
" बड़े खराब हो. आह..एयेए..आह है राम….वी माआ……अयाया…… धीरे करो राजा अभी तो सारी रात बाकी है"
मैं दरवाज़े पर और ना खड़ा रह सका. पसीने से मेरे कपड़े भीग चुके थे. मेरा लंड अंडरवेर फाड़ कर बाहर आने को तैयार था. मैं जल्दी से अपने बिस्तेर पर लेट गया पर सारी रात भाभी के बारे में सोचता रहा. एक पल भी ना सो सका.ज़िंदगी में पहली बार भाभी के बारे में सोच कर मेरा लंड
खड़ा हुआ था. सुबह भैया ऑफीस चले गये. मैं भाभी से नज़रें नही मिला पा रहा था जबकि भाभी मेरी कल रात की करतूत से बेख़बर थी. भाभी किचन में काम कर रही थी. मैं भी किचन में खड़ा हो गया. ज़िंदगी में पहली बार मैने भाभी के जिस्म को गौर से देखा. गोरा भरा हुआ गदराया सा बदन,लंबे घने काले बॉल जो भाभी के घुटने तक लटकते थे, बरी बरी आँखें, गोल गोल आम के आकार की चुचियाँ जिनका साइज़ 38 से कम ना होगा, पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए चौड़े, भारी नितंब . एक बार फिर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी . इस बार मैने हिम्मत कर के भाभी से पूछ ही लिया.
" भाभी, मेरा आज एग्ज़ॅम है और आप को तो कोई चिंता ही नही थी. बिना पढ़ाए ही आप कल रात सोने चल दी"
" कैसी बातें करता है रामू, तेरी चिंता नही करूँगी तो किसकी करूँगी?"
" झूट, मेरी चिंता थी तो गयी क्यों?"
" तेरे भैया ने जो शोर मचा रखा था."
" भाभी, भैया ने क्यों शोर मचा रखा था" मैने बारे ही भोले स्वर में पूछा. भाभी शायद मेरी चालाकी समझ गयी और तिरछी नज़र से देखते हुए बोली,
" धात बदमाश, सब समझता है और फिर भी पूछ रहा है. मेरे ख्याल से तेरी अब शादी कर देनी चाहिए. बोल है कोई लड़की पसंद?"
" भाभी सच कहूँ मुझे तो आप ही बहुत अच्छी लगती हो.
" चल नालयक भाग यहाँ से और जा कर अपना एग्ज़ॅम दे."
मैं एग्ज़ॅम तो क्या देता, सारा दिन भाभी के ही बारे में सोचता रहा. पहली बार भाभी से ऐसी बातें की थी और भाभी बिल्कुल नाराज़ नही हुई. इससे मेरी हिम्मत और बढ़ने लगी. मैं भाभी का दीवाना होता जा रहा था. भाभी रोज़ रात को देर तक पढ़ाती थी . मुझे महसूस हुआ शायद भैया भाभी को महीने में दो तीन बार ही चोद्ते थे. मैं अक्सर सोचता, अगर भाभी जैसी खूबसूरत औरत मुझे मिल जाए तो दिन में चार दफे चोदु.
दीवाली के लिए भाभी को मायके जाना था. भैया ने उन्हें मायके ले जाने का कम मुझे सोन्पा क्योंकि भैया को च्छुतटी नही मिल सकी. बहुत भीड़ थी. मैं भाभी के पीछे रेलवे स्टेशन पर रिज़र्वेशन की लाइन में खड़ा था. धक्का मुक्की के कारण आदमी आदमी से सटा जा रहा था. मेरा लंड बार बार भाभी के मोटे मोटे नितंबों से रगड़ रहा था.मेरे दिल की धड़कन तेज़ होने लगी. हालाकी मुझे कोई धक्का भी नही दे रहा था, फिर भी मैं भाभी के पीछे चिपक के खड़ा था. मेरा लंड फंफना कर अंडरवेर से बाहर निकल कर भाभी के चूतरों के बीच में घुसने की कोशिश कर रहा था. भाभी ने हल्के से अपने चूतरो को पीछे की तरफ धक्का दिया जिससे मेरा लंड और ज़ोर से उनके चूतरों से रगड़ने लगा. लगता है भाभी को मेरे लंड की गर्माहट महसूस हो गयी थी और उसका हाल पता था लेकिन उन्होनें दूर होने की कोशिश नही की. भीर के कारण सिर्फ़ भाभी को ही रिज़र्वेशन मिला. ट्रेन में हम दोनो एक ही सीट पर थे. रात को भाभी के कहने पर मैने अपनी टाँगें भाभी के तरफ और उन्होने अपनी टाँगें मेरी तरफ कर लीं और इस प्रकार हम दोनो आसानी से लेट गये. रात को मेरी आँख खुली तो ट्रेन के नाइट लॅंप की हल्की हल्की रोशनी में मैने देखा, भाभी गहरी नींद में सो रही थी और उसकी सारी जांघों तक सरक गयी थी . भाभी की गोरी गोरी नंगी टाँगें और मोटी मांसल जंघें देख कर मैं अपना कंट्रोल खोने लगा. सारी का पल्लू भी एक तरफ गिरा हुआ था और बड़ी बड़ी चुचियाँ ब्लाउस में से बाहर गिरने को हो रही थी. मैं मन ही मन मनाने लगा की सारी थोड़ी और उपर उठ जाए ताकि भाभी की चूत के दर्शन कर सकूँ. मैने हिम्मत करके बहुत ही धीरे से सारी को उपर सरकाना शुरू किया. सारी अब भाभी की चूत से सिर्फ़ 2 इंच ही नीचे थी पर कम रोशनी होने के कारण मुझे यह नही समझ आ रहा था की 2इंच उपर जो कालीमा नज़र आ रही थी वो काले रंग की कछि थी या भाभी की झटें. मैने सारी को थोड़ा और उपर उठाने की जैसे ही कोशिस की, भाभी ने करवट बदली और सारी को नीचे खींच लिया. मैने गहरी सांस ली और फिर से सोने की कोशिश करने लगा.
क्रमशः.........
Mastaani hasina paart--4
Gataank se aage ......
Unhone mujhe utha ke khara kiya aur baahon mein bhar ke choom liya. Uske baad mujhe nangi hi apni baahon mein utha kar bathoom mein le gaye aur ek stool pe baitha diya. Phir meri taangen chauri karke meri choot pe pani daal ke dhone lage. Mujhe bahut sharm aa rahi thi aur dard bhi ho raha tha. Unhone khoob achhi tarah se meri jhanten aur choot saaf ki aur phir towel se pochha. Meri jhaanten suhaane ke baad bare dhyaan se meri phaili hui taangon ke beech dekhne lage. Main to sharam se pani pani ho gayi,
" Ab humen chhoriye na.. aise kya dekh rahe hain ?"
" meri jaan tum to kali se phool bun hi gayi ho lekin dekho na jub humne tumhen chodna shuru kiya tha to us waqt tumhaari choot ek bund kacchhi kali lug rahi thi. Aur ab dekho tumhaari vo kacchhi kali bikul phool ki tarah khil gayi hai. Aisa lug raha hai jaise ek bund kali ki pankhudian khul ke phail gayin hon."
Maine sharm ke mare apne munh dono haathon se dhak liya. Maine wapas bedroom mein jaane se pahle towel lapetne ki koshish ki to unhone mere haath se towel le liya aur bole,
" Tum nangi itni khoobsoorat lagti ho, towel lapetne ki kya zaroorat hai." Mujhe tangen chauri karke chalna par raha tha. Hum dono nange hi so gaye. Subah uth kar vo ek baar phir se mujhe chodna chahte the, lekin maine unse kaha ki bahut dard ho raha hai, main aur sah nahin paaungi. Is tarah main subah ki chudai se to bach gayi. Agle din hum log honeymoon pe chale gaye. Suhaag raat ki zabaradast chudai ke karan meri choot abhi tak sooji hui thi aur dard bhi kum nahin hua tha. Main abhi aur chudai ke liye tayar nahin thi, lekin kya karti. Honeymoon mein to chudai se bachane ka koi rasta nahin tha. Jis din hum Shimla pahunche, usi raat unhone mujhe char baar jum ke choda. Koi bhi meri chaal dekh ke bata sakta tha ki meri zabardast chudai ho rahi hai. Main bachane ki kaafi koshish karti, phir bhi ye moka lagte hi din mein ek ya do baar aur raat mein teen se chaar baar mujhe chodte the. 10 din ke honeymoon mein kum se kum 50 baar meri chudai hui. Honemoon se wapas aane tak meri choot itni phool gayi thi ki main khud use pahchan nahin paa rahi thi. Main yeh soch ke pareshan thi ki yadi chudai ka silsila aise hi chalta raha to bahut mushkil ho jaaega. Meri choot ko aaraam ki sakht zaroorat thi. Lekin vaisa nahin hua jaisa main sochti thi.
Honeymoon se wapas aane ke baad inka office shuru ho gaya. Ab din mein to chudai nahin ho pati thi lekin raat mein ek baar to zaroor chodte the. Ab meri choot ka dard khatam ho gaya tha aur jhijhak bhi kum ho gyi thi .Chudwane mein bahut maza aane laga tha aur choot bahut geeli ho jaati. Main bhi ab chootar uchka uchka ke khoob maze le kar chudwati thi. Meri choot itna ras chhodati ki jub ye dhakke lagate to meri choot mein se phach.. phach….phach ki awaazen aati. Main roz raat hone ka besabri se intazaar karti thi. Kabhi kabhi chhutti ke din, din mein bhi chod dete the. Main bahut khush thi. Inka lund 8 inch lumba aur achha khasa mota tha. Jub bhi chodate, ek ghante se pahle nahin jhadte the. Mera bahut dil karta tha ki Ye bhi mere saath vo sub kuchh Karen jo papa mummy ke saath karte the. Lekin Ye mujhe sirf ek hi mudra mein chodate the. Kabhi apna lund mere munh mein nahin dala or na hi meri choot ko kabhi chaata. Meri gaand ki taraf bhi kabhi dhyan nahin diya.
Pahale 6 maheene to roz raat ko ek baar chudai ho hi jaati thi. Dheere dheere hafte mein teen baar chodane lage. Shaadi ko ek saal guzarne wala tha. Chudai aur bhi kum ho gayi thi. Ab to maheene mein sirf do teen baar hi chodate the. Sub kuchh ulta ho raha tha. Jaise jaise mujhe chudwane ka shok barhne laga , inhone chodna aur bhi kum kar diya. Shaadi ke ek saal baad ye aalam tha ki meheene mein do teen baar se zyada chudai nahin hoti thi. Main roz raat bari besabri se intzar karti ki aaj chodenge lakin roz hi nirasha haath lagti. Office se bahut late aate the isliye thak jaate the. Jub kabhi chodte to poori tarah nangi bhi nahin karte, bus saari utha kar pel dete. Meri vaasna ki aag barhti jaa rahi thi. Mere pati ke paas meri pyas bujhane ka samay nahin tha.
Hamaare saath mere pati ka chhota bhai yani mera devar Ramu bhi rahata tha. Ramu ek lumba tagra sudol jawan tha. Vo college mein parhta tha aur body building bhi kiya karta tha. Main use maths parhaya karti thi. Vo meri or aakarshit tha. Hum dono mein bahut hansi mazaak chalta rahata tha. Main use kayi baar apne blouse ke under ya tangon ke beech mein jhankte hue pakar chuki thi. Mujhe maloom tha ki vo kayi baar meri panty ke darshan kar chuka tha. Ek baar jub main nahaane jaa rahi thi to usne mujhe nangi bhi dekh liya tha. Meri ek panty bhi usne chura lee thi aur us panty ke saath vo kya karta hoga ye bhi main achhi tarah jaanti thi. Hansi mazzak is hud tak barh gaya tha ki hum sub prakaar ki baaten bejhijhak karte the. Lekin main uske saath ek seema se baahar nahin jaana chaahati thi. Apne hi devar ke saath kisi tarah ka shaareerik sumbandh theek nahin tha. Lekin mera ye vichaar us din bilkul badal gaya jis din main galti se uska lund dekh baithi. Ooph kya mota aur lumba lund tha ! Jub se meri nazar uske moosal jaise lund pe pari tub se meri raaton ki neend gaayab ho gayi. Aage kya hua ye aap "Kanchan Bhabhi Part 1,2 aur 3" mein mere devar Ramu ki jubaani sun sakte hain.
Mera naam Ramu hai. Main college mein parhata hun. Meri umra ab bees saal hai. Main ek saal se apne bhaiya aur bhabhi ke saath rah raha hun. Bhaiya ek bari company mein kam karte hain. Meri bhabhi kanchan bahut hi sunder hai. Bhaiya ki shaadi ko do saal ho chuke hain. Bhabhi ki umra 24 saal hai. Main bhabhi ki bahut izzat karta hun aur voh bhi mejhe bahut chahati hai. Hum dono mein khoob dosti hai aur hansi mazak chalta rahta hai. Bhabhi parhai mein bhi meri sahayata karti hai. Voh mujhe maths parhati hai.
Ek din ki baat hai. Bhabhi mujhe parha rahi thi aur bhaiya apne kamare mein lete hue the. raat ke das baje the. Itne mein bhaiya ki awaz aai " kanchan, aur kitni der hai jaldi aao na". Bhabhi adhe mein se uthate hue boli " ramu baki kal karenge tumhare bhaiya aaj kucch jada hi utavale ho rahe hain." Yah kah kar voh jaldi se apne kamare mein chali gayi. Mujhe bhabhi ki baat kucch theek se samajh nahi aai. Kafi der tak sochata raha, phir achanak hi dimag ki tube light jali aur meri samajh mein aa gaya ki bhaiya ko kis baat ko utavala ho rahi thi. Mere dil ki dhadkan tez ho gayi. Aaj tak mere dil mein bhabhi ko le kar bure vichar nahi aye the, lekin bhabhi ke munh se utavle vali baat sun kar kucch ajeeb sa lag raha tha. Mujhe laga ki bhabhi ke munh se anayas hi yeh nikal gaya hoga. Jaise hi bhabhi ke kamare ki light bund hui mere dil ki dhakan aur tez ho gayi. Maine jaldi se apne kamare ki light bhi bund kar di aur chupke se bhabhi ke kamare ke darwaze se kaan laga kar khara ho gaya. Under se phusphusane ki awaz aa rahi thi par kucch kucch hi saaf sunai de raha tha.
" kyon ji aaj itne utavle kyon ho rahe ho?"
" meri jaan kitne din se tumne di nahi. Itna julm to na kiya karo."
"chaliye bhi,maine kab roka hai, aap hi ko phursat nahi milti. Ramu ka kal exam hai use parhana zaroori tha."
" ab srimati ji ki izazat ho to apki choot ka udghatan karun."
" hai Ram! Kaisi baten bolte ho.sharam nahi aati"
" sharm ki kya baat hai. Ab to shaadi ko do saal ho chuke hain, phir apni hi bibi ko chodne mein sharam kaisi"
" bare kharab ho. Ah..aaa..ah hai Ram….oui maaa……aaaah…… dheere karo raja abhi to sari raat baki hai"
main darwaze par aur na khara rah saka. Paseene se mere kapare bheeg chuke the. Mera lund underwear phar kar bahar aane ko tayar tha. Main jaldi se apne bister par lait gaya par sari rat bhabhi ke bare mein sochata raha. Ek pal bhi na so saka.zindagi mein pahli bar bhabhi ke bare mein soch kar mera lund
khara hua tha. Subah bhaiya office chale gaye. Main bhabhi se nazaren nahi mila pa raha tha jabaki bhabhi meri kal raat ki kartoot se bekhabar thi. Bhabhi kitchen mein kam kar rahi thi. Main bhi kitchen mein khara ho gaya. Zindagi mein pahali bar maine bhabhi ke jism ko gaur se dekha. Gora bhara hua gadaraya sa badan,lumbe ghane kale baal jo bhabhi ke ghutne tak latakte the, bari bari ankhen, gol gol aam ke akar ki chuchian jinka size 38 se kam na hoga, patli kamar aur uske neeche phailte hue chaure, bhari nitamb . ek bar phir mere dil ki dhakan barh gayi . is bar maine himmat kar ke bhabhi se pooch hi liya.
" bhabhi, mera aaj exam hai aur aap ko to koi chinta hi nahi thi. Bina parhahe hi aap kal raat sone chal di"
" kaisi baaten karata hai Ramu, teri chinta nahi karungi to kiski karungi?"
" jhoot, meri chinta thi to gayi kyon?"
" tere bhaiya ne jo shor macha rakha tha."
" bhabhi, bhaiya ne kyon shor macha rakha tha" maine bare hi bhole swar mein poocha. Bhabhi shayad meri chalaki samajh gayi aur tirchi nazar se dekhte hue boli,
" dhat badmash, sab samajhta hai aur phir bhi pooch raha hai. Mere khyal se teri ab shaadi kar deni chahiye. Bol hai koi ladki pasand?"
" bhabhi sach kahun mujhe to aap hi bahut achhi lagti ho.
" chal nalayak bhag yehan se aur ja kar apna exam de."
Main exam to kya deta, sara din bhabhi ke hi bare mein sochata raha. Pahli bar bhabhi se aisi baten ki thi aur bhabhi bilkul naraz nahi hui. Isse meri himmat aur badhane lagi. Main bhabhi ka diwana hota ja raha tha. Bhabhi roz raat ko der tak parhati thi . mujhe mahsus hua shayad bhaiya bhabhi ko maheene mein do teen bar hi chodte the. Main aksar sochta, agar bhabhi jaisi khoobsoorat aurat mujhe mil jaye to din mein char dafe chodun.
Diwali ke liye bhabhi ko mayake jana tha. Bhaiya ne unhen mayake le jane ka kam mujhe sonpa kyonki bhaiya ko chhutti nahi mil saki. Bahut bheer thi. Main bhabhi ke peeche railway station par reservation ki line mein khara tha. Dhakka mukki ke karan admi admi se sata ja raha tha. Mera lund bar bar bhabhi ke mote mote nitambon se ragar raha tha.mere dil ki dhakan tez hone lagi. Halaki mujhe koi dhakka bhi nahi de raha tha, phir bhi main bhabhi ke peeche chipak ke khara tha. Mera lund phanphana kar underwear se bahar nikal kar bhabhi ke chutaron ke beech mein ghusne ki koshish kar raha tha. Bhabhi ne halke se apne chutron ko peeche ki taraf dhakka diya jisase mera lund aur jor se unke chutaron se ragarne laga. Lagta hai bhabhi ko mere lund ki garmahat mahsus ho gayi thi aur uska haal pata tha lekin unhonen door hone ki koshish nahi ki. Bheer ke karan sirf bhabhi ko hi reservation mila. Train mein hum dono ek hi seat par the. Raat ko bhabhi ke kahne par maine apni tangen bhabhi ke taraf aur unhone apni tangen meri taraf kar lin aur is prakar hum dono asani se lait gaye. Raat ko meri ankh khuli to train ke night lamp ki halki halki roshni mein maine dekha, bhabhi gahari neend mein so rahi thi aur Uski sari janghon tak sarak gayi thi . Bhabhi ki gori gori nangi tangen aur moti mansal janghen dekh kar main apna control khone laga. Sari ka pallu bhi ek taraf gira hua tha aur bari bari chuchian blouse mein se bahar girne ko ho rahi thi. Main man hi man manane laga ki sari thori aur upar uth jaye taki bhabhi ki choot ke darshan kar sakun. Maine himmat karke bahut hi dheere se sari ko upar sarkana shuru kiya. Sari ab bhabhi ki choot se sirf 2 inch hi neeche thi par kam roshni hone ke karan mujhe yah nahi samajh aa raha tha ki 2inch upar jo kalima nazar aa rahi thi voh kale rang ki kachhi thi ya bhabhi ki jhaten. Maine sari ko thora aur upar uthane ki jaise hi koshisk ki, bhabhi ne karvat badli aur sari ko neeche kheench liya. Maine gaharee sans li aur phir se sone ki koshish karne laga.
kramashah.........
आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ , मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ .. मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,, बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ आपका दोस्त राज शर्मा (¨`·.·´¨) Always `·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving & (¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling ! `·.¸.·´ -- raj
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