हिंदी सेक्सी कहानियाँ
मस्तानी हसीना पार्ट--3
गतान्क से आगे ......
मुझे मालूम था कि ट्रेन वाली बात विकी के पेट में रहने वाली नहीं है. जैसे ही उसका दोस्त सुधीर घर पे आया दोनो में ख़ुसर पुसर शुरू हो गयी. मैं भी जानना चाहती थी कि विकी मेरे बारे में क्या बोल रहा है. मैं कान लगा कर उनकी बातें सुनने लगी.
" बहुत दिनों बाद नज़र आ रहा है विकी ?"
" हां यार, कानपुर गया था दीदी के लिए लड़का देखने."
" दिल मत तोड़ विकी. तेरी दीदी की शादी हो गयी तो मेरा दिल टूट जाएगा. किस्मत वाला होगा जो तेरी दीदी की जवानी से खेलेगा. अपनी दीदी से एक बार बात तो करवा दे. अपनी किस्मत भी आजमा लें."
"तेरी किस्मत का तो पता नही पर मेरी किस्मत ज़रूर खुल गयी."
" वो कैसे ? नंगी देख लिया या चोद ही दिया अपनी दीदी को?"
" चोदना अपनी किस्मत में कहाँ? लेकिन काफ़ी कुच्छ कर लिया."
" पूरी बात बता ना यार. पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है?"
" हाई यार क्या बताऊ, मेरा लंड तो सोच सोच के ही खड़ा हुआ जा रहा है. कानपुर से वापस आते पे सीट ना मिलने के कारण मैं और दीदी एक ही सीट पे थे. एसी 2 टीएर में साइड की सीट थी. हमने परदा डाल लिया. दीदी मेरे सामने बैठी हुई थी. उसने लहंगा पहन रखा था. पैर मोड नॉवेल पढ़ रही थी. एक दो बार टाँगें सीधी करते और मोड़ ते वक़्त उसकी टाँगों के बीच की झलक मिल गयी. गोरी गोरी जांघों के बीच में काला काला नज़र आया तो मुझे लगा की काली पॅंटी पहनी हुई है. थोरी देर में टाँगें मोड़ के घुटनों पे सिर रख के सो गयी. मैं मना रहा था कि किसी तरह मूडी हुई टाँगों में दबा लहंगा नीचे हो जाए. अचानक वोही हुआ. दीदी के लहँगे का नीचे का हिस्सा उसकी मूडी हुई टाँगों में से निकल कर गिर गया. है यार.. ! दिल पे च्छूरियँ चल गयी. गोरी गोरी मोटी मोटी जांघों के बीच में से दीदी की चूत बिल्कुल नंगी झाँक रही थी. ज़िंदगी में पहली बार किसी लड़की की चूत देखी और वो भी इतने करीब से. इतनी घनी और काली झांटें थीं. कम से कम 3 इंच लुंबी तो होंगी ही. पूरी चूत झांतों से धकि हुई थी. लेकिन क्योंकि दीदी की टाँगें मूडी हुई थी, चूत की दोनो फाँकें फैल गयी थी. ऊफ़ क्या फूली हुई चूत थी! फैली हुई फांकों के बीच में से चूत के दोनो होंठ मेरी ओर झाँक रहे थे. इतने बड़े होंठ थे जैसे तितली के पंख हों. मन कर रहा था उन होंठों को चूम लूँ. चूत के होंठों का ऊपरी सिरा इतना उभरा हुआ था मानो छ्होटा सा लंड खड़ा हो गया हो. चूत के चारों ओर के घने बॉल ऐसे चमक रहे थे जैसे चूत के रस में गीले हों. मेरी दीदी ना होती तो आगे सरक कर अपना तना हुआ लॉडा उस खूबसूरत चूत के होंठों के बीच में पेल देता."
" यार तूने तो बहुत सुन्दर मोका खो दिया. यही मोका था चोदने का."" छोड़ यार कहना आसान है. रात को दीदी जब गहरी नींद में सो रही थी तो मैने चुपके से उसका लहंगा कमर तक ऊपर सरका दिया. वो मेरी ओर पीठ किए लेटी थी. बाप रे ! क्या कातिलाना चूतेर थे. सारा शहर जिन चूतरो के पीछे मरता है वो चूतर मेरी नज़रों के सामने थे. मैं दीदी के पीछे लेट गया. हिम्मत करके मैने लूँगी में से अपना तना हुआ लॉडा निकाला और दीदी के विशाल चूतरो के बीच की दरार में सटा दिया. ट्रेन के हिचकॉलों के साथ मेरा लंड दीदी के चूतरो के बीच आगे पीछे हो रहा था. ग़ज़ब का मज़ा आ रहा था. मैने एक फोटो में एक आदमी को औरत की चूत में पीछे से भी पेलते देखा था. मैं बहुत उत्तेजित हो गया था और हल्के हल्के धक्के भी लगाने लगा था. मुझे अपने ऊपर कंट्रोल नहीं रहा और मैने तोड़ा ज़ोर से धक्का लगा दिया. इस धक्के से दीदी की आँख खुल गयी. मैने जल्दी से उसका लहंगा नीचे किया. जब वो उठ के बाथरूम गयी तो मैने देखा की मेरे लंड का सुपरे के आस पास चिपचिपा हो गया है. पता नहीं मेरा ही वीर्य था की दीदी की चूत का रस. मैने सूंघ के देखा तो वोही खुश्बू थी जो दीदी की पॅंटी से आती थी."
" वाह बेटे विकी तू तो मुझे से भी दो कदम आगे निकल गया. मैं तो दूर से ही अपनी दीदी की चूत देख के खुश हो रहा था, तूने तो अपनी दीदी की चूत पे लंड भी टीका दिया. डर क्यों गया पेल देना था."
" यार मन तो बहुत कर रहा था. लेकिन यार मेरी दीदी की चूत का छेद इतना बड़ा नहीं था जिसमे मेरा लंड घुस जाए."
" विकी तू बहुत भोला है. लड़की की चूत है ही ऐसी चीज़ जो आदमी का तो क्या घोड़े का लंड भी निगल जाती है. तू भी तो उसी छ्होटे से छेद में से बाहर निकला है.तो क्या तेरा लंड इतना बड़ा है जो उस छेद में ना जाए? लड़की की चूत होती ही चोदने के लिए. "
मैं विकी की बातें सुन के शर्म से लाल हो गयी थी और साथ में मेरी चूत भी खूब गीली हो गई थी. मेरा सगा भाई मुझे चोदने लिए पागल है यह सोच कर मैं बहुत खुश भी थी.
इस घटना के बाद से हम दोनो में हँसी मज़ाक बहुत बढ़ गया था और विकी अपना लंड मेरे जिस्म से रगड़ने का कोई मोका नहीं गँवाता था. लेकिन आज तक मुझे विकी का खड़ा हुआ लॉडा देखने का मोका नहीं मिला था. कई बार कोशिश भी की. कई बार सवेरे उसके कमरे में गयी , इस आशा से की उसके लॉड के दर्शन हो जाएँ पर किस्मत ने साथ नहीं दिया. एक दिन मोका हाथ लग ही गया. विकी मेरा टवल ले कर नहाने चला गया. उसे मालूम था कि मैं अपना टवल किसी को भी यूज़ नहीं करने देती थी. मैने उसे टवल ले जाते हुए देख लिया था लेकिन चुप रही. जैसे ही वो नहा के टवल लपट कर बाहर निकला मैं उसकी ओर झपटी और चिल्लाई,
" तूने फिर मेरा टवल ले लिया. इसी वक़्त वापस कर. खबरदार जो आगे से लिया." इससे पहले की वो संभाले मैने टवल खीच लिया. विकी एकदम नंगा हो गया.
" हाआआआअ……….. बेशरम ! तूने अंडरवेर भी नहीं पहना." मेरी आँखों के सामने विकी का मोटा किसी मंदिर के घंटे के माफिक झूलता हुआ लंड था. करीब करीब उसके घुटनों तक पहुँच रहा था. विकी का मारे शरम के बुरा हाल था. अपने हाथों से लंड को च्छुपाने की कोशिश करने लगा. लेकिन आदमी का लंड हो तो च्छूपे, ये तो घोड़े के लंड से भी बड़ा लग रहा था. बेचारा आधे लंड को ही च्छूपा पाया. मेरी चूत पे तो चीतियाँ रेंगने लगीं. हाई राम ! क्या लॉडा है. मुझे भी पसीना आ गया था. अपनी घबराहट च्छूपाते हुए बोली,
" कम से कम अंडरवेर तो पहन लिया कर, नालयक!." ओर मैने टवल दुबारा उसके ऊपर फेंक दिया. विकी जल्दी से टवल लपट कर भागा. मैं अपने प्लान की कामयाबी पे बहुत खुश थी, लेकिन जी भर के उसका लॉडा अब भी नहीं देख पाई. ये तो तभी मुमकिन था जब विकी सो रहा हो. अब मेरी हिम्मत और बढ़ गयी. अगले दिन मैं सवेरे चार बजे उठ कर विकी के कमरे में गयी. विकी गहरी नींद में सो रहा था. उसकी लूँगी जांघों तक ऊपर चढ़ि हुई थी. विकी पीठ के बल लेटा हुआ था और उसकी टाँगें फैली हुई थी. मैं दबे पावं विकी के बेड की ओर बढ़ी और बहुत ही धीरे से लूँगी को उसकी कमर के ऊपर सरका दिया. सामने का नज़ारा देख के मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी. पहली बार जब उसका लॉडा देखा था तो इतनी घबराई हुई थी कि ठीक से देख भी नहीं पाई थी. दूसरी बार जब टवल खींचा था तब भी बहुत थोरी देर ही देख पाई, लेकिन अब ना तो कोई जल्दी थी ओर ना ही कोई डर. इतनी नज़दीक से देखने को मिल रहा था. सिकुड़ी हुई हालुत में भी इतना लंबा था की पीठ पे लेटे होने के बावजूद भी लंड का सूपड़ा बिस्तेर पर टीका हुआ था. दो बड़े बड़े बॉल्स भी बिस्तेर पर टीके हुए थे. इतना मोटा था कि मेरे एक हाथ में तो नहीं आता. ऐसा लग रहा था जैसे कोई लंबा मोटा, काला नाग आराम कर रहा हो. मन कर रहा था की सहला दूं और मुँह में डाल के चूस लूँ, लेकिन क्या करती, मजबूर थी. चूत बुरी तरह से रस छ्चोड़ रही थी और पॅंटी पूरी गीली हो गयी थी. अब तो मेरा इरादा और भी पक्का हो गया कि एक दिन इस खूबसूरत लॉड का स्वाद मेरी चूत ज़रूर लेगी. मैं काफ़ी देर उसकी चारपाई के पास बैठी उस काले नाग को निहारती रही. फिर हिम्मत कर के मैने उसके पूरे लॉड को हल्के से चूमा और मोटे सुपरे को जीभ से चाट लिया. मुझे डर था की कहीं विकी की नींद ना खुल जाए. मन मार के मैं अपने कमरे में चली गयी.
जिस लड़के को देखने हम कानपुर गये थे उसके साथ मेरी शादी पक्की हो गयी. एक महीने के अंडर ही शादी करना चाहते थे. आअख़िर वो दिन भी आ गया जब मेरी डॉली उठने वाली थी. धूम धाम से शादी हुई. आख़िर वो रात भी आ गयी जिसका हर लड़की को इंतज़ार रहता है. सुहाग रात को मैं खूब सजी हुई थी. मेर गोरा बदन चंदन सा महक रहा था. दिल में एक अजीब सा डर था. मैं शादी का जोड़ा पहने पति के आने का इंतज़ार कर रही थी. तभी दरवाज़ा खुला और मेरे पति अंडर आए. मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी. हाई राम, अब क्या होगा. मुझे तो बहुत शर्म आएगी. बहुत दर्द होगा क्या. क्या मेरा बदन मेरे पति को पसंद आएगा. कहीं पूरे कपड़े तो नहीं उतार देंगे. इस तरह के ख़याल मेरे दिमाग़ में आने लगे. मेरे पति पलंग पर मेरे पास बैठ गये और मेरा घूँघट उठा के बोले,
" कंचन तुम तो बहुत ही सुन्दर लग रही हो." मैं सिर नीचे किए बैठी रही.
" कुच्छ बोलो ना मेरी जान. अब तो तुम मेरी बीवी हो. और आज की रात तो तुम्हारा ये खूबसूरत बदन भी मेरा हो जाएगा." मैं बोलती तो क्या बोलती. उन्होने मेरे मुँह को हाथों में ले कर मेरे होंठों को चूम लिया.
" ऊओफ़! क्या रसीले होंठ हैं. जिस दिन से तुम्हें देखा है उसी दिन से तुम्हें पाने के सपने देख रहा हूँ. मैने तो अपनी मा से कह दिया था कि शादी करूँगा तो सिर्फ़ इसी लड़की से."
" ऐसा क्या देखा आपने मुझमे?" मैने शरमाते हुए पूछा.
" हाई , क्या नहीं देखा. इतना खूबसूरत मासूम चेहरा. बरी बरी आँखें. लंबे काले बाल. वो कातिलाना मुस्कान. तराशा हुआ बदन. जितनी तारीफ़ करूँ उतनी कम है."
" आप तो बिकुल शायरों की तरह बोल रहे हैं. सभी लड़कियाँ मेरे जैसी ही होती हैं."
" नहीं मेरी जान सभी लड़कियाँ तुम्हारे जैसी नहीं होती. क्या सभी के पास इतनी बड़ी चूचियाँ होती हैं?" वो मेरी चूचिओ पर हाथ फिराते हुए बोले. मैं मर्द के स्पर्श से सिहर उठी.
" छ्चोड़िए ना, ये क्या कर रहे हैं.?"
" कुच्छ भी तो नहीं कर रहा. बस देख रहा हूँ कि क्या ये चूचियाँ दूसरी लड़कियो जैसी ही हैं" वो मेरी चूचिओ को दोनो हाथों से मसल रहे थे. फिर उन्होने मेरे ब्लाउस का हुक खोल कर मेरा ब्लाउस उतार दिया. अब मैं सिर्फ़ ब्रा में थी. मुझे बाहों में भर के वो मेरे होंठों को चूसने लगे और मेरी नंगी पीठ सहलाने लगे. अचानक मेरे ब्रा का हुक भी खुल गया और मेरी बड़ी बड़ी चूचियाँ आज़ाद हो गयी.
" है कंचन क्या ग़ज़ब की चुचियाँ हैं." काफ़ी देर चूचाईओं से खेलने के बाद उन्होने मेरी सारी को उतरना शुरू कर दिया. मैं घबरा गयी.
" ये, ये क्या कर रहे हैं प्लीज़ सारी मत उतारिये."
वो मुझे चूमते हुए बोले,
" मेरी जान आज तो हमारी सुहाग रात है. आज भी सारी नहीं उतरोगी तो कब उतारोगी? और बिना सारी उतारे हमारा मिलन कैसे होगा? शरमाना कैसा ? अब तो ये खूबसूरत बदन मेरा है. लड़की से औरत नहीं बनना चाहती हो.?" मेरी सारी उतर चुकी थी और मैं सिर्फ़ पेटिकोट में थी.
" लेकिन आप क्या करना चाहते हैं? ऊऊओई मा!" उनका एक हाथ पेटिकोट के ऊपर से मेरी चूत सहलाने लगा. मेरी चूत को मुट्ठी में भरते हुए बोले,
" तुम्हें औरत बनाना चाहता हूँ." ये कह कर उन्होने मेरे पेटिकोट का नारा खींच दिया. अब तो मेरे बदन पे सिर्फ़ एक पॅंटी बची थी. मुझे अपने बाहों में ले कर मेरे नितंबों को सहलाते हुए मेरी पॅंटी भी उतार दी. अब तो मैं बिल्कुल नंगी थी. शर्म के मारे मेरा बुरा हाल था. जांघों के बीच में चूत को च्छुपाने की कोशिश कर रही थी.
" बाप रे कंचन, ये झांटें हैं या जंगल.मेरा अंदाज़ा सही था. तुम्हें पहली बार देख के ही समझ गया था कि तुम्हारी टाँगों के बीच में बहुत बाल होंगे. लेकिन इतने लंबे और घने होंगे ये तो कभी सोचा भी नहीं था."
" लाइट बंद कर दीजिए प्लीज़."
" क्यों मेरी जान. इस खूबसूरत जवानी को देखने दो ना." उन्हने जल्दी से अपने कपड़े उतार दिए और बिल्कुल नंगे हो गये. उनका तना हुआ लंड देख कर मेरी साँस रुक गयी. क्या मोटा और लंबा लंड था. पहली बार मर्द का खड़ा हुआ लंड इतने पास से देखा था. उन्होने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पे रख दिया.
" देखो मेरी जान ये ही तुम्हें औरत बनाएगा. 8 इंच का है. छ्होटा तो नहीं है?"
" जी, ये तो बहुत बड़ा है" मैं घबराते हुए बोली.
" घबराव नहीं , एक कच्ची कली को फूल बनाने के लिए मोटे तगड़े लॉड की ज़रूरत होती है. सब ठीक हो जाएगा. जब ये लंड तुम्हारी इस सेक्सी चूत में जाएगा तो तुम्हे बहुत मज़ा आएगा."
" छ्ची कैसी गंदी बातें करते हैं?"
" इसमे गंदी बात क्या है? इसको लॉडा ना कहूँ और तुम्हारे टाँगों के बीच के चीज़ को चूत ना कहूँ तो और क्या कहूँ ?. पहली बार चुदवा रही हो. तीन चार बार चुदवाने के बाद तुम्हारी शरम भी दूर हो जाएगी. आओ बिस्तेर पर लेट जाओ" उन्होने मुझे बिस्तेर पे चित लिटा दिया. मेरी टाँगों के बीच में बैठ कर उन्होने मेरी टाँगों को चौड़ा कर दिया. अब तो मेरी चूत बिल्कुल नंगी हो गयी.
" ऊओफ़ कंचन! क्या फूली हुई चूत है तुम्हारी. अब तो तुम्हारे इस जंगल में मंगल होने वाला है." उन्होने मेरी टाँगें मोड़ के घुटने मेरे सीने से लगा दिए. इस मुद्रा में तो चूत की दोनो फाँकें बिल्कुल खुल गयी थी और दोनो फांकों के बीच में से चूत के गुलाबी होंठ झाँक रहे थे. वो अब मेरी फैली हुई टाँगों के बीच में मेरी चूत को और यहाँ तक की गांद के छेद को भी आसानी से और खूब अच्छी तरह से देख सकते थे. घनी झांतों को चूत पर से हटाते हुए काफ़ी देर तक मेरी जवानी को आँखों से चोदते रहे. शरम के मारे मैं पागल हुई जा रही थी. मैने दोनो हाथों से अपना चेहरा ढक लिया. किसी अजनबी के सामने इस प्रकार से चूत फैला के लेट्ना तो दूर आज तक नंगी भी नहीं हुई थी. मैं मारे शरम के पानी पानी हुई जा रही थी. इतने में उन्होने अपने तने हुए लंड का सुपरा मेरी चूत के खुले हुए होंठों के बीच छेद पे टीका दिया. मैं सिहर उठी और कस के आँखें बंद कर लीं. उन्होने हल्का सा धक्का लगा के लंड के सुपरे को मेरी चूत के होंठों के बीच फँसाने की कोशिश की.
" एयेए….ह. धीरे प्लीज़." मैं इतना ज़्यादा शर्मा गयी थी कि मेरी चूत भी ठीक से गीली नहीं थी. उन्होने दो तीन बार फिर अपना लंड चूत में घुसेरने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रहे. लेकिन उन्होने भी पूरी तैयारी कर रखी थी. पास में ही तैल का डब्बा पड़ा हुआ था. उन्होने अपना लॉडा तैल के डब्बे में डूबा दिया. अब अपने टेल में सने हुए लॉड को एक बार फिर मेरी चूत पे रख के ज़ोर का धक्का लगा दिया.
" आआआअ…………….ईईईईईईई. ऊऊऊ….फ़.ह. ऊ..ओह. बहुत दर्द हो रहा है." उनका लॉडा मेरी चूत के छेद को चौड़ा करता हुआ 2 इंच अंडर घुस चुक्का था. आज ज़िंदगी में पहली बार मेरी चूत का छेद इतना चौड़ा हुआ था.
" बस मेरी रानी, थोड़ा सा और सह लो फिर बहुत मज़ा आएगा." ये कहते हुए उन्होने लॉडा बाहर खीचा और फिर से एक ज़बरदस्त धक्का लगा दिया.
" ऊऊओिईई माआआआ………..! मर गयी………मैं. ईइसस्स्स्स्स्सस्स…….. आआआआआआ…ऊऊऊऊहह. प्ली…….से, छ्चोड़ दीजिए. और नहीं सहा जा रहा." उनका मोटा लॉडा इस धक्के के साथ शायद 4 इंच अंडर जा चुक्का था.
" अच्छा ठीक है अब कुच्छ नहीं करूँगा बस!" वो बिना कुच्छ किए मेरे होंठों का रस चूसने लगे और चूचिओ को मसल्ने लगे. जब कुछ राहत मिली और मेरा करहाना बंद हुआ तो उन्होने धीरे से लंड को पूरा बाहर खींचा और मेरी टाँगों को मेरे सीने पे दबाते हुए बिना वॉर्निंग के पूरी ताक़त से ज़ोर का धक्का लगा दिया.
" आआआआआआआऐययईईईईईईईईईईईईईई……………आआहह. ऊऊऊऊऊऊऊओह, ऊओफ़…. आआअहगह……….मुम्मय्ययययययययययययी……………मार डालाअ……छ्चोड़ दीजिए एयाया…ह प्लीईआसए….हाथ जोड़ती हूँ. ऊऊओिईईईईईईईईईईई…… माआ……." इतना भयंकर दर्द ! बाप रे ! मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी चूत के अंडर कुच्छ फॅट गया था. उनका लंड पूरा का पूरा मेरी चूत में जा चुक्का था और उनके बॉल्स मेरी गांद पे टिक गये थे. मेरी आँखों में आँसू आ गये थे. दर्द सहा नहीं जा रहा था. उन्होने मेरे होंठ चूमते हुए कहा,
" कंचन, मेरी रानी, बधाई हो. अब तुम कच्ची कली नहीं रही, फूल बुन चुकी हो." मैं कुच्छ नहीं बोली. उन्होने काफ़ी देर तक लंड को अंडर ही पेले रखा और मेरी चूचिओ और होंठों को चूमते रहे. जब दर्द थोड़ा कम हुआ तो उन्होने लॉडा पूरा बाहर खींच के पास पड़े तैल के डब्बे में फिर से डूबा दिया. उसके बाद तैल टपकता हुआ लॉडा मेरी चूत के छेद से टीका कर एक और ज़ोर आ धक्का लगा दिया. लॉडा मेरी चूत चीरता हुआ आधे से ज़्यादा धँस गया.
" आआआहा…..ईईईईईईईई. ऊऊओफ़."
" बस मेरी जान पहली बार तो थोड़ा दर्द होता ही है. इसके बाद पूरी ज़िंदगी मज़े करोगी." ये कहते हुए उन्होने धक्के लगाने शुरू कर दिए. लंड मेरी चूत में अंडर बाहर हो रहा था. दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था. मैं ज़ोर ज़ोर से कराहती जा रही थी लेकिन वो बिना परवाह किए धक्के लगाते जा रहे थे. अब तो उन्होने पूरा लंड बाहर निकाल के एक ही धक्के में जड़ तक पेलना शुरू कर दिया. मेरी चूत तो बिल्कुल चरमरा गयी थी. बहुत दर्द हो रहा था. इतने में उनके धक्के एकदम से तेज़ हो गये और अचानक ही मेरे ऊपर ढेर हो गये. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई मेरी चूत में पिचकारी चला रहा हो. वो शायद झाड़ चुके थे. थोरी देर मेरे ऊपर लेटे रहे फिर उठ के बाथरूम चले गये. मेरे अंग अंग में दर्द हो रहा था. मैने उठ के अपनी टाँगों के बीच में देखा तो बेहोश होते होते बची. मेरी चूत बुरी तरह से सूजी हुई थी और उसमे से खून और उनके वीर्य का मिश्रण निकल रहा था. बेड शीट भी खून से लाल हो गयी थी. मेरी चूत के बाल तैल, उनके वीर्य और खून से चिप चिप हो रहे थे. अपनी चूत की ये हालत देख के मैं रो पड़ी. मेरी समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ. इतने में ये बाथरूम से बाहर निकल आए. उनका लंड सिकुड के लटक रहा था लेकिन अभी भी काफ़ी ख़तरनाक लग रहा था. मुझे रोते देख मेरे पास आ कर बोले," क्या बात है कंचन ? बहुत दर्द हो रहा है?"
मेरी टाँगें चौड़ी करके मेरी चूत की हालत देख कर मुकुराते हुए बोले,
" पहली, पहली चुदाई में ऐसा ही होता है मेरी जान. मेरा लॉडा भी तुम्हारी कुँवारी चूत को चोद्ते हुए छिल गया है. आओ बाथरूम में चल के सॉफ कर लो."
क्रमशः.........
Mastaani hasina paart--3
Gataank se aage ......
Mujhe maloom tha ki train wali baat Vicky ke pait mein rahne waali nahin hai. Jaise hi uska dost Sudhir ghar pe aaya dono mein khusar pusar shuru ho gayi. Main bhi jaanana chaahati thi ki Vicky mere bare mein kya bol raha hai. Main kaan laga kar unki baaten sunane lagi.
" Bahut dinon baad nazar aa raha hai Vicky ?"
" Haan yaar, Kanpur gaya tha didi ke liye ladka dekhne."
" Dil mut tor Vicky. Teri didi ki shaadi ho gayi to mera dil toot jaaega. Kismat wala hoga jo teri didi ki jawani se khelega. Apni didi se ek baar baat to karwa de. Apni kismat bhi aajma len."
"Teri kismat ka to pata nahi par meri kismat zaroor khul gayi."
" Vo kaise ? nangi dekh liya ya chod hi diya apni didi ko?"
" Chodna apni kismat mein kahan? Lekin kaafi kuchh kar liya."
" Poori baat bata na yaar. Pahelian kyon bujha raha hai?"
" Hai Yaar kya bataaon, mera lund to soch soch ke hi khada hua jaa raha hai. Kanpur se waapas aate pe seat na milne ke kaaran main aur didi ek hi seat pe the. Ac 2 tier mein side ki seat thi. Humne parda daal liya. Didi mere saamne baithi hui thi. Usne lehanga pahan rakha tha. Pair more novel parh rahi thi. Ek do baar taangen seedhee karte aur morte waqt uski taangon ke beech ki jhalak mil gayi. Gori gori jaanghon ke beech mein kaala kaala nazar aaya to mujhe laga ki kaali panty pahni hui hai. Thori der mein taangen mor ke ghutnon pe sir rakh ke so gayi. Main mana rha tha ki kisi tarah muri hui taangon mein daba lehanga neeche ho jaae. Achanak vohi hua. Didi ke lehange ka neeche ka hissa uski muri hui taangon mein se nikal kar gir gaya. Hai yaar.. ! dil pe chhurian chal gayi. Gori gori moti moti janghon ke beech mein se didi ki choot bilkul nangi jhank rahi thi. Zindagi mein pahli baar kisi ladki ki choot dekhi aur vo bhi itne kareeb se. Itni ghani aur kaali jhanten thin. Kum se kum 3 inch lumbi to hongi hi. Poori choot jhanton se dhaki hui thi. Lekin kyonki didi ki tangen mori hui thi, choot ki dono phanken phail gayi thi. Ooph kya phooli hui choot thi! Phaili hui phankon ke beech mein se choot ke dono honth meri or jhank rahe the. Itne bare honth the jaise titli ke pankh hon. Mun kar raha tha un honthon ko choom lun. Choot ke honthon ka oopri sira itna ubhra hua tha mano chhota sa lund khara ho gaya ho. Choot ke chaaron or ke ghane baal aise chamak rahe the jaise choot ke ras mein geele hon. Meri didi na hoti to aage sarak kar apna tana hua lauda us khoobsoorat choot ke honthon ke beech mein pail deta."
" Yaar tune to bahut sunder moka kho diya. Yehi moka tha chodne ka."" Chhor yaar kahna aasan hai. Raat ko didi jub gahri neend mein so rahi thi to maine chupke se uska lehanga kamar tak oopar sarka diya. Vo meri or peeth kiye laiti thi. Baap re ! kya kaatilana chooter the. Sara shahar jin chootron ke peeche marta hai vo chootar meri nazron ke saamne the. Main didi ke peeche lait gaya. Himmat karke maine lungi mein se apna tana hua lauda nikaala aur didi ke vishaal chootron ke beech ki daraar mein sata diya. Train ke hichkolon ke saath mera lund didi ke chootron ke beech aage peeche ho raha tha. Gazab ka mazaa aa raha tha. Maine ek photo mein ek aadmi ko aurat ki choot mein peeche se bhi pelte dekha tha. Main bahut uttejit ho gaya tha aur halke halke dhakke bhi lagane laga tha. Mujhe apne oopar control nahin raha aur maine thora zor se dhakka laga diya. Is dhakke se didi ki aankh khul gayi. Maine jaldi se uska lehanga neeche kiya. Jub vo uth ke bathroom gayi to maine dekha ki mere lund ka supare ke aas paas chipchipa ho gaya hai. Pata nahin mera hi veerya tha ki didi ki choot ka ras. Maine soongh ke dekha to vohi khushboo thi jo didi ki panty se aati thi."
" Wah bete Vicky tu to mujhe se bhi do kadam aage nikal gaya. Main to door se hi apni didi ki choot dekh ke khush ho raha tha, tune to apni didi ki choot pe lund bhi tika diya. Darr kyon gaya pail dena tha."
" Yaar mun to bahut kar raha tha. Lekin yaar meri didi ki choot ka chhed itna bara nahin tha jisme mera lund ghus jaae."
" Vicky tu bahut bhola hai. Ladki ki choot hai hi aisi cheese jo aadmi ka to kya ghore ka lund bhi nigal jaati hai. Tu bhi to usi chhote se chhed mein se baahar nikla hai.To kya tera lund itna bara hai jo us chhed mein na jaae? Ladki ki choot hoti hi chodne ke liye. "
Main Vicky ki baaten sun ke sharm se laal ho gayi thi aur saath mein meri choot bhi khoob geeli ho gyi thi. Mera saga bhai mujhe chodne ke liye paagal hai yah soch kar main bahut khush bhi thi.
Is ghatna ke baad se hum dono mein hansi mazaak bahut barh gaya tha aur Vicky apna lund mere jism se ragarne ka koi moka nahin ganwata tha. Lekin aaj tak mujhe Vicky ka khada hua lauda dekhne ka moka nahin mila tha. Kai baar koshish bhi kee. Kai baar savere uske kamre mein gayi , is aasha se ki uske laude ke darshan ho jaen par kismat ne saath nahin diya. Ek din moka haath lug hee gaya. Vicky mera towel le kar nahaane chala gaya. Use maloom tha ki main apna towel kisi ko bhi use nahin karne deti thi. Maine use towel le jaate hue dekh liya tha lekin chup rahi. Jaise hi vo naha ke towel lapait kar baahar nikla main uski or jhapti aur chillayi,
" Tune phir mera towel le liya. Isee waqt waapas kar. Khabardaar jo aage se liya." Isase pahale ki vo sambhale maine towel kheech liya. Vicky ekdum nanga ho gaya.
" Haaaaaaaaa……….. Besharam ! Tune underwear bhi nahin pahna." Meri aankhon ke saamne Vicky ka mota kisi mandir ke ghante ke maafik jhoolta hua lund tha. Kareeb kareeb uske ghutnon tak pahunch raha tha. Vicky ka maare sharam ke bura haal tha. Apne haathon se lund ko chhupane ki koshish karne laga. Lekin aadmi ka lund ho to chhupe, Ye to ghore ke lund se bhi bara lag raha tha. Bechara aadhe lund ko hee chhupa paya. Meri choot pe to cheetiyan rengne lagin. Hai Ram ! Kya lauda hai. Mujhe bhi paseena aa gaya tha. Apni ghabaraahat chhupate hue boli,
" Kum se kum underwear to pahan liya kar, naalayak!." Or maine towel dubaara uske oopar phenk diya. Vicky jaldi se towel lapait kar bhaaga. Main apne plan ki kaamyaabi pe bahut khush thi, lekin jee bhar ke uska lauda ab bhi nahin dekh paayi. Ye to tabhi mumkin tha jub Vicky so raha ho. Ab meri himmat aur barh gayi. Agle din main savere chaar baje uth kar Vicky ke kamre mein gayi. Vicky gahri neend mein so raha tha. Uski lungi janghon tak oopar chadi hui thi. Vicky peeth ke bal laita hua tha aur uski tangen phaili hui thi. Main dabe paon Vicky ke bed ki or barhi aur bahut hee dheere se lungi ko uski kamar ke oopar sarka diya. Saamne ka nzaara dekh ke meri aankhen phati ki phati rah gayi. Pahli baar jub uska lauda dekha tha to itni ghabrai hui thi ki theek se dekh bhi nahin paayi thi. Doosri baar jub towel kheencha tha tub bhi bahut thori der hee dekh paayi, lekin ab na to koi jaldi thi or na hi koi darr. Itni nazdeek se dekhne ko mil raha tha. Sikudi hui haalut mein bhi itna lumba tha ki peeth pe laite hone ke baavjood bhi lund ka supada bister per tika hua tha. Do bare bare balls bhi bister per tike hue the. Itna mota tha ki mere ek haath mein to nahin aata. Aisa lug raha tha jaise koi lumba mota, kala naag aaraam kar raha ho. Mun kar raha tha ki sahla dun aur munh mein daal ke choos lun, lekin kya karti, majboor thi. Choot buri tarah se rus chhod rahi thi aur panty poori geeli ho gayi thi. Ab to mera irada aur bhi pucca ho gaya ki ek din is khoobsoorat laude ka swad meri choot zaroor legi. Main kaafi der uski charpayi ke paas baithi us kale naag ko niharti rahi. Phir himmat kar ke maine uske poore laude ko halke se chooma aur mote supare ko jeebh se chat liya. Mujhe darr tha ki kahin Vicky ki neend na khul jaae. Mun maar ke main apne kamre mein chali gayi.
Jis ladke ko dekhne hum Kanpur gaye the uske saath meri shaadi pukki ho gayi. Ek maheene ke under hee shaadi karna chaahate the. Aaakhir vo din bhi aa gaya jub meri doli uthne wali thi. Dhoom dham se shaadi hui. Aakhir vo raat bhi aa gayi jiska her ladki ko intzaar rahta hai. Suhaag raat ko main khoob jaji hui thi. Mer gora badan chandan sa mahak raha tha. Dil mein ek ajeeb sa darr tha. Main shaadi ka joda pahane pati ke aane ka intzaar kar rahi thi. Tabhi darwaza khula aur mere pati under aae. Mere dil ki dhadkan barh gayi. Hai Ram, ab kya hoga. Mujhe to bahut sharm aaegi. Bahut dard hoga kya. Kya mera badan mere pati ko pasand aaega. Kahin poore kapre to nahin utar denge. Is tarah ke khayaal mere dimaag mein aane lage. Mere pati palang par mere paas baith gaye aur mera ghoonghat utha ke bole,
" Kanchan tum to bahut hee sunder lug rahi ho." Main sir neeche kiye baithi rahi.
" Kuchh bolo na meri jaan. Ab to tum meri biwi ho. Aur aaj ki raat to tumhara ye khoobsoorat badan bhi mera ho jaaega." Main bolti to kya bolti. Unhone mere munh ko haathon mein le kar mere honthon ko choom liya.
" Oooph! Kya raseele honth hain. Jis din se tumhen dekha hai usi din se tumhen pane ke sapne dekh raha hun. Maine to apni maa se kah diya tha ki shaadi karunga to sirf isi ladki se."
" Aisa kya dekha aapne mujhme?" Maine sharmaate hue poocha.
" Hai , kya nahin dekha. Itna khoobsoorat masoom chehra. Bari bari aankhen. Lumbe kale baal. Vo katilana muskaan. Tarasha hua badan. Jitni taareef karun utni kum hai."
" Aap to bikul shaayaron ki tarah bol rahe hain. Sabhi ladkian mere jaisi hi hoti hain."
" Nahin meri jaan sabhi ladkian tumhaare jaisi nahin hoti. Kya sabhi ke paas itni bari choochian hoti hain?" Vo meri choochion per haath pharte hue bole. Main mard ke sparsh se sihar uthi.
" Chhodiye na, ye kya kar rahe hain.?"
" Kuchh bhi to nahin kar raha. Bus dekh raha hun ki kya ye choochian doosri ladkion jaisi hi hain" Vo meri choochion ko dono haathon se masal rahe the. Phir unhone mere blouse ka hook khol kar mera blouse utar diya. Ab main sirf bra mein thi. Mujhe baahon mein bhar ke Vo mere honthon ko choosne lage aur meri nangi peeth sahlane lage. Achanak mere bra ka hook bhi khul gaya aur meri bari bari choochian azad ho gayi.
" Hai Kanchan kya gazab ki chuchian hain." Kaafi der choochaion se khelne ke baad unhone meri saari ko utarna shuru kar diya. Main ghabra gayi.
" Ye, ye kya kar rahe hain please saari mut utariye."
Vo mujhe choomte hue bole,
" Meri jaan aaj to humaari suhaag raat hai. Aaj bhi saari nahin utarogi to kub utarogi? Aur bina saari utare humaara Milan kaise hoga? Sharmana kaisa ? ab to ye khoobsoorat badan mera hai. Ladki se aurat nahin banana chaahati ho.?" Meri saari utar chuki thi aur main sirf petticoat mein thi.
" Lekin aap kya karna chaahate hain? Oooooii maa!" Unka ek haath petticoat ke oopar se meri choot sahlane laga. Meri choot ko muthi mein bharte hue bole,
" Tumhen aurat banana chaahata hun." Ye kah kar unhone mere pittcoat ka nara kheench diya. Ab to mere badan pe sirf ek panty bachi thi. Mujhe apne bahon mein le kar mere nitambon ko sahalate hue meri panty bhi utar dee. Ab to main bilkul nangi thi. Sharm ke mare mera bura haal tha. Jaanghon ke beech mein choot ko chhupaane ki koshish kar rahi thi.
" Baap Re Kanchan, ye jhanten hain ya jungle.Mera andaaza sahi tha. Tumhen pahli baar dekh ke hi samazh gaya tha ki tumhari taangon ke beech mein bahut baal honge. Lekin itne lumbe aur ghane honge ye to kabhi socha bhi nahin tha."
" Light bund kar dijiye please."
" Kyon meri jaan. Is khoobsoorat jawani ko dekhne do na." Unhne jaldi se apne kapre utar diye aur bilkul nange ho gaye. Unka tana hua lund dekh kar meri saans ruk gayi. Kya mota aur lumba lund tha. Pahli baar mard ka khada hua lund itne paas se dekha tha. Unhone mera haath pakar kar apne lund pe rakh diya.
" Dekho meri jaan Ye hi tumhen aurat banayega. 8 inch ka hai. Chhota to nahin hai?"
" Jee, ye to bahut bara hai" Main ghabraate hue boli.
" Ghabrao nahin , ek kachhi kali ko phool babaane ke liye mote tagare laude ki zaroorat hoti hai. Sub theek ho jaaega. Jub ye lund tumhari is sexy choot mein jaaega to tumhnen bahut mazaa aaega."
" Chhee kaisi gandi baaten karte hain?"
" Isme gandi baat kya hai? Isko lauda na kahun aur tumhare taangon ke beech ke cheese ko choot na kahun to aur kya kahun ?. Pahli baar chudwa rahi ho. Teen chaar baar chudwaane ke baad tumhari sharam bhi door ho jaaegi. Aao bister par lait jaao" Unhone mujhe bister pe chit lita diya. Meri taangon ke beech mein baith kar unhone meri taangon ko chaura kar diya. Ab to meri choot bilkul nangi ho gayi.
" Oooph Kanchan! Kya phooli hui choot hai tumhaari. Ab to tumhare is jungle mein mangal hone wala hai." Unhone meri taangen mor ke ghutne mere seene se laga diye. Is mudra mein to choot ki dono phanken bilkul khul gayi thi aur dono phankon ke beech mein se choot ke gulaabi honth jhank rahe the. Vo ab meri phaili hui tangon ke beech mein meri choot ko aur yehan tak ki gaand ke chhed ko bhi asani se aur khoob achhi tarah se dekh sakte the. Ghani jhanton ko choot par se hatate hue kaafi der tak meri jawani ko aankhon se chodate rahe. Sharam ke mare main pagal hui jaa rahi thi. Maine dono haathon se apna chehra dhak liya. Kisi ajnabi ke saamne is prakar se choot phaila ke laitna to door aaj tak nangi bhi nahin hui thi. Main mare sharam ke pani pani hui jaa rahi thi. Itne mein unhone apne tane hue lund ka supara meri choot ke khule hue honthon ke beech chhed pe tika diya. Main sihar uthi aur kus ke aankhen bund kar lin. Unhone halka sa dhaaka laga ke lund ke supare ko meri choot ke honthon ke beech phansane ki koshish kee.
" Aaa….hh. Dheere please." Main itna zyada Sharma gayi thi ki meri choot bhi theek se geeli nahin thi. Unhone do teen baar phir apna lund choot mein ghuserne ki koshish kee, lekin naakaamyaab rahe. Lekin unhone bhi poori tayari kar rakhi thi. Paas mein hi tail ka dabba para hua tha. Unhone apna lauda tail ke dabbe mein duba diya. Ab apne tail mein sane hue laude ko ek baar phir meri choot pe rakh ke zor ka dhakka laga diya.
" Aaaaaaa…………….iiiiiiii. oooooo….phhh.hh. ooh..ohhhhhh. Bahut dard ho raha hai." Unka lauda meri choot ke chhed ko chaura karta hua 2 inch under ghus chukka tha. Aaj zindagi mein pahli baar meri choot ka chhed itna chaura hua tha.
" Bus meri raani, thora sa aur sah lo phir bahut maza aaega." Ye kahate hue unhone lauda baahar kheeencha aur phir se ek zabardast dhakka laga diya.
" Oooooiiiii maaaaaaaa………..! mar gayi………main. Iisssssssss…….. aaaaaaaaaaaa…oooooooohhhhhh. Plea…….se, chhod dijiye. Aur nahin saha jaa raha." Unka mota lauda is dhakke ke saath shayad 4 inch under jaa chukka tha.
" Achha theek hai ab kuchh nahin karunga bus!" Vo bina kuchh kiye mere honthon ka ras choosne lage aur choochion ko masalne lage. Jub kuch raahat mili aur mera karhaana bund hua to unhone dheere se lund ko poora baahar kheencha aur meri tangon ko mere seene pe dabaate hue bina warning ke poori taakat se zor ka dhakka laga diya.
" Aaaaaaaaaaaaaaaiiiiiiiiiiiiiiiii……………aaaahhhhh. Ooooooooooooooohhhhhhhhhhh, ooophhh…. Aaaaahhghhhh……….mummyyyyyyyyyyyyyy……………maar daalaaa……Chhod dijiye aaaaa…hh pleeeeeease….haath jodti hun. Oooooiiiiiiiiiiiiii…… maaa……." Itna bhayankar dard ! Baap Re ! Mujhe aisa laga jaise meri choot ke under kuchh phat gaya tha. Unka lund poora ka poora meri choot mein jaa chukka tha aur unke balls meri gaand pe tik gaye the. Meri aankhon mein aansoo aa gaye the. Dard saha nahin jaa raha tha. Unhone mere honth choomte hue kaha,
" Kanchan, meri raani, badhayi ho. Ab tum kachhi kali nahin rahi, phool bun chuki ho." Main kuchh nahin boli. Unhone kaafi der tak lund ko under hi pele rakha aur meri choochion aur honthon ko choomte rahe. Jub dard thora kum hua to unhone lauda poora baahar kheench ke paas pare tail ke dabbe mein phir se duba diya. Uske baad tail tapkata hua lauda meri choot ke chhed se tika kar ek aur zor a dhakka laga diya. Lauda meri choot cheerta hua aadhe se zyada dhans gaya.
" Aaaaahaa…..iiiiiiiii. oooooph."
" Bus meri jaan pahli baar to thora dard hota hi hai. Iske baad pooi zindagi maze karogi." Ye kahte hue unhone dhakke lagane shuru kar diye. Lund meri choot mein under baahar ho raha tha. Dard kum hone ka naam nahin le raha tha. Main zor zor se kahraati jaa rahi thi lekin Vo bina parwah kiye dhakke lagate jaa rahe the. Ab to unhone poora lund baahar nikal ke ek hi dhakke mein jar tak pelna shuru kar diya. Meri choot to bilkul charmara gayi thi. Bahut dard ho raha tha. Itne mein unke dhakke ekdum se tez ho gaye aur achanak hi mere oopar dher ho gaye. Mujhe aisa mahsoos ho raha tha jaise koi meri choot mein pichkari chala raha ho. Vo shayad jhar chuke the. Thori der mere oopar laite rahe phir uth ke bathroom chale gaye. Mere ang ang mein dard ho raha tha. Maine uth ke apni taangon ke beech mein dekha to behosh hote hote bachi. Meri choot buri tarah se sooji hui thi aur usme se khoon aur unke veerya ka mishran nikal raha tha. Bed sheet bhi khoon se laal ho gayi thi. Meri choot ke baal tail, unke veerya aur khoon se chip chip ho rahe the. Apni choot ki ye haalat dekh ke main ro pari. Meri samazh nahin aa raha tha ki main kya karun. Itne mein ye bathroom se baahar nikal aae. Unka lund sikud ke latak raha tha lekin abhi bhi kaafi khatarnaak lag raha tha. Mujhe rote dekh mere paas aa kar bole," Kya baat hai Kanchan ? Bahut dard ho raha hai?"
Meri tangen chauri karke meri choot ki haalat dekh kar mukurate hue bole,
" Pahli, pahli chudai mein aisa hi hota hai meri jaan. Mera lauda bhi tumhari kunwari choot ko chodte hue chhil gaya hai. Aao bathroom mein chal ke saaf kar lo."
kramashah.........
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मस्तानी हसीना पार्ट--3
गतान्क से आगे ......
मुझे मालूम था कि ट्रेन वाली बात विकी के पेट में रहने वाली नहीं है. जैसे ही उसका दोस्त सुधीर घर पे आया दोनो में ख़ुसर पुसर शुरू हो गयी. मैं भी जानना चाहती थी कि विकी मेरे बारे में क्या बोल रहा है. मैं कान लगा कर उनकी बातें सुनने लगी.
" बहुत दिनों बाद नज़र आ रहा है विकी ?"
" हां यार, कानपुर गया था दीदी के लिए लड़का देखने."
" दिल मत तोड़ विकी. तेरी दीदी की शादी हो गयी तो मेरा दिल टूट जाएगा. किस्मत वाला होगा जो तेरी दीदी की जवानी से खेलेगा. अपनी दीदी से एक बार बात तो करवा दे. अपनी किस्मत भी आजमा लें."
"तेरी किस्मत का तो पता नही पर मेरी किस्मत ज़रूर खुल गयी."
" वो कैसे ? नंगी देख लिया या चोद ही दिया अपनी दीदी को?"
" चोदना अपनी किस्मत में कहाँ? लेकिन काफ़ी कुच्छ कर लिया."
" पूरी बात बता ना यार. पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है?"
" हाई यार क्या बताऊ, मेरा लंड तो सोच सोच के ही खड़ा हुआ जा रहा है. कानपुर से वापस आते पे सीट ना मिलने के कारण मैं और दीदी एक ही सीट पे थे. एसी 2 टीएर में साइड की सीट थी. हमने परदा डाल लिया. दीदी मेरे सामने बैठी हुई थी. उसने लहंगा पहन रखा था. पैर मोड नॉवेल पढ़ रही थी. एक दो बार टाँगें सीधी करते और मोड़ ते वक़्त उसकी टाँगों के बीच की झलक मिल गयी. गोरी गोरी जांघों के बीच में काला काला नज़र आया तो मुझे लगा की काली पॅंटी पहनी हुई है. थोरी देर में टाँगें मोड़ के घुटनों पे सिर रख के सो गयी. मैं मना रहा था कि किसी तरह मूडी हुई टाँगों में दबा लहंगा नीचे हो जाए. अचानक वोही हुआ. दीदी के लहँगे का नीचे का हिस्सा उसकी मूडी हुई टाँगों में से निकल कर गिर गया. है यार.. ! दिल पे च्छूरियँ चल गयी. गोरी गोरी मोटी मोटी जांघों के बीच में से दीदी की चूत बिल्कुल नंगी झाँक रही थी. ज़िंदगी में पहली बार किसी लड़की की चूत देखी और वो भी इतने करीब से. इतनी घनी और काली झांटें थीं. कम से कम 3 इंच लुंबी तो होंगी ही. पूरी चूत झांतों से धकि हुई थी. लेकिन क्योंकि दीदी की टाँगें मूडी हुई थी, चूत की दोनो फाँकें फैल गयी थी. ऊफ़ क्या फूली हुई चूत थी! फैली हुई फांकों के बीच में से चूत के दोनो होंठ मेरी ओर झाँक रहे थे. इतने बड़े होंठ थे जैसे तितली के पंख हों. मन कर रहा था उन होंठों को चूम लूँ. चूत के होंठों का ऊपरी सिरा इतना उभरा हुआ था मानो छ्होटा सा लंड खड़ा हो गया हो. चूत के चारों ओर के घने बॉल ऐसे चमक रहे थे जैसे चूत के रस में गीले हों. मेरी दीदी ना होती तो आगे सरक कर अपना तना हुआ लॉडा उस खूबसूरत चूत के होंठों के बीच में पेल देता."
" यार तूने तो बहुत सुन्दर मोका खो दिया. यही मोका था चोदने का."" छोड़ यार कहना आसान है. रात को दीदी जब गहरी नींद में सो रही थी तो मैने चुपके से उसका लहंगा कमर तक ऊपर सरका दिया. वो मेरी ओर पीठ किए लेटी थी. बाप रे ! क्या कातिलाना चूतेर थे. सारा शहर जिन चूतरो के पीछे मरता है वो चूतर मेरी नज़रों के सामने थे. मैं दीदी के पीछे लेट गया. हिम्मत करके मैने लूँगी में से अपना तना हुआ लॉडा निकाला और दीदी के विशाल चूतरो के बीच की दरार में सटा दिया. ट्रेन के हिचकॉलों के साथ मेरा लंड दीदी के चूतरो के बीच आगे पीछे हो रहा था. ग़ज़ब का मज़ा आ रहा था. मैने एक फोटो में एक आदमी को औरत की चूत में पीछे से भी पेलते देखा था. मैं बहुत उत्तेजित हो गया था और हल्के हल्के धक्के भी लगाने लगा था. मुझे अपने ऊपर कंट्रोल नहीं रहा और मैने तोड़ा ज़ोर से धक्का लगा दिया. इस धक्के से दीदी की आँख खुल गयी. मैने जल्दी से उसका लहंगा नीचे किया. जब वो उठ के बाथरूम गयी तो मैने देखा की मेरे लंड का सुपरे के आस पास चिपचिपा हो गया है. पता नहीं मेरा ही वीर्य था की दीदी की चूत का रस. मैने सूंघ के देखा तो वोही खुश्बू थी जो दीदी की पॅंटी से आती थी."
" वाह बेटे विकी तू तो मुझे से भी दो कदम आगे निकल गया. मैं तो दूर से ही अपनी दीदी की चूत देख के खुश हो रहा था, तूने तो अपनी दीदी की चूत पे लंड भी टीका दिया. डर क्यों गया पेल देना था."
" यार मन तो बहुत कर रहा था. लेकिन यार मेरी दीदी की चूत का छेद इतना बड़ा नहीं था जिसमे मेरा लंड घुस जाए."
" विकी तू बहुत भोला है. लड़की की चूत है ही ऐसी चीज़ जो आदमी का तो क्या घोड़े का लंड भी निगल जाती है. तू भी तो उसी छ्होटे से छेद में से बाहर निकला है.तो क्या तेरा लंड इतना बड़ा है जो उस छेद में ना जाए? लड़की की चूत होती ही चोदने के लिए. "
मैं विकी की बातें सुन के शर्म से लाल हो गयी थी और साथ में मेरी चूत भी खूब गीली हो गई थी. मेरा सगा भाई मुझे चोदने लिए पागल है यह सोच कर मैं बहुत खुश भी थी.
इस घटना के बाद से हम दोनो में हँसी मज़ाक बहुत बढ़ गया था और विकी अपना लंड मेरे जिस्म से रगड़ने का कोई मोका नहीं गँवाता था. लेकिन आज तक मुझे विकी का खड़ा हुआ लॉडा देखने का मोका नहीं मिला था. कई बार कोशिश भी की. कई बार सवेरे उसके कमरे में गयी , इस आशा से की उसके लॉड के दर्शन हो जाएँ पर किस्मत ने साथ नहीं दिया. एक दिन मोका हाथ लग ही गया. विकी मेरा टवल ले कर नहाने चला गया. उसे मालूम था कि मैं अपना टवल किसी को भी यूज़ नहीं करने देती थी. मैने उसे टवल ले जाते हुए देख लिया था लेकिन चुप रही. जैसे ही वो नहा के टवल लपट कर बाहर निकला मैं उसकी ओर झपटी और चिल्लाई,
" तूने फिर मेरा टवल ले लिया. इसी वक़्त वापस कर. खबरदार जो आगे से लिया." इससे पहले की वो संभाले मैने टवल खीच लिया. विकी एकदम नंगा हो गया.
" हाआआआअ……….. बेशरम ! तूने अंडरवेर भी नहीं पहना." मेरी आँखों के सामने विकी का मोटा किसी मंदिर के घंटे के माफिक झूलता हुआ लंड था. करीब करीब उसके घुटनों तक पहुँच रहा था. विकी का मारे शरम के बुरा हाल था. अपने हाथों से लंड को च्छुपाने की कोशिश करने लगा. लेकिन आदमी का लंड हो तो च्छूपे, ये तो घोड़े के लंड से भी बड़ा लग रहा था. बेचारा आधे लंड को ही च्छूपा पाया. मेरी चूत पे तो चीतियाँ रेंगने लगीं. हाई राम ! क्या लॉडा है. मुझे भी पसीना आ गया था. अपनी घबराहट च्छूपाते हुए बोली,
" कम से कम अंडरवेर तो पहन लिया कर, नालयक!." ओर मैने टवल दुबारा उसके ऊपर फेंक दिया. विकी जल्दी से टवल लपट कर भागा. मैं अपने प्लान की कामयाबी पे बहुत खुश थी, लेकिन जी भर के उसका लॉडा अब भी नहीं देख पाई. ये तो तभी मुमकिन था जब विकी सो रहा हो. अब मेरी हिम्मत और बढ़ गयी. अगले दिन मैं सवेरे चार बजे उठ कर विकी के कमरे में गयी. विकी गहरी नींद में सो रहा था. उसकी लूँगी जांघों तक ऊपर चढ़ि हुई थी. विकी पीठ के बल लेटा हुआ था और उसकी टाँगें फैली हुई थी. मैं दबे पावं विकी के बेड की ओर बढ़ी और बहुत ही धीरे से लूँगी को उसकी कमर के ऊपर सरका दिया. सामने का नज़ारा देख के मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी. पहली बार जब उसका लॉडा देखा था तो इतनी घबराई हुई थी कि ठीक से देख भी नहीं पाई थी. दूसरी बार जब टवल खींचा था तब भी बहुत थोरी देर ही देख पाई, लेकिन अब ना तो कोई जल्दी थी ओर ना ही कोई डर. इतनी नज़दीक से देखने को मिल रहा था. सिकुड़ी हुई हालुत में भी इतना लंबा था की पीठ पे लेटे होने के बावजूद भी लंड का सूपड़ा बिस्तेर पर टीका हुआ था. दो बड़े बड़े बॉल्स भी बिस्तेर पर टीके हुए थे. इतना मोटा था कि मेरे एक हाथ में तो नहीं आता. ऐसा लग रहा था जैसे कोई लंबा मोटा, काला नाग आराम कर रहा हो. मन कर रहा था की सहला दूं और मुँह में डाल के चूस लूँ, लेकिन क्या करती, मजबूर थी. चूत बुरी तरह से रस छ्चोड़ रही थी और पॅंटी पूरी गीली हो गयी थी. अब तो मेरा इरादा और भी पक्का हो गया कि एक दिन इस खूबसूरत लॉड का स्वाद मेरी चूत ज़रूर लेगी. मैं काफ़ी देर उसकी चारपाई के पास बैठी उस काले नाग को निहारती रही. फिर हिम्मत कर के मैने उसके पूरे लॉड को हल्के से चूमा और मोटे सुपरे को जीभ से चाट लिया. मुझे डर था की कहीं विकी की नींद ना खुल जाए. मन मार के मैं अपने कमरे में चली गयी.
जिस लड़के को देखने हम कानपुर गये थे उसके साथ मेरी शादी पक्की हो गयी. एक महीने के अंडर ही शादी करना चाहते थे. आअख़िर वो दिन भी आ गया जब मेरी डॉली उठने वाली थी. धूम धाम से शादी हुई. आख़िर वो रात भी आ गयी जिसका हर लड़की को इंतज़ार रहता है. सुहाग रात को मैं खूब सजी हुई थी. मेर गोरा बदन चंदन सा महक रहा था. दिल में एक अजीब सा डर था. मैं शादी का जोड़ा पहने पति के आने का इंतज़ार कर रही थी. तभी दरवाज़ा खुला और मेरे पति अंडर आए. मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी. हाई राम, अब क्या होगा. मुझे तो बहुत शर्म आएगी. बहुत दर्द होगा क्या. क्या मेरा बदन मेरे पति को पसंद आएगा. कहीं पूरे कपड़े तो नहीं उतार देंगे. इस तरह के ख़याल मेरे दिमाग़ में आने लगे. मेरे पति पलंग पर मेरे पास बैठ गये और मेरा घूँघट उठा के बोले,
" कंचन तुम तो बहुत ही सुन्दर लग रही हो." मैं सिर नीचे किए बैठी रही.
" कुच्छ बोलो ना मेरी जान. अब तो तुम मेरी बीवी हो. और आज की रात तो तुम्हारा ये खूबसूरत बदन भी मेरा हो जाएगा." मैं बोलती तो क्या बोलती. उन्होने मेरे मुँह को हाथों में ले कर मेरे होंठों को चूम लिया.
" ऊओफ़! क्या रसीले होंठ हैं. जिस दिन से तुम्हें देखा है उसी दिन से तुम्हें पाने के सपने देख रहा हूँ. मैने तो अपनी मा से कह दिया था कि शादी करूँगा तो सिर्फ़ इसी लड़की से."
" ऐसा क्या देखा आपने मुझमे?" मैने शरमाते हुए पूछा.
" हाई , क्या नहीं देखा. इतना खूबसूरत मासूम चेहरा. बरी बरी आँखें. लंबे काले बाल. वो कातिलाना मुस्कान. तराशा हुआ बदन. जितनी तारीफ़ करूँ उतनी कम है."
" आप तो बिकुल शायरों की तरह बोल रहे हैं. सभी लड़कियाँ मेरे जैसी ही होती हैं."
" नहीं मेरी जान सभी लड़कियाँ तुम्हारे जैसी नहीं होती. क्या सभी के पास इतनी बड़ी चूचियाँ होती हैं?" वो मेरी चूचिओ पर हाथ फिराते हुए बोले. मैं मर्द के स्पर्श से सिहर उठी.
" छ्चोड़िए ना, ये क्या कर रहे हैं.?"
" कुच्छ भी तो नहीं कर रहा. बस देख रहा हूँ कि क्या ये चूचियाँ दूसरी लड़कियो जैसी ही हैं" वो मेरी चूचिओ को दोनो हाथों से मसल रहे थे. फिर उन्होने मेरे ब्लाउस का हुक खोल कर मेरा ब्लाउस उतार दिया. अब मैं सिर्फ़ ब्रा में थी. मुझे बाहों में भर के वो मेरे होंठों को चूसने लगे और मेरी नंगी पीठ सहलाने लगे. अचानक मेरे ब्रा का हुक भी खुल गया और मेरी बड़ी बड़ी चूचियाँ आज़ाद हो गयी.
" है कंचन क्या ग़ज़ब की चुचियाँ हैं." काफ़ी देर चूचाईओं से खेलने के बाद उन्होने मेरी सारी को उतरना शुरू कर दिया. मैं घबरा गयी.
" ये, ये क्या कर रहे हैं प्लीज़ सारी मत उतारिये."
वो मुझे चूमते हुए बोले,
" मेरी जान आज तो हमारी सुहाग रात है. आज भी सारी नहीं उतरोगी तो कब उतारोगी? और बिना सारी उतारे हमारा मिलन कैसे होगा? शरमाना कैसा ? अब तो ये खूबसूरत बदन मेरा है. लड़की से औरत नहीं बनना चाहती हो.?" मेरी सारी उतर चुकी थी और मैं सिर्फ़ पेटिकोट में थी.
" लेकिन आप क्या करना चाहते हैं? ऊऊओई मा!" उनका एक हाथ पेटिकोट के ऊपर से मेरी चूत सहलाने लगा. मेरी चूत को मुट्ठी में भरते हुए बोले,
" तुम्हें औरत बनाना चाहता हूँ." ये कह कर उन्होने मेरे पेटिकोट का नारा खींच दिया. अब तो मेरे बदन पे सिर्फ़ एक पॅंटी बची थी. मुझे अपने बाहों में ले कर मेरे नितंबों को सहलाते हुए मेरी पॅंटी भी उतार दी. अब तो मैं बिल्कुल नंगी थी. शर्म के मारे मेरा बुरा हाल था. जांघों के बीच में चूत को च्छुपाने की कोशिश कर रही थी.
" बाप रे कंचन, ये झांटें हैं या जंगल.मेरा अंदाज़ा सही था. तुम्हें पहली बार देख के ही समझ गया था कि तुम्हारी टाँगों के बीच में बहुत बाल होंगे. लेकिन इतने लंबे और घने होंगे ये तो कभी सोचा भी नहीं था."
" लाइट बंद कर दीजिए प्लीज़."
" क्यों मेरी जान. इस खूबसूरत जवानी को देखने दो ना." उन्हने जल्दी से अपने कपड़े उतार दिए और बिल्कुल नंगे हो गये. उनका तना हुआ लंड देख कर मेरी साँस रुक गयी. क्या मोटा और लंबा लंड था. पहली बार मर्द का खड़ा हुआ लंड इतने पास से देखा था. उन्होने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पे रख दिया.
" देखो मेरी जान ये ही तुम्हें औरत बनाएगा. 8 इंच का है. छ्होटा तो नहीं है?"
" जी, ये तो बहुत बड़ा है" मैं घबराते हुए बोली.
" घबराव नहीं , एक कच्ची कली को फूल बनाने के लिए मोटे तगड़े लॉड की ज़रूरत होती है. सब ठीक हो जाएगा. जब ये लंड तुम्हारी इस सेक्सी चूत में जाएगा तो तुम्हे बहुत मज़ा आएगा."
" छ्ची कैसी गंदी बातें करते हैं?"
" इसमे गंदी बात क्या है? इसको लॉडा ना कहूँ और तुम्हारे टाँगों के बीच के चीज़ को चूत ना कहूँ तो और क्या कहूँ ?. पहली बार चुदवा रही हो. तीन चार बार चुदवाने के बाद तुम्हारी शरम भी दूर हो जाएगी. आओ बिस्तेर पर लेट जाओ" उन्होने मुझे बिस्तेर पे चित लिटा दिया. मेरी टाँगों के बीच में बैठ कर उन्होने मेरी टाँगों को चौड़ा कर दिया. अब तो मेरी चूत बिल्कुल नंगी हो गयी.
" ऊओफ़ कंचन! क्या फूली हुई चूत है तुम्हारी. अब तो तुम्हारे इस जंगल में मंगल होने वाला है." उन्होने मेरी टाँगें मोड़ के घुटने मेरे सीने से लगा दिए. इस मुद्रा में तो चूत की दोनो फाँकें बिल्कुल खुल गयी थी और दोनो फांकों के बीच में से चूत के गुलाबी होंठ झाँक रहे थे. वो अब मेरी फैली हुई टाँगों के बीच में मेरी चूत को और यहाँ तक की गांद के छेद को भी आसानी से और खूब अच्छी तरह से देख सकते थे. घनी झांतों को चूत पर से हटाते हुए काफ़ी देर तक मेरी जवानी को आँखों से चोदते रहे. शरम के मारे मैं पागल हुई जा रही थी. मैने दोनो हाथों से अपना चेहरा ढक लिया. किसी अजनबी के सामने इस प्रकार से चूत फैला के लेट्ना तो दूर आज तक नंगी भी नहीं हुई थी. मैं मारे शरम के पानी पानी हुई जा रही थी. इतने में उन्होने अपने तने हुए लंड का सुपरा मेरी चूत के खुले हुए होंठों के बीच छेद पे टीका दिया. मैं सिहर उठी और कस के आँखें बंद कर लीं. उन्होने हल्का सा धक्का लगा के लंड के सुपरे को मेरी चूत के होंठों के बीच फँसाने की कोशिश की.
" एयेए….ह. धीरे प्लीज़." मैं इतना ज़्यादा शर्मा गयी थी कि मेरी चूत भी ठीक से गीली नहीं थी. उन्होने दो तीन बार फिर अपना लंड चूत में घुसेरने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रहे. लेकिन उन्होने भी पूरी तैयारी कर रखी थी. पास में ही तैल का डब्बा पड़ा हुआ था. उन्होने अपना लॉडा तैल के डब्बे में डूबा दिया. अब अपने टेल में सने हुए लॉड को एक बार फिर मेरी चूत पे रख के ज़ोर का धक्का लगा दिया.
" आआआअ…………….ईईईईईईई. ऊऊऊ….फ़.ह. ऊ..ओह. बहुत दर्द हो रहा है." उनका लॉडा मेरी चूत के छेद को चौड़ा करता हुआ 2 इंच अंडर घुस चुक्का था. आज ज़िंदगी में पहली बार मेरी चूत का छेद इतना चौड़ा हुआ था.
" बस मेरी रानी, थोड़ा सा और सह लो फिर बहुत मज़ा आएगा." ये कहते हुए उन्होने लॉडा बाहर खीचा और फिर से एक ज़बरदस्त धक्का लगा दिया.
" ऊऊओिईई माआआआ………..! मर गयी………मैं. ईइसस्स्स्स्स्सस्स…….. आआआआआआ…ऊऊऊऊहह. प्ली…….से, छ्चोड़ दीजिए. और नहीं सहा जा रहा." उनका मोटा लॉडा इस धक्के के साथ शायद 4 इंच अंडर जा चुक्का था.
" अच्छा ठीक है अब कुच्छ नहीं करूँगा बस!" वो बिना कुच्छ किए मेरे होंठों का रस चूसने लगे और चूचिओ को मसल्ने लगे. जब कुछ राहत मिली और मेरा करहाना बंद हुआ तो उन्होने धीरे से लंड को पूरा बाहर खींचा और मेरी टाँगों को मेरे सीने पे दबाते हुए बिना वॉर्निंग के पूरी ताक़त से ज़ोर का धक्का लगा दिया.
" आआआआआआआऐययईईईईईईईईईईईईईई……………आआहह. ऊऊऊऊऊऊऊओह, ऊओफ़…. आआअहगह……….मुम्मय्ययययययययययययी……………मार डालाअ……छ्चोड़ दीजिए एयाया…ह प्लीईआसए….हाथ जोड़ती हूँ. ऊऊओिईईईईईईईईईईई…… माआ……." इतना भयंकर दर्द ! बाप रे ! मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी चूत के अंडर कुच्छ फॅट गया था. उनका लंड पूरा का पूरा मेरी चूत में जा चुक्का था और उनके बॉल्स मेरी गांद पे टिक गये थे. मेरी आँखों में आँसू आ गये थे. दर्द सहा नहीं जा रहा था. उन्होने मेरे होंठ चूमते हुए कहा,
" कंचन, मेरी रानी, बधाई हो. अब तुम कच्ची कली नहीं रही, फूल बुन चुकी हो." मैं कुच्छ नहीं बोली. उन्होने काफ़ी देर तक लंड को अंडर ही पेले रखा और मेरी चूचिओ और होंठों को चूमते रहे. जब दर्द थोड़ा कम हुआ तो उन्होने लॉडा पूरा बाहर खींच के पास पड़े तैल के डब्बे में फिर से डूबा दिया. उसके बाद तैल टपकता हुआ लॉडा मेरी चूत के छेद से टीका कर एक और ज़ोर आ धक्का लगा दिया. लॉडा मेरी चूत चीरता हुआ आधे से ज़्यादा धँस गया.
" आआआहा…..ईईईईईईईई. ऊऊओफ़."
" बस मेरी जान पहली बार तो थोड़ा दर्द होता ही है. इसके बाद पूरी ज़िंदगी मज़े करोगी." ये कहते हुए उन्होने धक्के लगाने शुरू कर दिए. लंड मेरी चूत में अंडर बाहर हो रहा था. दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था. मैं ज़ोर ज़ोर से कराहती जा रही थी लेकिन वो बिना परवाह किए धक्के लगाते जा रहे थे. अब तो उन्होने पूरा लंड बाहर निकाल के एक ही धक्के में जड़ तक पेलना शुरू कर दिया. मेरी चूत तो बिल्कुल चरमरा गयी थी. बहुत दर्द हो रहा था. इतने में उनके धक्के एकदम से तेज़ हो गये और अचानक ही मेरे ऊपर ढेर हो गये. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई मेरी चूत में पिचकारी चला रहा हो. वो शायद झाड़ चुके थे. थोरी देर मेरे ऊपर लेटे रहे फिर उठ के बाथरूम चले गये. मेरे अंग अंग में दर्द हो रहा था. मैने उठ के अपनी टाँगों के बीच में देखा तो बेहोश होते होते बची. मेरी चूत बुरी तरह से सूजी हुई थी और उसमे से खून और उनके वीर्य का मिश्रण निकल रहा था. बेड शीट भी खून से लाल हो गयी थी. मेरी चूत के बाल तैल, उनके वीर्य और खून से चिप चिप हो रहे थे. अपनी चूत की ये हालत देख के मैं रो पड़ी. मेरी समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ. इतने में ये बाथरूम से बाहर निकल आए. उनका लंड सिकुड के लटक रहा था लेकिन अभी भी काफ़ी ख़तरनाक लग रहा था. मुझे रोते देख मेरे पास आ कर बोले," क्या बात है कंचन ? बहुत दर्द हो रहा है?"
मेरी टाँगें चौड़ी करके मेरी चूत की हालत देख कर मुकुराते हुए बोले,
" पहली, पहली चुदाई में ऐसा ही होता है मेरी जान. मेरा लॉडा भी तुम्हारी कुँवारी चूत को चोद्ते हुए छिल गया है. आओ बाथरूम में चल के सॉफ कर लो."
क्रमशः.........
Mastaani hasina paart--3
Gataank se aage ......
Mujhe maloom tha ki train wali baat Vicky ke pait mein rahne waali nahin hai. Jaise hi uska dost Sudhir ghar pe aaya dono mein khusar pusar shuru ho gayi. Main bhi jaanana chaahati thi ki Vicky mere bare mein kya bol raha hai. Main kaan laga kar unki baaten sunane lagi.
" Bahut dinon baad nazar aa raha hai Vicky ?"
" Haan yaar, Kanpur gaya tha didi ke liye ladka dekhne."
" Dil mut tor Vicky. Teri didi ki shaadi ho gayi to mera dil toot jaaega. Kismat wala hoga jo teri didi ki jawani se khelega. Apni didi se ek baar baat to karwa de. Apni kismat bhi aajma len."
"Teri kismat ka to pata nahi par meri kismat zaroor khul gayi."
" Vo kaise ? nangi dekh liya ya chod hi diya apni didi ko?"
" Chodna apni kismat mein kahan? Lekin kaafi kuchh kar liya."
" Poori baat bata na yaar. Pahelian kyon bujha raha hai?"
" Hai Yaar kya bataaon, mera lund to soch soch ke hi khada hua jaa raha hai. Kanpur se waapas aate pe seat na milne ke kaaran main aur didi ek hi seat pe the. Ac 2 tier mein side ki seat thi. Humne parda daal liya. Didi mere saamne baithi hui thi. Usne lehanga pahan rakha tha. Pair more novel parh rahi thi. Ek do baar taangen seedhee karte aur morte waqt uski taangon ke beech ki jhalak mil gayi. Gori gori jaanghon ke beech mein kaala kaala nazar aaya to mujhe laga ki kaali panty pahni hui hai. Thori der mein taangen mor ke ghutnon pe sir rakh ke so gayi. Main mana rha tha ki kisi tarah muri hui taangon mein daba lehanga neeche ho jaae. Achanak vohi hua. Didi ke lehange ka neeche ka hissa uski muri hui taangon mein se nikal kar gir gaya. Hai yaar.. ! dil pe chhurian chal gayi. Gori gori moti moti janghon ke beech mein se didi ki choot bilkul nangi jhank rahi thi. Zindagi mein pahli baar kisi ladki ki choot dekhi aur vo bhi itne kareeb se. Itni ghani aur kaali jhanten thin. Kum se kum 3 inch lumbi to hongi hi. Poori choot jhanton se dhaki hui thi. Lekin kyonki didi ki tangen mori hui thi, choot ki dono phanken phail gayi thi. Ooph kya phooli hui choot thi! Phaili hui phankon ke beech mein se choot ke dono honth meri or jhank rahe the. Itne bare honth the jaise titli ke pankh hon. Mun kar raha tha un honthon ko choom lun. Choot ke honthon ka oopri sira itna ubhra hua tha mano chhota sa lund khara ho gaya ho. Choot ke chaaron or ke ghane baal aise chamak rahe the jaise choot ke ras mein geele hon. Meri didi na hoti to aage sarak kar apna tana hua lauda us khoobsoorat choot ke honthon ke beech mein pail deta."
" Yaar tune to bahut sunder moka kho diya. Yehi moka tha chodne ka."" Chhor yaar kahna aasan hai. Raat ko didi jub gahri neend mein so rahi thi to maine chupke se uska lehanga kamar tak oopar sarka diya. Vo meri or peeth kiye laiti thi. Baap re ! kya kaatilana chooter the. Sara shahar jin chootron ke peeche marta hai vo chootar meri nazron ke saamne the. Main didi ke peeche lait gaya. Himmat karke maine lungi mein se apna tana hua lauda nikaala aur didi ke vishaal chootron ke beech ki daraar mein sata diya. Train ke hichkolon ke saath mera lund didi ke chootron ke beech aage peeche ho raha tha. Gazab ka mazaa aa raha tha. Maine ek photo mein ek aadmi ko aurat ki choot mein peeche se bhi pelte dekha tha. Main bahut uttejit ho gaya tha aur halke halke dhakke bhi lagane laga tha. Mujhe apne oopar control nahin raha aur maine thora zor se dhakka laga diya. Is dhakke se didi ki aankh khul gayi. Maine jaldi se uska lehanga neeche kiya. Jub vo uth ke bathroom gayi to maine dekha ki mere lund ka supare ke aas paas chipchipa ho gaya hai. Pata nahin mera hi veerya tha ki didi ki choot ka ras. Maine soongh ke dekha to vohi khushboo thi jo didi ki panty se aati thi."
" Wah bete Vicky tu to mujhe se bhi do kadam aage nikal gaya. Main to door se hi apni didi ki choot dekh ke khush ho raha tha, tune to apni didi ki choot pe lund bhi tika diya. Darr kyon gaya pail dena tha."
" Yaar mun to bahut kar raha tha. Lekin yaar meri didi ki choot ka chhed itna bara nahin tha jisme mera lund ghus jaae."
" Vicky tu bahut bhola hai. Ladki ki choot hai hi aisi cheese jo aadmi ka to kya ghore ka lund bhi nigal jaati hai. Tu bhi to usi chhote se chhed mein se baahar nikla hai.To kya tera lund itna bara hai jo us chhed mein na jaae? Ladki ki choot hoti hi chodne ke liye. "
Main Vicky ki baaten sun ke sharm se laal ho gayi thi aur saath mein meri choot bhi khoob geeli ho gyi thi. Mera saga bhai mujhe chodne ke liye paagal hai yah soch kar main bahut khush bhi thi.
Is ghatna ke baad se hum dono mein hansi mazaak bahut barh gaya tha aur Vicky apna lund mere jism se ragarne ka koi moka nahin ganwata tha. Lekin aaj tak mujhe Vicky ka khada hua lauda dekhne ka moka nahin mila tha. Kai baar koshish bhi kee. Kai baar savere uske kamre mein gayi , is aasha se ki uske laude ke darshan ho jaen par kismat ne saath nahin diya. Ek din moka haath lug hee gaya. Vicky mera towel le kar nahaane chala gaya. Use maloom tha ki main apna towel kisi ko bhi use nahin karne deti thi. Maine use towel le jaate hue dekh liya tha lekin chup rahi. Jaise hi vo naha ke towel lapait kar baahar nikla main uski or jhapti aur chillayi,
" Tune phir mera towel le liya. Isee waqt waapas kar. Khabardaar jo aage se liya." Isase pahale ki vo sambhale maine towel kheech liya. Vicky ekdum nanga ho gaya.
" Haaaaaaaaa……….. Besharam ! Tune underwear bhi nahin pahna." Meri aankhon ke saamne Vicky ka mota kisi mandir ke ghante ke maafik jhoolta hua lund tha. Kareeb kareeb uske ghutnon tak pahunch raha tha. Vicky ka maare sharam ke bura haal tha. Apne haathon se lund ko chhupane ki koshish karne laga. Lekin aadmi ka lund ho to chhupe, Ye to ghore ke lund se bhi bara lag raha tha. Bechara aadhe lund ko hee chhupa paya. Meri choot pe to cheetiyan rengne lagin. Hai Ram ! Kya lauda hai. Mujhe bhi paseena aa gaya tha. Apni ghabaraahat chhupate hue boli,
" Kum se kum underwear to pahan liya kar, naalayak!." Or maine towel dubaara uske oopar phenk diya. Vicky jaldi se towel lapait kar bhaaga. Main apne plan ki kaamyaabi pe bahut khush thi, lekin jee bhar ke uska lauda ab bhi nahin dekh paayi. Ye to tabhi mumkin tha jub Vicky so raha ho. Ab meri himmat aur barh gayi. Agle din main savere chaar baje uth kar Vicky ke kamre mein gayi. Vicky gahri neend mein so raha tha. Uski lungi janghon tak oopar chadi hui thi. Vicky peeth ke bal laita hua tha aur uski tangen phaili hui thi. Main dabe paon Vicky ke bed ki or barhi aur bahut hee dheere se lungi ko uski kamar ke oopar sarka diya. Saamne ka nzaara dekh ke meri aankhen phati ki phati rah gayi. Pahli baar jub uska lauda dekha tha to itni ghabrai hui thi ki theek se dekh bhi nahin paayi thi. Doosri baar jub towel kheencha tha tub bhi bahut thori der hee dekh paayi, lekin ab na to koi jaldi thi or na hi koi darr. Itni nazdeek se dekhne ko mil raha tha. Sikudi hui haalut mein bhi itna lumba tha ki peeth pe laite hone ke baavjood bhi lund ka supada bister per tika hua tha. Do bare bare balls bhi bister per tike hue the. Itna mota tha ki mere ek haath mein to nahin aata. Aisa lug raha tha jaise koi lumba mota, kala naag aaraam kar raha ho. Mun kar raha tha ki sahla dun aur munh mein daal ke choos lun, lekin kya karti, majboor thi. Choot buri tarah se rus chhod rahi thi aur panty poori geeli ho gayi thi. Ab to mera irada aur bhi pucca ho gaya ki ek din is khoobsoorat laude ka swad meri choot zaroor legi. Main kaafi der uski charpayi ke paas baithi us kale naag ko niharti rahi. Phir himmat kar ke maine uske poore laude ko halke se chooma aur mote supare ko jeebh se chat liya. Mujhe darr tha ki kahin Vicky ki neend na khul jaae. Mun maar ke main apne kamre mein chali gayi.
Jis ladke ko dekhne hum Kanpur gaye the uske saath meri shaadi pukki ho gayi. Ek maheene ke under hee shaadi karna chaahate the. Aaakhir vo din bhi aa gaya jub meri doli uthne wali thi. Dhoom dham se shaadi hui. Aakhir vo raat bhi aa gayi jiska her ladki ko intzaar rahta hai. Suhaag raat ko main khoob jaji hui thi. Mer gora badan chandan sa mahak raha tha. Dil mein ek ajeeb sa darr tha. Main shaadi ka joda pahane pati ke aane ka intzaar kar rahi thi. Tabhi darwaza khula aur mere pati under aae. Mere dil ki dhadkan barh gayi. Hai Ram, ab kya hoga. Mujhe to bahut sharm aaegi. Bahut dard hoga kya. Kya mera badan mere pati ko pasand aaega. Kahin poore kapre to nahin utar denge. Is tarah ke khayaal mere dimaag mein aane lage. Mere pati palang par mere paas baith gaye aur mera ghoonghat utha ke bole,
" Kanchan tum to bahut hee sunder lug rahi ho." Main sir neeche kiye baithi rahi.
" Kuchh bolo na meri jaan. Ab to tum meri biwi ho. Aur aaj ki raat to tumhara ye khoobsoorat badan bhi mera ho jaaega." Main bolti to kya bolti. Unhone mere munh ko haathon mein le kar mere honthon ko choom liya.
" Oooph! Kya raseele honth hain. Jis din se tumhen dekha hai usi din se tumhen pane ke sapne dekh raha hun. Maine to apni maa se kah diya tha ki shaadi karunga to sirf isi ladki se."
" Aisa kya dekha aapne mujhme?" Maine sharmaate hue poocha.
" Hai , kya nahin dekha. Itna khoobsoorat masoom chehra. Bari bari aankhen. Lumbe kale baal. Vo katilana muskaan. Tarasha hua badan. Jitni taareef karun utni kum hai."
" Aap to bikul shaayaron ki tarah bol rahe hain. Sabhi ladkian mere jaisi hi hoti hain."
" Nahin meri jaan sabhi ladkian tumhaare jaisi nahin hoti. Kya sabhi ke paas itni bari choochian hoti hain?" Vo meri choochion per haath pharte hue bole. Main mard ke sparsh se sihar uthi.
" Chhodiye na, ye kya kar rahe hain.?"
" Kuchh bhi to nahin kar raha. Bus dekh raha hun ki kya ye choochian doosri ladkion jaisi hi hain" Vo meri choochion ko dono haathon se masal rahe the. Phir unhone mere blouse ka hook khol kar mera blouse utar diya. Ab main sirf bra mein thi. Mujhe baahon mein bhar ke Vo mere honthon ko choosne lage aur meri nangi peeth sahlane lage. Achanak mere bra ka hook bhi khul gaya aur meri bari bari choochian azad ho gayi.
" Hai Kanchan kya gazab ki chuchian hain." Kaafi der choochaion se khelne ke baad unhone meri saari ko utarna shuru kar diya. Main ghabra gayi.
" Ye, ye kya kar rahe hain please saari mut utariye."
Vo mujhe choomte hue bole,
" Meri jaan aaj to humaari suhaag raat hai. Aaj bhi saari nahin utarogi to kub utarogi? Aur bina saari utare humaara Milan kaise hoga? Sharmana kaisa ? ab to ye khoobsoorat badan mera hai. Ladki se aurat nahin banana chaahati ho.?" Meri saari utar chuki thi aur main sirf petticoat mein thi.
" Lekin aap kya karna chaahate hain? Oooooii maa!" Unka ek haath petticoat ke oopar se meri choot sahlane laga. Meri choot ko muthi mein bharte hue bole,
" Tumhen aurat banana chaahata hun." Ye kah kar unhone mere pittcoat ka nara kheench diya. Ab to mere badan pe sirf ek panty bachi thi. Mujhe apne bahon mein le kar mere nitambon ko sahalate hue meri panty bhi utar dee. Ab to main bilkul nangi thi. Sharm ke mare mera bura haal tha. Jaanghon ke beech mein choot ko chhupaane ki koshish kar rahi thi.
" Baap Re Kanchan, ye jhanten hain ya jungle.Mera andaaza sahi tha. Tumhen pahli baar dekh ke hi samazh gaya tha ki tumhari taangon ke beech mein bahut baal honge. Lekin itne lumbe aur ghane honge ye to kabhi socha bhi nahin tha."
" Light bund kar dijiye please."
" Kyon meri jaan. Is khoobsoorat jawani ko dekhne do na." Unhne jaldi se apne kapre utar diye aur bilkul nange ho gaye. Unka tana hua lund dekh kar meri saans ruk gayi. Kya mota aur lumba lund tha. Pahli baar mard ka khada hua lund itne paas se dekha tha. Unhone mera haath pakar kar apne lund pe rakh diya.
" Dekho meri jaan Ye hi tumhen aurat banayega. 8 inch ka hai. Chhota to nahin hai?"
" Jee, ye to bahut bara hai" Main ghabraate hue boli.
" Ghabrao nahin , ek kachhi kali ko phool babaane ke liye mote tagare laude ki zaroorat hoti hai. Sub theek ho jaaega. Jub ye lund tumhari is sexy choot mein jaaega to tumhnen bahut mazaa aaega."
" Chhee kaisi gandi baaten karte hain?"
" Isme gandi baat kya hai? Isko lauda na kahun aur tumhare taangon ke beech ke cheese ko choot na kahun to aur kya kahun ?. Pahli baar chudwa rahi ho. Teen chaar baar chudwaane ke baad tumhari sharam bhi door ho jaaegi. Aao bister par lait jaao" Unhone mujhe bister pe chit lita diya. Meri taangon ke beech mein baith kar unhone meri taangon ko chaura kar diya. Ab to meri choot bilkul nangi ho gayi.
" Oooph Kanchan! Kya phooli hui choot hai tumhaari. Ab to tumhare is jungle mein mangal hone wala hai." Unhone meri taangen mor ke ghutne mere seene se laga diye. Is mudra mein to choot ki dono phanken bilkul khul gayi thi aur dono phankon ke beech mein se choot ke gulaabi honth jhank rahe the. Vo ab meri phaili hui tangon ke beech mein meri choot ko aur yehan tak ki gaand ke chhed ko bhi asani se aur khoob achhi tarah se dekh sakte the. Ghani jhanton ko choot par se hatate hue kaafi der tak meri jawani ko aankhon se chodate rahe. Sharam ke mare main pagal hui jaa rahi thi. Maine dono haathon se apna chehra dhak liya. Kisi ajnabi ke saamne is prakar se choot phaila ke laitna to door aaj tak nangi bhi nahin hui thi. Main mare sharam ke pani pani hui jaa rahi thi. Itne mein unhone apne tane hue lund ka supara meri choot ke khule hue honthon ke beech chhed pe tika diya. Main sihar uthi aur kus ke aankhen bund kar lin. Unhone halka sa dhaaka laga ke lund ke supare ko meri choot ke honthon ke beech phansane ki koshish kee.
" Aaa….hh. Dheere please." Main itna zyada Sharma gayi thi ki meri choot bhi theek se geeli nahin thi. Unhone do teen baar phir apna lund choot mein ghuserne ki koshish kee, lekin naakaamyaab rahe. Lekin unhone bhi poori tayari kar rakhi thi. Paas mein hi tail ka dabba para hua tha. Unhone apna lauda tail ke dabbe mein duba diya. Ab apne tail mein sane hue laude ko ek baar phir meri choot pe rakh ke zor ka dhakka laga diya.
" Aaaaaaa…………….iiiiiiii. oooooo….phhh.hh. ooh..ohhhhhh. Bahut dard ho raha hai." Unka lauda meri choot ke chhed ko chaura karta hua 2 inch under ghus chukka tha. Aaj zindagi mein pahli baar meri choot ka chhed itna chaura hua tha.
" Bus meri raani, thora sa aur sah lo phir bahut maza aaega." Ye kahate hue unhone lauda baahar kheeencha aur phir se ek zabardast dhakka laga diya.
" Oooooiiiii maaaaaaaa………..! mar gayi………main. Iisssssssss…….. aaaaaaaaaaaa…oooooooohhhhhh. Plea…….se, chhod dijiye. Aur nahin saha jaa raha." Unka mota lauda is dhakke ke saath shayad 4 inch under jaa chukka tha.
" Achha theek hai ab kuchh nahin karunga bus!" Vo bina kuchh kiye mere honthon ka ras choosne lage aur choochion ko masalne lage. Jub kuch raahat mili aur mera karhaana bund hua to unhone dheere se lund ko poora baahar kheencha aur meri tangon ko mere seene pe dabaate hue bina warning ke poori taakat se zor ka dhakka laga diya.
" Aaaaaaaaaaaaaaaiiiiiiiiiiiiiiiii……………aaaahhhhh. Ooooooooooooooohhhhhhhhhhh, ooophhh…. Aaaaahhghhhh……….mummyyyyyyyyyyyyyy……………maar daalaaa……Chhod dijiye aaaaa…hh pleeeeeease….haath jodti hun. Oooooiiiiiiiiiiiiii…… maaa……." Itna bhayankar dard ! Baap Re ! Mujhe aisa laga jaise meri choot ke under kuchh phat gaya tha. Unka lund poora ka poora meri choot mein jaa chukka tha aur unke balls meri gaand pe tik gaye the. Meri aankhon mein aansoo aa gaye the. Dard saha nahin jaa raha tha. Unhone mere honth choomte hue kaha,
" Kanchan, meri raani, badhayi ho. Ab tum kachhi kali nahin rahi, phool bun chuki ho." Main kuchh nahin boli. Unhone kaafi der tak lund ko under hi pele rakha aur meri choochion aur honthon ko choomte rahe. Jub dard thora kum hua to unhone lauda poora baahar kheench ke paas pare tail ke dabbe mein phir se duba diya. Uske baad tail tapkata hua lauda meri choot ke chhed se tika kar ek aur zor a dhakka laga diya. Lauda meri choot cheerta hua aadhe se zyada dhans gaya.
" Aaaaahaa…..iiiiiiiii. oooooph."
" Bus meri jaan pahli baar to thora dard hota hi hai. Iske baad pooi zindagi maze karogi." Ye kahte hue unhone dhakke lagane shuru kar diye. Lund meri choot mein under baahar ho raha tha. Dard kum hone ka naam nahin le raha tha. Main zor zor se kahraati jaa rahi thi lekin Vo bina parwah kiye dhakke lagate jaa rahe the. Ab to unhone poora lund baahar nikal ke ek hi dhakke mein jar tak pelna shuru kar diya. Meri choot to bilkul charmara gayi thi. Bahut dard ho raha tha. Itne mein unke dhakke ekdum se tez ho gaye aur achanak hi mere oopar dher ho gaye. Mujhe aisa mahsoos ho raha tha jaise koi meri choot mein pichkari chala raha ho. Vo shayad jhar chuke the. Thori der mere oopar laite rahe phir uth ke bathroom chale gaye. Mere ang ang mein dard ho raha tha. Maine uth ke apni taangon ke beech mein dekha to behosh hote hote bachi. Meri choot buri tarah se sooji hui thi aur usme se khoon aur unke veerya ka mishran nikal raha tha. Bed sheet bhi khoon se laal ho gayi thi. Meri choot ke baal tail, unke veerya aur khoon se chip chip ho rahe the. Apni choot ki ye haalat dekh ke main ro pari. Meri samazh nahin aa raha tha ki main kya karun. Itne mein ye bathroom se baahar nikal aae. Unka lund sikud ke latak raha tha lekin abhi bhi kaafi khatarnaak lag raha tha. Mujhe rote dekh mere paas aa kar bole," Kya baat hai Kanchan ? Bahut dard ho raha hai?"
Meri tangen chauri karke meri choot ki haalat dekh kar mukurate hue bole,
" Pahli, pahli chudai mein aisa hi hota hai meri jaan. Mera lauda bhi tumhari kunwari choot ko chodte hue chhil gaya hai. Aao bathroom mein chal ke saaf kar lo."
kramashah.........
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