FUN-MAZA-MASTI
ग्लास में दारु उड़ेल के मैंने जैसे ही जाम को ऊपर उठाया मेरी नजर इस आंटी जी के ऊपर गए बिना नहीं रह पाई. बदन के भराव के हिसाब से वो कुछ 40 साल की लग रही थी. नशीली आँखें, चौड़ा सीना, पीछे दो मटके रख दिए हो वैसी गांड और वो बियर के ग्लास को अपने होंठो से लगा रही थी. मैं पिया हुआ जरुर था लेकिन मैं उन लोगों में से हूँ जिनके होश पिने के बाद सही रहते हैं. रोज शाम को मैं इसी बार में दारु पिने आता था लेकिन इस आंटी जी को मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा था. और वैसे भी इंडिया के अंदर लड़की या औरत का शराब के ठेके पे आना थोडा अजीब हैं. लेकिन क्यूंकि यह बार के साथ रेस्टोरेंट भी हैं यहाँ कितनी बार औरतें अपने पति के साथ आती हैं. खाने के बाद पति लोग दारु पैक जो करवाते हैं घर ले जाने के लिए.
अरे आंटी जी की कहानी सुनने आये हो या मेरी दुःखभरी दास्ताँ. आंटी जी बियर पीते हुए मुझे देख रही थी और मैं भी ग्लास की आड़ में उसे देख लेता था. मेरे दोस्त मंगेश ने एकबार बताया था की कभीकबार औरतें मर्दों के शिकार पे निकलती हैं और फिर उन्हें अपने घर ले जाके चूत, और गांड मरवाती हैं. लेकिन सच में मैं उस वक्त आंटी को ले के ऐसा कुछ नहीं सोच रहा था. तभी मेरे टेबल पे बैठा हुआ वो मद्रासी अन्ना उठ खड़ा हुआ और लडखडाते हुए काउंटर पे चला गया. आंटी जी ने एक पल भी नहीं व्यय किया और उसने अपने मटके टेबल के साथ वाली कुर्सी पे धर दिए. मैं अभी भी व्हिस्की की कडवाहट को गले में भर रहा था. सिंग के दाने को उठा के जबान पे रखा ही था की आंटी जी धीरे स्वर में बोली, “चलोगे?”
मैंने इधर उधर देखा की साला आंटी ही बोली या कोई और.
फिर वही आवाज आंटी जी की और से आई, “चलोगे या नहीं?”
मैंने खात्री कर ली थी की आंटी ही बुला रही थी मुझे. मैंने उसकी और देखा और वो बियर की चुस्की अपने गले में भर रही थी. मैंने धीरे से कहा, “जगह हैं, और मैं एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा तुम्हें.”
आंटी जी ने मुहं बनाया और बोली, “तेरी शकल देख के ही लगता हैं की तू छोटी बात करेंगा. तू मुझ से ले लेना पैसे जितने चाहियें. जगह इतनी बड़ी नहीं हैं लेकिन दो लोगों के लिए ठीक हैं.”
वैसे मुझे भी पता हैं की ऐसे समय पैसो की बात नहीं करते हैं लेकिन दोस्तों यह मुंबई हैं. यहाँ के लोग इतने चालू होते ही की हगते हुए इंसान को भी गांड की हिफाजत करनी पड़ती हैं. मैं नहीं चाहता था की वो एक रंडी हो जो मार्केटिंग का नया स्टाइल ले के बार में आई हो. आंटी जी ने मुझे धीरे से कहा की पहले वो जायेंगी और फिर मैं बिल दे के उसके पीछे निकलूं. साथ में निकलने से किसी को शक हो सकता था. इतना कह के आंटी जी उठी और आधा बियर उसने टेबल पे ही छोड़ दिया. वो काउंटर पे गई और मैंने पानी के बचाव के लिए वो आधा बियर एक ही घूंट में पी लिया.
मैंने बहार आके देखा की आंटी जी एक गाडी के पास खड़ी थी. गाडी की आगे की सिट पे एक ड्राईवर सफ़ेद युनिफोर्म में था और आंटी ने अपनी गांड को गाडी के दरवाजे के सहारे टिकाया हुआ था. मेरे आते ही आंटी ने पीछे का दरवाजा खोला और वो खुद अंदर जा बैठी. उसने अंदर से hin मुझे इशारा किया की मैं भी अंदर आऊं. मैंने हिम्मत की और अंदर घुसा. मेरे अंदर आते ही दरवाजा फट से बंध हुआ और आंटी ने ड्राईवर से कहा, “रमेश गाडी को घर की और ले लो. रास्ते में मेडिकल से सामान भी ले आना.”
रमेश ने गाडी को दे मारा और रस्ते में मेडिकल से उसने कुछ पेकेट लिए और वो पीछे आंटी को दिए. मैंने देखा की उसमे एक दवाई का छोटा बॉक्स था और कुछ कंडोम के पैकेट्स थे. आंटी जी के इरादे मुझे उतने अच्छे नहीं लग रहे थे. रमेश ने गाडी को 5 मिनिट में एक बड़े से घर के बहार लगाया, मैंने अंदाजा लगाया की वो चर्चगेट का एरिया था. आंटी गाडी के निचे उतरी और चलने लगी. जब मैं निचे नहीं उतरा तो उसने मुड़ के मुझे पीछे आने का इशारा किया. मैं समझ गया की यह आंटी जी आज मेरे वीर्य को अपनी चूत में ले के ही मानेंगी…..!
बार से घर तक का रास्ता मेरे लिए उतना हार्ड नहीं था जितना गाडी से उतर के घर में घुसना. आंटी की चूत लेने की लालसा में कही गांड में डंडा ना पेल दिया जाएँ, यह डर मुझे था और मुझे यह कहने में जरा भी घमंड नहीं हैं. लेकिन यह आंटी जी ने वापस आके जब मेरा हाथ पकड़ के कहा की घर में मेरी 9 साल की बेटी के अलावा कोई नहीं हैं तब मेरी जान में जान आई. मैं आंटी के साथ ही घर म घुसा. अंदर घुसते ही एक बड़ा हॉल था जिसमे महंगे पेंटिंग्स और कुछ एंटिक बर्तन शो-केस के अंदर रखे दिखे. रमेश घर के अंदर नहीं आया और जब उसने कार मोड़ी तो टायर की चूऊऊऊ वाली आवाज घर के अंदर आई. आंटी मुझे ले के एक बेडरूम में गई. बेडरूम काफी बड़ा था जिसमे एक महाराजा बेड था जिसमे मलमली चद्दर और मस्त तकिये थे. आंटी मेरे पास आई और उसने मेरी छाती के ऊपर हाथ फेरा.
आंटी: मेरा नाम रोहणी हैं और मैं एक ब्यूटीशियन हूँ. मुलुंड में मेरा पार्लर हैं. मेरे पति को गुजरे हुए अब 2 साल हो गए हैं और बदन की प्यास की वजह से मैं बार और क्लब से लडको को ले के घर आती हूँ. मैं भी जानती हूँ की यह गलत हैं. मैं भी चाहती हूँ की मैं एक स्टेबल रिलेशन रखूं लेकिन लड़के किसी ना किसी बहाने से पैसे की या ब्लेकमेल वाली बात कर देते हैं और मुझे मजबूरन उन्हें छोड़ना पड़ता हैं. देखों मैं तुम्हे एक नाईट के 2000 रूपये दे सकती हूँ लेकिन पूरी रात मैं जैसे कहूँ वैसे करना हैं और मुझे लालची लोग पसंद नहीं हैं.
आंटी की चूत लेने को मिल जाए बहुत था. पैसे तो मैं कमा ही लेता था. रंडी
की चूत ले के पैसे देने पड़ते हैं जब की यह आंटी की चूत तो ऊपर से पैसे
देने वाली थी.
मैंने कहा, “आंटी मुझे कुछ लालच नहीं हैं, आप मुझे प्यार दो और मैं आप को दुगुना प्यार दूंगा.”
आंटी ने मेरी शर्ट की बटन खोली और अपना हाथ मेरी खुली छाती पे फेरा. उसकी उँगलियाँ मेरे बालों को छू रही थी जिस से मेरी उत्तेजना और भी बढ़ रही थी. आंटी ने फिर दूसरा हाथ मेरी पेंट के ऊपर रखा और उसे लंड की और ले गई. उसने जैसे ही मेरे लंड को दबाया मेरे मुहं से आह निकल पड़ी. उसने जो सेक्सी अंदाज से लंड को दबाया था की बस मन किया को वो ऐसे हाथ से ही मुझे पकडे रहे. आंटी थोडा आगे बढ़ी और उसने पेंट की ज़िप खोली. उसकी उँगलियाँ अब अंदर घुसी और लंड को वो चड्डी के ऊपर से ही दबाने लगी. वाऊ क्या मजा आ रहा था. साली व्हिस्की तो कब से हवा बन के उड़ चुकी थी. व्हिस्की का नशा आंटी की चूत के नशे के सामने फीका पड़ गया था. आंटी ने अब पेंट के बटन को खोला और पेंट को निचे कर दी. उसने मेरी चड्डी को भी हटा दिया. मेरा लंड खड़ा फनफना रहा था जिसे आंटी की चूत और गांड का मजा लेना था. आंटी ने मेरे लंड के सुपाड़ें को अपने हाथ में लिया और जैसे लंड को नापतोल करने लगी.
आंटी: काफी मजबूत हैं हथियार तो तुम्हारा.
मैं: बस आंटी आप एक बार लेके देखो, आप सब भूल जायेंगी. मेरी बीवी को साल में एक बार चोदता हूँ लेकिन उसे चलने के काबिल नहीं रखता हूँ.
आंटी हंस पड़ी और उसने अपने पर्स से कंडोम निकाला. मैं चौंक गया यह क्या साला कोई फॉर-प्ले नहीं और सीधा लंड और चूत का खेल. आंटी ने कंडोम को मेरे लौड़े पे रोल किया और लंड के ऊपर यह सुरक्षा छतरी पहना दी. मैं अभी भी हैरत में था और मैंने उसे पूछ ही लिया. मैं: सीधा सेक्स ही करेंगे क्या आंटी जी. और कुछ नहीं करना हैं? आंटी हंस पड़ी और बोली, “आज जो भी करेंगे कंडोम लगा के ही करेंगे. कल तुम्हारा और मेरा मेडिकल चेकअप करवा लेंगे और फिर कंडोम के बिना भी करेंगे. मैं नहीं चाहती की तुम्हें या मुझे कोई बीमारी लगें. मैं लंड चुसुंगी लेकिन इस कंडोम के साथ ही.”
आंटी ने करीब 5 मिनिट तक मेरा लंड चूसा और उसे एकदम लाल लाल कर डाला. अब मैंने आंटी के ब्लाउज के बटन को धीरे से खोल दिए. आंटी ने अंदर लाल रंग की ब्रा पहनी थी जिसे उसने खुद ही पीछे हाथ कर के खोल दिया. आंटी के भारी बूब्स हवा में उछल पड़ें और मैं उन्हें हैरतभरी नजरों से देखने लगा. ब्रा के अंदर बूब्स की साइज़ आधी हो गई थी. लेकिन जैसे ही उन्हें बहार निकाला गया वो किसी छोटे फ़ुटबाल से कम नहीं लग रहे थे. अब मैं आंटी की चूत को भी देखना चाहता था. आंटी उठ खड़ी हुई और मैंने उसके पेटीकोट के नाड़ें को पकड के खिंचा. आंटी का पेटीकोट जमीन पर गिर गया. अंदर पहनी हुई सफ़ेद पेंटी की पट्टी के ऊपर आंटी की 2-3 झांटे भी दिख रही थी. मैंने धीरे से पेंटी को खिंचा और मेरे सामने थी आंटी की चूत.
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आंटी का नशा--1
ग्लास में दारु उड़ेल के मैंने जैसे ही जाम को ऊपर उठाया मेरी नजर इस आंटी जी के ऊपर गए बिना नहीं रह पाई. बदन के भराव के हिसाब से वो कुछ 40 साल की लग रही थी. नशीली आँखें, चौड़ा सीना, पीछे दो मटके रख दिए हो वैसी गांड और वो बियर के ग्लास को अपने होंठो से लगा रही थी. मैं पिया हुआ जरुर था लेकिन मैं उन लोगों में से हूँ जिनके होश पिने के बाद सही रहते हैं. रोज शाम को मैं इसी बार में दारु पिने आता था लेकिन इस आंटी जी को मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा था. और वैसे भी इंडिया के अंदर लड़की या औरत का शराब के ठेके पे आना थोडा अजीब हैं. लेकिन क्यूंकि यह बार के साथ रेस्टोरेंट भी हैं यहाँ कितनी बार औरतें अपने पति के साथ आती हैं. खाने के बाद पति लोग दारु पैक जो करवाते हैं घर ले जाने के लिए.
देखा दारु के नशे में मैंने अपना परिचय तो आप लोगों को दिया ही नहीं. मेरा नाम वीर हैं और मैं कानपुर, युपी से बिलोंग करता हूँ. और जॉब की वजह से मेरी किस्मत मुझे यहाँ मुंबई ले आई हैं. मैं शादीसुदा हो के भी कुंवारा हूँ. नौकरी छोड़ के बीवी के पास जा नहीं सकता और बीवी को यहाँ लाके दोनों का खर्च उठाने में मेरी फट जायेंगी. इसलिए मैंने बिच का रास्ता निकाला हुआ हैं. बीवी वहीँ कानपुर में बाबूजी और माँ के साथ रहती हैं. मैं यहाँ अकेला रह के पैसे बचाता हूँ और उन्हें भेजता हूँ. छठ पूजा पे साल में एकबार जाता हूँ और हफ्ते के अंदर बीवी को इतना चोदता हूँ की उसके चलने के होश भी नहीं रहते हैं….!
अरे आंटी जी की कहानी सुनने आये हो या मेरी दुःखभरी दास्ताँ. आंटी जी बियर पीते हुए मुझे देख रही थी और मैं भी ग्लास की आड़ में उसे देख लेता था. मेरे दोस्त मंगेश ने एकबार बताया था की कभीकबार औरतें मर्दों के शिकार पे निकलती हैं और फिर उन्हें अपने घर ले जाके चूत, और गांड मरवाती हैं. लेकिन सच में मैं उस वक्त आंटी को ले के ऐसा कुछ नहीं सोच रहा था. तभी मेरे टेबल पे बैठा हुआ वो मद्रासी अन्ना उठ खड़ा हुआ और लडखडाते हुए काउंटर पे चला गया. आंटी जी ने एक पल भी नहीं व्यय किया और उसने अपने मटके टेबल के साथ वाली कुर्सी पे धर दिए. मैं अभी भी व्हिस्की की कडवाहट को गले में भर रहा था. सिंग के दाने को उठा के जबान पे रखा ही था की आंटी जी धीरे स्वर में बोली, “चलोगे?”
मैंने इधर उधर देखा की साला आंटी ही बोली या कोई और.
फिर वही आवाज आंटी जी की और से आई, “चलोगे या नहीं?”
मैंने खात्री कर ली थी की आंटी ही बुला रही थी मुझे. मैंने उसकी और देखा और वो बियर की चुस्की अपने गले में भर रही थी. मैंने धीरे से कहा, “जगह हैं, और मैं एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा तुम्हें.”
आंटी जी ने मुहं बनाया और बोली, “तेरी शकल देख के ही लगता हैं की तू छोटी बात करेंगा. तू मुझ से ले लेना पैसे जितने चाहियें. जगह इतनी बड़ी नहीं हैं लेकिन दो लोगों के लिए ठीक हैं.”
वैसे मुझे भी पता हैं की ऐसे समय पैसो की बात नहीं करते हैं लेकिन दोस्तों यह मुंबई हैं. यहाँ के लोग इतने चालू होते ही की हगते हुए इंसान को भी गांड की हिफाजत करनी पड़ती हैं. मैं नहीं चाहता था की वो एक रंडी हो जो मार्केटिंग का नया स्टाइल ले के बार में आई हो. आंटी जी ने मुझे धीरे से कहा की पहले वो जायेंगी और फिर मैं बिल दे के उसके पीछे निकलूं. साथ में निकलने से किसी को शक हो सकता था. इतना कह के आंटी जी उठी और आधा बियर उसने टेबल पे ही छोड़ दिया. वो काउंटर पे गई और मैंने पानी के बचाव के लिए वो आधा बियर एक ही घूंट में पी लिया.
आंटी जी ने पैसे चुकाएं और वो बहार निकली. मैंने व्हिस्की की बोतल की दो आखरी बुँदे भी पेग में निकाली और पेग को मुहं से लगा के सारे पैसे वसूल कर लिए. अभी तक मुझे नहीं पता था की यह आंटी कौन है और वो मुझे क्यूँ बुला रही हैं. लेकिन उसके चालचलन से लग रहा था की वो एक प्यासी आंटी हैं जो अपनी चूत मरवाने के लिए ही किसी को ढूंढ रही हैं. ऐसी आंटी जी के एक दो अनुभव मेरे मुंबई के ही एक दो दोस्तों को हुए थे जब कोई भाभी और आंटी ने उन्हें घर ले जा के चुदवाया था. अजीब हैं लेकिन चूत और पेट सब कुछ करवाता हैं भाई.
मैंने बहार आके देखा की आंटी जी एक गाडी के पास खड़ी थी. गाडी की आगे की सिट पे एक ड्राईवर सफ़ेद युनिफोर्म में था और आंटी ने अपनी गांड को गाडी के दरवाजे के सहारे टिकाया हुआ था. मेरे आते ही आंटी ने पीछे का दरवाजा खोला और वो खुद अंदर जा बैठी. उसने अंदर से hin मुझे इशारा किया की मैं भी अंदर आऊं. मैंने हिम्मत की और अंदर घुसा. मेरे अंदर आते ही दरवाजा फट से बंध हुआ और आंटी ने ड्राईवर से कहा, “रमेश गाडी को घर की और ले लो. रास्ते में मेडिकल से सामान भी ले आना.”
रमेश ने गाडी को दे मारा और रस्ते में मेडिकल से उसने कुछ पेकेट लिए और वो पीछे आंटी को दिए. मैंने देखा की उसमे एक दवाई का छोटा बॉक्स था और कुछ कंडोम के पैकेट्स थे. आंटी जी के इरादे मुझे उतने अच्छे नहीं लग रहे थे. रमेश ने गाडी को 5 मिनिट में एक बड़े से घर के बहार लगाया, मैंने अंदाजा लगाया की वो चर्चगेट का एरिया था. आंटी गाडी के निचे उतरी और चलने लगी. जब मैं निचे नहीं उतरा तो उसने मुड़ के मुझे पीछे आने का इशारा किया. मैं समझ गया की यह आंटी जी आज मेरे वीर्य को अपनी चूत में ले के ही मानेंगी…..!
बार से घर तक का रास्ता मेरे लिए उतना हार्ड नहीं था जितना गाडी से उतर के घर में घुसना. आंटी की चूत लेने की लालसा में कही गांड में डंडा ना पेल दिया जाएँ, यह डर मुझे था और मुझे यह कहने में जरा भी घमंड नहीं हैं. लेकिन यह आंटी जी ने वापस आके जब मेरा हाथ पकड़ के कहा की घर में मेरी 9 साल की बेटी के अलावा कोई नहीं हैं तब मेरी जान में जान आई. मैं आंटी के साथ ही घर म घुसा. अंदर घुसते ही एक बड़ा हॉल था जिसमे महंगे पेंटिंग्स और कुछ एंटिक बर्तन शो-केस के अंदर रखे दिखे. रमेश घर के अंदर नहीं आया और जब उसने कार मोड़ी तो टायर की चूऊऊऊ वाली आवाज घर के अंदर आई. आंटी मुझे ले के एक बेडरूम में गई. बेडरूम काफी बड़ा था जिसमे एक महाराजा बेड था जिसमे मलमली चद्दर और मस्त तकिये थे. आंटी मेरे पास आई और उसने मेरी छाती के ऊपर हाथ फेरा.
आंटी: मेरा नाम रोहणी हैं और मैं एक ब्यूटीशियन हूँ. मुलुंड में मेरा पार्लर हैं. मेरे पति को गुजरे हुए अब 2 साल हो गए हैं और बदन की प्यास की वजह से मैं बार और क्लब से लडको को ले के घर आती हूँ. मैं भी जानती हूँ की यह गलत हैं. मैं भी चाहती हूँ की मैं एक स्टेबल रिलेशन रखूं लेकिन लड़के किसी ना किसी बहाने से पैसे की या ब्लेकमेल वाली बात कर देते हैं और मुझे मजबूरन उन्हें छोड़ना पड़ता हैं. देखों मैं तुम्हे एक नाईट के 2000 रूपये दे सकती हूँ लेकिन पूरी रात मैं जैसे कहूँ वैसे करना हैं और मुझे लालची लोग पसंद नहीं हैं.
मैंने कहा, “आंटी मुझे कुछ लालच नहीं हैं, आप मुझे प्यार दो और मैं आप को दुगुना प्यार दूंगा.”
आंटी ने मेरी शर्ट की बटन खोली और अपना हाथ मेरी खुली छाती पे फेरा. उसकी उँगलियाँ मेरे बालों को छू रही थी जिस से मेरी उत्तेजना और भी बढ़ रही थी. आंटी ने फिर दूसरा हाथ मेरी पेंट के ऊपर रखा और उसे लंड की और ले गई. उसने जैसे ही मेरे लंड को दबाया मेरे मुहं से आह निकल पड़ी. उसने जो सेक्सी अंदाज से लंड को दबाया था की बस मन किया को वो ऐसे हाथ से ही मुझे पकडे रहे. आंटी थोडा आगे बढ़ी और उसने पेंट की ज़िप खोली. उसकी उँगलियाँ अब अंदर घुसी और लंड को वो चड्डी के ऊपर से ही दबाने लगी. वाऊ क्या मजा आ रहा था. साली व्हिस्की तो कब से हवा बन के उड़ चुकी थी. व्हिस्की का नशा आंटी की चूत के नशे के सामने फीका पड़ गया था. आंटी ने अब पेंट के बटन को खोला और पेंट को निचे कर दी. उसने मेरी चड्डी को भी हटा दिया. मेरा लंड खड़ा फनफना रहा था जिसे आंटी की चूत और गांड का मजा लेना था. आंटी ने मेरे लंड के सुपाड़ें को अपने हाथ में लिया और जैसे लंड को नापतोल करने लगी.
आंटी: काफी मजबूत हैं हथियार तो तुम्हारा.
मैं: बस आंटी आप एक बार लेके देखो, आप सब भूल जायेंगी. मेरी बीवी को साल में एक बार चोदता हूँ लेकिन उसे चलने के काबिल नहीं रखता हूँ.
आंटी हंस पड़ी और उसने अपने पर्स से कंडोम निकाला. मैं चौंक गया यह क्या साला कोई फॉर-प्ले नहीं और सीधा लंड और चूत का खेल. आंटी ने कंडोम को मेरे लौड़े पे रोल किया और लंड के ऊपर यह सुरक्षा छतरी पहना दी. मैं अभी भी हैरत में था और मैंने उसे पूछ ही लिया. मैं: सीधा सेक्स ही करेंगे क्या आंटी जी. और कुछ नहीं करना हैं? आंटी हंस पड़ी और बोली, “आज जो भी करेंगे कंडोम लगा के ही करेंगे. कल तुम्हारा और मेरा मेडिकल चेकअप करवा लेंगे और फिर कंडोम के बिना भी करेंगे. मैं नहीं चाहती की तुम्हें या मुझे कोई बीमारी लगें. मैं लंड चुसुंगी लेकिन इस कंडोम के साथ ही.”
मैं मनोमन कहा चलो कोई नहीं आंटी की चूत मिलेंगी ना कंडोम के साथ ही सही. आंटी ने अपना पल्लू हटाया और उसके भारी क्लेवेज को देख के मैं भी उत्तेजित हो उठा. आंटी ने साडी को खोला और अब वो केवल ब्लाउज और पेटीकोट में थी. वो मेरे सामने बैठ गई और उसने मेरे लंड को हाथ में पकड के हिलाना चालू किया. कंडोम की चिकनाहट की वजह से लंड को बहुत ही मजा आ रहा था. लौड़ा ऐसे 1 मिनिट तक हिलाने के बाद आंटी ने अपना मुहं खोला और लपक से लंड को अपने मुहं में भर लिया. वाऊ…आंटी ने क्या चूसा लगाया था कंडोम पहने हुए मेरे लौड़े को. आंटी ने लंड को निचे के हिस्से से पकड के ऊपर किया और वो उसे फिर से हिलाने लगी. और फिर वापस उसने मुहं खोल के लंड को लपक लिया. आंटी जब जब ऐसा करती थी मेरा लंड और भी टाईट होता था और मैं आंटी की चूत लेने के लिए बेताब हो उठता था.
आंटी ने करीब 5 मिनिट तक मेरा लंड चूसा और उसे एकदम लाल लाल कर डाला. अब मैंने आंटी के ब्लाउज के बटन को धीरे से खोल दिए. आंटी ने अंदर लाल रंग की ब्रा पहनी थी जिसे उसने खुद ही पीछे हाथ कर के खोल दिया. आंटी के भारी बूब्स हवा में उछल पड़ें और मैं उन्हें हैरतभरी नजरों से देखने लगा. ब्रा के अंदर बूब्स की साइज़ आधी हो गई थी. लेकिन जैसे ही उन्हें बहार निकाला गया वो किसी छोटे फ़ुटबाल से कम नहीं लग रहे थे. अब मैं आंटी की चूत को भी देखना चाहता था. आंटी उठ खड़ी हुई और मैंने उसके पेटीकोट के नाड़ें को पकड के खिंचा. आंटी का पेटीकोट जमीन पर गिर गया. अंदर पहनी हुई सफ़ेद पेंटी की पट्टी के ऊपर आंटी की 2-3 झांटे भी दिख रही थी. मैंने धीरे से पेंटी को खिंचा और मेरे सामने थी आंटी की चूत.
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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