FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--11
अब आगे....
मैं जानता था की भाभी की आँखों में आँखें डाल के मैं अपने प्यार का इजहार उनसे कभी नहीं कर पाउँगा| इसीलिए मैंने अपनी आँखें बंद की और एक झटके में भाभी से सब कह देना चाहता था... परन्तु शब्द ही नहीं मिल रहे थे.... मन अंदर से कचोट रहा था... एक अजीब सी तड़पन महसूस हो रही थी... मैं उन्हें कहना चाहता था की अभी तक जो भी हमारे बीच हुआ वो मेरे लिए सिर्फ और सिर्फ एक उत्साह था... परन्तु अब एक चुम्बकीये शक्ति मुझे भाभी की और खींच रही थी.. और वो शक्ति इतनी ताकतवर थी की वो हम दोनों को मिला देना चाहती थी| दो जिस्म एक जान में बदल देना चाहती थी....
भाभी ने मेरी हालत का कोई और ही अर्थ निकला... उन्हें लगा जैसे मैं वासना के आगे विवश होता जा रहा हूँ और वो मुझे हिम्मत बंधाने लगीं:
भाभी: मानु मैं जानती हूँ तुम्हें बहुत बुरा लग रहा है... पर अब किया भी गया जा सकता है? कैसे भी करके आज का दिन सब्र कर लो... कल……….
मैंने आँखें खोली…. मैं कुछ बोल तो नहीं पाया बस गर्दन ना में हिला के उन्हें बताने की कोशिश करने लगा की आप मुझे गलत समझ रहे हो... पता नहीं की भाभी समझीं भी या नहीं|
मैंने भाभी के होंठों पे अपना हाथ रख उन्हें आगे बोलने से रोक दिया... क्योंकि वो मेरी भावनाओं का गलत अर्थ निकाल रही थीं और मैं बहुत ही शर्मिंदा महसूस कर रहा था|मैं भाभी की ओर बढ़ा और उनके होंठों पे अपने होंठ रख दिए... मैं तो जैसे उन्हें बस चुप कराना चाहता था... परन्तु खुद पे काबू नहीं रख पाया और अपनी द्वारा तय की हुई सीमा तोड़ दी| मैंने अपने दोनों हाथों से उनके मुख को पकड़ लिया... और मैं बिना रुके उनके होंठों पे हमला करता रहा... मैं कभी उनके नीचले होंठ को अपने मुख में भर चूसता... तो कभी उनके ऊपर के होंठ को| आज नाजाने क्यों मुझे उनके होंठों से एक भीनी-भीनी सी खुशबु मुझे उनकी तरफ खींचे जा रही थी और मैं मदहोश होता जा रहा था... पहली बार मैं कोई काम बिना किसी रणनीति के कर रहा था... आज मैंने पहली बार अपनी जीभ उनके मुख में डाली... इस हमले से भाभी थोड़ा चकित रह गई पर इस बार उन्होंने भी पलट वार करते हुए मेरी जीभ अपने दातों के बीच जकड ली! और उसे चूसने लगीं.... मेरे मुंह से
"म्म्म्म...हम्म्म" की आवाज निकल पड़ी|
भाभी जिस तरह से मेरा साथ दे रही थी उससे लग रहा था की अब उनसे भी खुद पे काबू रखना मुश्किल हो रहा है| अचानक मेरे दिमाग ने मुझे सन्देश भेजा की मेरे पास ज्यादा समय नहीं है... मुझे जल्दी से जल्दी सब करना होगा| इसलिए मैंने भाभी के जीभ से मेरे मुख के भीतर हो रहे प्रहारों को रोक दिया और मैंने तुरंत ही दरवाजा बंद इया और वापस आ के भाभी को अशोक भैया के कमरे के पास कोने पे खड़ा किया और मैं नीचे अपने घुटनों के बल बैठ गया| मेरे अंदर भाभी की योनि देखने की तीव्र इच्छा होने लगी और मैंने भाभी की साडी उठा दी... मैं देख के हैरान था की भाभी ने नीचे पैंटी नहीं पहनी थी!!! मैंने आज पहली बार एक योनि देखि थी इसलिए मैं उत्साह से भर गया... और मैंने बिना देर किये उनकी योनि को अपनी जीभ से छुआ.. भाभी एक डैम से सिहर उठीं...
भाभी का योनि द्वार बंद था और जैसे ही मैंने अपनी जीभ से उससे कुरेदा वो तो जैसे उभर के मेरे समक्ष आ गया... उनका क्लीट (भगनासा) लाल रंग से चमकने लगा मैंने भाभी की योनि को थोड़ा और कुरेदा तो मुझे अंदर का गुलाबी हिस्सा दिखाई दिया.. उसे देख के तो जैसे मैं सम्मोहित हो गया| यदि आपने किसी कुत्ते को कटोरे में से पानी पीते देखा हो तो: ठीक उसी प्रकार मेरी जीभ भाभी की योनि से खेल रही थी ... उधर भाभी की सांसें पूरी तेजी से चलने लगीं.. भाभी कसमसा गई और मुझे अपने द्वारा किये प्रहार के लिए प्रोत्साहन देने लगीं.. भाभी की योनि (बुर) से एक तेज सुगंध उठने लगी.. जो मुझे दीवाना बनाने लगी.. अब मैं और देर नहीं करना चाहता था इसलिए मैं वापस खड़ा हो गया...
भाभी: मानु मजा आया?
मैंने केवल गर्दन हां में हिलाई... क्योंकी अब भी मैं बोलने की हालत में नहीं था| मैंने अपनी पेंट की चैन खोली और अपना लंड भाभी के समक्ष प्रस्तुत किया.. मेरा लंड बिलकुल तन चूका था .. ऐसा लगा मानो अभी फूट पड़ेगा| क्योंकि ये मेरा पहला अवसर था इसलिए मैंने भाभी से कहा:
मैं: भाभी इसे सही जगह लगाओ ना.. मुझे लगाना नहीं आता!!!
भाभी इस नादानी भरी बात सुन मुस्कुराई और उन्होंने मेरा लंड हाथ में लिया और मुझे अपने से चिपका लिया|जैसे ही उन्होंने मेरे लंड को अपनी बुर से स्पर्श कराया मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया... भाभी की तो सिसकारी छूट गई:
"स्स्स्स...सीईइइइइ म्म्म्म"
उनकी बुर अंदर से गीली थी और मुझे गर्माहट का एहसास होने लगा| काफी देर से खड़े लंड को जब भाभी के बुर की गरम दीवारों ने जकड़ा तो मेरे लंड को सकून मिला.... भाभी ने मुझे अपने आलिंगन में कैद कर लिया... और मैंने भी भाभी को कास के अपनी बाँहों में भर लिया|मैंने बिना सोचे समझे खड़े-खड़े ही नीचे से झटके मरने शुरू कर दिए... मेरे झटके बिना किसी लय के भाभी की बुर में हमला कर रहे थे... पर भाभी की मुख से सिस्कारियां जारी थी
"स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स "
और वे मेरे द्वारा दिए गए हर झटके को महसूस कर आनंदित हो रही थी.... अब मेरी भी आहें निकल पड़ीं
"अह्ह्हह्ह्ह्ह......म्म्म्म... अम्म्म्म"
मैंने नीचे से अपना आक्रमण जारी रखा और साथ ही साथ भाभी की गर्दन पे अपने होंठ रख उसे चूसने लगा... भाभी ने अपना एक हाथ मेरे सर पे रख मुझे अपनी गर्दन पे दबाने लगीं| उनका प्रोत्साहन पा मैंने उनकी गर्दन पे अपने दांत गड़ा दिए.. भाभी की चीख निकल पड़ी:
"आअह अह्ह्ह्ह्न्न.. मानु.....स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स"
मैं उनकी गर्दन किसी ड्रैकुला की तरह चूस और चाट रहा था... बस मेरी इच्छा उनका खून पीने की नहीं थी|
अभी केवल दस मिनट ही हुए थे और अब मैं इस सम्भोग को और आगे नहीं ले जा सकता था.. मेरा ज्वालामुखी भाभी के बुर के अंदर ही फूट पड़ा| भाभी को जैसे ही मेरा वीर्य उनकी बुर में महसूस हुआ उन्होंने मेरे लंड को एक झटके में अपने हाथ से पकड़ बहार निकाल दिया... जैसे ही मेरा लंड बहार आया भाभी की बुर से एक गाढ़ा पदार्थ नीचे गिरा और उसके गिरते ही आवाज आई:
"पाच... " ये पदार्थ कुछ और नहीं बल्कि मेरे और भाभी के रसों का मिश्रण था| भाभी निढाल होक मेरे ऊपर गिर पड़ीं| मैंने उन्हें संभाला और उनके होंठों पे चुम्बन किया और उन्हें दिवार दे सहारे खड़ा किया और अपनी जेब से रुमाल निकल के उनके बुर को पोंछा और फिर अपने लें को साफ़ किया| मैंने पास ही पड़े पोंछें से जमीन पे पड़ी उस "खीर" को साफ़ करने लगा जिस पे मक्खियाँ भीं-भिङने लगीं थी|
भाभी अब होश में आ गई थीं और वो स्वयं छलके चारपाई पे बैठ गईं| मैंने हाथ धोये और तुरंत दरवाजा खोल उनके पास खड़ा हो गया... भाभी मेरी ओर बड़े प्यार से देख रही थी .. पर मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था|
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अब आगे....
मैं जानता था की भाभी की आँखों में आँखें डाल के मैं अपने प्यार का इजहार उनसे कभी नहीं कर पाउँगा| इसीलिए मैंने अपनी आँखें बंद की और एक झटके में भाभी से सब कह देना चाहता था... परन्तु शब्द ही नहीं मिल रहे थे.... मन अंदर से कचोट रहा था... एक अजीब सी तड़पन महसूस हो रही थी... मैं उन्हें कहना चाहता था की अभी तक जो भी हमारे बीच हुआ वो मेरे लिए सिर्फ और सिर्फ एक उत्साह था... परन्तु अब एक चुम्बकीये शक्ति मुझे भाभी की और खींच रही थी.. और वो शक्ति इतनी ताकतवर थी की वो हम दोनों को मिला देना चाहती थी| दो जिस्म एक जान में बदल देना चाहती थी....
भाभी ने मेरी हालत का कोई और ही अर्थ निकला... उन्हें लगा जैसे मैं वासना के आगे विवश होता जा रहा हूँ और वो मुझे हिम्मत बंधाने लगीं:
भाभी: मानु मैं जानती हूँ तुम्हें बहुत बुरा लग रहा है... पर अब किया भी गया जा सकता है? कैसे भी करके आज का दिन सब्र कर लो... कल……….
मैंने आँखें खोली…. मैं कुछ बोल तो नहीं पाया बस गर्दन ना में हिला के उन्हें बताने की कोशिश करने लगा की आप मुझे गलत समझ रहे हो... पता नहीं की भाभी समझीं भी या नहीं|
मैंने भाभी के होंठों पे अपना हाथ रख उन्हें आगे बोलने से रोक दिया... क्योंकि वो मेरी भावनाओं का गलत अर्थ निकाल रही थीं और मैं बहुत ही शर्मिंदा महसूस कर रहा था|मैं भाभी की ओर बढ़ा और उनके होंठों पे अपने होंठ रख दिए... मैं तो जैसे उन्हें बस चुप कराना चाहता था... परन्तु खुद पे काबू नहीं रख पाया और अपनी द्वारा तय की हुई सीमा तोड़ दी| मैंने अपने दोनों हाथों से उनके मुख को पकड़ लिया... और मैं बिना रुके उनके होंठों पे हमला करता रहा... मैं कभी उनके नीचले होंठ को अपने मुख में भर चूसता... तो कभी उनके ऊपर के होंठ को| आज नाजाने क्यों मुझे उनके होंठों से एक भीनी-भीनी सी खुशबु मुझे उनकी तरफ खींचे जा रही थी और मैं मदहोश होता जा रहा था... पहली बार मैं कोई काम बिना किसी रणनीति के कर रहा था... आज मैंने पहली बार अपनी जीभ उनके मुख में डाली... इस हमले से भाभी थोड़ा चकित रह गई पर इस बार उन्होंने भी पलट वार करते हुए मेरी जीभ अपने दातों के बीच जकड ली! और उसे चूसने लगीं.... मेरे मुंह से
"म्म्म्म...हम्म्म" की आवाज निकल पड़ी|
भाभी जिस तरह से मेरा साथ दे रही थी उससे लग रहा था की अब उनसे भी खुद पे काबू रखना मुश्किल हो रहा है| अचानक मेरे दिमाग ने मुझे सन्देश भेजा की मेरे पास ज्यादा समय नहीं है... मुझे जल्दी से जल्दी सब करना होगा| इसलिए मैंने भाभी के जीभ से मेरे मुख के भीतर हो रहे प्रहारों को रोक दिया और मैंने तुरंत ही दरवाजा बंद इया और वापस आ के भाभी को अशोक भैया के कमरे के पास कोने पे खड़ा किया और मैं नीचे अपने घुटनों के बल बैठ गया| मेरे अंदर भाभी की योनि देखने की तीव्र इच्छा होने लगी और मैंने भाभी की साडी उठा दी... मैं देख के हैरान था की भाभी ने नीचे पैंटी नहीं पहनी थी!!! मैंने आज पहली बार एक योनि देखि थी इसलिए मैं उत्साह से भर गया... और मैंने बिना देर किये उनकी योनि को अपनी जीभ से छुआ.. भाभी एक डैम से सिहर उठीं...
भाभी का योनि द्वार बंद था और जैसे ही मैंने अपनी जीभ से उससे कुरेदा वो तो जैसे उभर के मेरे समक्ष आ गया... उनका क्लीट (भगनासा) लाल रंग से चमकने लगा मैंने भाभी की योनि को थोड़ा और कुरेदा तो मुझे अंदर का गुलाबी हिस्सा दिखाई दिया.. उसे देख के तो जैसे मैं सम्मोहित हो गया| यदि आपने किसी कुत्ते को कटोरे में से पानी पीते देखा हो तो: ठीक उसी प्रकार मेरी जीभ भाभी की योनि से खेल रही थी ... उधर भाभी की सांसें पूरी तेजी से चलने लगीं.. भाभी कसमसा गई और मुझे अपने द्वारा किये प्रहार के लिए प्रोत्साहन देने लगीं.. भाभी की योनि (बुर) से एक तेज सुगंध उठने लगी.. जो मुझे दीवाना बनाने लगी.. अब मैं और देर नहीं करना चाहता था इसलिए मैं वापस खड़ा हो गया...
भाभी: मानु मजा आया?
मैंने केवल गर्दन हां में हिलाई... क्योंकी अब भी मैं बोलने की हालत में नहीं था| मैंने अपनी पेंट की चैन खोली और अपना लंड भाभी के समक्ष प्रस्तुत किया.. मेरा लंड बिलकुल तन चूका था .. ऐसा लगा मानो अभी फूट पड़ेगा| क्योंकि ये मेरा पहला अवसर था इसलिए मैंने भाभी से कहा:
मैं: भाभी इसे सही जगह लगाओ ना.. मुझे लगाना नहीं आता!!!
भाभी इस नादानी भरी बात सुन मुस्कुराई और उन्होंने मेरा लंड हाथ में लिया और मुझे अपने से चिपका लिया|जैसे ही उन्होंने मेरे लंड को अपनी बुर से स्पर्श कराया मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया... भाभी की तो सिसकारी छूट गई:
"स्स्स्स...सीईइइइइ म्म्म्म"
उनकी बुर अंदर से गीली थी और मुझे गर्माहट का एहसास होने लगा| काफी देर से खड़े लंड को जब भाभी के बुर की गरम दीवारों ने जकड़ा तो मेरे लंड को सकून मिला.... भाभी ने मुझे अपने आलिंगन में कैद कर लिया... और मैंने भी भाभी को कास के अपनी बाँहों में भर लिया|मैंने बिना सोचे समझे खड़े-खड़े ही नीचे से झटके मरने शुरू कर दिए... मेरे झटके बिना किसी लय के भाभी की बुर में हमला कर रहे थे... पर भाभी की मुख से सिस्कारियां जारी थी
"स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स "
और वे मेरे द्वारा दिए गए हर झटके को महसूस कर आनंदित हो रही थी.... अब मेरी भी आहें निकल पड़ीं
"अह्ह्हह्ह्ह्ह......म्म्म्म... अम्म्म्म"
मैंने नीचे से अपना आक्रमण जारी रखा और साथ ही साथ भाभी की गर्दन पे अपने होंठ रख उसे चूसने लगा... भाभी ने अपना एक हाथ मेरे सर पे रख मुझे अपनी गर्दन पे दबाने लगीं| उनका प्रोत्साहन पा मैंने उनकी गर्दन पे अपने दांत गड़ा दिए.. भाभी की चीख निकल पड़ी:
"आअह अह्ह्ह्ह्न्न.. मानु.....स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स"
मैं उनकी गर्दन किसी ड्रैकुला की तरह चूस और चाट रहा था... बस मेरी इच्छा उनका खून पीने की नहीं थी|
अभी केवल दस मिनट ही हुए थे और अब मैं इस सम्भोग को और आगे नहीं ले जा सकता था.. मेरा ज्वालामुखी भाभी के बुर के अंदर ही फूट पड़ा| भाभी को जैसे ही मेरा वीर्य उनकी बुर में महसूस हुआ उन्होंने मेरे लंड को एक झटके में अपने हाथ से पकड़ बहार निकाल दिया... जैसे ही मेरा लंड बहार आया भाभी की बुर से एक गाढ़ा पदार्थ नीचे गिरा और उसके गिरते ही आवाज आई:
"पाच... " ये पदार्थ कुछ और नहीं बल्कि मेरे और भाभी के रसों का मिश्रण था| भाभी निढाल होक मेरे ऊपर गिर पड़ीं| मैंने उन्हें संभाला और उनके होंठों पे चुम्बन किया और उन्हें दिवार दे सहारे खड़ा किया और अपनी जेब से रुमाल निकल के उनके बुर को पोंछा और फिर अपने लें को साफ़ किया| मैंने पास ही पड़े पोंछें से जमीन पे पड़ी उस "खीर" को साफ़ करने लगा जिस पे मक्खियाँ भीं-भिङने लगीं थी|
भाभी अब होश में आ गई थीं और वो स्वयं छलके चारपाई पे बैठ गईं| मैंने हाथ धोये और तुरंत दरवाजा खोल उनके पास खड़ा हो गया... भाभी मेरी ओर बड़े प्यार से देख रही थी .. पर मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था|
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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