FUN-MAZA-MASTI
घर की बहू
रात के १२ बाज़ चुके थे। छोटे से गाँव राजापुर में बहूत ही सन्नाटा छ गया था। राजापुर गरीब की बस्ती है। इसी बस्ती के एक कोने में हसन का घर है। हरिया अपने घर के एक अँधेरी कोठारी में रोज़ की तरह अपनी बीबी की चुदाई में मशगुल था। हसन की उमर ४५ साल की है। और उसकी बीबी की उमर ४० साल की है। हरिया एक गरीब किसान है। हरिया अपनी बीबी की चूत में लंड डाल कर काफ़ी देर तक उसकी चुदाई कर रहा था। उसकी बीबी मुन्नी बिना किसी उत्तेजना के अपने दोनों पैर फैला कर यूँ ही पड़ी थी जैसे की उसे हरिया के बड़े लंड की कोई परवाह ही न हो या फिर कोई ताकिल्फ़ ही न हो रही है। केवल हर धक्के पर आह आह की आवाज निकल रही थी। मुन्नी की बुर कब का पानी छोड़ चुका था। थोडी ही देर में हरिया का लंड से माल निकलने लगा तो वो भी आह आह कर के मुन्नी के चूची पे अपना मुह रख दिया। मुन्नी की बेजान चूची को उसने मुह में ले कर चूसने लगा। उसने अपना लंड मुन्नी के बुर से निकाला । और मुन्नी के बगल में लेट गया। उसने अपनी बीडी जलाई और पीने लगा। मुन्नी उसके लटक रहे लंड को अपने हाथों में ले लिया और उस को खींच- तान करने लगी। लेकिन अब हरिया के लंड में कोई उत्साह नही था। वो एक बेजान लत की तरह मुन्नी के हाथो का खिलौना बना हुआ था। मुन्नी ने कहा- जानते हो जी ! आज क्या हुआ? हरिया ने कहा- क्या? मुन्नी ने कहा- रोज़ की तरह आज में और मालती ( मुन्नी की बहु) सुबह शौच करने खेत गए । वहां हम दोनों एक दुसरे के सामने बैठ कर पैखाना कर थे.... तभी मैंने देखा की मालती अपने बुर में ऊँगली घुसा कर मुठ मारने लगी। मैंने पूछा ये क्या कर रही है तू? तो उसने मेरी पीछे की तरफ़ इशारा किया और कहा जरा उधर तो देखो अम्मा। मैंने पीछे देखा तो एक कुत्ता एक कुतिया पे चढा हुआ है। मैंने कहा- अच्छा, तो ये बात है। मालती ने कहा- देख कर बर्दाश्त नही हुआ इसलिए मुठ मार रही हूँ। मैंने कहा - जल्दी कर, घर भी चलना है। मालती ने कहा- हाँ अम्मा , बस अब निकलने ही वाला है। और एक मिनट हुए भी ना होंगे की उसके बुर से इतना माल निकलने लगा की एक मिनट तक निकलता ही रहा। मैंने पूछा- क्यों री , कितने दिन का माल जमा कर रखा था? उसने कहा- कल दोपहर को ही तो निकाला था। मैंने भी सोचा- कितना जल्दी इतना माल जमा हो जाता है। हरिया ने कहा- वो अभी जवान है ना। और फिर उसकी गर्मी शांत करने के लिए अपना बेटा भी तो यहाँ नही है ना। कमाने के लिए परदेश चला गया। अरे में तो मना कर रहा था। ३ महीने भी नही हुए उसकी शादी को और अपनी जवान पत्नी को छोड़ कमाने बम्बई चला गया। बोला अच्छी नौकरी है। अभी बताओ चार महीने से आने का नाम ही नही है। बस फोन कर के हालचाल ले लेता है। अरे फोन से बीबी की गर्मी थोड़े ही शांत होने वाली है? अब उसे कौन कहे ये सब बातें खुल के?
थोडी देर शांत रहने के बाद मुन्नी फिर से हरिया के लंड को हाथ में ले कर खेलने लगी। हरिया ने मुन्नी से पूछा- क्या तुम रोज़ ही उसके सामने बैठ के पैखाना करती हो? मुन्नी ने कहा- हाँ। हरिया- तब तो तुम दोनों एक दूसरे का बुर रोज़ देखती होगी। मुन्नी- हाँ, बुर क्या पूरा गांड भी देखा है हम दोनों ने एक दूसरे का। बिलकूल ही पास बैठ कर पैखाना करते हैं। हरिया- अच्छा , एक बात तो बता। उसका बुर तेरी तरह काला है या गोरा? मुन्नी- पूरा गोरा तो नही है लेकिन मेरे से साफ़ है। मुझे उसके बुर पर के बाल बड़े ही प्यारे लगते हैं। बड़े बड़े और लहरदार रोएँ की तरह बाल। एक बार तो मैंने उसके बाल भी छुए हैं। हरिया- बुर कैसा है उसका? मुन्नी- बुर क्या है लगता है मनो कटे हुए टमाटर हैं। एक दम फुले फुले लाल लाल। अचानक मुन्नी ने महसूस किया की हरिया का लंड खड़ा हो रहा है। वो समझ गई की हरिया को मज़ा आ रहा है। वो बोली- अच्छा ,एक बात तो बताओ। हरिया बोला- क्या? मुन्नी- क्या तुम उसे चोदोगे? हरिया- ये कैसे हो सकता है। मुन्नी- क्यों नही हो सकता है? वो जवान है । अगर गर्मी के मारे किसी और के साथ भाग गई तो क्या मुह दिखायेंगे हमलोग गाँव वालों को? अगर तुम उसकी गर्मी घर में ही शांत कर दो तो वो भला किसी दूसरे का मुह क्यों देखेगी। जब वो किसी कुत्ते-कुतिया को देख कर मुठ मार सकती है तो वो किसी के साथ भी भाग सकती है। कितना नजर रख सकते हैं हम लोग? थोड़े दिन की तो बात है । फिर हमारा बेटा मोहन उसे अपने साथ बम्बई ले जाएगा तब तो हमें कोई चिंता करने की जरूरत तो नही है न। हरिया- क्या मालती मान जायेगी। मुन्नी ने कहा- कल रात को में उसे तुम्हारे पास भेजूंगी। उसी समय अपना काम कर लेना। हरिया का लंड पूरा जोश में आ गया। उसने मुन्नी की बुर में अपना लंड डालते हुए कहा- तुने तो मुझे गरम कर दिया रे। मुन्नी ने मुस्कुरा कर अपनी दोनों टांगें फैला दी और आह आह की आवाज़ निकने लगी। इस बार वो जोर जोर से आवाज निकाल रही थी। हालंकि उसे कोई ख़ास दर्द नही हो रहा था लेकिन वो जोर जोर से बोलने लगी- आह आह, धीरे धीरे करो ना। दर्द हो रहा है। ये आवाज़ बगल के कमरे में सो रही उसकी बहु मालती को जगाने के लिए काफ़ी थी। चुदाई की मीठी दर्द भरी आवाज़ सुन कर मालती का बुर चिपचिपा हो गया। वो अपने पिया मोहन के लंड को याद कर के अपने बुर में ऊँगली डाली और दस मिनट तक ऊँगली से ही बुर की गत बना डाली।
सुबह हुई । दोनों सास बहु खेत गई । दोनों एक दूसरे के सामने बठी कर पैखाना कर रही थी। मालती ने अपनी सास मुन्नी की बुर देख कर बोली- अम्मा, तुम्हारा बुर कुछ सुजा हुआ लग रहा है। मुन्नी ने हस्ते हुए कहा- ये जो तेरे ससुर जी हैं न बुढापे में भी नही मानते। देख न कल रात को इतना चोदा की अभी तक दुःख रहा है। मालती ने कहा- एक बात पूछूं अम्मा? मुन्नी- हाँ, पूछ न। मालती- बाबूजी का लंड खड़ा होता है अभी भी? मुन्नी- हाँ री। खड़ा क्या? लगता है बांस का कहता है। जब वो मुझे छोड़ते हैं तो लगता है की अब मेरी बुर तो फट ही जायेगी। एक हाथ बराबर हो जाता है उनका लंड खड़ा हो के। मुन्नी ने देखा की मालती अपनी ऊँगली अपने बुर में घुसा दी है। मुन्नी ने पूछा- क्या हुआ तुझे? क्या फिर कोई कुत्ता है यहाँ ? मालती बोली- नही अम्मा, मुझे तुम्हारी बातें सुन के गर्मी चढ़ गई है। इसे निकालना जरूरी है। मुन्नी बोली- सुन, तू एक काम क्यों नही करती? आज रात तू अपने ससुर के साथ अपनी गर्मी क्यों नही निकल देती? मालती चौंक कर बोली- ये कैसे हो सकता है? वो मेरे ससुर हैं। मुन्नी बोली- अरे तेरी जरूरत को समझते हुए मैंने ऐसा कहा। तुझे इस समय किसी मर्द की जरूरत है। अब जब घर में ही मर्द मौजूद हो तो क्यों नही उसका लाभ उठा जाए। मालती का मन अब दोल चुका था। वो बोली- कहीं बाबूजी नाराज हों गए तो। मुन्नी बोली- अरे तू रात को उनके पास चले जाना। में बहाना बना के भेज दूँगी। धीरे धीरे रात के अंधेरे में जब तू उनको छुएगी ना तो तू भूल जायेगी की तू उनकी बहु है और वो भूल जायेगे की वो तुम्हारे ससुर हैं। ये सुन कर मालती के बुर में मानो तूफ़ान आ गया। उसके बुर से इतना पानी निकलने लगा की मुन्नी को लगा की ये पेशाब कर रही है। अब मुन्नी खुश थी। दोनों तरफ़ मामला सेट था।
रात हुई। खाना- वाना ख़तम कर मुन्नी हरिया के कमरे में गई और बता दी की में मालती को भेज रही हूँ। उसको भी समझा दी हूँ। तुम सिर्फ़ थोडी पहल करना। वो तो कुत्ते से भी चुदवाने के लिए तैयार बैठी है। तुम तो इंसान ही हों। कह के वो बाहर चली आई। और जोर से बोली- बहु, ओ बहु, सुन आज मेरी तबियत कुछ ठीक नही है। तू जरा अपने ससुर जी को तेल तो लगा दे। फिर दरवाजे के बाहर से हरिया को बोली- सुनते हों जी , में जरा छत पर सोने जा रही हूँ। मालती बहु से तेल लगवा लेना।
मालती जैसे ही दरवाजे के पास आई मुन्नी ने उस से धीरे से कहा। देख मैंने बहाना बना कर तुम्हे उनके पास भेज रही हूँ। मालिश करते करते उनके लंड तक अपना हाथ ले जाना। शर्माना नही। अगर उनको बुरा लगे तो कह देना की अंधेरे में दिखा नही। अगर कुछ नही बोले तो फिर हाथ लगाना। जब देखना की कुछ नही बोल रहे हैं तो समझना की उन्हें भी अच्छा लग रहा है। ठीक है ना? अब मे चलती हूँ।
कह केमुन्नी छत पे चली गई। इधर मालती हाथ में तेल की शीशी लिए हरिया के कमरे में आई। हरिया ने कहा- आजा। वैसे तो तेल मालिश की जरूरत नही थी, लेकिन आज मेरा पैर थोड़ा सा दर्द कर रहा है इसलिए मालिश जरूरी है। मालती हरिया के बिस्तर पर बैठ गई। कमरे में एक छोटी सी डिबिया जल रही थी। जो की पर्याप्त रौशनी के लिए अनुकूल नही थी। मालती ने कहा- कोई बात नही। में आपकी अच्छे से मालिश कर देती हूँ। आप ये लूंगी उतार ले। हरिया ने कहा- बहु, जरा ये डिबिया बुझा दे , क्यों की मैंने लूंगी के अन्दर छोटी सी लंगोट ही पहन रखी है। मालती ने डिबिया भुझा दी। अब वहां घुप अँधेरा छा गया। सिर्फ़ बाहर की चांदनी रात की हलकी रोशनी ही अन्दर आ रही थी। हरिया ने लूंगी उतार दी। मालती की सांसे तेज़ हों गई। वो तेल को हरिया के पैरों में लगाने लगी। धीरे धीरे वो हरिया के जांघों में तेल लगाने लगी। धीरे से उसने जान बुझ कर हरिया के लंड तक अपना हाथ ले गई। हरिया ने कुछ नही कहा। मालती दुबारा हरिया के लंड पर हाथ लगाया। हरिया ने कहा- बहु, तुम्हे गर्मी लग रही होगी। तुम अपनी साड़ी खोल दो ना। वैसे भी तेल लगने से सारी ख़राब हों सकती है। मालती ने कहा- बाबूजी , सारी के नीचे मैंने पेटीकोट नही पहना है। सिर्फ़ पेंटी पहन रखा है। इसलिए में सारी नही खोल सकती। हरिया ने कहा- तो क्या हुआ? वैसे भी अंधेरे में में तुम्हे देख थोड़े ही पा रहा हूँ जो तुम यूँ शर्मा रही हों? मालती तो ये चाहती थी। उसने अपनी साड़ी खोल के एक किनारे रख दिया। और तेल को वो जांघों और लंड के बीच लगाने लगी। जिससे वो बार बार हरिया के अंडकोष पर हाथ लगा सकती थी। हरिया ने जब देखा की बात लगभग बन चुकी है। उसने अपनी लंगोट की डोरी को कब खोल दिया मालती को पता भी ना चला। धीरे धीरे जब वो हरिया के अंडकोष पर हाथ फेर रही थी तो उसी के हाथ से उसकी लंगोट हट गई। लंगोट हटने पर मालती पूरी गरम हों गई। अब वो हरिया के लंड को छूने की कोशिश कर रही थी। धीरे धीरे उसने लंड पर हाथ लगाया और हटा लिया। हरिया का लंड सोया हुआ था। लेकिन क्यों ही मालती ने हरिया का लंड छुआ मालती के जिस्म में एक सिरहन सी दौड़ गई। अब वो दुबारा अपना हाथ हरिया के दूसरे जांघ पर इस तरह ले गई जिस से उसकी कलाई हरिया के लुंड को छूती रहे। हरिया भी पका हुआ खिलाड़ी था। उसका लंड जल्दी खड़ा होने वाला नही था। वो बोला- बहु तू थक गई होगी। आ जरा लेट जा। उसने लगभग जबरदस्ती बहु को पकड़ कर अपने बगल में लिटा दिया और उसके चूची पर हाथ रख के बोला- इसे खोल दे बहूत गर्मी है। मालती ने अपने ब्लाउज का हुक खोल दिया। हरिया ने ब्लाउज को मालती के चूची पर से अलग कर दिया और चूची को छूने लगा। बोला- अरे तुमने अन्दर ब्रा नही पहन रखा है? खैर कोई बात नही, अब गर्मी तो नही लग रही है न? वो मालती के चूची को मसलने लगा। बोला- तेरी चूची तो एक दम सख्त है। में तेरी चूची छू रहा हूँ, तुझे बुरा तो नही लग रहा है न? मालती बोली- नही, आप मेरे साथ कुछ भी करेंगे तो में बुरा नही मानूंगी। हरिया ने कहा- शाबाश बहु, यही अच्छे बहु की निशानी है। बोल तुझे क्या चाहिए? मालती- बाबूजी मुझे कुछ नही चाहिए, सिर्फ़ आपका लंड को छूना चाहती हूँ। हरिया- एक शर्त पर। तू भी मुझे अपना बुर छूने देगी। मालती ने आव देखा ना ताव, एक झटके में अपना पेंटी उतार फेंका। हरिया ने नीचे जा कर मालती के बुर को पहले तो छुआ फिर, मुह में ले कर चूसने लगा। मालती बोली- ऐसे मत चूसिये, में मर जाऊंगी। हरिया उठ खड़ा हुआ और, मालती के हाथ में अपना लंड थमा दिया। मालती के हाथ मानो कोई खजाना मिल गया हों। वो हरिया के लंड को कभी चूमती कभी खेलती काफी देर ये करने के बाद बोली-बाबूजी, इसको मेरे बुर में एक बार दाल दीजिये न। हरिया ने अपने लटके हुए लंड को हाथ से पकड़ कर मालती के बुर में घूसा दिया। मालती के बुर में हरिया का लंड जाते ही फुफकार मरने लगा। और मालती के बुर में ही वो खड़ा होने लगा। मालती- बाबूजी ये क्या हों रहा है? जल्दी से निकल दीजिये। हरिया- कुछ नही होगा बहु। अब हरिया का लंड पूरी तरह से टाइट हों गया। मालती दर्द से छटपटाने लगी। उसे यह अंदाजा ही नही था की जिसे वो कमजोर और बुधा लंड समझ रही थी वो बुर में जाने के बाद इतना विशालकाय हों जाएगा। हरिया ने मालती को चोदना चालू किया। पहले दस मिनट तक तो मालती बाबूजी बाबूजी छोड़ दीजिये कहती रही। लेकिन हरिया नही सुना, वो धीरे धीरे उसे चोदता रहा। दस मिनट के बाद मालती का बुर थोड़ा ढीला हुआ। अब उसे भी अच्छा लग रहा था। दस मिनट और हरिया ने मालती की जम के चुदाई की। तब जा कर हरिया के अन्दर का पानी बाहर आने को हुआ तो उसने अपना लंड मालती के बुर से निकल के मालती के मुंह में लगा दिया बोला - पी जा। मालती ने हरिया के लंड को मुंह में ले कर ज्यों ही दो- तीन बार चूसा की हरिया के लंड से तेज़ धार निकली जिस से मालती के पूरा मुह भर गया। मालती ने सारा का सारा माल गकत लिया। आज जा कर मालती की गर्मी शांत हुई। उसके बाद वो रोज़ ही अपने ससुर के साथ ही सोने लगी.हाँ दो- तीन दिन में उसकी सास मुन्नी भी साथ सोने लगी। अब हरिया एक तरफ करवट ले कर बीबी को चोदता तो दूसरी तरफ़ करवट ले कर अपनी बहु मालती को।
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घर की बहू
रात के १२ बाज़ चुके थे। छोटे से गाँव राजापुर में बहूत ही सन्नाटा छ गया था। राजापुर गरीब की बस्ती है। इसी बस्ती के एक कोने में हसन का घर है। हरिया अपने घर के एक अँधेरी कोठारी में रोज़ की तरह अपनी बीबी की चुदाई में मशगुल था। हसन की उमर ४५ साल की है। और उसकी बीबी की उमर ४० साल की है। हरिया एक गरीब किसान है। हरिया अपनी बीबी की चूत में लंड डाल कर काफ़ी देर तक उसकी चुदाई कर रहा था। उसकी बीबी मुन्नी बिना किसी उत्तेजना के अपने दोनों पैर फैला कर यूँ ही पड़ी थी जैसे की उसे हरिया के बड़े लंड की कोई परवाह ही न हो या फिर कोई ताकिल्फ़ ही न हो रही है। केवल हर धक्के पर आह आह की आवाज निकल रही थी। मुन्नी की बुर कब का पानी छोड़ चुका था। थोडी ही देर में हरिया का लंड से माल निकलने लगा तो वो भी आह आह कर के मुन्नी के चूची पे अपना मुह रख दिया। मुन्नी की बेजान चूची को उसने मुह में ले कर चूसने लगा। उसने अपना लंड मुन्नी के बुर से निकाला । और मुन्नी के बगल में लेट गया। उसने अपनी बीडी जलाई और पीने लगा। मुन्नी उसके लटक रहे लंड को अपने हाथों में ले लिया और उस को खींच- तान करने लगी। लेकिन अब हरिया के लंड में कोई उत्साह नही था। वो एक बेजान लत की तरह मुन्नी के हाथो का खिलौना बना हुआ था। मुन्नी ने कहा- जानते हो जी ! आज क्या हुआ? हरिया ने कहा- क्या? मुन्नी ने कहा- रोज़ की तरह आज में और मालती ( मुन्नी की बहु) सुबह शौच करने खेत गए । वहां हम दोनों एक दुसरे के सामने बैठ कर पैखाना कर थे.... तभी मैंने देखा की मालती अपने बुर में ऊँगली घुसा कर मुठ मारने लगी। मैंने पूछा ये क्या कर रही है तू? तो उसने मेरी पीछे की तरफ़ इशारा किया और कहा जरा उधर तो देखो अम्मा। मैंने पीछे देखा तो एक कुत्ता एक कुतिया पे चढा हुआ है। मैंने कहा- अच्छा, तो ये बात है। मालती ने कहा- देख कर बर्दाश्त नही हुआ इसलिए मुठ मार रही हूँ। मैंने कहा - जल्दी कर, घर भी चलना है। मालती ने कहा- हाँ अम्मा , बस अब निकलने ही वाला है। और एक मिनट हुए भी ना होंगे की उसके बुर से इतना माल निकलने लगा की एक मिनट तक निकलता ही रहा। मैंने पूछा- क्यों री , कितने दिन का माल जमा कर रखा था? उसने कहा- कल दोपहर को ही तो निकाला था। मैंने भी सोचा- कितना जल्दी इतना माल जमा हो जाता है। हरिया ने कहा- वो अभी जवान है ना। और फिर उसकी गर्मी शांत करने के लिए अपना बेटा भी तो यहाँ नही है ना। कमाने के लिए परदेश चला गया। अरे में तो मना कर रहा था। ३ महीने भी नही हुए उसकी शादी को और अपनी जवान पत्नी को छोड़ कमाने बम्बई चला गया। बोला अच्छी नौकरी है। अभी बताओ चार महीने से आने का नाम ही नही है। बस फोन कर के हालचाल ले लेता है। अरे फोन से बीबी की गर्मी थोड़े ही शांत होने वाली है? अब उसे कौन कहे ये सब बातें खुल के?
थोडी देर शांत रहने के बाद मुन्नी फिर से हरिया के लंड को हाथ में ले कर खेलने लगी। हरिया ने मुन्नी से पूछा- क्या तुम रोज़ ही उसके सामने बैठ के पैखाना करती हो? मुन्नी ने कहा- हाँ। हरिया- तब तो तुम दोनों एक दूसरे का बुर रोज़ देखती होगी। मुन्नी- हाँ, बुर क्या पूरा गांड भी देखा है हम दोनों ने एक दूसरे का। बिलकूल ही पास बैठ कर पैखाना करते हैं। हरिया- अच्छा , एक बात तो बता। उसका बुर तेरी तरह काला है या गोरा? मुन्नी- पूरा गोरा तो नही है लेकिन मेरे से साफ़ है। मुझे उसके बुर पर के बाल बड़े ही प्यारे लगते हैं। बड़े बड़े और लहरदार रोएँ की तरह बाल। एक बार तो मैंने उसके बाल भी छुए हैं। हरिया- बुर कैसा है उसका? मुन्नी- बुर क्या है लगता है मनो कटे हुए टमाटर हैं। एक दम फुले फुले लाल लाल। अचानक मुन्नी ने महसूस किया की हरिया का लंड खड़ा हो रहा है। वो समझ गई की हरिया को मज़ा आ रहा है। वो बोली- अच्छा ,एक बात तो बताओ। हरिया बोला- क्या? मुन्नी- क्या तुम उसे चोदोगे? हरिया- ये कैसे हो सकता है। मुन्नी- क्यों नही हो सकता है? वो जवान है । अगर गर्मी के मारे किसी और के साथ भाग गई तो क्या मुह दिखायेंगे हमलोग गाँव वालों को? अगर तुम उसकी गर्मी घर में ही शांत कर दो तो वो भला किसी दूसरे का मुह क्यों देखेगी। जब वो किसी कुत्ते-कुतिया को देख कर मुठ मार सकती है तो वो किसी के साथ भी भाग सकती है। कितना नजर रख सकते हैं हम लोग? थोड़े दिन की तो बात है । फिर हमारा बेटा मोहन उसे अपने साथ बम्बई ले जाएगा तब तो हमें कोई चिंता करने की जरूरत तो नही है न। हरिया- क्या मालती मान जायेगी। मुन्नी ने कहा- कल रात को में उसे तुम्हारे पास भेजूंगी। उसी समय अपना काम कर लेना। हरिया का लंड पूरा जोश में आ गया। उसने मुन्नी की बुर में अपना लंड डालते हुए कहा- तुने तो मुझे गरम कर दिया रे। मुन्नी ने मुस्कुरा कर अपनी दोनों टांगें फैला दी और आह आह की आवाज़ निकने लगी। इस बार वो जोर जोर से आवाज निकाल रही थी। हालंकि उसे कोई ख़ास दर्द नही हो रहा था लेकिन वो जोर जोर से बोलने लगी- आह आह, धीरे धीरे करो ना। दर्द हो रहा है। ये आवाज़ बगल के कमरे में सो रही उसकी बहु मालती को जगाने के लिए काफ़ी थी। चुदाई की मीठी दर्द भरी आवाज़ सुन कर मालती का बुर चिपचिपा हो गया। वो अपने पिया मोहन के लंड को याद कर के अपने बुर में ऊँगली डाली और दस मिनट तक ऊँगली से ही बुर की गत बना डाली।
सुबह हुई । दोनों सास बहु खेत गई । दोनों एक दूसरे के सामने बठी कर पैखाना कर रही थी। मालती ने अपनी सास मुन्नी की बुर देख कर बोली- अम्मा, तुम्हारा बुर कुछ सुजा हुआ लग रहा है। मुन्नी ने हस्ते हुए कहा- ये जो तेरे ससुर जी हैं न बुढापे में भी नही मानते। देख न कल रात को इतना चोदा की अभी तक दुःख रहा है। मालती ने कहा- एक बात पूछूं अम्मा? मुन्नी- हाँ, पूछ न। मालती- बाबूजी का लंड खड़ा होता है अभी भी? मुन्नी- हाँ री। खड़ा क्या? लगता है बांस का कहता है। जब वो मुझे छोड़ते हैं तो लगता है की अब मेरी बुर तो फट ही जायेगी। एक हाथ बराबर हो जाता है उनका लंड खड़ा हो के। मुन्नी ने देखा की मालती अपनी ऊँगली अपने बुर में घुसा दी है। मुन्नी ने पूछा- क्या हुआ तुझे? क्या फिर कोई कुत्ता है यहाँ ? मालती बोली- नही अम्मा, मुझे तुम्हारी बातें सुन के गर्मी चढ़ गई है। इसे निकालना जरूरी है। मुन्नी बोली- सुन, तू एक काम क्यों नही करती? आज रात तू अपने ससुर के साथ अपनी गर्मी क्यों नही निकल देती? मालती चौंक कर बोली- ये कैसे हो सकता है? वो मेरे ससुर हैं। मुन्नी बोली- अरे तेरी जरूरत को समझते हुए मैंने ऐसा कहा। तुझे इस समय किसी मर्द की जरूरत है। अब जब घर में ही मर्द मौजूद हो तो क्यों नही उसका लाभ उठा जाए। मालती का मन अब दोल चुका था। वो बोली- कहीं बाबूजी नाराज हों गए तो। मुन्नी बोली- अरे तू रात को उनके पास चले जाना। में बहाना बना के भेज दूँगी। धीरे धीरे रात के अंधेरे में जब तू उनको छुएगी ना तो तू भूल जायेगी की तू उनकी बहु है और वो भूल जायेगे की वो तुम्हारे ससुर हैं। ये सुन कर मालती के बुर में मानो तूफ़ान आ गया। उसके बुर से इतना पानी निकलने लगा की मुन्नी को लगा की ये पेशाब कर रही है। अब मुन्नी खुश थी। दोनों तरफ़ मामला सेट था।
रात हुई। खाना- वाना ख़तम कर मुन्नी हरिया के कमरे में गई और बता दी की में मालती को भेज रही हूँ। उसको भी समझा दी हूँ। तुम सिर्फ़ थोडी पहल करना। वो तो कुत्ते से भी चुदवाने के लिए तैयार बैठी है। तुम तो इंसान ही हों। कह के वो बाहर चली आई। और जोर से बोली- बहु, ओ बहु, सुन आज मेरी तबियत कुछ ठीक नही है। तू जरा अपने ससुर जी को तेल तो लगा दे। फिर दरवाजे के बाहर से हरिया को बोली- सुनते हों जी , में जरा छत पर सोने जा रही हूँ। मालती बहु से तेल लगवा लेना।
मालती जैसे ही दरवाजे के पास आई मुन्नी ने उस से धीरे से कहा। देख मैंने बहाना बना कर तुम्हे उनके पास भेज रही हूँ। मालिश करते करते उनके लंड तक अपना हाथ ले जाना। शर्माना नही। अगर उनको बुरा लगे तो कह देना की अंधेरे में दिखा नही। अगर कुछ नही बोले तो फिर हाथ लगाना। जब देखना की कुछ नही बोल रहे हैं तो समझना की उन्हें भी अच्छा लग रहा है। ठीक है ना? अब मे चलती हूँ।
कह केमुन्नी छत पे चली गई। इधर मालती हाथ में तेल की शीशी लिए हरिया के कमरे में आई। हरिया ने कहा- आजा। वैसे तो तेल मालिश की जरूरत नही थी, लेकिन आज मेरा पैर थोड़ा सा दर्द कर रहा है इसलिए मालिश जरूरी है। मालती हरिया के बिस्तर पर बैठ गई। कमरे में एक छोटी सी डिबिया जल रही थी। जो की पर्याप्त रौशनी के लिए अनुकूल नही थी। मालती ने कहा- कोई बात नही। में आपकी अच्छे से मालिश कर देती हूँ। आप ये लूंगी उतार ले। हरिया ने कहा- बहु, जरा ये डिबिया बुझा दे , क्यों की मैंने लूंगी के अन्दर छोटी सी लंगोट ही पहन रखी है। मालती ने डिबिया भुझा दी। अब वहां घुप अँधेरा छा गया। सिर्फ़ बाहर की चांदनी रात की हलकी रोशनी ही अन्दर आ रही थी। हरिया ने लूंगी उतार दी। मालती की सांसे तेज़ हों गई। वो तेल को हरिया के पैरों में लगाने लगी। धीरे धीरे वो हरिया के जांघों में तेल लगाने लगी। धीरे से उसने जान बुझ कर हरिया के लंड तक अपना हाथ ले गई। हरिया ने कुछ नही कहा। मालती दुबारा हरिया के लंड पर हाथ लगाया। हरिया ने कहा- बहु, तुम्हे गर्मी लग रही होगी। तुम अपनी साड़ी खोल दो ना। वैसे भी तेल लगने से सारी ख़राब हों सकती है। मालती ने कहा- बाबूजी , सारी के नीचे मैंने पेटीकोट नही पहना है। सिर्फ़ पेंटी पहन रखा है। इसलिए में सारी नही खोल सकती। हरिया ने कहा- तो क्या हुआ? वैसे भी अंधेरे में में तुम्हे देख थोड़े ही पा रहा हूँ जो तुम यूँ शर्मा रही हों? मालती तो ये चाहती थी। उसने अपनी साड़ी खोल के एक किनारे रख दिया। और तेल को वो जांघों और लंड के बीच लगाने लगी। जिससे वो बार बार हरिया के अंडकोष पर हाथ लगा सकती थी। हरिया ने जब देखा की बात लगभग बन चुकी है। उसने अपनी लंगोट की डोरी को कब खोल दिया मालती को पता भी ना चला। धीरे धीरे जब वो हरिया के अंडकोष पर हाथ फेर रही थी तो उसी के हाथ से उसकी लंगोट हट गई। लंगोट हटने पर मालती पूरी गरम हों गई। अब वो हरिया के लंड को छूने की कोशिश कर रही थी। धीरे धीरे उसने लंड पर हाथ लगाया और हटा लिया। हरिया का लंड सोया हुआ था। लेकिन क्यों ही मालती ने हरिया का लंड छुआ मालती के जिस्म में एक सिरहन सी दौड़ गई। अब वो दुबारा अपना हाथ हरिया के दूसरे जांघ पर इस तरह ले गई जिस से उसकी कलाई हरिया के लुंड को छूती रहे। हरिया भी पका हुआ खिलाड़ी था। उसका लंड जल्दी खड़ा होने वाला नही था। वो बोला- बहु तू थक गई होगी। आ जरा लेट जा। उसने लगभग जबरदस्ती बहु को पकड़ कर अपने बगल में लिटा दिया और उसके चूची पर हाथ रख के बोला- इसे खोल दे बहूत गर्मी है। मालती ने अपने ब्लाउज का हुक खोल दिया। हरिया ने ब्लाउज को मालती के चूची पर से अलग कर दिया और चूची को छूने लगा। बोला- अरे तुमने अन्दर ब्रा नही पहन रखा है? खैर कोई बात नही, अब गर्मी तो नही लग रही है न? वो मालती के चूची को मसलने लगा। बोला- तेरी चूची तो एक दम सख्त है। में तेरी चूची छू रहा हूँ, तुझे बुरा तो नही लग रहा है न? मालती बोली- नही, आप मेरे साथ कुछ भी करेंगे तो में बुरा नही मानूंगी। हरिया ने कहा- शाबाश बहु, यही अच्छे बहु की निशानी है। बोल तुझे क्या चाहिए? मालती- बाबूजी मुझे कुछ नही चाहिए, सिर्फ़ आपका लंड को छूना चाहती हूँ। हरिया- एक शर्त पर। तू भी मुझे अपना बुर छूने देगी। मालती ने आव देखा ना ताव, एक झटके में अपना पेंटी उतार फेंका। हरिया ने नीचे जा कर मालती के बुर को पहले तो छुआ फिर, मुह में ले कर चूसने लगा। मालती बोली- ऐसे मत चूसिये, में मर जाऊंगी। हरिया उठ खड़ा हुआ और, मालती के हाथ में अपना लंड थमा दिया। मालती के हाथ मानो कोई खजाना मिल गया हों। वो हरिया के लंड को कभी चूमती कभी खेलती काफी देर ये करने के बाद बोली-बाबूजी, इसको मेरे बुर में एक बार दाल दीजिये न। हरिया ने अपने लटके हुए लंड को हाथ से पकड़ कर मालती के बुर में घूसा दिया। मालती के बुर में हरिया का लंड जाते ही फुफकार मरने लगा। और मालती के बुर में ही वो खड़ा होने लगा। मालती- बाबूजी ये क्या हों रहा है? जल्दी से निकल दीजिये। हरिया- कुछ नही होगा बहु। अब हरिया का लंड पूरी तरह से टाइट हों गया। मालती दर्द से छटपटाने लगी। उसे यह अंदाजा ही नही था की जिसे वो कमजोर और बुधा लंड समझ रही थी वो बुर में जाने के बाद इतना विशालकाय हों जाएगा। हरिया ने मालती को चोदना चालू किया। पहले दस मिनट तक तो मालती बाबूजी बाबूजी छोड़ दीजिये कहती रही। लेकिन हरिया नही सुना, वो धीरे धीरे उसे चोदता रहा। दस मिनट के बाद मालती का बुर थोड़ा ढीला हुआ। अब उसे भी अच्छा लग रहा था। दस मिनट और हरिया ने मालती की जम के चुदाई की। तब जा कर हरिया के अन्दर का पानी बाहर आने को हुआ तो उसने अपना लंड मालती के बुर से निकल के मालती के मुंह में लगा दिया बोला - पी जा। मालती ने हरिया के लंड को मुंह में ले कर ज्यों ही दो- तीन बार चूसा की हरिया के लंड से तेज़ धार निकली जिस से मालती के पूरा मुह भर गया। मालती ने सारा का सारा माल गकत लिया। आज जा कर मालती की गर्मी शांत हुई। उसके बाद वो रोज़ ही अपने ससुर के साथ ही सोने लगी.हाँ दो- तीन दिन में उसकी सास मुन्नी भी साथ सोने लगी। अब हरिया एक तरफ करवट ले कर बीबी को चोदता तो दूसरी तरफ़ करवट ले कर अपनी बहु मालती को।
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