Sunday, July 27, 2014

FUN-MAZA-MASTI नहीं मिला शौहर और सुकून

FUN-MAZA-MASTI
 नहीं मिला शौहर और सुकून

 मेरा नाम नूर है, घर में प्यार से मुझे सब नूरो कहकर बुलाते थे।
मेरे वालिद रिक्शा चलाकर परिवार का पेट पालते थे। अम्मी अनपढ़, घरेलू और धार्मिक महिला थी। मुझसे चार और दो साल बड़ी दो बहनें और मेरे बाद छोटे दो भाई हैं। मैंने बचपना घोर गरीबी में काटा।
मैंने और मुझसे चार साल बड़ी बहन ज़ीनत जिसे मैं बाजी कहती थी, ने पाँचवीं तक पढाई की। घर के करीब ही नगरपालिका का स्कूल था, तो मामूली खर्च में हमने इतना पढ़ लिया था। प्राईमरी से आगे की पढ़ाई का बोझ उठाने में घर वाले किसी भी तरह काबिल न थे, तो पढ़ाई रूक गई थी।
बाजी मेहनती स्वभाव की थी, पाँचवीं पास करने के कुछ दिनों बाद बुक बाइडिंग के लिए फर्मे मोड़ने का काम घर लाकर करने लगी।
अम्मी भी हाथ बटाने लगी, घर में चार पैसे आने लगे।
वक्त गुजरता रहा समय के साथ ज़ीनत बाजी के पन्दरह-सोलह साल की होते-होते मां-बाप ने अपने ही स्तर के एक मेहनतकश मजदूर पेशा, बिरादरी के युवक से बाजी का निकाह कर दिया।
निकाह के बाद कुछ समय तक बाजी की दुल्हा-भाई के साथ अच्छी कटी। तीन साल गुजर जाने के बाद भी बाल-बच्चा न हुआ तो सारा दोष मेरी बहन को दिया जाने लगा।
इसी बीच दुल्हा भाई ज्यादा कमाई करने के चक्कर में दिल्ली जाकर रहने लगे।
दिल्ली में वह झुग्गी-झोपडि़यों में रहकर गुजारा करते हुए कुछ आमदनी बढ़ाने का जरिया खोजते-खोजते उनका झुग्गी-झोपड़ी की ही एक औरत से आँख लड़ गई।
औरत से आँख लड़ने के बाद वह जहाँ हफ्ते-हफ्ते आकर बाजी को खर्च दे जाते थे, अब महीना-महीना तक पलटकर देखना भी बंद कर दिया।
बाजी तंगी में रहने लगी तो मेरे वालिद को चिंता हुई। दुल्हा भाई के पते पर बाजी के साथ मुझे भी लेकर गए। हम दोनों को वहाँ पहुँचा कर वालिद लौट आए।
दुल्हा भाई की नजर तो फिर ही चुकी थी, बाजी से बचने के लिए हफ्तों-हफ्तों के लिए गायब हो जाते। धीरे-धीरे उनकी तबियत में बिल्कुल लापरवाही और निठल्लापन आता गया। लिहाजा खोली का भाड़ा, परचूनिये का हिसाब चढ़ता रहा, लेनदार तकाजे के लिए बाजी के पास आने लगे। उन्हीं में एक थे राशिद मियां।
राशिद मियां की उम्र पैंतालीस के आस-पास थी। दुल्हा भाई के घर के पास ही उनकी लकडि़यों की टाल थी, अच्छी आमदनी थी, उनका खाना-पीना अच्छा था, सेहत अच्छी थी।
धीरे-धीरे हमदर्दी बढ़ाते-बढ़ाते वह हमारे घर में फल-बिस्कुट लाते और घंटा-घंटा बैठकर बाजी से हंस कर बात करने के साथ बेतकल्लुफी भी बढ़ानी शुरू कर दी थी।
राशिद मियां की हमदर्दी ने बाजी पर ऐसा असर चढा़या कि वे समय-असमय उनकी लकड़ी की टाल पर किसी ने किसी जरूरत से जाने लगी।
एक रात वह भी आई जब मैं झुग्गी के पार्टीशन वाले कमरे में सो रही थी। वह जाड़े की रात थी, कोई दस बजे का वक्त रहा होगा, एक नींद मैं ले चुकी थी, दरवाजे पर हल्की सी आहट हुई तो मैं समझी दुल्हा भाई चोरी से आये होंगे।
सांकल खुली दबे पांव अन्दर आने वाले राशिद मियां थे।
झुग्गी की पार्टीशन वाले कमरे को बांस का टहर और टाट के परदे लगाकर पार्टीशन का रूप दिया गया था। एक चारपाई भर की छोटी सी जगह थी। वहाँ बर्तन-भाड़े, कपड़े-लत्ते रखे जाते थे। इसी कमरे को गुसलखाने के रूप में भी इस्तेमाल में लाया जाता था।
मुझे पिछले दो दिनों सो बाजी ने वहीं साने की सलाह दे रखी थी। वैसे भी जब दुल्हा भाई रात को देर-सवेर घर आते थे, मुझे वहीं पार्टीशन वाले कमरे में सो के लिए भेज दिया जाता था।
बाजी व दूल्हा भाई झुग्गी में टिमटिमाता हुआ मरियल रोशनी फैलाने वाला बल्ब बुझाकर एक साथ सो जाते थे।
राशिद मियां रात दस बजे के बाद, चोरी से झुग्गी में आये तो मेरा कौतुहल जागा, मेरे कान खड़े हो गये।अनेकों सवाल दिमाग में मंडराने लगे।
आते ही उन्होंने बाजी से पूछा- नाजो तो सो गई होगी?
‘जवानी की नींद है, घोड़े बेचकर सो रही होगी…’ बाजी ने फुसफुसाकर बताया था।
इस बात को सुनते ही राशिद मियां ने बेधड़क बढ़कर बाजी को अपने बाहुपाश में ले लिया। फिर बाजी के कपोलों को चूमते हुए राशिद मियां के हाथ बाजी के बेहद कामुक, उन्नत उरोजों पर दौड़ने लगे।
यूं तो बाजी के तन्दरूस्त जिस्म का हर अंग भरा-भरा, गठीला और सुडौल था। पर उनके उभार कुछ ज्यादा ही ठोस और उभारदार थे।जिनके आकार को दुपट्टे के आवरण से भी छुपाया नही जा सकता था।
मुझे लेकर जब वह बाजार जाती तो मर्दो की नजरें उनकी छाती के उभार का जायजा लेती हुई कपड़ों के पार तक टटोलने की कोशिश करती रहती थी।
राशिद मियां अपने हाथों को हरकतें देकर खुद को गरमाते हुए बाजी की भी ठंडक भगाने लगे।
एक समय वह आया जब उन्होंने बाजी को पूरी तरह कपड़ों के कैद से आजाद कर दिया। अब बाजी की चिकनी मासल पीठ, सुडौल चूचे राशिद मियां के हाथों और मुँह की रहकतों से ठोस हो चुके यौवन की खूबसूरती मेरी आंखों में नाचने लगी।
मेरी खाट टटरे से लगी हुई बिछी थी। टाट के परदे के झरोखे से मैं सारा नज़ारा देख रही थी। बाजी राशिद मियां से बार-बार रोशनी बुझाने का आग्रह कर रही थी जबकि राशिद मियां कह रहे थे- आज मैं तुम्हारे हुस्न और यौवन भरपूर नजरों से देखकर अपनी प्यास बुझाना चाहता हूँ मेरी जान… इतने दिनों से तो ऊपर-ऊपर से पत्ते फेटकर खुद को तसल्ली देता रहा हूँ… आज असली पत्ते फेंटने का मामला ऐसे ही चलेगा… मैं तुम्हारे गुदाज, ठोस जिस्म के रेशे-रेशे को देखकर अपनी प्यास बुझाना चाहता हूँ..!
‘हाय अल्लाह!’ बाजी शरमा गई थी।
खैर मैं इस बात को तो समझ गई थी कि दोनों के बीच खिचड़ी कई दिनों से पक रही है। मैंने राशिद मियां को जिस्मानी तौर पर जितना हृष्ट-पुष्ट देखा था। उतना ही वह अपने असली जोश में सुस्त रफ्तार के घोड़े साबित हुए थे। ऐसा घोड़ा जो चाबुक की मार या लगाम की खींच-तान पर ही दौड़ के लिए तैयार होता है।
बाजी उनकी मेहरबानियों के बदले हर वह स्थान और युक्ति इस्तेमाल कर रही थी, जिसे राशिद मियां चाह रहे थे।
उनको खुश करते हुए बाजी अपने मतलब की बात पर आते हुए बोली- आप हमारा कर्ज नहीं अदा कर सकते?
‘मैं सौ रूपए हफ्ता से तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। अपना किराया समझो मैंने तुम पर छोड़ा, मगर तुम्हें मुझे बराबर खुश करते रहना होगा। एक मुश्त परचूनिया तथा दूसरों का डेढ़-दो हजार का कर्ज अदा करना फिलहाल मेरे लिए मुश्किल है।’
‘सौ रूपए हफ्ता ही सही। मैं धीरे-धीरे लोगों का कर्ज उतारती रहूंगी।’
‘अगर तुम मेरी मानो, अगर तुम दस दिनों तक पूरी रात मेरी टाल की कोठरी में आकर सोने को तैयार हो जाओ तो मैं तुम्हारा सारा कर्जा उतारवाकर डेढ़-दो हजार रूपए अलग से कमवा सकता हूँ।’
‘हाय अल्लाह…. नहीं-नहीं आपसे तो बस दिल लग गया इसलिए… वरना मैं ऐसी नहीं हूँ।’
‘एक मशवरा और है…’ अपनी जिस्मानी प्यास को बुझाने के खेल के बीच कहा था राशिद मियां ने- गरीबी जादू की छड़ी के घुमाने की तरह दूर हो जायेगी… हजारों-लाखों में खेलने लगोगी।
‘वह क्या?’
‘अपनी बहन नूर को धन्धे में उतार दो… मेरे यहाँ जो ठेकेदार आता है…’
‘नरेन्द्र बाबू…?’
‘हाँ…. उसने नूर को देखा है, मुझसे कह रहा था उस छोकरी को पटा दो, एक रात का पाँच हजार दे सकता हूँ।’
अपने बारे में राशिद की पेशकश सुन मेरा दिल धाड़-धाड़ करने लगा। जी चाह रहा था कि राशिद का चेहरा नोच लूं पर उनकी उस समय की वासना भरी आनन्दमयी हरकतें देखने के लालच पीछे सब अहसास दब गए थे।
बाजी का उत्तर सुनने के लिए मैंने सांसें रोक ली, वह कह रही थी- अल्ला कसम राशिद मियां, हमारे यहाँ यह सब नहीं चलता…
‘तुम बेवकूफ़ हो…’ राशिद ने बाजी के गालों को थपकाकर चुटकियों से मसलते हुए कहा- तभी घर में ठीक से चूल्हा नहीं जलता… मैं तुम्हें झुग्गी-झोपड़ी का नहीं अपने खुद के मकान-मालिक होने का रास्ता बता रहा हूँ। मेरी पहचान में दर्जनों ऐसी हसीन, ऊंचे घराने की कहलाने वाली लड़कियाँ है जो शराफत को चोला औढ़े रहती हैं पर रात को दो-चार घंटे के लिए धंधे पर उतरती हैं और हजारों रूपए रोज कमाकर ठाठ-बाट की जिन्दगी गुजारती हैं। मुझे भी कमीशन के तौर पर आमदनी कराती हैं।’
राशिद मियां ने ऐसा पटाया कि बाजी एकदम मुखालफ़त करने के बजाय सोच-विचार में पड़ गई। बाजी को सोचते देख राशिद मियां बोले- बताया नहीं?
‘सोचकर बताऊँगी…’ बाजी ने कहा- पता नहीं नूर राजी होगी या नहीं?
‘मेरे पास घंटे-आधे घंटे के लिए भेजना शुरु कर दे, मैं उसे राजी कर लूंगा !’
‘उसे भी खराब कर दोगे।’
‘कसम से.. अपने लिए इस्तेमाल नहीं करूँगा.. एकदम तैयार करके पहली बार का बीस हजार रूपए कमवाऊँगा।’
खैर, राशिद मियां ने बाजी के हाथ मे दो सौ रूपये, तथा अलग से दो सौ मेरे नाम पर थमाते हुए कहा था- नूर को अच्छा सा कपड़ा बनवा देना। वह खुश हो जाएगी।
बाजी ने चार सौ रूपए खुशी-खुशी लेकर उन्हें रूखसत किया था।
अगले दिन बाजी का बर्ताव मेरे लिये बहुत बदल गया था। वह मेरा अधिक ख्याल रखते हुए राशिद मियां के प्रसंशा के पुल बांध रही थी।
एक दिन दोपहर के समय उन्होंने मुझे सूखी लकड़ियाँ ले आने के बहाने राशिद की टाल पर भेजा।
उस दिन मौसम का मिजाज बिगड़ा हुआ था, सुबह से ही रह-रहकर बूंदा-बादी हो रही थी।
मैं जल्दी-जल्दी टाल पर लकड़ियाँ लेने गई। टाल पर मौसम की खराबी की वजह से कोई ग्राहक नहीं था इसलिए पूरी तरह सन्नाटा फैला हुआ था।
टाल पर मुझे आया देख राशिद मियां खिल उठे और मुस्कराकर स्वागत भाव दर्शाते हुए बोले- आजा… आजा नूर बानो… आज तो बड़ी अच्छी लग रही है।
‘सूखी लकड़ियों के लिए बाजी ने भेजा है राशिद चाचा…’ मैं उन्हें राशिद चाचा ही कहती थी।
‘हाँ..हाँ.. क्यों नही… उधर कोने में, शेड के नीचे की लकड़ियाँ पूरी तरह सूखी और पतली हैं… जितनी चाहो निकाल लो।’
मुझे उन्होंने टाल के ऊँचे चट्टे के पीछे भेजा, खुद गेट के पास जाकर गेट बन्द कर आये, मेरा दिल धक-धक कर रहा था।
हकीकत यह थी कि मैं उस मजेदार खेल का स्वाद खुद ही लेना चाहती थी, जिससे बाजी को गुजरते देख चुकी थी।
टाल के ऊंचे चट्टों के पीछे, कुछ अंधेरा भी था, पर ऐसा नहीं कि कुछ दिखाई न देता हो।
राशिद मियां उस समय तहमत, बनियान में थे, ठीक मेरे पीछे आ गये। मुझे इशारा करके वह सूखी पतली लकड़ियाँ बताने लगे, मेरे हाथ लकड़ियाँ निकालने के लिए बढ़े तब पीछे से आकर वह मुझसे एकदम सटकर खड़े होते हुए लकड़ियाँ निकालने में मेरी मदद करते-करते उन्होंने मेरा हाथ थामते हुए कहा- तू तो बड़ी ही खूबसूरत है नूरो…
मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी, कुछ घबराहट हो रही थी, मैंने हाथ छुड़ाना चाहा तो वे और निकट आकर मुझे पीछे से चिपटाकर बोले- मैं तेरी जिन्दगी संवार दूगा, मैं चाहता हूँ कि तू अपनी बाजी की तरह तंगी और गरीबी में न जिये, ऐश कर ऐश… कहकर वे मेरे उभारों को सहलाने लगे।
मैं बार-बार नहीं-नहीं कहती रही, मगर उस नहीं में हर पल मेरी हाँ शामिल थी। यह बात वे भी जानते थे, तभी तो मेरे बराबर इंकार करने के बाबजूद वह मुझे उठाकर कोने में पड़े गद्दा व तकिया लगे तख्त पर ले गये।
मुझे लिटाकर चूमना आरम्भ किया तो मेरे तन-बदन में जैसे आग लग गई थी फिर भी मैंने इससे आगे उन्हें नहीं बढ़ने दिया और अलग होकर उठ खड़ी हुई।
उन्होंने कोई विरोध नही किया, पचास का नोट मेरे हाथ में पकड़ाते हुए बोले- बाजी को मत बताना… अपने ही ऊपर खर्च करना, फिर जब भी आओगी इतना ही मिलेगा।
मैं हवा में उड़ती घर पहुँची।
बाजी ने कुछ पूछताछ नहीं की और मैंने भी अपनी तरफ से उन्हें कुछ बतना जरूरी नहीं समझा।
अगली शाम फिर बाजी ने मुझे लकड़ियाँ लाने राशिद के यहाँ भेजा और बोली- अगर तुझे आने में देर हो जाए तो फिक्र मत करना, राशिद मियां जो कहें कर देना, उनके बहुत एहसान हैं हम पर…
मैंने सर हिलाकर हामी भर दी।
मैं राशिद के टाल पर पहुँची, मुझे दिखते ही वह खिल उठे और गेट बंद कर दिया। उस रोज टाल में एक मोटरसाइकिल भी खड़ी थी, जाने कौन आया था।
‘नूर बानो, क्या तू नहीं चाहती तेरे पास खूब दौलत हो, जेवर हो, मकान हो…’
‘चाहती क्यों नहीं, मगर चाहने से क्या होता है !’
‘चाहने से ही होता है, अगर तू मेरा कहना मान तो दस हजार तो मैं तुझे आज ही दिलवा सकता हूं और आगे भी ऐसे ही मौके दिलवाता रहूँगा।’
‘दस हजार…’ मेरी धड़कनें बढ़ गई।
मैं चुप रही, मैं खुद भी किसी मर्द का साथ पाने को तड़प रही थी मगर वह मामला अटपटा लग रहा था। राशिद मियां मुझे किसी अंजान व्यक्ति के साथ सुलाना चाहता था। जो ना मालूम किस तरह पेश आता।
मैं डर रही थी मगर दस हजार रूपयों के लोभ से मुंह मोड़ना मेरे लिए मुश्किल था। फिर भी मैंने राशिद से आश्वासन ले लिया कि वह बगल के कमरे में मौजूद रहेगा।
यही मेरे इस जीवन की पहली शुरूआत थी।
फिर क्या था उस जवान ने मुझ कच्ची कली की कमसिन जवानी का पहला रस चूसा, एक घंटे तक उसने मेरी नाजुक जवानी को मनमाने ढंग से रौंदा और फिर मेरी ब्रा में रुपये डाल एक बार फिर मेरे मस्त उभारों को मसल कर चलता बना।
उस दिन जिस जवान के साथ बिस्तर पर मैंने अपना अस्मत लुटाई, वह मेरा पक्का ग्राहक बन गया। अगले दस दिनों तक लगातार वह राशिद के टाल पर आता रहा। दस दिनों में रोज एक हजार रूपये की कमाई ने मेरा दिमाग खराब कर दिया।
मैं धंधे में रमती चली गई। मैंने वह सब कुछ पाया जिसको जीवन में पाने का मैं खयाल भी मन में नहीं लाई थी, घर-मकान, कोठी-बंगला गाड़ी-शौफ़र सब कुछ !
नहीं मिला तो शौहर और सुकून।
आज हर वक्त मैं अपने भीतर एक अधूरेपन का एहसास महसूस करते हुए अकेले में आँसू बहाया करती हूँ।










हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
Tags = Tags = Future | Money | Finance | Loans | Banking | Stocks | Bullion | Gold | HiTech | Style | Fashion | WebHosting | Video | Movie | Reviews | Jokes | Bollywood | Tollywood | Kollywood | Health | Insurance | India | Games | College | News | Book | Career | Gossip | Camera | Baby | Politics | History | Music | Recipes | Colors | Yoga | Medical | Doctor | Software | Digital | Electronics | Mobile | Parenting | Pregnancy | Radio | Forex | Cinema | Science | Physics | Chemistry | HelpDesk | Tunes| Actress | Books | Glamour | Live | Cricket | Tennis | Sports | Campus | Mumbai | Pune | Kolkata | Chennai | Hyderabad | New Delhi | पेलने लगा | उत्तेजक | कहानी | कामुक कथा | सुपाड़ा |उत्तेजना मराठी जोक्स | कथा | गान्ड | ट्रैनिंग | हिन्दी कहानियाँ | मराठी | .blogspot.com | जोक्स | चुटकले | kali | rani ki | kali | boor | हिन्दी कहानी | पेलता | कहानियाँ | सच | स्टोरी | bhikaran ki | sexi haveli | haveli ka such | हवेली का सच | मराठी स्टोरी | हिंदी | bhut | gandi | कहानियाँ | की कहानियाँ | मराठी कथा | बकरी की | kahaniya | bhikaran ko choda | छातियाँ | kutiya | आँटी की | एक कहानी | मस्त राम | chehre ki dekhbhal | | pehli bar merane ke khaniya hindi mein | चुटकले | चुटकले व्‍यस्‍कों के लिए | pajami kese banate hain | मारो | मराठी रसभरी कथा | | ढीली पड़ गयी | चुची | स्टोरीज | गंदी कहानी | शायरी | lagwana hai | payal ne apni | haweli | ritu ki hindhi me | संभोग कहानियाँ | haveli ki gand | apni chuchiyon ka size batao | kamuk | vasna | raj sharma | www. भिगा बदन | अडल्ट | story | अनोखी कहानियाँ | कामरस कहानी | मराठी | मादक | कथा | नाईट | chachi | chachiyan | bhabhi | bhabhiyan | bahu | mami | mamiyan | tai | bua | bahan | maa | bhabhi ki chachi ki | mami ki | bahan ki | bharat | india | japan |यौन, यौन-शोषण, यौनजीवन, यौन-शिक्षा, यौनाचार, यौनाकर्षण, यौनशिक्षा, यौनांग, यौनरोगों, यौनरोग, यौनिक, यौनोत्तेजना, aunty,stories,bhabhi, nangi,stories,desi,aunty,bhabhi,erotic stories, hindi stories,urdu stories,bhabi,desi stories,desi aunty,bhabhi ki,bhabhi maa ,desi bhabhi,desi ,hindi bhabhi,aunty ki,aunty story, kahaniyan,aunty ,bahan ,behan ,bhabhi ko,hindi story sali ,urdu , ladki, हिंदी कहानिया,ज़िप खोल,यौनोत्तेजना,मा बेटा,नगी,यौवन की प्या,एक फूल दो कलियां,घुसेड,ज़ोर ज़ोर,घुसाने की कोशिश,मौसी उसकी माँ,मस्ती कोठे की,पूनम कि रात,सहलाने लगे,लंबा और मोटा,भाई और बहन,अंकल की प्यास,अदला बदली काम,फाड़ देगा,कुवारी,देवर दीवाना,कमसीन,बहनों की अदला बदली,कोठे की मस्ती,raj sharma stories ,पेलने लगा ,चाचियाँ ,असली मजा ,तेल लगाया ,सहलाते हुए कहा ,पेन्टी ,तेरी बहन ,गन्दी कहानी,छोटी सी भूल,राज शर्मा ,चचेरी बहन ,आण्टी , kahaniya ,सिसकने लगी ,कामासूत्र ,नहा रही थी , ,raj-sharma-stories कामवाली ,लोवे स्टोरी याद आ रही है ,फूलने लगी ,रात की बाँहों ,बहू की कहानियों ,छोटी बहू ,बहनों की अदला ,चिकनी करवा दूँगा ,बाली उमर की प्यास ,काम वाली ,चूमा फिर,पेलता ,प्यास बुझाई ,झड़ गयी ,सहला रही थी ,mastani bhabhi,कसमसा रही थी ,सहलाने लग ,गन्दी गालियाँ ,कुंवारा बदन ,एक रात अचानक ,ममेरी बहन ,मराठी जोक्स ,ज़ोर लगाया ,मेरी प्यारी दीदी निशा ,पी गयी ,फाड़ दे ,मोटी थी ,मुठ मारने ,टाँगों के बीच ,कस के पकड़ ,भीगा बदन , ,लड़कियां आपस ,raj sharma blog ,हूक खोल ,कहानियाँ हिन्दी , ,जीजू , ,स्कूल में मस्ती ,रसीले होठों ,लंड ,पेलो ,नंदोई ,पेटिकोट ,मालिश करवा ,रंडियों ,पापा को हरा दो ,लस्त हो गयी ,हचक कर ,ब्लाऊज ,होट होट प्यार हो गया ,पिशाब ,चूमा चाटी ,पेलने ,दबाना शुरु किया ,छातियाँ ,गदराई ,पति के तीन दोस्तों के नीचे लेटी,मैं और मेरी बुआ ,पुसी ,ननद ,बड़ा लंबा ,ब्लूफिल्म, सलहज ,बीवियों के शौहर ,लौडा ,मैं हूँ हसीना गजब की, कामासूत्र video ,ब्लाउज ,கூதி ,गरमा गयी ,बेड पर लेटे ,கசக்கிக் கொண்டு ,तड़प उठी ,फट गयी ,भोसडा ,मुठ मार ,sambhog ,फूली हुई थी ,ब्रा पहनी ,چوت , . bhatt_ank, xossip, exbii, कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँ रेप कहानिया ,सेक्सी कहानिया , कलयुग की कहानियाँ , मराठी स्टोरीज , ,स्कूल में मस्ती ,रसीले होठों ,लंड ,पेलो ,नंदोई ,पेटिकोट ,मालिश करवा ,रंडियों ,पापा को हरा दो ,लस्त हो गयी ,हचक कर ,ब्लाऊज ,होट होट प्यार हो गया ,पिशाब ,चूमा चाटी ,पेलने ,दबाना शुरु किया ,छातियाँ ,गदराई ,पति के तीन दोस्तों के नीचे लेटी,मैं और मेरी बुआ ,पुसी ,ननद ,बड़ा लंबा ,ब्लूफिल्म, सलहज ,बीवियों के शौहर ,लौडा ,मैं हूँ हसीना गजब की, कामासूत्र video ,ब्लाउज ,கூதி ,गरमा गयी ,बेड पर लेटे ,கசக்கிக் கொண்டு ,तड़प उठी ,फट गयी ,फूली हुई थी ,ब्रा पहनी

No comments:

Raj-Sharma-Stories.com

Raj-Sharma-Stories.com

erotic_art_and_fentency Headline Animator