FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--9
अब आगे....
मैं कप के टुकड़े इकठ्ठा करने लगा... तभी भाभी आईं और वाही अपना कप मेरी तरफ बढ़ा दिया... मुझे शक हुआ तो मैंने पूछ लिया:
मैं: आपकी चाय कहाँ है?
भाभी: मैंने पी ली... तुम ये चाय पीओ मैं ये टुकड़े उठती हूँ|
ना जाने क्यों पर भाभी मुझसे नजरें चुरा रही थी...
मैं: खाओ मेरी कसम की आपने चाय पी ली?
भाभी: क्यों? मैं कोई कसम- वसम नहीं खाती .. तुम ये चाय पी लो|
मैं: भाभी जूठ मत बोलो ... मैं जानता हूँ तुमने चाय नहीं पी क्योंकि चाय खत्म हो चुकी है|
तभी वहाँ मेरा भाई गट्टू आ गया, वो मुझसे तकरीबन 1 साल बड़ा था|
गट्टू: अरे ये कप कैसे टुटा?
मैं: मुझसे छूट गया... और तुम सुनाओ क्या हाल-चाल है| (मैंने बात पलटते हुए कहा)
गट्टू: मनु चलो मेरे साथ.. तुम दोस्तों से मिलता हूँ|
मैं: हाँ चलो....
भाभी: अरे गट्टू कहाँ ले जा रहे हो मानु को... चाय तो पी लेने दो.. कल रात से कुछ नहीं खाया|
मैं: तू चल भाई... मैंने चाय पी ली है.. ये भाभी की चाय है|
इतना कहता हुए हम दोनों निकल पड़े| इसे कहते हैं मित्रों की होठों तक आती हुई चाय भी नसीब नहीं हुई|
गट्टू के मित्रों से मिलने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी... पर अब भाभी का सामना करने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी| दोपहर हुई और भोजन के लिए मैं गट्टू के साथ घर लौट आया.... भोजन हमेशा की तरह भाभी ने बनाया था... और न जाने क्यों पर खाने की इच्छा नहीं हुई| रह-रह कर भाभी की बातें दिल में सुई की तरह चुभ रही थी और मैं भाभी से नजरें चुरा रहा था| बहार सब लोग रसोई के पास बैठे भोजन कर रहे थे और इधर मैं अपने कमरे में आगया और चारपाई पर बैठ कुछ सोचने लगा| भूख तो अब जैसे महसूस ही नहीं हो रही थी... माँ मुझे ढूंढते हुए कामे में आ गई और भोजन के लिए जोर डालने लगी| माँ ये तो समझ चुकी थी की कुछ तो गड़बड़ है मेरे साथ... पर क्या इसका अंदाजा नहीं था उन्हें| माँ जानती थी की गाओं में केवल एक ही मेरा सच्चा दोस्त है और वो है "भाभी"! माँ भाभी को बुलाने गई और इतने में भाभी भोजन की दो थालियाँ ले आई|
मैं समझ चूका था की भाभी मेरे और मम्मी के लिए भोजन परोस के लाइ हैं| भाभी ने दोनों थालियाँ सामने मेज पर राखी और मेरे सामने आकर अपने घुटनों पे आइन और मेरा चेहरा जो नीचे झुका हुआ था उसे उठाते हुए मेरी आँखों में देखते हुए रुँवाँसी होके बोली....
"मानु .... मुझे माफ़ कर दो!"
मैं: आखिर मेरा कसूर ही क्या था??? सिर्फ आपके साथ भोजन ही तो करना चाहता था... जैसे हम पहले साथ-साथ भोजन किया करते थे.... इसके लिए भी आपको दुनिया दारी की चिंता है??? तो ठीक है आप सम्भालो दुनिया दारी को... मुझे तो लगा था की आप मुझसे प्यार करते हो पर आपने तो अपने और मेरे बीच में लकीर ही खींच दी ....
भाभी: मानु... मेरी बात तो एक बार सुन लो... उसके बाद तुम जो सजा दोगे मुझे मंजूर है|
मैं चुप हो गया और उन्हें अपनी बात कहने का मौका देने लगा...
भाभी: (भाभी ने अपना सीधा हाथ मेरे सर पे रख दिया और कहने लगीं) तुम्हारे भैया कल दोपहर को मेरे साथ सम्भोग करना चाहते थे... जब मैंने उन्हें मन किया तो वो भड़क गए और मेरी और उनकी तू-तू मैं-मैं हो गई! और उनका गुस्सा मैंने गलती से तुम पे निकाल दिया... इसके लिए मुझे माफ़ कर दो| कल रात से तुम्हारे साथ मैंने भी कुछ नहीं खाया... सुबह की चाय तक नहीं...
मैं: आपको कसम खाने की कोई जर्रूरत नहीं है... मैं आप पर आँख मुंड के विश्वास करता हूँ|
और मैंने अपने हाथ से भाभी के आंसूं पोंछें| तभी माँ भी आ गईं.. शुक्र था की माँ ने हमारी कोई बात नहीं सुनी थी.... भाभी ने एक थाली माँ को दे दी और दूसरी थाली ले कर मेरे सामने पलंग पे बैठ गईं| मैं थोड़ा हैरान था...
भाभी: चलो मानु शुरू करो...
मैं: आप मेरे साथ एक ही थाली में खाना खाओगी?
भाभी: क्यों? तुम मेरे झूठा नहीं खाओगे?
माँ: जब छोटा था तो भाभी का पीछा नहीं छोड़ता था... भाभी ही तुझे खाना खिलाती थी और अब ड्रामे तो देखो इसके...
माँ की बात सुन भाभी मुस्कुरा दीं.. और मैं ही मुस्कुरा दिया.... माँ ने खाना जल्दी खत्म किया और अपने बर्तन लेकर रसोई की तरफ चल दीं| कमरे में केवल मैं और भाभी ही रह गए थे.. मुझे शरारत सूझी और मैंने भाभी से कहा:
"भाभी खाना तो हो गया... पर मीठे में क्या है?" भाभी: मीठे में एक बड़ी ख़ास चीज है...
मैं: वो क्या?
भाभी: अपनी आँखें बंद करो!!!
मैं : लो कर ली
भाभी धीरे-धीरे आगे बढ़ीं और मेरे थर-थराते होंठों पे अपने होंठ रख दिए| भाभी की प्यास मैं साफ़ महसूस कर प् रहा था... मैं उनके लबों को अपने मुझ में भर के उनका रस पीना चाहता था परन्तु उन्होंने मेरे होठों को निचोड़ना शुरू कर दिया था और मैं इस मर्दन को रोकना नहीं चाहता था| भाभी सच में बहुत प्यासी थी... इतनी प्यासी की एक पल केलिए तो मुझे लगा की भाभी को अगर मौका मिल गया तो वो मुझे खा जाएँगी|भाभी ने तो मुझे सँभालने का मौका भी नहीं दिया था... और बारी-बारी मेरे होंठों को चूसने में लगीं थी| मैं मदहोश होता जा रहा था... मैंने तो अपने जीवन में ऐसे सुख की कल्पना भी नहीं की थी| नीचे मेरे लंड का हाल मुझसे भी बत्तर था... वो तो जैसे फटने को तैयार था| मैंने अपना हाथ भाभी के स्तन पे रखा और उन्हें धीरे-धीरे मसलने लगा| भाभी ने चुम्बन तोडा.... और उनके मुख से सिकरिया फुट पड़ीं...
" स्स्स्स्स....मानु...आअह्ह्ह्ह ! रुको......"
मेरा अपने ऊपर से काबू छूट रहा था और मैं मर्यादा लांघने के लिए तैयार था... शायद भाभी का भी यही हाल था|
उन्होंने अचानक ही मुझे झिंझोड़ के रोक दिया...
"मानु अभी नहीं... कोई आ जायेगा| आज रात जब सब सो जायेंगे तब जो चाहे कर लेना .. मैं नहीं रोकूँगी.."
मैं: भौजी मुँह मीठा कर के मजा आ गया|
भाभी: अच्छा??
मैं: भौजी इस बार तो कहीं आप अपने मायके तो नहीं भाग जाओगी?
भाभी: नहीं मानु...वादा करती हूँ ...और अगर गई भी तो तुम्हें साथ ले जाउंगी|
मैं: और अपने घर में सब से क्या कहोगी की मुझे अपने संग क्यों लाई हो?
भाभी: कह दूंगी की ससुराल से दहेज़ में तुम मिले हो....
और हम दोनों खिल-खिला के हंसने लगे|
मैं: अब शाम तक इन्तेजार कैसे करूँ?
भाभी: मानु सब्र का फल मीठा होता है!
इतना कह के भाभी मुस्कुराते हुए उठीं... मैंने जैसे-तैसे अपने आप को रोका ... अपनी इच्छाओं पे काबू पाना इतना आसान नहीं होता| खेर भाभी भी अपनी थाली ले कर रसोई की ओर चलीं गईं| मैं भी उनके पीछे-पीछे चल दिया...
शाम होने का इन्तेजार करना बहुत मुश्किल था.... एक-एक क्षण मानो साल जैसा प्रतीत हो रहा था| मैंने सोचा की अगर रात को जो होगा सो होगा काम से काम अभी तो भाभी के साथ थोड़ी मस्ती की जाए|भाभी बर्तन रसोई में रख अपने कमरे में थी.. और संदूक में कपडे रख रही थी| मैंने पीछे से भाभी को फिर से दबोच लिया और अपने हाथ उनके वक्ष पे रख उन्हें होल-होल दबाने लगा| भाभी मेरी बाँहों में कसमसा रही थी और छूटने की नाकाम कोशिश करने लगी|
"स्स्स्स्स ....उम्म्म्म्म ... छोड़ो...ना..!!!!"
मैंने बेदर्दी ना दिखाते हुए उन्हें जल्दी ही अपनी गिरफ्त से आजाद कर दिया... पर मुझे ये नहीं पता था की ये तो एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है जो हर स्त्री में होती है| अंदर ही अंदर तो भाभी चाहती होंगी की हम कभी अलग ही ना हों|
भाभी: मानु तुम से सब्र नहीं होता ना....
मैं: भाभी अपने ही तो आग लगाईं थी... अब आग इतनी जल्दी शांत कैसे होगी|
भाभी को दर था की कहीं कोई हमें एक कमरे में अकेले देख ले तो लोग बातें बनाएंगे.. इसलिए वो बहार चली आईं और मैं भी उनके पीछे-पीछे बहार आ गया|
अब मैं आपको जरा घर के बाकी सदस्यों के बारे में विस्तार में परिचित कराता हूँ:
१. अशोक भैया (चन्दर भैया से छोटे) उनकी शादी हो चुकी थी... उनकी पत्नी का नाम संगीता है और उनके पुत्र का नाम : श्याम और शहर में एक कंपनी में चपरासी हैं| वे गाँव केवल जून के महीने में ही आते हैं|
२. अजय भैया (अशोक भैया से छोटे) उनकी शादी भी हो चुकी है और उनकी पत्नी का नाम रसिका है और एक पुत्र जिसका नाम: वरुण है और वे खेती-बाड़ी सँभालते हैं|
३. अनिल भैया के रिश्ते की बात अभी चल रही है और वे चंडीगढ़ में होटल में बावर्ची हैं|
४. गट्टू और मेरी उम्र में ज्यादा अंतर नहीं है इसलिए उसकी अभी शादी नहीं हुई और अभी पढ़ रहा है|
मित्रों मैं आपको एक नक़्शे द्वारा समझाना चाहूंगा की हमारा गांव आखिर दीखता कैसा है:
चन्दर भैया की शादी सबसे पहले हुई थी और वे परिवार के सबसे बड़े लड़के थे इसीलिए उनका घर अलग है| उनके घर में केवल एक कमरा ..एक छोटा सा आँगन और नहाने के लिए एक स्नान गृह है|
बाकी भाई सब बड़े घर में ही रहते हैं| उस घर में बीच में एक आँगन है और पाँच कमरे हैं| हमसभी उसी घर में ठहरे हैं| सभी लोग घर के प्रमुख आँगन में ही सोते हैं परन्तु सब की चारपाई का कोई सिद्ध स्थान नहीं है.. कोई भी कहीं भी सो सकता है|
आप लोग भी सोचते होंगे की मैं कैसा भतीजा हूँ जो अपने मझिले दादा (बीच वाले चाचा जी) को भूल गया और उनके परिवार के बारे में कुछ नहीं बताया| तो मित्रों दरअसल जब मैंने लिखना शुरू किया था तब ये नहीं सोचा था की मैं अपनी आप बीती को पूरा कर पाउँगा... क्योंकि मुझे लगा था की आप सभी श्रोता ऊब जायेंगे.. क्योंकि मेरी आप बीती में कोई लम्बा इरोटिक सीन ही नहीं है... परन्तु आप सबके प्यार के कारन मैं अपनी आप बीती खत्म होने पर कुछ रोचक मोड़ अवश्य लाऊंगा की आप सभी श्रोता खुश हो जायेंगे|
अजय भैया और रसिका भाभी में बिलकुल नहीं बनती थी... और दोनों छोटी-छोटी बात पे लड़ते रहते थे| रसिका भाभी अपना गुस्सा अपने बच्चे वरुण पे उतारती| वो बिचारा दोनों के बीच में घुन की तरह पीस रहा था... पिताजी और माँ ने बहुत कोशिश की परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ|
मैं जब से गावों आया था तब से मेरी रसिका भाभी से बात करने की हिम्मत नहीं होती... वो ज्यादातर अपने कमरे में ही रहती... घर का कोई काम नहीं करती| जब कोई काम करने को कहता तो अपनी बिमारी का बहन बना लेती| बाकी बच्चों की तरह वरुण भी मेरी ही गोद में खेलता रहता... मैं तो अपने गावों का जगत चाचा बन गया था.. हर बच्चा मेरे साथ ही रहना चाहता था इसी कारन मुझे भाभी के साथ अकेले रहने का समय नहीं मिल पता था|
शाम को फिर से अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा हो गया... और बिचारा वरुण रोने लगा| भाभी ने मुझे वरुण को अपने पास ले आने को कहा.. और मैं फटा-फैट वरुण को अपने साथ बहार ले आया| वरुण का रोना चुप ही नहीं हो रहा था... बड़ी मुश्किल से मैंने उसे पुचकार के आधा किलोमीटर घुमाया और जब मुझे लगा की वो सो गया है तब मैंने उसे भाभी को सौंप दिया| जब भाभी मेरी गोद से वरुण को ले रही थी तो मैंने शरारत की.. और उनके निप्पलों को अपने अंगूठे में भर हल्का सा मसल दिया| भाभी विचलित हो उठी और मुस्कुराती हुई प्रमुख आँगन में पड़ी चारपाई इ वरुण को लिटा दिया|
रात हो चुकी थी और अँधेरा हो चूका था... भाभी जानती थी की मैं खाना उनके साथ ही खाऊंगा परन्तु सब के सामने??? उनकी चिंता का हल मैंने ही कर दिया:
मैं: भौजी मुझे भी खाना दे दो....
भाभी मेरा खाना परोस के लाई और खुस-फुसते हुए कहने लगी:
भाभी: मानु क्या नाराज हो मुझ से?
मैं: नहीं तो!
भाभी: तो आज मेरे साथ खाना नहीं खाओगे?
मैं: भाभी आप भी जानते हो की दोपहर की बात और थी ... अभी आप मेरे साथ खाना खाओगी तो चन्दर भैया नाराज होंगे| .....
भाभी मेरी ओर देखते हुए मुस्कुराई ओर मेरी ठुड्डी पकड़ी ओर प्यार से हिलाई!!!
भाभी: बहुत समझदार हो गए हो?
मैं: वो तो है.. सांगत ही ऐसी मिली है.. ओर वैसे भी आप मेरे हिस्से का खाना खा जाती हो|
(मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा|)
भाभी ने अपनी नाराज़गी ओर प्यार दिखाते हुए प्यार से मेरी पीठ पे थप-थपाया| मैंने जल्दी-जल्दी से खाना खाया और अपने बिस्तर पे लेट गया और ऐसे जताया जैसे मुझे नींद आ गई हो| असल मुझे बस इन्तेजार था की कब भाभी खाना खाएं और कब बाकी सब घर वाले अपने-अपने बिस्तर में घुस घोड़े बेच सो जाएं| और तब मैं और भाभी अपना काम पूरा कर लें| इसीलिए मैं आँखें बंद किये सोने का नाटक करने लगा ... पेट भरा होने के कारन नींद आने लगी थी... मैं बाथरूम जाने के बहाने उठा की देखूं की भाभी ने खाना खया है की नहीं... तभी भाभी और अम्मा मुझे खाना कहते हुए दिखाई दिए| मैं बाथरूम जाने के बाद जानबूझ के रसोई की तरफ से आया ताकि भाभी मुझे देख ले और उन्हें ये पक्का हो जाये की मैं सोया नहीं हूँ और साथ ही साथ मैंने मोआयने कर लिया था की कौन-कौन जाग रहा है और कौन-कौन सो गया है|
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अब आगे....
मैं कप के टुकड़े इकठ्ठा करने लगा... तभी भाभी आईं और वाही अपना कप मेरी तरफ बढ़ा दिया... मुझे शक हुआ तो मैंने पूछ लिया:
मैं: आपकी चाय कहाँ है?
भाभी: मैंने पी ली... तुम ये चाय पीओ मैं ये टुकड़े उठती हूँ|
ना जाने क्यों पर भाभी मुझसे नजरें चुरा रही थी...
मैं: खाओ मेरी कसम की आपने चाय पी ली?
भाभी: क्यों? मैं कोई कसम- वसम नहीं खाती .. तुम ये चाय पी लो|
मैं: भाभी जूठ मत बोलो ... मैं जानता हूँ तुमने चाय नहीं पी क्योंकि चाय खत्म हो चुकी है|
तभी वहाँ मेरा भाई गट्टू आ गया, वो मुझसे तकरीबन 1 साल बड़ा था|
गट्टू: अरे ये कप कैसे टुटा?
मैं: मुझसे छूट गया... और तुम सुनाओ क्या हाल-चाल है| (मैंने बात पलटते हुए कहा)
गट्टू: मनु चलो मेरे साथ.. तुम दोस्तों से मिलता हूँ|
मैं: हाँ चलो....
भाभी: अरे गट्टू कहाँ ले जा रहे हो मानु को... चाय तो पी लेने दो.. कल रात से कुछ नहीं खाया|
मैं: तू चल भाई... मैंने चाय पी ली है.. ये भाभी की चाय है|
इतना कहता हुए हम दोनों निकल पड़े| इसे कहते हैं मित्रों की होठों तक आती हुई चाय भी नसीब नहीं हुई|
गट्टू के मित्रों से मिलने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी... पर अब भाभी का सामना करने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी| दोपहर हुई और भोजन के लिए मैं गट्टू के साथ घर लौट आया.... भोजन हमेशा की तरह भाभी ने बनाया था... और न जाने क्यों पर खाने की इच्छा नहीं हुई| रह-रह कर भाभी की बातें दिल में सुई की तरह चुभ रही थी और मैं भाभी से नजरें चुरा रहा था| बहार सब लोग रसोई के पास बैठे भोजन कर रहे थे और इधर मैं अपने कमरे में आगया और चारपाई पर बैठ कुछ सोचने लगा| भूख तो अब जैसे महसूस ही नहीं हो रही थी... माँ मुझे ढूंढते हुए कामे में आ गई और भोजन के लिए जोर डालने लगी| माँ ये तो समझ चुकी थी की कुछ तो गड़बड़ है मेरे साथ... पर क्या इसका अंदाजा नहीं था उन्हें| माँ जानती थी की गाओं में केवल एक ही मेरा सच्चा दोस्त है और वो है "भाभी"! माँ भाभी को बुलाने गई और इतने में भाभी भोजन की दो थालियाँ ले आई|
मैं समझ चूका था की भाभी मेरे और मम्मी के लिए भोजन परोस के लाइ हैं| भाभी ने दोनों थालियाँ सामने मेज पर राखी और मेरे सामने आकर अपने घुटनों पे आइन और मेरा चेहरा जो नीचे झुका हुआ था उसे उठाते हुए मेरी आँखों में देखते हुए रुँवाँसी होके बोली....
"मानु .... मुझे माफ़ कर दो!"
मैं: आखिर मेरा कसूर ही क्या था??? सिर्फ आपके साथ भोजन ही तो करना चाहता था... जैसे हम पहले साथ-साथ भोजन किया करते थे.... इसके लिए भी आपको दुनिया दारी की चिंता है??? तो ठीक है आप सम्भालो दुनिया दारी को... मुझे तो लगा था की आप मुझसे प्यार करते हो पर आपने तो अपने और मेरे बीच में लकीर ही खींच दी ....
भाभी: मानु... मेरी बात तो एक बार सुन लो... उसके बाद तुम जो सजा दोगे मुझे मंजूर है|
मैं चुप हो गया और उन्हें अपनी बात कहने का मौका देने लगा...
भाभी: (भाभी ने अपना सीधा हाथ मेरे सर पे रख दिया और कहने लगीं) तुम्हारे भैया कल दोपहर को मेरे साथ सम्भोग करना चाहते थे... जब मैंने उन्हें मन किया तो वो भड़क गए और मेरी और उनकी तू-तू मैं-मैं हो गई! और उनका गुस्सा मैंने गलती से तुम पे निकाल दिया... इसके लिए मुझे माफ़ कर दो| कल रात से तुम्हारे साथ मैंने भी कुछ नहीं खाया... सुबह की चाय तक नहीं...
मैं: आपको कसम खाने की कोई जर्रूरत नहीं है... मैं आप पर आँख मुंड के विश्वास करता हूँ|
और मैंने अपने हाथ से भाभी के आंसूं पोंछें| तभी माँ भी आ गईं.. शुक्र था की माँ ने हमारी कोई बात नहीं सुनी थी.... भाभी ने एक थाली माँ को दे दी और दूसरी थाली ले कर मेरे सामने पलंग पे बैठ गईं| मैं थोड़ा हैरान था...
भाभी: चलो मानु शुरू करो...
मैं: आप मेरे साथ एक ही थाली में खाना खाओगी?
भाभी: क्यों? तुम मेरे झूठा नहीं खाओगे?
माँ: जब छोटा था तो भाभी का पीछा नहीं छोड़ता था... भाभी ही तुझे खाना खिलाती थी और अब ड्रामे तो देखो इसके...
माँ की बात सुन भाभी मुस्कुरा दीं.. और मैं ही मुस्कुरा दिया.... माँ ने खाना जल्दी खत्म किया और अपने बर्तन लेकर रसोई की तरफ चल दीं| कमरे में केवल मैं और भाभी ही रह गए थे.. मुझे शरारत सूझी और मैंने भाभी से कहा:
"भाभी खाना तो हो गया... पर मीठे में क्या है?" भाभी: मीठे में एक बड़ी ख़ास चीज है...
मैं: वो क्या?
भाभी: अपनी आँखें बंद करो!!!
मैं : लो कर ली
भाभी धीरे-धीरे आगे बढ़ीं और मेरे थर-थराते होंठों पे अपने होंठ रख दिए| भाभी की प्यास मैं साफ़ महसूस कर प् रहा था... मैं उनके लबों को अपने मुझ में भर के उनका रस पीना चाहता था परन्तु उन्होंने मेरे होठों को निचोड़ना शुरू कर दिया था और मैं इस मर्दन को रोकना नहीं चाहता था| भाभी सच में बहुत प्यासी थी... इतनी प्यासी की एक पल केलिए तो मुझे लगा की भाभी को अगर मौका मिल गया तो वो मुझे खा जाएँगी|भाभी ने तो मुझे सँभालने का मौका भी नहीं दिया था... और बारी-बारी मेरे होंठों को चूसने में लगीं थी| मैं मदहोश होता जा रहा था... मैंने तो अपने जीवन में ऐसे सुख की कल्पना भी नहीं की थी| नीचे मेरे लंड का हाल मुझसे भी बत्तर था... वो तो जैसे फटने को तैयार था| मैंने अपना हाथ भाभी के स्तन पे रखा और उन्हें धीरे-धीरे मसलने लगा| भाभी ने चुम्बन तोडा.... और उनके मुख से सिकरिया फुट पड़ीं...
" स्स्स्स्स....मानु...आअह्ह्ह्ह ! रुको......"
मेरा अपने ऊपर से काबू छूट रहा था और मैं मर्यादा लांघने के लिए तैयार था... शायद भाभी का भी यही हाल था|
उन्होंने अचानक ही मुझे झिंझोड़ के रोक दिया...
"मानु अभी नहीं... कोई आ जायेगा| आज रात जब सब सो जायेंगे तब जो चाहे कर लेना .. मैं नहीं रोकूँगी.."
मैं: भौजी मुँह मीठा कर के मजा आ गया|
भाभी: अच्छा??
मैं: भौजी इस बार तो कहीं आप अपने मायके तो नहीं भाग जाओगी?
भाभी: नहीं मानु...वादा करती हूँ ...और अगर गई भी तो तुम्हें साथ ले जाउंगी|
मैं: और अपने घर में सब से क्या कहोगी की मुझे अपने संग क्यों लाई हो?
भाभी: कह दूंगी की ससुराल से दहेज़ में तुम मिले हो....
और हम दोनों खिल-खिला के हंसने लगे|
मैं: अब शाम तक इन्तेजार कैसे करूँ?
भाभी: मानु सब्र का फल मीठा होता है!
इतना कह के भाभी मुस्कुराते हुए उठीं... मैंने जैसे-तैसे अपने आप को रोका ... अपनी इच्छाओं पे काबू पाना इतना आसान नहीं होता| खेर भाभी भी अपनी थाली ले कर रसोई की ओर चलीं गईं| मैं भी उनके पीछे-पीछे चल दिया...
शाम होने का इन्तेजार करना बहुत मुश्किल था.... एक-एक क्षण मानो साल जैसा प्रतीत हो रहा था| मैंने सोचा की अगर रात को जो होगा सो होगा काम से काम अभी तो भाभी के साथ थोड़ी मस्ती की जाए|भाभी बर्तन रसोई में रख अपने कमरे में थी.. और संदूक में कपडे रख रही थी| मैंने पीछे से भाभी को फिर से दबोच लिया और अपने हाथ उनके वक्ष पे रख उन्हें होल-होल दबाने लगा| भाभी मेरी बाँहों में कसमसा रही थी और छूटने की नाकाम कोशिश करने लगी|
"स्स्स्स्स ....उम्म्म्म्म ... छोड़ो...ना..!!!!"
मैंने बेदर्दी ना दिखाते हुए उन्हें जल्दी ही अपनी गिरफ्त से आजाद कर दिया... पर मुझे ये नहीं पता था की ये तो एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है जो हर स्त्री में होती है| अंदर ही अंदर तो भाभी चाहती होंगी की हम कभी अलग ही ना हों|
भाभी: मानु तुम से सब्र नहीं होता ना....
मैं: भाभी अपने ही तो आग लगाईं थी... अब आग इतनी जल्दी शांत कैसे होगी|
भाभी को दर था की कहीं कोई हमें एक कमरे में अकेले देख ले तो लोग बातें बनाएंगे.. इसलिए वो बहार चली आईं और मैं भी उनके पीछे-पीछे बहार आ गया|
अब मैं आपको जरा घर के बाकी सदस्यों के बारे में विस्तार में परिचित कराता हूँ:
१. अशोक भैया (चन्दर भैया से छोटे) उनकी शादी हो चुकी थी... उनकी पत्नी का नाम संगीता है और उनके पुत्र का नाम : श्याम और शहर में एक कंपनी में चपरासी हैं| वे गाँव केवल जून के महीने में ही आते हैं|
२. अजय भैया (अशोक भैया से छोटे) उनकी शादी भी हो चुकी है और उनकी पत्नी का नाम रसिका है और एक पुत्र जिसका नाम: वरुण है और वे खेती-बाड़ी सँभालते हैं|
३. अनिल भैया के रिश्ते की बात अभी चल रही है और वे चंडीगढ़ में होटल में बावर्ची हैं|
४. गट्टू और मेरी उम्र में ज्यादा अंतर नहीं है इसलिए उसकी अभी शादी नहीं हुई और अभी पढ़ रहा है|
मित्रों मैं आपको एक नक़्शे द्वारा समझाना चाहूंगा की हमारा गांव आखिर दीखता कैसा है:
चन्दर भैया की शादी सबसे पहले हुई थी और वे परिवार के सबसे बड़े लड़के थे इसीलिए उनका घर अलग है| उनके घर में केवल एक कमरा ..एक छोटा सा आँगन और नहाने के लिए एक स्नान गृह है|
बाकी भाई सब बड़े घर में ही रहते हैं| उस घर में बीच में एक आँगन है और पाँच कमरे हैं| हमसभी उसी घर में ठहरे हैं| सभी लोग घर के प्रमुख आँगन में ही सोते हैं परन्तु सब की चारपाई का कोई सिद्ध स्थान नहीं है.. कोई भी कहीं भी सो सकता है|
आप लोग भी सोचते होंगे की मैं कैसा भतीजा हूँ जो अपने मझिले दादा (बीच वाले चाचा जी) को भूल गया और उनके परिवार के बारे में कुछ नहीं बताया| तो मित्रों दरअसल जब मैंने लिखना शुरू किया था तब ये नहीं सोचा था की मैं अपनी आप बीती को पूरा कर पाउँगा... क्योंकि मुझे लगा था की आप सभी श्रोता ऊब जायेंगे.. क्योंकि मेरी आप बीती में कोई लम्बा इरोटिक सीन ही नहीं है... परन्तु आप सबके प्यार के कारन मैं अपनी आप बीती खत्म होने पर कुछ रोचक मोड़ अवश्य लाऊंगा की आप सभी श्रोता खुश हो जायेंगे|
अजय भैया और रसिका भाभी में बिलकुल नहीं बनती थी... और दोनों छोटी-छोटी बात पे लड़ते रहते थे| रसिका भाभी अपना गुस्सा अपने बच्चे वरुण पे उतारती| वो बिचारा दोनों के बीच में घुन की तरह पीस रहा था... पिताजी और माँ ने बहुत कोशिश की परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ|
मैं जब से गावों आया था तब से मेरी रसिका भाभी से बात करने की हिम्मत नहीं होती... वो ज्यादातर अपने कमरे में ही रहती... घर का कोई काम नहीं करती| जब कोई काम करने को कहता तो अपनी बिमारी का बहन बना लेती| बाकी बच्चों की तरह वरुण भी मेरी ही गोद में खेलता रहता... मैं तो अपने गावों का जगत चाचा बन गया था.. हर बच्चा मेरे साथ ही रहना चाहता था इसी कारन मुझे भाभी के साथ अकेले रहने का समय नहीं मिल पता था|
शाम को फिर से अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा हो गया... और बिचारा वरुण रोने लगा| भाभी ने मुझे वरुण को अपने पास ले आने को कहा.. और मैं फटा-फैट वरुण को अपने साथ बहार ले आया| वरुण का रोना चुप ही नहीं हो रहा था... बड़ी मुश्किल से मैंने उसे पुचकार के आधा किलोमीटर घुमाया और जब मुझे लगा की वो सो गया है तब मैंने उसे भाभी को सौंप दिया| जब भाभी मेरी गोद से वरुण को ले रही थी तो मैंने शरारत की.. और उनके निप्पलों को अपने अंगूठे में भर हल्का सा मसल दिया| भाभी विचलित हो उठी और मुस्कुराती हुई प्रमुख आँगन में पड़ी चारपाई इ वरुण को लिटा दिया|
रात हो चुकी थी और अँधेरा हो चूका था... भाभी जानती थी की मैं खाना उनके साथ ही खाऊंगा परन्तु सब के सामने??? उनकी चिंता का हल मैंने ही कर दिया:
मैं: भौजी मुझे भी खाना दे दो....
भाभी मेरा खाना परोस के लाई और खुस-फुसते हुए कहने लगी:
भाभी: मानु क्या नाराज हो मुझ से?
मैं: नहीं तो!
भाभी: तो आज मेरे साथ खाना नहीं खाओगे?
मैं: भाभी आप भी जानते हो की दोपहर की बात और थी ... अभी आप मेरे साथ खाना खाओगी तो चन्दर भैया नाराज होंगे| .....
भाभी मेरी ओर देखते हुए मुस्कुराई ओर मेरी ठुड्डी पकड़ी ओर प्यार से हिलाई!!!
भाभी: बहुत समझदार हो गए हो?
मैं: वो तो है.. सांगत ही ऐसी मिली है.. ओर वैसे भी आप मेरे हिस्से का खाना खा जाती हो|
(मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा|)
भाभी ने अपनी नाराज़गी ओर प्यार दिखाते हुए प्यार से मेरी पीठ पे थप-थपाया| मैंने जल्दी-जल्दी से खाना खाया और अपने बिस्तर पे लेट गया और ऐसे जताया जैसे मुझे नींद आ गई हो| असल मुझे बस इन्तेजार था की कब भाभी खाना खाएं और कब बाकी सब घर वाले अपने-अपने बिस्तर में घुस घोड़े बेच सो जाएं| और तब मैं और भाभी अपना काम पूरा कर लें| इसीलिए मैं आँखें बंद किये सोने का नाटक करने लगा ... पेट भरा होने के कारन नींद आने लगी थी... मैं बाथरूम जाने के बहाने उठा की देखूं की भाभी ने खाना खया है की नहीं... तभी भाभी और अम्मा मुझे खाना कहते हुए दिखाई दिए| मैं बाथरूम जाने के बाद जानबूझ के रसोई की तरफ से आया ताकि भाभी मुझे देख ले और उन्हें ये पक्का हो जाये की मैं सोया नहीं हूँ और साथ ही साथ मैंने मोआयने कर लिया था की कौन-कौन जाग रहा है और कौन-कौन सो गया है|
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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