Sunday, July 27, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--10

FUN-MAZA-MASTI

 बदलाव के बीज--10
अब आगे....
 बच्चे तो सब सो चुके थे... बड़के दादा (बड़े चाचा) और पिताजी की चारपाई पास-पास थी और दोनों के खर्रांटें चालु थे| गट्टू भी गधे बचके सो रहा था...माँ अभी जाग रही थी और बड़की अम्मा (बड़ी चाची) जी से लेटे-लेटे बात कर रही थी मैंने अनुमान लगाया की ज्यादा से ज्यादा एक घंटे में दोनों अवश्य सो जाएँगी|| रसिका भाभी सो चुकी थीं और अजय भैया भी झपकी ले रहे थे….चन्दर भैया भी चारपाई पे पड़े ऊंघ रहे थे....| आखिर मैं अपने बिस्तर पे आके पुनः लेट गया... और भाभी की प्रतीक्षा करने लगा| अब बस इन्तेजार था की कब भाभी आये और अपनी प्यारी जुबान से मेरे कानों में फुसफुसाए की मानु चलो!!! इन्तेजार करते-करते डेढ़ घंटा हो गया... मैं आँखें मूंदें करवटें बदल रहा था.... तभी भाभी की फुसफुसाती आवाज मेरे कानों में पड़ी:

भाभी: मानु... सो गए क्या?

मैं: नहीं तो... आजकी रात सोने के लिए थोड़े ही है...

ये सुन भाभी ने एक कटीली मुस्कान दी|

मैं: बाकी सब सो गए ?

भाभी: हाँ ... शायद...

मैं: डर लग रहा है?

भाभी: हाँ...

मैं: घबराओ मत मैं हूँ ना...
इतना कहते हुए मैंने भाभी के हाथ को थोड़ा दबा दिया|

तभी अचानक किसी के झगड़ने की आवाज आने लगी| ये आवाज सुन हम दोनों चौंक गए.. भाभी को तो ये डर सताने लगा की कोई हम दोनों को साथ देख लेगा तो क्या सोचेगा और मैं मन ही मन कोस रहा था की मेरी योजना पे किस @@@@जादे ने ठंडा पानी डाल दिया?


 शोर सुन सभी उठ चुके थे... बच्चे तक उठ के बैठ गए थे| मैं और भाभी भी अब शोर आने वाली जगह की तरफ चल दिए| वो शोर और किसी का नहीं बल्कि अजय भैया और रसिका भाभी का था| पता नहीं दोनों किस बात पे इतने जोर-जोर से झगड़ रह थे... अजय भैया बड़ी जोर-जोर से रसिका भाभी को गलियां दे रहे थे और लट्ठ से पीटने वाले थे की तभी मेरे पिताजी और बड़के दादा ने उन्हें रोक लिया... और समझने लगे| शोर सुन वरुण ने रोना चालु कर दिया था... मैंने तुरंत भाग के वरुण को गोद में उठाया और साथ ही बच्चों को अपने साथ रेल बनाते हुए दूर ले गया ताकि वो इतनी गन्दी गलियां न उन पाएँ| इशारे से मैंने भाभी को भी अपने पास बुला लिया...

मैंने सोहा शायद भाभी को पता होगा की आखिर दोनों क्यों लड़ रहे होंगे... पर उनके चेहरे के हाव-भाव कुछ अलग ही थे|

भाभी: मानु तुम यहाँ अकेले में इन बच्चों के साथ क्यों खड़े हो?

मैं: भौजी अपने नहीं देखा दोनों कितनी गन्दी-गन्दी गलियां दे रहे हैं... बच्चे क्या सीखेंगे इन से?

भाभी: मानु.. ये तो रोज की बात है| इनकी गलियां तो अब गांव का बच्चा-बच्चा रट चूका है|

मैं: हे भगवान... !!!

भाभी का मुंह बना हुआ था.. और मैं जनता था की वो क्यों उदास है| मैंने उन्हें सांत्वना देने के लिए अपने पास बुलाया और उनके कान में कहा:

भौजी आप चिंता क्यों करते हो... कल सारा दिन है अपने पास...और रात भी....

भाभी: मानु रात तो तुम भूल जाओ!!!

उनकी बात में जो गुस्सा था उसे सुन मैं हँस पड़ा... और मेरी हंसी से भाभी नाराज होक चली गई और मैं पीछे से उन्हें आवाज देता रह गया| सच बताऊँ मित्रों तो मुझे भी उतना ही दुःख था जितना भाभी को था बस मैं उस दुःख को जाहिर कर अपना और भाभी का मूड ख़राब नहीं करना चाहता था|

खेर मामला सुलझा.. सुबह हो गई... और एक नई मुसीबत मेरे सामने थी| पिताजी और माँ बाजार जाना चाहते थे.. और मजबूरी में मुझे भी जाना था|


 मन मसोस कर मैं चल पड़ा... बाजार से माँ और पिताजी खरीदारी कर रहे थे... पर मेरी शकल पे तो बारह बजे थे| पिताजी को आखिर गुस्सा तो आना ही था..

पिताजी: मुँह क्यों उतरा हुआ है तेरा?

मैं: वो गर्मी बहुत है... थकावट हो रही है... घर चलते हैं|

पिताजी: घर? अभी तो कुछ खरीदा ही नहीं...??? और अगर तुझे घर पे ही रहना था तो आया क्यों साथ?

माँ: अरे छोडो न इसे... इसका मूड ही ऐसा है, एक पल में इतना खुश होता है की मनो हवा में उड़ रहा हो और कभी ऐसे मायूस हो जाता है जैसे किसी का मातम मन रहा हो|

मेरे पास माँ की बातों का कोई जवाब नहीं था... इसलिए मैं चुप रहा... माँ और पिताजी दूकान में साड़ियां देखने में व्यस्त थे... एक बार मन तो हुआ की क्यों न भाभी के लिए एक साडी ले लूँ... पर जब जेब का ख्याल आया तो ... मन उदास हो गया| जेब में एक ढेला तक नहीं था... पिताजी मुझे पैसे नहीं देते थे.. उनका मानना था की इससे से मैं बिगड़ जाऊंगा! मैं बैठे-बैठे ऊब रहा था.. इससे निकलने का एक रास्ता दिमाग में आया| मैंने सोचा क्यों न मैं अपने दिमाग के प्रोजेक्टर में अभी तक की सभी सुखद घटनाओं की रील को फिर से चलाऊँ? इसलिए मैं ध्यान लगते हुए सभी अनुभवों को फिर से जीने लगा... पता नहीं क्यों पर अचानक से दिमाग में कुछ पुरानी बातें आने लगीं|

मित्रों मैंने आपको अपने गुजरात वाले भैया के बारे में बताया था ना... अचानक उनकी बात फिर से दिमाग में गुजने लगी... "मानु अब तुम बड़े हो गए हो ... मैं तुम्हें एक बात बताना चाहता हूँ| जिंदगी में ऐसे बहुत से क्षण आते हैं जब मनुष्य गलत फैसले लेता है| वो ऐसी रह चुनता है जिसके बारे में वो जानता है की उसे बुराई की और ले जायेगी| तुम ऐसी बुराई से दूर रहना क्योंकि बुराई एक ऐसा दलदल है जिस में जो भी गिरता है वो फंस के रह जाता है|"

तो क्या अब तक जो भी कुछ हुआ वो अपराध है? परन्तु भाभी तो मुझ से प्यार करती है... क्या मैं भी उन्हें प्यार करता हूँ?

मित्रों इन बातों ने मुझे झिंझोङ के रख दिया... मुझे अपने आप से घृणा होने लगी.. की कैसे देवर हूँ मैं जो अपनी भाभी का गलत फायदा उठाना चाहता है| मुझे तो चुल्लू भर पानी में डूब जाना चाहिए... सच में मुझे इतनी घृणा कभी नहीं हुई जितना उस समय हो रही थी... अंदर से मैं टूट चूका था!!! मन कह रहा था की ये प्यार है और तुझे ये काबुल कर लेना चाहिए... तुझे भाभी से ये कहना होगा की तू उनसे बहुत प्यार करता hai

मैंने निर्णय किया की मैं भाभी से अपने प्यार का इजहार करूँगा....और अब कोई भी गलत बात या कोई गन्दी हरकत नहीं करूँगा भाभी के साथ| मेरा मुंह बिलकुल उत्तर गया था.. मन में मायूसी के बदल छाय हुए थे और मैं बस जल्दी से जल्दी भाभी से ये बात कहना चाहता था|


 उधर पिताजी के सब्र का बांध टूट रहा था, उन्हें मेरा मायूस चेहरा देख के अत्यधिक क्रोध आ रहा था| उन्होंने माँ से कहा की जल्दी से साडी खरीदो मैं अब इस लड़के का उदास चेहरा नहीं देखना चाहता..

खेर हम घर के लिए निकल पड़े और रास्ते भर पिताजी मुझे डांटते रहे.. परन्तु मैंने उनकी बातों को अनसुनी कर दिया... और सारे रास्ते मैं भाभी से क्या कहना है उसके लिए सही शब्दों का चयन करने लगा| मुझे लगा की मैं भाभी से ये प्यार वाली बात कभी नहीं कह पाउँगा....

दोपहर के भोजन का समय था.... मैं. पिताजी और माँ बड़े घर पहुँच कर अपने-अपने कपडे बदल रहे थे| गर्मी के कारन पिताजी स्नान कर रसोई की ओर चल दिए ओर माँ को कह गए की इसे भी कह दो खाना खा ले| तभी भाभी मेरे ओर माँ के लिए खाना परोस के ले आई... भाभी को देखते ही मेरा गाला भर आया... ओर ना जाने क्यों मैं उनसे नजर नहीं मिला पा रहा था... भाभी ने माँ को खाना परोसा ओर मुझे भी खाना खाने के लिए कहा| मेरे मुख से शब्द नहीं निकले.. क्योंकि मैं जानता था की अगर मैंने कुछ भी बोलने की कोशिश की तो मैं आपने को काबू में नहीं रख पाउँगा ओर रो पड़ूँगा| मैंने केवल ना में गर्दन हिला दी... मेरा जवाब सुन भाभी के मुख पे चिंता के भाव थे... उन्होंने धीमी आवाज में कहा:

"मानु अगर तुम खाना नहीं खाओगे तो मैं भी नहीं खाऊँगी ..."

मैं उसी क्षण उनसे अपने दिल की बात कहना चाहता था परन्तु हिम्मत नहीं जुटा पाया और वहाँ से छत की ओर भाग गया| छत पे चिल-चिलाती हुई धुप थी... भाभी नीचे से ही आवाज देने लगी...और साथ-साथ माँ ने भी चिंता जताई और नीचे से ही मुझे बुलाने लगी| मैं छत पे एक कोने पे खड़ा हो के अपने अंदर उठ रहे तूफ़ान पर काबू पा रहा था... मेरी आँखों से कुछ आंसूं छलक आये| मैं अपनी आँख पोछते हुए पीछे घुमा तो भाभी कड़ी हुई मुझे देख रही थी... उन्होंने कुछ कहा नहीं और ना ही मैंने कुछ कहा.. मैं बस नीचे भाग आया| चुप चाप बैठ के भोजन करने लगा... माँ ने इस अजीब बर्ताव का कारन पूछा परनतु मैंने कोई जवाब नहीं दिया| भाभी भी नीचे आ चुकी थी.. और माँ का खाना खा चुकी थी और थाली ले कर रसोई की ओर जा रही थी तो भाभी ने उन्हें रोका और मेरे बर्ताव का कारन पूछने लगीं:

भाभी: चाची क्या हुआ मानु को? चाचा ने डांटा क्या?

माँ: अरे नहीं बहु.. पता नहीं क्या हुआ है इसे.. सारा रास्ता ऐसे ही मुंह लटका के बौठा था| जब पूछा तो कहने लगा की गर्मी बहुत है... सर दर्द हो रहा है .. ऐसा कहता है| भगवान जाने इसे क्या हुआ है?

भाभी: आप थाली मुझे दो मैं तेल लगा देती हूँ... सर का दर्द ठीक हो जायेगा|

उधर मेरा भी खाना खत्म हो चूका था और मैं अपनी थाली ले कर जा रहा था.. भाभी ने मुझे रोका और बिना कुछ कहे मेरी थाली ले कर चली गई| उधर माँ भी भोजन के बाद टहलने के लिए बहार चली गईं| अब केवल मैं ही उस घर में अकेला रह गया था ... मैंने सोचा मौका अच्छा है.. भाभी से अपने दिल की बात करने का... पर मैं ये बात कहूँ कैसे?

पांच मिनट के भीतर ही भाभी नवरतन तेल ले कर आगईं.. उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे चार पाई पर बैठाया और कहा:

भाभी: मानु मैं जानती हूँ की तुम क्यों उदास हो.. सच बताऊँ तो मेरा भी यही हाल है| तुम मायूस मत हो.. कल हम कैसे न कैसे कर के सब कुछ निपटा लेंगे|

मैं कुछ भी बोलने की हालत में नहीं था... गाला सुख गया था... आँखों में आंसूं छलक आये और तभी मैंने वो किया जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी....









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