FUN-MAZA-MASTI
विधवा की जिंदगी--2
वापस आई तो बड़ी बेचैन थी और सीधे सो गयी. शाम के समय तक बेसुध सोयी पड़ी रही. नींद तभी खुली जब दरवाजे पर जोर-जोर से पिटने की आवाज़ आई. दरवाजा खोला तो सामने कमल खड़ा था.
"क्या बात है? बड़ी देर कर दी दरवाजा खोलने मैं. मैं कितनी देर से दरवाजा खड़-खड़ा रह हूँ," कमल ने आते ही पूछा.
मैंने अलसाई सी बोली, "हाँ. थोडी आँख लग गयी थी. मालूम ही नही पड़ा."
फीर उसके हाथ से सौब्जी का थैला ले लीया और kitchen मैं आकर बोली, "तयार हो जाओ. अभी थोडी देर मैं ही खाना बना देती हूँ."
खाना खाने के बाद हम लोग बात-चीत करते रहे फीर मैं उठकर अपने कमरे मैं सोने चली आई. सोने से पहले kitchen से गज़र ले आई थी. गज़र हाथ मैं आते ही दीन वाला सीन नज़रों के सामने घूमने लगा. kitchen मैं खडे-खडे जी अपनी निघ्टी के ऊपर से ही गज़र को चूत पर रगड़ने लगी. फीर अचानक याद आया की कमल भी घर पर ही है. लेकीन चूत की आग ने मुझे अंधी कर दीया और गज़र को रगड़ते हुए ही अपने कमरे की और चल पड़ी.
बिस्टर पर लेटने के साथ ही दीन वाला सीन को याद करके निघ्टी को ऊपर कर गज़र को चूत मैं फंसा दीया और करने लगी अन्दर-बाहर. आज बड़ा मज़ा आ रह था. शायद दो-दो लंड का नज़ारा ब्लू फिल्म के अलावा पहली बार देखा था इसलिए. मैंने पहले आपको बताया था की मेरा हुस्बंद ब्लू फिल्म's की CD लाकर मुझे दिखता था.
गज़र चूत मैं डालने से मुझे बड़ा शकून मीलने लगा और मेरे मुहं से सिसकारी निकलने लगी. जब पानी नीकल गया तो बड़ी राहत महसूस की. निघ्टी नीचे कर सोने लगी तो मैंने एक सहाय दरवाजे के पास से जाते देखा. ओह्ह... आज दरवाजा बंद करना भूल गयी थी मैं. शायद कमल ने देख लीया हो. लेकीन मन मैं फीर आया शायद यह मेरा वहम हो. खैर.
सुबह उठी तो रात वाली बात भूल चुकी थी मैं. रात को मुझे सबसे ज्यादा मज़ा आया था. इसलिए पुरा बदन हल्का-हल्का महसूस कर रही थी मैं. लेकीन मुझे कमल की नज़रों मैं फरक महसूस नज़र आया. लेकीन मुझे क्या? खाना बनने के बाद कमल को खाने के लिए आवाज़ दी और दो थाली मैं खाना दाल कर हॉल मैं हम दोनो बैठ गए. कमल नहाने के बाद लुंगी पहने हुए मेरे सामने बैठ गया और चुप-चाप खाना खाने लगा.
खाने खाने के बाद कमल से मैंने पूछ लीया, "अभी रुकोगे या गाँव जा रहे हो?"
कमल ने मुझे घूरते हुए पूछा, "क्यों? मेरा यहाँ रहना अच्छा नही लग रह है?"
मैंने डपट-ते हुए कहा, "कैसी बातें कर रहे हो? मुझे क्यों बुरा लगेगा. मैंने इसलिए पूछा की अगर शाम को अगर रूक रहे हो तो सुब्जी लेकर आजना."
कमल ने मेरी आँखों मैं झांकते हुए कहा, "और गज़र भी."
गज़र का नाम उसके मुहं से सुनते ही मैं चोंक पड़ी. और मेरे मुहं से कुछ भी निकलते नही बना.
लेकीन कमल ने वापस पूछा, "रोज जो मैं गज़र लाता हूँ उसका आखीर तुम करती क्या हो?"
मैं आंखें नीचे किये हुए चुप-चाप बैठी रही. यानी मेरा रात को वह साया देखना वहम नही था बल्की हकीकत थी.
कमल ने फीर पूछा, "क्यों करती हो यह सब? जब तुम्हारे पास यह मोजुअद है तब तुम्हे गज़र की क्या जरुरत."
यह कहकर कमल ने अपनी लुंगी के बीच मैं से अपना फुन्फंनाता हुआ अपना मूसल लंड बाहर निकाला. मैं फटी आँखों से उसके मूसल लंड को देखती रही.
मुझे चुप-चाप देखकर कमल ने मेरा हाथ पकडा और मेरी हथेली मैं अपना लंड थमा कर बोला, "इन्द्रा रानी, देखो कैसे तुम्हारे लिए तदाफ़ रह है. इसे प्यार करो."
उसका गरमा-गरम लाल लाव्दा मेरे हाथ मैं आते ही उछल-कूद मचने लगा. मैंने जब हाथ हटाना चाह तो उसने मेरे हाथ को कसकर पकड़ लीया और मेरी हथेली से अपने लंड को हिलाने लगा. उसका लंड और तन गया. फीर उसने मुझे अपनी बाँहों के घेरे मैं ले लीया और मेरे चेहरे को ऊपर उठाते हुए मेरे होठों को चूम लीया. उसके तपते हुए होठ मेरे नरम-मुलायम होठों को चूसने लगे. मैं बेशुद्ध होने लगी. कई देर तक मेरे होठो को चूसने के बाद कमल ने मेरे होठ आज़ाद कर दीये और मेरे चेहरे को देखने लगा.
मैंने कुछ बोलने की कोशिश की लेकीन उसने मुझे अपनी बाँहों मैं उठाया और मेरे होठो पर अपने होठ रखते हुए मुझे अपनी बाँहों मैं झुलाते हुए बेडरूम मैं ले आया और बिस्टर पर मुझे लिटा कर मेरे ऊपर लेट गया. मैं उसके जिस्म के नीचे दबी हुयी बड़ी रहत महसूस कर रही थी. उसके वज़न से मेरे दबता हुआ यौवन मुझे शकुन दे रह था. कमल मेरे होठो का रुस पीता रह, पीता रह और पीता रह. जब मुझे सांस लेने मैं तकलीफ होने लगी तब मैंने उसे अपने ऊपर से धकेला.
फीर बोली, "नही कमल नही. नही करो यह सब."
लेकीन कमल कहाँ मानने वाला था. वह बेद के नीचे बैठकर मेरे एक टांग को पकडा और लगा उसे चूमने. वह पहले मेरी पैरों की अंगुलियों को चूमा फीर मेरे टांगो पर बढ़ता हुआ मेरे घुटनों तक चूमता हुआ चला आया. मेरे पूरे बदन मैं अक अजीब सी गुदगुदी होने लगी. मेरा बदन जलने लगा. फीर उसने उस टांग को छोड़ कर मेरी दूसरी टांग को पकडा और चूमता हुआ मेरी सारी को ऊपर करता हुआ मेरी जन्घो तक चूमता हुआ आ गया. अब मेरे होश उड़ने लगे. मुझ पर नशा सवार होने लगा. मैं अब कीसी तरह का विरोध नही कर पा रही थी.
कमल मेरी सारी को और ऊपर करता हुआ मेरी दोनो जाँघों को चाटने और चूमने लगा. मेरे दोनो हाथ उसके सीर पर चले गए. शायद मैं यह चाहने लगी थी और उसके सीर पर हाथ रखकर मैंने अपना इशारा दे दीया. कमल ने मेरी दोनो जांघों को चौडा कीया और मेरे Panty के नीचे तक मुझे चूमने लगा. मेरी चूत मैं रुस निकलने लगा. बाहर तो नही आया लेकीन मैं चाह रही थी की कमल और आगे बढे और मेरी चूत को दबोच ले.
कमल ने कोई जल्दीबाजी नही दिखाते हुए मेरी जाँघों पर से अपना सीर हटाया और मेरे चेहरे की तरफ देखने लगा. अब मैं और कमल दोनो एक दुसरे की आँखों मैं झाँकने लगे. अपने-अपने प्यार का इजहार करने लगे. एक दुसरे को समझने लगे. फीर कमल ने अपना मुहं आगे बढाया और मुझे अपनी बाँहों मैं लेते हुए मेरे गदराये हुए रसीले होठ को फीर अपने होठ की गिरफ्त मैं ले लीया. अब हम दोनो लगे चुम्बन पर चुम्बन लेने. हमारी जीभ एक दुसरे के मुहं बगैर वीसा लिए आ रही और जा रही थी. कीसी पासपोर्ट की जरुरत नही थी. दोनो जाने एक दुसरे के रस को पी रहे थे.
फीर कमल ने मेरी सारी के पल्लुह को हटा कर मेरे दोनो मुम्मो को अपने हाथो मैं जकड लीया और लगा उन्हें दबाने. मेरे मुहं से सिसकारी नीकल रही थी. उसने मेरे होठ को छोड़कर अब अपना मुहं मेरे मुम्मो पर दे दीया. ब्लौसे के ऊपर से ही मेरे मुम्मो को चूमने और काटने लगा. मेरा पुरा ब्लौसे उसके थूक से गीला हो गया.
मैं फुसफुसाई, "पहले कपडे तो खोल दो."
कमल ने झट से मेरे ब्लौसे के बटन खोले शुरू कर दीये. ब्लौसे के हटने के साथ ही मेरे मुम्मे जोकी अभी भी चोली के नीचे थे उसके सामने आ गए. मेरी चोली के कप मैं पूरे समाये हुए नही थे इसीलिए बाहर की और झलक रहे थे. जीसे देखकर कमल का धैर्य जवाब दे दीया और मेरी चोली के साथ ही मेरे मुम्मो को चूसना शुरू कर दीया. उसकी दीवानगी देख कर मैं कांप उठी. उसका लंड मेरी जांघों पर गद रह था. वह मेरे ऊपर लेटा हुआ मेरे दोनो मुम्मो को चोली के साथ ही मसल रह था और चूस रह था.
अब मैंने अपना हाथ नीचे कीया और उसके लंड को कास कर अपनी मुठी मैं पकड़ने लगी. लेकीन उसका साइज़ इतना था की मेरी मुठी मैं आ ही नही पाया. बहुत मोटा था उसका लाव्दा. मुझे लगा जैसे मैंने कोई अंगारा अपने हाथ मैं ले लीया हो. रात भर से जो सुलग रह था. अपने हाथ से उसके लंड की चमडी को ऊपर-नीचे करने लगी. लम्बी भी बहुत ज्यादा थी उसके लाव्दे की. हाथ से नापा तो जान की मेरी हथेली से भी बड़ा है.
अब कमल अपने हाथ मेरी पीठ पर ले गया और मेरी चोली के हूक को खोलने लगा. जैसे ही मेरी चोली के हूक खुले मेरे दोनो मुम्मी अज्ज़द हो कर उछल पड़े. मेरे मुम्मी मसले जाने के लिए बेताब थे. जरुरत थी दो मज़बूत हाथो की जो मेरे सामने अब कमल के रुप मैं मौजूद थे. कमल ने झट से मेरे दोनो नारान्गियों को पकड़ लीया और लगा उनका रस पीने. कमल ने अपने दांत, होठ और जीभ से मेरे दोनो मुम्मी की बारी-बारी से खूब धुनाई की. मैं निहाल हो उठी. मेरे मुहं से सिस्कारियां नीकल पड़ी.
कमल ने अब मेरे होठो फीर से अपनी गिरफ्त मैं ले लीया और अपने हाथों से मेरे मुम्मी और मेरी पीठ को सहला रह था. मेरा बदन थार-थाराने लगा. मैंने कमल के सीर के बाल पकडे और अपने होठों पर उसके होठों का दवाब बढ़ा दीया. कमल मेरी जीभ को चूसने लगा. मेरे नाज़ुक होठों से रस की हेर बूँद को चूस रह था. मैंने भी कमल के लाव्दे का जकड लीया और लगी हिलाने.
कमल का सख्त लोहे जैसा लंड एकदम गरम था. मैं उसकी गरम आंच मैं सुलग रही थी. मेरी चूत रस से भर चुकी थी. मैं अपनी जांघों को दबा कर अपनी चूत को रगड़ रही थी. इससे मेरे जिस्म की आग और भड़क गयी. अब मुझसे सहन नही हो पा रह था.
मैंने कमल से कहा, "कमल. अब सहन नही हो पा रह है. अब तुम अपने इस लंड को मेरी चूत मैं दाल कर मेरी आग को बुझाओ."
लेकीन कमल मेरे मुम्मो को मसलते हुए बोला, "थोडी आग और भड़कने दो. फीर देखना मैं कैसी चुदाई करता हूँ तुम्हारी. तुम अबसे जिन्दगी भर के लिए कोई गज़र अपनी चूत मैं डालना भूल जयोगी."
मैंने अपने मुम्मो पर मीठे-मीठे दर्द का अनुभव करते हुए बोली, "हाँ कमल. आज तुम मेरी ऐसी ही चुदाई करो की मुझे कभी भी कीसी गज़र की जरुरत नही पड़े. अब जल्दी से मुझे चोदों."
कमल ने कहा, "जल्दीबाजी नही, मेरी रानी. अभी पहले मेरे लंड को चाटो. मेरे लाव्दे को चूसो. मेरे इस हथियार को प्यार करो जानेमन."
यह कहकर कमल ने मेरे सीर पर अपने हाथ का दवाब बढाया और मेरा सीर उसके लाव्दे की तरफ झुकता चला गया. अब उसका लंड मेरे चेहरे के सामने था. हल्का लाल और कालापन लीये उसका सुपारा एकदम गुलाबी था. लग रह था जैसे शराब पिए हुए नशे मैं झूम रह हो. मैंने उसके मूसल लंड को अपने दोनो हाथो की हथेली के बीच ले लीया और लगने लगी उसको मथने. एकदम सख्त लंड था उसका. जरा भी नही दब रह था. फीर मैंने अपनी जीभ बाहर निकाली और उसके लंड के टीप पर अपनी जीभ सता दी.
कमल मेरी जीभ के छूते ही उफ्फ्फ़ कर बैठा. मुझे भी लगा जैसे मैंने कोई जलती हुयी कोई चीज़ अपनी जीभ से लगा दी हो. फीर मैंने उसके लंड को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की और चाटने लगी. अपने थूक से उस गरम लंड को थोडा ठंडा करने लगी. थूक से भर दीया उसको. तभी कमल ने मेरे सीर को जोर से पकडा और अपने लंड को मेरे मुहं के अन्दर जबरदस्ती डालने लगा.
मैंने कहा, "लेटी हूँ बाबा. ज़रा रुको तो सही. पहले मुझे इससे खेलने तो दो."
लेकीन कमल कहाँ मानने वाला था. वो तो बहुत बेसब्र था. उसने फीर मेरे सीर को पकड़ कर लंड को मेरे होठों से सता दीया और बोला, "अब सब्र नही हो रह है. एक बार मेरे लंड को अपने मुहं मैं लेकर चूसो."
मैंने अपना मुहं थोडा खोला. कमल ने झट से अपना लंड मेरे मुहं मैं डालने की कोशिश की. लेकीन कैसे जाता उसका लंड मेरे मुहं के अन्दर. कितना मोटा और मूसल था उसका लंड. लंड मेरे दांतों से टकरा कर ही रह गया. फीर मैंने अपना पुरा मुहं खोला और उसके लंड को ¼ ही ले पायी. मेरा मुहं पुरा भर गया. अन्दर तो पुरा नही गया था लेकीन मोटे होने की वजह से अन्दर लेने मैं तकलीफ होने लगी. कमल अपना जोर मार रह था और मैं भी मेरे मुहं को और खोलने की कोशिश कर रही थी. आखीर उसका ½ लंड मेरे मुहं मैं चला गया.
अब मैंने अपना सीर हिला-हिला कर उसके लंड को चूसना शुरू कर दीया. मुझे बड़ा मज़ा आने लगा. मज़ा तो कमल को भी आ रह था. इसीलिए उसके मुहं से सिस्कारियां नीकल रही थी. वो अपने चुताड हीला-हीला कर अपने लंड को मेरे मुहं के अन्दर बाहर कर रह था और मैं भी उसकी ताल मैं ताल मीलते हुए उसका साथ दे रही थी. मुझे लगने लगा की उसका लंड और फूल गया. तभी कमल ने जोर-जोर से शोट मारने शुरू कर दीये तब मैंने अपना मुहं हटा लीया.
कमल ने पूछा, "क्यों निकाली मेरा लंड?"
मैंने कहा, "कैसे जोर से मेरे अन्दर डाल रहे हो? मेरा मुहं दुखने लगा ऐसे तो."
कमल ने कहा, "बड़ा मज़ा आ रह था तुम्हारे चूसने से. अच्छा अब धीरे-धीरे ही हिलौंगा. लो वापस से मुहं के अन्दर और अब तुम जोर- जोर से चूसो."
मैंने फीर से उसके लंड को गुप्प से अपने मुहं मैं ले लीया. अबकी बार उसका लंड ¾ तक अन्दर चला गया. मैं अब जोर-जोर से मुहं हिला कर उसके लंड को चूसने लगी. इस तरह की चुसी से कमल बेकाबू हो गया. वो फीर से जोर के झटके देने लगा. लेकीन मैंने अब कोई परवाह किये बगैर उसके लंड को चुस्ती रही.
तभी कमल चीख पड़ा, "हीई. चूसो... मेरे लंड को... इन्द्रा रानी... चूसो मेरे लाव्दे को.... बड़ा मज़ा दे रही हो तुम... चूसने मैं एकदम एक्सपर्ट... ऐसे ही चूसो... मैं झाड़ जाऊँगा... चूसो... मेरे लंड को..."
मैंने भी उसका लंड बाहर नही निकाला. मैं भी चाहती थी की उसका एक बार रस नीकल जाये. फीर चुदवाने मैं मुझे बड़ा मज़ा आएगा. मैं चुस्ती रही उसके लंड को और तभी मैंने महसूस कीया मेरे गले मैं अन्दर की और कुछ खट्टी और चिप-छिपी बूंदे. तभी एक धार और निकली और सीधे हलक से उतर गयी. फीर तो ढेर सारी पिचकारी छूटी और मैं गताकती गयी उसके रस को.
उधर कमल अपने रस को निकालते हुए बोल रह था, "उफ्फ्फ़... क्या चूसी हो मेरे लंड को... लो पियो मेरे रस को... लो यह लो... और लो... पियो मेरे रस को.... बड़ा मज़ा आ रह है.... जानेमन ... तुम तो एक्सपर्ट हो लंड से खेलने की..."
धीरे-धीरे उसका जोश कम होता गया. मेरा मुहं पुरा उसके वीर्य से भर गया. मैंने उसके लंड को अपने मुहं से बाहर निकला. लेकीन यह क्या एक और धार उसके लंड से निकली. अबकी बार मेरे गले पर पड़ी. फीर मैंने हाथ से हीला कर उसकी आखरी बूँद तक रस निकाल दीया और फीर से उसके लंड को चूसने लगी. अब उसका लंड ढीला पड़ने लगा. लेकीन अब वो लंड मेरे मुहं मैं बराबर आ रह था. मुझे उसके मुरझाते लंड को चूसने मैं मज़ा आ रह था.
५-७ मिनट तक चुस्ती रही. तभी फीर से उसका लंड कड़क होने लगा. कमल बडे मेज़ लेकर चुस्वा रह था अपने लाव्दे को. उसका लंड फीर एकदम से कड़क हो गया. उसकी ताक़त फीर से उसके लंड मैं समाने लगी. उसके फूलते हुए लंड को देखकर मेरी चूत मैं आग लग गयी. अब मैंने उसके लंड को बाहर निकाल दीया और बिस्टर पर लेट कर उसके सीर को पकड़ कर अपनी चूत की तरफ ले गयी.
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विधवा की जिंदगी--2
वापस आई तो बड़ी बेचैन थी और सीधे सो गयी. शाम के समय तक बेसुध सोयी पड़ी रही. नींद तभी खुली जब दरवाजे पर जोर-जोर से पिटने की आवाज़ आई. दरवाजा खोला तो सामने कमल खड़ा था.
"क्या बात है? बड़ी देर कर दी दरवाजा खोलने मैं. मैं कितनी देर से दरवाजा खड़-खड़ा रह हूँ," कमल ने आते ही पूछा.
मैंने अलसाई सी बोली, "हाँ. थोडी आँख लग गयी थी. मालूम ही नही पड़ा."
फीर उसके हाथ से सौब्जी का थैला ले लीया और kitchen मैं आकर बोली, "तयार हो जाओ. अभी थोडी देर मैं ही खाना बना देती हूँ."
खाना खाने के बाद हम लोग बात-चीत करते रहे फीर मैं उठकर अपने कमरे मैं सोने चली आई. सोने से पहले kitchen से गज़र ले आई थी. गज़र हाथ मैं आते ही दीन वाला सीन नज़रों के सामने घूमने लगा. kitchen मैं खडे-खडे जी अपनी निघ्टी के ऊपर से ही गज़र को चूत पर रगड़ने लगी. फीर अचानक याद आया की कमल भी घर पर ही है. लेकीन चूत की आग ने मुझे अंधी कर दीया और गज़र को रगड़ते हुए ही अपने कमरे की और चल पड़ी.
बिस्टर पर लेटने के साथ ही दीन वाला सीन को याद करके निघ्टी को ऊपर कर गज़र को चूत मैं फंसा दीया और करने लगी अन्दर-बाहर. आज बड़ा मज़ा आ रह था. शायद दो-दो लंड का नज़ारा ब्लू फिल्म के अलावा पहली बार देखा था इसलिए. मैंने पहले आपको बताया था की मेरा हुस्बंद ब्लू फिल्म's की CD लाकर मुझे दिखता था.
गज़र चूत मैं डालने से मुझे बड़ा शकून मीलने लगा और मेरे मुहं से सिसकारी निकलने लगी. जब पानी नीकल गया तो बड़ी राहत महसूस की. निघ्टी नीचे कर सोने लगी तो मैंने एक सहाय दरवाजे के पास से जाते देखा. ओह्ह... आज दरवाजा बंद करना भूल गयी थी मैं. शायद कमल ने देख लीया हो. लेकीन मन मैं फीर आया शायद यह मेरा वहम हो. खैर.
सुबह उठी तो रात वाली बात भूल चुकी थी मैं. रात को मुझे सबसे ज्यादा मज़ा आया था. इसलिए पुरा बदन हल्का-हल्का महसूस कर रही थी मैं. लेकीन मुझे कमल की नज़रों मैं फरक महसूस नज़र आया. लेकीन मुझे क्या? खाना बनने के बाद कमल को खाने के लिए आवाज़ दी और दो थाली मैं खाना दाल कर हॉल मैं हम दोनो बैठ गए. कमल नहाने के बाद लुंगी पहने हुए मेरे सामने बैठ गया और चुप-चाप खाना खाने लगा.
खाने खाने के बाद कमल से मैंने पूछ लीया, "अभी रुकोगे या गाँव जा रहे हो?"
कमल ने मुझे घूरते हुए पूछा, "क्यों? मेरा यहाँ रहना अच्छा नही लग रह है?"
मैंने डपट-ते हुए कहा, "कैसी बातें कर रहे हो? मुझे क्यों बुरा लगेगा. मैंने इसलिए पूछा की अगर शाम को अगर रूक रहे हो तो सुब्जी लेकर आजना."
कमल ने मेरी आँखों मैं झांकते हुए कहा, "और गज़र भी."
गज़र का नाम उसके मुहं से सुनते ही मैं चोंक पड़ी. और मेरे मुहं से कुछ भी निकलते नही बना.
लेकीन कमल ने वापस पूछा, "रोज जो मैं गज़र लाता हूँ उसका आखीर तुम करती क्या हो?"
मैं आंखें नीचे किये हुए चुप-चाप बैठी रही. यानी मेरा रात को वह साया देखना वहम नही था बल्की हकीकत थी.
कमल ने फीर पूछा, "क्यों करती हो यह सब? जब तुम्हारे पास यह मोजुअद है तब तुम्हे गज़र की क्या जरुरत."
यह कहकर कमल ने अपनी लुंगी के बीच मैं से अपना फुन्फंनाता हुआ अपना मूसल लंड बाहर निकाला. मैं फटी आँखों से उसके मूसल लंड को देखती रही.
मुझे चुप-चाप देखकर कमल ने मेरा हाथ पकडा और मेरी हथेली मैं अपना लंड थमा कर बोला, "इन्द्रा रानी, देखो कैसे तुम्हारे लिए तदाफ़ रह है. इसे प्यार करो."
उसका गरमा-गरम लाल लाव्दा मेरे हाथ मैं आते ही उछल-कूद मचने लगा. मैंने जब हाथ हटाना चाह तो उसने मेरे हाथ को कसकर पकड़ लीया और मेरी हथेली से अपने लंड को हिलाने लगा. उसका लंड और तन गया. फीर उसने मुझे अपनी बाँहों के घेरे मैं ले लीया और मेरे चेहरे को ऊपर उठाते हुए मेरे होठों को चूम लीया. उसके तपते हुए होठ मेरे नरम-मुलायम होठों को चूसने लगे. मैं बेशुद्ध होने लगी. कई देर तक मेरे होठो को चूसने के बाद कमल ने मेरे होठ आज़ाद कर दीये और मेरे चेहरे को देखने लगा.
मैंने कुछ बोलने की कोशिश की लेकीन उसने मुझे अपनी बाँहों मैं उठाया और मेरे होठो पर अपने होठ रखते हुए मुझे अपनी बाँहों मैं झुलाते हुए बेडरूम मैं ले आया और बिस्टर पर मुझे लिटा कर मेरे ऊपर लेट गया. मैं उसके जिस्म के नीचे दबी हुयी बड़ी रहत महसूस कर रही थी. उसके वज़न से मेरे दबता हुआ यौवन मुझे शकुन दे रह था. कमल मेरे होठो का रुस पीता रह, पीता रह और पीता रह. जब मुझे सांस लेने मैं तकलीफ होने लगी तब मैंने उसे अपने ऊपर से धकेला.
फीर बोली, "नही कमल नही. नही करो यह सब."
लेकीन कमल कहाँ मानने वाला था. वह बेद के नीचे बैठकर मेरे एक टांग को पकडा और लगा उसे चूमने. वह पहले मेरी पैरों की अंगुलियों को चूमा फीर मेरे टांगो पर बढ़ता हुआ मेरे घुटनों तक चूमता हुआ चला आया. मेरे पूरे बदन मैं अक अजीब सी गुदगुदी होने लगी. मेरा बदन जलने लगा. फीर उसने उस टांग को छोड़ कर मेरी दूसरी टांग को पकडा और चूमता हुआ मेरी सारी को ऊपर करता हुआ मेरी जन्घो तक चूमता हुआ आ गया. अब मेरे होश उड़ने लगे. मुझ पर नशा सवार होने लगा. मैं अब कीसी तरह का विरोध नही कर पा रही थी.
कमल मेरी सारी को और ऊपर करता हुआ मेरी दोनो जाँघों को चाटने और चूमने लगा. मेरे दोनो हाथ उसके सीर पर चले गए. शायद मैं यह चाहने लगी थी और उसके सीर पर हाथ रखकर मैंने अपना इशारा दे दीया. कमल ने मेरी दोनो जांघों को चौडा कीया और मेरे Panty के नीचे तक मुझे चूमने लगा. मेरी चूत मैं रुस निकलने लगा. बाहर तो नही आया लेकीन मैं चाह रही थी की कमल और आगे बढे और मेरी चूत को दबोच ले.
कमल ने कोई जल्दीबाजी नही दिखाते हुए मेरी जाँघों पर से अपना सीर हटाया और मेरे चेहरे की तरफ देखने लगा. अब मैं और कमल दोनो एक दुसरे की आँखों मैं झाँकने लगे. अपने-अपने प्यार का इजहार करने लगे. एक दुसरे को समझने लगे. फीर कमल ने अपना मुहं आगे बढाया और मुझे अपनी बाँहों मैं लेते हुए मेरे गदराये हुए रसीले होठ को फीर अपने होठ की गिरफ्त मैं ले लीया. अब हम दोनो लगे चुम्बन पर चुम्बन लेने. हमारी जीभ एक दुसरे के मुहं बगैर वीसा लिए आ रही और जा रही थी. कीसी पासपोर्ट की जरुरत नही थी. दोनो जाने एक दुसरे के रस को पी रहे थे.
फीर कमल ने मेरी सारी के पल्लुह को हटा कर मेरे दोनो मुम्मो को अपने हाथो मैं जकड लीया और लगा उन्हें दबाने. मेरे मुहं से सिसकारी नीकल रही थी. उसने मेरे होठ को छोड़कर अब अपना मुहं मेरे मुम्मो पर दे दीया. ब्लौसे के ऊपर से ही मेरे मुम्मो को चूमने और काटने लगा. मेरा पुरा ब्लौसे उसके थूक से गीला हो गया.
मैं फुसफुसाई, "पहले कपडे तो खोल दो."
कमल ने झट से मेरे ब्लौसे के बटन खोले शुरू कर दीये. ब्लौसे के हटने के साथ ही मेरे मुम्मे जोकी अभी भी चोली के नीचे थे उसके सामने आ गए. मेरी चोली के कप मैं पूरे समाये हुए नही थे इसीलिए बाहर की और झलक रहे थे. जीसे देखकर कमल का धैर्य जवाब दे दीया और मेरी चोली के साथ ही मेरे मुम्मो को चूसना शुरू कर दीया. उसकी दीवानगी देख कर मैं कांप उठी. उसका लंड मेरी जांघों पर गद रह था. वह मेरे ऊपर लेटा हुआ मेरे दोनो मुम्मो को चोली के साथ ही मसल रह था और चूस रह था.
अब मैंने अपना हाथ नीचे कीया और उसके लंड को कास कर अपनी मुठी मैं पकड़ने लगी. लेकीन उसका साइज़ इतना था की मेरी मुठी मैं आ ही नही पाया. बहुत मोटा था उसका लाव्दा. मुझे लगा जैसे मैंने कोई अंगारा अपने हाथ मैं ले लीया हो. रात भर से जो सुलग रह था. अपने हाथ से उसके लंड की चमडी को ऊपर-नीचे करने लगी. लम्बी भी बहुत ज्यादा थी उसके लाव्दे की. हाथ से नापा तो जान की मेरी हथेली से भी बड़ा है.
अब कमल अपने हाथ मेरी पीठ पर ले गया और मेरी चोली के हूक को खोलने लगा. जैसे ही मेरी चोली के हूक खुले मेरे दोनो मुम्मी अज्ज़द हो कर उछल पड़े. मेरे मुम्मी मसले जाने के लिए बेताब थे. जरुरत थी दो मज़बूत हाथो की जो मेरे सामने अब कमल के रुप मैं मौजूद थे. कमल ने झट से मेरे दोनो नारान्गियों को पकड़ लीया और लगा उनका रस पीने. कमल ने अपने दांत, होठ और जीभ से मेरे दोनो मुम्मी की बारी-बारी से खूब धुनाई की. मैं निहाल हो उठी. मेरे मुहं से सिस्कारियां नीकल पड़ी.
कमल ने अब मेरे होठो फीर से अपनी गिरफ्त मैं ले लीया और अपने हाथों से मेरे मुम्मी और मेरी पीठ को सहला रह था. मेरा बदन थार-थाराने लगा. मैंने कमल के सीर के बाल पकडे और अपने होठों पर उसके होठों का दवाब बढ़ा दीया. कमल मेरी जीभ को चूसने लगा. मेरे नाज़ुक होठों से रस की हेर बूँद को चूस रह था. मैंने भी कमल के लाव्दे का जकड लीया और लगी हिलाने.
कमल का सख्त लोहे जैसा लंड एकदम गरम था. मैं उसकी गरम आंच मैं सुलग रही थी. मेरी चूत रस से भर चुकी थी. मैं अपनी जांघों को दबा कर अपनी चूत को रगड़ रही थी. इससे मेरे जिस्म की आग और भड़क गयी. अब मुझसे सहन नही हो पा रह था.
मैंने कमल से कहा, "कमल. अब सहन नही हो पा रह है. अब तुम अपने इस लंड को मेरी चूत मैं दाल कर मेरी आग को बुझाओ."
लेकीन कमल मेरे मुम्मो को मसलते हुए बोला, "थोडी आग और भड़कने दो. फीर देखना मैं कैसी चुदाई करता हूँ तुम्हारी. तुम अबसे जिन्दगी भर के लिए कोई गज़र अपनी चूत मैं डालना भूल जयोगी."
मैंने अपने मुम्मो पर मीठे-मीठे दर्द का अनुभव करते हुए बोली, "हाँ कमल. आज तुम मेरी ऐसी ही चुदाई करो की मुझे कभी भी कीसी गज़र की जरुरत नही पड़े. अब जल्दी से मुझे चोदों."
कमल ने कहा, "जल्दीबाजी नही, मेरी रानी. अभी पहले मेरे लंड को चाटो. मेरे लाव्दे को चूसो. मेरे इस हथियार को प्यार करो जानेमन."
यह कहकर कमल ने मेरे सीर पर अपने हाथ का दवाब बढाया और मेरा सीर उसके लाव्दे की तरफ झुकता चला गया. अब उसका लंड मेरे चेहरे के सामने था. हल्का लाल और कालापन लीये उसका सुपारा एकदम गुलाबी था. लग रह था जैसे शराब पिए हुए नशे मैं झूम रह हो. मैंने उसके मूसल लंड को अपने दोनो हाथो की हथेली के बीच ले लीया और लगने लगी उसको मथने. एकदम सख्त लंड था उसका. जरा भी नही दब रह था. फीर मैंने अपनी जीभ बाहर निकाली और उसके लंड के टीप पर अपनी जीभ सता दी.
कमल मेरी जीभ के छूते ही उफ्फ्फ़ कर बैठा. मुझे भी लगा जैसे मैंने कोई जलती हुयी कोई चीज़ अपनी जीभ से लगा दी हो. फीर मैंने उसके लंड को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की और चाटने लगी. अपने थूक से उस गरम लंड को थोडा ठंडा करने लगी. थूक से भर दीया उसको. तभी कमल ने मेरे सीर को जोर से पकडा और अपने लंड को मेरे मुहं के अन्दर जबरदस्ती डालने लगा.
मैंने कहा, "लेटी हूँ बाबा. ज़रा रुको तो सही. पहले मुझे इससे खेलने तो दो."
लेकीन कमल कहाँ मानने वाला था. वो तो बहुत बेसब्र था. उसने फीर मेरे सीर को पकड़ कर लंड को मेरे होठों से सता दीया और बोला, "अब सब्र नही हो रह है. एक बार मेरे लंड को अपने मुहं मैं लेकर चूसो."
मैंने अपना मुहं थोडा खोला. कमल ने झट से अपना लंड मेरे मुहं मैं डालने की कोशिश की. लेकीन कैसे जाता उसका लंड मेरे मुहं के अन्दर. कितना मोटा और मूसल था उसका लंड. लंड मेरे दांतों से टकरा कर ही रह गया. फीर मैंने अपना पुरा मुहं खोला और उसके लंड को ¼ ही ले पायी. मेरा मुहं पुरा भर गया. अन्दर तो पुरा नही गया था लेकीन मोटे होने की वजह से अन्दर लेने मैं तकलीफ होने लगी. कमल अपना जोर मार रह था और मैं भी मेरे मुहं को और खोलने की कोशिश कर रही थी. आखीर उसका ½ लंड मेरे मुहं मैं चला गया.
अब मैंने अपना सीर हिला-हिला कर उसके लंड को चूसना शुरू कर दीया. मुझे बड़ा मज़ा आने लगा. मज़ा तो कमल को भी आ रह था. इसीलिए उसके मुहं से सिस्कारियां नीकल रही थी. वो अपने चुताड हीला-हीला कर अपने लंड को मेरे मुहं के अन्दर बाहर कर रह था और मैं भी उसकी ताल मैं ताल मीलते हुए उसका साथ दे रही थी. मुझे लगने लगा की उसका लंड और फूल गया. तभी कमल ने जोर-जोर से शोट मारने शुरू कर दीये तब मैंने अपना मुहं हटा लीया.
कमल ने पूछा, "क्यों निकाली मेरा लंड?"
मैंने कहा, "कैसे जोर से मेरे अन्दर डाल रहे हो? मेरा मुहं दुखने लगा ऐसे तो."
कमल ने कहा, "बड़ा मज़ा आ रह था तुम्हारे चूसने से. अच्छा अब धीरे-धीरे ही हिलौंगा. लो वापस से मुहं के अन्दर और अब तुम जोर- जोर से चूसो."
मैंने फीर से उसके लंड को गुप्प से अपने मुहं मैं ले लीया. अबकी बार उसका लंड ¾ तक अन्दर चला गया. मैं अब जोर-जोर से मुहं हिला कर उसके लंड को चूसने लगी. इस तरह की चुसी से कमल बेकाबू हो गया. वो फीर से जोर के झटके देने लगा. लेकीन मैंने अब कोई परवाह किये बगैर उसके लंड को चुस्ती रही.
तभी कमल चीख पड़ा, "हीई. चूसो... मेरे लंड को... इन्द्रा रानी... चूसो मेरे लाव्दे को.... बड़ा मज़ा दे रही हो तुम... चूसने मैं एकदम एक्सपर्ट... ऐसे ही चूसो... मैं झाड़ जाऊँगा... चूसो... मेरे लंड को..."
मैंने भी उसका लंड बाहर नही निकाला. मैं भी चाहती थी की उसका एक बार रस नीकल जाये. फीर चुदवाने मैं मुझे बड़ा मज़ा आएगा. मैं चुस्ती रही उसके लंड को और तभी मैंने महसूस कीया मेरे गले मैं अन्दर की और कुछ खट्टी और चिप-छिपी बूंदे. तभी एक धार और निकली और सीधे हलक से उतर गयी. फीर तो ढेर सारी पिचकारी छूटी और मैं गताकती गयी उसके रस को.
उधर कमल अपने रस को निकालते हुए बोल रह था, "उफ्फ्फ़... क्या चूसी हो मेरे लंड को... लो पियो मेरे रस को... लो यह लो... और लो... पियो मेरे रस को.... बड़ा मज़ा आ रह है.... जानेमन ... तुम तो एक्सपर्ट हो लंड से खेलने की..."
धीरे-धीरे उसका जोश कम होता गया. मेरा मुहं पुरा उसके वीर्य से भर गया. मैंने उसके लंड को अपने मुहं से बाहर निकला. लेकीन यह क्या एक और धार उसके लंड से निकली. अबकी बार मेरे गले पर पड़ी. फीर मैंने हाथ से हीला कर उसकी आखरी बूँद तक रस निकाल दीया और फीर से उसके लंड को चूसने लगी. अब उसका लंड ढीला पड़ने लगा. लेकीन अब वो लंड मेरे मुहं मैं बराबर आ रह था. मुझे उसके मुरझाते लंड को चूसने मैं मज़ा आ रह था.
५-७ मिनट तक चुस्ती रही. तभी फीर से उसका लंड कड़क होने लगा. कमल बडे मेज़ लेकर चुस्वा रह था अपने लाव्दे को. उसका लंड फीर एकदम से कड़क हो गया. उसकी ताक़त फीर से उसके लंड मैं समाने लगी. उसके फूलते हुए लंड को देखकर मेरी चूत मैं आग लग गयी. अब मैंने उसके लंड को बाहर निकाल दीया और बिस्टर पर लेट कर उसके सीर को पकड़ कर अपनी चूत की तरफ ले गयी.
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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