FUN-MAZA-MASTI
राज शर्मा स्टॉरीज पर पढ़ें हजारों नई कहानियाँ
वह बार बार उसके भगनासे को अपनी जीभ के छोर से सहला देता । अब हालत इतनी बिगड़ चुकी थी कि शिखा के सब्र का प्याला छलक उठा । उसकी योनि से सफेद सफेद झाग के बुलबुले उठ रहे थे । एक बार तो उसका दिल चाहा कि लच्छू सिंह की गर्दन पकड़कर उसे अपनी इस छोटी सी जगह मेँ घुसा दूं । लेकिन शिखा अपनी बेबसी पर बहुत मजबूर थी ।
"सीहहहहहह . . . लच्छू, ये कैसी आग लगा दी है तुने ज़ालिम", शिखा ने अपनी तेज तेज चल रही सांसों को किसी तरह तरतीब में लाते हुए कहा, "इसे बुझा दे, नहीं तो मैं मर जाउंगी । मेरा पूरा जिस्म जल रहा है, कुछ कर ओ ज़ालिम बुड्ढे" ।
"सीहहहहहह . . . लच्छू, ये कैसी आग लगा दी है तुने ज़ालिम", शिखा ने अपनी तेज तेज चल रही सांसों को किसी तरह तरतीब में लाते हुए कहा, "इसे बुझा दे, नहीं तो मैं मर जाउंगी । मेरा पूरा जिस्म जल रहा है, कुछ कर ओ ज़ालिम बुड्ढे" ।
तभी अचानक लच्छू सिंह
अपने हाथों से
अपना मुँह साफ
करता हुआ खड़ा
हो गया और
अपनी लुंगी को
ठीक करते हुये
पास ही पड़ी
कुर्सी पर बैठ
गया । इधर
लच्छू सिंह ने
बढे़ आराम के
साथ, लापरवाही जताते
हुए वहीं मेज़
की दराज में
पड़े बीड़ी के
बंडल से निकाल
कर, एक बीड़ी
सुलगाई, उधर शिखा
अपनी बड़ी बडी
आखें फैला कर
आश्चर्य के साथ
उसे देख रही
थी । शिखा
को एैसा लगा
मानो उसे सातवें
आसमान से उठा
कर किसी ने
बड़ी बेरहमी के
साथ ज़मीन पर
पटख़ दिया हो
। जैसी किसी
के मन ना
होने पर भी
उसके आगे, चार
तरह की सब्जी,
दो तरह की
दाल, अचार, सलाद,
रायता, खीर, पूरी,
रोटी आदि से
सजी हुई थाली
रख दी हो
और जब वह
रुचि पूर्वक उसे
खाने लगे तभी
उसके आगे से
वह थाली खींच
ली जाए ।
शिखा बहुत ही
हैरान हुई ।
"क्या हुआ लच्छूssssssss ? ", उसने बहुत हैरानी के साथ पूछा ।
लच्छू बोला, "बस रानी . . . मुझे इतना ही करना है" ।
"साले . . . कुत्ते . . . हरामी, पहले तो जब मैँ मना कर रही थी तब तू ही कुत्ते के जैसे जीभ लपलपाता और दुम हिलाता मेरे पीछे पड़ गया", शिखा मानो आग बबूला होते हुए बोली, "और अब जब मेरे सारे तन बदन मेँ आग लग गई है, मेरी रग रग मेँ चीटियां सी दौड़ रही हैँ . . . हरजाई . . . तुझे मस्ती सूझ रही है !!! ओ ज़ालिम अब जल्दी से मेरी आग बुझा "
"रानी, यह सब इतना आसान नहीँ है जितना तुम समझ रही हो । अभी तुम कुंवारी, कच्ची कली हो, कहीँ कुछ उल्टा सीधा हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे", लच्छू सिंह बोला, "बहुत ही मुश्किल होता है ऐसी आग को बुझाना । बहुत ऐहतियात बरतनी पडती है, बहुत कुछ सहना-करना पड़ता है, तेरी अभी उमर ही क्या है . . . न . . . तू नहीं सहन कर पाएगी ।"
"हरामजादे . . . जब बुझा ही नहीँ सकता था तो फिर तूने एैसी आग लगाई ही क्योँ", शिखा बेख्याली में ही लच्छू सिंह को गालियाँ देते हुए बोली, "अब मैँ कुछ नहीँ जानती, चाहे जैसे भी करके मेरी शांति कर"
"बेबी . . . ऊपरवाले की दया से एेसी तो कोई आग है ही नहीं जिसे तुम्हारा ये लच्छू बुझा न सके", लच्छू सिंह ने हल्की परन्तु बहुत ही कुत्ती मुसकुराहट के साथ कहा, "पर ऐसा करने के लिए अब मेरी कुछ शर्तें हैं ।"
"शर्तें . . . कैसी शर्तें ? "
"जानेमन, अब तुम्हारी आग को बहुत ही एहतियात के साथ अगर बुझाना है तो इसके लिये मुझे बहुत मेहनत करना पड़ेगी । अब जब इतनी मेहनत करुंगा तो बदले में मेरा भी तो कुछ फायदा होना चाहिये ना ???"
"हम्मममममम"
" बेबी, अब तुम्हें भी कुछ दाम खर्च करने पड़ेंगे", लच्छू सिंह बोला, "अब अगर अपनी जवानी की इस आग को शान्त करना है तो कुछ मुझे भी तो बदले मेँ मिलना चाहिए"
शिखा बोली, "साले हरामी, मैँ सब समझ रही हूँ, बोल तुझे कितने पैसे चाहिए ?"
लच्छू सिंह ने बड़ी आराम से अपनी वही तीनों उंगलियां जिन्हें उसने कुछ देर पहले शिखा की चूत में घुसाने की कोशिश की थी, को दिखाते हुए कहा, "तीन हज़ार" !
शिखा ने लच्छू सिंह के ही दिए हुए हजार रुपए उसके मुंह पर मारे और फिर बोली, "अभी तो मेरे पास यह हजार रुपए ही हैँ बाकी मैं बाद में दे दुंगी, अभी इन्हें रख ले . . . और मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ कैसे भी करके मेरी चूत की आग को ठंडी कर" ।
लच्छू सिंह ने बहुत ही गहरी मुस्कान के साथ बोला, "तू और तेरी वो रांड सहेली, आज तक मेरा हिसाब तो साफ कर नहीं पायीं, घंटा दो हजार रुपये देगी तू मुझे । चूतिया समझा है क्या ?"
शिखा का पूरा बदन बुखार के जैसे तप रहा था । उसकी चूत जैसे भट्टी की तरह दहक रही थी । रह रह कर एक अनजानी सी खारिश उसकी योनि में उठ रही थी । वह सच में अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए लच्छू सिंह से मिन्नतें करते हुए बोली, "कैसे भी कर के मेरी नैया पार लगा दे लच्छू, तू जो बोलेगा वो मैं करुंगी"
कुछ देर सोचने का अभिनय करते हुए लच्छू सिंह बोला, "चल मैं तेरे दो हजार रुपए माफ कर दूंगा, पर फिर मेरी शर्त यह है कि तुझे जो भी मैँ कहूँ वैसा करना पड़ेगा और जब मैं कहूँ तब किसी तरह नीना को भी यहाँ लेकर आना पड़ेगा"
"बिल्कुल ले आऊंगी जालिम . . . जो तू बोलेगा वह करुंगी . . . जैसे तू बोलेगा वैसे मैँ राजी, बस कैसे भी करके मेरी प्यास बुझा नहीँ तो मैँ मर जाउंगी"
लच्छू सिंह ने हंसते हुए धीरे धीरे शिखा के पास आकर, उसके चेहरे को अपने दोनोँ हाथोँ में भर कर, उसकी बड़ी बड़ी काली-काली आँखों में झांकते हुए बोला, "अरे तुम्हें ऐसे थोड़े ही न मर जाने देंगे बेबी" ।
"क्या हुआ लच्छूssssssss ? ", उसने बहुत हैरानी के साथ पूछा ।
लच्छू बोला, "बस रानी . . . मुझे इतना ही करना है" ।
"साले . . . कुत्ते . . . हरामी, पहले तो जब मैँ मना कर रही थी तब तू ही कुत्ते के जैसे जीभ लपलपाता और दुम हिलाता मेरे पीछे पड़ गया", शिखा मानो आग बबूला होते हुए बोली, "और अब जब मेरे सारे तन बदन मेँ आग लग गई है, मेरी रग रग मेँ चीटियां सी दौड़ रही हैँ . . . हरजाई . . . तुझे मस्ती सूझ रही है !!! ओ ज़ालिम अब जल्दी से मेरी आग बुझा "
"रानी, यह सब इतना आसान नहीँ है जितना तुम समझ रही हो । अभी तुम कुंवारी, कच्ची कली हो, कहीँ कुछ उल्टा सीधा हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे", लच्छू सिंह बोला, "बहुत ही मुश्किल होता है ऐसी आग को बुझाना । बहुत ऐहतियात बरतनी पडती है, बहुत कुछ सहना-करना पड़ता है, तेरी अभी उमर ही क्या है . . . न . . . तू नहीं सहन कर पाएगी ।"
"हरामजादे . . . जब बुझा ही नहीँ सकता था तो फिर तूने एैसी आग लगाई ही क्योँ", शिखा बेख्याली में ही लच्छू सिंह को गालियाँ देते हुए बोली, "अब मैँ कुछ नहीँ जानती, चाहे जैसे भी करके मेरी शांति कर"
"बेबी . . . ऊपरवाले की दया से एेसी तो कोई आग है ही नहीं जिसे तुम्हारा ये लच्छू बुझा न सके", लच्छू सिंह ने हल्की परन्तु बहुत ही कुत्ती मुसकुराहट के साथ कहा, "पर ऐसा करने के लिए अब मेरी कुछ शर्तें हैं ।"
"शर्तें . . . कैसी शर्तें ? "
"जानेमन, अब तुम्हारी आग को बहुत ही एहतियात के साथ अगर बुझाना है तो इसके लिये मुझे बहुत मेहनत करना पड़ेगी । अब जब इतनी मेहनत करुंगा तो बदले में मेरा भी तो कुछ फायदा होना चाहिये ना ???"
"हम्मममममम"
" बेबी, अब तुम्हें भी कुछ दाम खर्च करने पड़ेंगे", लच्छू सिंह बोला, "अब अगर अपनी जवानी की इस आग को शान्त करना है तो कुछ मुझे भी तो बदले मेँ मिलना चाहिए"
शिखा बोली, "साले हरामी, मैँ सब समझ रही हूँ, बोल तुझे कितने पैसे चाहिए ?"
लच्छू सिंह ने बड़ी आराम से अपनी वही तीनों उंगलियां जिन्हें उसने कुछ देर पहले शिखा की चूत में घुसाने की कोशिश की थी, को दिखाते हुए कहा, "तीन हज़ार" !
शिखा ने लच्छू सिंह के ही दिए हुए हजार रुपए उसके मुंह पर मारे और फिर बोली, "अभी तो मेरे पास यह हजार रुपए ही हैँ बाकी मैं बाद में दे दुंगी, अभी इन्हें रख ले . . . और मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ कैसे भी करके मेरी चूत की आग को ठंडी कर" ।
लच्छू सिंह ने बहुत ही गहरी मुस्कान के साथ बोला, "तू और तेरी वो रांड सहेली, आज तक मेरा हिसाब तो साफ कर नहीं पायीं, घंटा दो हजार रुपये देगी तू मुझे । चूतिया समझा है क्या ?"
शिखा का पूरा बदन बुखार के जैसे तप रहा था । उसकी चूत जैसे भट्टी की तरह दहक रही थी । रह रह कर एक अनजानी सी खारिश उसकी योनि में उठ रही थी । वह सच में अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए लच्छू सिंह से मिन्नतें करते हुए बोली, "कैसे भी कर के मेरी नैया पार लगा दे लच्छू, तू जो बोलेगा वो मैं करुंगी"
कुछ देर सोचने का अभिनय करते हुए लच्छू सिंह बोला, "चल मैं तेरे दो हजार रुपए माफ कर दूंगा, पर फिर मेरी शर्त यह है कि तुझे जो भी मैँ कहूँ वैसा करना पड़ेगा और जब मैं कहूँ तब किसी तरह नीना को भी यहाँ लेकर आना पड़ेगा"
"बिल्कुल ले आऊंगी जालिम . . . जो तू बोलेगा वह करुंगी . . . जैसे तू बोलेगा वैसे मैँ राजी, बस कैसे भी करके मेरी प्यास बुझा नहीँ तो मैँ मर जाउंगी"
लच्छू सिंह ने हंसते हुए धीरे धीरे शिखा के पास आकर, उसके चेहरे को अपने दोनोँ हाथोँ में भर कर, उसकी बड़ी बड़ी काली-काली आँखों में झांकते हुए बोला, "अरे तुम्हें ऐसे थोड़े ही न मर जाने देंगे बेबी" ।
और लच्छू सिंह ने
धीरे से झुक
कर शिखा के
प्राकृतिक रूप से
ही गुलाबी - गुलाबी
होंठों में से
एक . . . नीचे वाले
होंठ को अपने
होंठों में दबाकर
चूषने लगा ।
गौरतलब बात यह
थी कि जहां
शिखा लगभग नगीं
सिर्फ एक स्कर्ट
पहने, अपनी बुरी
तरह रिसती बुर
के साथ पलंग
पर बैठी थी,
वहीं लच्छू सिंह
ने अभी तक
अपने शरीर से
एक भी कपड़ा
नहीं उतारा था
। लच्छू सिंह
बहुत घाघ इंसान
था, वह जानता
था कि कब
धैर्य का दामन
पकड़े पकड़े खुद
शिखा के ही
हाथों से उसके
कपड़े उतरवाने हैं
और कब अपने
कपड़े उतार कर
खुद धैर्य की
ही माँ चोद
देनी है ।
फिर लच्छू ने अपनी टी शर्ट और पुरानी सी लुंगी उतार फैंकी । एक बार फिर से उसका लम्बा काला लन्ड शिखा की आँखों के सामने लहरा रहा था । पर अब शिखा को उससे उतना डर नहीं लग रहा था । बल्कि अब तो शिखा उसे छू कर - पकड़ कर महसूस करना चाहती थी । जड़ से सिरे तक उसकी लम्बाई कुछ 11-12 इन्च तो रही ही होगी । वैसे तो लच्छू सिंह का लन्ड एकदम काला था, परन्तु उसका मुन्ड (सुपाड़ा) काफी हद तक गुलाबी रंग का था और शीशे के जैसे चमक रहा था । सफेद और काले बालोँ के बीच उसका लंड झूलता हुआ साफ दिखाई दे रहा था । उसे यू लटकता मटकता देख शिखा के शरीर से झुरझुरी सी छूट गई ।
लच्छू सिंह आकर शिखा के बगल में ही बेड पर लेट गया । उसका लंड छत की तरफ एकदम तना हुआ था । उसे देखकर शिखा का मन बहुत जोर से उसे पकड़ने का हुआ . . . और सिखाने अपने आप को रोका भी नहीँ । उसने अपने हाथ को बढ़ाकर लच्छू के लंड को अपनी गोरी-चिट्टी नाजुक सी हथेली मेँ थाम लिया ।
"उफफफफफ . . . यह तो दहकते हुए अंगारे के जैसा गर्म है" शिखा बोली, "इतना गर्म कैसे हो गया है यह ?"
लच्छू सिंह ने कहा, "बेबी यह भी एक प्रकार का थर्मो मीटर है, जो हमारा टेम्परेचर और पास बैठी हुई लड़की की सुन्दरता बता देता है । जितना यह तना हुआ हो समझ लो उतनी ही सुन्दर पास बैठी लड़की होगी ।"
शिखा लच्छू की यह बात सुनकर शर्मा गई । तब लच्छू ने शिखा की चिकनी पीठ पर हाथ फिराते हुए अपने हाथ को उसके सर तक पहुंचाया । फिर लच्छू सिंह ने शिखा के बालों को अपनी मुट्ठी में जकड़ कर उसके सिर का पूरा कन्ट्रोल अपने हाथ में ले लिया । इस प्रकार लच्छू जैसे चाहे वैसे, जितना चाहे उतना शिखा के सिर को उपर-नीचे, दांये-बांये कर सकता था ।
फिर लच्छू ने शिखा के सिर को अपने लंड के ऊपर झुकाना शुरु कर दिया । शिखा एकदम से चौंकी । उसे समझ नहीं आया कि लच्छू आखिर चाहता क्या है । यह जगह तो पुरुषोँ के पेशाब करने की जगह है, या फिर इसका इस्तेमाल चूत की कुटायी करने के लिये होता है । इसे भला मुंह की तरफ लाने का क्या कारण ?
इस से पहले कि शिखा और कुछ सोच पाती लच्छू ने उसके सिर को पूरा झुकाकर उसके नरम, रसीले, पतले - पतले, गुलाबी होठोँ के बीच अपने काले, लंबे, लंड को ठूंस दिया । पक-धप की हल्की सी आवाज़ हुई और लच्छू का लिंग फिसलता हुआ शिखा के कंठ में जा फंसा । शिखा को तो जैसे उल्टी ही आ गई । जैसे तैसे उसने अपने आप को पलटी करने से रोका और अपने मुंह मेँ से उस भयंकर काले लंड को बाहर निकालने लगी । अभी वह अपना मुँह पूरा उठा भी ना पाई थी कि लच्छू ने वापस एक झटके से अपना लंड उसके मुँह मेँ घुसेड़ दिया । शिखा की आंखे फैल गईं, नथुने फूल गए । वह हैरान परेशान लच्छू की झांटों मे उलझी पड़ी थी । ऐसा होगा, उसने यह कभी सोचा भी नहीँ था । लच्छू सिंह ने तो शिखा की बोलती ही बंद कर दी थी । वह बड़ी बड़ी आंखोँ से किसी निरीह पशु की तरह लच्छू की ओर देख रही थी ।
"सीsssssss . . . टुकुर टुकुर क्या देख रही है मेरी इमरती . . . तूने और तेरी सहेली ने मेरा बहुत खून पिया है, आज तो मैँ तुझे अपनी लिमका पिला कर ही छोड़ूंगा"
शिखा बेचारी इस बात का क्या जवाब देती, लच्छू पहले ही उसकी बोलती बंद कर चुका था । बस इन्हीं मजबूरियोँ से लड़ती वह बेचारी लच्छू का मोटा लंड मुख मैथुन किये जा रही थी । लच्छू अपना लंड उसके गले की गहराई तक पहुंचा कर बड़े प्यार से आहिस्ता आहिस्ता बाहर खींचता और अगले ही पल मेँ एक करारे झटके के साथ फिर वापस उसे उसके गले की गहराइयोँ तक भेज देता । थोड़ी देर तक तो शिखा को यह काम करने मेँ बहुत कठिनाई हुई । लच्छू लंबी लंबी सिसकियाँ लेता हुआ अपनी कमर का भी भरपूर इस्तेमाल कर रहा था । अब शिखा के होंठ भी चिपचिपा उठे थे, पुच-पुच की आवाज हर तरफ गूंज रही थी । थोड़ी देर मेँ ही शिखा को भी यह सब अच्छा लगने लगा । उसका कंट्रोल अब पूरा हो गया था और अब उसे कोई उलटी नहीँ लग रही थी ।
उसे बल्कि अब लंड का नमकीन-नमकीन सा स्वाद बहुत अच्छा लग रहा था । वह अपने होंठ उस पर अड़ा कर उसे खूब अच्छी तरह चूस रही थी । कभी अपने दांतो से उसके सुपाड़े को बहुत हौले से चुभलाती, तो कभी अपनी जीभ से उसके मुंड पर गोल गोल घेरे बनाती। उसे चूसना तब शिखा को बहुत ही अच्छा लग रहा था । अब शिखा के बालों को पकड़ कर रखने की कोई ज़रूरत नहीं रह गयी थी । लच्छू के छोड़ते ही शिखा के लम्बे काले बाल लहराकर नीचे गिर गये । इधर शिखा लच्छू के लनड में उलझी पड़ी थी उधर लच्छू ने अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे शिखा की काम रस से बुरी तरह गीली चूत को सहलाना शुरू कर दिया । करीब 5 मिनट तक लच्छू सिंह का लन्ड शिखा के होंठ, नर्म जीभ और गले की गहराइयों को नापता रहा ।
फिर लच्छू ने अपनी टी शर्ट और पुरानी सी लुंगी उतार फैंकी । एक बार फिर से उसका लम्बा काला लन्ड शिखा की आँखों के सामने लहरा रहा था । पर अब शिखा को उससे उतना डर नहीं लग रहा था । बल्कि अब तो शिखा उसे छू कर - पकड़ कर महसूस करना चाहती थी । जड़ से सिरे तक उसकी लम्बाई कुछ 11-12 इन्च तो रही ही होगी । वैसे तो लच्छू सिंह का लन्ड एकदम काला था, परन्तु उसका मुन्ड (सुपाड़ा) काफी हद तक गुलाबी रंग का था और शीशे के जैसे चमक रहा था । सफेद और काले बालोँ के बीच उसका लंड झूलता हुआ साफ दिखाई दे रहा था । उसे यू लटकता मटकता देख शिखा के शरीर से झुरझुरी सी छूट गई ।
लच्छू सिंह आकर शिखा के बगल में ही बेड पर लेट गया । उसका लंड छत की तरफ एकदम तना हुआ था । उसे देखकर शिखा का मन बहुत जोर से उसे पकड़ने का हुआ . . . और सिखाने अपने आप को रोका भी नहीँ । उसने अपने हाथ को बढ़ाकर लच्छू के लंड को अपनी गोरी-चिट्टी नाजुक सी हथेली मेँ थाम लिया ।
"उफफफफफ . . . यह तो दहकते हुए अंगारे के जैसा गर्म है" शिखा बोली, "इतना गर्म कैसे हो गया है यह ?"
लच्छू सिंह ने कहा, "बेबी यह भी एक प्रकार का थर्मो मीटर है, जो हमारा टेम्परेचर और पास बैठी हुई लड़की की सुन्दरता बता देता है । जितना यह तना हुआ हो समझ लो उतनी ही सुन्दर पास बैठी लड़की होगी ।"
शिखा लच्छू की यह बात सुनकर शर्मा गई । तब लच्छू ने शिखा की चिकनी पीठ पर हाथ फिराते हुए अपने हाथ को उसके सर तक पहुंचाया । फिर लच्छू सिंह ने शिखा के बालों को अपनी मुट्ठी में जकड़ कर उसके सिर का पूरा कन्ट्रोल अपने हाथ में ले लिया । इस प्रकार लच्छू जैसे चाहे वैसे, जितना चाहे उतना शिखा के सिर को उपर-नीचे, दांये-बांये कर सकता था ।
फिर लच्छू ने शिखा के सिर को अपने लंड के ऊपर झुकाना शुरु कर दिया । शिखा एकदम से चौंकी । उसे समझ नहीं आया कि लच्छू आखिर चाहता क्या है । यह जगह तो पुरुषोँ के पेशाब करने की जगह है, या फिर इसका इस्तेमाल चूत की कुटायी करने के लिये होता है । इसे भला मुंह की तरफ लाने का क्या कारण ?
इस से पहले कि शिखा और कुछ सोच पाती लच्छू ने उसके सिर को पूरा झुकाकर उसके नरम, रसीले, पतले - पतले, गुलाबी होठोँ के बीच अपने काले, लंबे, लंड को ठूंस दिया । पक-धप की हल्की सी आवाज़ हुई और लच्छू का लिंग फिसलता हुआ शिखा के कंठ में जा फंसा । शिखा को तो जैसे उल्टी ही आ गई । जैसे तैसे उसने अपने आप को पलटी करने से रोका और अपने मुंह मेँ से उस भयंकर काले लंड को बाहर निकालने लगी । अभी वह अपना मुँह पूरा उठा भी ना पाई थी कि लच्छू ने वापस एक झटके से अपना लंड उसके मुँह मेँ घुसेड़ दिया । शिखा की आंखे फैल गईं, नथुने फूल गए । वह हैरान परेशान लच्छू की झांटों मे उलझी पड़ी थी । ऐसा होगा, उसने यह कभी सोचा भी नहीँ था । लच्छू सिंह ने तो शिखा की बोलती ही बंद कर दी थी । वह बड़ी बड़ी आंखोँ से किसी निरीह पशु की तरह लच्छू की ओर देख रही थी ।
"सीsssssss . . . टुकुर टुकुर क्या देख रही है मेरी इमरती . . . तूने और तेरी सहेली ने मेरा बहुत खून पिया है, आज तो मैँ तुझे अपनी लिमका पिला कर ही छोड़ूंगा"
शिखा बेचारी इस बात का क्या जवाब देती, लच्छू पहले ही उसकी बोलती बंद कर चुका था । बस इन्हीं मजबूरियोँ से लड़ती वह बेचारी लच्छू का मोटा लंड मुख मैथुन किये जा रही थी । लच्छू अपना लंड उसके गले की गहराई तक पहुंचा कर बड़े प्यार से आहिस्ता आहिस्ता बाहर खींचता और अगले ही पल मेँ एक करारे झटके के साथ फिर वापस उसे उसके गले की गहराइयोँ तक भेज देता । थोड़ी देर तक तो शिखा को यह काम करने मेँ बहुत कठिनाई हुई । लच्छू लंबी लंबी सिसकियाँ लेता हुआ अपनी कमर का भी भरपूर इस्तेमाल कर रहा था । अब शिखा के होंठ भी चिपचिपा उठे थे, पुच-पुच की आवाज हर तरफ गूंज रही थी । थोड़ी देर मेँ ही शिखा को भी यह सब अच्छा लगने लगा । उसका कंट्रोल अब पूरा हो गया था और अब उसे कोई उलटी नहीँ लग रही थी ।
उसे बल्कि अब लंड का नमकीन-नमकीन सा स्वाद बहुत अच्छा लग रहा था । वह अपने होंठ उस पर अड़ा कर उसे खूब अच्छी तरह चूस रही थी । कभी अपने दांतो से उसके सुपाड़े को बहुत हौले से चुभलाती, तो कभी अपनी जीभ से उसके मुंड पर गोल गोल घेरे बनाती। उसे चूसना तब शिखा को बहुत ही अच्छा लग रहा था । अब शिखा के बालों को पकड़ कर रखने की कोई ज़रूरत नहीं रह गयी थी । लच्छू के छोड़ते ही शिखा के लम्बे काले बाल लहराकर नीचे गिर गये । इधर शिखा लच्छू के लनड में उलझी पड़ी थी उधर लच्छू ने अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे शिखा की काम रस से बुरी तरह गीली चूत को सहलाना शुरू कर दिया । करीब 5 मिनट तक लच्छू सिंह का लन्ड शिखा के होंठ, नर्म जीभ और गले की गहराइयों को नापता रहा ।
राज शर्मा स्टॉरीज पर पढ़ें हजारों नई कहानियाँ
No comments:
Post a Comment