Friday, January 4, 2013

विज्ञान की अध्यापिका-1

विज्ञान की अध्यापिका-1

लेखिका : कामिनी सक्सेना

दो तीन वर्ष गाँव में अध्यापन कार्य करने के बाद मेरा स्थानान्तरण फिर से
शहर में हो गया था। मैं कानपुर में आ गई थी। यह स्कूल पिछले गांव वाले
स्कूल से बड़ा था। मैं इसी स्कूल में गणित विषय की अध्यापिका थी।

वहाँ पर मेरे पापा के एक मित्र का घर भी था जो उन्होंने पहले तो किराये
पर दे रखा था फ़िर बहुत कोशिशों के बाद न्यायालय द्वारा उन किरायेदार को
वे निकालने में सफ़ल हुये थे। अब वे किसी को भी अपना मकान किराये पर नहीं
देते थे। बस उन्होंने उसे मरम्मत करवा कर, रंग रोगन करवा कर नया जैसा बना
दिया था। मेरे जाने पर उन्होंने वो पूरा तीन कमरों का मकान मुझे बिना
किराये के दे दिया था। मैं उन्हें अंकल कहती थी। उनका भरा पूरा परिवार
था। उनका एक लड़का दीपक बाहरवीं कक्षा में पढ़ता था, बस मैं उसी को संध्या
को एक दो घण्टे गणित पढ़ा दिया करती थी।

कुछ ही दिनों के बाद मेरी एक अन्य सहेली विभा जो कि उसी स्कूल में
विज्ञान की अध्यापिका थी, वो भी इसी स्कूल में आ गई थी। वो शादीशुदा थी।
मैंने अंकल से कहकर उसे अपने साथ ही उसी मकान में रख लिया था। पर वो उसके
बदले में दीपक को विज्ञान पढ़ाया करती थी।

कुछ ही समय में हम कानपुर में अब रम से गये थे। अच्छा शहर था... यहाँ समय
बिताने के सभी साधन थे। पर इस महीने भर में विभा उदास रहने लगी थी...
उसके अनुसार उसे अपने पति की बहुत याद आती थी... पर उनके कुवैत जाने के
बाद वो जैसे अकेली हो गई थी। मैं तो अब तक कुवांरी थी और सोचा था कि शादी
नहीं करूंगी। सहेलियों से मैंने कई शादी के बारे में भ्रांतियाँ सुन रखी
थी। मैं डर सी गई थी। मुझे सेक्स की बातों से, अश्लील विचरण करने से नफ़रत
सी थी। मैं तो मन में भी उन बातों का ख्याल भी नहीं आने देती थी।

पर विभा बिल्कुल विपरीत थी। रात को वो अक्सर अश्लील मूवी कम्प्यूटर पर
देखा करती थी, फिर उसकी सिसकारियों की आवाज से कमरा गूंजने लगता था... और
फिर वो शान्त हो जाती थी। मुझे उसके इन कार्यों से कोई बाधा नहीं उत्पन्न
नहीं होती थी और ना ही मैं उसे कोई शिक्षा देती थी। वो दूसरे कमरे में
अपने में मस्त रहा करती थी।

एक बार तो वो किसी लड़के को चुदवाने के लिये साथ ले आई थी, पहले तो मुझे
पता ही नहीं था कि वो लड़का क्यूं आया है पर सवेरे मैंने उसी लड़के को उसके
बिस्तर पर देखा तो सब समझ गई। उसके जाने के बाद मैंने उसे आगाह कर दिया
कि अगर अंकल को पता चल गया तो हम दोनों इस घर से निकाल दिये जायेंगे। फिर
काफ़ी दिन गुजर गये थे।

एक दिन तो वो उदास सी मेरे बिस्तर पर लेटी हुई थी।

"उनकी याद आ रही है क्या?"

"भाड़ में गये वो... भड़वा साला खुद तो वहाँ मजे मार रहा होगा और मैं यहाँ..."

"सब्र करो... तुम ऐसा सोचती हो... ये मन का भ्रम है... उनको भी तुम्हरी
याद आती होगी !"

"अरे कौन उनको याद करता है यार? मुझे तो बस मात्र एक अदद लौड़े की जरूरत
है... बस फिर शान्ति... पर तू है कि बस अंकल..."

"अरे चुप ! यह सब तुझे अच्छा लगता है?"

"अरे मेरी कम्मो... एक बार चुदा कर तो देख... साली दीवानी हो जायेगी
देखना। अच्छा चल आ... तुझे आज चुदाई क्या होती है देख..."

वो मुझे अपने कमरे में ले गई और अपने बिस्तर पर मुझे बैठा दिया। उसने
कम्प्यूटर ऑन कर दिया। फिर एक साईट पर उसने कोई ब्ल्यू मूवी लगा दी। एक
मर्द और लड़की दोनों अश्लील हरकतें कर रहे थे। लड़की लड़के का लण्ड चूस रही
थी। मेरा दिल तो धक से रह गया ये सब देख कर...

"विभा... बन्द कर ये सब... छी: कितना गन्दा है ये...!"

"अरे कम्मो... यह क्यों नहीं कहती कि कितना रोमान्टिक है ये... ये लण्ड
चूसना... ये चूचियाँ दबाना... तुझे नहीं लगता कि कोई तेरे साथ भी ये सब
करे...?"

"तेरा तो दिमाग खराब हो गया है..."

विभा मेरे पास आ कर लेट गई और पीठ से चिपक गई। मेरी पीठ वो सहलाने लगी।

"वो देख तो... उसका लण्ड... उफ़्फ़ साला कैसा चूत में घुसता ही चला जा रहा है।"

वो सीन देख कर तो मेरे दिल में भी हलचल सी मचने लग गई। मेरे शरीर में
जैसे तरावट सी आने लगी।

"ये घुसता है तो लगती नहीं है क्या?" मैंने अपनी जिज्ञासा प्रकट की।

"लगती है कम्मो रानी, लगती है... खूब जोर की मस्ती लगती है..." वो जैसे
बात पलटती हुई बोली

"अरे क्या चिपके जा रही है... दूर रह... मैं तो चोट के बारे में पूछ रही थी..."

"बहुत लगती है जानू... जोर से लगती है दिल में चोट... अरे वो तो घायल हो
जाता है..." फिर से उसने रोमांटिक अंदाज में मेरे दिल को गुदगुदाया।

उसकी चूत तो जैसे मेरी गाण्ड से चिपकी जा रही थी। उसके हाथ मेरी कमर में
सहला सहला कर गुदगुदी मचा रहे थे। मूवी में वो लड़की मस्ती से सिसकारियाँ
भर रही थी। मैंने तो ये पहली बार देखा था सो मैं खूब ध्यान से ये सब देख
रही थी। विभा के हाथ अब मेरी कमर से हट कर मेरे सीने पर आने लगे थे। मैं
जैसे तैसे तैसे करके उन्हें अलग भी करती जा रही थी। पर चुदाई के सीन मेरे
दिल में एक रस सा भरने लगे थे। धीरे धीरे मुझे विभा की हरकतें भी आनन्दित
करने लगी थी। मैंने उसका विरोध करना भी बन्द कर दिया था। विभा की हरकतें
बढ़ने लगी। मेरे शरीर में रोमांच भरी तरावट भी बढ़ने लगी।

अब तो मुझे अपनी चूत में भी गुदगुदी सी लगने लगी थी। मेरा सीना कठोर होने
लगा था। मेरी निपल भी कड़ी हो कर फ़ूलने लगी थी। मेरी ये हालत विभा ने जान
ली थी। उसने मेरे गालों को मसल दिया और लिपट कर मेरे गले को चूमने लगी।

"हाय विभा रानी ! ये क्या कर रही है..." मुझे तो लग रहा था वो मुझे खूब गुदगुदाये।

"बहुत मजा आ रहा है कम्मो... साली तेरी चूंचियाँ... हाय राम कितनी कठोर है..."

"विभा... उफ़्फ़्फ़... बस कर... मुझे मार डालेगी क्या?"

"साली, तेरी चूत को मसलने का मन कर करता है... जोर से मसल दूँ तो...
उह्ह्ह पानी ही निकाल दूँ..."

कहकर उसने मेरी चूत को दबा दिया। मैं आनन्द से कराह उठी। मुझसे भी रहा
नहीं गया। मैं पलटी और उससे लिपट गई और उसके चेहरे को दोनों हाथों में
दबा लिया... उसकी आँखों में वासना भड़की हुई साफ़ नजर आ रही थी। उसकी आँखें
गुलाबी हो चुकी थी। मैंने उसे धीरे से चूम लिया। उसने भी मेरी आँखों को
एक बार चूमा, फिर तो मै उसे बेतहाशा चूमने लगी... जैसे सब्र का बांध टूट
गया हो।

विभा ने मेरे कुर्ते को ऊपर किया और मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया।

"उफ़्फ़... अरे यार... ये क्या क्या पहन रखा है... चड्डी है क्या... साली
तू भी ना..."

मैंने चड्डी का नाड़ा खोल दिया और नीचे सरका दी। उसने तो बस अपना गाऊन ऊपर
किया और नंगी हो गई। ओह ! कितना मजा आ रहा था... वो मुझे अपनी वासना की
गिरफ़्त में लेने में सफ़ल हो गई थी। पहली बार मेरा नंगा जिस्म किसी नंगे
जिस्म से टकराया था। जैसे आग सी भर गई थी। हम दोनों एक दूसरे के ऊपर
लिपटे हुये थे। उसकी चूत मेरे जिस्म से रगड़ खा रही थी और वो आहें भर रही
थी। वो बार बार अपनी चूत को उभार कर मेरी चूत से घिसने की कोशिश कर रही
थी। बरबस ही मेरी चूत का उभार भी उसकी चूत से भिंचकर टकराने लगा। उसने
मेरे चेहरे को अपने पास करके होंठ से होंठ चिपका दिये... उसकी जीभ लहराती
हुई मेरे मुख को टटोलने लगी। मुझे एक असीम सा आनन्द आने लगा। अब मुझे समझ
में आ रहा था कि दुनिया इस खेल में इतनी दिलचस्पी क्यों लेती है?मैं तो
स्वयं भी आश्चर्य में थी कि मैंने अपनी जवानी का इतना कीमती समय नष्ट
क्यूँ कर दिया?

उसके हाथ मेरी चूचियों को हौले हौले से दबा कर मुझे बहुत आनन्दित कर रहे
थे। तभी जाने कैसे मेरी चूत उसकी चूत से दबाव से रगड़ खा गई। शायद चूत का
दाना रगड़ खा रहा था। दिल में ज्वाला सी भड़क गई। एक तेज मस्ती सी आ गई।
मैंने कोशिश करके अपनी चूत फिर उसकी चूत पर दबा दी। दोनों चूतों के
झांटों की रगड़ से एक तेज मस्ती की टीस उठी। फिर तो हम दोनों ने अपनी एक
दूसरे की चूत से दबा कर रगड़ने लगी। हम दोनों के मुख से अब चीत्कार सी
निकलने लगी थी। दोनों के हाथ एक दूसरे की चूचियों को बेरहमी से मसलने लगी
थी। नीचे चूत की रगड़ से हम स्वर्ग में विचरण करने लगे। तभी मुझे लगा कि
जैसे विभा झड़ रही हो।

"देख विभा मुझे छोड़ना नहीं... प्लीज जोर से कर... और जोर से चोद दे राम..."

विभा वास्तव में झड़ चुकी थी, उसने अपनी एक अंगुली मेरी चूत में घुसा दी।
यह कहानी आप हिंदी सेक्सी कहानियाँ पर पढ़ रहे हैं।

मैं चीख सी पड़ी..."हाय राम... ये क्या डाल दिया तूने...?"

तभी दूसरी अंगुली उसने मेरी गाण्ड में घुसा दी। मैं तड़प सी उठी। मारे
मीठी गुदगुदी के मैं बेहाल हो गई। अब उसकी चूत में अंगुली डाल कर चोदना
और गाण्ड में अंगुली डाल कर गुदगुदाना... मैं आनन्द से छटपटा उठी। मेरा
जिस्म अकड़ने लगा... शरीर में एक तेज मीठापन तैरने लगा... कसक बढ़ने लगी।
मेरी हालत वो समझ गई और फिर वो मुझसे लिपट गई। मेरे शरीर को उसने अपनी
बाहों में कस लिया। मैं जोर से झड़ने लगी।

"उफ़्फ़... अह्ह्ह... रानी... मैं तो गई... अरे ह्ह्ह्ह्ह... ये कैसा आराम
सा लगने लगा..." मेरी आंखे बन्द होने लगी।

फिर मुझे एक झपकी सी आ गई।

लगभग पन्द्रह मिनट बाद मेरी आँख खुली। मैं अब भी नंगी ही थी। विभा मेरे
पास बैठी हुई दूध के गिलास में बोर्नविटा मिला रही थी।

"लो यह पी लो... लगता है कमजोरी आ गई।"

मैं झेंप सी गई और दूध का गिलास उसके हाथ से ले लिया। मैंने चादर खींच कर
अपने ऊपर फ़ैला ली।

"तू तो बहुत बेशरम हो गई है राम !!!"

"क्यूँ ! मजा नहीं आया... कैसे तो उछल उछल कर मस्ती ले रही थी।"

"चुप हो जा बेशरम..."

वो मेरे साथ ही बिस्तर पर लेट गई और मेरी चूत को सहलाने लगी- कम्मो, वो
दीपक का लण्ड कैसा रहेगा? नया नया जवान लड़का है... मजा आयेगा ना...?"

"अरे चुप छिनाल... अंकल क्या कहेंगे?" मैंने उसे चेतावनी देते हुये कहा।

"हाय राम, वो कहेंगे कि... हे चूत वालियों ! मेरे पास भी एक अदद लौड़ा है..."

हंसी रोकते रोकते भी मैं खिलखिला कर हंस पड़ी।

कहानी जारी रहेगी।

कामिनी सक्सेना


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Raj Sharma

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