Wednesday, January 9, 2013

मस्त लण्ड का स्वाद-2

मस्त लण्ड का स्वाद-2

शमीम बानो कुरेशी

मैंने उसका लण्ड पकड़ा और जोरदार मुठ्ठ मारी... फिर मुँह में भर कर उसे
खूब चूसा...। उसके लण्ड से भी जवानी के स्त्राव की तेज गन्ध आ रही थी।
मैंने उसका लण्ड खूब चूसा... उसे तड़पा कर रख दिया। लण्ड चूसने में मेरा
अपना अनुभव काम में आया। उसका खूब माल निकला... उसका पूरा ही वीर्य निकाल
कर मैंने पी लिया।

हमीद अब सन्तुष्ट था। उसने गाड़ी आगे बढ़ा दी...

अगले दिन

"सुहाना... तुझे लण्ड खाये कितना अरसा हो गया है?"

"यही कोई दो महीने... बस अगले महीने वो कुवैत से आ जायेंगे तो हम अपने घर
में फिर से चले जायेंगे... फिर तो रात रंगीली और दिन उजियारे... !"

"खायेगी मस्त लण्ड... एक है मेरे पास..."

"अरे वो हमीद भैया नाराज होंगे ना ! उन्हें पता नहीं चलना चाहिये बस !"

"अरे तू अपने भैया को ही क्यूँ नहीं पटा लेती... फिर घर के घर में ही..."

"पागल है क्या? देखा नहीं है उसको... ठीक से तो बात करता नहीं है... अरे
नहीं, तू अपना वाला ही खिला दे मुझे... कौन है वो?"

"अरे अब्दुल भाई ही है वो तो... मैं तो उसका लण्ड खूब खाती हूँ...
इसीलिये तो कहती हूँ..."

"हाँ तेरे अब्दुल को तो मैं जानती हूँ। पता नहीं बानो... मेरी तो हिम्मत
ही नहीं होती है... डर लगता है ना..."

"पर है उसका मस्त लौड़ा ! अरे मस्ती आ जायेगी तुझे... एक बार ले कर
अन्दर-बाहर तो करके देख..."

उसके दिल में मुझे लगा कि हलचल सी हुई। उसकी आंखे ललचाई सी लगी।

"हाय अल्लाह... वो तो मुझे घास भी नहीं डालता है। हाय... अन्दर-बाहर क्या
करेगा वो?"

"छोड़ ना यार... घास नहीं लण्ड खाना है... अच्छा तेरा भैया है ना हमीद...
उससे मैं चुदवा लूं...?"

"वो तो आशिक मिजाज है, थोड़ा सा पटायेगी ना, वो तो तेरी झोली में आ गिरेगा।"

"और तू अब्दुल से अन्दर बाहर करवा लेना !!!"

"तो फिर ठीक है... मैं और आप... हमीद और अब्दुल... साथ साथ ही चुदा लेंगे।"

"साथ साथ... मेरे अल्लाह... शरम से मर जाऊँगी मैं तो..."

"अरे साथ साथ चुदवाने में चूत और अधिक फ़ड़कती है... लण्ड तो क्या खूब ही
कड़कड़ाता है... अरे यार चूत तो सोच सोच कर ही पानी छोड़ने लगती है।"

"पता नहीं... कसम से... जाने क्या करवायेगी तू बानो?"

"कल शाम को घर पर कोई नहीं है आठ बजे आ जाना..."

"अरे मेरे घर पर भी कल सब साहिल खान साहब के यहां जायेगे... फिर तो सुबह
ही आयेंगे वो..."

"अरे मेरे अब्बू भी वहीं तो जा रहे हैं... तो मैं कल तेरे यहाँ आ जाती हूँ...!"

"पक्का ना...?"

"अरे मुझे तो अभी से चुदने की लग रही है बानो... देख जरूर चुदवा देना...
बहारों के सपने मत दिखाना।"

दूसरे दिन सवेरे ही सुहाना दूध लेने दुकान पर आई तो मैंने उसे देख लिया।
मैंने सोचा उसे शाम की बात याद दिलवा दूँ। मैंने उसे दूर से ही इशारा कर
के बुला लिया। वो तेज कदमों से मेरे पास आ गई।

"सुहाना, याद है ना शाम की बात...?"

"अरे सुन तो बानो... कल शाम को तो गजब हो गया...!"

"चल चल अन्दर चल... वहीं बताना..."

मेरे कमरे में आते ही उसने बैठते हुये कहा... "गजब हो गया यार... जानती
है कल क्या हुआ?"

मैंने उसे आश्चर्य से देखा..."बता तो ऐसा क्या हो गया।"

"शुरू से बताती हूँ... सुन..."

उसने अपनी आप बीती सुननी आरम्भ कर दी...

शाम को खाने बाद रात को नौ बजे हमीद मेरे कमरे में आया... मैं उस समय
अपने कपड़े समेट रही थी। सोने के लिये मैं तो हल्के कपड़े पहने हुई थी। बस
एक पेटीकोट और ढीला सा ब्लाऊज पहना हुआ था।

"क्या कर रही हो दीदी?"

"अरे बस कपड़े लगा दूँ फिर बस आराम करूँगी और क्या !"

"तू अब्दुल को जानती है?"

"मेरा दिल धक से रह गया... ये क्यों पूछ रहा है?"

"न... न... नहीं तो... बस वैसे जानती हूँ... देखा है... मस्त बाते करता है !"

"तुझे पसन्द है वो...?"

"मैंने हमीद को बड़ी बड़ी आँखों से देखा, मुझे लगा कि जरूर कोई बात है !
मेरी तो बानो से बात हुई थी... कहीं इसने सुन तो नहीं ली थी।"

मैंने भाईजान से कहा,"यह क्या बात हुई भाईजान... पसन्द होने से क्या होता है?"

तभी उसने पास में बिजली का स्विच ऑफ़ कर दिया... कमरे में अंधेरा छा
गया... तभी उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे अपने से चिपका लिया।

"दीदी... मैं पसन्द हूँ या नहीं..."

मेरा दिल धड़क उठा...

"अरे छोड़ मुझे... यह क्या कर रहा है?"

"चुप... चुप... चल बैठ यहाँ... लगता है अब तेरी शादी करवानी पड़ेगी...
बहुत बिगड़ने लगा है आजकल..."

मुझे यूं हंसी मजाक करते हुये देख कर वो सामान्य हो गया।

"क्यों कैसी रही?"

"क्या मतलब?"

"अरे मैंने ही तो उसे समझाया था कि एक बार कोशिश तो कर... हो सकता है
सुहाना राजी हो जाये।"

"धत्त धत्त...!" कहते हुए सुहाना चली गई।

शाम को अब्दुल और मैं आठ बजने का इन्तजार करने लगे।

मैंने बिना चड्डी की नीची सी फ़्रौक पहन ली और ऊपर एक ढीला ढीला सा टॉप डाल लिया।

"देख सुहाना को मजे देना... ताकि आगे भी वो तुझसे चुदवा ले..."

"थेन्क्स बानो... अभी तो तुझे चोदने का मन कर रहा है...!"

"अब इतना तो चोद दिया... तेरी बहन हूँ यार... कुछ तो शरम कर... किसी अपने
दोस्त का कल्याण कर...!"

"मां की लौड़ी, हर बात में लौड़ा चाहिये... अरे चल चल... वो तो निकल रहे हैं।"

"जाने तो दे ना पहले..."

हम दोनों अब धीरे धीरे सुहाना के घर की ओर चल पड़े। उसके अम्मी-अब्बू कार
में निकल चुके थे। घर का दरवाजा सुहाना ने खोला। अब्दुल को देख कर सुहाना
शरमा गई।

"हाय... आप हैं... आईये आईये... उसकी नजरें नीचे झुक गई।"

"बस इसी अदा ने तो हमें मार दिया..." फिर अब्दुल ने सुहाना का सर ऊपर
उठाया... "कौन ना मर जाये इस सादगी पर !"

अब्दुल के मुँह से मैं पहली बार शायरी जैसा कुछ सुन रही थी। मैंने उन्हें
अकेला छोड़ा और आगे बढ़ गई। पीछे से अब्दुल ने सुहाना को चूम लिया।

वो जाने लगी तो अब्दुल ने उसकी कमर पकड़ कर अपने से लिपटा ली।

"सुहाना भाभी... लण्ड लोगी... सच में स्वर्ग ले चलूंगा।" अब्दुल की धीमी
सी आवाज आई। साले भड़वे ने तो इतने रोमान्टिक अन्दाज में मुझे कभी भी
प्रोपोज नहीं किया वरना तो मैं उस पर मर मिटती। पर मैं जानती थी कि वो
चोदे किसी को भी... पर मरता मुझे पर ही है।

"भैया... मैं तो आपकी दासी हूँ... जो खिलाओगे... खाऊँगी... चाहे लण्ड
क्यों ना हो... जहां ले चलोगे... चलूँगी... चाहे नरक ही क्यों ना हो।"

अब्दुल ने उसके मुँह पर अंगुली रख दी। मैं चुप से दोनों की नाटकबाजी देख
रही थी। ये मर्द भी ना... धत्त... मरने दो। वो दोनों वहीं खड़े खड़े एक
दूसरे को प्यार करने लगे।

"उफ़्फ़ ! यह हमीद कहाँ रह गया।"

"सुहाना... हमीद कहां है?"

अम्मी और अब्बू को छोड़ कर आ जायेगा... वो तो फिर से अब्दुल का लण्ड ढूंढने लगी।

"हाजिर हूँ जनाब..." हमीद ने नाटकीय अन्दाज में एण्ट्री ली। मेरी तो
बांछें खिल गई। वो बाजार से सींक कवाब और मटन की टिकिया लाया था।

"आओ भई... सुहाना चाय-वाय बना लो... नाश्ता कर लो, फिर खाना भी तैयार है।
अरे उसका लौड़ा तो छोड़ दे अब !"

सुहाना किचन में गई और चाय बना कर ले आई। अब्दुल तो चाय के साथ सुहाना के
मम्मे भी चूसता जा रहा था।

"मस्ती आ रही है बहना...?" सुहाना से यह कहते हुए हमीद ने मुझे जोर से
लिपटा लिया..."बानो सच बता... कितने लौड़े खाये हैं आज तक...?"

"मेरे राजा बस एक ही खाया था... वो भी गलती से... प्लीज माफ़ कर दो ना।"

"बस एक ही बार... साली बड़ी रसीली है...! कल तो ऐसे कर रही थी कि जैसे
साली टेक्सी है और अभी तक बस एक बार ही...?"

"आओ हमीद... अब चोद डालो मुझे... बरसों की तड़प मिटा दो... वो तो चुदने की
लग रही थी ना इसलिये तुझे लगा होगा... अरे चलो ना कब चोदोगे...?"

मैं जल्दी से अपने कपड़े उतार कर चुदने को तैयार हो गई। मुझे देख कर
सुहाना ने भी अपने बचे खुचे कपड़े उतार फ़ेंके।

"आजा सुहाना... यहां मेज पर आ जा... देख यूँ... ऐसे कर ले... मैंने
सुहाना को चुदाने के लिये आवाज दी।

मैंने अपनी दोनों कुहनियाँ मेज पर रख दी और झुक गई... अपनी गाण्ड मैंने
उभार ली... सुहाना ने भी मुझे देख कर मेरी तरह ही कर लिया और मेरी बगल
में ही झुक कर अपनी गाण्ड उभार कर खड़ी हो गई। हमीद और अब्दुल दोनों ने
अपनी पोजीशन सम्भाल ली। किसी काम देवता की तरह दोनों मर्द सधे हुये चोदने
की तैयारी में थे। मैं अपनी आंखें बन्द किये हुये हमीद के मोटे लण्ड के
घुसने की राह देख रही थी। कैसा कड़क लण्ड होगा... साला अन्दर घुसेगा तो
जान ही निकाल देगा।

फिर एक मधुर सी गुदगुदी मेरी चूत में उभर आई। उसका खिला हुआ सुपाड़ा मेरी
चूत में हल्के हल्के रगड़ खा रहा था। तेज खुजली होने लगी... चूत लपलपाने
लगी... पानी छोड़ने लगी। मैं पीछे की ओर अपनी चूत उछालने लगी। साला बदमाश
था... मुझे तड़पा रहा था। तभी उसके मर्दाना कठोर हाथ मेरी चूचियों पर आ
गये... उफ़्फ़... बहुत आनन्द आने लगा था। उसने अपने अंगूठे और अंगुली की

सहायता से हल्के से मेरी निप्पल को मसल दिया। वार तो छाती पर निप्पल पर
हुआ था... पर जलन चूत में उभर आई थी। तब उसका नरम सुपाड़ा मेरी चूत पर
दबने लगा... मेरी सांसें एक सुख की चाह में तेज हो गई...

फिर आह्ह्ह्ह्ह... फ़क से अन्दर घुस गया... बहुत दिनों से नहीं चुदी थी
ना, इसलिये चूत कुछ टाईट सी थी। एक अदद कड़क लण्ड की चाह थी, सो वो भी
कड़कड़ाता हुआ चूत के भीतर उसे फ़ाड़ता हुआ अन्दर घुसने लगा। मैंने अपनी
टांगें और चौड़ा दी... मेरी चूचियां दब उठी... उसके मर्दाना हाथ मेरी छाती
दबाने और मसलने लगे। मैंने अपनी आंखें धीरे से खोली। सुहाना तो बुरी तरह
से चुद रही थी।

अब्दुल भी नई चूत को चोद कर खुश था और अपना जोर उसने सुहाना की चूत पर
लगा दिया था। वो भी हमीद की तरह गाण्ड पर जोर जोर से चपत मार मार कर चोद
रहा था। मेरे तो पोन्द मार खा खा कर गुलाबी हो गये थे। पर हमीद कस कस कर
जो लण्ड के भचीड़े मार रहा था वो तो मुझे जन्नत में पहुँचाने का काम कर
रहे थे। साले ने मुझे खूब जोरदार चोदा। तभी अधिक उत्तेजना से मेरी चूत ने
पानी छोड़ दिया...

"बस बस करो हमीद मियां... अब लग रही है..."

"इतनी जल्दी झड़ गई झन्डू रानी...?"

"आपने तो बहुत मतवाली कर दिया था ना मियां..."

फिर मैं चीख सी उठी... उसका चाकू अब कहीं और घुस गया था। उसका सुपाड़ा अब
मेरी गाण्ड फ़ाड़ने पर तुला था। बस... पीछे से चुदवाने से यही होता है
ना...

चूत छक गई हो तो तोहफ़े के रूप में पिछाड़ी चोदने वाले को मिल जाती है...
एक तेज मीठी सी जलन दर्द के साथ लण्ड ने गाण्ड में घुसने की कोशिश की।

"अरे सेट तो कर ले... फ़ट जायेगी भड़वे !"

"नहीं फ़टेगी यार... लण्ड है कोई लोहा तो नहीं है ना..."

उसने सेट करने के बदले एक बड़ा सा थूक का लौन्दा मेरी गाण्ड के छल्ले पर
टपका दिया और फिर से लण्ड गड़ा दिया। इस बार मुझे कोई तकलीफ़ नहीं हुई
बल्कि एक मीठी सी गुदगुदी उभर आई। अब मैंने सर घुमाया और सुहाना को देखने
लगी...

अब्दुल उसकी गाण्ड ही मार रहा था। वो भी बड़ी कशिश के साथ मुझे देख रही
थी- बानो... साथ साथ चुदाने में कितना मजा आता है... तुम सच कहती थी...
और मजा करना है... हमीद भाई अब जरा बदल तो लो...आखिर कब तक मेरा भैया बना
रहेगा...

"चलो अब दोनों भाई बहन भी जरा मस्ती कर लें... अब्दुल भैया... प्लीज अब
तुम चोद दो ना मुझे..."

अब हमीद अपनी बहन सुहाना की गाण्ड चोद रहा था और अब्दुल ना चाहते हुये भी
मेरी गाण्ड चोदने पर मजबूर था।

"साली छिनाल... तेरी तो मार मार कर मैं पक गया हूँ..."

"मेरी जान मेरे अब्दुल... अब इतनी भी क्या नाराजगी...?"

"तूने तो मुझे भड़वा समझ रखा है... मादरचोद..."

"चल हट साले हरामजादे... निकाल अपना लौड़ा मेरी गाण्ड से... बड़ा आया मुझे
चोदने वाला। मूड नहीं है तो चोदने की क्या जरूरत है?"

अब्दुल ने जल्दी से लण्ड बाहर खींच लिया और एक तौलिया लपेट कर पास में ही बैठ गया।

इधर हमीद जोर से झड़ गया। दोनों भाई बहन प्यार से लिपट गये थे।

"वो देख इसे कहते हैं भाई बहन... कितने प्यार से चुदाई की... और देख तो,
कितनी मोहब्बत से लिपटे हुये हैं।"

"अब तुझे कितना चोदूं आखिर... बड़े प्यार से सुहाना की मैं मार रहा था,
तुझे बीच में पड़ने की क्या जरूरत थी?"

"ओह बाबा... सॉरी... अब तो तू सुहाना की मस्त गाण्ड रोज मार लेना...
क्यों सुहाना... देगी ना इसे...?"

सुहाना शान्त करने की गरज से बोली- मैंने कब मना किया है... अब्दुल
चाहेगा तो उसे मै रोज अपनी दूंगी... पर प्लीज झगड़ो मत...

मैंने सुहाना से विनती की... प्लीज सुहाना... इसका लण्ड झड़ा दो... देखो
तो गुस्से में वो झड़ भी नहीं पाया।

पर अब्दुल ने चुपचाप कपड़े पहने और जाने लगा...

"अरे रुक तो... बहुत अन्धेरा हो गया है... मैं भी आ रही हूँ... मैं नाराज
अब्दुल के पीछे भागी।

हमीद और सुहाना दोनों ही हमे जाते हुये देख रहे थे... उन्हें नहीं पता था
कि हम में झगड़ा क्यूं हुआ है। उसे क्या पता था कि अब्दुल मुझे दूसरे से
चुदता हुआ नहीं देख सकता था... वो मुझे बहुत प्यार करता था... मुझ पर
अपनी जान छिड़कता था। मेरी प्यारी चूत को वो कई बार तो देर तक चूसा करता
था... मुझे गाण्ड में अंगुली करके देर तक गुदगुदाता रहता था। कई बार तो
मैं दो दो बार झड़ जाती थी। प्यार करने वाले इस बात को समझते हैं... आप भी
तो समझते हैं ना।

वो कई बार मुझे दूसरों से चुदवा चुका था... पर बेमन से... शायद ये सोच कर
कि मेरी बानो को नये लण्ड से चुदना है... वो मेरी खुशी का बहुत ध्यान
रखता था। वो चाहता था कि मेरे जीवन में भरपूर आनन्द ही आनन्द हो... वो
मेरे लिये नये लड़कों का प्रबन्ध इसीलिये करता था। इसीलिये मैं भी उस पर
अपनी जान छिड़कती थी। पर मेरी मजबूरी भी तो थी... मुझे तो रोज लण्ड चाहिये
थे...

मोटे मोटे लम्बे और कड़क... अब्दुल तो बस एक लण्ड की सप्लाई का जरिया था
मेरे लिये। अगर घोड़ा घास से प्यार करेगा तो खायेगा क्या... लौड़ा? तो
आईये... मुझसे दोस्ती करोगे?

शमीम बानो कुरेशी

--
Raj Sharma

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