कुँवारी छबीली -1
"सुनो भाई, कोई कमरा मिलेगा?"
"वो सामने पूछो !"
मैंने उस हवेली को घूम कर देखा और उसकी ओर बढ़ गया। वहाँ एक लड़की
सलवार-कुर्ते में अपने गीले बालों बिखेरे हुये शायद तुलसी की पूजा कर रही
थी।
मुझे देख कर वो ठिठक गई- कूण चावे, कूण हो?
"जी, कमरा किराये पर चाहिये था।"
"म्हारे पास कोई कमरो नहीं है, आगे जावो।"
"जी, थैन्क्स !"
"रुको, कांई काम करो हो?"
"वो पीछे बड़ा ऑफ़िस है ना, उसी में काम करता हूँ।"
"थारी लुगाई कटे है?"
"ओह, मेरी शादी नहीं हुई है अभी !" मैं समझ गया गया था कि बिना परिवार के
ये मकान नहीं देने वाली।
"कांईं जात हो...?"
मैंने उसे बताया तो वो हंस पड़ी, मुझे ऊपर से नीचे तक देखा, फिर वो बिना
कुछ कहे भीतर चली गई।
मैं निराश हो कर आगे बढ़ गया।
लाऊड स्पीकर की तेज आवाज, भीड़ भाड़ में, महमानो के बीच में मैं अपने दोस्त
करण को ढूंढ रहा था। सभी अपने कामों में मगन थे। एक तरफ़ खाना चल रहा था।
आज मैंने होटल में खाना नहीं खाया था, करण के यहाँ पर खाना जो था।
"शी ... शी ... ऐ ..."
एक महिला घाघरे चूनर में अपने को घूंघट में छुपाये हुये मुझे हाथ हिला कर
बुला रही थी। मैं असमन्जस में पड़ गया। फिर सोचा कि किसी ओर को बुला रही
होगी।
उसने अपना घूंघट का पल्लू थोड़ा सा ऊपर किया और फिर से मुझे बुलाया।
मैंने इशारे से कहा- क्या मुझे बुला रही है?
"आप अटे कई कर रिया हो?"
"आप मुझे जानती हो?"
"हीः ... कई बाबू जी, मन्ने नहीं पहचानो? अरे मूं तो वई हूँ हवेली वाली,
अरे वो पीपल का पेड़ ..."
"ओह, हाँ ... हा... बड़ी सुन्दर लग रही हो इस कपड़ों में तो..."
"अरे बहू, काई करे है रे, चाल काम कर वटे, गैर मर्दां के साथ वाता करे है।"
"अरे बाप रे ... मेरी सास।" और वो मेरे पास से भाग गई। मैं भोजन आदि से
निवृत हो कर जाने को ही था की दरवाजे पर ही वो फिर मिल गई। मुझे उसने
मेरी बांह पकड़ कर एक तरफ़ खींच लिया।
"अब क्या है?" मैं खीज उठा।
"म्हारे को भूल पड़ गई, म्हारे घर माईने ही कल सवेरे कमरो खाली हो गयो है
... आप सवेरे जरूर पधारना !"
मैंने खुशी के मारे उसका हाथ जोर से दबा दिया।
"शुक्रिया... आपका नाम क्या है?"
"थाने नाम कांई करनो है ... छबीली नाम है म्हारो, ओर थारा?"
"नाम से क्या करना है ... वैसे मेरा नाम छैल बिहारी है !" मैंने उसी की
टोन में कहा।
"ओये होये ... छैलू ... हीः हीः !" हंसते हुये वो आँखों से ओझल हो गई।
मेरी आँखें उसे भीड़ में ढूंढती रह गई।
मैं सवेरे ही छबीली के यहाँ पहुँच गया। मैंने घण्टी बजाई तो एक चटख मटक
लड़की ने दरवाजा खोला। टाईट जींस और टी शर्ट पहने वो लड़की बला की सेक्सी
लग रही थी। खुले बालों की मुझे एक महक सी आई।
"जी वो... मुझे छबीली से मिलना है..."
"माईने पधारो सा..." उसकी मीठी सी मुस्कान से मैं घायल सा हो गया।
"जी वो मुझे कमरा देखना है..."
"थां कि जाने कई आदत है, अतरी बार तो मिल्यो है ... पिछाणे भी को नी...?"
"ओह क्या ? आप ही छबीली हैं...?"
वो जोर से हंस दी। मैं अंसमजंस में बगले झांकने लगा। कमरा बड़ा था, सभी
कुछ अच्छा था... और सबसे अच्छा तो छबीली का साथ था। मैं कमरे से अधिक उसे
देख रहा था।
वो फिर आँखें मटकाते हुये बोली- ओऐ, कमरा देखो कि मन्ने ...?"
फिर खिलखिला कर हंस दी।
मैं उसी शाम को अपने कमरे में सामान वगैरह ले आया। वो मेरा पीछा ही नहीं
छोड़ रही थी। इस बार वो सलवार-कुर्ता पहने हुई थी।
"घर के और सदस्य कहाँ हैं?"
"वो... वो तो राते आवै है... कोई आठ बजे, बाकी तो साथ को नी रेहवै..."
"मतलब...?" "म्हारे इनके हिस्से के पांती आयो है ... सो अठै ही एकलो रहवा करे !"
मैं अपने बिस्तर पर आराम कर ही रहा था कि मुझे छबीली की चीख सुनाई दी।
मैं तेजी से उठ कर वहा पहुँचा। वो पानी से फिसल गई थी और वहीं गिरी पड़ी
थी।
मैंने तुरन्त उसे अपनी बाहों में उठा लिया और उसके बेडरूम में ले आया।
उसके पांव में चोट लगी थी।उसने अपनी खूबसूरत पैरो पर से सलवार ऊपर कर दी।
लगी नहीं थी, बस वहाँ सूजन आ गई थी। मैंने बाम लाकर उसके पैरों पर मलना
आरम्भ कर दिया। मेरे हाथ लगाते ही वो सिहर उठी। मुझे उसकी सिरहन का अहसास
हो गया था। मैंने जान कर के अपना हाथ थोड़ा सा उसकी जांघों की तरफ़ सहला
दिया। उसने जल्दी से सलवार नीचे दी और मुझे निहारने लगी। फिर वो शरमा गई।
"ऐ ... यो काई करो ... मन्ने तो गुदगुदी होवै !" वो शरमा कर उठ गई और
अपना मुख हाथों से ढांप लिया।
मुझे स्वयं ही उसकी इस हरकत पर आनन्द आ गया। एक जवान खूबसूरत लड़की की
जांघों को सहलाना ... हाय, मेरी किस्मत ...।
"छबीली, तुम्हें पता है कि तुम कितनी सुन्दर हो?"
"छैल जी, यूं तो मती बोलो, मन्ने कुछ कुछ होवै है।"
"सच, आपका बदन कैसा चिकना है ... हाथ लगाने का जी करता है !"
उसकी बड़ी बड़ी आँखें मेरी तरफ़ उठ गई। उनमे अब प्रेम नजर आ रहा था। उसके
हाथ अनायास ही मेरी तरफ़ बढ़ गये।
"मन्ने तो आप कोई जादूगर लगे हो ... फिर से कहो तो..."
"आपका जिस्म जैसे तराशा हुआ है ... कोई कलाकर की कृति हो, ईश्वर ने
तुम्हें लाखो में एक बनाया है !"
"हाय छैलू ! इक दाण फ़ेर कहो, म्हारे सीने में गुदगुदी होवै है।"
वो जैसे मन्त्र मुग्ध सी मेरी तरफ़ झुकने लगी। मैंने उसकी इस कमजोरी का
फ़ायदा उठाया और मैं भी उसके चेहरे की तरफ़ झुक गया। कुछ ही देर में वो
मेरी बाहों में थी। वो मुझे बेतहाशा चूमने लगी थी। उसका इतनी जल्दी मेरी
झोली में गिर जाना मेरी समझ में नहीं आया था।
मैं तुरन्त आगे बढ़ चला... धीरे से उसके स्तनों को थाम लिया। उसने बड़ी बड़ी
आँखों से मुझे देखा और मेरा हाथ अपने सीने से झटक दिया। मुझे मुस्करा कर
देखा और अपने कमरे की ओर भाग गई। उसकी इस अदा पर मेरा दिल जैसे लहूलुहान
हो गया।
उसके पति शाम को मेरे से मिले, फिर स्नान आदि से निवृत हो कर दारू पीने
बैठ गये। लगभग ग्यारह बज रहे थे। मैं अपनी मात्र एक चड्डी में सोने की
तैयारी कर रहा था। तभी दोनों मियां बीवी के झगड़े की आवाजें आने लगी।
मियां बीवी के झगड़े तो एक साधारण सी बात थी सो मैंने बत्ती बंद की और लेट
गया।
अचानक मेरे कमरे की बत्ती जल गई। मैं हड़बड़ा गया... मैं तो मात्र एक छोटी
सी चड्डी में लेटा हुआ था।...
"चलो, आज थन्ने एक बात बताऊँ?" उसके गाल तमतमा रहे थे। वो बुरी तरह से
गुस्से मे लग रही थी.
"अरे मुझे कपड़े तो पहनने दो..." मैने उसे रोके की गरज से कहा क्यूंकी
मुझे उनके खरेलो मामलो मे अपने आप को घसीटे जाना ठीक नही लग रहा था ओर
मैं अपने आप को इस सब से अलग रखना चटा था.
"कपड़ा री ऐसी की तैसी... अटै कूण देखवा वास्ते आ रियो है?" के कहते हुए
उसने मुझे घसीटना सुरू कर दिया. अब मुझे बेमान से ही उसके साथ जाना पड़ा.
उसने मेरा हाथ पकड़ा और खींच के ले चली। अपना कमरा धड़ाक से खोला, ओर कहा
"यो देखे है काई ! देख्या कि नाहीं... यो हरामी नागो फ़ुगो दारू पी ने
पड़यो है।" उसने अपने पति की तरफ इशारा करते हुए कहा. मैने देखा उसका पति
एकदम नंगा बिस्तर पर पड़ा हुआ था. उसने इतनी दारू पी रखी थी की उसे
बिल्कुल होश नही था की उसने कपड़े पहने है या नही. मैने उसे देखते ही कहा
"अरे ये क्या... चलो बाहर चलो...!"
"अरे आ तो सरी... ये देख... लाण्डो तो देख, भड़वा का उठे ही को नी... भेन
चोद !" वो एकदम गुस्से मे मुझे पूरी तरह से घसीटते हुए कमरे मे ले गई ओर
उसने उसके पास जाकर उसका ढीला ढाला लण्ड रबड़ की तरह पकड़ कर हिला दिया।
फिर उसने उसकी पीठ पर दो तीन घूंसे मारे दिये। जैसे उससे किसी बात का
बदला लेना चाहती है
"साला... हरामी... हीजड़ा...!" लगातार उसकी ज़ुबान से अपने पति के लिए
गालियाँ निकल रही थी.
"बस गाली मत दे... चल आ जा...!" मैने उसे रोकने की गरज से कहा.
"यो हराम जादो, मेरे हागे सोई ही ना सके... बड़ा मरद बने है !" उसने अपने
पति को एक लात ओर जमा दी. ओर फिर वो रोने लगी.
वो धीरे से सुबक उठी और मेरे पैरों के नजदीक रोती हुई बैठ गई। मुझे पता
था कि इसके दिल की भड़ास निकल जायेगी तो यह शांत हो जायेगी। मैं उसे
खींचते हुये बाहर ले आया। उसके मचलने पर मैंने उसे अपनी बाहों में उठा
लिया और बैठक में ले आया। उसने मेरी गले में अपनी बाहें डाल दी और लिपट
सी गई। मेरी तो एक तरह से ऐश हो गई थी इतनी खूबसूरत लड़की मेरी बाहों मे
थी. वो बेचारी तो रो रही थी ओर मैं उसकी चुचियों का अपने सीने पर एहसास
पा कर खुश हो रहा था ओर मेरा लॅंड खड़ा होता जा रहा था.
वो बहुत गुस्से में थी... अपने आपे में नहीं थी।वो मुझ से अलग हुई ओर
उसने अपना कमीज उतार फ़ेंका।
"ये देख छैला, मेरी चूचियाँ देख... कैसी नवी नवेली हैं !" उसने अपनी
चुचियों को अचानक मेरे सामने करते हुए कहा.
आह ! अचानक इस हमले के लिये मैं तैयार नहीं था। उसकी चूचियाँ गोल कटोरी
जैसे सीधे तनी हुई... जिनमें झुकाव जरा भी नहीं था, मेरे मन को बींध गई,
मेरी सांस फ़ूल सी गई। ओर मेरी आँखें वही जा कर अटक गई थी. इतनी खूबसूरत
चुचियाँ मैने पहली बार देखी थी. इनफॅक्ट मैने तो चुचियाँ ही पहली बार
देखी थी. वो भी इतनी खूबसूरत की नज़र हटाए नही हट रही थी. मैने सोचा की
बेटा अगर ऐसे ही देखता रहेगा तो तेरे हाथ से गया कमरा पर क्या करता ना तो
दिल पर ज़ोर चलता है ना लॅंड पर. क्यूंकी अब तो लंड भी दिल का साथ देने
लगा था ओर टन कर खड़ा था.
"और ये देख, साली इस चूत को... किसके किस्मत होगी मेरी ये चूत... प्यासी
की प्यासी... रस भरी... वो भड़वा... भेन चोद... मेरा मरद नहीं चोदेगा तो
और कूण फ़ोड़ेगा इन्ने...?" कहते हुए उसेन अपने घग्रे को उपर कर दिया. मुझे
एक झांट का जंगल नज़र आया. आज तक ना चूत देखी थी ना चुचियाँ. ओर आज
किस्मत देखो देखने को मिली तो भी तो साथ मे.
मेरा दिल जैसे मेरे उछल कर मेरे गले में आ गया। यह क्या हो रहा है मेरे ईश्वर !
फिर अचानक वो जैसे चुप सी हो गई।
"हाय, मैंने ये क्या कर दिया..." जैसे होश में आई हो। अब वो एकदम शर्मा
गई ओर उसने अपनी नज़रें नीचे करली
"नहीं, कोई बात नहीं... मन की आग थी... निकल गई !" मैने उसे दिलासा देने
की गरज से कहा. साथ ही ये भी दर था की अगर नाराज़ हो गई तो साला मेरा ही
कमरा छिनएगा. इस कारण मेरी गांद भी फट रही थी की नाराज़ ना हो जाए.
उसने नजर नीची करके कहा,"अभी जाना नहीं, मैं चाय बना कर लाती हूँ... मेरे
पास कुछ देर बैठना..."
वो चाय बनाने चली गई। मेरी नजरें जैसे ही नीचे गई मैं शरमा गया। मेरा
लण्ड जाने कबसे खड़ा हुआ था। मैंने उसे नीचे दबाने की कोशिश की।
"यो तो यूँ ही रहेगो... जतरा नीचे दबाओगे उतना ऊँचो आवेगो !" उसकी
खिलखिलाहट कमरे में तैर गई।
फिर वो चाय बनाने चली गई। चाय बना कर वो जल्दी ही ले आई। उसने चाय मेरे
हाथ में पकड़ा दी। लण्ड स्वतन्त्र हो कर मेरी चड्डी को फ़ाड़ने के लिये जोर
लगाने लगा। वो मेरे लण्ड की हालत देख कर खिलखिला उठी। मेरी शर्म के मारे
बुरी हालत थी.
मैने घबराते हुए कहा "अरे वो... ओह क्या करूँ?"
उसकी आवाज़ मे वही खनक थी "कुछ नहीं, मरद का लण्ड है, वो तो जोर मारेगा
ही..." वो लगातार मेरे लॅंड को ही घुरे जा रही थी जो मेरी छ्होटी से
चड्डी मे च्छूपने की नाकाम कोशिश कर रहा था. कभी मैं उस पर एक हाथ रखता
तो कभी दूसरा क्यूंकी
मैं बुरी तरह उसकी बातों से झेंप गया।
"ये देख, मैं भी मर्दानी हूँ... ये मेरा सीना देख... और नीचे मेरी ये..."
उसने चादर उतारते हुये कहा।
मैंने उसके मुख पर हाथ रख दिया।मुझे उसकी बातों से शर्म महसूस हो रही थी
जबकि वो पता नही आज क्यू बेशर्म हुई जा रही ति चाय पीकर वो मेरे और करीब
आ गई।
"छैलू, मुझे एक बार बस, मर्दों वाला आनन्द दे दो..." उसने कातर शब्द मेरे
दिल को चीर गये। मुझ पर हमले पर हमले हो रहे थे। भला कैसे सहता ये सब...।
यह तो चुदाई की बात करने लगी थी।
"पर आपका पति...?" मैने अपने दिल की शंका जाहिर की छोड़ना तो मैं भी
चाहता था उस कंटीली नार को. उसके अंग देख कर मेरा लॅंड तो जैसे आज चड्डी
फाड़ने को ही बेताब नज़र आ रहा था.
"बस... उस भड़वे ने सूया ही रेवण दो..." फिर जैसे चेहरे से तनाव हट गया।
कुछ ही पलों में वो मुस्करा रही थी। मुझे उसने धक्का देकर बिस्तर पर चित
गिरा दिया और मेरी चड्डी खींच कर उतारने लगी। जैसे ही मेरी चड्डी मेरे
लॅंड से अलग हुई वो एकदम फुफ्कार कर उसके मूह के पास आ गया.
"छैला, बस ये मस्त मुस्टण्डा मन्ने एक दाण... बस एक बार..." उसने मुझसे
जैसे रिक्वेस्ट की. हालत मेरी ऐसी हो रही थी की अगर इस वक़्त ओ माना भी
करती तो सयद मैं तब भी उसकी छूट ज़रूर मरता चाहे इसके लिए मुझे उसका रेप
भी क्यू ना करना पड़ता.
मैं कुछ कहता उसके पहले वो उछल कर मेरे ऊपर चढ़ गई। उसने मेरा मोटा लण्ड
पकड़ लिया और उसे हिलाने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे उसने लंदपहली बार पकड़ा
हो वो ललचाई नज़रों से मेरे लॅंड को देख रही थी. सही भी था उसके पति का
छूटा सा मुरझाया हुआ सा लॅंड मैं देख ही चुका था. उस लॅंड से तो ये क्या
चुदी होगी.
"हाय, म्हारी बाई रे... यो तो मन्ने मस्त मारी देगो रे... " उसे मसल कर
उसने मेरे लण्ड की खूबसूरती को निहारा और अपनी चूत की दरार पर घिसने लगी।
उसकी छूट इस समय तक एकदम गीली हो चुकी थी जब उसने मेरे लॅंड को अपनी छूट
की दरार पर रगड़ा तो मेरा लॅंड एकदम से उसकी छूट के रस से सराबोर हो गया.
मेरे जवान तन में वासना सुलग उठी। मेरे जिस्म में ताकत सी भरने लगी। लण्ड
बेहद कठोर हो गया।
वो लण्ड को अपनी चूत खोल कर उसमें घुसाने लगी। पर लॅंड उसकी छूट मे जा
नही पा रहा था. वो बार बार अंदर लेने की कोशिश कर रही थी पर सयद लॅंड
बड़ा था या छूट छ्होटी थी दोनो को ही समझ नही आ रहा था. उसने इस बार लॅंड
पर खूब दबाव दिया तो धीरे से लण्ड चूत के मुख में अन्दर चला आया। मुझे एक
बहुत ही मीठा सा अहसास हुआ। उसके मुख से भी एक वासना भरी आह निकल गई।
मैने अब लॅंड को ज़ोर दे कर उसकी छूट मे लण्ड को और घुसा डाला। मुझसे रहा
नहीं जा रहा था और मैंने नीचे से चूत में लण्ड जोर से उछालने लगा पर पूरा
लॅंड अंदर नही जा रहा था ओर उसकी लॅंड अंदर लेने मे ही जान निकली जा रही
थी तो मैने पलटी मारी ओर उसके उपर आ गया ओर क जोरदार झटका मारा इसके साथ
ही लण्ड पूरी गहराई में चूत को चीरता हुआ घुस गया।
छबीली के मुख से एक जोर की चीख निकल गई, उसके आँखों से आंशु निकालने लगे
पर साथ ही मैं भी तड़प सा गया। मेरे लण्ड में एक तीखी जलन हुई जो मुझसे
सहन नही हो रही थी ओर मुझे समझ भी नही आ रहा था की ये जलन है किस चीज़ की
मुझे समझ में नहीं आया कि क्या करना चाहिये। मैंने दुबारा जोश में एक
धक्का और दे दिया।
इस बार वो फिर चीखी। मुझे भी जोर की जलन हुई।
"ओह यह क्या बला है?"
उससे दर्द सहन नही हो रहा था तो वो बोली "अब नहीं... छैला... बस करो !"
मेरा लण्ड मैने बाहर निकाल लिया। उसने अपनी चूत ऊपर उठाई तो खून के कतरे
टपकने लगे। जिसे देख कर वो ओर भी घबरा गई. समझ मे मेरी भी कुच्छ नही आ
रहा था. उससे ज़्यादा तो मैं घबरा रह था.
"अरे ये तो सुपारे के साथ की चाम फ़ट गई है... देखो खून निकल रहा है।" वो
लण्ड को निहारते हुये बोली। (अरे ये तो लॅंड के सुपरे दे साथ लगी चाँदी
फट गई है)
"और छबीली, तेरी चूत में से ये खून...?"
"वो तो पहली बार चुदी लगाई है ना...जाणे झिल्ली फ़ट गई है।" उसकी आँखों मे
खुशी के अंशु थे. (वो पहली बार चुदाई की है ना इस कारण चूत की झिल्ली फट
गई है)
"तो क्या इतने महीनों तक...?" मुझे अचंभा हुआ.
"म्हारी जलन यूँ ही तो नहीं थी ना... मन्ने तो हाथ जोड़ ने बस यो ही तो
मांगा था।" (हमारी जलन यो ही नही थी ना हमने तो हाथ जोड़ कर बस यही तो
माँगा था)
"मेरी छबीली, आह्ह... " मैंने उसे फिर से दबा लिया क्यूंकी अब मुझसे रहा
नही जा रहा था और उस पर चढ़ बैठा। घायल लण्ड को मैंने जोश में एक बार
छबीली की चूत में उतार दिया। जैसे ही लॅंड छूट मे उतरा मेरे मूह से एक
बार फिर से सिषकार निकल गई वहीं च्चबिली तो आहे भरने लगी ओर मिन्नटे करने
लगी की "होल होल घालना मेरी छूट छ्होटी से है. आभार पहली बार चूदरी है.
तोड़ो ख़याल रखज्यो" पर मुझे ये सब बाते सुनाई ही नही दे रही थी अब मुझ
पर तो उसकी जवानी भोगने का भूत सवार था. मैं आज अपने कुंवारे पन से आज़ाद
हो जाना चाहता था. साथ ही मुझे इस बात की खुशी थी की मुझे पहली बार मे ही
किस्मत से कुँवारी चूत मिल गई जिसकी छबिलि से मैने बिल्कुल आशा नही की थी
क्यूंकी वो शादी शुदा थी ओर दूसरे जिस तरह से वो कल से मुझे देख देख कर
मुश्कूराती थी मुझे लगता था की वो चलीउ किस्म की है पर वो तो बिचारी
किस्मत की मारी निकली. जवानी के जोश मे मैने एक जोरदार झटका मारा. वो एक
बार फिर बिलख उठी। मुझे भी जलन हुई। पर दोनों ने उसे स्वीकार किया और
सारे दर्द को झेल लिया। कुछ ही देर के बाद बस सुख ही सुख ही था। अब दोनो
एक दूसरे का साथ दे रहे थे जब मैं अपने लॅंड से झटका मरने लगता तो वो भी
नीचे से अपनी गांद उछाल उछाल कर चुदाई का अनद ले रही थी. " हन ओर माई डाल
दयो छैल भंवर मेरी भोसड़ी ने पूरी चोद दयो. आज मेरी मनकि पूरी कर दयो. ओ
हिंजाडो तो मारी भोस ने चोद नही सके है ओर चोदो भंवर जी ओर चोदो"
पहली बार की चुदाई में दो अनाड़ी साथ थे। हमें जिस तरह से जिस पोज में
आनन्द आया, चुदाई करने लगे। मस्ती भरी सिसकारियाँ रात भर गूंजती रही।
जैसे ये छैल और छबीली की सुहागरात थी। हम रुक रुक कर सुबह तक चुदाई करते
रहे। जवान जिस्म थे, थकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। सुबह के चार बजने को
थे।
मेरी तो चुदाई करते करते जान ही निकल गई थी। वो चुद कर जाने कब सो गई थी।
मैंने उसकी साफ़ सफ़ाई करके कपड़े पहना दिये थे। धीरे से बैठक से निकल कर
अपने कमरे में आ गया था। मैंने दरवाजा अन्दर से बन्द किया और कटे वृक्ष
की तरह से बिस्तर पर गिर पड़ा।
मुझे जाने कब गहरी नींद आ गई। जब आँख खुली तो दिन के बारह बज रहे थे।
उठने को मन नहीं कर रहा था। लण्ड पर सूजन आ गई थी। मैंने दरवाजा खोला और
फिर से सो गया। दोपहर को चार बजे नींद खुली तो मैं दैनिक क्रिया से निपट
कर नहा धोकर बैठक में आ गया। वहाँ कुर्सी पर बैठ कर रात के बारे में
सोचने लगा। लगा कि जैसे ये सब सपना था।
तभी छबीली चाय लेकर आ गई। वो भी बहुत धीरे चल रही थी। तबियत से रात को
चुद गई थी ना। फिर उसकी चूत की सील भी तो टूटी थी। वो अपनी टांगें चौड़ी
करके चल रही थी।
"दोनों की हालत ही एक जैसी है..." छबीली भी अपना मुख छिपा कर हंसने लगी।
"हाय राम जी, कांई मस्त मजो आ गयो राते..." उसने अपनी चूत पर हाथ फ़ेरते हुये कहा।
"तो छबीली... अब चार पांच दिन आराम करो... दोनों के दरवाजे तो खुल गये
है, फिर जोरदार चुदाई करेंगे।"
"चलो अब भोजन कर लो... म्हारे तो यो देखो, कैसी सूजन आ गई है, बट एन्जॉयड
वेरी मच !"
"अरे तुम तो अन्ग्रेजी जानती हो?"
"माय डियर आय एम ए पोस्ट ग्रेजुएट इन बोटेनी !" वो इतरा कर बोली।
"ओये होये सदके जावां, म्हारी समझ में तो तू तो निरी अनपढ़ छोरी है।"
"अब तुम लग रहे हो वैसे ही वैसे जैसे देहात के !"
"ये देख म्हारी हालत भी थारे जैसी ही लागे... ये लण्ड तो देख !" मेरा
सूजन से भरा लण्ड और भी मोटा हो गया था। उसने तिरछी निगाह से देखा और मुख
दबा कर हंस पड़ी।
"यो म्हारो भोसो भी देख, कई हाल है... देख तो सरी..." उसने अपना पेटीकोट
ऊंचा कर लिया। पूरी में ललाई आ गई थी, सूजन सी लगती थी। मैंने धीरे से
नीचे बैठ कर उसे चूम लिया और पेटिकोट नीचे कर दिया।
चार पांच दिन तक हम दोनों बस अंगों से ही खेलते रहे। वो मेरे लॅंड को इधर
उधर से निकलती हुई पकड़ कर दबा देती थी ओर मैं भी उसकी छूट को सहला देता
था जब हम बहुत उत्तेजित हो जाते थे तो मेरा लण्ड कोमलता से सहला कर मेरा
वीर्यपात करवा देती थी। मैं भी उसके दाने को सहला कर, हिला कर उसका पानी
निकाल देता था। मुझे लगता था वो मुझसे प्यार करने लगी है। मेरा मन भी
छबीली के बिना नहीं लगता था।
मैं सोच रहा था कि छबीली का पति यूँ तो करोड़पति था पर एक असफ़ल पति था।
पत्नी के साथ सुहागरात भी नहीं मना पाया था। उसे डॉक्टरी इलाज की
आवश्यकता थी या शायद वो नपुंसक ही था। पर यह बात उसके पति से कौन पूछे?
बिल्ली के गले में घण्टी कौन बांधे?
तो फिर वो ठीक कैसे होगा? खैर मुझे इससे क्या मुझे तो इसी कारण से तो चूत
छोड़ने को मिल रही थी.
मेरा दोस्त करण चार दिन हो गये पता नही कहाँ गायब हो गया था. साला एक
नंबर का रसिया था मैने तो उसका नाम ही रसिया रख छोडा था पता नही कहाँ
कहाँ मूह मारता फिरता था. जब भी कोई लड़की दिख जाती थी तो उसके पीछे हो
लेता था ओर कई बार तो साले की किस्मत इतनी तेज निकलती थी की पूछो मत.
साले को चूत मिल भी जाती थी ओर कई आंटी तो उसे अपने घर ले जाती थी
चुड़वाने ओर साला वहाँ ३-४ दिन रुक कर चुदाई करके ही आता था.
मैं इस मकान मे रसिया के साथ ही रहने वाला था पर अब मेरा दिल डॉल रहा था
क्यूंकी इस बार मेरी सेट्टिंग बैठ गई थी ओर मुझे एक मस्त कुँवारी चूत मिल
गई थी.
क्रमशः....................
कुँवारी छबीली -1
कुँवारी छबीली -2
कुँवारी छबीली -3
कुँवारी छबीली -4
कुँवारी छबीली -5
कुँवारी छबीली -6
--
raj sharma
"सुनो भाई, कोई कमरा मिलेगा?"
"वो सामने पूछो !"
मैंने उस हवेली को घूम कर देखा और उसकी ओर बढ़ गया। वहाँ एक लड़की
सलवार-कुर्ते में अपने गीले बालों बिखेरे हुये शायद तुलसी की पूजा कर रही
थी।
मुझे देख कर वो ठिठक गई- कूण चावे, कूण हो?
"जी, कमरा किराये पर चाहिये था।"
"म्हारे पास कोई कमरो नहीं है, आगे जावो।"
"जी, थैन्क्स !"
"रुको, कांई काम करो हो?"
"वो पीछे बड़ा ऑफ़िस है ना, उसी में काम करता हूँ।"
"थारी लुगाई कटे है?"
"ओह, मेरी शादी नहीं हुई है अभी !" मैं समझ गया गया था कि बिना परिवार के
ये मकान नहीं देने वाली।
"कांईं जात हो...?"
मैंने उसे बताया तो वो हंस पड़ी, मुझे ऊपर से नीचे तक देखा, फिर वो बिना
कुछ कहे भीतर चली गई।
मैं निराश हो कर आगे बढ़ गया।
लाऊड स्पीकर की तेज आवाज, भीड़ भाड़ में, महमानो के बीच में मैं अपने दोस्त
करण को ढूंढ रहा था। सभी अपने कामों में मगन थे। एक तरफ़ खाना चल रहा था।
आज मैंने होटल में खाना नहीं खाया था, करण के यहाँ पर खाना जो था।
"शी ... शी ... ऐ ..."
एक महिला घाघरे चूनर में अपने को घूंघट में छुपाये हुये मुझे हाथ हिला कर
बुला रही थी। मैं असमन्जस में पड़ गया। फिर सोचा कि किसी ओर को बुला रही
होगी।
उसने अपना घूंघट का पल्लू थोड़ा सा ऊपर किया और फिर से मुझे बुलाया।
मैंने इशारे से कहा- क्या मुझे बुला रही है?
"आप अटे कई कर रिया हो?"
"आप मुझे जानती हो?"
"हीः ... कई बाबू जी, मन्ने नहीं पहचानो? अरे मूं तो वई हूँ हवेली वाली,
अरे वो पीपल का पेड़ ..."
"ओह, हाँ ... हा... बड़ी सुन्दर लग रही हो इस कपड़ों में तो..."
"अरे बहू, काई करे है रे, चाल काम कर वटे, गैर मर्दां के साथ वाता करे है।"
"अरे बाप रे ... मेरी सास।" और वो मेरे पास से भाग गई। मैं भोजन आदि से
निवृत हो कर जाने को ही था की दरवाजे पर ही वो फिर मिल गई। मुझे उसने
मेरी बांह पकड़ कर एक तरफ़ खींच लिया।
"अब क्या है?" मैं खीज उठा।
"म्हारे को भूल पड़ गई, म्हारे घर माईने ही कल सवेरे कमरो खाली हो गयो है
... आप सवेरे जरूर पधारना !"
मैंने खुशी के मारे उसका हाथ जोर से दबा दिया।
"शुक्रिया... आपका नाम क्या है?"
"थाने नाम कांई करनो है ... छबीली नाम है म्हारो, ओर थारा?"
"नाम से क्या करना है ... वैसे मेरा नाम छैल बिहारी है !" मैंने उसी की
टोन में कहा।
"ओये होये ... छैलू ... हीः हीः !" हंसते हुये वो आँखों से ओझल हो गई।
मेरी आँखें उसे भीड़ में ढूंढती रह गई।
मैं सवेरे ही छबीली के यहाँ पहुँच गया। मैंने घण्टी बजाई तो एक चटख मटक
लड़की ने दरवाजा खोला। टाईट जींस और टी शर्ट पहने वो लड़की बला की सेक्सी
लग रही थी। खुले बालों की मुझे एक महक सी आई।
"जी वो... मुझे छबीली से मिलना है..."
"माईने पधारो सा..." उसकी मीठी सी मुस्कान से मैं घायल सा हो गया।
"जी वो मुझे कमरा देखना है..."
"थां कि जाने कई आदत है, अतरी बार तो मिल्यो है ... पिछाणे भी को नी...?"
"ओह क्या ? आप ही छबीली हैं...?"
वो जोर से हंस दी। मैं अंसमजंस में बगले झांकने लगा। कमरा बड़ा था, सभी
कुछ अच्छा था... और सबसे अच्छा तो छबीली का साथ था। मैं कमरे से अधिक उसे
देख रहा था।
वो फिर आँखें मटकाते हुये बोली- ओऐ, कमरा देखो कि मन्ने ...?"
फिर खिलखिला कर हंस दी।
मैं उसी शाम को अपने कमरे में सामान वगैरह ले आया। वो मेरा पीछा ही नहीं
छोड़ रही थी। इस बार वो सलवार-कुर्ता पहने हुई थी।
"घर के और सदस्य कहाँ हैं?"
"वो... वो तो राते आवै है... कोई आठ बजे, बाकी तो साथ को नी रेहवै..."
"मतलब...?" "म्हारे इनके हिस्से के पांती आयो है ... सो अठै ही एकलो रहवा करे !"
मैं अपने बिस्तर पर आराम कर ही रहा था कि मुझे छबीली की चीख सुनाई दी।
मैं तेजी से उठ कर वहा पहुँचा। वो पानी से फिसल गई थी और वहीं गिरी पड़ी
थी।
मैंने तुरन्त उसे अपनी बाहों में उठा लिया और उसके बेडरूम में ले आया।
उसके पांव में चोट लगी थी।उसने अपनी खूबसूरत पैरो पर से सलवार ऊपर कर दी।
लगी नहीं थी, बस वहाँ सूजन आ गई थी। मैंने बाम लाकर उसके पैरों पर मलना
आरम्भ कर दिया। मेरे हाथ लगाते ही वो सिहर उठी। मुझे उसकी सिरहन का अहसास
हो गया था। मैंने जान कर के अपना हाथ थोड़ा सा उसकी जांघों की तरफ़ सहला
दिया। उसने जल्दी से सलवार नीचे दी और मुझे निहारने लगी। फिर वो शरमा गई।
"ऐ ... यो काई करो ... मन्ने तो गुदगुदी होवै !" वो शरमा कर उठ गई और
अपना मुख हाथों से ढांप लिया।
मुझे स्वयं ही उसकी इस हरकत पर आनन्द आ गया। एक जवान खूबसूरत लड़की की
जांघों को सहलाना ... हाय, मेरी किस्मत ...।
"छबीली, तुम्हें पता है कि तुम कितनी सुन्दर हो?"
"छैल जी, यूं तो मती बोलो, मन्ने कुछ कुछ होवै है।"
"सच, आपका बदन कैसा चिकना है ... हाथ लगाने का जी करता है !"
उसकी बड़ी बड़ी आँखें मेरी तरफ़ उठ गई। उनमे अब प्रेम नजर आ रहा था। उसके
हाथ अनायास ही मेरी तरफ़ बढ़ गये।
"मन्ने तो आप कोई जादूगर लगे हो ... फिर से कहो तो..."
"आपका जिस्म जैसे तराशा हुआ है ... कोई कलाकर की कृति हो, ईश्वर ने
तुम्हें लाखो में एक बनाया है !"
"हाय छैलू ! इक दाण फ़ेर कहो, म्हारे सीने में गुदगुदी होवै है।"
वो जैसे मन्त्र मुग्ध सी मेरी तरफ़ झुकने लगी। मैंने उसकी इस कमजोरी का
फ़ायदा उठाया और मैं भी उसके चेहरे की तरफ़ झुक गया। कुछ ही देर में वो
मेरी बाहों में थी। वो मुझे बेतहाशा चूमने लगी थी। उसका इतनी जल्दी मेरी
झोली में गिर जाना मेरी समझ में नहीं आया था।
मैं तुरन्त आगे बढ़ चला... धीरे से उसके स्तनों को थाम लिया। उसने बड़ी बड़ी
आँखों से मुझे देखा और मेरा हाथ अपने सीने से झटक दिया। मुझे मुस्करा कर
देखा और अपने कमरे की ओर भाग गई। उसकी इस अदा पर मेरा दिल जैसे लहूलुहान
हो गया।
उसके पति शाम को मेरे से मिले, फिर स्नान आदि से निवृत हो कर दारू पीने
बैठ गये। लगभग ग्यारह बज रहे थे। मैं अपनी मात्र एक चड्डी में सोने की
तैयारी कर रहा था। तभी दोनों मियां बीवी के झगड़े की आवाजें आने लगी।
मियां बीवी के झगड़े तो एक साधारण सी बात थी सो मैंने बत्ती बंद की और लेट
गया।
अचानक मेरे कमरे की बत्ती जल गई। मैं हड़बड़ा गया... मैं तो मात्र एक छोटी
सी चड्डी में लेटा हुआ था।...
"चलो, आज थन्ने एक बात बताऊँ?" उसके गाल तमतमा रहे थे। वो बुरी तरह से
गुस्से मे लग रही थी.
"अरे मुझे कपड़े तो पहनने दो..." मैने उसे रोके की गरज से कहा क्यूंकी
मुझे उनके खरेलो मामलो मे अपने आप को घसीटे जाना ठीक नही लग रहा था ओर
मैं अपने आप को इस सब से अलग रखना चटा था.
"कपड़ा री ऐसी की तैसी... अटै कूण देखवा वास्ते आ रियो है?" के कहते हुए
उसने मुझे घसीटना सुरू कर दिया. अब मुझे बेमान से ही उसके साथ जाना पड़ा.
उसने मेरा हाथ पकड़ा और खींच के ले चली। अपना कमरा धड़ाक से खोला, ओर कहा
"यो देखे है काई ! देख्या कि नाहीं... यो हरामी नागो फ़ुगो दारू पी ने
पड़यो है।" उसने अपने पति की तरफ इशारा करते हुए कहा. मैने देखा उसका पति
एकदम नंगा बिस्तर पर पड़ा हुआ था. उसने इतनी दारू पी रखी थी की उसे
बिल्कुल होश नही था की उसने कपड़े पहने है या नही. मैने उसे देखते ही कहा
"अरे ये क्या... चलो बाहर चलो...!"
"अरे आ तो सरी... ये देख... लाण्डो तो देख, भड़वा का उठे ही को नी... भेन
चोद !" वो एकदम गुस्से मे मुझे पूरी तरह से घसीटते हुए कमरे मे ले गई ओर
उसने उसके पास जाकर उसका ढीला ढाला लण्ड रबड़ की तरह पकड़ कर हिला दिया।
फिर उसने उसकी पीठ पर दो तीन घूंसे मारे दिये। जैसे उससे किसी बात का
बदला लेना चाहती है
"साला... हरामी... हीजड़ा...!" लगातार उसकी ज़ुबान से अपने पति के लिए
गालियाँ निकल रही थी.
"बस गाली मत दे... चल आ जा...!" मैने उसे रोकने की गरज से कहा.
"यो हराम जादो, मेरे हागे सोई ही ना सके... बड़ा मरद बने है !" उसने अपने
पति को एक लात ओर जमा दी. ओर फिर वो रोने लगी.
वो धीरे से सुबक उठी और मेरे पैरों के नजदीक रोती हुई बैठ गई। मुझे पता
था कि इसके दिल की भड़ास निकल जायेगी तो यह शांत हो जायेगी। मैं उसे
खींचते हुये बाहर ले आया। उसके मचलने पर मैंने उसे अपनी बाहों में उठा
लिया और बैठक में ले आया। उसने मेरी गले में अपनी बाहें डाल दी और लिपट
सी गई। मेरी तो एक तरह से ऐश हो गई थी इतनी खूबसूरत लड़की मेरी बाहों मे
थी. वो बेचारी तो रो रही थी ओर मैं उसकी चुचियों का अपने सीने पर एहसास
पा कर खुश हो रहा था ओर मेरा लॅंड खड़ा होता जा रहा था.
वो बहुत गुस्से में थी... अपने आपे में नहीं थी।वो मुझ से अलग हुई ओर
उसने अपना कमीज उतार फ़ेंका।
"ये देख छैला, मेरी चूचियाँ देख... कैसी नवी नवेली हैं !" उसने अपनी
चुचियों को अचानक मेरे सामने करते हुए कहा.
आह ! अचानक इस हमले के लिये मैं तैयार नहीं था। उसकी चूचियाँ गोल कटोरी
जैसे सीधे तनी हुई... जिनमें झुकाव जरा भी नहीं था, मेरे मन को बींध गई,
मेरी सांस फ़ूल सी गई। ओर मेरी आँखें वही जा कर अटक गई थी. इतनी खूबसूरत
चुचियाँ मैने पहली बार देखी थी. इनफॅक्ट मैने तो चुचियाँ ही पहली बार
देखी थी. वो भी इतनी खूबसूरत की नज़र हटाए नही हट रही थी. मैने सोचा की
बेटा अगर ऐसे ही देखता रहेगा तो तेरे हाथ से गया कमरा पर क्या करता ना तो
दिल पर ज़ोर चलता है ना लॅंड पर. क्यूंकी अब तो लंड भी दिल का साथ देने
लगा था ओर टन कर खड़ा था.
"और ये देख, साली इस चूत को... किसके किस्मत होगी मेरी ये चूत... प्यासी
की प्यासी... रस भरी... वो भड़वा... भेन चोद... मेरा मरद नहीं चोदेगा तो
और कूण फ़ोड़ेगा इन्ने...?" कहते हुए उसेन अपने घग्रे को उपर कर दिया. मुझे
एक झांट का जंगल नज़र आया. आज तक ना चूत देखी थी ना चुचियाँ. ओर आज
किस्मत देखो देखने को मिली तो भी तो साथ मे.
मेरा दिल जैसे मेरे उछल कर मेरे गले में आ गया। यह क्या हो रहा है मेरे ईश्वर !
फिर अचानक वो जैसे चुप सी हो गई।
"हाय, मैंने ये क्या कर दिया..." जैसे होश में आई हो। अब वो एकदम शर्मा
गई ओर उसने अपनी नज़रें नीचे करली
"नहीं, कोई बात नहीं... मन की आग थी... निकल गई !" मैने उसे दिलासा देने
की गरज से कहा. साथ ही ये भी दर था की अगर नाराज़ हो गई तो साला मेरा ही
कमरा छिनएगा. इस कारण मेरी गांद भी फट रही थी की नाराज़ ना हो जाए.
उसने नजर नीची करके कहा,"अभी जाना नहीं, मैं चाय बना कर लाती हूँ... मेरे
पास कुछ देर बैठना..."
वो चाय बनाने चली गई। मेरी नजरें जैसे ही नीचे गई मैं शरमा गया। मेरा
लण्ड जाने कबसे खड़ा हुआ था। मैंने उसे नीचे दबाने की कोशिश की।
"यो तो यूँ ही रहेगो... जतरा नीचे दबाओगे उतना ऊँचो आवेगो !" उसकी
खिलखिलाहट कमरे में तैर गई।
फिर वो चाय बनाने चली गई। चाय बना कर वो जल्दी ही ले आई। उसने चाय मेरे
हाथ में पकड़ा दी। लण्ड स्वतन्त्र हो कर मेरी चड्डी को फ़ाड़ने के लिये जोर
लगाने लगा। वो मेरे लण्ड की हालत देख कर खिलखिला उठी। मेरी शर्म के मारे
बुरी हालत थी.
मैने घबराते हुए कहा "अरे वो... ओह क्या करूँ?"
उसकी आवाज़ मे वही खनक थी "कुछ नहीं, मरद का लण्ड है, वो तो जोर मारेगा
ही..." वो लगातार मेरे लॅंड को ही घुरे जा रही थी जो मेरी छ्होटी से
चड्डी मे च्छूपने की नाकाम कोशिश कर रहा था. कभी मैं उस पर एक हाथ रखता
तो कभी दूसरा क्यूंकी
मैं बुरी तरह उसकी बातों से झेंप गया।
"ये देख, मैं भी मर्दानी हूँ... ये मेरा सीना देख... और नीचे मेरी ये..."
उसने चादर उतारते हुये कहा।
मैंने उसके मुख पर हाथ रख दिया।मुझे उसकी बातों से शर्म महसूस हो रही थी
जबकि वो पता नही आज क्यू बेशर्म हुई जा रही ति चाय पीकर वो मेरे और करीब
आ गई।
"छैलू, मुझे एक बार बस, मर्दों वाला आनन्द दे दो..." उसने कातर शब्द मेरे
दिल को चीर गये। मुझ पर हमले पर हमले हो रहे थे। भला कैसे सहता ये सब...।
यह तो चुदाई की बात करने लगी थी।
"पर आपका पति...?" मैने अपने दिल की शंका जाहिर की छोड़ना तो मैं भी
चाहता था उस कंटीली नार को. उसके अंग देख कर मेरा लॅंड तो जैसे आज चड्डी
फाड़ने को ही बेताब नज़र आ रहा था.
"बस... उस भड़वे ने सूया ही रेवण दो..." फिर जैसे चेहरे से तनाव हट गया।
कुछ ही पलों में वो मुस्करा रही थी। मुझे उसने धक्का देकर बिस्तर पर चित
गिरा दिया और मेरी चड्डी खींच कर उतारने लगी। जैसे ही मेरी चड्डी मेरे
लॅंड से अलग हुई वो एकदम फुफ्कार कर उसके मूह के पास आ गया.
"छैला, बस ये मस्त मुस्टण्डा मन्ने एक दाण... बस एक बार..." उसने मुझसे
जैसे रिक्वेस्ट की. हालत मेरी ऐसी हो रही थी की अगर इस वक़्त ओ माना भी
करती तो सयद मैं तब भी उसकी छूट ज़रूर मरता चाहे इसके लिए मुझे उसका रेप
भी क्यू ना करना पड़ता.
मैं कुछ कहता उसके पहले वो उछल कर मेरे ऊपर चढ़ गई। उसने मेरा मोटा लण्ड
पकड़ लिया और उसे हिलाने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे उसने लंदपहली बार पकड़ा
हो वो ललचाई नज़रों से मेरे लॅंड को देख रही थी. सही भी था उसके पति का
छूटा सा मुरझाया हुआ सा लॅंड मैं देख ही चुका था. उस लॅंड से तो ये क्या
चुदी होगी.
"हाय, म्हारी बाई रे... यो तो मन्ने मस्त मारी देगो रे... " उसे मसल कर
उसने मेरे लण्ड की खूबसूरती को निहारा और अपनी चूत की दरार पर घिसने लगी।
उसकी छूट इस समय तक एकदम गीली हो चुकी थी जब उसने मेरे लॅंड को अपनी छूट
की दरार पर रगड़ा तो मेरा लॅंड एकदम से उसकी छूट के रस से सराबोर हो गया.
मेरे जवान तन में वासना सुलग उठी। मेरे जिस्म में ताकत सी भरने लगी। लण्ड
बेहद कठोर हो गया।
वो लण्ड को अपनी चूत खोल कर उसमें घुसाने लगी। पर लॅंड उसकी छूट मे जा
नही पा रहा था. वो बार बार अंदर लेने की कोशिश कर रही थी पर सयद लॅंड
बड़ा था या छूट छ्होटी थी दोनो को ही समझ नही आ रहा था. उसने इस बार लॅंड
पर खूब दबाव दिया तो धीरे से लण्ड चूत के मुख में अन्दर चला आया। मुझे एक
बहुत ही मीठा सा अहसास हुआ। उसके मुख से भी एक वासना भरी आह निकल गई।
मैने अब लॅंड को ज़ोर दे कर उसकी छूट मे लण्ड को और घुसा डाला। मुझसे रहा
नहीं जा रहा था और मैंने नीचे से चूत में लण्ड जोर से उछालने लगा पर पूरा
लॅंड अंदर नही जा रहा था ओर उसकी लॅंड अंदर लेने मे ही जान निकली जा रही
थी तो मैने पलटी मारी ओर उसके उपर आ गया ओर क जोरदार झटका मारा इसके साथ
ही लण्ड पूरी गहराई में चूत को चीरता हुआ घुस गया।
छबीली के मुख से एक जोर की चीख निकल गई, उसके आँखों से आंशु निकालने लगे
पर साथ ही मैं भी तड़प सा गया। मेरे लण्ड में एक तीखी जलन हुई जो मुझसे
सहन नही हो रही थी ओर मुझे समझ भी नही आ रहा था की ये जलन है किस चीज़ की
मुझे समझ में नहीं आया कि क्या करना चाहिये। मैंने दुबारा जोश में एक
धक्का और दे दिया।
इस बार वो फिर चीखी। मुझे भी जोर की जलन हुई।
"ओह यह क्या बला है?"
उससे दर्द सहन नही हो रहा था तो वो बोली "अब नहीं... छैला... बस करो !"
मेरा लण्ड मैने बाहर निकाल लिया। उसने अपनी चूत ऊपर उठाई तो खून के कतरे
टपकने लगे। जिसे देख कर वो ओर भी घबरा गई. समझ मे मेरी भी कुच्छ नही आ
रहा था. उससे ज़्यादा तो मैं घबरा रह था.
"अरे ये तो सुपारे के साथ की चाम फ़ट गई है... देखो खून निकल रहा है।" वो
लण्ड को निहारते हुये बोली। (अरे ये तो लॅंड के सुपरे दे साथ लगी चाँदी
फट गई है)
"और छबीली, तेरी चूत में से ये खून...?"
"वो तो पहली बार चुदी लगाई है ना...जाणे झिल्ली फ़ट गई है।" उसकी आँखों मे
खुशी के अंशु थे. (वो पहली बार चुदाई की है ना इस कारण चूत की झिल्ली फट
गई है)
"तो क्या इतने महीनों तक...?" मुझे अचंभा हुआ.
"म्हारी जलन यूँ ही तो नहीं थी ना... मन्ने तो हाथ जोड़ ने बस यो ही तो
मांगा था।" (हमारी जलन यो ही नही थी ना हमने तो हाथ जोड़ कर बस यही तो
माँगा था)
"मेरी छबीली, आह्ह... " मैंने उसे फिर से दबा लिया क्यूंकी अब मुझसे रहा
नही जा रहा था और उस पर चढ़ बैठा। घायल लण्ड को मैंने जोश में एक बार
छबीली की चूत में उतार दिया। जैसे ही लॅंड छूट मे उतरा मेरे मूह से एक
बार फिर से सिषकार निकल गई वहीं च्चबिली तो आहे भरने लगी ओर मिन्नटे करने
लगी की "होल होल घालना मेरी छूट छ्होटी से है. आभार पहली बार चूदरी है.
तोड़ो ख़याल रखज्यो" पर मुझे ये सब बाते सुनाई ही नही दे रही थी अब मुझ
पर तो उसकी जवानी भोगने का भूत सवार था. मैं आज अपने कुंवारे पन से आज़ाद
हो जाना चाहता था. साथ ही मुझे इस बात की खुशी थी की मुझे पहली बार मे ही
किस्मत से कुँवारी चूत मिल गई जिसकी छबिलि से मैने बिल्कुल आशा नही की थी
क्यूंकी वो शादी शुदा थी ओर दूसरे जिस तरह से वो कल से मुझे देख देख कर
मुश्कूराती थी मुझे लगता था की वो चलीउ किस्म की है पर वो तो बिचारी
किस्मत की मारी निकली. जवानी के जोश मे मैने एक जोरदार झटका मारा. वो एक
बार फिर बिलख उठी। मुझे भी जलन हुई। पर दोनों ने उसे स्वीकार किया और
सारे दर्द को झेल लिया। कुछ ही देर के बाद बस सुख ही सुख ही था। अब दोनो
एक दूसरे का साथ दे रहे थे जब मैं अपने लॅंड से झटका मरने लगता तो वो भी
नीचे से अपनी गांद उछाल उछाल कर चुदाई का अनद ले रही थी. " हन ओर माई डाल
दयो छैल भंवर मेरी भोसड़ी ने पूरी चोद दयो. आज मेरी मनकि पूरी कर दयो. ओ
हिंजाडो तो मारी भोस ने चोद नही सके है ओर चोदो भंवर जी ओर चोदो"
पहली बार की चुदाई में दो अनाड़ी साथ थे। हमें जिस तरह से जिस पोज में
आनन्द आया, चुदाई करने लगे। मस्ती भरी सिसकारियाँ रात भर गूंजती रही।
जैसे ये छैल और छबीली की सुहागरात थी। हम रुक रुक कर सुबह तक चुदाई करते
रहे। जवान जिस्म थे, थकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। सुबह के चार बजने को
थे।
मेरी तो चुदाई करते करते जान ही निकल गई थी। वो चुद कर जाने कब सो गई थी।
मैंने उसकी साफ़ सफ़ाई करके कपड़े पहना दिये थे। धीरे से बैठक से निकल कर
अपने कमरे में आ गया था। मैंने दरवाजा अन्दर से बन्द किया और कटे वृक्ष
की तरह से बिस्तर पर गिर पड़ा।
मुझे जाने कब गहरी नींद आ गई। जब आँख खुली तो दिन के बारह बज रहे थे।
उठने को मन नहीं कर रहा था। लण्ड पर सूजन आ गई थी। मैंने दरवाजा खोला और
फिर से सो गया। दोपहर को चार बजे नींद खुली तो मैं दैनिक क्रिया से निपट
कर नहा धोकर बैठक में आ गया। वहाँ कुर्सी पर बैठ कर रात के बारे में
सोचने लगा। लगा कि जैसे ये सब सपना था।
तभी छबीली चाय लेकर आ गई। वो भी बहुत धीरे चल रही थी। तबियत से रात को
चुद गई थी ना। फिर उसकी चूत की सील भी तो टूटी थी। वो अपनी टांगें चौड़ी
करके चल रही थी।
"दोनों की हालत ही एक जैसी है..." छबीली भी अपना मुख छिपा कर हंसने लगी।
"हाय राम जी, कांई मस्त मजो आ गयो राते..." उसने अपनी चूत पर हाथ फ़ेरते हुये कहा।
"तो छबीली... अब चार पांच दिन आराम करो... दोनों के दरवाजे तो खुल गये
है, फिर जोरदार चुदाई करेंगे।"
"चलो अब भोजन कर लो... म्हारे तो यो देखो, कैसी सूजन आ गई है, बट एन्जॉयड
वेरी मच !"
"अरे तुम तो अन्ग्रेजी जानती हो?"
"माय डियर आय एम ए पोस्ट ग्रेजुएट इन बोटेनी !" वो इतरा कर बोली।
"ओये होये सदके जावां, म्हारी समझ में तो तू तो निरी अनपढ़ छोरी है।"
"अब तुम लग रहे हो वैसे ही वैसे जैसे देहात के !"
"ये देख म्हारी हालत भी थारे जैसी ही लागे... ये लण्ड तो देख !" मेरा
सूजन से भरा लण्ड और भी मोटा हो गया था। उसने तिरछी निगाह से देखा और मुख
दबा कर हंस पड़ी।
"यो म्हारो भोसो भी देख, कई हाल है... देख तो सरी..." उसने अपना पेटीकोट
ऊंचा कर लिया। पूरी में ललाई आ गई थी, सूजन सी लगती थी। मैंने धीरे से
नीचे बैठ कर उसे चूम लिया और पेटिकोट नीचे कर दिया।
चार पांच दिन तक हम दोनों बस अंगों से ही खेलते रहे। वो मेरे लॅंड को इधर
उधर से निकलती हुई पकड़ कर दबा देती थी ओर मैं भी उसकी छूट को सहला देता
था जब हम बहुत उत्तेजित हो जाते थे तो मेरा लण्ड कोमलता से सहला कर मेरा
वीर्यपात करवा देती थी। मैं भी उसके दाने को सहला कर, हिला कर उसका पानी
निकाल देता था। मुझे लगता था वो मुझसे प्यार करने लगी है। मेरा मन भी
छबीली के बिना नहीं लगता था।
मैं सोच रहा था कि छबीली का पति यूँ तो करोड़पति था पर एक असफ़ल पति था।
पत्नी के साथ सुहागरात भी नहीं मना पाया था। उसे डॉक्टरी इलाज की
आवश्यकता थी या शायद वो नपुंसक ही था। पर यह बात उसके पति से कौन पूछे?
बिल्ली के गले में घण्टी कौन बांधे?
तो फिर वो ठीक कैसे होगा? खैर मुझे इससे क्या मुझे तो इसी कारण से तो चूत
छोड़ने को मिल रही थी.
मेरा दोस्त करण चार दिन हो गये पता नही कहाँ गायब हो गया था. साला एक
नंबर का रसिया था मैने तो उसका नाम ही रसिया रख छोडा था पता नही कहाँ
कहाँ मूह मारता फिरता था. जब भी कोई लड़की दिख जाती थी तो उसके पीछे हो
लेता था ओर कई बार तो साले की किस्मत इतनी तेज निकलती थी की पूछो मत.
साले को चूत मिल भी जाती थी ओर कई आंटी तो उसे अपने घर ले जाती थी
चुड़वाने ओर साला वहाँ ३-४ दिन रुक कर चुदाई करके ही आता था.
मैं इस मकान मे रसिया के साथ ही रहने वाला था पर अब मेरा दिल डॉल रहा था
क्यूंकी इस बार मेरी सेट्टिंग बैठ गई थी ओर मुझे एक मस्त कुँवारी चूत मिल
गई थी.
क्रमशः....................
कुँवारी छबीली -1
कुँवारी छबीली -2
कुँवारी छबीली -3
कुँवारी छबीली -4
कुँवारी छबीली -5
कुँवारी छबीली -6
--
raj sharma
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