लेखक : जीत शर्मा
दोस्तो,
मेरा नाम जीत है। बात उस समय की है जब मैं इस कंपनी में नया नया आया था।
काम का बोझ ज्यादा था, या यूँ कहो कि नई नई नौकरी थी सो लगभग रोज़ ही शाम
को लेट हो जाया करता था। ऑफिस आने जाने के लिए मैंने मोटर साइकिल रखा था।
उस दिन भी मैं ऑफ़िस से कोई 8 बजे निकला था। जब मैं क्लब पार्क (बंजात्रा
हिल्स) से गुजर रहा था तो सड़क के किनारे एक लड़की अपनी स्कूटी के पास
खाड़ी हाथ से रूकने का इशारा कर रही थी। मैंने ठीक उसके पास जाकर जोर से
ब्रेक लगाया तो उसकी चीख निकलते निकलते बची।
मैंने अपना हेल्मेट उतारा और पूछा- क्या बात है मैडम?
"ओह...!" वो अपने आपको संभालते हुए बोली- मेरी स्कूटी खराब हो गई है ...!
और आस पास कोई मैकेनिक भी नही हैं.. प्लीज.. आप...?
"कोई बात नहीं, मैं देखता हूँ..."
हालांकि मैं कोई मैकेनिक नहीं हूँ पर इतनी सुंदर लड़की को देख कर मेरे
मुँह में भी लार टपकने लगी थी। साली ये साऊथ की लड़कियाँ भी थोड़ी साँवली
तो जरूर होती हैं पर इनकी आँखें और नितम्ब तो बस जानमारू ही होते हैं। और
फिर इस चिड़िया का तो कहना ही क्या था। मोटी मोटी आँखें, भारी नितम्ब और
गोल गोल कंधारी अनार से वक्ष।
इन चूचों में पता नहीं कितना दूध भरा होगा। लोग दूध की किल्लत और कीमत को
लेकर आजकल परेशान रहते हैं। पागल हैं इन स्तनों में भरे दूध की ओर इनका
ध्यान पता नहीं क्यों नहीं जाता।
स्कूटी के प्लग में कचरा फंस गया था, साफ करते ही चालू हो गई। मैंने जोर
से 3-4 बार रेस दी और हॉर्न भी बजाया।
"लीजिए...!" "आपकी घोड़ी सवारी के लिए तैयार हो गई है ! स्कूटी महारानी
राज़ी ही गई.. मिस..!"
उसने कृतज्ञता भरी नज़रों से मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखा और फिर बोली-
थैंक यू ! मेरा नाम आरती सुब्रमण्यम है... आपका बहुत बहुत धन्यवाद !"
उसकी कातिलाना मुस्कुराहट और नशीली नज़रों को देख कर मैं तो मर ही मिटा था।
"मुझे जीत कहते हैं। मैं यहाँ एक प्राइवेट कंपनी में काम करता हूँ।"
"ओह... थैंक यू मिस्टर जीत..." उसने स्कूटी के हैंडल को पकड़ा तो अनजाने
में उसका हाथ मेरे हाथों से छू गया।
वाह.. क्या नाज़ुक अहसास था।
अब मैंने ध्यान से उसका चेहरा देखा। कोई 30-31 की तो जरूर होगी। ओह..
साली शादीशुदा है। साड़ी पहने कमाल की लग रही है।
"धन्यवाद की आवशकता नहीं है आरतीजी !"
"नहीं मैं पिछले आधे घंटे से देख रही थी, किसी ने मेरी हेल्प नहीं की।"
"कोई बात नहीं... यह तो मेरा फ़र्ज़ था।" मैंने मुस्कुरा कर कहा।
"आप कहाँ रहते हैं?"
"मैं पास में ही शकुंतलम् मार्ग पर निकुंज अपार्टमेंट में रहता हूँ.. और आप?"
"मैं 23-सामंत नगर में रहती हूँ, मेरे मिस्टर दुबई में जॉब कर रहे हैं..!"
"आपसे मिल कर बहुत खुशी हुई... आप अकेली हैं, कभी किसी काम की जरूरत हो
तो मुझे याद कर लीजिएगा !" मैने अपना विज़िटिंग कार्ड निकल कर उसे दिया।
बात आई-गई हो गई। मैं तो उस बात को भूल ही गया था, अचानक एक दिन उसकी
मोबाइल काल आई। इधर उधर की बातें करने के बाद उसने बताया कि उसे कुछ
शॉपिंग करनी है।
मेरे लिए तो यह स्वर्णिम अवसर था और फिर उसके बाद तो हम आपस में खुल गये।
कई बार ऑफ़िस आते-जाते उसे हाय-हेलो होने लगी। मुझे लगा इस मुर्गी को हलाल
किया जा सकता है पर घुमा फिरा कर जब भी मैं सेक्स की बात पर आता तो वो झट
टॉपिक बदल देती या फिर हँसने लगती।
हँसते हुए उसकी गालों में पड़ने वाले डिंपल तो मेरे 7" के लंड को बेकाबू
घोड़ा ही बना देते। मैं जानता था साऊथ की औरतें जितनी धार्मिक होती हैं
उतनी ही सेक्सी भी होती हैं और आरती कमाल की खूबसूरत तो थी ही, साथ में
सेक्सी भी थी।
वो शनिवार का दिन था, रात के कोई 10 बजे होंगे, मैं टीवी देख रहा था,
अचानक उसका फोन आया- क्या कर रहे हो? उसने पूछा।
मन में तो आया कि कह दूँ- मूठ मार रहा हूँ !
पर मैंने कहा- बस आपको ही याद कर रहा था।
वो खिलखिला कर हंस पड़ी- झूठे कहीं के..!
"क्यों क्या हुआ?"
"रात को क्या किसी को याद किया जाता है?"
"तो क्या किया जाता है?"
"ओह...सॉरी...!"
"क्या हुआ?"
"कुछ नही !"
"नहीं आप कुछ बोलना चाहती थी पर.... नहीं बता रही हैं !"
"नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, एक्चुअली मुझे नींद नहीं आ रही थी, मैं बोर
हो रही थी, सोचा कि तुमसे बात कर लूँ !"
"ओह.. फोन पर बातों में कहाँ मज़ा आता है?"
"तो फिर मज़ा कैसे आता है?"
"वो तो आमने सामने बैठ कर ही आता है !"
"तो आमने सामने बैठ कर कर लो जी !"
"ओह... थैंक यू आरती ! पर आप बुलाती कहाँ हैं?"
"तो क्य अब निमंत्रण पत्र भेजूँ... बुद्धू कहीं के !" और उसने फोन काट
दिया। यह कहानी आप हिंदी सेक्सी कहानियाँ पर पढ़ रहे हैं।
मैं भी मोटी अक्ल हूँ ! इस लंबी रेस की घोड़ी को इतने दिन ऐसी ही छोड़
दिया। मेरा लंड तो उछलने ही लगा, इतना खुला निमंत्रण पाकर मुझे तो अपनी
किस्मत पर यकीन ही नहीं हुआ। हे भगवान, तूने तो छप्पर फाड़ कर इतनी मस्त
हसीना मेरी बाहों में डाल दी है !
मैं इस सुनहरे मौके को भला कैसे गंवाता? मैं तो उछलते हुए उसके घर की ओर दौड़ पड़ा।
वो गेट पर खड़ी जैसे मेरा इंतज़ार ही कर रही थी। काली साड़ी और कसे
ब्लाउज़ में वो पूरी कयामत ही लग रही थी। होंठों पर लाली और बालों में
ग़ज़रा !
अंदर आकर मैंने उसे बाहों में भर लिया और इतने जोर से दबाया की उसकी चीख
ही निकल गई।
"आआ....ई ईई ईईई ! क्या करते हो मुझे मार ही डालोगे क्या?"
"अरे मेरी जान, तुमने मुझे बहुत तड़फाया है !" और मैंने तड़ातड़ कई चुम्बन
उसके गालों पर ले लिए और उसे बाहों में भर कर बिस्तर पर पटक दिया।
"ओह.. तुमसे तो जरा भी सब्र नहीं होता.. तुम भी अय्यर की तरह बहुत उतावले हो.."
"मेरी जान, अब तुम जैसी खूबसूरत बाला को देख कर कोई अपने आप पर काबू कैसे
रख सकता है?"
"जितना चोदना है चोदो मुझे, बहुत दिनों से मैं लंड के लिए तरस रही हूँ !"
हमने अपने कपड़े उतार दिए, अब वो सिर्फ ब्रा और पैंटी में ही रह गई थी,
उसने मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगी। मैं तो उस अनोखे
मज़े से जैसे भर ही उठा। कोई 7-8 मिनट उसने जरूर चूसा होगा, अब मैंने
उसकी पैंटी उतार दी। क्लीन शेव चूत देख कर मैं तो निहाल ही हो गया, मैंने
झट से उसकी चूत को मुँह में भर लिया और चूसने लगा। उसने मेरा सिर पकड़ कर
अपनी चूत पर दबाना चालू कर दिया और उसकी मीठी सीत्कारें निकलने लगी।
"ओह... जीत अब मत तरसाओ ! प्लीज अब अंदर डाल दो !" वो सिसकारी भरते हुए बोली।
मैंने अपना तन्नाया लंड उसकी गीली चूत पर लगाया और एक ही झटके में आधा
लंड उसकी कुलबुलाती चूत में डाल दिया। मैंने उसे अपनी बाहों में कस लिया
और 4-5 धक्के जोर से लगा दिए। लंड बिना किसी रुकावट के अंदर समा गया।
मैंने एक हाथ से उसके उरोज़ दबाने चालू कर दिए और एक चूची को मुँह में भर
कर चूसने लगा। वो मेरे नितंबों पर हाथ फिराने लगी।
वा जोर जोर से सीत्कार करने लगी- अब ज़ऊऊर् चोदो याआआआ.... आआ आआअहहह...
एम्म्म...एम्म्म.... और जोर से चूसो... याआआआ.... सरा दूध पी जाओ इनका...
मैं भूखे बच्चे की तरह उसके चूचियाँ चूसने लगा।
"जीत, बड़ा मजा आआअहहह रहा है... आआह...ईईईई"
उसने अपनी जांघें चौड़ी कर ली और मैं दनादन धक्के लगाने लगा।
"ओए जोर से आह्ह..."
10-15 मिनट की चुदाई के बाद हम दोनों ही झड़ गए।
उस रात हमने 4 बार चुदाई की और फिर एक दूसरे की बाहों में पता नहीं कब नींद आ गई।
आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी मुझे जरूर बताना।
आपका दोस्त जीत शर्मा
--
Raj Sharma
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