प्रेषिका : दिव्या डिकोस्टा
मम्मी तो राजू से जोर से अपनी चूत का पूरा जोर लगा कर उससे लिपट गई और और
अपनी चूत में लण्ड घुसा कर ऊपर नीचे हिलने लगी।
अह्ह्ह ! वो चुद रही थी... सामने से राजू मम्मी की गोल गोल कठोर चूचियाँ
मसल मसल कर दबा रहा था। उसका लण्ड बाहर आता हुआ और फिर सररर करके अन्दर
घुसता हुआ मेरे दिल को भी चीरने लगा था। मेरी चूत का पानी निकल कर मेरी
टांगों पर बहने लगा था।
मम्मी को चुदने में बिलकुल शरम नहीं आ रही थी... शायद अपनी जवानी में
उन्होंने कईयों से लण्ड खाये होंगे... अरे भई ! एक तो मैं भी खा चुकी थी
ना ! और अब मुझे राजू से भी चुदने की लग रही थी।
तभी मम्मी उठी और मेज पर अपनी कोहनियाँ टिका कर खड़ी हो गई। उनके सुडौल
चूतड़ उभर कर इतराने लगे थे। पहले तो मैं समझी ही नहीं थी... पर देखा तो
लगा छी: छी: मम्मी कितनी गन्दी है।
राजू ने मम्मी की गाण्ड खोल कर खूब चाटी मम्मी मस्ती से सिसकारियाँ लेने
लगी थी। तब राजू का सुपाड़ा मम्मी की गाण्ड से चिपक गया।
जाने मम्मी क्या कर रही हैं? अब क्या गाण्ड में लण्ड घुसवायेंगी...
अरे हाँ... वो यही तो कर रही है...
राजू का कड़का कड़क लण्ड ने मम्मी की गाण्ड का छल्ला चीर दिया और अन्दर घुस
गया। मैं तो देख कर ही हिल गई। मम्मी का तो जाने क्या हाल हुआ होगा...
इतने छोटे से छल्ले में लण्ड कैसे घुसा होगा... मैंने तो अपनी आँखें ही
बन्द कर ली। जरूर मम्मी की तो बैण्ड बज बज गई होगी।
पर जब मैंने फिर से देखा तो मेरी आँखें फ़टी रह गई। राजू का लण्ड मम्मी की
गाण्ड में फ़काफ़क चल रहा था। मम्मी खुशी के मारे आहें भर रही थी... जाने
क्या जादू है?
मम्मी ने तो आज शरम की सारी हदें तोड़ दी... कैसे बेहरम हो कर चुदा रही
थी। मेरा तो बुरा हाल होने लगा था। चूत बुरी तरह से लण्ड खाने को लपलपा
रही थी... मेरा तन बदन आग होने लगा था... क्या करती। बरबस ही मेरे कदम
कहीं ओर खिंचने लगे।
मैं वासना की आग में जलने लगी थी। भला बुरा अब कुछ नहीं था। जब मम्मी ही
इतनी बेशरम है तो मुझे फिर मुझे किससे लज्जा करनी थी। मैं मम्मी के कमरे
में आ गई और फिर राजू वाले कमरे की ओर देखा। एक बार मैंने अपने सीने को
दबाया एक सिसकारी भरी और राजू के दरवाजे की ओर चल पड़ी।
दरवाजा खुला था, मैंने दरवाजा खोल दिया। मेरी नजरों के बिलकुल सामने
मम्मी अपना सर नीचे किये हुये, अपनी आँखें बन्द किये हुये बहुत तन्मयता
के साथ अपनी गाण्ड मरवा रही थी... जोर जोर से आहें भर रही थी।
राजू ने मुझे एक बार देखा और सकपका गया। फिर उसने मेरी हालत देखी तो सब समझ गया।
मैंने वासना में भरी हुई चूत को दबा कर जैसे ही सिसकी भरी... मम्मी की
तन्द्रा जैसे टूट गई। किसी आशंका से भर कर उन्होंने अपना सर घुमाया। वो
मुझे देख कर जैसे सकते में आ गई। लण्ड गाण्ड में फ़ंसा हुआ... राजू तो अब
भी अपना लण्ड चला रहा था।
"राजू... बस कर..." मम्मी की कांपती हुई आवाज आई।
"सॉरी सॉरी मम्मी... प्लीज बुरा मत मानना..." मैंने जल्दी से स्थिति
सम्हालने की कोशिश की।
मम्मी का सर शरम से झुक गया। मुझे मम्मी का इस तरह से करना दिल को छू
गया। शरम के मारे वो सर नहीं उठा पा रही थी। मेरा दिल भी दया से भर
आया... मैंने जल्दी से मम्मी का सर अपने सीने से लगा लिया।
"राजू प्लीज करते रहो... मेरी मां को इतना सुख दो कि वो स्वर्ग में पहुँच
जाये... प्लीज करो ना..."
मम्मी शायद आत्मग्लानि से भर उठी... उन्होंने राजू को अलग कर दिया। और सर
झुका कर अपने कमरे में जाने लगी। मैंने राजू को पीछे आने का इशारा
किया... मम्मी नंगी ही बिस्तर पर धम से गिर सी पड़ी।
मैं भी मम्मी को बहलाने लगी- मम्मी... सुनो ना... प्लीज मेरी एक बात तो सुन लो...
उन्होंने धीरे से सर उठाया- ...मेरी बच्ची मुझे माफ़ कर देना... मुझसे रहा
नहीं गया था... सालों गुजर गये... उफ़्फ़्फ़ मेरी बच्ची तू नहीं जानती...
मेरा क्या हाल हो रहा था...
"मम्मी... बुरा ना मानिये... मेरा भी हाल आप जैसा ही है... प्लीज मुझे भी
एक बार चुदने की इजाजत दे दीजिये। जवानी है... जोर की आग लग जाती है ना।"
मम्मी ने मेरी तरफ़ अविश्वास से देखा... मैंने भी सर हिला कर उन्हें विश्वास दिलाया।
"मेरा मन रखने के लिये ऐसा कह रही है ना?"
"मम्मी... तुम भी ना... प्लीज... राजू से कहो न, बस एक बार मुझे भी आपकी
तरह से..." मैं कहते कहते शरमा गई।
मम्मी मुस्कराने लगी, फिर उन्होने राजू की तरफ़ देखा। उसने धीरे से लण्ड
मेरे मुख की तरफ़ बढ़ा दिया।
"नहीं, छी: छी: यह नहीं करना है..." उसका लाल सुर्ख सुपारा देख कर मैं
एकाएक शरमा गई।
मम्मी ने मुरझाई हुई सी हंसी से कहा- ...बेटी... कोशिश तो कर... शुरूआत
तो यही है...
मैंने राजू को देखा... राजू ने जैसे मेरा आत्म विश्वास जगाया। मेरे बालों
पर हाथ घुमाया और लण्ड को मेरे मुख में डाल दिया। मुझे चूसना नहीं आता
था। पर कैसे करके उसे चूसना शुरू कर दिया। तब तक मम्मी भी सामान्य हो
चुकी थी... अपने आपको संयत कर चुकी थी। उन्होंने बिस्तर की चादर अपने ऊपर
डाल ली थी।
मैंने उसका लण्ड काफ़ी देर तक चूसा... इतना कि मेरे गाल के पपोटे दुखने से
लगे थे। फिर मम्मी ने बताया कि लण्ड के सुपारे को ऐसे चूसा कर... जीभ को
चिपका चिपका कर रिंग को रगड़ा कर... और...
मैंने अपनी मम्मी को चूम लिया। उनके दुद्दू को भी मैंने सहलाया।
"मम्मी... लण्ड लेने से दर्द तो नहीं होगा ना... राजू बता ना...?"
"राजू... मेरी बेटी के सामने आज मैं नंगी हो गई हूँ... बेपर्दा हो गई
हूँ... अब तो हम दोनों को सामने ही तू चोद सकता है... क्यों हैं ना
बेटी... मैं तो बाथरूम में मुठ्ठ मार लूंगी... तुम दोनों चुदाई कर लो।"
राजू ने जल्दी से मम्मी को दबोच लिया- ...मुठ्ठ मारें आपके दुश्मन...
मेरे रहते हुये आप पूरी चुद कर ही जायेंगी।
कह कर राजू ने मम्मी को उठा कर बिस्तर पर लेटा दिया और वो ममी पर चढ बैठा।
"यह बात हुई ना राजू भैया... अब मेरी मां को चोद दे... जरा मस्ती से ना..."
मम्मी की दोनों टांगें चुदने के लिये स्वत: ही उठने लगी। राजू उसके बीच
में समा गया... तब मम्मी के मुख से एक प्यारी सी चीख निकल पड़ी। मैंने
मम्मी के बोबे दबा दिये... उन्हें चूमने लगी... जीभ से जीभ टकरा दी...
राजू अब शॉट पर शॉट मार रहा था। मम्मी ने मेरे स्तन भी भींच लिये थे। तभी
राजू भी मेरे गाण्ड गोलों को बारी बारी करके मसलने लगा था। मेरी धड़कनें
तेज हो गई थी। राजू का मेरे शरीर पर हाथ डालना मुझे आनन्दित करने लगा था।
मां उछल उछल कर चुदवा रही थी। मम्मी को खुशी में लिप्त देख कर मुझे भी
बहुत अच्छा लग रहा था।
"चोद ... चोद मेरे जानू... जोर से दे लौड़ा... हाय रे..."
"मम्मी... लौड़ा नहीं... लण्ड दे... लण्ड..."
"उफ़्फ़... मेरी जान... जरा मस्ती से पेल दे मेरी चूत को... पेल दे रे... उह्ह्ह्ह"
मम्मी के मुख से अश्लील बाते सुन कर मेरा मन भी गुदगुदा गया। तभी मम्मी
झड़ने लगी- उह्ह्ह्ह... मैं तो गई मेरे राजा... चोद दिया मुझे तो... हा:
हा... उस्स्स्स... मर गई मैं तो राम...
मम्मी जोर जोर से सांसें भर रही थी। तभी मैं चीख उठी।
राजू ने मम्मी को छोड़ कर अपना लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया था।
"मम्मी... राजू को देखो तो... उसने लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया..."
मम्मी तो अभी भी जैसे होश में नहीं थी-...चुद गई रे... उह्ह्ह...
मम्मी ने अपनी आँखें बन्द कर ली और सांसों को नियन्त्रित करने लगी।
फिर राजू के नीचे मैं दब चुकी थी। नीचे ही कारपेट पर मुझ पर वो चढ़ बैठा
और मुझे चोदने लगा। मैंने असीम सुख का अनुभव करते हुये अपनी आँखें मूंद
ली... अब किसी से शरमाने की आवश्यकता तो नहीं थी ना... मां तो अभी चुद कर
आराम कर रही थी... बेटी तो चुद ही रही थी... मैंने आनन्द से भर कर अपनी
आंखे मूंद ली और असीम सुख भोगने लगी।
दिव्या डिकोस्टा
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Raj Sharma
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