Thursday, January 24, 2013

रजिया फंसी गुंडों मैं पार्ट -last

रजिया फंसी गुंडों मैं पार्ट -last



फिर मेरी आँख खुली और कमरे में पूरा अंधेरा हो रखा था. मेरे सिर मैं बहुत
ज़्यादा दर्द हो रहा था. मैने अपना हाथ बदाया अपने सिर को दबाने के लिए
तो मेरी कोनी किसिके लग गयी और मैं चौक गयी. मुझे लगा फिर सुलेमान बाबा
होंगे. फिर मैं थोड़ा मूड गयी जिससे मेरा बदन उनके बदन से मिले ना. जैसे
ही मैं पलटी मेरा हाथ किसी मोटी लकड़ी पे पड़ा और मैं डर गयी. और मैने
फिरसे अपना हाथ बढ़ाया उसे छूने के लिए. मेरा हाथ ने फिर से उसे छुया और
फिर मुझे पता चला मेरे दूसरी तरफ भी कोई आदमी लेटा हुया है और मैं उसके
लंड को छू रही हूँ. मुझे कुछ समझ में नही आया की ये कोन है और इस बिस्तर
पे सो रहा है वो बिना कपड़ो के. फिर मैने घबरा के अपने आप को छुया और मैं
सहम गयी. मैने भी कुछ नही पहन रखा था. मैं अपने दिमाग़ पे ज़ोर देनी लगी
की ये सब क्या है कब और कैसे हो गया. मेरी आँखो में से आँसू आने लगे. पर
मैने कोई आवाज़ नही निकली क्यूंकी मुझे डर था की दोनो में से कोई उठ
जाएगा. मैं दो नंगे आद्मिओ के साथ एक बिस्तर पे बिना कपड़ो में लेटी हुई
हूँ और मुझे याद भी नही ऐसा कैसे हो गया, इससे ज़्यादा शरम की बात नही थी
मेरे लिए शयड किसी भी लड़की के लिए.


मेरे दिमाग़ में ख़याल आया की यहा से शहर कुछ 10 मिनट की दूरी पे है अगर
मैं यहा से भाग जाती हूँ तो मैं शहर में से बस लेके देल्ही चली जाऊंगी.
मेरा प्लान सिर्फ़ सोचने के लिए अछा था क्यूंकी इसके लिए बहुत मेहनत और
हिम्मत दिखानी ओर करनी पड़ेगी. मैं बिस्तर पे आहिस्ते से हिली और कोशिश
करी की किसिको भी छू उ ना. मैने हल्का सा अपने सिर को उठाया और अपने बदन
को नीचे की तरफ खीचा. मेरे माथे पे पसीना आने लगा था ठंड के मौसम में.
मैं धीरे धीरे से नीचे होती रही मैं जितना नीचे होती मुझे उतना ही डर
लगने लगा था. मैं फिर थोड़ा और नीचे हुई तो कुछ आवाज़ सी आ गयी और मेरे
साइड में जो आदमी थे उसकी नींद टूट गयी. हू थोड़ा सा हिला और फिर उसने
अपनी टाँग मेरे उपर रख दी. मेरा सिर आधे बेड पे था और जब उस आदमी ने अपनी
टाँग मेरे उपर रखी तो उसका लंड मेरे मूह से 2 सेमी की दूरी पे था. उसके
लंड में से इतनी अजीब सी स्मेल आ रही थी उस्स स्मेल की वजह से मैं अपनी
नाक बंद करली. 5 मिनिट तक उसने मेरे मूह पे अपनी टाँग रखे रहा और फिर
उससे हटा लिया. मेरी जान में जान आई और मैं उसके फिर से सोने का इंतेज़ार
किया. कुच्छ देर बाद मैं और जल्दी कोशिश कर रही बिस्तर से उतरने की और
उसमें कामयाब भी होगआई. फिर मैं सोचा की किसी कपड़े से अपने बदन को ढक
लेती हूँ मगर अंधेरे मुझे कुच्छ दिखा ही नही. मुझे बस वाहा से निकलना था
कपड़े हो या ना हो. मैने धीरे धीरे से अपने कदम दरवाज़े की तरफ बढ़ाया.
उस्स समय वो छ्होटा सा कमरा भी बड़ा सा लग रहा था और वो दरवाज़ा मिलो दूर
लग रहा था. मैं दरवाज़े तक पहुच गयी और हाथ बढ़ाने लगी कुण्डी खोलने के
लिए. मगर मेरी किस्मेट इतनी खराब थी क्यूंकी दरवाज़े पे एक बहुत बड़ा सा
टाला लगा हुया था. मैं अंदर ही अंदर रोने लगी. यहा से निकालने का एक ही
रास्ता था और वो भी ख़तम हो गया अब्ब पता नही क्या होगा. मैं टाय्लेट की
तरफ देखा और एक दम से याद आया की वाहा एक खिड़की है जोकि सिर्फ़ काग़ज़
से ढाकी हुई थी. मैं दबे पाओ टाय्लेट के दरवाज़े पे पहुचि और वाहा चाँद
की आक्ची रोशनी आ रही थी. मुझे बस किसी तरह से उस्स काग़ज़ को बिना आवाज़
हुए हटाना होगा. मैं टाय्लेट का दरवाज़ा हल्के से बंद कर दिया. मैं
दरवाज़े के पीछे कुच्छ कपड़े देखे और मॅन ही मॅन खुश हो गयी. वाहा 3-4
शर्ट्स सी रखी हुई थी और 2 आदमी के कच्चे. मैं जल्दी से सबसे लंबी
टी-शर्ट पहेनली और कोई चारा नही था इसीलिए एक कच्च्छा भी पहेन लिया. मैने
यह सोचा बदन पे कुच्छ ना होने से तो अच्छा ही है यह कपड़े. मैं फिर आगे
चलने लगी मगर्र मेरी टाँग पानी की बाल्टी पे पड़ी और ज़ोर से आवाज़ आ
गयी. और फिर मुझे बिस्तर पे से किसी के उठने की आवाज़ आई. मैने जल्दी से
उस्स काग़ज़ को फाड़ा और उस्स खिड़की में कूद गयी और वाहा से भागने लगी.
मेरे पीच्चे सुलेमान बाबा भागने लगे और चिल्ला चिल्ला के मुझे वापस बुला
रहे. मैने कुच्छ नही आगे पीछे देखा और अपनी जान बचाने के लिए भागती रही.
फिर मुझे आगे रोशनी सी दिखाई देने लगी और मुझे लगा की शहेर आ गया. मैं और
तेज़ भागने लगी और भागते भागते एक बस में बैठ गयी. मैं ज़ोर ज़ोर से सास
लेने लगी. ज़्यादा भीढ़ भाढ़ होने के कारण सुलेमान बाबा मुझे ढूँढ ना
पाए. वो सड़क पे खधे होकर लोगो से पूचहताच्छ करने लगे. उससी समय मेरे
साइड में आके एक लड़का बैठ गया. मैं उसकी तरफ देखने लगी ताकि सुलेमान
बाबा मुझे देख ना ले. और फिर एक दम से बस चल गयी. आऊर मुझे बहुत सुकून आ
गया. मैने अपने हाथ से अपने माथे का पसीना सॉफ किया. मैने नीचे देखा तो
पता चल की वो शर्ट मेरी आधी जांगो को धक रही थी. मैने फिर साइड में देखा
की वो लड़का मुझे देख तो नही रहा वो किसी और औरत से शायद उसकी मा. मैने
अपने दोनो हाथो से अपनी शर्ट और नीचे की तरफ करदी. मगर फिर भी वो मेरी
जांगो को ही च्छूपा पाई. फिर मैं अपना चेहरा पलटा तो उस्स लड़के का चेहरा
भी मेरी तरफ था.
उसने मुझे कहा हेलो क्या आप खिधकी बंद कर देंगी क्यूंकी यहा काफ़ी ठंड हो रही है.
मैने उसके देखते हुए कहा जी ज़रूर. और आगे हाथ बढ़के बंद करदी.
मैं उससे कहा की यह बस कहा तक जाएगी???
उसने कहा की ये दिल्ली टक्क जाएगी आपको कहा जाना हैं दीदी?
मैने कहा मुझे भी दिल्ली जाना हैं. मैने फिर उससे उसका नाम पूचछा
उसने मुझे बताया उसका नाम प्रतीक हैं और फिर उसने मेरा नाम पूचछा
मैने कहा की मेरा नाम नीति हैं.
उसने फिर मेरी उमर्र पूछी और मैने कहा की लड़कीो से उनकी उमर नही पूछि
जाती तुम बताओ तुम कितने साल के हो???
उसने बोला मैं सिर्फ़ 14 साल का ही हूँ.
फिर मैने हस्ते हस्ते हुए कहा में भी सिर्फ़ 18 साल की ही हूँ.
मैने फिर पूचछा तुम यहा किसके साथ आए हो?
उसने कहा की मैं अपनी मम्मी ओर छ्होटे भाई के साथ हूँ मैं यहा अपने नाना
नानी से मिलने आया था……..
मैने फिर उसके पूछने से फेले ही कह दिया मैं भी अपने नाना नानी से मिलने आई थी.
फिर मेरे पास कंडक्टर आ गया और मेरेसे टिकेट माँगने लगा और मैने पूचा
"कितने का है टिकेट?"
उसने कहा की क्या आपको पता नहीं ये गवर्नमेंट बस नही हैं इश्स बस के लिए
आपको पहले से ही सीट रिज़र्व करनी पढ़ती हैं. अगर आपके पास टिकेट नही है
तब तो आपको नेक्स्ट स्टॉप पे उतरना होगा.
मैं यह सुनके घबरा गयी और मैने पूचछा क्या आप अभी मेरा टिकेट बनवा नही सकते क्या.
आऊर फिर प्रतीक ने कहा यार शंभू आप क्यूँ इनसे परेशान कर रहे हो तुम मुझे
यह बताओ की यहा पे किसकी सीट थी.
कंडक्टर ने कहा कोई सिंग करके है जॅयैपर से चढ़ना था उन्हे छ्होटे मालिक
प्रतीक ने कहा वो नही आए बस में अब्ब इनको यहा बैठे रहने दो और आप दूसरो
का टिकेट चेक करो.
कंडक्टर ये सुनके चला गया और मुझे राहत की साँस लेने का मौका मिला.
मैने प्रतीक से पूचछा ये कंडक्टर तुम्हे छ्होटे मालिक क्यूँ पुका रहा था
उसने बताया की जो कंपनी ये बस की सर्वीसज़ दे रहे है वो उसके पिताजी की है.
मैने उस्स्को थॅंक योउ कहा और फिर कुच्छ देर के लिए शांति हो गयी.
मैं फिर इन्न बीते हुए चार दिन के बारे में सोचने लगी. मैने सोचा की अगर
यह चार दिन नही हुए होते तो मेरी ज़िदगी वैसे ही एक साधारण तरह से चल रही
होती. इन्न चार दीनो में मैने पूरी दुनिया घूमली. शायद ये चार दिन मेरी
ज़िंदगी में भगवान ने लिखखे थे या फिर ये मेरी एक ग़लती की सज़ा थी. फिर
मैं अपने मामा मामी, अपने दोस्तो और अपने एक्षांज़ के बारे में सोचने
लगी. यही सोचते सोचते मेरी आँख लाखा गयी और मेरी आँख लग गयी.

खूछ देर बार बहुत तेज़ से एक आवाज़ आई और मेरी नींद टूट गयी. मैने जब आँख
खोली तो मैने देखा की बस में सब के सब सो रहे हैं. कहीं पे भी कुच्छ भी
आवाज़ नही आ रही थी. फिर मैने अपने साइड में देखा तो प्रतीक भी सो रहा
था. उसने एक कंबल ओढ़ रखा था और उसको देखने के बाद मुझे ठंड लगने लगी.
मुझे उस्स वक़्त ठंड से बच्चना था तो मैने थोडा सा कंबल अपनी तरफ खीच
लिया और उसको ओरहे लिया. मैने अपनी दोनो टाँगें सीट पे ही रख ली थी और
मैं अपने आपको आछे से कवर कर लिया. मैने फिर से सोने की कोशिश की और
थोड़ी देर में आँख लग गयी. फिर मेरे सपने में बिशन, संतोष, सुलेमान बाबा
और वीर्नाथबबा आए. हू सब के सब एक एक करके मेरे कपड़े फाढ़ रहे थे और
ज़ोर ज़ोर से हस्स रहे थे. मैं कुच्छ नही कर पा रही थी बस उनके लिए तमाशा
कर रही थी. वो कभी मेरे होंठो पे उंगली लगाते और कभी मेरे मूमें पे हाथ
फेरते. मुझे बहुत मज़े आ रहे थे मैं अंदर ही अंदर काफ़ी खुश हो रही थी.
उन्होने मेरे सारे कपड़े फाद फाड़ के च्चित्रे कर दिए. फिर मैने उन्न
सबके लंड को च्छुआ और एके क करके उन्हे चूमने लगी. चारो ऐसी ऐसी आवाज़े
निकल रहे और मुझे और भदवा दे रहे.
और फिर से मेरी आँख खुल गयी. मुझे लगा की मैने जो लड़को का अंडरवेर पहें
रखा है व्हो थोड़ा सा गीला हो गया हैं. मैने चुपके से अपना हाथ टी शर्ट
के अंदर डाले और उससे महसूस किया. मगर ऐसा कुच्छ भी नही हुआ था. मुझे
कुच्छ समझ में नही आया की में उन्न शैतानो को बार बार क्यूँ देखे जा रही
हूँ. मुझे यह क्या हो गया है क्या मैं एक लड़की से एक औरत बन गयी हूँ. और
हू भी ऐसी औरत जो सिर्फ़ मज़े लेना और देना आते हैं. मैने अपना हाथ अपने
शर्ट में से बाहर निकाला अपने मोमओं को च्छुआ. मेरे में एक दम से जैसे
करेंट दोर गया हो. मेरे टिट्स एक दूं कड़क हुए थे ठंड के मारे. मैं फिर
उन्हे आहिस्ता आहिस्ता हिलनना लगी. मुझे नही पता था की हम अपने जिस्म को
जब छ्छूते है तो इतने मज़े आते हैं. मैने फिर साइड में देखा तो वो 14 साल
का बच्चा प्रतीक ने मेरी तरफ मूह कर रखखह्ा था. हू ज़ोर ज़ोर से खर्राटे
ले रहा था. नज़ाने क्यूँ मेरा मॅन किया की मैं इसके लंड को च्छुऊ. मैने
अपने आप को बहुत रोका, सोने की भी कोशिश की मगर कोई फराक नही पढ़ा. मेरे
दिमाग़ में बस वोही चल रहा था. मैने आँख खोली और फिर देखखह्ा की पूरा
अंधेरा हुआ था और किसी और को पता भी नही चलेगा की यहा क्या चल रहा हैं.
और रही प्रतीक की बात तो एक बच्चा किसिको अपने मूह से यह नही बता पाएगा.
ज़्यादा से ज़्यादा सीट चेंज कर लेगा.
मैने हिम्मत दिखाते हुए अपना हाथ बढ़ाया और हल्के से उसके बदन पे रखखा.
हू तेज़ तेज़ से सासें ले रहा था. उसका बदन काफ़ी गरम था और उस्स ठंड के
समय पे ऐसे बदन को च्छुके बहुत अक्चा लगा. फिर मैं आहिस्ते से अपना हाथ
थोड़ा नीचे किया और उसकी पॅंट पे रख दिया. मुझे पता नही चला की यह उसका
लंड है या फिर कुच्छ और. फिर थोड़ी देर में समझ आया की व्हो उसका लंड ही
हैं क्यूंकी व्हो हौले हौले से हिल रहा था. मेरी आँखो में चमक सी आगाई.
मेरा दिल काफ़ी तेज़ी से धधकने लग गया. मैने अपना हाथ उसके लंड पे फेड़ा
मगर जीन्स का कपड़ा ज़्यादा ही मोटा था तो इसीलिए कुच्छ ख़ास पता नही
चला. मेरे सिर पे लंड का भूत सॉवॅर हो चक्का था और मैं उससे पकड़ने के
लिए किसी भी हद तक गुज़र सकती थी. मैने कोशिश करी की उस्स जीन्स की ज़िप
खोल्दू मगर व्हॉ आसान नही लग रहा था.
मैने हार मानके अपना हाथ हटा लिया. उसके थोड़ी देर बाद मुझे लगा की मैं
हल्की सी गीली हो रही हूँ. मैने अपना हाथ अपनी टी शर्ट में डाला और महसूस
किया. और मैं काफ़ी फीली हो चक्का थी. उसको छूते ही मेरे दिल की धधकां
फिर से तेज़ हो गयी. मैने ठान लिया की मैं कुच्छ भी करके इसके लंड को
पकदूँगी. फिर मैने अपना हाथ आराम से इसके पेट पे रख दिया और उसकी थोड़ी
बाद उसके शर्ट के अंदर. उसके गरम पेट सर्दी में अंगीठी का काम कर रहा था.
वो बहुत तेज़ तेज़ से सासें ले रहा था और जब भी व्हो अंदर साँस लेता उसका
पेट काफ़ी अंदर हो जाता था. मैं कोशिश की जब भी वो अंदर सास ले तो मैं
अपना हाथ उसकी पॅंट के अंदर लेआऊ. मेरी तरकीब काम भी आ रही थी. मैं अपना
हाथ उसकी पॅंट के अंदर ले गयी थी. मुझे ऐसा लग रहा था की मुझे इस घड़ी का
काब्से इंतेज़ार हो. मेरी साँसें और उसकी साँसें अब्ब एक ही रफ़्तार से
बाद रही थी. मैं अपनी उंगलिया उसके अंडरवेर को च्छुवना के इंतेज़ार कर
रही थी. मगर मेरी उंगलियो ने उसके लंड को च्छुईया. उसने कोई अंडरवेर नहीं
पहेन रखा था. मैं उसके लंड के उपरी हिस्से को छ्छू पा रही थी. मेरे लिए
व्हो उस्स पल जन्नत जैसा था. मैने बड़ी कोशिश करी की मैं उसके पूरे लंड
को च्छू पायू मगर वो काफ़ी मुश्किल था और पकड़े जाने का डर भी था. फिर
मैने थोड़ी देर उससे मज़े लूटे मगर मेरी भूक भौत बढ़ती जा रही थी लंड की
भूक

मैं उस्स गरम लंड को चूसना चाहती थी….. नज़ाने क्यूँ मुझे अच्च्छा सा लग
रहा था इतना अच्छा मुझे किसी के साथ भी नही लगा……… शायद मैं ये सब एक
छ्होटी उमर वाले लड़के के साथ कर रही थी या तो पहली बार अपनी मर्ज़ी से.
हुमारी सीट को एक हॅंडल सेपरेट कर रहा था मैं उसको उपर तरफ उठा दिया..
अब्ब मेरा हाथ और अच्च्ची तरह से उसके लंड से खेल रहा था…. फिर वो अचानक
से मेरी ओर पलट गया. उसके चेहरा पे इतनी मासूमियत थी और वो हद से ज़्यादा
प्यारा लग रहा था सोते हुए. मैं भी थोड़ा सा पलट गयी ताकि उसके लंड को
अच्छे से देख साकु. मैने थोड़ा सा कंबल हटाया और मैने उसका लंड देखा.
जोकि ज़्यादा बड़ा नही था मगर उसकी उम्र के हिसाब से काफ़ी होगा. उसके
लंड में से उसका वीरया निकल रहा था और मेरी उनलीओ पे गिर रहा था. जैसे ही
उसका वीरया मेरी उंगलिओ पे लगता मैं उन्हे चूस लेती…. मेरा मूह काफ़ी
नमकीन हो गया था. फिर मैं अपनी हादो को पार करना चाहती थी. मैने उसके
मुलायम से छ्होटे हाथ आराम से पकड़े और उन्हे आहिस्ते से खेकके अपने
स्तानो पे रख दिया. उसके हाथ मेरे मूमओं पे काफ़ी अच्छे लग रहे थे. मैने
कोशिश की अपने दोनो हाथो से इसकी पॅंट नीचे कर साकु मगर वो काफ़ी मुश्किल
था. फिर मैने सोचा की अगर मैं इसके लंड के मज़े नि ले सकती मगर ये तो
मुझे खुश कर सकता है. मैने वापस कंबल हम दोनो को उधा दिया और अपने हाथ
उसके लंड से हटा दिया. मैने अपनी टी शर्ट उपर करदी और अंडरवेर नीचे कर
दिया. कुच्छ ही सेकेंड में पुर कंबल में मेरी चूत की स्मेल आ गयी थी.
मैने प्रतीक के हाथ को पकड़ा और उसकी मुलायम उंगलिओ को अपनी चूत तक ले
आई. मैने उसकी उंगलिओ अपनी चूत पे लगया और उनको आहिस्ते से हिलने लग गयी.
मुझे बहुत मज़ा आने लग गया.. उसकी पतली सी उंगलियाँ मेरी चूत में गुदगुदी
सी फेला रही थी. मैने अपना एक हाथ अपने मूमें पे रख दिया और उसका उपर
नीचे करने लग गई.. काफ़ी आवाज़े आने लगी हुमारी सीट से. मगर मैने पूरी
कोशिश करी की कोई जागे ना और अगर जागे भी तो समझ ना सके की क्या हो रहा
था. काफ़ी देर तक ये चलता रहा और फिर एक आवाज़ आई..

बस देल्ही पहुचने वाली सारे यात्री उठ जाए हम 10-15 मिनिट में पहुच
जाएँगे. मैने जल्दी से उसका हाथ अपनी चूत से हटाया और अंडरवेर उपर कर
दिया. मैने उसका कंबल अपने उपर से हटा दिया और नॉर्मली बैठ गयी. फिर 10
मिनिट सब जाग गये और बस देल्ही बस अड्डे पे पहुच गयी. हम सब उतार ने लगे.
मेरे पिछे प्रतीक चल रहा था. और जैसे हम बस के गेट की तरफ उसने अपना हाथ
मेरे आस पे फेरा और मेरे कान की तरफ आके कहा बहुत मज़्ज़ा आया थॅंक योउ.
जब मैं पीछे मूडी तो वो उतार के चला गया था. और मैं वाहा एक दम सोच में
कराह के रह गयी….



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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा


--
Raj Sharma

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