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Wednesday, January 2, 2013
सेक्स रिलेशन
सेक्स रिलेशन
यह उन दिनों की बात है जब मै सीमा अपनी बहन रमा के घर रहती थी। मेरे माँ बाप के मरने के बाद से मै यहीं रह रही थी। मेरी उमर बढ़ती जाती थी। मगर मेरी शादी के लिए सोचने वाला कोई था ही नही! अपने शरीर की भूख मिटाने के लिए, यही मेरे अपने जीजा जी (रमा के पति) के भतीजे के साथ सेक्स सम्बन्ध बने और हम दोनों रात भर एक ही बिस्तर पर सोते थे और कम से कम दो बार चुदाई जरूर होती। रमा को मेरे उसके साथ के सेक्स संबंधों की जानकारी थी और वह ख़ुद ही मुझे डाक्टर के पास ले जा कर मेरी चूत में कापर टी लगवा लायी थी!
रमा मेरी ही तरह एक बहुत ही चुदक्कड़ औरत है। उसकी बड़ी बड़ी पपीते जैसी चूचियाँ और मस्त भारी चूतड़ हैं। उस की ऊँचाई थोड़ी कम मगर रंग खूब गोरा है। रमा के पति (यानी मेरे जीजा जी चन्द्रमोहन) पुलिस इंस्पेक्टर हैं और उनकी पोस्टिंग बाहर थी। इस कारण रमा जब मौका लगे मर्दों के लण्ड लेती रहती थी। इन लोगों में दो खास थे एक पाण्डेजी और दूसरे चौहान साहब। ये दोनों छोटे मोटे नेता थे और खूब घूमते रहते थे। जब ये लोग हमारे यहां आते तो रमा की जम के चुदाई होती इन लोगों के आते ही रमा दो दो दिन अपने कमरे से नहीं निकलती थी और घर का सारा काम मुझे संभालना होता था ! उन के जाने के बाद कमरा साफ़ करते वक्त ढेर सारे कंडोम, शराब की बोतलें, रमा के अंदर गारमेंट्स कमरे में जगह जगह बिखरे होते थे। मगर मैं यह चुप चाप साफ़ कर देती क्योंकि रमा मेरे और अपने पति के भतीजे के सेक्स रिलेशन को डिस्टर्ब नहीं कर रही थी। पाण्डेजी और चौहान साहब जब गायब होते तो महीनों गायब हो जाते थे और उन दिनों रमा लण्ड के लिए तड़पती रहती थी तब वो मेरे ऊपर सारा गुस्सा निकालती थी। मुझे ३६५ रातों के लिए लण्ड मिला हुआ था। रमा पैसे रुपये को ले कर भी थोड़ी लालची है। पाण्डेजी और चौहान साहब से चुदवाने का एक कारण यह भी था के यह दोनों रमा के ऊपर अच्छा पैसा खर्च कर देते थे।
एक बार रमा अपने जेठ के घर दिल्ली गई। रमा के जेठ (डाक्टर सांड़ा सिंह) की पत्नी दो साल पहले स्वर्ग सिधार गई थी और तब से डाक्टर सांड़ा सिंह भी चूत के लिए इधर उधर मुंह मार रहा था। डाक्टर सांड़ा सिंह ने अपनी नर्स, अपने नीचे काम करने वाली लड़किओं और रिश्ते की हर औरत की चूत को पाने के लिए योजनायें बनायी थी और उन पे अमल भी किया था। मगर इन सब में उसे अभी तक कोई सफलता नहीं मिली थी। सिर्फ उन की नर्स मिसेज नायर ने कभी-कभी बड़े-बड़े भाटे से स्तन सहलाने तक की छूट डाक्टर सांड़ा सिंह को दी थी। इस से डाक्टर सांड़ा सिंह के लण्ड की प्यास और ज्यादा ही बढ़ जाती थी। डाक्टर सांड़ा सिंह ने मिसेज नायर के भारी चूतड़ अपने हलव्वी लण्ड पर रखकर अपनी गोद में बिठाया था और उनके बड़े बड़े भाटे से स्तन दबाये थे और उस की चूतड़ पर हाथ भी फेर लिया था। मगर मिसेज नायर इस से आगे बढ़ने नहीं देती थी और अस्पताल का माहौल भी इस से ज्यादा कुछ होने नहीं देता था। मिसेज नायर को घर बुलाया तो वह अपने पति कप्तान नायर के साथ आ गयी उस रात डाक्टर सांड़ा सिंह रात भर सो नहीं पाया था।
आजकल रमा के पेट मैं दर्द उठने लगा था। डाक्टर सांड़ा सिंह जो कि दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में डाक्टर था, ने रमा को समझाया के उसका इलाज दिल्ली में ठीक से हो सकता है। रमा भी जानती थी कि जेठ जी उस का इलाज़ किस तरह करेंगे। रमा के दिल्ली जाने का (या पेट दर्द का) एक और ही मकसद था। वह डाक्टर सांड़ा सिंह की पत्नी की अलमारी में पड़े जेवर और साड़िओं पर कब्जा करना चाहती थी। इस अलमारी की चाभी आज कल डाक्टर सांड़ा सिंह के जनेऊ से बंधी रहती थी और रमा को पूरा भरोसा था की वह यह काम कर सकती है।
रमा जब स्टेशन पहुँची तो डाक्टर सांड़ा सिंह कार ले कर उस को लेने आया और घर छोड़ कर वापिस ऑफिस चला गया। शाम को खूब सारे फल सब्जी और एक गजरा ले कर आया जो उस ने रमा को खुद पहनाने की इच्छा प्रगट की। रमा ने कोई आपत्ति नहीं की।
रमा ने खाना बनाया और बड़े प्यार से डाक्टर सांड़ा सिंह को खिलाया। एक एक गरम रोटी ले कर जब रमा आती तो डाक्टर सांड़ा सिंह उस के ब्लाउज के कट गले से झाँकते कटीले आमों और मटकते हुए भारी चूतड देख देख कर निहाल हो रहा था और उस की लूंगी मैं उस का लण्ड लूंगी को तम्बू बना रहा था। रमा उस तम्बू को देख रही थी और रोटी देते वक्त अपने बड़े बड़े कटीले आमों से स्तनों को डाक्टर सांड़ा सिंह के और पास ले जाती थी। जिस से डाक्टर सांड़ा सिंह के अन्दर की आग और ज्यादा भड़क जाए।
खाना खा कर दोनों थोड़ी देर ड्राइंग रूम मैं सोफे पर बैठे। डाक्टर सांड़ा सिंह ने वी सी आर पर एक मस्त पिक्चर लगा दी। रमा देख रही थी के जेठ जी कितने रंगीले हो रहे हैं। जब सोने जाने लगे तब डाक्टर सांड़ा सिंह ने रमा को बोला गरमी बहुत है तुम भी इसी(अपने) कमरे में सो जाओ क्यूँ के एक ही कमरे में ऐसी था। रमा डाक्टर सांड़ा सिंह के डबल बेड पर ही सोने को भी तैयार हो गयी। लाईट बुझा दी गयी और दोनों सोने का व्यर्थ अभिनय करने लगे क्यूँकि दोनों को अभी बकाया काम पूरा करना था। पहल डाक्टर सांड़ा सिंह की तरफ़ से हुयी। उस ने हाथ बढ़ा कर रमा के चूतडों पर रख दिया। रमा न हिली न और कोई हरकत करी।
रमा तो घर से चुदने के लिए ही निकली थी, इसलिए उस ने कोइ विरोध नही दिखाया और चुपचाप पड़ी रही। रमा को यह भी नही समझ आया की सेक्स के इस अचानक हुए हमले मैं वह क्या करे। वह चुपचाप पड़ी रही और डाक्टर सांड़ा सिंह के अगले कदम इंतज़ार करती रही! डाक्टर सांड़ा सिंह रमा की तरफ़ से कोई विरोध ना देख कर रमा के पास खिसक आया और अपना लण्ड उसके चूतड़ों से सटा दिया उसकी बगलों से हाथ डालकर उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ ब्लाउज के ऊपर से थाम कर दबाने लगा। जब उसने महसूस किया कि रमा के निपल खड़े हो गये हैं तो उसने ब्लाउज उस के हाथो ने पहले रमा के बलाउज के बटन खोले और फ़िर ब्रा के हुक खोलकर रमा के पपीते जैसे स्तनों को आज़ाद किया। और उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ नंगी करके सहलाने दबाने लगा।
डाक्टर सांड़ा सिंह बायें हाथ से रमा की साड़ी ऊपर सरका कर उस की जांघों पर हाथ फिराने लगा। अब डाक्टर सांड़ा सिंह के सधे हुए हाथ रमा की चूत की तरफ़ बढ़ रहे थे। जल्दी ही डाक्टर सांड़ा सिंह की उन्ग्लियाँ रमा की फ़ूली हुई पावरोटी सी चूत पर चल रहीं थी और रमा की चूत गीली होने लगी थी। डाक्टर सांड़ा सिंह रमा की झांटों से खेल रहा था और उस के चूत के मोटे मोटे होठो को सहला रहा था! डाक्टर सांड़ा सिंह की अनुभवी उन्ग्लिआं रमा के पुत्तियों को छेड रही थी। जल्दी ही रमा की चूत बूरी तरह पनिया के भीग गयी। रमा की चूत से निकलता पानी डाक्टर सांड़ा सिंह जैसे अनुभवी चोदु को बता रहा था की उस की प्यारी भैहो (छोटे भाई की पत्नी) अब चुदवाने के लिए बिलकुल तैयार है। डाक्टर सांड़ा सिंह ने लुंगी मैं से अपना दस इंच लंबा मूसल निकाला और रमा के बड़े बड़े गद्देदार चूतड़ों पर फिराने लगा। दो साल से डाक्टर सांड़ा सिंह का लण्ड ने इतनी नरम जगहों को नहीं छुआ था इधर उस का लण्ड सिर्फ़ बिस्तर से या हाथ से रगड़ा जाता था। आज रमा के चिकने गुदगुदे चूतड़ों का स्पर्श पा कर लण्ड मस्त हो सांप की तरह फ़ुफ़कार रहा था! जैसे जैसे डाक्टर सांड़ा सिंह की मस्ती बढती गयी उस का लण्ड रमा के चूतड़ों के नीचे से उसकी चूत की तरफ़ सांप की तरह फ़ैलता बढ़ता चला जा रहा था। डाक्टर सांड़ा सिंह ने अपने लण्ड को काफी देर रमा की चूत पर रगड़ा। डाक्टर सांड़ा सिंह चुदाई के खेल का पुराना खिलाडी था। उस ने अपनी दो सालिओं समेत कई लड़किओं और औरतों की चूत को पेला था। रमा के साथ डाक्टर सांड़ा सिंह को अपने लंबे लण्ड का पूरा फायदा मिल रहा था। डाक्टर सांड़ा सिंह का दस इंच लंबा हलव्वी लण्ड रमा के मोटे चूतड़ों के बीच की दरार पार कर के उस की जांघो के बीच से होते हुए रस छोड़ती हुयी चूत के होंठो से सटा हुआ था और अभी भी आधी से ज्यादा लम्बाई बाहर बाकी थी। अभी तक रमा की तरफ़ से कोई हरकत नही हुई थी! रमा को समझ में नहीं आ रहा था की पीछे से हुये इस हमले में वो क्या करे ?
चुदाई के लिए मना करने की उस की कोई इच्छा भी नही थी और चूत के लिए उतावले डाक्टर सांड़ा सिंह ने उस को सेक्स के इस खेल में शामिल होने का कोई मौका नही दिया था! वैसे रमा को कोई जल्दी नहीं थी क्यूँकि उस मालुम था के अगले दिनों में उसको अपनी भाँति भांति से चुदवाने की कला दिखाने का पूरा मौका मिलेगा। पर जब डाक्टर सांड़ा सिंह की मंझी हुयी उन्ग्लियाँ उस की चूत पर चल रही थी तब उसे यह डर जरूर लग रहा था कि वह जल्दी ही अपने शरीर पर ज्यादा देर वश नहीं रख पायेगी क्यूँ के सेक्स के अन्तिम चरण मैं हम दोनों बहनें रंडी या जानवर की तरह बन जाती हैं। अगर डाक्टर सांड़ा सिंह थोड़ी देर और अपनी काम क्रीडा चलाता तो रमा उस स्थिति में आकर डाक्टर सांड़ा सिंह पर चढ़ बैठती। मगर डाक्टर सांड़ा सिंह काफ़ी अरसे का उतावला था और रमा की रस छोडती चूत उसे बता ही रही थी कि अब उंगली का नहीं बल्कि उस के भुजंग जैसे लण्ड का टाईम आ चुका है। अब डाक्टर सांड़ा सिंह ने रमा की पावरोटी सी रसीली चूत के द्वार से लगे अपने हथौड़े जैसे सुपाड़े की रगड़ और दबाव बढ़ा दिया। जैसे जैसे डाक्टर सांड़ा सिंह के लण्ड का सुपाड़ा रमा की चूत के होठों पर रगड़ खा रहा था, उसकी लण्ड अन्दर लेने को तैयार चूत मुँह खोलती होती जा रही थी। चूत खूब रस फेंक रही थी और चूत के होंठ खुलते धीरे धीरे ऐसी हालत आ गयी की डाक्टर सांड़ा सिंह को अपना लण्ड चूत में डालने के लिए जरा सा भी ज़ोर नही लगाना पडा और डाक्टर सांड़ा सिंह का लण्ड रमा की चूत मै ऐसे घुसने लगा जैसे माखन मै छुरी आराम से चली जारही हो।जब लण्ड ने रमा की चूत मै प्रवेश किया तब डाक्टर सांड़ा सिंह अपने हाथो का इस्तेमाल रमा के भारी चूतड़ों और भारी बड़े बड़े भाटे से स्तनों को दबोचने पर करने लगा। वह एक तरफ़ रमा की चूत मै धक्के दे रहा था। दूसरी तरफ़ पागलों की तरह उस के बड़े बड़े भाटे से स्तनों को दबोचकर मसल रहा था। रमा जितने बड़े स्तनों वाली औरत उसने आज तक नहीं चोदी थी और उस ने बरसों से रमा के चूतड़ों और बड़े बड़े भाटे से स्तनों को देख देख कर कितने ही सपने दिल मैं पाले थे और आज उस सब को साकार कर लेना चाहता था। अब रमा पर दुहरा हमला हो रहा था उस की चूत मै डाक्टर सांड़ा सिंह का लण्ड मूसल की तरह अन्दर बाहर हो रहा था और उस के निप्पल और बड़े बड़े भाटे से स्तन बुरी तरह मसाले जा रहे थे।
रमा इससे भी बहुत तेज सेक्स के हमले झेल ने की आदी थी। उस ने एक ही बिस्तर पर दो दो जानवरों के हमले झेले थे। इस लिए इस सेक्स का मजा आराम से लेट कर ले रही थी। कमरे मै अब बस फ़च फ़च फ़च फ़च और बेड की चरमराहट की आवाजे थी मगर ना डाक्टर सांड़ा सिंह को और ना रमा को उन आवाजो का ध्यान था। डाक्टर सांड़ा सिंह अपनी बीवी के मरने के बाद से लगा ब्रह्मचर्य एक मस्त चूत की धुआंधार चुदाई से तोड़ रहा था और रमा जिस काम के दिल्ली आयी थी उस को पूरा होता देख कर मस्त थी और उस की चूत की दीवारों को रगड़ता हुआ डाक्टर सांड़ा सिंह को मूसल उस की मस्ती को बढ़ा दे रहा था।
जैसे जैसे रमा की मस्ती बढ़ती जा रही थी उस के चूतड डाक्टर सांड़ा सिंह के धक्कों के साथ साथ हिलने लगे धीरे धीरे दोनों सेक्स की उस अवस्था पर पहुँच रहे थे जहाँ दिल और दिमाग पर से कंट्रोल समाप्त हो जाता है। रमा तो पहले ही उस अवस्था पार गयी थी। उस ने डाक्टर सांड़ा सिंह को लण्ड को ज्यादा से ज्यादा मजा लेने के लिए लण्ड को पकड़ कर चूत के उन हिस्सों पार दबाना शुरू कर दिया जहाँ उस के काम अंकल विराजते थे। रमा की इन हरकतों से डाक्टर सांड़ा सिंह को पूरा विस्वास हो गया के उस ने रमा के बारे मैं जो सुना था वह पूरा सच है और अब उस को एक ऐसी मस्त चूत मिल गयी है जिस को वह जिंदगी भर चोद सकता है। फ़िर उस के अन्दर का जानवर और भी जाग गया और उसने सब कुछ भूल कर रमा चित किया। रमा ने अपनी मोटी मोटी जाँघें फ़ैला कर हवा मे उठा दीं और पहली बार मुँह खोला-
"आओ सांड़ा सिंह भाई हम दो अकेले प्राणी अपना अकेलापन बांट लें। डालो पूरा अन्दर और इत्मिनान से जम के चोदो अपनी भैहो को क्योंकि तेरे भाई को तो नौकरी से ही फ़ुरसत नहीं।" डाक्टर सांड़ा सिंह ने उसके ऊपर चढ़ कर अपना हलव्वी लण्ड का सुपाड़ा रमा की इतनी देर से चुदने के कारण खुले चूत के होठों पर रखा और एक ही बार में फ़िर से पूरा ठांस दिया। अब डाक्टर सांड़ा सिंह को दस इंच को मूसल रमा की बच्चेदानी की गहराइयों में उतर रहा था। कमरे में जैसे ही एक फ़च की आवाज होती डाक्टर सांड़ा सिंह का सुपाड़ा रमा की चूत की जड़ से जा टकराता और एक मीठा सा दर्द रमा के शरीर मैं समा जाता। अब तक रमा की इन गहराईओं मैं सिर्फ पाण्डे जी का लण्ड ही उतर सका था। दूसरे मर्दों के लण्ड यहाँ से बाहर ही बाहर रहे थे। अब रमा ने अपनी टांगों से डाक्टर सांड़ा सिंह के धड़ को लपेट लिया और उस की संगमरमरी बाहें डाक्टर सांड़ा सिंह गले में लपेट रही थी से रमा के मोटे बड़े बड़े भाटे से स्तन अब डाक्टर सांड़ा सिंह की छाती से चिपक गए थे और डाक्टर सांड़ा सिंह की जीभ रमा के मुंह में घुस कर रमा की जीभ से अपनी मुहब्बत का इज़हार कर रही थी। रमा भी इस प्यार के इज़हार मैं पीछे नहीं थी। उसके नाखून पीठ में गड़ रहे थे। रमा अब जिंदगी भर डाक्टर सांड़ा सिंह की बन कर रहने को तैयार थी। ठीक उसी वक्त वह चुदाई की चरम सीमा पार कर गयी और उस के नाखून डाक्टर सांड़ा सिंह की पीठ में और गहरे गड़ गये। उसके मुंह से निकला -
" अम्म्म्मआह, अम्म्म्मआह।"
उसी समय डाक्टर सांड़ा सिंह के लण्ड ने रमा की चूत में पिचकारी छोड़ी और वो रमा के मखमली बदन पर छा गया। जब सांसो का तूफ़ान रुका तब रमा ने पहले अपने पेटीकोट से फ़िर डाक्टर सांड़ा सिंह की लूंगी से अपनी चूत और डाक्टर सांड़ा सिंह के लण्ड को साफ़ किया और डाक्टर सांड़ा सिंह की तरफ़ करवट लेकर लेट गई।
डाक्टर सांड़ा सिंह –"अब पेट का दर्द कैसा है रमा?"
डाक्टर सांड़ा सिंह के लण्ड को अपनी जाँघों के बीच में दबा कर उसे अपनी बाहों का हार पहना कर बोली –
"आपके इस इन्जक्शन से बहुत आराम मिला। आपने तो बिलकुल ठीक कर दिया सांड़ा भाई।"
डाक्टर सांड़ा सिंह अपना लण्ड उसकी केले के तने सी मोटी संगमरमरी जाँघों के बीच आगे पीछे रगड़ते हुए बोला–
"पर इस इन्जेक्शन की खुराक लगातार लेनी पड़ती है?"
रमा –"अब जितने चाहो इन्जेक्शन लगाओ सांड़ा भाई। अब तो मैं यहीं रह कर आपसे अपना इलाज करवाऊंगी।"
डाक्टर सांड़ा सिंह उसकी बड़ी-बड़ी गुदाज चूँचियों के ऊपर लगे काले अंगूर जैसे निपल होठों और दाँतों से चुभलाते हुए बोला– "और वहाँ तेरे चन्दू का क्या होगा?"
रमा सिसकारियाँ भरते हुए बोली– "इस्स्स्स आह उनका जब मन करे यहाँ आ के मिल जायेंगें, एक रोज को तो आते हैं। यहाँ आये तो मैं हूँ ही। अगर वहाँ जाये तो सीमा चुदवा लेगी। उसे भी मेरी तरह कुछ फ़रक नही पड़ता।"
डाक्टर सांड़ा सिंह उसके बड़े बड़े चूतड़ों को दबोचते हुए बोला–
"अच्छा तो क्या मुझको भी उसकी चूत मिल सकती हैं?"
रमा– "उई माँ....क्यों नहीं! किसी दिन बहाने से बुलवालो फ़िर देखो हम दोनों बहनों का कमाल।"
इतनी देर से रमा की बड़ी-बड़ी गुदाज चूँचियों के ऊपर लगे काले अंगूर जैसे निपल होठों और दाँतों से चुभलाते हुए उसकी केले के तने सी मोटी संगमरमरी जाँघों के बीच आगे पीछे लण्ड रगड़ने से अब तक डाक्टर सांड़ा सिंह का लण्ड फ़िर से टन्ना गया था सो उन्होंने उसकी जाँघों को फ़ैला उसकी पाव रोटी सी चूत के मुहाने पर सुपाड़ा रगड़ते हुए कहा –
"ये ठीक है किसी दिन ऐसा ही करते हैं।"
रमा सिसकारियाँ भरते हुए आखें बन्द कर उस दिन के बारे में सोचने लगी जब दोनों बहने मिल के डाक्टर सांड़ा सिंह का लण्ड और माल हड़प कर पाया करेंगी।
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Raj Sharma
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