Thursday, January 24, 2013

रजिया फंसी गुंडों मैं पार्ट -2

रजिया फंसी गुंडों मैं पार्ट -2

जब सुबह हो गयी तब भी वाहा कोई आदमी या औरत नही दिखाई दिया. मुझे यह भी
नही पता था की वो दोनो कामीनो ने मुझे कहा छ्चोड़ दिया है. मैं हिम्मत
करके खड़ी हुई और अपनी ब्रा और पॅंटीस ढूँढने लगी. मेरी ब्रा मुझे नही
मिली मगर मेरी कच्च्ची जोकि पूरी तरह से गंदी हो गयी थी और पीछे से उसमें
एक च्छेद हो गया था. मैने जल्दी से उससे पहेन ळिया. फिर मैने ड्रेस को
पहने की कोशिश करी मगर दोनो स्ट्रॅप्स कट्ट जाने के कारण मैं उससे पहेन
नही पाई. मैने दोनो स्ट्रॅप्स पे गाठें बाँध दी और और उससे पहेन लिया.
गातों की वजह से मेरा ड्रेस की उचाई काफ़ी बढ़ गई थी. अगर मैं ज़रा सा भी
झुकती तो कोई भी मेरी कच्ची आराम से देख लेता. मैने सोचा की आगे चलती हूँ
थोडा सा शायद रोड आजाए या कोई गाओं आजाए जहा से मैं वापस जेया सॅकू. मैं
आगे चली करीब 1 घंटे बाद मुझे एक छ्होटा सा घर डीिखा. उस्स इलाक़े में
वही एक घर था. मैने रात से कुच्छ खाया भी नही था और पानी तक नही पीया था.
मैं उस्स घर के पास चली गई. वो घर काफ़ी पुअरना सा टूटा हुआ सा लग रहा
था. मैने काफ़ी दरवाज़ा खत खाटाया मगर किसीने दरवाज़ा नही खोला. निराश
होके मैं वाहा से जाने लगी. जैसी मैने चलना शुरू किया तभी वो दरवाज़ा खुल
गया. मैने देखा एक बूरहा सा आदमी खड़ा हुआ है. मैने उससे नमस्ते कहा और
उससे बोला की मेरे पीछे कुच्छ गुंडे पद गये थे मैं किसी तरह से अपनी जान
बचके आई हूँ. मुझे यह भी नही पता की यह जगह कौनसी है. अप प्लीज़ मुझे
कुच्छ खाने पीने के लिए दे दीजिए, आपकी बड़ी मेहेरबानी होगी. उन्न बाबा
ने मुझसे मेरा नाम पूछा. मैने नीति बता दिया और मैने उनसे उनका नाम
पूचछा. उन्होने मुझे अंदर बुला लिया और अपना नाम सुलेमान बताया. मैं घर
में जब गई तो वाहा एक बिस्तर दिखा जिसपे गंदी सी चादर बिच्च्ि हुई थी, एक
पंखा और उसी रूम के कौने में बर्तन और चूला रखा हुआ था. सुलेमान बाबा ने
मुझे कहा बेटी तुम अभी जॅयैपर हाइवे के पास ही हो. तुम कहा की रहने वाली
हो? मैने कहा जी मैं दिल्ली की रहने वाली हूँ. मैने बिस्तर पे बैठना ठीक
नि समझा क्यूंकी अगर मैं बैठी तो मेरी ड्रेस और उपर हो जाती और मेरी
कच्च्ची बिल्कुल अच्च्चे से बाबा को नज़र आ जाती. बाबा ने मुझे कहा की
बेटी जाओ तुम अपने उपर तोड़ा पानी डाल्लो क्यूंकी तुम्हारी हालत काफ़ी
खराब लग रही है. मैने पानी गरम होने के लिए रख दिया है. मैने हस्ते हुवे
इनकार कर दिया. मगर उन्होने कहा की बेटी कोई ग़लत ख़याल मत रखो अपने
दिमाग़ में तुम मेरी बेटी जैसी ही हो. नहाने का सुनके मुझे वो याद आया की
जब बिशन और संतोष ने मुझे कुतिया की तरह चोडा था और मेरे पे पिशाब कर दी
थी. यह सोचके मेरे सिर चकरा गया और मैं बिस्तर पे बैठ गई. मेरे बैठने की
आवाज़ से सुलेमान बाबा ने एक डम अपना सर मेरी तरफ किया और उन्हे मेरी
गुलाबी कच्च्ची दिख गई. मूह फेरते हुए मैं खड़ी हो गई और बाथरूम में जाने
लगी. बाबा ने मुझे हाथ में एक टवल पकड़ा दिया और मैं नहाने के लिए चली
गई. बाथरूम में एक खिड़की थी जोकि काग़ज़ से ढाकी हुई थी. लाइट भी काफ़ी
ठीक ताक थी. वाहा एक गंदी सी बाल्टी और मग रखा हुआ था. मैने अपने कपड़े
उतार के कोने में रख दिए ताकि वो गीले ना हो जाए. मैने धीरे धीरे अपने
उपर पानी डालना शुरू किया. मेरे आँखों में आँसू आ गये थे कल रात के भयानक
हादसे के बारे में सोचके. मैने सोचा जो हो गया वो हो गया एब्ब किसी तरह
घर पहुच ना है. हल्का सा गरम पानी मेरी बदन को गरम कर रहा था. उसी बीच
में बाबा उस्स टूटे हुए दरवाज़े से मुझे नहाते हुए देख रहा था. बाबा अपने
लॅंड से खेलते हुए मेरे गीले बदन को देखे ही जेया रहा था. मुझे नहाते समय
तेज़ तेज़ सासो की आवाज़े सुनाई दे रही थी. जैसे ही मैने नहाने बंद कर
दिया तो सासे आनी भी बंद हो गई. मैं अपने गीले बदन को उस्स टवल से पौचने
लगी. मेरे दिमाग़ में एक गंदा ख़याल आया. मैने सोचा क्यूँ ना मैं इस्स
बाबा को सिड्यूस करू. देखने में तो यह बाबा शरीफ लगता है और मुझे कुच्छ
नही कर सकता और मैं यहा से भाग जाऊंगी अगर ऐसा कुच्छ हुआ तो. यही सोचके
मैने बाथरूम का दरवाज़ा खोला. सुलेमान बाबा चूले पे चाइ बना रहे था. जैसे
ही मैने दरवाज़ा खोला उन्होने अपना चेहरा मेरी ओर खुमाया और देखके तोड़ा
सा डर गये. मैं उस समय सिर्फ़ टवल पहेन लप्पेट रखा था और उसके नीचे अपनी
गुलाबी रंग की कच्छि. टवल का कपड़ा काफ़ी ग़रीबो वाला था मतलब काफ़ी पतला
सा था और इसकी वजह से व्हो भी काफ़ी गीला हो गया था. सुलेमान बाबा के
कुच्छ कहने से पहले मैने उनसे कह दिया की मेरी ड्रेस ज़मीन पे गिरके गीली
हो गई है, आपके पास कुच्छ पहनने को है क्या??? सुलेमान बाबा ने मेरेको
पूरी अच्च्ची तरह देखके कहा नही बेटी फिलहाल कपड़े सूख रहे है तुम इश्स
रज़ाई को लप्पेट लो क्यूंकी काफ़ी ठंढ है और तुम काफ़ी गीली भी हो.
सुलेमान बाबा की आँखों की चमक को देखके मैं समझ गई थी की यह बाबा तो
लट्तू हो गया है. मैने बाबा से कहा की आपके पास फोन होगा क्या??? और
उन्होने मुझे अपना सस्ता सा मोबाइल फोने दे दिया. मैं कमरे के बहार चली
गयी और मैने अपने मामा मामी को फोन कर दिया. मैने उनको कहा की मैं अपनी
सहेली के घर पे हू. उसकी ताब्यट काफ़ी खराब हो गई थी और इसीलिए मैं उससे
मिलने रात में ही चली गयी अपने दोस्तो के साथ. एब्ब मैं 2-3 दिन उससी के
साथ रहने वाली हूँ क्यूंकी वो घर पे अकेली है. आप प्लीज़ नाराज़ मत होना
और टेन्षन मत लेना. मेरी बात सुनके मेरे मामा ने कहा ठीक है बेटा मगर तुम
वाहा पड़ाई अच्च्ची तरह से करना और अपना और अपने दोस्त का ख़याल रखना. यह
बोलके मैने फोन काट दिया और वापिस घर में चली गई. बाबा ने मुझे चाइ दी और
कहा बेटी बिस्तर पे आराम से बैठ जाओ. मैने बाबा से पूचछा की आप इश्स घर
में अकेले क्यूँ रहते हो?? आप की पत्नी या कोई बेटा बेटी नही है??? बाबा
ने मुझे बताया की व्हो पहले बहुत अमीर थे मगर उनकी पत्नी के गुज़र जाने
के बाद उनके बेटे ने उनकी सारी दौलत हड़प ली. फिर वो यहा पे आ गये शहेर
से दूर. यह सुनके मुझे बाबा पे थोड़ी दया आ गई. बाबा मेरे पास आ गये और
मुझसे चाइ का कप लेके चले गये. मैने सोचा की एब्ब मैं क्या करू. यही
सोचते सोचते मुझे नींद आ गई और मैं उस्स बिस्तर पे सो गई

मेरे सपने में फिर से रात का पूरा सीन आया. मैं सपने में ही डर रही थी और
काफ़ी घबरा सी गई थी. थोड़ी देर के बाद मुझे एक और सपना आया और उस्स सपने
में फिर से बिशन और संतोष दिखाई दिए. मगर यह सपना पिच्छले सपने से
बिल्कुल अलग था. मैं फिर से रात में ऑटो ढूँढ रही हूँ और मुझे फिर से वही
ऑटो मिलता है. मैने वोही कपड़े पहेन रखे है. संतोष मुझे घूरे जा रहा है
और मैं उससे और मजबूर कर रही हूँ बार बार हिल्के. मैने अपना हाथ संतोष के
लॅंड पे रख दिया और उसपे फ़ेड़ने लगी. संतोष बिल्कुल चुप छाप हैरान सा हो
गया. उसका लॅंड ऑटो की रफ़्तार के जैसा बड़ा हुए ही जा रहा है. संतोष को
इतनी ठंढ में भी पसीना आ रहा है. मैने उसके एक हाथ पकड़ के अपने नंगी
जाँघ पे रख दिया और उसके लॅंड से और अच्च्ची तरह से खेलने लगी. संतोष
एब्ब अपना हाथ मेरी जांग पे फेर रहा है और फेरता हुआ मेरे ड्रेस के अंदर
ले गया. मेरी कच्छि पूरी गिल्ली हो रही थी और व्हो एब्ब मेरी चूत को
नौचने लगा है. संतोष के मूह से आवाज़ निकली बिशन ज़रा ऑटो थोड़ी साइड में
रोक दे रोड से थोडा दूर. यह बोलके संतोष ने अपना दूसरा हाथ मेरे मूमेन पे
फेरना शुरू कर दिया और यह देखके बिशन ने जल्दी से ऑटो कहीं रोकक दिया.
फिर उन दोनो ने मुझसे कहा की हुमारी पॅंट की ज़िप खोल और हुमारा लंड को
चूसना शुरू कर. उनके कहते ही मैने उन दोनो की ज़िप खोलदी और उनके बड़े और
मोटे लंड को निकालकर चूसने लगी. कभी मेरा उस्स लंड को मूह लेकर चूस्टा और
कभी दूसरे लंड को. दोनो बहोट ज़ोर से आवाज़े निकाल रहे है. दोनो ने मुझे
मेरे कंधे पाकर के उठाया और ओहिर मेरे मोमें को मूह में लेकर चूसने लगे.
मुझे इतना मज़ा आ रहा था की मैं खुद उन्हे बोल रही थी और ज़ोर से चूसने
को. जब उन्होने मुझे चोदने के लिए मुझे नीचे लेतया तभी अचानक कुच्छ आवाज़
आई और मेरी नींद खुल गई. मैने हल्की सी आँख खोलके देखा तो बाबा नीचे
बैठकर चाइ बना रहे थे. मैं उस्स वक़्त काफ़ी गरम हो गई थी अपने सपने को
देखके. मगर मेरे मॅन में ख़याल आया की सुलेमान बाबा काफ़ी अच्च्चे इंसान
है उनके साथ ऐसी हरकत नही करनी चाहिए. बाबा ने मुझे देखते हुए कहा उठ गयी
बिटिया. मैने हल्के से कहा जी बाबा. बाबा ने फिर मुझे कहा की जाके अपना
ड्रेस पहेनलो क्यूंकी ठंढ काफ़ी हो रही है. मैं बेड से उठी और अपने बदन
पे चादर लपेटली. चॉक ए मैं बाथरूम में आगाय और अपनी ड्रेस को मैने
पहेनलिया. मैने बाहर आके रज़ाई बेड पे फेक दी और बाबा से मैने पूचछा की
कुच्छ ड्रेस के नीचे पहेने के लिए है?? बाबा ने कहा बेटा बाहर मेरी धोती
रखी हुई तुम चाहो तो उससे पहेनलो. मैं बाहर निकली तो देखा की रात हो चुकी
थी. एब्ब मेरा घर के लिए निकलना ठीक नही होगा. मैने बाहर रहके ही धोती
पहेनली और घर के अंदर आ गयी. मैं काफ़ी खुश थी क्यूंकी धोती मेरी जांगो
को च्चिपा रही थी, मेरे घुटने तक आ रही थी. मैं आराम से बिस्तर पे बैठ गई
और बाबा ने मुझे चाइ दी. मैने बाबा से पूचछा बाबा टाइम कितना हो गया है??
बाबा ने मुझे कहा की बिटिया रात के 9 बाज गये है. मैने और बाबा ने चाइ
पीना शुरू किया और हम बातें करने लगे. मैने बाबा को दिल्ली के बारे में
और अपने खानदान के बारे में बताया. और बाबा ने मुझे अपने बारे में और
ज़्यादा बताया. देखते ही देखते टाइम कुच्छ ज़्यादा हो गया और मुझे नींद
आने लगी. बाबा ने कहा बिटिया सो जाओ मैं ज़मीन पे सो जाऊँगा तुम आराम से
बिस्तर पे सोजाओ. मैने बाबा से कहा आप क्यूँ ज़मीन पे सोगे आप उपर सोजाए
मुझे कोई दिक्कत नही है आपसे. रज़ाई एक ही होने के कारण हम दोनो को रज़ाई
शेर करनी पढ़ी. फिर हम दोनो सो गये.









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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

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Raj Sharma

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