Sunday, July 20, 2014

FUN-MAZA-MASTI सीता --एक गाँव की लड़की--17

FUN-MAZA-MASTI

 सीता --एक गाँव की लड़की--17

 मैं चीखती हुई "श्याम्म्म्म्म्म्म प्लीईईईईज" बोली जिसे सुन श्याम मेरी चूत से हटे और मेरी कैप्री को मेरे पैरों से निकाल खड़े हो गए..मैं हांफती हुई श्याम की तरफ नशीली आँखों से देखने लगी..बदले में श्याम भी मेरी इन नशीली नयन को अपनी आँखों से पीते हुए मेरी एक पैर उठा दिए..मैं अपनी मुंह खोली उनकी तरफ देखे जा रही थी..

तभी उनका गर्म काका मेरी धुली हुई काकी से टच करने लगी..फिर मेरी आँखों में झांकते हुए पोजीशन लिए और एक वहशीपूर्ण धक्का दे दिए..धक्का इतनी तीव्र थी कि मैं दीवाल में पूरी तरह चिपक गई...हम दोनों के मुख से आहहहह निकल पड़ी..उनका लंड अंदर पड़ते ही मेरे जेहन में अपने भैया का लंड याद आ गया जो 8 इंची था और इसी तरह मेरी नाजुक चूत को चीरा था...

अचानक से पड़े दूसरी धक्के ने मुझे वापस किचन में अपने पति के लंड के नीचे पटक दिया..फिर चल पड़ा एक धुंआधार काका-काकी की लड़ाई..जिसमें हम दोनों पति-पत्नी सुरीली कामुक धुनें बिखेरते मजे ले रहे थे..मेरी तन की गर्मी झरने की तरह बहती हुई नीचे आ रही थी..

पर साथ ही ये भी जानती थी कि झरना नीचे आ और खूबसूरत तरीके से उग्र हो जाती है,वही हालत मेरी भी होगी अब कि और चाहिए लंड...

काफी देर तक सुबह की ताकत से मेरी चूत बजाने के बाद श्याम मेरे कंधों पर दांत गड़ाते हुए दबी आवाज में चीखने लगे, जिसे मैं सह नहीं पाई और अपने तेज नाखून से उनकी पीठ छलनी करती रोती हुई झड़ने लगी..पर हम दोनों को इस स्खलन में दर्द कहीं भी नजर नहीं आई..बस एक अलग दुनिया में खोई रही..

झड़ने के पश्चात ही हम दोनों एक-दूसरे से लिपटे ही धम्म से नीचे बैठ गए..करीब 5 मिनट तक यूं ही बैठे रहने के बाद श्याम मेरे होंठों पर किस दिए और बोले,"शुक्रिया जानू, अब उठो, जब तक मैं फ्रेश होता हूँ तुम नाश्ता तैयार कर दो."

मैं मुस्काती हुई कैप्री पहनती हुई बोली,"मस्त चीज खा ही लिए, अब नाश्ता नहीं बनेगा.."मेरी बात को सुनते ही मेरे गालों को चूमे और हंसते हुए बाथरूम की तरफ चल दिए..पीछे मैं भी कपड़े पहन किचन के ही बेशिन में हाथ मुँह धोई और नाश्ता तैयार करने लगी..


 नाश्ता करने के बाद श्याम ऑफिस चले गए..पूजा भी कॉलेज के लिए निकल गई..

मैं भी स्नान आदि से सम्पन्न हो आराम करने चली गई..बेड पर अभी लेटी ही थी कि मेरी फोन बजने लगी..

मैंने बेड के एक कोने में पड़ी फोन लेते हुए स्क्रीन पर नजर डाली कि कौन हैं इस वक्त याद करने वाले?

नागेश्वर अंकल का फोन था..मैं फिर से बेड पर लेटी और होंठो पर हल्की मुस्कान लाते हुए फोन रिसीव की..

"प्रणाम अंकल,आज गलती से कैसे नम्बर इधर आ गई.." मैंने शिकायत भरी लब्जों में पूछी..

"प्रणाम मोहतर्मा, फोन गलती से नहीं बल्कि पूरे होशोहवास में किया हूँ..समझी.."अंकल रौब के साथ अपनी सफाई देते हुए हंस पड़े..

मैं भी खुद पर काबू नहीं रख सकी और हंसते हुए बात को आगे बढ़ाई,"अच्छा, फिर तो जरूर फुर्सत में लग रहे हैं."

"हाँ,बस दो दिन और..आज वोटिंग हो रही है और परसों रिजल्ट..फिर तो फुर्सत ही फुर्सत.."अंकल अपने आने वाले दिनों के बारे में छोटी सी नमूना आगे रख दिए..

"मतलब जीतने के बाद घोड़े बेच के सोने का इरादा है क्या?"मैं थोड़ी सी मजाकिया लहजे में चुटकी ली..

"मैं वैसा नहीं हूँ मैडम, अगर होता तो जनता हमें मुखिया पद में हैट्रिक नहीं लगाने देती..अब विधायक में तो और काम करने का मूड है..बस आप साथ देती रहना.."अंकल अपनी इमानदारी और कर्मनिष्ठ का परिचय देते बोले..साथ में बड़ी ही सफाई से बातचीत की ट्रैक को चेंज कर दिए..

मैं उनकी इस अदा पर हँसती हुई बोली,"मैं,...विधायक बनने के बाद आप तो खुद पावर में रहेंगे तो भला मैं क्या साथ दूंगी.."

"हाँ पर उस पावर को लागू करने में हमारी जो एनर्जी खर्च होगी तो उसे रिचार्ज तो तुम्हें ही करनी होगी ना.."अंकल सीधे मुँह तो नहीं पर द्विअर्थी शब्दों में कह डाले जिसे मैं क्या सब समझ जाए..

"मिलने तो ढ़ंग से आते नहीं फिर रिचार्ज कैसे होंगे?"मैं हल्की आवाजों में शिकायत की मानों पड़ोसी ना सुन ले कहीं..

"ओह मेरी जान, अब नहीं होगी ऐसी गलती..बस दो दिन की बात है..वैसे जीतने के बाद मैं भी पटना में ही रहूँगा." अंकल गलती स्वीकारते हुए बोले..

"सच में.."मैं उनके पटना रहने वाली बात सुन चहकती सी बोली..

"शत-प्रतिशत सच मेरी जान.."अंकल अपनी बात को पूरे विश्वसनीय करते हुए बोले..

मैं उन्हें पटना रहने की बात सुन भविष्य में होनी वाली अंकल से हर वक्त मुलाकात की दुनिया में खो गई..कैसे जब मन होगी तब मैं चली जाउंगी मिलने और अंकल की इच्छा हुई तो वे आ जाएंगे..

"हैल्लो साहिबा, कहां खो गई आप.."अंकल मेरी तरफ से कोई जवाब ना पाकर बोले..

मैं उनकी बात से झेंपती हुई मुस्कुराते हुए बोली,"कुछ नहीं अंकल."

"अच्छा, काफी बातचीत हो चुकी है, अब जल्दी से एक चुम्मा दे दो.."अंकल इस बात को खत्म कर नई बातें शुरू कर दी..

मैं अंकल की अचानक सी कही बात पर चौंक सी गई..फिर हँसते हुए बोली,"यहाँ से...?"

"हाँ, क्यों फोन पर श्याम को कभी नहीं दी क्या..अब बहाने मत बनाओ और जल्दी से दो..अभी घर पर ही हूँ तो ज्यादा देर बात करना ठीक नहीं होगा.."

मैं अंकल की बात और उनकी हालात समझ हल्की सी हँसी और फोन को अपने होंठो से सटाती हुई एक चुम्मी दे दी,"मुअअआआआह.."

"मिली ?"किस देने के बाद शर्माते हुए पूछी..

"क्या, तुम दे दी..उफ्फ..कितनी धीमी देती हो..कुछ सुनाई नहीं दिया..फिर से दो.."अंकल बिल्कुल ही नकारते हुए बोल पड़े..

मैं तो अंदर ही अंदर गुस्से से भर गई पर क्या कहती..

ठीक पहले वाली तरीके से पर ज्यादा जोर से एक और किस दे दी और बोली,"अब आप भी दो एक.."

जल्दी से मैं भी मांग ली ताकि फिर ना कहें कि नहीं मिली..मेरी किस मिलते ही आहें भरते हुए बोले,"आहह मेरी रानी..कितनी गरम थी किस.."

और उन्होंने फिर एक के बाद एक कई किस देते हुए बोलने लगे," ये होंठों पर, ये गालों पर...ये गर्दन पर...ये चुची पर...ये पेट पर...ये नाभि पर...

उनकी किस के क्रम को जल्द ही भांप गई और बीच में रोकती हुई बोली," बस,..बस.. अंकल..एक किस कब की हो चुकी."और हँस पड़ी जिससे अंकल भी हँस पड़े..

फिर हम दोनों बॉय कर फोन रख दिए..इस फोन के दौरान हुई किस से ही मेरी चूत पानी छोड़ने लगी थी..

मैंने जल्दी से साड़ी उतार फेंकी और चूत में एक साथ तीन उंगली घसेड़ दी..मुंह से एक आह निकल गई..

फिर तेज तेज चूत को चोदने की कोशिश करने लगी..


 मैं काफी देर तक उंगली चलाती रही पर मेरी चूत झड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी..इसे तो अब लण्ड की आदत पड़ गई थी..

अगर लंड को मेरी चूत स्पर्श भी कर लेती तो शायद झड़ जाती पर क्या करती..इस वक्त कहां से लाती लंड..पूजा के आने में भी अभी 3 घंटे बाकी थी..

तो क्या तब तक मैं तड़पूं..ये कुत्ते अंकल बेवजह हमें फंसा दिए..कितनी आराम से सोने वाली थी..

तभी मेरे दिमाग में एक आइडिया कौंधी..गांव में हमारी भाभी एक बार बहुत ही सुंदर और बड़ी सी ककड़ी हमें दिखाती हुई बोली थी," सीतीजी, ये चाहिए क्या?"

मैं तो समझी कि भाभी शायद खाने के लिए दे रही है..जैसे ही मैं लेने के लिए बढ़ी तो भाभी पीछे हटती बोली,"खाने के लिए नहीं दूँगी.."

मैं चौंकती हुई अपनी भौंहे खड़ी करती प्रश्नवाचक मुद्रा में देखने लगी..तो भाभी बड़ी ही बेशर्मी के साथ ककडी को अपनी चूत पर सटाई और बोली,"यहां डालने के लिए लीजीएगा तो बोलो.."

मैं चूत लंड जानती थी पर कभी कुछ की नहीं थी.. और भाभी की ऐसी बातें सुन मैं शर्म से लाल हो गई और गुस्से में "कमीनी" कहती भाग गई थी..पीछे भाभी जोर-2 से हंसने लगी..

मैं तेजी से उठी और किचन की तरफ भागी..सामने टोकरी में पड़ी ककड़ी जैसे ही दिखी मैं उठाई और एक ही झटके में अंदर कर ली..

फिर बेडरूम में ककड़ी डाले आई और बैठते हुए ककड़ी से चुदने लगी..कुछेक देर तक चलाने के बाद मेरी हाथ ऐंठने लगी..उफ्फ..अब ये कौन सी मुसीबत है..

मैं जल्द से जल्द झड़ना चाहती थी..हाथ में दर्द के बावजूद ककड़ी धकेलने लगी..पर जिस चूत की खुजली लंड से ही बुझती हो उसे ककड़ी से कैसे शांत करती..

मैं अब रोती हुई चीखती जा रही थी..अपनी ही चूत से रहम की भीख मांग रही थी कि मुझ पर तरस खाओ प्लीज...

पर ये कमीनी लंड की जिद किए जा रही थी..काफी देर बाद मेरी हालत देख थोड़ी सी रहम कर दी..

और मैं चीख पड़ी.. चूत अपनी सिर्फ छोटी नल खोली..मतलब झड़ तो रही थी पर खुजली नहीं मिटी थी..मैं सोची ककड़ी और डालती हूँ संतुष्ट भी हो जाऊं..

पर शाली चूत तो लॉक कर रखी थी बड़ी नल..बस धीमी-2 पानी बह रही थी..कुछ देर बाद तो वो पानी भी कम होती नजर आने लगी..

मैं गुस्से से खीझ उठी और ककड़ी को झटके से चूत से निकालती मुंह मेमं लेती जोरों से खच्च करती आधी काट ली..

कटे ककड़ी को धीमी गति से चबाए जा रही थी जो मेरी चूतरस से भींगी थी और सोचे जा रही थी कि अब क्या करूं..

अगर जल्द से जल्द कोई लंड की सूरत नहीं दिखाई तो से कमीनी हमें तड़पा-2 के जान लेगी..वो तो शुक्र है कि थोड़ी सी रहम कर दी..

झड़ तो गई थी पर खुजली कैसे मिटाऊँ...??






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