FUN-MAZA-MASTI
हाय मेरी सिल्क स्मिता-1
शेक्सपीयर जो अपने आपको बड़ा चाचा चौधरी समझता था, उसने कहा था कि बेशक गुलाब को अगर गुलाब की जगह किसी और नाम से पुकारा जाता तो क्या ? वो ऐसी भीनी भीनी खुशबू नहीं देता लेकिन टेम्स नदी के किनारे अँधेरे सीलन भरे कमरे में बैठ सिर्फ सस्ती रांडों को उधारी में चोद कर या उधारी न चुकाने पर सिर्फ मुठ मार मार कर इससे ज्यादा वो सोच भी क्या सकता था क्योंकि मेरी लाटरी तो सिर्फ नाम की वजह से ही निकली थी।
बात ज्यादा पुरानी नहीं, मेरी जवानी की शुरुआत के दिन थे…
चूँकि मेरा यह शहर मध्यभारत में मालवा के पठार पर बसा है, नए और पुराने को अपने में समेटे यह व्यावसायिक राजधानी होने के कारण कई प्रदेशों के लोग बेरोकटोक यहाँ आकर बसते गए जो अब कई संस्कृतियों का संगम सा बन गया है। बात चूँकि सच्ची है इस लिए स्थान नाम इन सब बंधनों से दूर आप को भरपूर आनन्द देने और किसी का राज़ न खोलने वाले अंदाज़ में इस किस्से का चित्रण करने की कोशिश की है क्यूंकि सभी की जिन्दगियाँ ऐसे अविस्मरणीय पलों को सहेजे बैठी है जो किसी को पता न चल जाए, इस डर से किसी से नहीं बांटते। मेरी कोशिश है, उम्मीद है, आपको पसंद आएगी जो एक घिसे पिटे ट्रैक पर कहानी पढ़ते हैं उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी क्योंकि उसमें जो सहज है, वही मैंने लिखा है जो मेरे साथ घटित हुआ…
तो हुआ दरअसल यह कि मेरी कालोनी शहर के पुराने हिस्से में आती है जहाँ कई पुराने परिवारों की ड्योढ़ीनुमा हवेलियाँ है जो राजवंश से भी जुड़े हैं, मेरे घर के सामने एक कम्पनी का स्टोर बंद पड़ा था क्योंकि कंपनी अब उसे इस्तेमाल नहीं करती थी। पिछले दिनों साथ में एक टेम्पररी टायलेट भी बना दिया गया और कंपनी के केशियर जो दक्षिण भारतीय थे अपनी पत्नी के साथ वहाँ रहने लगे, उनका नया मकान कहीं बन रहा था, बेटा दुबई में था और बेटी का कोई नर्सिंग कोर्स पूरा होने को था।
कंपनी का मालिक पिताजी का परिचित था, इस कारण हमारा परिवार उनके कहने पर उनका ख्याल रखता था जिससे उनका हमारे वहाँ आना जाना लगा रहता था। अंकल तो पापा से बाहर से मिल कर चले जाते थे, अकेलेपन की वजह से अक्सर आंटी हमारे वहाँ ही होती थी।
कुछ दिनों बाद मैंने गौर किया कि आंटी जब भी हमारे वहाँ आती, मेरे शार्ट्स में उभरे हुए लण्ड को निहारती रहती थी जो उनकी चिकनी त्वचा को देख कर बेकाबू हो जाया करता था, तो अब मुझे भी आंटी में थोड़ी रूचि होने लगी, जब भी रात में वो टायलेट में आती, उनके दरवाज़े की आवाज़ सुन कर मैं बालकनी में आ जाता और जब वो स्टोर में वापस जाने लगती तो मैं खांस या खंखार कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता लेकिन कभी वो पलट कर नहीं देखती।
अभी तक मोहल्ले की कई भाभियों, आंटियों और जवान होती नौकरानियों को में चोद चुका था, आंटी द्वारा मेरी यह अपेक्षा मुझ से सही नहीं जा रही थी। पहले मम्मी कुछ देने या उन्हें बुलाने का कहती तो मैं टाल देता था पर अब यह हाल था कि उनसे मिलने या सामीप्य का कोई मौका नहीं छोड़ता था।
आंटी को हिंदी नहीं आती थी पर इंग्लिश में काम चला लेती थी, कई बार में घर में उनके अनुवादक की तरह भी उनके साथ बैठ जाता था। चालीस बयालीस के लपेटे की यह श्यामल भरे भरे बदन वाली बड़े बड़े दूध से भरे शाही कटोरे सीने पर सजाये खुले दावत देते से महसूस होते थे, जब यह गजगामिनी गांड मटकाते चलती तो लौड़ा बाबुराम शार्ट्स में कोबरे सा फुंफकारने लगता और बिना उसके नाम की मुठ मारे संभाले नहीं संभलता, कभी कभी उनको छू लेता या बदन का कोई हिस्सा उनसे सटा लेता पहले तो चौंक कर देखती थी फिर बाद में ऐसा जताने लगतीं जैसे कुछ हुआ ही न हो, लेकिन कुछ बात बन नहीं रही थी।
लेकिन ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं ! जिसने चोदने और खोदने को लौड़ा दिया है उसी ने चूतों को भी सूखी खुजली दी है कि उन में बोरिंग करके पानी निकालें !
पिछले कुछ दिनों से हमारे शहर और फिर मोहल्ले में भी चैन खींचने की घटनाएँ बढ़ गई, मम्मी ने मुझे आंटी को सचेत करने को कहा क्योंकि भारत में सबसे ज्यादा सोना ये साऊथ वाली ही पहनती हैं, यहाँ तक कि उनकी पायल भी सोने की ही होती है, पर मैं उन्हें टालते से अंदाज़ में मैंने बिना उनकी ओर देखे कहा- अभी जल्दी में हूँ, बाद में समझा दूँगा।
मेरे इस व्यवहार से आंटी को बड़ा अजीब सा लगा पर मम्मी ने इस पर मुस्कुरा कर माहौल को सामान्य बना दिया।
कालेज के शुरु के दिन थे, कालेज से लौटकर अभी बाइक स्टैंड पर लगा ही रहा था कि पीछे से आंटी ने पुकारा, पहले ही कालेज की कमसिन कलियों ने लौड़े की माँ-भेन कर रखी थी, ऊपर से ठंडी आंटी जो भेनचोद इतनी गर्म है, पर बनती है। यह कहाँ से आ गई, अब इस उभरे लंड को कहाँ छुपाऊँ, भोसड़ी का जींस फाड़ने को बेताब है। सोच रहा था कि पापा फैक्टरी गए हैं, माँ सो रही होगी, मज़े से नई प्लेबाय मैगज़ीन जो आज ही दोस्त से छीन कर लाया था, देखकर मूठ मारूँगा।
“मुन्ना, मांजी सुबह क्या कह रही थी?” आंटी इंग्लिश में चहकी।
जब मैंने बताया तो ‘देवा देवा’ कह कर पेट पर हाथ रखा।
मैंने कहा- यहाँ हाथ क्यों रखा?
तो कहने लगी- सारा जेवर थैली में डाल के यहाँ गले में साउथ की स्टाइल में लटका रखा है।
मैंने कहा- दिखाओ !
तो कहने लगी- धत्त !! जा यहाँ से !
पर मैं जिद पर अड़ गया कि साउथ का स्टाइल क्या है।
इधर उधर देखते हुए जब कोई न दिखा तो आंटी ने तो थोड़ा सा कुरता उठाया। थैली किसने देखनी थी, सीधी ऊपर नज़र गई, अन्दर से ब्रेजियर में बंद कबूतरों के दर्शन हो गए। या तो इतने ही कड़क हैं या छोटी ब्रा पहनी हुई है, पास जाकर मैं थैली को छूने लगा तो चिहुँक कर हाथ झिड़का, जिससे कुरता हाथ से छूटा तो मेरा हाथ कुरते में रह गया, आंटी पीछे हटी तो बैलेंस बिगड़ा और मेरा एक हाथ अन्दर ही रह गया था उसमें उसका पूरा बूब आ गया। झटके से पीछे हटी तो कुरते की वजह से फिर उलझ कर मेरे पर गिरी तो उन्हें संभालने के चक्कर में दूसरा बोबा कुरते के बाहर से पूरे हाथ में समा गया।
ख़ैर वो संभली और बिना कुछ बोले अपने घर के अन्दर चली गई।
मैं भी अपने कमरे में चला गया लेकिन नज़ारा भूले नहीं भूलता, चिकनी, चमकदार चमड़ी का स्पर्श और चिकना पेट आँखों में घूमता रहा, माँ का भोंसड़ा प्लेबाय मैगजीन का ! अन्दर आकर आंटी के नाम की इकसठ बासठ चालू ! कूद के मनी बाहर और असीम शांति का अनुभव !
हाथरस में जो मज़ा, वो किसी और में कहाँ ! आप भी आनन्द से बैठो, हाथ भी हिलता रहे।
पर कल की इस घटना से मेरी फट भी रही थी कि आंटी माँ से आकर न बोल दे, फिर मुझे हंसी आ गई, अनुवाद तो मैं ही करूँगा, घंटा बोलेगी !दूसरे दिन आई तो मैंने छेड़ा- कल क्या हुआ बता दूँ?
बोली- ज्यादा स्मार्ट मत बनो, इशारों से तेरी माँ को समझा दूंगी !
मैं सीधा हो गया, यह तो मेरी गुरु निकली।
मम्मी बोली- क्या कह रही है?
मैंने कहा- कल जो आपने चेताया था, सावधान किया था उसके लिए आपको थैंक्स कह रही है।
खैर कुछ दिनों बाद दीदी के सुसराल में अचानक कुछ गमी होने के कारण सबको वहाँ एकाध हफ्ते के लिए जाना था, मम्मी मेरे लिए परेशान थी, उन्होंने मेरे खाने की बात आंटी से की तो वो बोली- कोई बात नहीं, इसकी फिकर मत करो !
फिर दोपहर में सब तैयारी में लगे थे, आंटी अपना मोबाइल लेकर मेरे पास आई कि- देख तो, इसमें पिक्चर नहीं खुल रही है।
मैं उनसे बिल्कुल सट कर बैठ गया और मोबाइल उन्हीं के हाथ में देकर बोला- आप बाद में कैसे समझोगी, आप खुद करो, मैं बताता जाता हूँ !
और अपना हाथ दीवान पर बैठे बैठे पीछे से चूतड़ों तक ले जाकर उसकी दरार पर अंगूठा टिका दिया फिर हाथ थोड़ा ऊपर सरका कर साइड से आंटी के बूब दबाता रहा कभी ऊपर कभी नीचे लेकिन वो कुछ न बोली, पर जैसे ही गर्दन पर कान के नीचे गर्म सांस छोड़ी, वो चौंक कर एकदम उठ गई।
वो मारा पापड़ वाले ने ! हर औरत की कहीं न कहीं किसी स्पाट बहुत ज्यादा सैंसेशनल होता है, तो यह है आंटी का कमज़ोर हिस्सा जिस पर एक वार से दीवार भरभरा कर गिर पड़ेगी।
आंटी डांटते से अंदाज़ में बोली- पर बाबा तू या तो कल तेरे अंकल के सामने ही आना और नहीं तो खिड़की से ही अपना नाश्ता खाना ले जाना क्योंकि तुझसे डर लग रहा है, कल तेरे अंकल ने चेतावनी दी है मेरे जाने के बाद दरवाज़ा बोल्ट कर लेना, कोई भी खटखटाए तो मत खोलना क्योंकि वो कंपनी के काम से शहर के बाहर जा रहे हैं, परसों सुबह ही आयेंगे।
मैं सर खुजाते हुए समझ नहीं पाया यह मेरे लिए खुली चेतावनी थी या छिपा आमंत्रण…
दूसरे दिन परिवार सुबह जल्दी ही निकल गया, मैं सोने का बहाना बनाये बिस्तर पर पड़ा रहा उनके जाने के बाद छिपकर खिड़की से देखता रहा कि कब अंकल निकलते हैं।
जैसे ही वो गए, मैं पहुँच गया, आंटी ने कहा- देर से क्यूँ आया… चल बोल मसाला रेडी है, इडली, डोसा, उपमा… क्या खाना है?
‘मैं तो कुछ और ही खाने के मूड में हूँ !’ फिर सर को झटक कर समय बचाने को कह दिया- यह सब मुझे ज्यादा पसंद नहीं, आप तो कुछ फास्ट फ़ूड जैसा बना दो !
आंटी मेरी आँखों में आँखें डालकर रहस्यमय ढंग से मुस्कुराती हुई बोली- फिर क्या पसंद है?
मैं अन्दर की तरफ बढ़ने लगा तो कहने लगी- अन्दर कंपनी का सामान फैला हुआ है, यही बेड पर बैठ जा !
उसी के पास उनकी छोटी सी साफ़ सुथरी रसोई उनके सुघड़ होने की चुगली कर रही थी।
आंटी ने एक छोटे कटोरे में ढेर सारी कतरी हुई बादाम, किशमिश, कार्नफ्लेक्स डालकर फ्रिज से ठंडा दूध मिला कर मुझे दे दिया दिया। मैंने कहा- इतनी बादाम डालोगी तो मुझे प्रॉब्लम हो जाएगी…
“क्या प्रॉब्लम हो जायेगी?” आंटी फिर साउथ की इंग्लिश में फड़की।
मैंने कहा- इसके बाद कुछ हो जाता है।
आंटी ने फिर वही रहस्यमई मुस्कान बिखेरी, मैं शरमा कर नीचे देखने लगा, बाबूराम सर पूरी ताकत से ताने कपड़े फाड़ कर बाहर निकलने को बेताब था और मैं शुक्र मना रहा था कि आज बरमूडा के जींस जैसे मोटे कपड़े ने इज्ज़त रख ली, वरना..
पर हमेशा की तरह शायद आंटी की नज़र भी वहीं थी, खंखार कर बोली- वहाँ क्या देख रहा है? वहाँ कुछ होता है क्या? इधर देख…
फिर प्याला देते समय आंटी ने दूध मेरे बरमूडा पर जान बूझकर छलका दिया और बिल्कुल मासूम सी बनते बोली- अरे ! सॉरी सन्नी, पूरा गीला हो गया, चलो लाओ, इसे उतार दो और अंकल की लुंगी बाँध लो !
लेकिन जब मैं नहीं माना तो थोड़ी सी नाराज़ हो गई और कहने लगी- मुझे मालूम है तू क्या चाहता है, रोज़ में जब रात मैं टायलेट जाती हूँ तो क्यों खांस कर बताता है कि तू मुझे देख रहा है, घर में भी तू तो मुझसे बहुत चिपकता है, आने दे तेरी माँ को, शिकायत करुँगी !
आंटी का नया रूप देखकर गांड फट गई, लौड़ा ऐसे पिचक गया जैसे किसी ने गुब्बारे में पिन मार दी हो, उतरा चेहरा और बैठा लौड़ा दोनों को देख कर आंटी ने दूसरा दांव चला, बड़ी जोर से हंसी और चहकी- अरे सन्नी, मैं तो मज़ाक कर रही थी। अच्छा तू मेरी एक परेशानी सुलझा दे, तेरे अंकल बता रहे थे तुम लोगो का सरनेम होलकर है। पहली बार इसे इंग्लिश में सोचा तो हंसी आ गई, होल करने वाले ! तो तेरे अंकल बताने लगे कि वैसे तो इंग्लिश से कुछ संम्बंध नहीं पर इनके हथियार बहुत मशहूर हैं।
मैंने चौंक कर कहा- हथियार?
क्योंकि यह पहले भी कई दोस्तों से सुन चुका था, आपको एक बात बता दूँ हमारे पूर्वज पहले इस क्षेत्र पर शासन करते थे, अब तो नाम या यह कहें कि बदनाम ही रह गया है क्योंकि ब्रिटिश राज में एक राजकुमार द्वारा एक वेश्या और उसके आशिक की हत्या में राज परिवार की बहुत थू थू हुई थी। हमारे वंश के लंबे लंड और स्तम्भन शक्ति पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध है। दूसरी बात जो शक्ति वर्धक चूर्ण वोह खाते थे, उससे लौड़े घातक होकर बहुत देर तक चलते थे बल्कि जिस काग़ज़ की पुड़िया में काम शक्तिवर्धक चूर्ण होता था खाने के बाद उसे फेंकते तो उसे उठाने में वहाँ सैनिकों में घमासान हो जाता था क्यूंकि वो कागज़ जो भी उसे चाट लेते थे वह भी दो दो घंटे अपनी औरतों को चौदते थे। कहा तो यह भी जाता है अब भी पिता अपने नौजवान बेटों को किसी न किसी बहाने से यह शक्ति वर्धक चूर्ण चटा ही देते हैं…
तो देखा नाम का जादू बेचारा शेक्सपियर…
आंटी के मुंह से हथियार की बात सुनते ही थोड़ा संभलते हुए मैंने सोचा- अब गई भैंस पानी में ! अंकल तो आने वाले नहीं ! और अब गेंद मेरे पाले में है, अगर आज ढंग से नहीं खेला तो यह आंटी कभी हाथ नहीं धरने देगी।
मैंने पैंतरा बदल कर नई चाल चलते हुए ‘अब जो होना है हो जाए’ थोड़ी हिम्मत करते हुए कहा- इसके दर्शन की अनोखी परंपरा है आप नहीं निभा पाओगी ! हथियार बिना कपड़े के (अनावृत) बाहर निकलने के बाद सर पर छुआ कर प्रणाम करना पड़ता है, जो फिर कोई बात नहीं, कोई भी शीश नवा ले, पर जब हथियार दूध में नहाया हो तो प्रणाम की स्थिति भिन्न होती है दर्शनाभिलाषी को दूध अपनी जीभ से चाट कर साफ़ करना पड़ता है आप कहो तो ठीक, नहीं तो मैं वैसे ही ठीक हूँ…
आंटी फिर धत ! कह कर मुंह में अपने सर पर बंधा सफ़ेद काटन का कपड़ा जो उन्होंने नहा कर बाँधा था, हँसते हुए मुंह में ठूंस लिया। मैंने भी सोचा कि पासा सही पड़ा है, मैं उठने लगा कि जाकर बरमूडा बदलता हूँ, कार्नफ्लेक्स घर पर ही खा लूँगा।
तो आंटी आगे बढ़ी, शायद इस मौके को वो भी गंवाना नहीं चाहती थीं, अचानक मेरे लंड पर हाथ रख कर बोली- यही विधि है तो यही सही, पर तू अंकल की लुंगी तो बाँध ले !
कह कर मेरा बरमूडा नीचे खींच दिया, इलास्टिक बेल्ट से टकराते हुए फट की आवाज़ से लौड़ा बाहर कूद पड़ा। आंटी के मुंह से वाह ! निकला और अगले ही पल लौड़ा गप से मुंह में भर लिया और चुसना शुरू किया बल्कि ये कहें कि जंगली बिल्ली की तरह उस पर झपट पड़ी और ऐसे चूसने लगी लगा काट कर खा ही जायेगी, लौड़े की जड़ में चिरमिराहट और जलन हो रही थी !
मादरचोद रांडों को भी मात कर रही थी, पूरा सरकाते हुए कंठ तक ले जाती, मुंह से जब गुं… गूं… की आवाज़ आने लगती और ऐसा लगता यह उल्टी न कर दे फिर पुच्च की आवाज़ से लौड़ा बाहर उगल देती, फिर थू कर के उस पर थूकती, फिर चूसने लगती ! जब पूरा कंठ तक उतार लेती तो उलटी जैसी हालत हो जाती और आँखों में आंसू तैर जाते थोड़ी देर सांस लेने के लिए मुंह से निकालती भी तो हाथ से लगातार रगड़े जाती।
लौड़ा ऐसे चूस रही थी, डर होता था टूट ही न जाए, लेकिन काफी जोर आज़माइश के बाद भी जब कुछ न हुआ, शायद आंटी का ब्लू फिल्म का अनुभव भी काम न आया तो उसकी आँखें चमक उठी उधर मेरी यह हालत थी कि बस ! क्योंकि अगर ये प्यार से चूसती तो शायद में झड़ भी जाता या फिर शायद रात में आंटी के नाम की मुठ मारने की वजह से अभी तक जोर बना हुआ था।
थक कर प्यार से देखते हुए आँखों ही आँखों में बोली- वाकयी, यथा नाम तथा गुण !
मैंने कहा- आप जबरदस्ती परेशान हुई और मुझे बड़े धर्म संकट में डाल दिया। अब मैं क्या करूँ, घर कैसे जाऊँ? किसी ने देख लिया तो? अब जब तक इसको ठंडक नहीं मिलेगी, बैठेगा नहीं, आपका मुंह गर्म है, कहीं और की गर्मी भी उल्टा काम करती है जैसे टांगों के बीच की गर्मी ! अब क्या करूँ यह कैसे बैठेगा…
बड़बड़ाते हुए मासूमियत से आंटी के चेहरे को देखा, अब वहाँ आँखों में लाल डोरे तैर रहे थे, बाल चेहरे पर ऐसे झूम रहे थे जैसे मेघ छोटी सी पहाड़ी के गिर्द घेरा डाले हों, गालों के गड्ढे सिल्क स्मिता की सेक्सी इमेज के हर रिकार्ड को तोड़ने में बिजी थे, हर सांस पर सीना सुनामी ला रहा था।
आंटी मुझे अपने तरफ ऐसे देखते बोली- नहीं, चल थोड़ी और कोशिश करती हूँ !
फिर पास की मेज से एक हाल्स की गोली मुंह में डाली और उसे चूसने लगी, हाथ से लौड़ा भी हिलाती जा रही थी। किस्मत की बात मैंने रात में ही मुठ मार ली थी। हाल्स का थूक मेरे लंड पर गिरा कर फिर गरम मुंह और बहार निकलती तो हाल्स के कारण हवा से ठंडा लगता इस ठन्डे गरम से फुरेरी आने लगी और कई बार लगा बस अब छुट हुई के तब ! वीर्य कूद कर बाहर आ ही जायेगा, जैसा ही ऐसा होने लगता अपना ध्यान इस सबसे भटका और हटाकर आंटी को छेड़कर कहता- अब कुछ नहीं होगा अब तो सारे छेद भर कर भी नहीं मानेगा यह लेज़र गाईडेड मिसाईल से भी ज्यादा खतरनाक हो गया है।
थोड़ी देर कोशिश के बाद हिम्मत टूट गई और आंटी कहने लगी- बस अब मेरा मुंह दुःख गया ! अब तू जो चाहे कर राजा, मैं तेरी दासी !
उन्होंने सर पर कपड़ा कब लपेट लिया था, ध्यान ही नहीं रहा। ‘हाय मेरी सिल्क स्मिता !’ मैंने दिल में सोचा, मैंने धीरे से सर का कपड़ा खोला तो सीले सीले बाल मेरे ऊपर आ गए। मैंने धीरे से ब्लाउज के बटन को एक उंगली से स्टाईल से उचकाकर खोला तो बूब्स बाहर उछल पड़े और आंटी माधवी और भानुप्रिया के मिलेजुले रूप में मेरी स्टाईल पर दाद देती सी लगी कि ‘राजा बहुत घाटों का पानी पिए लगते हो?’ और आँखों में वो चमक आई जो बराबर वाले खिलाड़ी से प्रतिस्पर्धा में आती है।
खुसरो बाज़ी प्रेम की
मैं खेलूँ पी के संग
जीत गई तो पीया मोरे,
हारी तो मैं पी के संग !
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बात ज्यादा पुरानी नहीं, मेरी जवानी की शुरुआत के दिन थे…
चूँकि मेरा यह शहर मध्यभारत में मालवा के पठार पर बसा है, नए और पुराने को अपने में समेटे यह व्यावसायिक राजधानी होने के कारण कई प्रदेशों के लोग बेरोकटोक यहाँ आकर बसते गए जो अब कई संस्कृतियों का संगम सा बन गया है। बात चूँकि सच्ची है इस लिए स्थान नाम इन सब बंधनों से दूर आप को भरपूर आनन्द देने और किसी का राज़ न खोलने वाले अंदाज़ में इस किस्से का चित्रण करने की कोशिश की है क्यूंकि सभी की जिन्दगियाँ ऐसे अविस्मरणीय पलों को सहेजे बैठी है जो किसी को पता न चल जाए, इस डर से किसी से नहीं बांटते। मेरी कोशिश है, उम्मीद है, आपको पसंद आएगी जो एक घिसे पिटे ट्रैक पर कहानी पढ़ते हैं उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी क्योंकि उसमें जो सहज है, वही मैंने लिखा है जो मेरे साथ घटित हुआ…
तो हुआ दरअसल यह कि मेरी कालोनी शहर के पुराने हिस्से में आती है जहाँ कई पुराने परिवारों की ड्योढ़ीनुमा हवेलियाँ है जो राजवंश से भी जुड़े हैं, मेरे घर के सामने एक कम्पनी का स्टोर बंद पड़ा था क्योंकि कंपनी अब उसे इस्तेमाल नहीं करती थी। पिछले दिनों साथ में एक टेम्पररी टायलेट भी बना दिया गया और कंपनी के केशियर जो दक्षिण भारतीय थे अपनी पत्नी के साथ वहाँ रहने लगे, उनका नया मकान कहीं बन रहा था, बेटा दुबई में था और बेटी का कोई नर्सिंग कोर्स पूरा होने को था।
कंपनी का मालिक पिताजी का परिचित था, इस कारण हमारा परिवार उनके कहने पर उनका ख्याल रखता था जिससे उनका हमारे वहाँ आना जाना लगा रहता था। अंकल तो पापा से बाहर से मिल कर चले जाते थे, अकेलेपन की वजह से अक्सर आंटी हमारे वहाँ ही होती थी।
कुछ दिनों बाद मैंने गौर किया कि आंटी जब भी हमारे वहाँ आती, मेरे शार्ट्स में उभरे हुए लण्ड को निहारती रहती थी जो उनकी चिकनी त्वचा को देख कर बेकाबू हो जाया करता था, तो अब मुझे भी आंटी में थोड़ी रूचि होने लगी, जब भी रात में वो टायलेट में आती, उनके दरवाज़े की आवाज़ सुन कर मैं बालकनी में आ जाता और जब वो स्टोर में वापस जाने लगती तो मैं खांस या खंखार कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता लेकिन कभी वो पलट कर नहीं देखती।
अभी तक मोहल्ले की कई भाभियों, आंटियों और जवान होती नौकरानियों को में चोद चुका था, आंटी द्वारा मेरी यह अपेक्षा मुझ से सही नहीं जा रही थी। पहले मम्मी कुछ देने या उन्हें बुलाने का कहती तो मैं टाल देता था पर अब यह हाल था कि उनसे मिलने या सामीप्य का कोई मौका नहीं छोड़ता था।
आंटी को हिंदी नहीं आती थी पर इंग्लिश में काम चला लेती थी, कई बार में घर में उनके अनुवादक की तरह भी उनके साथ बैठ जाता था। चालीस बयालीस के लपेटे की यह श्यामल भरे भरे बदन वाली बड़े बड़े दूध से भरे शाही कटोरे सीने पर सजाये खुले दावत देते से महसूस होते थे, जब यह गजगामिनी गांड मटकाते चलती तो लौड़ा बाबुराम शार्ट्स में कोबरे सा फुंफकारने लगता और बिना उसके नाम की मुठ मारे संभाले नहीं संभलता, कभी कभी उनको छू लेता या बदन का कोई हिस्सा उनसे सटा लेता पहले तो चौंक कर देखती थी फिर बाद में ऐसा जताने लगतीं जैसे कुछ हुआ ही न हो, लेकिन कुछ बात बन नहीं रही थी।
लेकिन ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं ! जिसने चोदने और खोदने को लौड़ा दिया है उसी ने चूतों को भी सूखी खुजली दी है कि उन में बोरिंग करके पानी निकालें !
पिछले कुछ दिनों से हमारे शहर और फिर मोहल्ले में भी चैन खींचने की घटनाएँ बढ़ गई, मम्मी ने मुझे आंटी को सचेत करने को कहा क्योंकि भारत में सबसे ज्यादा सोना ये साऊथ वाली ही पहनती हैं, यहाँ तक कि उनकी पायल भी सोने की ही होती है, पर मैं उन्हें टालते से अंदाज़ में मैंने बिना उनकी ओर देखे कहा- अभी जल्दी में हूँ, बाद में समझा दूँगा।
मेरे इस व्यवहार से आंटी को बड़ा अजीब सा लगा पर मम्मी ने इस पर मुस्कुरा कर माहौल को सामान्य बना दिया।
कालेज के शुरु के दिन थे, कालेज से लौटकर अभी बाइक स्टैंड पर लगा ही रहा था कि पीछे से आंटी ने पुकारा, पहले ही कालेज की कमसिन कलियों ने लौड़े की माँ-भेन कर रखी थी, ऊपर से ठंडी आंटी जो भेनचोद इतनी गर्म है, पर बनती है। यह कहाँ से आ गई, अब इस उभरे लंड को कहाँ छुपाऊँ, भोसड़ी का जींस फाड़ने को बेताब है। सोच रहा था कि पापा फैक्टरी गए हैं, माँ सो रही होगी, मज़े से नई प्लेबाय मैगज़ीन जो आज ही दोस्त से छीन कर लाया था, देखकर मूठ मारूँगा।
“मुन्ना, मांजी सुबह क्या कह रही थी?” आंटी इंग्लिश में चहकी।
जब मैंने बताया तो ‘देवा देवा’ कह कर पेट पर हाथ रखा।
मैंने कहा- यहाँ हाथ क्यों रखा?
तो कहने लगी- सारा जेवर थैली में डाल के यहाँ गले में साउथ की स्टाइल में लटका रखा है।
मैंने कहा- दिखाओ !
तो कहने लगी- धत्त !! जा यहाँ से !
पर मैं जिद पर अड़ गया कि साउथ का स्टाइल क्या है।
इधर उधर देखते हुए जब कोई न दिखा तो आंटी ने तो थोड़ा सा कुरता उठाया। थैली किसने देखनी थी, सीधी ऊपर नज़र गई, अन्दर से ब्रेजियर में बंद कबूतरों के दर्शन हो गए। या तो इतने ही कड़क हैं या छोटी ब्रा पहनी हुई है, पास जाकर मैं थैली को छूने लगा तो चिहुँक कर हाथ झिड़का, जिससे कुरता हाथ से छूटा तो मेरा हाथ कुरते में रह गया, आंटी पीछे हटी तो बैलेंस बिगड़ा और मेरा एक हाथ अन्दर ही रह गया था उसमें उसका पूरा बूब आ गया। झटके से पीछे हटी तो कुरते की वजह से फिर उलझ कर मेरे पर गिरी तो उन्हें संभालने के चक्कर में दूसरा बोबा कुरते के बाहर से पूरे हाथ में समा गया।
ख़ैर वो संभली और बिना कुछ बोले अपने घर के अन्दर चली गई।
मैं भी अपने कमरे में चला गया लेकिन नज़ारा भूले नहीं भूलता, चिकनी, चमकदार चमड़ी का स्पर्श और चिकना पेट आँखों में घूमता रहा, माँ का भोंसड़ा प्लेबाय मैगजीन का ! अन्दर आकर आंटी के नाम की इकसठ बासठ चालू ! कूद के मनी बाहर और असीम शांति का अनुभव !
हाथरस में जो मज़ा, वो किसी और में कहाँ ! आप भी आनन्द से बैठो, हाथ भी हिलता रहे।
पर कल की इस घटना से मेरी फट भी रही थी कि आंटी माँ से आकर न बोल दे, फिर मुझे हंसी आ गई, अनुवाद तो मैं ही करूँगा, घंटा बोलेगी !दूसरे दिन आई तो मैंने छेड़ा- कल क्या हुआ बता दूँ?
बोली- ज्यादा स्मार्ट मत बनो, इशारों से तेरी माँ को समझा दूंगी !
मैं सीधा हो गया, यह तो मेरी गुरु निकली।
मम्मी बोली- क्या कह रही है?
मैंने कहा- कल जो आपने चेताया था, सावधान किया था उसके लिए आपको थैंक्स कह रही है।
खैर कुछ दिनों बाद दीदी के सुसराल में अचानक कुछ गमी होने के कारण सबको वहाँ एकाध हफ्ते के लिए जाना था, मम्मी मेरे लिए परेशान थी, उन्होंने मेरे खाने की बात आंटी से की तो वो बोली- कोई बात नहीं, इसकी फिकर मत करो !
फिर दोपहर में सब तैयारी में लगे थे, आंटी अपना मोबाइल लेकर मेरे पास आई कि- देख तो, इसमें पिक्चर नहीं खुल रही है।
मैं उनसे बिल्कुल सट कर बैठ गया और मोबाइल उन्हीं के हाथ में देकर बोला- आप बाद में कैसे समझोगी, आप खुद करो, मैं बताता जाता हूँ !
और अपना हाथ दीवान पर बैठे बैठे पीछे से चूतड़ों तक ले जाकर उसकी दरार पर अंगूठा टिका दिया फिर हाथ थोड़ा ऊपर सरका कर साइड से आंटी के बूब दबाता रहा कभी ऊपर कभी नीचे लेकिन वो कुछ न बोली, पर जैसे ही गर्दन पर कान के नीचे गर्म सांस छोड़ी, वो चौंक कर एकदम उठ गई।
वो मारा पापड़ वाले ने ! हर औरत की कहीं न कहीं किसी स्पाट बहुत ज्यादा सैंसेशनल होता है, तो यह है आंटी का कमज़ोर हिस्सा जिस पर एक वार से दीवार भरभरा कर गिर पड़ेगी।
आंटी डांटते से अंदाज़ में बोली- पर बाबा तू या तो कल तेरे अंकल के सामने ही आना और नहीं तो खिड़की से ही अपना नाश्ता खाना ले जाना क्योंकि तुझसे डर लग रहा है, कल तेरे अंकल ने चेतावनी दी है मेरे जाने के बाद दरवाज़ा बोल्ट कर लेना, कोई भी खटखटाए तो मत खोलना क्योंकि वो कंपनी के काम से शहर के बाहर जा रहे हैं, परसों सुबह ही आयेंगे।
मैं सर खुजाते हुए समझ नहीं पाया यह मेरे लिए खुली चेतावनी थी या छिपा आमंत्रण…
दूसरे दिन परिवार सुबह जल्दी ही निकल गया, मैं सोने का बहाना बनाये बिस्तर पर पड़ा रहा उनके जाने के बाद छिपकर खिड़की से देखता रहा कि कब अंकल निकलते हैं।
जैसे ही वो गए, मैं पहुँच गया, आंटी ने कहा- देर से क्यूँ आया… चल बोल मसाला रेडी है, इडली, डोसा, उपमा… क्या खाना है?
‘मैं तो कुछ और ही खाने के मूड में हूँ !’ फिर सर को झटक कर समय बचाने को कह दिया- यह सब मुझे ज्यादा पसंद नहीं, आप तो कुछ फास्ट फ़ूड जैसा बना दो !
आंटी मेरी आँखों में आँखें डालकर रहस्यमय ढंग से मुस्कुराती हुई बोली- फिर क्या पसंद है?
मैं अन्दर की तरफ बढ़ने लगा तो कहने लगी- अन्दर कंपनी का सामान फैला हुआ है, यही बेड पर बैठ जा !
उसी के पास उनकी छोटी सी साफ़ सुथरी रसोई उनके सुघड़ होने की चुगली कर रही थी।
आंटी ने एक छोटे कटोरे में ढेर सारी कतरी हुई बादाम, किशमिश, कार्नफ्लेक्स डालकर फ्रिज से ठंडा दूध मिला कर मुझे दे दिया दिया। मैंने कहा- इतनी बादाम डालोगी तो मुझे प्रॉब्लम हो जाएगी…
“क्या प्रॉब्लम हो जायेगी?” आंटी फिर साउथ की इंग्लिश में फड़की।
मैंने कहा- इसके बाद कुछ हो जाता है।
आंटी ने फिर वही रहस्यमई मुस्कान बिखेरी, मैं शरमा कर नीचे देखने लगा, बाबूराम सर पूरी ताकत से ताने कपड़े फाड़ कर बाहर निकलने को बेताब था और मैं शुक्र मना रहा था कि आज बरमूडा के जींस जैसे मोटे कपड़े ने इज्ज़त रख ली, वरना..
पर हमेशा की तरह शायद आंटी की नज़र भी वहीं थी, खंखार कर बोली- वहाँ क्या देख रहा है? वहाँ कुछ होता है क्या? इधर देख…
फिर प्याला देते समय आंटी ने दूध मेरे बरमूडा पर जान बूझकर छलका दिया और बिल्कुल मासूम सी बनते बोली- अरे ! सॉरी सन्नी, पूरा गीला हो गया, चलो लाओ, इसे उतार दो और अंकल की लुंगी बाँध लो !
लेकिन जब मैं नहीं माना तो थोड़ी सी नाराज़ हो गई और कहने लगी- मुझे मालूम है तू क्या चाहता है, रोज़ में जब रात मैं टायलेट जाती हूँ तो क्यों खांस कर बताता है कि तू मुझे देख रहा है, घर में भी तू तो मुझसे बहुत चिपकता है, आने दे तेरी माँ को, शिकायत करुँगी !
आंटी का नया रूप देखकर गांड फट गई, लौड़ा ऐसे पिचक गया जैसे किसी ने गुब्बारे में पिन मार दी हो, उतरा चेहरा और बैठा लौड़ा दोनों को देख कर आंटी ने दूसरा दांव चला, बड़ी जोर से हंसी और चहकी- अरे सन्नी, मैं तो मज़ाक कर रही थी। अच्छा तू मेरी एक परेशानी सुलझा दे, तेरे अंकल बता रहे थे तुम लोगो का सरनेम होलकर है। पहली बार इसे इंग्लिश में सोचा तो हंसी आ गई, होल करने वाले ! तो तेरे अंकल बताने लगे कि वैसे तो इंग्लिश से कुछ संम्बंध नहीं पर इनके हथियार बहुत मशहूर हैं।
मैंने चौंक कर कहा- हथियार?
क्योंकि यह पहले भी कई दोस्तों से सुन चुका था, आपको एक बात बता दूँ हमारे पूर्वज पहले इस क्षेत्र पर शासन करते थे, अब तो नाम या यह कहें कि बदनाम ही रह गया है क्योंकि ब्रिटिश राज में एक राजकुमार द्वारा एक वेश्या और उसके आशिक की हत्या में राज परिवार की बहुत थू थू हुई थी। हमारे वंश के लंबे लंड और स्तम्भन शक्ति पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध है। दूसरी बात जो शक्ति वर्धक चूर्ण वोह खाते थे, उससे लौड़े घातक होकर बहुत देर तक चलते थे बल्कि जिस काग़ज़ की पुड़िया में काम शक्तिवर्धक चूर्ण होता था खाने के बाद उसे फेंकते तो उसे उठाने में वहाँ सैनिकों में घमासान हो जाता था क्यूंकि वो कागज़ जो भी उसे चाट लेते थे वह भी दो दो घंटे अपनी औरतों को चौदते थे। कहा तो यह भी जाता है अब भी पिता अपने नौजवान बेटों को किसी न किसी बहाने से यह शक्ति वर्धक चूर्ण चटा ही देते हैं…
तो देखा नाम का जादू बेचारा शेक्सपियर…
आंटी के मुंह से हथियार की बात सुनते ही थोड़ा संभलते हुए मैंने सोचा- अब गई भैंस पानी में ! अंकल तो आने वाले नहीं ! और अब गेंद मेरे पाले में है, अगर आज ढंग से नहीं खेला तो यह आंटी कभी हाथ नहीं धरने देगी।
मैंने पैंतरा बदल कर नई चाल चलते हुए ‘अब जो होना है हो जाए’ थोड़ी हिम्मत करते हुए कहा- इसके दर्शन की अनोखी परंपरा है आप नहीं निभा पाओगी ! हथियार बिना कपड़े के (अनावृत) बाहर निकलने के बाद सर पर छुआ कर प्रणाम करना पड़ता है, जो फिर कोई बात नहीं, कोई भी शीश नवा ले, पर जब हथियार दूध में नहाया हो तो प्रणाम की स्थिति भिन्न होती है दर्शनाभिलाषी को दूध अपनी जीभ से चाट कर साफ़ करना पड़ता है आप कहो तो ठीक, नहीं तो मैं वैसे ही ठीक हूँ…
आंटी फिर धत ! कह कर मुंह में अपने सर पर बंधा सफ़ेद काटन का कपड़ा जो उन्होंने नहा कर बाँधा था, हँसते हुए मुंह में ठूंस लिया। मैंने भी सोचा कि पासा सही पड़ा है, मैं उठने लगा कि जाकर बरमूडा बदलता हूँ, कार्नफ्लेक्स घर पर ही खा लूँगा।
तो आंटी आगे बढ़ी, शायद इस मौके को वो भी गंवाना नहीं चाहती थीं, अचानक मेरे लंड पर हाथ रख कर बोली- यही विधि है तो यही सही, पर तू अंकल की लुंगी तो बाँध ले !
कह कर मेरा बरमूडा नीचे खींच दिया, इलास्टिक बेल्ट से टकराते हुए फट की आवाज़ से लौड़ा बाहर कूद पड़ा। आंटी के मुंह से वाह ! निकला और अगले ही पल लौड़ा गप से मुंह में भर लिया और चुसना शुरू किया बल्कि ये कहें कि जंगली बिल्ली की तरह उस पर झपट पड़ी और ऐसे चूसने लगी लगा काट कर खा ही जायेगी, लौड़े की जड़ में चिरमिराहट और जलन हो रही थी !
मादरचोद रांडों को भी मात कर रही थी, पूरा सरकाते हुए कंठ तक ले जाती, मुंह से जब गुं… गूं… की आवाज़ आने लगती और ऐसा लगता यह उल्टी न कर दे फिर पुच्च की आवाज़ से लौड़ा बाहर उगल देती, फिर थू कर के उस पर थूकती, फिर चूसने लगती ! जब पूरा कंठ तक उतार लेती तो उलटी जैसी हालत हो जाती और आँखों में आंसू तैर जाते थोड़ी देर सांस लेने के लिए मुंह से निकालती भी तो हाथ से लगातार रगड़े जाती।
लौड़ा ऐसे चूस रही थी, डर होता था टूट ही न जाए, लेकिन काफी जोर आज़माइश के बाद भी जब कुछ न हुआ, शायद आंटी का ब्लू फिल्म का अनुभव भी काम न आया तो उसकी आँखें चमक उठी उधर मेरी यह हालत थी कि बस ! क्योंकि अगर ये प्यार से चूसती तो शायद में झड़ भी जाता या फिर शायद रात में आंटी के नाम की मुठ मारने की वजह से अभी तक जोर बना हुआ था।
थक कर प्यार से देखते हुए आँखों ही आँखों में बोली- वाकयी, यथा नाम तथा गुण !
मैंने कहा- आप जबरदस्ती परेशान हुई और मुझे बड़े धर्म संकट में डाल दिया। अब मैं क्या करूँ, घर कैसे जाऊँ? किसी ने देख लिया तो? अब जब तक इसको ठंडक नहीं मिलेगी, बैठेगा नहीं, आपका मुंह गर्म है, कहीं और की गर्मी भी उल्टा काम करती है जैसे टांगों के बीच की गर्मी ! अब क्या करूँ यह कैसे बैठेगा…
बड़बड़ाते हुए मासूमियत से आंटी के चेहरे को देखा, अब वहाँ आँखों में लाल डोरे तैर रहे थे, बाल चेहरे पर ऐसे झूम रहे थे जैसे मेघ छोटी सी पहाड़ी के गिर्द घेरा डाले हों, गालों के गड्ढे सिल्क स्मिता की सेक्सी इमेज के हर रिकार्ड को तोड़ने में बिजी थे, हर सांस पर सीना सुनामी ला रहा था।
आंटी मुझे अपने तरफ ऐसे देखते बोली- नहीं, चल थोड़ी और कोशिश करती हूँ !
फिर पास की मेज से एक हाल्स की गोली मुंह में डाली और उसे चूसने लगी, हाथ से लौड़ा भी हिलाती जा रही थी। किस्मत की बात मैंने रात में ही मुठ मार ली थी। हाल्स का थूक मेरे लंड पर गिरा कर फिर गरम मुंह और बहार निकलती तो हाल्स के कारण हवा से ठंडा लगता इस ठन्डे गरम से फुरेरी आने लगी और कई बार लगा बस अब छुट हुई के तब ! वीर्य कूद कर बाहर आ ही जायेगा, जैसा ही ऐसा होने लगता अपना ध्यान इस सबसे भटका और हटाकर आंटी को छेड़कर कहता- अब कुछ नहीं होगा अब तो सारे छेद भर कर भी नहीं मानेगा यह लेज़र गाईडेड मिसाईल से भी ज्यादा खतरनाक हो गया है।
थोड़ी देर कोशिश के बाद हिम्मत टूट गई और आंटी कहने लगी- बस अब मेरा मुंह दुःख गया ! अब तू जो चाहे कर राजा, मैं तेरी दासी !
उन्होंने सर पर कपड़ा कब लपेट लिया था, ध्यान ही नहीं रहा। ‘हाय मेरी सिल्क स्मिता !’ मैंने दिल में सोचा, मैंने धीरे से सर का कपड़ा खोला तो सीले सीले बाल मेरे ऊपर आ गए। मैंने धीरे से ब्लाउज के बटन को एक उंगली से स्टाईल से उचकाकर खोला तो बूब्स बाहर उछल पड़े और आंटी माधवी और भानुप्रिया के मिलेजुले रूप में मेरी स्टाईल पर दाद देती सी लगी कि ‘राजा बहुत घाटों का पानी पिए लगते हो?’ और आँखों में वो चमक आई जो बराबर वाले खिलाड़ी से प्रतिस्पर्धा में आती है।
खुसरो बाज़ी प्रेम की
मैं खेलूँ पी के संग
जीत गई तो पीया मोरे,
हारी तो मैं पी के संग !
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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