FUN-MAZA-MASTI
मैं अन्दर आया तो ललिता सामने सोफे पर बैठी हुई थी। स्किन कलर की एकदम चुस्त लेग्गी और स्लीवलैस टॉप उसने पहना हुआ था। दोनों ही एकदम कातिल लग रही थीं। डॉली मेरे कपड़े रखने अन्दर चली गई.. जाते हुए उसने कहा।
डॉली- ललिता.. ये तेरे एंप्लाई की असली पहचान है.. हा हा हा हा..
ललिता- हाँ सच कहा तुमने.. आज इसका एक और इंटरव्यू होगा.. देखते हैं ये पास होता है या फेल.. हा हा हा हा.. राज यहाँ आओ और मेरे सामने खड़े हो जाओ..
मैं ठीक ललिता के सामने जाकर खड़ा हो गया। वो मुझे नीचे से लेकर ऊपर तक देखने लगी.. तभी डॉली अन्दर से बाहर आकर ललिता के बाजू में बैठ गई।
ललिता- देखो डॉली.. मेरी तरफ ऑफिस में घूर-घूर कर देखने वाले को आज भगवान ने मेरे ही सामने बिना कपड़ों का खड़ा कर दिया…
डॉली- हा हा हा हा.. जैसी करनी वैसी भरनी..
शायद मेरे साथ अगले 2 दिन होने वाले अत्याचार की यह शुरूआत थी।
ललिता ने मुझे मुड़ने के लिए कहा.. वो मुझे पीछे से देखना चाहती थी, मेरे मुड़ते ही मेरी गाण्ड देखकर वो बोली।
ललिता- डॉली.. हा हा हा हा.. इसकी गाण्ड इतनी मुलायम और शेप में है.. बिल्कुल नहीं लगता कोई मेल के चूतड़ हैं ये.. हा हा हा हा हा..
दोनों हँस पड़ीं.. पहली बार मुझे बहुत शर्म आ रही थी। मुझसे बड़ी दो औरतों के सामने.. मैं बेशरम जैसा नंगा खड़ा था।
ललिता ने मुझे झुकाकर पैर फैलाने के लिए कहा।
ललिता- वॉऊ.. कितना मस्त गाण्ड का छेद है इसका.. और ये देखो इसकी छोटी-छोटी सी गोटियाँ कितनी क्यूट लग रही हैं..
डॉली- हा हा हा हा.. हाँ ना.. ऐसा लग रहा है.. जैसे कोई छोटा बच्चा सामने नंगा खड़ा हुआ है..
वो दोनों शायद जानबूझ कर मुझे अपनी बातों से सताए जा रही थीं। ना चाहते हुए भी मैं वो सब सहन कर रहा था क्योंकि मेरी ही इच्छा से ही मैंने अपने आपको उन दोनों के हाथ सौंप दिया था।
ललिता- अब ठीक से खड़े हो जाओ और सामने वाला तिपाई लाकर उस पर खड़े हो कर 20 उठक-बैठक करो.. मुझे गंदी नज़र से ऑफिस मे देखने के लिए.. यह तुम्हारी सज़ा है।
मैं चुपचाप तिपाई पर खड़ा रह कर उठक-बैठक करने लगा.. मेरा छोटा सा लौड़ा उठते-बैठते जिस तरह हिल रहा था.. वो देखकर वो ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी।
करीब 20 उठक-बैठक होने के बाद डॉली ने कहा।
डॉली- अब मैं कॉफी बनाने जा रही हूँ.. तब तक तुम मुर्गा बनकर रहोगे इस तिपाई पर.. ये मेरे सामने अचानक से नंगा होने के सज़ा है।
मैं चुपचाप मुर्गा होकर बैठ गया और वे दोनों फिर हँसने लगी। लगभग 10 मिनट में 3 कप लेकर डॉली आई और मुझे उठने के लिए कहा। मुझे एक कप देकर उन दोनों ने एक-एक कप उठा लिया और मुझे वहीं तिपाई पर बैठ कर पीने को कहा।
कुछ ही देर में हमने कॉफी ख़त्म कर दी तो ललिता ने कहा- चल अब इससे ज़रा फ़ुट-मसाज लेते हैं.. पैर अच्छी तरह से धोकर आएँगे।
वो दोनों बाथरूम में जाकर अच्छे से पैर धोकर आईं।
डॉली- आ जाओ.. हमारे गुलाम.. हम दोनों के पैरों को मसाज दो..
मैं- जी ठीक है…
ललिता- तुझे मसाज अपने मुँह से देनी है..
मैं यह सुन कर सनाका खा कर रह गया लेकिन मेरे पास उनके आदेश को मानने के अलावा और कोई रास्ता ही था।
डॉली- वाउ.. ये तो ज़्यादा एग्ज़ाइटिंग है.. मैंने इस सब के बारे में कुछ कहानियों में भी पढ़ा है।
ललिता- फिर आज अनुभव भी कर ले.. राज तू इन्तजार किस बात का कर रहा है.. चल शुरू हो जा..
मैं बेशरम होकर दोनों के पैरों के पास नीचे कार्पेट पर बैठ गया। दोनों के बीच में बैठने के कारण एक के पैर मैंने मेरे दोनों हाथों में उठाए और उन्हें चूसना शुरू कर दिया.. बारी-बारी से मैं दोनों के पैर चाट रहा था। यह सब ब्लू फिल्म्स में देखने के कारण.. कि कैसे करते हैं.. ये मुझे पता था.. उनके पैर धुले हुए थे इसलिए मैं गंदा फील नहीं कर रहा था।
अब धीरे-धीरे मैं भी एंजाय करने लगा.. और वो दोनों भी शायद..
लगभग 15 मिनट बाद उन दोनों ने मुझे रुकने को कहा और अपनी जगह बदल दी.. जिसकी वजह से अब उनके बचे हुए दो पैर मेरी गोद में थे। लगभग 15 मिनट तक फिर से पैर चूसने के बाद वे दोनों संतुष्ट हुईं और मुझे खड़ा होने को कहा गया।
डॉली- काफ़ी अच्छा मसाज दिया राज तुमने.. पहली बार किसी ने मेरे साथ ये किया है.. पर मुझे बहुत अच्छा लगा..
ललिता- हाँ काफ़ी अच्छी तरह से किया है इसने.. और देखो शायद इसके लौड़े ने भी एंजाय किया है.. ये पहले की साइज़ से काफ़ी बड़ा हुआ लग रहा है..
डॉली- आज इसे ‘फुल इरेक्ट’ करके मुठ्ठ नहीं मारने देंगे.. देखते हैं बिना हाथ लगाए कब तक टिक पता है.. और हाँ.. राज अगर तुमने इससे छूने की कोशिश की.. तो तुम्हें उसकी सज़ा भुगतनी पड़ेगी..
मैं- जी ठीक है..
डॉली- अरे ललिता.. तुझे पता है.. इसे लड़कियों की शेव्ड बगलें बहुत पसंद हैं.. उन्हें देखकर भी इसका लंड हवा में उड़ने लगता है।
ललिता- अच्छा.. बहुत हरामी है ये तो.. चल देखते हैं..
इतना कहकर ललिता ने डॉली के कान में कुछ कहा और अपना टॉप उतारने लगी।
उसने अन्दर से समीज पहनी हुई थी और उसके अन्दर मम्मों के ऊपर काले रंग की ब्रा कसी हुई थी।
टॉप उतारते ही मुझे ललिता का क्लीवेज नज़र आया.. आअहह.. अब वो क्या कातिल माल लग रही थी.. ललिता ने हाथ ऊपर उठाए और अपने खुले बाल बाँध लिए.. मैं उसके शेव्ड बगलों की तरफ देखे जा रहा था और मेरे लौड़े में हरकत शुरू हो गई.. वो बड़ा होने लगा।
ललिता- सचमुच यार.. यह बहुत ही चुदक्कड़ है.. चल सोफे के पीछे आ जा.. मैं सोफे की पुश्त पर पीछे की तरफ झुकती हूँ.. तू मेरी बगलें चाट..
मेरा तो जैसे सपना सच होने जा रहा था.. मैं जल्दी से सोफे के पीछे जाकर ललिता के सर के पीछे खड़ा हो गया और उसकी दूधिया और मुलायम बगलों पर हाथ फेरने लगा.. धीरे-धीरे नीचे झुककर मैं उसकी बगलों पर जीभ फेरने लगा। मैं अभी इसको एंजाय ही कर रहा था.. तभी मुझ पर दो तरह का हमला हुआ..
मैं ललिता के बिल्कुल पीछे था.. तो उसने एकदम से अपने सीधे हाथ में मेरी गोटियाँ पकड़ लीं और उन्हें ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगी.. खींचने लगी।
तभी डॉली मेरे पीछे आ गई और उसने मेरा सिर पूरी तरह से ललिता की बगलों पर दबाए रखा.. मैं दर्द को सहन नहीं कर पा रहा था..और कुछ बोल भी नहीं पा रहा था.. मेरी हमेशा से इच्छा थी कि कोई मेरे गोटियों के साथ खेले.. पर जिस तरह ललिता उन्हें मसल रही थी.. उस तरह नहीं..
लगातार 5 मिनट तक बेरहमी से मसलने के बाद उसने मेरी गोटियाँ छोड़ी और लंड को पकड़ लिया.. पर ये क्या.. डॉली का एक हाथ पीछे से मेरी गाण्ड से घूमता हुआ आया और उसने पीछे से मेरी गोटियाँ खींच लीं।
मेरा दर्द से बुरा हाल हो गया था.. एक तरफ से ललिता लंड को खींच रही थी.. तो दूसरी तरफ डॉली गोटियों को.. ऐसा लग रहा था.. जैसे इन्हें लंड और गोटियों को अपने आप से अलग करना है।
दस मिनट तक ये ज़ुल्म ढाने के बाद उन्होंने मुझे आज़ाद किया.. मैं दर्द से तड़प रहा था और उसी की वजह से मेरा हाथ मेरे लंड को सहलाने के लिए बढ़ा.. तभी डॉली ने मेरे मुँह पर एक थप्पड़ मार दिया..
मैं उसका यह रूप देख कर हैरान था..
उसने कहा- मैंने पहले ही कहा है.. जब तक हम ना कहे.. तब तक अपने लंड को हाथ नहीं लगाना।
अब वे दोनों ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगीं।
मुझे फिर से सामने बुलाया गया.. और फिर उन्होंने बताया कि हम दोनों 12वीं क्लास से एक-दूसरे की अच्छी दोस्त हैं पर बारहवीं कक्षा के बाद डॉली मेडिकल में चली गई और ललिता मैनेजमेंट की तरफ चली गई थी।
अब डॉली ने मुझे टीज़ करने की तैयारी शुरू की और वो धीरे-धीरे अपने टॉप को ऊपर करने लगी। जैसा कि मैंने कहा है शुरूआत में उसने अन्दर ब्रा नहीं पहनी थी.. तो अगले कुछ मिनटों में उसके बड़े-बड़े कबूतर अपनी ब्राउन चोंच के साथ मेरी आँखों के सामने थे। मेरा जी कर रहा था कि अभी के अभी इन्हें हाथों में लेकर दबाया जाए और चूसा जाए.. एकदम कड़क और भरे हुए मम्मे मेरे सामने नंगे उछलते देखकर मेरी हालत खराब हो गई।
मेरा लंड पूरी तरह से बेकाबू होकर उछलने लगा था.. पर क्या करूँ मुझे अपने लौड़े पर हाथ लगाने की अनुमति नहीं थी।
अब डॉली जानबूझ कर मुझे इशारे करने लगी.. अपने मम्मों को दबाने लगी.. ललिता मेरी तरफ देखकर डॉली के मम्मों की चौंचें खींचने लगी।
ये सब देखकर मुझे रहा नहीं जा रहा था.. मेरी खराब हालत देख कर ललिता को मज़ा आ रहा था.. और लगी हुई आग में घी डालने के लिए उसने भी एक चाल खेली।
ललिता एकदम से खड़ी हुई और उसने एक ही झटके में अपनी लेग्गी और पैन्टी एक साथ नीचे खींच कर निकाल दीं।
आआअहह.. क्या नज़ारा था..!
ललिता की चिकनी टाँगों को मैं ऑफिस में भी देख चुका था.. पर पूरी नंगी टाँगें कसी हुई जाँघें और उनके बीच पूरी तरह से क्लीन शेव्ड उसकी फूली हुई चूत देखकर मेरे होश उड़ गए।
वो अब उसका हाथ चूत पर फेर रही थी वो वैसे ही इठलाती हुई सोफे के हत्थे पर बैठ गई और मुझे कहा- आ जा.. अब मेरी चूत चाट दे…
और यह कहते हुए उसने किसी रण्डी की तरह अपने पैर फैला दिए।
वो संगमरमर जैसी सफेद चूत देखकर मेरा तोता हवा में उड़ने लगा था.. मेरे लंड की चमड़ी पूरी तरह पीछे खिंच चुकी थी..। मुझे दर्द हो रहा था.. पर चूत चाटने के खुमार में मैं वो दर्द भूल गया।
मैं जल्दी से सोफे पर उल्टा लेट कर ललिता की चूत चाटने लगा।
आआहह… क्या मज़ा आ रहा था..!
तभी ललिता ने मुझे बाजू में हटाया और कहा- रुक.. मुझे लेटने दे..
वो अब सोफे के हत्थे पर सिर रख कर पीठ के बल लेट गई और जितना हो सकता था.. उतने पैर उसने फैला दिए।
तभी डॉली ने मुझसे कहा- तू मेरी जाँघों पर लेट जा…
मैंने ठीक वैसे ही किया और मैंने अपना सर ललिता के पैरों में अड्जस्ट कर लिया।
अब मेरी नंगी गाण्ड डॉली की जाँघों पर टिकी थी और वो उसे सहला रही थी, मेरी क्लीन शेव्ड गाण्ड पर इतने प्यार से सहलाने से मैं और मस्ती मे आने लगा और ज़ोर-ज़ोर से नमकीन चूत चाटने लगा।
ललिता चूत चटवाने का पूरा आनन्द उठा रही थी और मेरे सर के बाल पकड़ कर मुझे अपनी चूत पर और अन्दर ऐसे खींचे जा रही थी.. जैसे मेरा सर उसे अपनी चुदासी चूत के अन्दर डालना हो।
तभी डॉली ने ज़ोर-ज़ोर से मेरे चूतड़ों पर थप्पड़ मारना शुरू किया… वो इतने ज़ोर से मारने लगी कि मुझे दर्द होने लगा और उसके थप्पड़ों का निशाना मेरी शेव्ड गाण्ड होने के कारण एक अलग सी जलन होने लगी.. पर ललिता की चूत का रस चाटने के आनन्द में मैं उसे नजरअंदाज करता गया।
ललिता एक बार झड़ चुकी थी.. पर फिर भी उसने मेरा मुँह अपनी चूत पर दबा कर रखा हुआ था.. और अब तो वो अपने कूल्हे ऊपर उठा कर अपनी गाण्ड का छेद भी चटवा रही थी।
जब उसे लगा कि मैं उसके लिए सर हिला कर मना कर रहा हूँ.. तो उसने पूरा ज़ोर लगा कर मेरा सिर दबा कर रखा। इधर डॉली मेरी नंगी गाण्ड पर लगातार चांटे लगाए जा रही थी।
उसका एकाध चांटा पीछे से मेरी गोटियों पर भी पड़ रहा था..
ये दोनों जो चाहे वो करवा के रहेंगी आज.. इस बात की फीलिंग आने के बाद मैंने किसी भी चीज़ को इनकार करना छोड़ दिया।
अब मैं मजे से ललिता की गाण्ड का छेद और चूत को बारी-बारी चूसने लगा।
दूसरी बार झड़ने के बाद ही ललिता ने मुझे अलग किया.. मैं ललिता का थोड़ा स्वीट और थोड़ा सॉल्टी रस पूरा पी गया था.. और अब मुझे मेरे चूतड़ों के दर्द का एहसास होने लगा था.. तभी डॉली ने मेरा सर अपने तरफ खींच कर अपने गोर और उठे हुए मस्त कबूतर मेरे मुँह में ठूंस दिए। दूसरी तरफ से ललिता ने मेरी गाण्ड पर चांटे मारना शुरू कर दिए।
इतनी देर तक ललिता की मुलायम चूत का रस पीने के बाद और फिर डॉली के बड़े-बड़े मम्मों को चूसने से मेरी हालत खराब हो गई थी।
तभी ललिता ने एक जोरदार चपत मेरे चूतड़ों पर मार दी और मैं एकदम से ललिता की जाँघों पर ही झड़ गया।
मेरे ऐसे अचानक से झड़ने से ललिता बहुत नाराज़ और गुस्सा हो गई.. उसने उसी हालत मे मेरी गोटियाँ अपने हाथ में पीछे से पकड़ लीं और गुस्साते हुए कहा- इस तरह से मेरी जाँघों पर अपना वीर्य गिरा कर तुमने बड़ी ग़लती कर दी है.. इससे सुधारने के लिए तुम्हारे पास दो विकल्प हैं.. एक यह कि तुम खुद ये सब चाट कर मेरी जाँघों साफ़ कर दो.. या फिर अपनी गाण्ड का छेद मेरे हवाले कर दो।
मैं- ओह्ह.. आई एम सॉरी ललिता.. मुझे ऐसे अचानक से नहीं झड़ना चाहिए था.. पर मैं क्या करूँ.. मैं खुद को रोक नहीं पाया.. मुझे माफ़ कर दो..
ललिता- ग़लती तो हुई है और उसकी सज़ा तो भुगतनी पड़ेगी.. डॉली क्या फ्रिज में ककड़ी या खीरा है?
डॉली- हाँ है ना.. और इस बार तो बाज़ार में बहुत बड़ी-बड़ी ककड़ियाँ मिली हैं और राज वैसे भी तुम्हें तुम्हारी गाण्ड हम लोगों को जैसी लगती है ना.. तो आज हमें जो गाण्ड मराने का दर्द होता है.. वो भी तुम महसूस कर ही लो ना.. हा हा हा हा हा..
मैं- प्लीज़ रहम करो मुझ पर.. ऐसा मत करो..
ललिता- ठीक है.. फिर अपने मुँह से ये सब चाट ले.. और मेरी जाँघों को साफ़ कर दे..
मैं पूरी तरह से दुविधा में था.. अपना खुद का वीर्य खा लूँ या फिर अपनी गाण्ड में वो सब करने दूँ.. जो वे दोनों करने जा रही हैं। समय कम था.. इसलिए मैंने सोचा कि खुद का वीर्य खाने से अच्छा है मैं अपनी गाण्ड का छेद उसके हवाले कर दूँ।
तब तक डॉली फ्रिज में से एक लंबी ककड़ी लेकर आई थी.. जो मोटी भी लग रही थी।
डॉली- क्या तय किया इसने? यह ले, सबसे लंबी वाली लाई हूँ।
मैं- मैं मेरी गाण्ड मारने का विकल्प लेने को तैयार हूँ।
डॉली- ठीक है.. अब एक काम कर.. मैं ये तेरा वीर्य ललिता की जाँघों से साफ़ कर देती हूँ.. तब तक तू मेरी पैन्ट निकाल दे..
डॉली झुककर ललिता की जाँघों पर पड़ा मेरा पूरा वीर्य चाट कर साफ़ करने लगी और मैं उसकी जीन्स की बटन खोल कर पैन्टी के साथ नीचे खींचता चला गया।
वॉऊ.. क्या चूतड़ थे डॉली के.. एकदम राउंडेड.. चिकने और दूध की तरह मुलायम.. !
मैं उसके चूतड़ों पर हाथ फेरने लगा। उसके नितंब फैलाकर.. मैंने उसकी योनि के और गाण्ड के छेद के भी दीदार कर लिए..
तब तक वो ललिता की जाँघों से मेरा माल साफ़ कर चुकी थी.. वो उठकर खड़ी हो गई और बोली- वाहह.. क्या मस्त टेस्ट है इसके वीर्य का.. मज़ा आ गया..
ललिता नीचे कार्पेट पर पीठ के बल लेट गई और उसने वो लंबी सी ककड़ी को अपनी चूत के ऊपरी हिस्से में खड़ा पकड़ लिया और कहा- चल.. अब इस पर सवार होकर बैठ जा और राइड कर.. डॉली.. ज़रा इसके छेद में तेल लगा दे और थोड़ा ककड़ी के ऊपर भी तेल लगा दे..
डॉली जल्दी से तेल लेकर आई और थोड़ा सा तेल ककड़ी पर लगाकर थोड़ा हाथ में लिया और मुझे झुकने को कहा.. मेरे झुकते ही उसने वो तेल मेरी गाण्ड के छेद पर लगाना शुरू किया और कहा- वॉऊ.. इसका छेद तो सचमुच मुलायम है.. थोड़ा इसको फ्री करती हूँ..
इतना कहकर उसने एकदम से बीच वाली बड़ी उंगली मेरे छेद के अन्दर डाल दी।
दो मिनट के लिए मेरी आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया और ऐसा लगा कि कोई मेरे छेद को चीरता जा रहा है।
थोड़ी देर अन्दर-बाहर करके उसने मेरी गाण्ड के छेद को फ्री कर दिया और मैं बिल्कुल ककड़ी के ऊपर अपनी गाण्ड को रखकर बैठ गया.. पर अब तक उसे अन्दर नहीं लिया था.. मैं डर रहा था…
तभी डॉली ने ऊपर से मुझे नीचे की ओर ज़ोर से पुश किया.. मैंने आँखें बंद कर ली थीं.. और वो लंबी सी ककड़ी तेल की वजह से मेरी गाण्ड को चीरती हुई अन्दर समा गई।
मैं दर्द से बेहाल हो रहा था.. ललिता के हाथ का स्पर्श मेरे चूतड़ों पर होते ही.. मैं 2 मिनट के लिए वैसे ही रुक गया.. तभी..
ललिता- सिर्फ़ बैठ मत कुत्ते.. ऊपर नीचे करना शुरू कर..
ललिता के चिल्लाने से मैं जैसे होश में आ गया और धीरे-धीरे उठक बैठक करने लगा।
डॉली मेरी वो हालत देखकर हँसे जा रही थी।
ललिता ने मुझे स्पीड बढ़ाने के लिए कहा.. और मैं ज़ोर-ज़ोर से उठक-बैठक करने लगा।
पता नहीं कैसे पर मेरा लिंग अब हरकत करने लगा और बड़ा होने लगा.. यह देखकर डॉली बोलीन- देख ललिता.. यह भी खुद की गाण्ड मरवाना एंजाय कर रहा है.. देख कैसे इसका लंड खड़ा हो रहा है.. हा हा हा हा हा..
ललिता- हाँ यार.. सचमुच बहुत बड़ा हरामी कुत्ता है ये.. चल बोल बे ‘फक मी हार्ड मैडम.. गिव मी अ गुड फक, आई एम योर स्लेव..’साले मुझे तेरी आवाज़ ज़ोर ज़ोर से सुनाई देनी चाहिए..
मैं- आहह.. आअहह.. फक मी फर्दर एंड हार्डर ललिता मैम.. मैं आपका गुलाम हूँ.. मुझे अच्छी तरह से चोद दो आज..
डॉली ये सब सुनकर हँसती जा रही थी.. तभी वो नीचे झुकी और ललिता के कान में कुछ बोली।
वैसे ही ललिता ने मुझे एकदम से रुकने को कहा.. तब ककड़ी मेरी गाण्ड के छेद के अन्दर घुसी हुई थी..
ललिता ने ककड़ी छोड़ दी और मुझे उसी हालत में पीठ के बल लेटने को कहा, मैं किसी तरह सहन करके पीठ के बल लेट गया.. ककड़ी मेरे छेद में फंसी होने के कारण मुझे अपने पैर हवा में ऊपर करने पड़े।
मैंने देखा कि ललिता ने अपनी ब्रा के हुक निकाल कर उसे अपने शरीर से अलग कर दिया।
अब हम तीनों बिल्कुल नंगे थे.. क्या मस्त मम्मे थे ललिता के वॉऊववव.. बिल्कुल तने हुए.. जैसे उन्हें ब्रा की कोई जरूरत ही नहीं हो.. कड़क ब्राउन निप्पल हवा में खड़े थे।
ललिता मेरे पैरों के बीच बैठ गई और डॉली बिल्कुल मेरे मुँह पर अपनी चूत रखकर..।
ललिता ने ककड़ी हाथ में पकड़ने की कोशिश की.. पर तेल की वजह से वो फिसल रही थी। इधर मैं डॉली की मुलायम चूत के अन्दर जीभ डाल चुका था..
किसी तरह ललिता ने ककड़ी पर पकड़ जमा ली और एक-दो ज़ोर के झटके दे दिए और ककड़ी बाहर निकाल दी।
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चुलबुली पड़ोसन--3
मैं अन्दर आया तो ललिता सामने सोफे पर बैठी हुई थी। स्किन कलर की एकदम चुस्त लेग्गी और स्लीवलैस टॉप उसने पहना हुआ था। दोनों ही एकदम कातिल लग रही थीं। डॉली मेरे कपड़े रखने अन्दर चली गई.. जाते हुए उसने कहा।
डॉली- ललिता.. ये तेरे एंप्लाई की असली पहचान है.. हा हा हा हा..
ललिता- हाँ सच कहा तुमने.. आज इसका एक और इंटरव्यू होगा.. देखते हैं ये पास होता है या फेल.. हा हा हा हा.. राज यहाँ आओ और मेरे सामने खड़े हो जाओ..
मैं ठीक ललिता के सामने जाकर खड़ा हो गया। वो मुझे नीचे से लेकर ऊपर तक देखने लगी.. तभी डॉली अन्दर से बाहर आकर ललिता के बाजू में बैठ गई।
ललिता- देखो डॉली.. मेरी तरफ ऑफिस में घूर-घूर कर देखने वाले को आज भगवान ने मेरे ही सामने बिना कपड़ों का खड़ा कर दिया…
डॉली- हा हा हा हा.. जैसी करनी वैसी भरनी..
शायद मेरे साथ अगले 2 दिन होने वाले अत्याचार की यह शुरूआत थी।
ललिता ने मुझे मुड़ने के लिए कहा.. वो मुझे पीछे से देखना चाहती थी, मेरे मुड़ते ही मेरी गाण्ड देखकर वो बोली।
ललिता- डॉली.. हा हा हा हा.. इसकी गाण्ड इतनी मुलायम और शेप में है.. बिल्कुल नहीं लगता कोई मेल के चूतड़ हैं ये.. हा हा हा हा हा..
दोनों हँस पड़ीं.. पहली बार मुझे बहुत शर्म आ रही थी। मुझसे बड़ी दो औरतों के सामने.. मैं बेशरम जैसा नंगा खड़ा था।
ललिता ने मुझे झुकाकर पैर फैलाने के लिए कहा।
ललिता- वॉऊ.. कितना मस्त गाण्ड का छेद है इसका.. और ये देखो इसकी छोटी-छोटी सी गोटियाँ कितनी क्यूट लग रही हैं..
डॉली- हा हा हा हा.. हाँ ना.. ऐसा लग रहा है.. जैसे कोई छोटा बच्चा सामने नंगा खड़ा हुआ है..
वो दोनों शायद जानबूझ कर मुझे अपनी बातों से सताए जा रही थीं। ना चाहते हुए भी मैं वो सब सहन कर रहा था क्योंकि मेरी ही इच्छा से ही मैंने अपने आपको उन दोनों के हाथ सौंप दिया था।
ललिता- अब ठीक से खड़े हो जाओ और सामने वाला तिपाई लाकर उस पर खड़े हो कर 20 उठक-बैठक करो.. मुझे गंदी नज़र से ऑफिस मे देखने के लिए.. यह तुम्हारी सज़ा है।
मैं चुपचाप तिपाई पर खड़ा रह कर उठक-बैठक करने लगा.. मेरा छोटा सा लौड़ा उठते-बैठते जिस तरह हिल रहा था.. वो देखकर वो ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी।
करीब 20 उठक-बैठक होने के बाद डॉली ने कहा।
डॉली- अब मैं कॉफी बनाने जा रही हूँ.. तब तक तुम मुर्गा बनकर रहोगे इस तिपाई पर.. ये मेरे सामने अचानक से नंगा होने के सज़ा है।
मैं चुपचाप मुर्गा होकर बैठ गया और वे दोनों फिर हँसने लगी। लगभग 10 मिनट में 3 कप लेकर डॉली आई और मुझे उठने के लिए कहा। मुझे एक कप देकर उन दोनों ने एक-एक कप उठा लिया और मुझे वहीं तिपाई पर बैठ कर पीने को कहा।
कुछ ही देर में हमने कॉफी ख़त्म कर दी तो ललिता ने कहा- चल अब इससे ज़रा फ़ुट-मसाज लेते हैं.. पैर अच्छी तरह से धोकर आएँगे।
वो दोनों बाथरूम में जाकर अच्छे से पैर धोकर आईं।
डॉली- आ जाओ.. हमारे गुलाम.. हम दोनों के पैरों को मसाज दो..
मैं- जी ठीक है…
ललिता- तुझे मसाज अपने मुँह से देनी है..
मैं यह सुन कर सनाका खा कर रह गया लेकिन मेरे पास उनके आदेश को मानने के अलावा और कोई रास्ता ही था।
डॉली- वाउ.. ये तो ज़्यादा एग्ज़ाइटिंग है.. मैंने इस सब के बारे में कुछ कहानियों में भी पढ़ा है।
ललिता- फिर आज अनुभव भी कर ले.. राज तू इन्तजार किस बात का कर रहा है.. चल शुरू हो जा..
मैं बेशरम होकर दोनों के पैरों के पास नीचे कार्पेट पर बैठ गया। दोनों के बीच में बैठने के कारण एक के पैर मैंने मेरे दोनों हाथों में उठाए और उन्हें चूसना शुरू कर दिया.. बारी-बारी से मैं दोनों के पैर चाट रहा था। यह सब ब्लू फिल्म्स में देखने के कारण.. कि कैसे करते हैं.. ये मुझे पता था.. उनके पैर धुले हुए थे इसलिए मैं गंदा फील नहीं कर रहा था।
अब धीरे-धीरे मैं भी एंजाय करने लगा.. और वो दोनों भी शायद..
लगभग 15 मिनट बाद उन दोनों ने मुझे रुकने को कहा और अपनी जगह बदल दी.. जिसकी वजह से अब उनके बचे हुए दो पैर मेरी गोद में थे। लगभग 15 मिनट तक फिर से पैर चूसने के बाद वे दोनों संतुष्ट हुईं और मुझे खड़ा होने को कहा गया।
डॉली- काफ़ी अच्छा मसाज दिया राज तुमने.. पहली बार किसी ने मेरे साथ ये किया है.. पर मुझे बहुत अच्छा लगा..
ललिता- हाँ काफ़ी अच्छी तरह से किया है इसने.. और देखो शायद इसके लौड़े ने भी एंजाय किया है.. ये पहले की साइज़ से काफ़ी बड़ा हुआ लग रहा है..
डॉली- आज इसे ‘फुल इरेक्ट’ करके मुठ्ठ नहीं मारने देंगे.. देखते हैं बिना हाथ लगाए कब तक टिक पता है.. और हाँ.. राज अगर तुमने इससे छूने की कोशिश की.. तो तुम्हें उसकी सज़ा भुगतनी पड़ेगी..
मैं- जी ठीक है..
डॉली- अरे ललिता.. तुझे पता है.. इसे लड़कियों की शेव्ड बगलें बहुत पसंद हैं.. उन्हें देखकर भी इसका लंड हवा में उड़ने लगता है।
ललिता- अच्छा.. बहुत हरामी है ये तो.. चल देखते हैं..
इतना कहकर ललिता ने डॉली के कान में कुछ कहा और अपना टॉप उतारने लगी।
उसने अन्दर से समीज पहनी हुई थी और उसके अन्दर मम्मों के ऊपर काले रंग की ब्रा कसी हुई थी।
टॉप उतारते ही मुझे ललिता का क्लीवेज नज़र आया.. आअहह.. अब वो क्या कातिल माल लग रही थी.. ललिता ने हाथ ऊपर उठाए और अपने खुले बाल बाँध लिए.. मैं उसके शेव्ड बगलों की तरफ देखे जा रहा था और मेरे लौड़े में हरकत शुरू हो गई.. वो बड़ा होने लगा।
ललिता- सचमुच यार.. यह बहुत ही चुदक्कड़ है.. चल सोफे के पीछे आ जा.. मैं सोफे की पुश्त पर पीछे की तरफ झुकती हूँ.. तू मेरी बगलें चाट..
मेरा तो जैसे सपना सच होने जा रहा था.. मैं जल्दी से सोफे के पीछे जाकर ललिता के सर के पीछे खड़ा हो गया और उसकी दूधिया और मुलायम बगलों पर हाथ फेरने लगा.. धीरे-धीरे नीचे झुककर मैं उसकी बगलों पर जीभ फेरने लगा। मैं अभी इसको एंजाय ही कर रहा था.. तभी मुझ पर दो तरह का हमला हुआ..
मैं ललिता के बिल्कुल पीछे था.. तो उसने एकदम से अपने सीधे हाथ में मेरी गोटियाँ पकड़ लीं और उन्हें ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगी.. खींचने लगी।
तभी डॉली मेरे पीछे आ गई और उसने मेरा सिर पूरी तरह से ललिता की बगलों पर दबाए रखा.. मैं दर्द को सहन नहीं कर पा रहा था..और कुछ बोल भी नहीं पा रहा था.. मेरी हमेशा से इच्छा थी कि कोई मेरे गोटियों के साथ खेले.. पर जिस तरह ललिता उन्हें मसल रही थी.. उस तरह नहीं..
लगातार 5 मिनट तक बेरहमी से मसलने के बाद उसने मेरी गोटियाँ छोड़ी और लंड को पकड़ लिया.. पर ये क्या.. डॉली का एक हाथ पीछे से मेरी गाण्ड से घूमता हुआ आया और उसने पीछे से मेरी गोटियाँ खींच लीं।
मेरा दर्द से बुरा हाल हो गया था.. एक तरफ से ललिता लंड को खींच रही थी.. तो दूसरी तरफ डॉली गोटियों को.. ऐसा लग रहा था.. जैसे इन्हें लंड और गोटियों को अपने आप से अलग करना है।
दस मिनट तक ये ज़ुल्म ढाने के बाद उन्होंने मुझे आज़ाद किया.. मैं दर्द से तड़प रहा था और उसी की वजह से मेरा हाथ मेरे लंड को सहलाने के लिए बढ़ा.. तभी डॉली ने मेरे मुँह पर एक थप्पड़ मार दिया..
मैं उसका यह रूप देख कर हैरान था..
उसने कहा- मैंने पहले ही कहा है.. जब तक हम ना कहे.. तब तक अपने लंड को हाथ नहीं लगाना।
अब वे दोनों ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगीं।
मुझे फिर से सामने बुलाया गया.. और फिर उन्होंने बताया कि हम दोनों 12वीं क्लास से एक-दूसरे की अच्छी दोस्त हैं पर बारहवीं कक्षा के बाद डॉली मेडिकल में चली गई और ललिता मैनेजमेंट की तरफ चली गई थी।
अब डॉली ने मुझे टीज़ करने की तैयारी शुरू की और वो धीरे-धीरे अपने टॉप को ऊपर करने लगी। जैसा कि मैंने कहा है शुरूआत में उसने अन्दर ब्रा नहीं पहनी थी.. तो अगले कुछ मिनटों में उसके बड़े-बड़े कबूतर अपनी ब्राउन चोंच के साथ मेरी आँखों के सामने थे। मेरा जी कर रहा था कि अभी के अभी इन्हें हाथों में लेकर दबाया जाए और चूसा जाए.. एकदम कड़क और भरे हुए मम्मे मेरे सामने नंगे उछलते देखकर मेरी हालत खराब हो गई।
मेरा लंड पूरी तरह से बेकाबू होकर उछलने लगा था.. पर क्या करूँ मुझे अपने लौड़े पर हाथ लगाने की अनुमति नहीं थी।
अब डॉली जानबूझ कर मुझे इशारे करने लगी.. अपने मम्मों को दबाने लगी.. ललिता मेरी तरफ देखकर डॉली के मम्मों की चौंचें खींचने लगी।
ये सब देखकर मुझे रहा नहीं जा रहा था.. मेरी खराब हालत देख कर ललिता को मज़ा आ रहा था.. और लगी हुई आग में घी डालने के लिए उसने भी एक चाल खेली।
ललिता एकदम से खड़ी हुई और उसने एक ही झटके में अपनी लेग्गी और पैन्टी एक साथ नीचे खींच कर निकाल दीं।
आआअहह.. क्या नज़ारा था..!
ललिता की चिकनी टाँगों को मैं ऑफिस में भी देख चुका था.. पर पूरी नंगी टाँगें कसी हुई जाँघें और उनके बीच पूरी तरह से क्लीन शेव्ड उसकी फूली हुई चूत देखकर मेरे होश उड़ गए।
वो अब उसका हाथ चूत पर फेर रही थी वो वैसे ही इठलाती हुई सोफे के हत्थे पर बैठ गई और मुझे कहा- आ जा.. अब मेरी चूत चाट दे…
और यह कहते हुए उसने किसी रण्डी की तरह अपने पैर फैला दिए।
वो संगमरमर जैसी सफेद चूत देखकर मेरा तोता हवा में उड़ने लगा था.. मेरे लंड की चमड़ी पूरी तरह पीछे खिंच चुकी थी..। मुझे दर्द हो रहा था.. पर चूत चाटने के खुमार में मैं वो दर्द भूल गया।
मैं जल्दी से सोफे पर उल्टा लेट कर ललिता की चूत चाटने लगा।
आआहह… क्या मज़ा आ रहा था..!
तभी ललिता ने मुझे बाजू में हटाया और कहा- रुक.. मुझे लेटने दे..
वो अब सोफे के हत्थे पर सिर रख कर पीठ के बल लेट गई और जितना हो सकता था.. उतने पैर उसने फैला दिए।
तभी डॉली ने मुझसे कहा- तू मेरी जाँघों पर लेट जा…
मैंने ठीक वैसे ही किया और मैंने अपना सर ललिता के पैरों में अड्जस्ट कर लिया।
अब मेरी नंगी गाण्ड डॉली की जाँघों पर टिकी थी और वो उसे सहला रही थी, मेरी क्लीन शेव्ड गाण्ड पर इतने प्यार से सहलाने से मैं और मस्ती मे आने लगा और ज़ोर-ज़ोर से नमकीन चूत चाटने लगा।
ललिता चूत चटवाने का पूरा आनन्द उठा रही थी और मेरे सर के बाल पकड़ कर मुझे अपनी चूत पर और अन्दर ऐसे खींचे जा रही थी.. जैसे मेरा सर उसे अपनी चुदासी चूत के अन्दर डालना हो।
तभी डॉली ने ज़ोर-ज़ोर से मेरे चूतड़ों पर थप्पड़ मारना शुरू किया… वो इतने ज़ोर से मारने लगी कि मुझे दर्द होने लगा और उसके थप्पड़ों का निशाना मेरी शेव्ड गाण्ड होने के कारण एक अलग सी जलन होने लगी.. पर ललिता की चूत का रस चाटने के आनन्द में मैं उसे नजरअंदाज करता गया।
ललिता एक बार झड़ चुकी थी.. पर फिर भी उसने मेरा मुँह अपनी चूत पर दबा कर रखा हुआ था.. और अब तो वो अपने कूल्हे ऊपर उठा कर अपनी गाण्ड का छेद भी चटवा रही थी।
जब उसे लगा कि मैं उसके लिए सर हिला कर मना कर रहा हूँ.. तो उसने पूरा ज़ोर लगा कर मेरा सिर दबा कर रखा। इधर डॉली मेरी नंगी गाण्ड पर लगातार चांटे लगाए जा रही थी।
उसका एकाध चांटा पीछे से मेरी गोटियों पर भी पड़ रहा था..
ये दोनों जो चाहे वो करवा के रहेंगी आज.. इस बात की फीलिंग आने के बाद मैंने किसी भी चीज़ को इनकार करना छोड़ दिया।
अब मैं मजे से ललिता की गाण्ड का छेद और चूत को बारी-बारी चूसने लगा।
दूसरी बार झड़ने के बाद ही ललिता ने मुझे अलग किया.. मैं ललिता का थोड़ा स्वीट और थोड़ा सॉल्टी रस पूरा पी गया था.. और अब मुझे मेरे चूतड़ों के दर्द का एहसास होने लगा था.. तभी डॉली ने मेरा सर अपने तरफ खींच कर अपने गोर और उठे हुए मस्त कबूतर मेरे मुँह में ठूंस दिए। दूसरी तरफ से ललिता ने मेरी गाण्ड पर चांटे मारना शुरू कर दिए।
इतनी देर तक ललिता की मुलायम चूत का रस पीने के बाद और फिर डॉली के बड़े-बड़े मम्मों को चूसने से मेरी हालत खराब हो गई थी।
तभी ललिता ने एक जोरदार चपत मेरे चूतड़ों पर मार दी और मैं एकदम से ललिता की जाँघों पर ही झड़ गया।
मेरे ऐसे अचानक से झड़ने से ललिता बहुत नाराज़ और गुस्सा हो गई.. उसने उसी हालत मे मेरी गोटियाँ अपने हाथ में पीछे से पकड़ लीं और गुस्साते हुए कहा- इस तरह से मेरी जाँघों पर अपना वीर्य गिरा कर तुमने बड़ी ग़लती कर दी है.. इससे सुधारने के लिए तुम्हारे पास दो विकल्प हैं.. एक यह कि तुम खुद ये सब चाट कर मेरी जाँघों साफ़ कर दो.. या फिर अपनी गाण्ड का छेद मेरे हवाले कर दो।
मैं- ओह्ह.. आई एम सॉरी ललिता.. मुझे ऐसे अचानक से नहीं झड़ना चाहिए था.. पर मैं क्या करूँ.. मैं खुद को रोक नहीं पाया.. मुझे माफ़ कर दो..
ललिता- ग़लती तो हुई है और उसकी सज़ा तो भुगतनी पड़ेगी.. डॉली क्या फ्रिज में ककड़ी या खीरा है?
डॉली- हाँ है ना.. और इस बार तो बाज़ार में बहुत बड़ी-बड़ी ककड़ियाँ मिली हैं और राज वैसे भी तुम्हें तुम्हारी गाण्ड हम लोगों को जैसी लगती है ना.. तो आज हमें जो गाण्ड मराने का दर्द होता है.. वो भी तुम महसूस कर ही लो ना.. हा हा हा हा हा..
मैं- प्लीज़ रहम करो मुझ पर.. ऐसा मत करो..
ललिता- ठीक है.. फिर अपने मुँह से ये सब चाट ले.. और मेरी जाँघों को साफ़ कर दे..
मैं पूरी तरह से दुविधा में था.. अपना खुद का वीर्य खा लूँ या फिर अपनी गाण्ड में वो सब करने दूँ.. जो वे दोनों करने जा रही हैं। समय कम था.. इसलिए मैंने सोचा कि खुद का वीर्य खाने से अच्छा है मैं अपनी गाण्ड का छेद उसके हवाले कर दूँ।
तब तक डॉली फ्रिज में से एक लंबी ककड़ी लेकर आई थी.. जो मोटी भी लग रही थी।
डॉली- क्या तय किया इसने? यह ले, सबसे लंबी वाली लाई हूँ।
मैं- मैं मेरी गाण्ड मारने का विकल्प लेने को तैयार हूँ।
डॉली- ठीक है.. अब एक काम कर.. मैं ये तेरा वीर्य ललिता की जाँघों से साफ़ कर देती हूँ.. तब तक तू मेरी पैन्ट निकाल दे..
डॉली झुककर ललिता की जाँघों पर पड़ा मेरा पूरा वीर्य चाट कर साफ़ करने लगी और मैं उसकी जीन्स की बटन खोल कर पैन्टी के साथ नीचे खींचता चला गया।
वॉऊ.. क्या चूतड़ थे डॉली के.. एकदम राउंडेड.. चिकने और दूध की तरह मुलायम.. !
मैं उसके चूतड़ों पर हाथ फेरने लगा। उसके नितंब फैलाकर.. मैंने उसकी योनि के और गाण्ड के छेद के भी दीदार कर लिए..
तब तक वो ललिता की जाँघों से मेरा माल साफ़ कर चुकी थी.. वो उठकर खड़ी हो गई और बोली- वाहह.. क्या मस्त टेस्ट है इसके वीर्य का.. मज़ा आ गया..
ललिता नीचे कार्पेट पर पीठ के बल लेट गई और उसने वो लंबी सी ककड़ी को अपनी चूत के ऊपरी हिस्से में खड़ा पकड़ लिया और कहा- चल.. अब इस पर सवार होकर बैठ जा और राइड कर.. डॉली.. ज़रा इसके छेद में तेल लगा दे और थोड़ा ककड़ी के ऊपर भी तेल लगा दे..
डॉली जल्दी से तेल लेकर आई और थोड़ा सा तेल ककड़ी पर लगाकर थोड़ा हाथ में लिया और मुझे झुकने को कहा.. मेरे झुकते ही उसने वो तेल मेरी गाण्ड के छेद पर लगाना शुरू किया और कहा- वॉऊ.. इसका छेद तो सचमुच मुलायम है.. थोड़ा इसको फ्री करती हूँ..
इतना कहकर उसने एकदम से बीच वाली बड़ी उंगली मेरे छेद के अन्दर डाल दी।
दो मिनट के लिए मेरी आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया और ऐसा लगा कि कोई मेरे छेद को चीरता जा रहा है।
थोड़ी देर अन्दर-बाहर करके उसने मेरी गाण्ड के छेद को फ्री कर दिया और मैं बिल्कुल ककड़ी के ऊपर अपनी गाण्ड को रखकर बैठ गया.. पर अब तक उसे अन्दर नहीं लिया था.. मैं डर रहा था…
तभी डॉली ने ऊपर से मुझे नीचे की ओर ज़ोर से पुश किया.. मैंने आँखें बंद कर ली थीं.. और वो लंबी सी ककड़ी तेल की वजह से मेरी गाण्ड को चीरती हुई अन्दर समा गई।
मैं दर्द से बेहाल हो रहा था.. ललिता के हाथ का स्पर्श मेरे चूतड़ों पर होते ही.. मैं 2 मिनट के लिए वैसे ही रुक गया.. तभी..
ललिता- सिर्फ़ बैठ मत कुत्ते.. ऊपर नीचे करना शुरू कर..
ललिता के चिल्लाने से मैं जैसे होश में आ गया और धीरे-धीरे उठक बैठक करने लगा।
डॉली मेरी वो हालत देखकर हँसे जा रही थी।
ललिता ने मुझे स्पीड बढ़ाने के लिए कहा.. और मैं ज़ोर-ज़ोर से उठक-बैठक करने लगा।
पता नहीं कैसे पर मेरा लिंग अब हरकत करने लगा और बड़ा होने लगा.. यह देखकर डॉली बोलीन- देख ललिता.. यह भी खुद की गाण्ड मरवाना एंजाय कर रहा है.. देख कैसे इसका लंड खड़ा हो रहा है.. हा हा हा हा हा..
ललिता- हाँ यार.. सचमुच बहुत बड़ा हरामी कुत्ता है ये.. चल बोल बे ‘फक मी हार्ड मैडम.. गिव मी अ गुड फक, आई एम योर स्लेव..’साले मुझे तेरी आवाज़ ज़ोर ज़ोर से सुनाई देनी चाहिए..
मैं- आहह.. आअहह.. फक मी फर्दर एंड हार्डर ललिता मैम.. मैं आपका गुलाम हूँ.. मुझे अच्छी तरह से चोद दो आज..
डॉली ये सब सुनकर हँसती जा रही थी.. तभी वो नीचे झुकी और ललिता के कान में कुछ बोली।
वैसे ही ललिता ने मुझे एकदम से रुकने को कहा.. तब ककड़ी मेरी गाण्ड के छेद के अन्दर घुसी हुई थी..
ललिता ने ककड़ी छोड़ दी और मुझे उसी हालत में पीठ के बल लेटने को कहा, मैं किसी तरह सहन करके पीठ के बल लेट गया.. ककड़ी मेरे छेद में फंसी होने के कारण मुझे अपने पैर हवा में ऊपर करने पड़े।
मैंने देखा कि ललिता ने अपनी ब्रा के हुक निकाल कर उसे अपने शरीर से अलग कर दिया।
अब हम तीनों बिल्कुल नंगे थे.. क्या मस्त मम्मे थे ललिता के वॉऊववव.. बिल्कुल तने हुए.. जैसे उन्हें ब्रा की कोई जरूरत ही नहीं हो.. कड़क ब्राउन निप्पल हवा में खड़े थे।
ललिता मेरे पैरों के बीच बैठ गई और डॉली बिल्कुल मेरे मुँह पर अपनी चूत रखकर..।
ललिता ने ककड़ी हाथ में पकड़ने की कोशिश की.. पर तेल की वजह से वो फिसल रही थी। इधर मैं डॉली की मुलायम चूत के अन्दर जीभ डाल चुका था..
किसी तरह ललिता ने ककड़ी पर पकड़ जमा ली और एक-दो ज़ोर के झटके दे दिए और ककड़ी बाहर निकाल दी।
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